THE INNOVATORS by Walter Isaacson.

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About Book

क्या आपको पता है कंप्यूटर किसने इन्वेंट किया था ? इंटरनेट का इन्वेंशन कैसे हुआ? इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट कैसे स्टार्ट हुए थे ? सिलिकोन वैली की हिस्ट्री क्या है ? अगर आपको ये सब नहीं पता तो इस बुक से आपको सब पता चल जाएगा. ये जो डिजिटल रेवोल्यूशन आज आप देख रहे है, कई सारे जीनियस, हैकर्स और गीक्स के कोलाब्रेशन का रिजल्ट है. और उनके इनोवेशंस इसलिए सक्सीड हो पाए क्योंकि उन्होंने मिलकर काम किया. उन्हें ऐसा नरचरिंग एनवायरमेंट (nurturing environment) मिला जहाँ वो फ्री होक अपने आईडिया शेयर कर सके और उन्हें रियेलिटी में बदल सके.

ये बुक किसे पढ़नी चाहिए?

1) वो इंसान जो जानना चाहता है की कंप्यूटर आखिर बनाया किसने था ?

2) जो सिलिकॉन वैली के बारे में जानना चाहता है ?

3) वो इंसान जो ट्रांजिस्टर ,रेडियो, मिक्रोचिप्स और माइक्रोप्रोसेसर के बारे में जानना चाहता है.

4) हर एक इंटेलीजेंट इंसान .

इस किताब के ऑथर कौन है ?

मुकेश अम्बानी के फेवरेट ऑथर ही इस बुक के ऑथर है जिनका नाम है वॉलटर इससेक्सोन | वालँटर एक फेमस अमेरिअकन ऑथर है जिन्होने बेस्ट सेलिगं बुक्स लिखी है जैसे की:

1) लेओनार्दो डा विन्ची (Leonardo da Vinci).

2) स्टीव जॉब्स (Steve Jobs).

3) बेंजामिन फ्रानकी (Benjamin Frankin)

4) अल्बर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein).

5) हेनरी किसिंजर (Henry Kissinger)

परिचय Introduction

क्या आपको पता है कंप्यूटर किसने इन्वेंट किया था ? इंटरनेट का इन्वेंशन कैसे हुआ? इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट कैसे स्टार्ट हुए थे ? सिलिकोन वैली की हिस्ट्री क्या है ? अगर आपको ये सब नहीं पता तो इस बुक से आपको सब पता चल जाएगा. ये जो डिजिटल रेवोल्यूशन आज आप देख रहे है, कई सारे जीनियस, हैकर्स और गीक्स के कोलाब्रेशन का रिजल्ट है. और उनके इनोवेशंस इसलिए सवसीड हो पाए क्योंकि उन्होंने मिलकर काम किया. उन्हें ऐसा नरचरिंग एनवायरमेंट (nurturing environment मिला जहाँ वो फ्री होक अपने आईडिया शेयर कर सके और उन्हें रियेलिटी में बदल सके,

द कंप्यूटर The Computer

कंप्यूटर किसी एक आदमी ने नहीं बनाया. ये एक ऐसा इनोवेशन है जो कई सारे इनोवेशन्स पर बेस्ड है. चार्ल्स बाबेज(Charles Babbage)अपने टाइम से कहीं आगे की सोचता था. दो एक जेर्नल पर्पज का ऐनालिटिकल इंजिन (Analytical Engine) बनाना चाहता था जिसे किसी भी टाइप के टास्क के लिए प्रोग्राम किया जा सके लेकिन ये 100 साल पहले की बात है. 1837 में तब तक वैक्यूम ट्यूब्स नहीं होती थीं, और ना ही कोई ट्रांजिस्टर या माइक्रोचिप्स, चार्ल्स बाबेज (Charles Babbages) का ऐनालिटिकल इंजिन ड्रीम कभी रियेलिटी नहीं बन पाया और वो बेचारा गरीबी में ही मर गया. लाईट बल्ब या टेलीफोन की तरह कंप्यूटर बनाने का क्रेडिट कोई भी एक सिंगल पर्सन नहीं ले सकता है. डिजिटल रेवोल्यूशन टीम वर्क से ही आया. ये इनोवेटर्स जीनियस, गीक्स और हैकर्स लोग थे जिन्होंने मिलकर साथ काम किया, “इनीवेशंस तब हुई जब इसके सीड्स सही जगह पे पड़े” 1940 में टाइमिंग एकदम सही थी. वर्ल्ड वार छिड़ी हुई थी, मिलिट्री ने कोर्पोरेश्स और यूनिवरसिटीज़ को कुछ नए टेक्नोलोजिकल आईडियाज़ के लिए फंड दिया जो वार में काम आ सके.

