THE GO GIVER by Bob Burg & John David Mann.

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About Book

क्या कड़ी मेहनत करने के बावजूद आप उस सफलता हो हासिल नहीं कर पा रहे हैं जो आप पाना चाहते हैं? क्या आप एक्स्ट्राऑर्डिनरी सफलता पाना चाहते हैं? अगर हाँ, तो ये बुक आपके लिए है. गो-गिवर में शानदार कहानियाँ हैं जिनसे आप बहुत सारे सबक सीखेंगे. आप सीखेंगे कि जब आप दिल खोल कर देते हैं तो सफलता भी दिल खोल कर आपका स्वागत करती है. इसलिए गो-गेटर मत बनिए. गो-गिवर बनिए और आप खुद देखेंगे कि ये कैसे आपकी ज़िन्दगी को बदल देती है..

ये बुक किसे पढ़नी चाहिए?

सेल्स, इंश्योरेंस रियल एस्टेट एजेंट, रेगुलर एम्प्लॉयीज़ , मैनेजर्स, बिज़नेस ओनर्स, सभी प्रोफेशन के लोग.

ऑथर के बारे में

बॉब बर्ग एक बेस्ट सेल्लिंग बुक के ऑथर और लोक प्रिय कीनोट स्पीकर हैं. वो30 सालों से कंपनी और सेल्स लीडर्स को ज्यादा देने और ज्यादा कमाने के बारे में सिखा रहे हैं. आज भी बॉब अपने वर्कशॉप, पॉडकास्ट, ब्लॉग और स्पीकिंग इवेंट्स के माध्यम से लोगों की ज़िन्दगी को छूने में, उन्हें प्रभावित करने में और बदलने में लगे हुए हैं. जॉन डेविड मैन एक थॉट लीडर और ऑथर हैं. उन्हें अपनी बुक्स के लिए कई अवार्ड मिल चुके हैं. पूरी दुनिया में उनकी बुक्स की 3 मिलियन से ज्यादा कॉपी बिक चुकी है और उन्हेंलगभग 35 भाषाओं में ट्रांसलेट किया जा चुका है.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आप एक गो गेटर हैं? क्या कड़ी मेहनत करने के बाद भी आप सक्सेस के उस लेवल पर नहीं पहुँच पा रहे हैं जहां आप पहुंचना चाहते हैं? अगर हाँ, लो ये बुक आपके लिए है.

इस बुक में, आप स्ट्रेटोस्फेरिक सक्सेस के 5 लॉज़ के बारे में सीखेंगे. स्ट्रेटोस्फेरिक सक्सेस मतलब इतनी सक्सेस जो हमारी कल्पना से बहुत ज्यादा बड़ी और ऊँची होती है. आप “गिविंग” यानीदेने के इम्पोर्टस के बारे में सीखेंगे. आप उन लोगों की सफलता की कहानियों के बारे में जानेंगे जिन्होंने खुद के

लिए कुछ माँगने था चाहने की बजाय दूसरों को कुछ देने की इच्छा की और वो सफलता के उस शिखर पर पहुंचे जहां वो पहुंचना चाहते थे. उन्होंने सिर्फ खुद के बारे में नहीं सोचा, उन्होंने पहले दूसरों को देने के बारे में सोचा.

क्यों, ये सुन कर विश्वास नहीं हो रहा है ना ? तो खुद देख लीजिये. इस बुक को एक मौका दीजिये और इससे

की आसमान ऊँचाइयों तक ले जाएगा.

द गो- गेटर (The Go-Cetter)

वो ज्ञान हासिल कीजिये जो आपको

“जो” एक गो गेटर है. गो गेटर का मतलब वो आदमी जो अपने गोल को पाने के लिए बहुत ज्यादा एन्बिशयस होता है वो सबसे पहले खुद के बारे सोचता है, जैसे ये काम करने से मुझे क्या मिलेगा, इसमें मेरा क्या फायदा है. वो कुछ माँगने से भी हिचकिचाता नहीं है. जो” टॉप पर पहुंचना चाहता में था. अपने फर्म में नंबर 1 और बेस्ट एजेंट बनने के लिए वो कड़ी मेहनत कर रहा था. इतना सब कुछ करने के बाद भी वो अपनी मंजिल तक पहुँच ही नहीं पा रहा था

Ist site 2nd 2nd क्वार्टर में वो अपना टारगेट पूरा ही नहीं कर पाया. अब तीसरा क्वार्टर भी ख़त्म होने को था, लेकिन अब भी जो काफ़ी पीछे था. इसलिए दो मदद माँगने एक जाने माने कंसलटेंट “पिंडार के पास गया. पिंडार को सब प्यार से चेयरमैन कह कर बुलाते थे. कंसलटेंट होने के साथ साथ वो एक गुरु या मेंटर और कीनोट स्पीकर भी थे, उन्होंने बिज़नेस के फील्ड में बहुत सवसेस और पैसा कमाया था जिसके कारण वो एक बिज़नेस टाइकून भी धे. वो अपने बिजनेस से रिटायरमेंट ले चुके थे, अब वो अपना पूरा ध्यान दूसरे कंपनी और प्रोफेशनल्स को सफल होने में मदद करने में लगा रहे थे,

