ये किसके लिए?
- जिन्हें बुद्धिज्म के सिद्धांतों में दिलचस्पी है.
-जो जीवन में खुशियों की तलाश में भटक रहे हैं.
-जो अपने रिश्तों में एक नयी गधुरता लाना चाहते हैं.
लेखक के बारे में
तिब्बतियों के धर्म गुरु दलाई लामा और दक्षिण अफ्रीका के धर्म अध्यक्ष डसमं टूट दोनो ही शांति के दूतों के रुप में विश्व में जाने जाते हैं दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए उनके द्वारा किये। गार अथक प्रयासों के कारण इन दोनों को नोबेल पुरस्कार से भी नवाजा गया. दोनों ही धर्म के अनुयायियों ने धर्म और शांती के लिए बहुत सी अनमोल किताबें लिख्ी है जो दुनिया में कई लोगों के
मार्गदर्शन का साधन बनी.
द बुक ऑफ जॉय किताब असल में दोनों धर्म गुरुषों की सात दिन चली वार्ता का नतीजा है जिस दौरान उन्होंने समाज में बढ़ती असाजकता और घटते सुकून के बारे में बात की.
ये किताब आपको क्यूँ पठनी चाहिए? आज के बदलते परिपेक्ष में खुशियों की खोज करिए.
आज की बदलती और दौड़ती हुई जिन्दगी के दामन से खुशियों टूढ़ना बहुत मुश्किल हो गया. निरंतर बढ़ता तनाव हमारे रिश्तों और मानसिकता दोनों में झलकता है, इसलिए आध्यात्मिकता की राह पर चलना आजके बदलते परिपेक्ष्य में निहायती आवश्यक हो गया है.
जिंदगी को खुशियों और प्यार से भरने की राह पर पहला कदम रखने की प्रेरणा देने के लिए दलाई लामा और धर्म गुरु डेस्मंड टूटू के शब्दों से अच्छा क्या हो सकता है. इस किताब के सबकों को जीवन में उतार कर अपने जीवन में नयी उमंग को महसूस करने के लिए तैयार हो जाईये.
इससे आप ये भी जानेंगे
-क्यूँ खुशियों को महसूस करने के लिए गम से रूबरू होना भी जरूरी है.
कैसे दूसरों को माफ़ कर देना आपको उमंग और खुशियाँ दे सकता है.
- अपनेपन और दयालुता की राह पर चलकर कैसे आप अपने अन्दर और बहार खुशियाँ फेला सकते हैं.
दुःख के बिना सुख का कोई मोल नहीं है.
जब एक औरत माँ बनती है तो उसे अपनी ज़िन्दगी का सबसे तकलीफदेय और दर्द भरा पल जीना पड़ता है, लेकिन उस दर्द के बाद की जो खुशी मिलती है उससे हम सब अवगत है. इसलिए लेखक कहते हैं की जहाँ एक और दर्द हमें तोड़ देता है वहीं दूसरी ओर अगर देखा जाए तो दर्द के एहसास के बिना खुशियों का भी कोई मोल नहीं रह जाएगा, क्यूंकि जब दर्द के मंजर के बाद खुशियाँ आती है तो उसका महत्त्व दुगना हो जाता है.
अगर जिंदगी में दर्द के महत्व को समझना है तो हम महात्मा गाँधी को ले सकते हैं, अंग्रेजों द्वारा किये गाए अत्याचारों के वाबजूद भी वो टूटे नहीं और ना ही उनके मन में कोई हिंसा की भावना आई, बल्कि अत्याचारों के दर्द ने आज़ादी के प्रति उनके इरादे को और मजबूत कर दिया.