जॉन मौच्ली (John Mauchly) और प्रेसपर एच्केट (Presper Eckert) को एक ऐसा इलेक्ट्रोनिक कंप्यूटर बनाने के लिए रीबूट किया गया जो मिसाइल ट्रेजक्ट्रीज (missle trajectories) डिटरमाइन कर सके. मौच्लीMauchly) बड़ा गज़ब का विजेनरी था जबकि एच्केर्ट (Eckert) एक प्रेक्टिकल इंजीनियर था. दोनों की पार्टनरशिप बढ़िया थी. डिजिटल रेवोल्यूशन के दौरान उनके जैसी कई जोड़ीयों ने कई सारे अमेजिंग इनोवेशंस किये जैसे कि एचपी (HP) के बिल हेवलेट (Bill Hewlett) और डेव पैकर्ड (Dave Packard) माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स और पॉल एलेन और एप्पल के स्टीव जॉब्स और स्टीव वोज्नि अक (Steve Wozniak) एनिअक(ENIAC) 1945 में जाकर कम्प्लीट हुआ. ये एक सेकंड में 5000 एडिशन और सबट्रेकशन कर सकता था. और पॉवर सोर्स के लिए इसको 17,468 वैक्यूम ट्यूब्स की जरूरत पड़ती धी. ये एक 3 बेडरूम अपार्टमेंट जितना बड़ा था. एनिअक (ENIAC) को ओपरेट करने के लिए एक पूरी टीम चाहिए होती थी. लेकिन जो भी हो ये उस टाइम का सबसे बेस्ट कंप्यूटर था,

कई इनोवेटर्स के सक्सेसफुल ना होने का रीजन उनका लैक ऑफ़ कोलाब्रेशन भी था. कई जीनियस लोगों के पास ग्रेट आईडियाज थे लेकिन उनकी ई टीम नहीं थी इसलिए वे अकेले रह गए. और इस वजह से उन्हें पता ही नहीं चल पाता था कि उनके काम में क्या मिसिंग है. सक्सेसफुल इनोवेशंस हमेशा क्रिएटिव एनवायरमेंट से ही आये जैसे बेल लैब्स, इंटेल और मिट (MIT.) मॉडर्न कंप्यूटिंग में 4 डिसटीनक्ट केरेक्टरस्टिक (4 cistinct characteristics.) है. फर्स डिजिटल है सेकंड बाएनरी, थर्ड इलेक्ट्रोनिक और फोर्थ है जेर्नल पर्पज. मशीन चार्ल्स बाबेज (Charles Babbage) ने क्रियेट की थी. हरमन होल्लेरिथ( Herman Hollerith ) और होवार्ड ऐकेनHoward Alken) को मॉडर्न कंसीडर नहीं किया सकता. एनिएक ENIAC) फर्स्ट मॉडर्न कंप्यूटर है जो पूरी तरह से इलेक्ट्रिक और डिजिटल है. इसे कनेक्टंग केबल्स के शरू किसी भी टास्क | जा के लिए प्रोग्राम्ड किया जा सकता है. पूरे 10 सालो तक एनिअक (ENIAC) ने बढियां परफोर्मेस दी थी.

द ट्रांजिस्टर The Transistor

एनिअक और इसके इम्पूड वर्जन्स एड्वाक (EDVAC) और यूनिवाक (UNIVAC) काफी बड़े थे और काफी बड़ी डेलिकेट और एक्सपेंसिव वैक्यूम ट्यूब्स पर चलते थे. ये इतने कोस्टली थे कि बस कंपनीज़ यूनिवरसिटीज़ और मिलिट्री ही उन मशीनों को यूज कर सकते थे. डिजिटल एज की शुरुवात 1947 में तब हुई जब बेल लैब्स के दो साइंटिस्ट ने मिलकर एक ट्रांजिस्टर बनाया. वाल्टर द्रसैन (Waiter Brattain) एक इंजिनियर थे और जॉन बार्डीन (John Bardeen) एक क्वांटम थ्योरिस्ट थे. इन दोनों ने मिलकर काम किया और कंप्यूटर के सोर्स ऑफ़ पॉवर के लिए वैक्यूम ट्यूब्स को रिप्लेस करने में सक्सेसफुल रहे. एक बेंट पेपर क्लिप, गोल्ड फॉयल की स्ट्रिप्स और एक सेमीकंडक्टर की हेल्प से वे इलेक्ट्रिक करंट को एम्पलीफाई करने में कामयाब रहे. इस सेटअप को अगर सही तरीके से मेनीप्यूलेट किया जाये तो ये इलेक्ट्रीसिटी बढ़ा सकता था और इससे स्विच ओन एंड ऑफ भी किया जा सकता था. और इस तरह उन्होंने ट्रांजिस्टर बनाया था.सिर्फ टीम वर्क ही नहीं बल्कि राईट एनवायरमेंट भी एम् इम्पोरटंट फैक्टर था जिससे कि अमेजिंग इनोवेशन्स पोसिबल हुए. उन्होंने मिलकर बेल ,लैब्स में काम किया जहाँ उन्हें एक नरचरिंग एनवायरमेंट मिला और जहाँ डिफरेंट फील्ड्स के लोग आपस में मिलकर एक टीम की तरह काम करते थे. बेल लैल्स में थ्योरिस्ट, केमिस्ट, फीजिसिस्ट और इंजीनियर्स ने साथ में कई अमेजिंग इन्वेशन्स किये. डिजिटल रेवोल्यूशन का यही ट्रेंड है कि 5 कि इनोवेशंस कभी भी अकेले नहीं किये जाते. इसके पीछे हमेशा एक टीम का हाथ होता है जो एक दुसरे से अपने आईडियाज़ शेयर करते बेल लैब्स भी जीरोक्स पार्क (Xerox PARC) इंटेल या एप्पल जैसा ही है जहाँ अलग-अलग फील्ड के टेलेंटेड लोग साथ में जुड़ते है और उनका ऑफिस भी कुछ ऐसे ओर्गेनाइज्ड होता है जिससे एम्लोयीज़ को ईजिली कोलाब्रेट होने का चांस मिलता है. कॉपर इलेक्ट्रिसिटी का स्ट्रोंग कंडक्टर है और सल्फर वीक कंडक्टर. सिलिकोन सेमीकंडक्टर है जिसे मेनीपुलेट करना आसान है. अगर को थोड़े से बोरोन के साथ मिला दिया जाए इससे सिलिकोन के इलेक्ट्रोन ज्यादा फ्री होकर मूव करने लगते है. इसीलिए सिलिकोन इलेक्ट्रीसिटी के लिए बेस्ट कंडक्टर माना जाता बेल लेब्स ने ट्रांजिस्टर को पेटेंट किया जिससे कि वो बाकी कंपनीज को लाइसेंस दे सके, इनमे से टेक्सास इंस्ट्रमेंट भी एक कम्पनी थी. इसके वाइस प्रेजिडेंट पैट हग्गेर्टी (Pat Haggerty) ट्राजिंस्टर को लेकर बड़े एन्थूयास्टिक (enthusiastic) थे. 1952 में उन्होंने केमिकल रिसर्चेर गॉर्डॉन टील (Cordon Teal ) को इसका बेटर वेर्जन बनाने के लिए हायर किया. पैट हग्गेर्टी(Pat Haggerty) स्टीव जॉब्स की तरह ही एक ब्रिलिएंट एंटप्रेन्पोर थे. 1954 में मिलिट्री ने $15 पर पीस के हिसाब से टांजिस्टर खरीदे, हग्गेटटी (Haggerty) ने टील और उसकी टीम को ऐसे ट्राजिस्टर बनाने से तोता कैसे 43 प्राइस के दिसाब से बेश सके से रेट कम थे लेकिन इनकी परफोर्मेस काफी बदिया थी. हगेर्टी (Haggerty) को ट्रारजिंस्टर की यो रेट में देल्य से प्यारे पॉकेट रेडियो बनाने का आईडिया भी आया. स्टीच जॉब्स की करवा लेते हम्टी (Haggerty) भी अपने इंजीनियर्स से इम्पोसिबल की तरह ही काम और जॉब्स की तरह ही उनमे ये एबिलिटी भी थी कि उन्हें पहले ही पता चल जाता था कि लोगों को क्या चाहिए. और इस तरह टैक्सास ते थे. इस्टूमेंट ने एक पॉकेट साइज़ रेडियो रीजेंसी आरटी-1 (Regency TR-1) निकाला.