जो पिंडार से मिल कर बहुत प्रभावित हुआ, उसे लगा कि सच में पिंडार प्रशंसा के योग्य हैं, उसने चेयरमैन से उनके सक्सेस का राज़ पुछा, पिंडार ने जो को ये बड़ा अटपटा सा लगा, उसे इस पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. क्योंकि लोग तो उस दुनिया के आदि हो चुके हैं जहां ज़िन्दगी की रेस में आगे सिर्फ एक शब्द कहा गिविंग” मतलब दूसरों को देना,

निकलने के लिए एक इंसान दूसरे को कुचल कर, उसे नुक्सान पहुंचा कर खुद आगे बढना चाहता है. यहाँ तो हर इंसान सिर्फ खुद के लिए सोचता है और खुद के लिए सब कुछ चाहता है. जो सोचने लगा, अगर आप हमेशा देते रहेंगे तो खुद के लिए प्रॉफिट कैसे कमाएंगे लेकिन पिंडार ने जो को एक रोमांचक सफर में चलने के लिए इनवाईट किया. इसमें दो स्ट्रैटोस्फेरिक सक्सेस के 5 लॉज़ का रहस्य खोलने वाले थे. आने वाले हफ्ते के हर दिन, को पिंडार से लंच पर मिलना था जिसमें पिंडार उसे हर रोज़ अपने एक दोस्त से मिलाने वाले थे ताकि वो एक एक करके सारे लॉज़ को सीख सके. लेकिन पिंडार की एक शर्त थी कि जो को सीखे हुए लॉ को उसी दिन अप्लाई भी करना होगा. लंच सेलेकर डिनर के वक्रत तक जो कोउस लॉ को खुद रियल लाइफ में अप्लाई करके टेस्ट करना होगा. ऐसा इसलिए ताकि हफ्ते के ख़तम होने पर जो खुद उन लॉज़ की सच्चाई को परख सके. मंडे को, जो एक रेस्ट्रान्ट के मालिक से मिला, उसका नाम अर्नेस्टो था. ट्यूसडे को वो एक सीईओ से मिला जिसका नाम निकोल था. वेडनेसडे को वो एक फाइनेंसियल एडवाइजर से मिला जिसका नाम सेम था. थर्सडे को वो एक रियल एस्टेट एजेंट डेबरा से मिला. फ्राइडे को 5th लॉ का राज़ एक ऐसे शख्स ने खोला जिसकी जो ने कभी उम्मीद भी नहीं की थी, तो आने वाले चैप्टर्स में आप एक एक लॉ के बारे में सीखेंगे, आप अनेस्टो, निकोल, सैम और डेबरा के सक्सेस स्टोरीज के बारे में जानेंगे, और हम ये भी देखेंगे कि जो की कहानी किस मोड़ पर खत्म हुई.

दलों ऑफ़ वैल्यू (The Law of Value)

द लॉ ऑफ़ वैल्यू का मतलब है कि “आपकी असली कीमत या वर्थ उस बात पर डिपेंड करती है कि आप लोगों को उनके पैसे के बदले में कितनी वैल्यू provide करते हैं। इसका मतलब है किअगर आप उसी दाम पर अपने सर्विस में और ज्यादा वैल्यू जोड़ कर अपने कस्टमर को देंगे तो आप बहुत ज्यादा सक्सेसफुल होंगे. वैल्यू मतलब कस्टमर को एक ऐसा एक्सपीरियंस देना कि वो उसे याद रखे और बोलने पर मजबूर हो जाए कि वाह क्या बात है. आप जितना ज्यादा वैल्यू जोड़ते जाएंगे आप और भी ज्यादा सक्सेसफुल होते जाएँगे. अर्नेस्टो लाफ्नेट रियल एस्टेट के बिज़नस टाइकून हैं. वो शेफ होने के साथ साथ एक रेस्ट्रान्ट के मालिक भी हैं. करीबन बीस साल पहले, अर्नेस्टो के पास सिर्फ एक हॉट डॉग का स्टैंड था.

ही समय में उसे कुछ ऐसे कस्टमर्स मिले जो हमेशा उसी के स्टैंड पर आया करते थे. ये बात चारों तरफ फैलने लगी. अब तो ये आलम था किशहर के बड़े बड़े बिज़नेस एग्जीक्यूटिव भी अर्नेस्टो के स्टैंड पर लंच करने आने लगे. उन्हें अर्नेस्टो का हॉट डॉग इतना लाजवाब लगता था कि कुछएग्जीक्यूटिव ने अर्नेस्टो की मदद करने के लिए कुछ पैसे इन्वेस्ट करने का विचार किया ताकि वो एक रेस्ट्रान्ट खोल सके.

अर्नेस्टो के स्टाल पर लोगों का तांता लगा रहता था. उसके इतने कस्टमर बन गए थे कि जब उसने रेस्ट्रान्ट चालु किया तो हमेशा की तरह कोई बेहतरीन डाइनिंग एक्सपीरियंस दिया जो दूसरे रेस्ट्रान्ट नहीं दे पा रहे थे. ऐसा करने से उसने बहुत प्रोफिट कमाया.