कई लोग कहते है जिंदगी में हर दर्द का इलाज है. लेकिन ऐसा नहीं है असल में बिना दर्द के जिन्दगी में किसी और भावना का कोई अस्तित्व ही नहीं, बिना दर्द के न हम खुशियों का एहसास कर सकते हैं न प्यार का. लेकिन हम दर्द को मिटा नहीं सकते लेकिन उसके एहसास को सकारात्मक जरुर बना सकते हैं, इसके लिए जरूरत है अपना ध्यान अपने दर्द से हटा कर दूसरों के दर्द की ओर लगाने की, बौद्ध धर्म की लोजोंग (Lojong) नाम की शिक्षा पद्धती में भी कुछ ऐसा ही लिखा है कि दूसरों के दर्द की तरफ देख व्यक्ति अपना दर्द भूल जाता है.
लोजोंग (Lojong) में लिखी इस बात को दलाई लामा ने खुद अपने जीवन में भी महसूस किया है. एक बार जब दलाई लामा बोद्ध धर्म के सबसे पावन स्थल बोद्ध गया में अपने कार्यक्रम में जा रहे थे तो उनके पेट में अचानक बहुत तेज़ दर्द हुआ उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, वो दर्द से कराह रहे थे कि तभी उनकी नज़र सड़क पर पड़े एक बीमार बूढ़े व्यक्ति पर पड़ी जो लगभग मरने की कगार पे था. उसे देख दलाई लामा को लगा कि मेरा दर्द तो इसके दर्द के सामने कुछ भी नहीं है और वो कुछ समय के लिए अपना तीव्र दर्द भूल गए.
आपका दर्द कितना जटिल है ये उसके प्रति आपके रवैये पर निर्भर करता है.
समस्या चाहे जितनी भी जटिल हो और दर्द चाहे जितना भी बड़ा हो अगर आपका इरादा और मानसिकता मजबूत है तो आप बड़े से बड़े तूफान का सामना आसानी से कर लेंगे, लेकिन अगर आपका मन ही कमजोर पड़ जाए तो दर्द का एक झोका ही आपकी ज़िन्दगी तबाह करने के लिए काफी है. ऐसा ही कुछ संदेश लेखकों ने अपनी इस किताब के जरिये दिया है.
एक मजबूत मानसिकता से आपको दर्द में भी खुशी ढूंढने का साइस मिलता है, लेखकों का कहना है कि दर्द और दुःख जीवन के अभिनन अंग हैं, इसलिए इनसे लड़ने की बजाये उस पल में ही खुशी का कोई लम्हा ढूंढने की कोशिश करना ही समझदारी है. कभी भी परिस्थितियों को अपने सुखी जीवन पर हावी न होने दें, मन में मुस्कान ले कर सोचें की ये बात का खेल है आज नहीं तो कल बदल ही जाएगा,
इन बातों को और गहरायी से समझाने के लिए दोनों लेखकों ने अपने-अपते जीवन से एक उदाहरण दिया है. जहाँ एक ओर दलाई लामा ने बताया कि कैसे एक बार उनकी और उनके मित्र और फिल्मकार पेगी कैल्लाहन (Peggy callahan) की फ्लाइट रद्द हो जाने के कारण उन्हें वहाँ से 6 घंटे की दूरी पर स्थित एअरपोर्ट जाना पड़ा, लेकिन इस परिस्थिति में झुंझलाने की बजाये उन्होंने अपने 6 घंटे के रोड ट्रिप को हँसी मजाक के पलों में तब्दील कर लिया. वहीं दूसरी ओर डेस्मंड टूट का कहना है कि अपनी युवावस्था में वो अक्सर ट्रैफिक में फंस कर क्रोधित हुआ करते थे लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ की उनके दांत मसल कर गुस्सा होने से कुछ नहीं बदलेगा इसलिए उन्होंने ट्रैफिक जाम के दौरान प्रार्थना करने का निर्णय लिया. उसके बाद से माज तक ट्रैफिक की समस्या ने उन्हें कभी नहीं सताया इसी प्रकार हम भी जीवन की हर कठिनाई को एक प्रेरणा और अवसर के रूप में देख सकते है, लेकिन वो कहते हैं न कि कहना आसान होता है लेकिन करना कठिन इसलिए लेखकों ने कठिन समस्या में खुद को मजबूत बनाये रखने के लिए कुछ आसान से तरीके बताये है जिनसे हम आगे के सबकों में रूबरू होने.