और जिसका प्राइस था $49.95 ये 4 ट्रांजिस्टर पर चलता था और रेड, ब्लैक, व्हाइट और ग्रे चार कलर्स में अवलेबल था रीजेंसी आरटी-1 की वजह से सारी कंट्री को पता चल गया कि ट्रांजिस्टर क्या चीज़ है, एक ही साल के अंदर 100,000 पॉकेट रेडियो बिके. और इसकी रिलीज़ के साथ ही एल्विस प्रीस्ले का सिंगल एल्बम “देट्स आल राईट” भी रिलीज़ हुआ था, अब यंग जेनेरेशन अपने पेरेंट्स से छुपकर बेसमेंट में ये रेबेलिय्स म्यूजिक एन्जॉय कर सकती थी. इनोवेटर वाल्टर ब्रत्तेन (Walter Brattain) ने मज़ाक में बोला भी था कि मुझे ट्रांजिस्टर बनाके सिर्फ एक ही बात का रिग्रेट है और वो ये कि इसका यूज़ रॉक एंड रोल में हो रहा है।

दमाइक्रोचिप्स The Microchip

एक सिंगल माइक्रोचिप में मिलियंस ट्रांजिस्टर होते है. ये छोटी सी चिप क्या-क्या नहीं बनाती. इसने राकेट लौन्चेर्स से लेकर मून एक्सप्लोरेशन, सेटेलाइट्स और पर्सनल कंप्यूटर तक हर चीज़ को एक रियेलिटी बना दिया है. एक स्मार्टफोन के अंदर हज़ारो एनिअक (ENIAC) की प्रोसेसिंग पॉवर है. जैक किल्बी (Jack Kilby) टेक्सास इंस्ट्रूमेंट में एक एक्सपर्ट इलेक्ट्रीशियन था. उसे आईडिया आया कि अगर सिलिकोन को एक स्पेशिफिक अमाउंट में कन्टेमिनेट किया जाए तो एक ट्रांजिस्टर, एक केपेसिटर और एक रेज़िस्टर को एक साथ एक ही सिंगल चिप में डाला जा सकता है. फिर 100,000 वायर्स को एक सर्कट बोर्ड से लिंक करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी. 1958 में किल्बी (Kilby) ने अपने सुपीरियर्स के सामने एक डेमोनस्ट्रेशन (demonstration)रखा, उन्होंने टूथपिक जितनी छोटी एक सिलिकोन चिप ली फिर गोल्ड वायर्स को इसमें लगाया. हालांकि ये पावर सोर्स बड़ा इन प्रैक्टिकल और खराब दिख रहा था लेकिन ये काम कर गया. और इस तरह वर्ल्ड का फर्स्ट माइक्रोचिप तैयार हुआ जिसे किल्बी और इसी बीच फेयरचाइल्ड सेमीकन्डक्टर्स(Faircinild Semiconductors) में रोबर्ट नोरसे( Robert Noyce) और उसकी टीम अपना खुद का उसके कलीग्स ने 1958 में बनाया.

सिलिकोन चिप क्रिएट करने में जुटी थी. नोय्से Noyce) एक ब्रिलिएट इंजीनियर था और फेयरचाइल्ड सेमीकडक्टर्स के 8 फाउन्डर्स में से एक था.