अपने कस्टमर्स

अर्नेस्टो नेउ स रेस्ट्रान्ट को खरीद लिया. उनएग्जीक्यूटिवज़ ने भी खुशी खुशी स्वीकार कर लिया क्योंकि उन्हें भी इससे बहुत फायदा हुआ था. इस सफलता के बाद अर्नेस्टो ने उस शहर में और भी कई रेस्ट्रान्ट खोले. इसके अलावा उसने कुछ कमर्शियल प्रॉपर्टी में पैसा लगाने के बारे में सोचा. कमर्शियल प्रॉपर्टी मतलब रियल एस्टेट प्रॉपर्टी जहां ज्यादातर बिजनेस एक्टिविटीज होती हैं और जिनसे बहुत प्रॉफिट कमाया जा सकता रियल एस्टेट की दुनिया के टाइकून बने, तो अर्नेस्टोकी सफलता का राज़ दया है? यूं तो उस शहर इस तरह वो में कई रेस्टान्ट और हॉट डॉग स्टैंड्स हैं और उनका भी टेस्टी और लजीज है, तो ऐसा क्या था जो अर्नेस्टो के बिज़नेस को इतना ख़ास, इतना अलग बनाता था ? खाना बहुत ।

इसका जवाब ये है कि वो अपने सर्विस में बहुत ज्यादा वैल्यू जोड़ र अपने कस्टमर देते थे. अर्नेस्टो के हॉट डॉग स्टैंड के पहले कस्टमर बच्चे थे, वो उन बच्चों के नाम और बर्थडे याद रखते थे. उनसे बातें उन्हें याद रहती जैसे उनका favourite कलर, कार्टून करेक्टर, वो उन से बातें किया करते थे और उन्हें कुछ ना कुछ स्पेशल ट्रीट देते रहते थे. बच्चे उन्हें अच्छे से जानने लगे भरोसा करने लगे, अर्नेस्टो का व्यवहार उनके साथ ऐसा था मानो कितने पुराने दोस्त हों या कितना गहरा रिश्ता हो जिसकी वजह से अब बड़े भी दोबारा उनके स्टैंड पर जाना पसंद करते थे, यहाँ तक कि वो अपने जान पहचान वालों को भी अर्नेस्टो के स्टैंड पर जाने के लिए कहने लगे. बाकी रेस्ट्रान्टखाने की मेनू पर जो दाम लिखा होता है बिलकुल उसके बराबर का सर्विस और वैल्यू देते हैं. लेकिन अर्नेस्टो ने हमेशा कुछ ज्यादा ही दिया. वो उसी पर लाजवाब खाने के साथ साथ फाइव स्टार होटल जैसी सर्विस और वैल्यू देते थे. एक ऐसा एक्सपीरियंस जिसके सामने दूसरों की सर्विस अर्नेस्टो को बच्चों से बहुत लगाव थे, उन्हेंपसंद करने लगे थे और न पर भरोसा करने लगे थे. अंत में वो अपने साथ अपने पेरेंट्स को भी उस स्टैंड पर ले जाने लगे. अर्नेस्टो को बड़ों के भी नाम, बर्थडे और उनकी पसंद नापसंद सब याद रहते थे, अब ये पेरेंट्स भी अर्नेस्टो को जानने लगे, पसंद करने लगे और उन पर फ़ीकी लगने लगती थी.

इसलिए तो कस्टमर्स उनके रेस्ट्रान्ट को इतना पसंद करते थे. वो बार बार उनके रेस्ट्रान्ट मेंजातेथे और अपने दोस्तों को भी इसके बारे में बताते थे. आप सोच रहे हे होंगे कैसे बिजनेस आईडिया के जिसमें सिर्फ देना, देना और देना है, ऐसे तो आप का दिवाला निकल जाएगा, है न? लेकिन ये बिलकुल सच नहीं है.बिज़नेस शुरू करते समय ये मत सोचिये कि आप कितना कमाएंगे, बल्कि आपको ये सोचना चाहिए कि आप अपने कस्टमर को क्या दे सकते हैं, उनसे पैसे के बदले में उन्हें केसी सर्विस और कितनी वैल्यू दे सकते हैं, ये वैल्यू कुछ भी हो सकता है जैसे इमोशनल वैल्यू, फाइनेंसियल वैल्यू,

परफॉरमेंस वैल्यू कुछ भी. अगर आप सिर्फ इसमें वैल्यू जोड़ते चले जाएंगे तो आप उतने ही लॉयल कस्टमर्स बनाते चले जाएंगे, और ये और ज्यादा प्रॉफिट और सक्सेस लेकर आएगा. तो ये धास्ट्रैटोस्फेरिक सक्सेस का सबसे पहला लॉ.