एक गुस्सैल व्यक्तित्व के पीछे ज्यादातर टूटी हुई उम्मीदों होती हैं, ऐसे में किसी अपने का साथ मरहम की तरह साबित हो सकता है.
आज के बदलते परिवेश में हमारी जिंदगी में रोज़ एक नयी उम्मीद सामने आ जाती है कभी एक अच्छे करियर की उम्मीद, कभी अच्छे घर, अच्छी जीवनशैली कभी कुछ तो कभी कुछ, इन उम्मीदों को पूरा करने की दौड़ में हम दिन रात शुटे रहते हैं. गलती उम्मीदों की नहीं है लेकिन असल समस्या तो तब आती है जब उम्मीदें टूट जाती है, एक के बाद एक टूटती उम्मीदों से इसान इतना डर जाता है कि उसका जीवन भी उम्मीदों के साथ ही बिखर जाता है. धीरे धीरे ये इर गुस्से का रूप लेकर व्यक्ति के मन में बैठ जाता है, और उसका गुस्सा कभी अपनों पर तो कभी समाज पर फूटता रहता है.
इसलिए दलाई लामा कहते हैं कि उम्मीदों के टूट जाने पर किसी के द्वारा दिखाया गया थोडा सा प्यार व्यक्ति को संभलने में उसकी मदद कर सकता है. इसके उदहारण स्वरूप उन्होंते अपने जीवन की एक घटना बताते हुए कहा है की पॉल एकमन (Paul Ekman) नाम के एक वैज्ञानिक से उनकी मुलाक़ात माइंड एड लाइफ नाम की एक संस्था द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में हुई उन्हें पता चला की पॉल बड़े ही गुस्सैल स्वभाव के व्यक्ति हैं क्यूंकि उनके पिता काफी आक्रामक थे जिसके कारण उनकी माँ ने आत्महत्या कर ली थी उनके जीवन का ये सच आज भी उनके जेहन में घूम रहा था जब दलाई लामा उनसे मिले तो उनके हाथ को हाथ में लेकर उनकी आँखों की गहरायी में बड़े ही प्यार से झाँका, उस एक झलक ने पॉल के गन में बसे गुस्से के ज्वालामुखी को शांत कर दिया.
जिस तरह प्यार और सद्भावना के जरिये हम लोगों से जुड़ सकते हैं उसी तरह हमारा दुःख भी हमें दूसरों से जोडता हैं. जब भी हमें कोई ऐसा व्यक्ति मिलता है जिसका दु ख हमारे जैसा है तो अपने आप ही उसके प्रति दिल में सहानुभूति आ जाती है और तो और कई बार दुःख हर्ने लोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना देता है. एक वैज्ञानिक संस्था के द्वारा किये गए शोध से भी यही पता चलता है कि जो लोग जीवन में किसी बड़े हादसे से गुजरे होते हैं उनके दिल ज्यादा नर्म होते हैं, और जिन्होंने कभी कोई तकलीफ देखी ही नहीं उन्हें किसी दुसरे की तकलीफ का एहसास भी कम ही होता है. इसलिए लेखकों का कहना है कि अपनी तकलीफों को दूसरों से जोड़ कर देखें तो टूटी हुई उमीदों का दर्द भी काफी कम हो जाएगा.
अकेलापन और ईर्ष्या – ज़िन्दगी तबाह करने के लिए ये दोनों ही काफी हैं.