और उसके को-इंजीनियर्स एक डिफरेंट अप्रोच के साथ आगे बढ़े. उन्होंने सिलिकोन चिप को एक ऑक्साइड लेयर(oxice layer)

ना(Noyce) सिलिकॉन के लिए एक कन्टैमिनेट(contaminant) की तरह था. इस लेयर में प्रिंटेड कॉपर लाइन्स थी जोकि ट्रांजिस्टर से कवर

? कर दिया

और मार्केट के सारे कंपोनेंट्स को आपस में कनेक्ट करती थी. हालाँकि ऐसी चिप पहले भी बन चुकी थी लेकिन नोप्से (Noyce ) की ये माइक्रोचिप टिकल यूज़ के लिए एकदम परफेक्ट थी. टेक्सास इंस्टूमेंट्स फेयरचाइल्ड सेमीकंडक्टर ने इस चिप के पेटेंट को लेकर कोर्ट में चले गए.लेकिन किल्बी और नोय्से(Noyce) इगोसेंट्रिक नहीं थे, उन्होंने एक दूसरे की तारीफ की, किल्बी को 2000 में नोबेल प्राइज़ मिला, उसकी स्पीच का एक पार्ट आई एम सॉरी, वो अब हमारे बीच नहीं अगर वो होता तो ये प्राइज़ हम दोनों शेयर करते क्योंकि नौय्से (Noyce) 1999 में ही चल बसे थे. माइक्रोचिप की सक्सेस के साथ ही फेयरचाइल्ड एक बड़ी कोपोरेशन बन गया. और साथ ही इसमें काफी ब्यूरोकेसी भी आ गयी थी, रोबर्ट नोसे (Robert Noyce) और बाकी के फाउन्डर्स का अब कंपनी में पहले जैसा होल्ड नहीं रह गया था और फेयरचाइल्ड भी अपनी सेन्स ऑफ़ इनोवेशन खो बैठी थी, नोय्सेNoyce) ने डिसाइड किया कि वो एक न्यू कंपनी खोलेंगे. उन्होंने फेयरचाइल्ड में अपने को- फाउंडर और बाकी कलीग्स को इन्वेस्ट करने के लिए इनवाइट किया. और इस तरह एक नयी कंपनी खुली जिसका नाम इंटरग्रेटेड इलेक्ट्रोनिक्स कोर्प (Integrated Electronics Corp. | रखा गया जो आज इंटेल के नाम से पोपुलर इंटेल ने हमेशा ही ब्यूरोक्रेसी से बचने की कोशिश की. उन्होंने अपना ऑफिस ऐसे डिजायन किया कि सुपीरियर्स को ईजिली अप्रोच किया जा सके, वहां यंग इंजीनियर को मोटिवेट किया जाता था कि अपने आईडियाज शेयर और एक्स्पलोर कर सके. अगले कुछ सालो में इंटैल का ये ओपन, फ्लेक्सीबल और लिबरल वर्क कल्चर पूरी सिलिकोन वैली ने एडाप्ट किया.