द लॉ ऑफ़ कॉम्पन्सेशन (The Law of Compensation)

द लो ऑफ़ कॉम्पन्सेशन का मतलब “आपकी कमाई उस बात पर डिपेड करती है कि आप कितने लोगों को सर्व कर पाते हैं और कितनी अच्छे तरीके से सर्व कर पाते हैं”, जिसका मतलब है कि आपको ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी प्रोडक्ट को पहुंचाने का तरीका ढूंढना होगा. मान लीजिये कि अभी आप 25 लोगों को सर्व करते हैं तो आपको ऐसा तरीका सोचना होगा कि आप 25,000 लोगों तक अपनी प्रोडक्ट या सर्विस को पहुंचा सकें. बस उन्हें

गिन भी नहीं पाएँगे. आप अच्छे से सर्व कीजिये और आपकी इतनी कमाई होगी की आप ि निकोल मार्टिन बच्चों की स्कूल में टीचर हैं. वो एक एजुकेशनल सॉफ्टवेर कंपनी लर्निंग सिस्टम्स फॉर चिल्ड्रेन इंक,” की सीईओ भी हैं. निकोल को पढ़ाना बेहद पसंद है, लेकिन उन्हें लगता है कि बच्चे उतना नहीं सीख पा रहे हैं जितना उन्हें सीखना चाहिए. अभी का जो एजुकेशन सिस्टम है वो बस

रट्टा मारने और याद करने पर ही ध्यान देती है. ये सिस्टम बच्चों की क्रिएटिविटी और उनके जानने की इच्छा को बढ़ावा नहीं देती है. इसलिएनिकोल ने ऐसे गेम्स बनाए जो मजेदार तोथे ही लेकिन साथ साथ उसमें बहुत बुद्धि लगाने की ज़रुरत भी पड़ती थी. बच्चों को इसमें बहुत मज़ा

आता था, और इसकी वजह से निकोल ने उनकी परफॉरमेंस में बहुत इम्मूवमेंट देखा. वो बस 25 बच्चों को ही नहीं बल्कि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को पढ़ाना चाहती थी लेकिन उनकी सैलरी इतनी नहीं थी. इसलिए उन्हें एक कमाल का एक दिन,निकोल ने पेरेंट्स टीचर मीटिंग रखी., उसने वहाँ एक बच्चे के फ़ादर, जो की एक सॉफ्टवेर इंजिनियर थे, उनसे बात की. उसने उनसे पूछा

आईडिया आया.

कि क्या वो उसके द्वारा बनाए गए गेम्स के लिए सॉफ्टवेर प्रोग्राम लिख सकते हैं. फिर उसने वहाँ एक बच्चे की मदर से बात की, जिनका एक छोटा

एडवरटाइजिंग और मार्केटिंग बिज़नेस था,

निकोल, बोइंजिनियर और मार्केटिंग एक्सपर्ट तीनों बिज़नेस पार्टनर बन गए.यही तीन लोग “लर्निंग सिस्टम्स फॉर चिल्ड्रेन इंक.” के फाउंडर हैं. अगले कुछ सालों में स्कूल का प्रोजेक्ट बहुत पॉपुलर हो गया, इस सॉफ्टवेर के ज़रिये वो पूरी दुनिया में एक साथ 25 मिलि बच्चों पढ़ा सकती थी. तोआप जितने ज्यादा लोगों को सर्व करेंगे, आप जितनी ज्यादा जिंदगियों को छुएंगे, आप उतना ही ज्यादा कमाई भी करेंगे, तो ये था दूसरा लॉ. ज्यादा सक्सेसफुल होने के लिए, आपको ज्यादा से ज्यादा लोगों को बेहतरीन तरीके से सर्व करना होगा.

और इस चीज़ की कोई सीमा या अंत नहीं है क्योंकि हमेशा लोग तो मौजूद होंगे ही जिन्हें आप सर्व कर सकते हैं. जैसा कि मार्टिन लुथर किंग जूनियर ने कहा था “महान तो कोई भी बन सकता है क्योंकि सेवा (सर्व) तो कोई भी कर सकता है”

चाहे आप जीवन में कुछ भी करें, चाहे आपका कोई भी प्रोफेशन हो, आप स्ट्रेटोस्फेरिक सक्सेस हासिल कर सकते हैं, ये सिर्फ आप पर डिपेंड करता है.

आप कितना पैसा कमाने की इच्छा रखते हैं? ज्यादा ज्यादा लोगों को सर्व किजिये और आपको जीत मिलना तय है.

द लॉ ऑफ़ इन्फ्लुएंस (The Law of Influence)

द लॉ ऑफ इन्फ्लुएस कामतलब है” आपका कितना इन्फ्लुएंस या असर होता है ये इस बात पर डिपेंड करता है कि आप कितना खुल कर दूसरों के हित

के बारे में पहले सोचते हैं, उसे खुद से पहले और आगे रखते हैं एक ऐसी सिचुएशन भी होती है जिसे हम विन-विन” सिचुएशन कहते हैं, मतलब सबका बस फायदा ही फायदा. इसके मुताबिक अगर आप अपने बिज़नस में जीत हासिल करना चाहते हैं तो आपको अपने कस्टमर को कुछ ऐसा देना पा कर उसे होगा जिसे पा कर भी फायदा हो. ये बिलकुल 50-50 वाली डील जैसा है. लॉ सिखाती है कि हमें कस्टमर को पूर00% देना चाहिए सिर्फ 50% नहीं. आपको दूसरों की ज़रूरत को समझना होगा. आपको दूसरों लेकिन ये लॉ हमें

को पहले जीताना होगा. तभी आप अपार सफलता पा सकेंगे.