सच ही कहते हैं कि इसान एक सामाजिक प्राणी है. इसलिए शायद जब किसी व्यक्ति को अकेलापन सताता है तो उस अकेलेपन से उबर पाना उसके लिए बहुत मुश्किल हो जाता है जिसके कारण न जाने कितनी ही मानसिक बीमारियों जन्म लेती है, चूँकि प्रकृति ने एक इसान को दुसरे का पूरक बनया है तो कोई भी व्यक्ति अकेले ही काफी होने का दावा नहीं कर सकता. इसलिए लेखकों की सलाह है कि हमें ज्यादा से ज्यादा लोगों के साथ जुड़ना चाहिए लेकिन इसमें जो सबसे बड़ी समस्या आती है वो है विश्वास की कमी आज के युग में व्यक्ति इतना स्वार्थी हो गया है कि उसे खुद से ज्यादा और किसी पर विश्वास नहीं है, नतीजन गिने चुने लोगों को ही वो अपनी जिन्दगी का हिस्सा बना पाता है,
लेखकों का कहना है कि जो व्यक्ति मैं, और मेरा के चक्करों में ज्यादा पड़े होते हैं वो आमतौर पर अकेलेपन का शिकर होते हैं और हृदय और मानसिक बीमारियाँ भी ऐसे ही लोगों में ज्यादा पायी जगी है.
अकेलेपन के बाद दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत है हा इष्यां तो एक ऐसी भावना है जो इसान ही नहीं बल्कि जानवरों में भी देखी जा सकती है. ईविश लोग अपनी थाली की रोटी के लिए इश्वर
धन्यवाद करने की बजाये किसी और की ज्यादा भरी थाली देखकर ज्यादा जलते हैं और यही जलन आगे चलकर गुस्से और डर का कारण बनती है,
हा के चलते लोग क्या कुछ नहीं कर जाते. लेकिन इष्यां तो एक स्वाभाविक भावना है जिसपर हमारा वश नहीं चलता, लेकिन बस जरूरत है तो इस भावना को ज्यादा पनाह न देने की. अगर आपको किसी के प्रति इष्या हो भी रही है तो उसके बारे में ज्यादा ना सोचें और इस इर्ष्या को सकारात्मक मोड देते हुए अपनी प्रगति में लगायें.
कई बार मौत के मुँह में जाकर ही जीवन का मूल्य पता चलता है.
इसान का ऐसा स्वभाव है कि जो चीज़ उसे आसानी से मिल जाती है उसका कोई मोल नहीं करता लेकिन जब वही चीज़ उसके हाथों से फिसलते फिसलते बचती है तब उसे उसका मोल समझ आता है अब जीवन को ही ले लीजिये जब व्यक्ति एक स्वस्थ जीवन जी रहा होता है तो धुम्रपान, शराब और लड़ाई झगडे इन सब में पड़ कर अपना बहुमूल्य समय बर्बाद करता रहता है. लेकिन जब वही व्यक्ति किसी बीमारी या हादसे के कारण मौत के मुंह में जाते जाते बचता है तब उसे ये एहसास होता है कि जीवन का असली अर्थ क्या है
अब हमारे देश की आजादी को ही ले लीजिये जब अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी के बाद हमें आज़ादी मिली तो उन दिनों उस आज़ादी की कीमत देश के हर एक व्यक्ति को पता थी, इसलिए जब पहली बार चुनाव हुए तो अपना प्रतिनिधि चुन पाने की खुशी में सबने अपने घरों से मीलों पैदल चलकर भी वोट डाले. वहीं अगर हम भाज की बात करें तो वातानुकूलित गाड़ियाँ होने के बाद भी देश में लगभग आधे लोग वोट डालने नहीं जाते क्यूकि उन्हें इस आजादी का महत्त्व नहीं पता इस बात का एक उदहारण दलाई लामा ने भी पेश किया है उनका कहना था कि जब चीन में सांकृतिक क्रांति आई तो वहां के लोगों नें तिब्बती संकृति का सफाया करने की ठान ली. तिब्बती भाषा में लिखे सारे प्रथों और किताबों को नष्ट कर दिया गया. उसी दौरान दलाई लामा वहाँ से भाग कर भारत आ गए यहाँ आकर उन्होंने तिब्बती संकृति के बचे अंशों को संजोया और हर एक किताब को देखकर उन्हें जो खुशी महसूस हो रही थी वो उन्हें पहले कभी महसूस नहीं हुई.