डिजिटल एज की एक ग्रेटेस्ट इनोवेशन है माइक्रोप्रोसेसर, एक्स माइक्रोचिप। एक स्पेशिफिक फंक्शन के लिए जरूरी होती है. अगर किसी डिवाइस में 12 फंक्शन्स है तो इसे 12 माइक्रोचिप्स की में परक ज़रूरत । पड़ेगी, लेकिन अगर एक ही माइक्रोचिप को मल्टीटास्क के लिए प्रोग्राम किया जाए तो? इस बारे में टेड होफ(Ted Hoff), जो इंटेल में एक टेलेंटेड इंजीनियर था, उसे ये आईडिया आया, वो उस कंपनी में 12वा एम्प्लोई था, उसने ऐसे माइक्ोचिप के बारे में सोचा जो मल्टीपल फंक्शन कर सके. उसने एक सिंगल माइक्रोचिप में 9 फंक्शन्स कम्बाइन किये. और इसे फर्स्ट टाइम डेस्कटॉप केलकुलेटर्स के लिए यूज किया गया. इंटेल ने माइक्रोप्रोसेसर को पेटेंट नहीं किया क्योंकि नोय्से(Noyce) चाहते थे कि बाकी कंपनीज इसे डिफरेंट टाइप के इलेक्ट्रोनिक डिवाइसेस । के लिए यूज़ करे. और इसके बाद माइक्रोप्रोसेसर बल्क में बिकने शुरू हो गए. 1971 में इंटेल 4004 रिलीज़ किया गया. और इस तरह माइक्रोप्रोसेस का दौर शुरू हुआ. हार्डवेयर इजिनियर और सॉफ्टवेयर र इंजिनियर के इंटेल बीच का डिफरेंट शुरू हो गया. का। इससे पहले इनोवेटर्स का सारा फोकस सिर्फ हार्डवेयर पर था लेकिन माइक्रोप्रोसेसर आने के बाद उन्होंने स्मार्ट कंप्यूटर्स बनाने के लिए सॉफ्टवेयर पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया था. रोबर्ट नोच्से(Robert Noyce) जानते थे कि माइक्रोप्रोसेसर काफी पोटेंशियल है. उन्होंने कहा था” ये वल्ल्ड को चेंज करने वाला है, अब हर चीज़ इलेक्ट्रीकली होगी” आपके घर में खुद का कंप्यूटर होगा, आपके पास अब हर तरह की इन्फोर्मेशन होगी. उन्होंने ये भी प्रेडिक्ट किया” अब आपको पैसे रखने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी क्योंकि प्यूचर में हर चीज़ इलेव्ट्रोनिक्स होने वाली है माइक्रोप्रोसेसर की वजह से कई हार्ड वेयर और सॉफ्टवेयर कंपनीज को न्यू अपोच्चूनिटीज़ मिली. सांता क्लारा वैली कैलीफोर्नियामे न्यू हेडक्वार्टर्स बनाये गए जहाँ हेवलेट एंड पेकार् (Hewlett and Packard) और फेयरचाइल्ड पहले से ही लोकेटेड थे, और फिर जल्दी ही टेक कंपनीज की सक्सेस की वजह से इस जगह को एक नया नाम मिला, सिलिकोन वैली, वीडियो गेम्स VIdeo Games माइक्रोप्रोसेसर्स ने कंप्यूटर्स की एबिलिटी को बड़े अमेजिंग तरीके से इम्पूद कर दिया था. लोगो को अब आईडिया आया कि कंप्यूटर्स अब सिर्फ कम्प्युटिंग के लिए नहीं है बल्कि इसे एंटरटेनमेंट के लिए भी यूज़ किया जा सकता है. कंप्यूटर्स की इस न्यू यूजेस की वजह से पर्सनल कंप्यूटर आईडिया जेनरेट हुआ. वीडियो गेम्स के आने से कंप्यूटर अब लोगों की डेली लाइफ का एक पार्ट बन गया था, और इसमें अब स्मार्ट इंटरफेसेस और कलरफुल ग्राफिक्स भी आने लगे. मिट (MIT) में गीक्स का एक ग्रुप था जिसे एक मॉडल ट्रेन बोर्ड के वायर्स और सर्कट से खेलना बड़ा पसंद था. इन्हें टेक मॉडल रेलबोर्ड क्लब बोलते थे, और इसके मेम्बेर्स खुद को हैकर्स बुलाते थे. एक बड़ी इंट्रेस्टिंग चीज़ हुई जब किसी टेक कम्पनी ने मिट {MIT) को पीडीपी कंप्यूटर्स (PDP-| computers डोनेट किया, गीक्स इस पीडीपी -1 से कोई कूल सा वीडियो गेम क्रियेट करना चाहते थे. स्टीव रशेल ग्रुप का बेस्ट प्रोग्रामर था था जिसने इस आईडिया को रियल्टी में बदला. स्टीव साइंस फिक्शन मूवीज का फैन धा जिसमें विलेन गेलेक्सी के बाहर तक हीरो का पीछा साईस करता है. और उसे यही से स्पैसवार गेम बनाने का आईडिया मिला, उनके आरटीफिशियल इंटेलीजेंस प्रोफेसर (artificial intelligence professor) प्रो. मिन्सकी (. Prof. Minsky) ने ऐसा अल्गोरिथम

(algorithm)

ढूँढा जिससे 3 डॉट्स पीडीपी -1 मिनट से इंटरएक्ट आकर सके, स्टीव ने इस पर और काम किया उसने डॉट्स को ऐसे प्रोग्राम कर दिया कि उन्हें स्लो डाउन, स्पीड अप या टर्न किया जा सकता था. फिर उसने उन्हें एक स्पेसशिप का लुक दिया. उसने इसमें शूटिंग मिसाइल्स भी एड किये. अगर स्पेसशिप को शूट करे तो ये एक्स्प्लोड हो जाता था, स्टीव ने स्पेसवार की क्रिएशन अपने फ्रेड्स के साथ शेयर की, उसने इसे एक ओपन सोर्स प्रोजेक्ट बनाया. डैन एडवर्ड्स (Dan Edwards) ने इसमें ग्रेविशनल फ़ोर्स वाला एक सन भी एड कर दिया. अगर प्लेयर ध्यान नही देगा तो उसका शिप खींच कर डिस्ट्रॉय किया जा सकता था. पीटर सैमसन (Peter Samson} ने कोस्टीलेशन बैकग्राउंड एड कर दि था. उसने इस बात का ख्याल रखा कि ये रियल सोलर सिस्टम के स्टार्स के जैसे एकदम एक्यूरेट लगे. मार्टिन ग्रेज {Martin Graetz ने पेनिक बटन एड कर दिया जिससे प्ल्येर्स दुसरे डाईमेंशन (dimension) में एस्केप कर सकते थे. बॉब सैंडर्स (Bob Sanders) और एलन कोटोक (Alan Kotok) ने कंसोल्स (consoles) क्रियेट किये ताकि प्लेयर्स को कीबोर्ड से स्ट्रगल ना करना पड़े. उनके पास फंक्शन स्विचेस और पैनिक बटन वाले दो प्लास्टिक बोक्सेस थे. स्पेसवार बाकी कंप्यूटर क्लब्स में भी फैल गया धा.मिट (MIT) के बाहर वाले हैकर्स और गीक्स इस गेम में कुछ ना कुछ फीचर्स एड करते रहते थे. स्पेसवार डिजिटल एज में हैकर कल्चर के 3 एस्पेक्ट्स को रिफ्लेक्ट करता था जिसमें फर्स्ट था कोलाब्रेशन, सेकड था ओपन सोर्स और फ्री सॉफ्टवेयर और थर्ड है इंटरएक्टिव और पर्सनल,