ये इस बारे में नहीं हैं कि आप कितने लोगों को जानते हैं, ये इस बारे में है कि आप उन लोगों के लिए क्या क्या और कितना कर सकते हैं. सच्चे मायनों में टुसे ही लम्बे समय तक चलने वाला ने हैं, इन्फ्लुएंसकहते हैं.

सैम रोशन एक लीडिंग सेल्समेन और फाइनेंसियल एडवाइजर हैं. पहले वो एक रेगुलर इंश्योरेन्स (insurance) एजेंट थे. मगर कुछ ही सालों बाद वो उस कंपनी में नंबर पोजीशन पर पहुँच गए थे. उनका सेल्स ज़ीरो से 400 मिलियन डॉलर तक पहुँच गया था. फुल टाइम फाइनेंसियल एडवाइजर बनने से पहले उन्होंने कुछ क्लाइंट्स को मीडिएटर और एजेंट की सर्विस भी दी थी. अब वो पूरी दुनिया में नॉन

प्रॉफिट आर्गेनाइजेशन और और चैरिटी को रिप्रेजेंट करते हैं, उन्हें वो अपनी सर्विस फ्री देते हैं. की थी तब वो एक भी इंश्योरेन्स प्लान नहीं बेचपाया था. लेकिन फिर वो पूरी तरह बदल गया. सैम का सीक्रेट ये है कि उसने ये सैम ने जब शुरुआत का

की में

सोचना बंद कर दिया था कि उसे क्या मिलेगा. उसने ये देखना शुरू किया कि वो क्या दे सकता है.

उसने अपने कमीशन की फ़िक्र करना छोड़ दिया. अब बस वो इसी बात पर ध्यान देने लगा कि अपने क्लाईंट को कैसे बेस्ट सर्विस दे सके. ऐसा करने से जैसे लोगों का एक नेटवर्क बनता चला गया जो सैम को जानने लगे, पसंद करने लगे और उस पर भरोसा करने लगे थे. कुछ ऐसे भी लोग थे जो सैम से इंश्योरेन्सप्लान नहीं खरीदते थे लेकिन सैम ने फिर भी उनसे दोस्ती । कर ली थी.

सैम सचमुच दिल से अपने क्लाइंट्स की परवाह करता था इसलिए उनके वलाइंट्स भी सैम के लिए ऐसा महसूस करने लगे थे. वो उन्हें सफल होने में, बेस्ट डील दिलाने में और उन्हें financially सिक्योर करने में मदद करता था. और इसलिए उसके क्लाइंट्स ने भी उसे सफल होने में बहुत मदद की.

ऐसा लगता था मानो के चलते फिरते पर्सनल ambassador बन गए हों, वो अपने जान पहचान के लोगों को सैम से इंश्योरेन्सकराने के लिए कहने लगे. और ऐसा नहीं था कि इसके बदले सैम उन्हें कोई पैसे देता था. उन क्लाइंट्स ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो सैम को पसंद करने लगे थे, उस पर भरोसा करने लगे थे. वो जानते थे कि सैममार्केट में सबसे बेस्ट इन्सुरांस एजेंट है. इसलिएये स्कोरबोर्ड बनाना बंद कीजिये. इसकी गिनती मत कीजिये कि आपने किसी के लिए क्या क्या किया.

किसी के लिए कुछ करने के बाद उससे बदले में कुछ मांगिये मत. बस ये देने का सिलसिला चालु रखिये. इस बात पर भरोसा रखिये कि जब आपको जरूरत पड़ेगी तो कहीं न कहीं से मदद आपके रास्ते में खुदब खुद मिल जाएगी.

आप लोगों को अपने पैसे, पॉपुलैरिटी या पोजीशन के दम पर इन्फ्लुएंस नहीं कर सकते. आप उनकी जरूरतों को पहले रख कर उन्हें इन्फ्लुएंस करते हैं. यूं कहिये तो आप उन पर कभी ना मिटने वाला असर छोड़ देते हैं. अपने कस्टमर की ज़रुरत को इम्पोर्टेस दीजिये. उन्हें क्या चाहिए उन तक वो पहुंचाइये. उन्हें जीतने दीजिये. आप देखेंगे कि जैसे जैसे आप उनके साथ अच्छा करते जाएँगे वैसे वैसे आपका प्रभाव उन पर बढ़ने लगेगा और आप सफलता के और ऊँचे शिखर पर पहुँच जाएँगे.