द पर्सनल कंप्यूटर The Personal Computer

बिल गेट्स ने एक बार कहा था” मेरे हिसाब से ऑल्टेयर वो फर्स्ट कंप्यूटर है जो सही मायनों में पर्सनल कंप्यूटर कहा जा सकता है एड रोबर्ट्स(Ed Roberts) कोई साइंटिस्ट नहीं था और ना ही कोई प्रोफेसर, बल्कि वो तो एक होबिस्ट(hobbyist) और हार्डकोर एंटप्रेयोर(entrepreneur) यानि बिजनेसमैन था. अप्रैल 1974 में जब इंटेल का 8080 माइक्रोप्रोसेसर मार्किट में आया तो एड रोबर्ट्स को इससे एक कप्यूटर बनाने का आईडिया आया. रोबर्ट ने अपने एक फ्रेड के साथ मिलकर ये बिजनेस स्टार्ट किया. और कंपनी का नाम रखा मिट्स (MITS) उनका ऑफिस एलबूक्यूरक्यू (Albuquerque) के स्ट्रिप माल में था. ये ऑफिस एक मसाज पार्लर और लौंडरोमेट (Laundromat) के बीच में था. रोबर्ट मॉडल रॉकेट्स और पॉकेट कैलकुलेटर के डू-इट-योरसेल्फ किड्स बेचता था. 1973 में मीट्स (MITS) ने $1 मिलियन की सेल्स की. यूं तो मार्किट में कई तरह के १े के डू-इट- है जो चीप भी है और कम्प्लीटली असेम्बल्ड भी. और इसकी वजह से मिट्स (MITS) के उपर 5 350.000 को कज चढ़ गया था. केलकुलेटर्स है भी हे आर कंपलीटली असम्बल्ड रोबर्ट्स ने इस प्रॉब्लम के सोल्यूशन के लिए एक और बिजनेस खोलने के बारे में सोचा. वो एक ऐसा कंप्यूटर बनाना चाहता था जिसे पब्लिक यूज़ कर ने के लिए आर लिजनसे खान के मोला. सके. और काफी लम्बे बाद उन्होंने ऐसा कंप्यूटर बनाकर” कंप्यूटर प्राइस्टहुड” को तोड दिया. उसने इंटेल 8080 को बड़े केयरफूली स्टंडी किया. लम्ब टाइम को तोड़ उसने डिसाइड किया कि मिट्स (MITS) एक ऐसा डू-इट-योरसैल्फ कंप्यूटर किट प्रोड्यूस करेंगी जिसमे माइक्रोप्रोसेसर होगा, और इसका प्राइस $400 से कम होगा. 8080 माइक्रोप्रोसेसर के लिए इंटेल का रीटेल प्राइस 360 था. रोबर्ट्स को $75 पर यूनिट के हिसाब से 1000 यूनिट्स की डील मिल गये. और इसके लिए उसने बैंक लोन लिया. रोबर्ट्स एक रिस्क टेकर था, उसे पता था या तो वो हिस्ट्री क्रियेट करेगा या फिर बैंकरप्ट हो जाएगा. थी औ लेकिन कर था, उसे पता था या ता वट करता था फिर करप्ट न वो बड़ा ही पैशनेट होस्ट और एंटरप्रेन्योर था इसलिए उसका ये स्टेप सही निकला. ऑल्टेयर 8800 में सिर्फ 256 बाइट्स मेमोरी सहा निकला. आल्टर 880 र इसमें कोई की-बोर्ड, माउस और इनपुट डिवाइस भी नहीं था. इसमें डेटा कुछ स्विचेस के श्रू इनपुट किया जा सकता था. तब सिलिकोन वैली में जितनी भी कंपनी थी सब ग्राफिकल इंटरफेस के लिए ट्राई कर रही थी. ऑल्टियर 8800 सिर्फ फ्लैश लाईट के ध्रू इन्फोर्मेशन डिस्ले करता था जिसे यूजर्स को बाईनेरी कोड में इंटरप्रेट करना होता था. ऑल्टेयर को पोपुलर इलेक्ट्रोनिक्स में फीचर किया गया था. एड रोबर्ट्स की इस मैगजीन के टेक्नीकल एडिटर लेस सोलोमन से दोस्ती हो गयी थी. जब सोलोमन आर्टिकल प्रिंट कर रहे थे तब तक इस डू-इट-योरसेल्फ कंप्यूटर का कोई नाम नही रखा गया था. तब सोलोमन की बेटी ने जो एक स्टार ट्रेक फैन थी, “ऑल्टेयर” नाम सजेस्ट किया., ये एक स्टार था जहाँ एंटरप्राइज़ स्पेसशिप अपने शो के न्यू एपिसोड में ट्रैवल करने वाले थे, जिस दिन पोपुलर इलेक्ट्रोनिक्स न्यूज़ स्टैंड्स में आई उसी दिन इसे ऑल्टेयर के लिए 400 ऑर्डर्स मिले. रोबर्ट को लोगो के फोन काल्स अटेंड करने के लिए एक्स्ट्रा एम्प्लोयी रखने पड़े. और हालत ये हुई कि कुछ मंध्स बाद ही 5000 किट्स बिक चुकी थी सारी कंट्री के लोग उस कंपनी को चेक भेज रहे थे जिसका आजतक किसी ने नाम तक नहीं सुना था. एड रोबर्ट का इनोवेशन इतना हाई टेक भी नहीं धा लेकिन ये अफोर्डेबल था जिससे लोग इसे खरीद पाए. होबीइस्ट (Hobbyists) और टेक गीक्स को ऑल्टेयर 8800 (Altair B800) को असेम्बल करने में काफी मज़ा आया. हालांकि इसे लेकर असेम्बल करने में भी स्पेशल स्किल्स की ज़रूरत पड़ती थी लेकिन फिर भी ये वर्ल्ड का फर्स्ट पर्सनल कप्यूटर था.

सॉफ्टवेयर Software

बिल गेट्स और पॉल एलेन लेकसाइड हाई स्कूल में मिले थे. एलेन गेट्स से दो साल बड़े थे फिर भी दोनों पक्के दोस्त बन गए. दोनों स्कूल के कंप्यूटर रूम में प्रोग्रामिंग लंगुयेज़ बेसिक (BASIC) सीख रहे थे. गेट्स 1955 में पैदा हुए थे. इसलिए उन्हें रेडियो और सर्कट जैसी हार्डवेयर की चीजों से खेलने का मौका नहीं मिल पाया लेकीन बात अगर सॉफ्टवेयर की हो तो वो इतने जीनियस थे कि बेसिक में मास्टर हो चुके थे. गेट्स ने येल(Yale) प्रिंस्टन( Princetono और हार्वर्ड Harvard) कॉलेज में एडमिशन के लिए अप्लाई किया और तीनो यूनिवरसिटीज में उनकी अप्लिकेशन एक्सेप्ट हो गयी. हार्वड में गेट्स ने एक प्रोग्रामर के तौर पे अपनी स्किल्स इम्प्रूव की. वहां वे अपने स्पेयर टाइम में स्पेसवार भी खेलते थे और दोस्ती के साथ हैंग आउट भी करते थे. लेकिन अपने सोफोमोरे इयर के एंड तक उन्होंने कॉलेज ड्राप करने का मन बना लिया था. गेट्स ने एलेन को भी ड्राप आउट करने के लिए एकरेज किया ताकि दोनों मिलकर अपनी कंपनी खोल सके. एक दिन एलेन ने उन्हें पोपुलर मैगजीन की एक कॉपी दी और बोला” “हे, ये चीज़ र नॉलेज के बगैर हो रही है” फिर क्या था

दोनों फ्रेंड्स के लिए ऑल्टेयर एक गेम चेंजर बन गया जिसने उनका ड्रीम पूरा किया. गेट्स और एलेन ने डिसाइड किया कि वे बेसिक को ऑल्टेयर साथ कम्पेटीबल बनायेंगे. उन्होंने मिट्स ( यह, (MITS) में फोन किया और एड रोबर्ट्स को बताया कि उनके पास कोड्स है जबकि रियेलिटी में उनके पास अभी कोई कोड नहीं था और वो स्टार्ट करने जा रहे थे. उनके पास आँल्टेयर नहीं थे इसलिए एलेन ने पीडीपी 10 (PDP-10) से स्टार्ट किया, इसी दौरान गेट्स कोड्स सोचकर-सोचकर एक येलो पैड पेपर पर लिखते रहे, इस बारे में उनका कहना था” ये अब तक का सबसे कूल प्रोग्राम है जो मैं लिख रहा हूँ” प्लेन से अल्ब्यूक्यूरव्यू (Albuquerque} जाते हुए एलन कमांड्स कम्प्लीट कर रहे थे जिससे ऑल्टेयर बेसिक को अपनी मेमोरी में एक्सेप्ट कर सके. इसमें टोटल 21 लाईंस थी जिनमें हर लाइन के अंदर 3 डिजिट नंबर थे. इस कोड को ऑल्टेयर टेलीटाइप के अंदर लोड होने में 10 मिनट लगे. उस टाइम मिट्स(MITS) के ऑफिस में हर कोई नर्वस था. लेकिन फिर कंप्यूटर को स्विच ऑन हुआ, इसने टाइप किया मेमोरी साइज़? एलन ने जवाब में टाइप किया” 7786″, ऑल्टेयर ने आंसर दिया” ओके” फिर एलेन ने “प्रिंट 2-2 टेस्ट क्या और कंप्यूटर ने आसर दिया -” गेट्स ने इंसिस्ट किया कि रोबर्ट्स के साथ एक फॉर्मल एग्रीमेंट होना चाहिए. मिट्स(MITS) को 10 साल के लिए सॉफ्टवेयर यूज़ करने का लाइसेंस मिल गया. हर ऑल्टेयर पर उन्हें 530 डॉलर मिलने थे और साथ ही रोबर्ट्स दूसरी कंपनीज को भी सॉफ्टवेयर यूज़ करने के लिए भी सबलाइसेंस दे सकते थे. गेट्स और एलेन ने अपनी न्यू कंपनी का नाम माइक्रोसोफ्ट रखा, और नेवस्ट 6 सालो में माइक्रोसॉफ्ट ने आईबीएम के साथ एक फेमिलियर एग्रीमेंट किया. गेट्स ने कहा हम ये श्योर कर सकते है कि हमारा ये सॉफ्टवेयर हर टाइप की मशीन में काम कर सकता है जिससे हार्डवेयर मेकर्स नहीं बल्कि हम मार्किट को डिफाइन करेंगे”.