द लॉ ऑफ़ ऑर्थेटिसिटी (The Law of Authenticity)

लॉ ऑफ़ ऑटिसिटी कहती है कि “जो बेशकीमती तोहफ़ा आप किसी को दे सकते हैं, वो आप खुद हैं”. अगर आपको लगता है कि आपके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है तो आप बिलकुल गलत हैं. आपके पास आपका टैलेंट, स्किल, टाइम, एनर्जी और आपकी abilities हैं. आप लोगों को ये सब डेबरा डेवेन्पोर्ट 42 साल की सिंगल मदर हैं. एक दिन, उसके पति अचानक से कहीं चले गए और कभी लौट कर नहीं आए.उसने किसी दूसरी औरत के

कुछ दे सकते हैं,

लिए डेबरा को छोड़ दिया था. उस वक्त डेबरा सिर्फ एक हाउसवाइफ थी, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो अपने उ बच्चों का पालन पोषण कैसे

कर पाएगी,

डेबरा जॉब हूँढने में लग गई लेकिन जहां भी वो अप्लाई करती वहाँ से उसे रिजेक्ट कर दिया जाता था. वो उसे ये कह कर स्जिंक्ट कर देते कि उसकी

उम्र बहुत ज्यादा है या उसमें दो स्किल नहीं है जिसकी उन्हें ज़रुरत है,

र फिर डेबरा रा ने रियल एस्टेट बिज़नेस का लाइसेंस लेने के बारे में सोचा, उसने रियल एस्टेट एजेंट बनने की ट्रेनिंग ली, कुछ महीनों तक इसकी पढ़ाई की और लाइसेंस लेने की एग्जाम को पास कर लिया.

वाले हर क्लोजिंग (closing) technique को बारीकी से समझ लिया था. ये वही टेक्निक्स घे जिसे यूज़ करके क्लाइट से सौदा पक्का किया जाता था. डेबरा ने डायरेक्ट क्लोज (close), ट्रायल ऑफर क्लोज, बेस्ट-टाइम-टू-बाय क्लोज और भी सारे टेक्निक्स के बारे में सीख लिया था. लेकिन इन सब में से भी उसके काम नहीं साल बीत चुका था लेकिन डेबरा एक

डेबरा ने दूसरे एजेंट्स द्वारा इस्तेमाल किये जाने

बहुत प्रॉपर्टी नहीं बेच पाई थी. अबवो खुद से निराश होने लगी थी.

कुछ आया. पूरा एक भी उसके 43rd बर्थडे पर डेबरा के एक दोस्त ने उसे सेल्स कन्वेंशन कीटिकेट दी. सेल्स कन्वेंशन मतलब एक मीटिंग जहां एक ही फील्ड के लोग जमा हो कर अपने काम के बारे में dicuss करते हैं. वहाँ डेबरा ने ये सीखा कि ज्यादा पैसा कमाने के लिए आपको अपने प्रोडक्ट में ज्यादा वैल्यू ऐड करना

ऐड करेंगे, आप उतना ही ज्यादा प्रॉफिट भी कमाएंगे. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप जाइए. ये कस्टमर्स को बहुत पसंद आता है और इससेवो आपके पास दोबारा भी आएँगे.

सेमीनार के बाद डेबरा चिंतित थी. उसके पास तो ऐसा कुछ नहीं था जिसे वो अपनी सर्विस में ज्यादा वैल्यू ऐड कर सकती थी, उसेऐसा लग रहा था जैसे

उसका आत्म सम्मान(सेल्फ एस्टीम) भी उसके पति के साथ उसका साथ छोड़ कर चला गया हो, डेबरा अब उस मुकाम पर थी जब वो ये करियर छोड़ने के बारे में सोचने लगी, लेकिन उसका एक आखरी अपॉइंटमेंट बचा था. उस सुबह, वो क्लाइंट लेकर प्रॉपर्टी दिखाने चली गई.

क्योंकि डेबरा की ये आखरी क्लाइंट थी तो उसने जितने भी टेक्निक्स को सीखा था उन सब को पूरी तरह से नज़रंदाज़ कर दिया, उनमें से कुछ भी फॉलो नहीं किया. वो अपने क्लाइंट के साथ खुल कर बातें किये जा रही थी.

को उसने किसी भी रटी रटाई बातों का इस्तेमाल नहीं किया. डेबरा तो बस अपने वलाइंट के साथ दोस्त की तरह बात कर रही थी, वो अपने क्लाइंट की कहानियां पूरे दिन हँसते रहे और बातें करते रहे. डेबरा ने सोचा कि ये उसका आज तक का सबसे अलग बिज़नेस मीटिंगथा, इसमें वो एक प्रोफेशनल से ज्यादा अपना पर्सनल टच ऐड कर चुकी थी. उसे तो ये तक याद नहीं था कि उसने क्लाइंट को प्रॉपर्टी की कीमत बताई भी है या नहीं, डेबरा को लगा उसने तो सब सत्यानाश कर दिया,

लेकिन कुछ दिनों बाद उसे फ़ोन आया, जिस क्लाइंट से उसने इतने घुल मिल कर दोस्तों की तरह बातें की थी उसने वाकई में प्रॉपर्टी को खरीद लिया था. तोआखिर में , डेबरा अपना पहला डील कम्पलीट करने में सफल हुई.

इसने उसे एक बहुत ज़रूरी बात सिखाई, उसे लगता था कि क्लाइट को देने के लिए उसके पास कुछ खास नहीं है.लेकिन अब उसे समझ में आ गया था द तो है, ये पर्सनल टच ही तो वैल्यू ऐड कर रहा था, उसके बाद तो उसने एक के बाद एक करकेकई प्रॉपर्टी बेच डाली. कि वो खुद तो है. अब डेबरा एक टॉप रियल एस्टेट एजेंट होने के साथ साथ सेल्लिंग बिज़नेस के सेमीनार में इम्पोर्टेन्ट स्पीकर भी है. वो अपने बच्चों के साथ बहुत खुश हैं.

उसे अपने करियर और सफलता से बहुत संतुष्टि मिली. बस यही लॉ ऑफ़ ऑथेंटिसिटी है, आप जैसे हैं वैसे रहिए, रियल, सच्चे, असली, इसमें कोई बनावटीपन या झूठा दिखावा नहीं होना चाहिए. किसी से या मत कीजिये. कहीं से सीखा हुआ technique यूज मत अपने क्लाइंट को ह्यूमन टच {Human touch) का एक्सपीरियंस दीजिये, एक दोस्त की तरह उनकी ज़रूरतों को समझिये, उनकी बातों पर ध्यान दीजिये. पूरी कोशिश कीजिये कि आप उन्हें बिलकुल वही दे सकें जो उन्हें चाहिए. अपना प्रोडक्ट उन पर थोपने की कोशिश मत कीजिये. इस तरह आप अपने प्रोडक्ट या सर्विस को बेच कर और भी ज्यादा ग्रो कर सकते हैं,

द लॉ ऑफ़ receptivity (The Law of Receptivity)

लॉ ऑफ़ receptivity का कहना है कि “कुछ देने की सोच को और ज्यादा असरदार बनाने का तरीका है कि आप खुद भी कुछ लेने रहे”. अभी तक इ में आपने सिर्फ खुल कर देने के बारे में सीखा है. शायद आप इस सोच के बीच बड़े हुए होंगे कि “लेने से ज्यादा अच्छा देना होता के लिए तैयार स बुक है”. तो क्या इसका ये मतलब हुआ कि अगर आपका क्लाइट बदले में आपको कुछ देना चाहता है तो उसे लेने से इनकार कर देना चाहिए? किसी से कुछ लेना भी नेचुरल है, स्वाभाविक है. अगर कोई कुछ देना चाहता है और आप उसे मना कर देते हैं तो वो भी बदतमीज़ी ही है. इसलिए जिस तरह आप देते हैं, उसी तरह स्वीकार करने के लिए भी अपनी सोच को बड़ा कीजिये. ऐसा करने से एक अच्छा और मज़बूत रिश्ता कायम रहता है. और किसी से कुछ वापस मिलना भी तो कितना नेचुरल है न, ये जीवन का एक अहम् हिस्सा है. पेड़ पौधों के बारे में सोचिये. दो कार्बन डाइऑक्साइड ले कर ऑक्सीजन देते हैं. तो वहीं इंसान और जानवर ऑक्सीजन लेकर कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं. जीवनइसी लेनदेन का एक लगातार चलने वाला प्रोसेस जब आप लोगों की मदद करते हैं, उनके चुकाए हुए दाम के बदले उन्हें ज्यादा वैल्यू देते हैं तो ये एकदम स्वाभाविक है कि वो भी बदले में आपको कुछ ना कुछ देंगे. और आपको इसे स्वीकार करने के लिए तैयार होना चाहिए. आपके क्लाइंट, कस्टमर, एम्प्लोयी या साथ काम करने वाले आपको जो भी देना चाहते हैं चाहे वो कुछ भी हो उसे स्वीकार कीजिये. ये आपके अच्छे सम्बन्ध और स्ट्रैटोस्फेरिक सक्सेस को हमेशा बनाए रखेगा.

द गो – गिवर (The Co-Civer)

अर्नेस्टो से जो ने लॉ ऑफ़ चैल्यू के बारे में सीखा. निकोल से उसने लॉ ऑफ़ कंपनसेशन के बारे में सीखा, सैम से लॉ ऑफ इन्फ्लुएंस के बारे में डेबरा से लॉ ऑफ ऑटिसिटी के बारे में सीखा.

और मंडे से थर्सडे तक जो इन दिलचस्प लोगों से मिला. फ्राइडे को वो पिंडार के साथ अकेला था. वो दोनोलॉ ऑफ़ रेसेप्टिविटी (receptivity) के बारे में बात करने लगे. तब जाकर ये रहस्य खुला कि फ्राइडे का दो खास मेहमान खुद जो ही है. पूरे हफ्ते जो एक एक करके उन लॉज़ को उस दिन अप्लाई करने में सफल हुआ था, मंडे को, एक क्लाइंट ने जो को रिजेक्ट कर दिया था. तो जो ने मदद करने के लिए उनकी किसी दूसरे का नाम suggest किया ताकि उन्हें जो चाहिए वो उन्हें मिल सके, ये होता है लॉ ऑफ़ वैल्यू, जब आपको दिए गए पैसों के बदले में आप कुछ ज्यादा वापस करते हैं,

्यूसडे को, जो को हाई क्वालिटी कॉफ़ी बीन्स से भरा हुआ एक बैग मिला, जिसे पिंडारकी शेफ रेचल ने भेजा था. उस दिन जब जो ऑफिस पहुंचा तो उसने ने सारे रे कॉफी बीन्स का इस्तेमाल करके कॉफ़ी बनाया और हर एक को उसने कॉफ़ी पिलाई. ये है लॉ ऑफ़ कंपनसेशन कि जितना ज्यादा हो सके उतने लोगों को सर्व कीजिये,ज्यादा लोगों तक अपनी पहुँच बनाइये.