द वेब The Web

1960 में इंटरनेट आया लेकिन इसे कॉमन मैन तक पहुँचने में 3 डिकेड्स लग गए. एक टाइम ऐसा था जब इंटरनेट कुछ ही बिजनेसमेन लोगो के कण्ट्रोल में था और सिर्फ इसके सब्सक्राइबर ही इसे यूज़ कर सकते थे. लेकिन एक दुसरे के साथ इंटरएक्ट करने और कनेक्ट होने की ह्थयूमन नीड ने सब कुछ चेंज करके रख दियाधीरे-धीरे लॉ पास होते गए जिससे इंटरनेट सब यूज़ कर सके, हालांकि 1980 में इंटरनेट अभी भी काफी फ्रेगमेंटेड और अनओगेनाइजड(unorganized) धा जिसके चलते ब्रिलिएंट इनोवेटर्स ने गोल बना लिया था कि जितनी भी इन्फोर्मेशन हे सबको आपस में लिंक किया जाये. एसा ही एक इनोवेट्स धा टिम बेर्स ली (Tim Berners-Lee.) ली एक जीनियस प्रोग्रामर था जो CERN के लिए काम करता था. उसका फर्स्ट बिग आईडिया था हाइपरटेक्स्ट (hypertext). उसने टेक्स्ट में कोड्स डाले ताकि जब यूजर्स क्लिक करे तो डायरेक्ट उस इन्फोरमेशन से लिंक हो जो उन्हें चाहिए, सिर्फ इतना ही नहीं ली ने यूआरएल (URL5, ),एचटीटीपी(HTTP) और एचटीएमएल (HTML) का आईडिया भी कोसेपट्यूलाइजड (conceptualized) किया. जब ली ने अपना आईडिया CERN में अपने सुपीरियर्स के सामने रखा उन्होंने इसे रीजेक्ट कर दिया. उन्होंने उसे बोला कि तुम्हारा आईडिया अच्छा तो है लेकिन क्लियर नहीं है. उस टाइम ली को एक बढ़िया पार्टनर मिला जो उसके साथ कोलाब्रट करने को रेडी था. रोबर्ट कैल्लिऔ (Robert का एक Cailliau) बेल्जियम का एक इंजीनियर था, उसे ली के वर्क में पोटेंशियल नज़र आया. और ली की ही तरह वो भी पब्लिक को हर तरह की इन्फोरमेशन का एक्सेस प्रोवाइड कराने के फेवर में था. ली अगर विजिनरी डिज़ाइनर था तो कैल्लिऔ (Cailliau) एक डीलिजेंट मैनेजर था. ली आईडिया सोचता था जबकि कैल्लिऔ(Cailliau) उन्हें रिएलटी में उतारता था. दोनों ने सबसे पहले अपने प्रोजेक्ट को एक ऑफिशियल नाम देने का सोचा. ली को वर्ल्ड वाइड वेब पसंद आया क्योंकि ये सुनने सिंपल था और याद सखने में ईजी था. और इस तरह वर्ल्ड वाइड वेब ने अपनी उड़ान भरी. CERN इसे पेटेंट करना चाहता था लेकिन ली ने मना कर दिया क्योंकि वो वेब को सबके लिए फ्री और ओपन सोर्स बनाना चाहता था. ली चाहता था कि ह यूज़ कर मोडी सके, के यू और कोलाबेट सके,

आरटीफिशियल इंटेलीजेन्स (Artificial Intelligence)

इमिटेशन गेम में एलन टर्निंग ने प्रपोज किया कि कोई भी कंप्यूटर ह्यूमन की तरह प्रीटेड कर सकता है. ये मशीन किसी को भी उललू बना सकती है मूर्ख बना सकती है कि ये एक रियल इन्सान है. लेकिन आज के टाइम में ऐसा कोई आरटीफिशियल इंटेलीजेंस (artificial intelligence) नहीं है जो टेस्ट पास कर सके. इसलिए इस सवाल का जवाब कि क्या मशीन वाकई में सोच सकती है ?” का जवाब होगा “नहीं क्योंकि वे सोच नहीं सकते बल्कि उन्हें तो बस ऐसा करने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है. अगर आप गूगल से पूछे रेड सी कितना डीप है 7 तो ये तुरंत जवाब देगा”7.254 फीट”, लेकिन अगर आप पूछो क्या कोकोडायल बास्केटबॉल खेल सकता है? तो गूगल भी कन्फ्यूज़ हो जाएगा. कंप्यूटर सिर्फ केलकुलेट कर सकते है और इन्फोरमेशन स्टोर कर सकते है लेकिन वे लर्न नहीं कर सकते, समझ नहीं सकते और कभी भी हमारी तरह इंटरएक्ट नहीं कर सकते.

कनक्ल्यू जन Conclusion

आपने इस बुक में ट्रांजिस्टर के बारे में जाना, अपने माइक्रोचिप्स और माइक्रोप्रोसेसर के बारे में भी जाना. आपने ये भी सीखा कि टेवनोलोजिक्ल इनोवेशंस (technological innovations ) पुराने इनोवेशंस पर बेस्ड है, आपने यहाँ स्पेसवार, ऑल्टेयर 8800 और वर्ल्ड वाइड बेब के बारे में भी जाना, आपने सीखा कि जब इनोवेटर्स आपस में कोलाब्रेट करते है तो और ज्यादा क्रिएटिव होते है, आपने बेल लेब्स और इंटेल और माइक्रोसॉफ्ट के बारे में भी सीरवा.सिलिकोन वैली की सबसे सक्सेसफुल कंपनीज ऐसी जोड़ियों से स्टार्ट हुई जो करिशमेटिक विजनरी (charismatic visionary) और प्रेक्टिकल इंजिनियर थे. इनोवेटर्स को ऐसे एनवायरमेंट की ज़रूरत पड़ती है जहाँ वे अपने आईडियाज शेयर कर सके और पोसिबिलिटीज एक्सप्लोर कर सके. डिजिटल रेवोल्यूशन का यही कोर है जब क्रिएटिव लोग आपस में कोलाब्रेट करके कुछ न्यू इन्वेंट करते है तो एक नए एरा की शुरुवात होती है. अगर कोई चीज़ हम इन स्टोरीज से सीख सकते है तो वो है ” नो मेन इज़ एन आईलैंड

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