वेडनेसडे को, जो अपनी वाइफ सुज़न की परेशानियों और शिकायतों को ध्यान से सुन रहा था. उसने सुज़न से अपने मन का बोझ बाँटने के लिए कहा.

जो ने उसे हीच में रोका नहीं, वो तब तक उसके पास बैठ कर उसकी तकलीफ को कम करने की कोशिश करता रहा जब तक उसे नींद नहीं आ गई. ये है

लॉ ऑफ़ इन्फ्ल जहां इन्फ्लुएंस दूसरों की इच्छा और ज़रूरतों को खुद से पहले रखा जाता है. थर्सडे को, जो अपने साथ काम करने वाले साथी गम से दिल खोल कर बातें कर रहा था. इससे उनकी दोस्ती और भी गहरी होने लगी थी. ये है लॉ ऑफ आँथेटिसिटी जहां आप किसी के सामने खुद को पेश करते हैं, एक ह्यूमन टच देते हैं.

फ्राइडे को, जो को एक खूबसूरत तोहफ़ा मिला. पिछले मंडे को, जिस क्लाइंट ने जो को रिजेक्ट कर दिया था तब जो ने उन्हें एड बान्न्स नाम के एक लड़के के बारे में बताया था. तो फ्राइडे को जो को पता चला कि एड ने भी एक इम्पोर्टेन्ट क्लाइंट को जो के बारे में बताया था.

जो ने एड को एक अमेजिंग मौका दिया था. कुछ दिनों बाद, जो को भी एड की तरफ से एक अद्भुत मौका मिला, ये है लॉ ऑफ़ रेसेप्टिविटीमतलब दूसरे से लेने के लिए तैयार रहना,

जो ने पिंडार की शर्त को पूरा कर दिया था. उसने इन पांचो ला को अप्लाई करके खुद सच्चाई को परख लिया था. आप सोच रहे होंगे कि उसके बाद क्या हुआ? उसके बाद ये हुआ कि जो एक गो-गेटर से गो-गिवर बन गया था.

जब तक वो ये सोचता था कि उसे क्या मिलेगा तब तक वो सफल नहीं हो पाया. लेकिन जब उसने ये सोचना शुरू किया कि वो क्या क्या दे सकता है तब उसने इतनी सफलता हासिल की जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी.

एक रेगुलर एम्प्लोयी से जो एक बहुत सक्सेसफुल बिजनेसमैन दुनिया की सबसे लाजवाब कॉफ़ी बनाती थी.

बन गया. उसने रेचल के साथ मिलकर अपनी कंपनी शुरू की. वो पिंडार की शेफ थी जो

उनकी कंपनी का नाम था रेचल्स फेमस कॉफ़ी” इसकी शुरुआत उस बिज़नेस opportunity से हुई थी जो एड ने जो दिया था. एक साल के अन्दर ही इस कंपनी ने स्ट्रेटोस्फेरिक सक्सेस की ऊंचाइयों को छू लिया था.

उनकी कंपनी ने मिलियन डॉलर की कमाई कर ली थी. जो और उसके बिज़नस पार्टनर्स अब समाज सेवा के काम में हाथ बँटानेलगे थे. वो छोटे छोटे गाँव में खेती को आसान करने के लिए इरीगेशन सिस्टम या सिंचाई की सुविधा की प्लानिंग कर रहे थे.

उन्होंने एक ऐसे फाउंडेशन शुरुआत की जिसका मकसद था दुनिया भर में कॉफी की खेती करने । को निर्भर मललब सेल्फ 5ufficient के आधार पर कोआपरेटिव बना कर उनकी मदद करना था.

लोगों का मानना है कि “कुछ लेने से ज्यादा अच्छा देना होता है” लेकिन अब आप समझ गए होंगे कि “सबसे पहले देना, बाद में बदले में कुछ लेना और इसे फिर दोहराना” सबसे अच्छा होता है.

कानक्लुजन (Conclusion)

तो आपने अर्नेस्टो, सैम, डेबरा, निकोल और जो की कहानियों के बारे में जाना, आपने गो-गिवर बनने के महत्त्व के बारे में समझा.

हो. सकता ॥ है कि आप बिलकुल जो जैसे हैं. आपका ध्यान हमेशा सिर्फ इस बात पर रहता है कि आपको क्या मिलेगा. लेकिन अब तो आप समझ ही गए होंगे कि आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अभी इस पल में कुछ लेने से पहले आप दूसरों वया दे सकते हैं. इनलॉज़ को एक एक करके अपनाइए और अपने जीवन में अप्लाई करना शुरू कीजिये. आप खुद को ऐसी उड़ान भरते देखेंगे जो आपको उन ऊँचाइयों पर जे जाएगा जो आपकी कल्पना से बिलकुल परे होगा.

One Comment on “THE GO GIVER by Bob Burg & John David Mann.”

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