ठीक इसी प्रकार इस्मड टूट में भी बचपन में कई बार जान लेवा बिमारियों का सामना किया था यहाँ तक कि जब उन्हें टी.बी की बीमारी लगी तो हालात ऐसे हो गए कि उनके पिताजी ने ताबूत की लकड़ियां भी इक्कठा करना शुरू कर दी, लेकिन इन सब बिमारियों से लड़ कर भी वो जीवित रहे. इन बिमारियों ने कई बार मौत से उनका सामना करवाया और मौत से हुई इन मुलाकातों में उन्हें एक जीवत ईसान बना दिया.
इसलिए लेखकों का मुख्य उद्देश्य ये समझाने का है कि जीवन बहुत बहुमूल्य है इसलिए जरूरी नहीं कि इसे खोकर ही इसकी कीमत समझी जाए, जो व्यक्ति इसकी कीमत समझ गया समझो उससे ज्यादा खुशकिस्मत कोई नहीं इंसानियत की भावना और जीवन के प्रति आपका नजरिया, दिल में सच्ची खुशी और शांति को जन्म देता है.
लेखकों का कहना है कि जीवन में खुशियाँ प्राप्त करने के लिए 8 स्तभों की जरुरत होती है. इन स्तंभों को अपने जीवन में उतारने से पहले जरुरी है कि आप अपने मन से सभी प्रकार की चिंताएं और डर को निकल बहार करें एक बार आप चिंतामुक्त हो गए उसके बाद आप खुशियों के स्तभों को जीवन में लाकर हर्षोउल्लास के रास्ते का आनंद ले सकते हैं.
लेखकों द्वारा बताया गया सबसे पहला स्तम्भ है जीवन के प्रति हमारा नज़रिया, अगर हम अपने नज़रिए और सोच को बड़ा रखते हैं तो किसी भी माहौल में खुश रहना आसान हो जाता है, जैसे कि अंग्रेजों के शासन में जब आज़ादी के दीवाने जेल में डाल दिए जाते थे तब उनके माथे पर जरा सी भी शिकन नहीं आती थी, चाहे कितनी भी यातनाए क्यूँ न सहनी पड़े वो हमेशा मुस्कुराते रहते थे, ऐसा इसलिए क्यूंकि उन्हें अपनी मौत नहीं बल्कि देश के लिए अपना बलिदान दिखाई देता था. इसलिए कहा जाता है कि अगर सोच बड़ी हो तो पहाड़ भी सर झुका देता है. एक मरते हुए व्यक्ति के पास अगर जीने की वजह हो तो वो मौत के मुँह से वापस आ सकता है और वहीं अगर एक जीवित व्यक्ति मन मैं सोच ले कि सब खत्म हो गया है तो उसकी मृत्यु निश्चित है.
नजरिये के साथ साथ दूसरा स्तम्भ है ईसानियत का जब आप हर व्यक्ति से छोटा बड़ा या अमीर गरीब होकर नहीं बल्कि एक इसान बनकर मिलते हैं तो उससे जुड़ना बहुत आसान हो जाता है और उससे आपकी खुशी दुगनी हो जाती है. इसका एक बेहतरीन उदहारण दलाई लामा जी ने अपनी किताब में पेश किया है, उनका कहना है कि जब उन्होंने धर्म गुरु के रूप में बोलना शुरु किया तो उन्हें अपने वक्तव्य के दौरान बहुत डर लगता था, याद में उन्हें एहसास हुआ कि चूँकि वो खुद को बाकियों से ऊपर एक धर्म गुरु के रूप में समझाते है इसलिए उन्हें डर लगता है. उसके बाद उन्होंने खुद को भी एक आम इंसान के रुप में समझना शुरु किया, फिर क्या था उसके बाद वो अपने मन की बात आसानी से सबके सामने रखने लगे और दुबारा कभी भी उन्हें डर नहीं लगा,
परिस्थिति चाहे जैसी भी हो उसे आपनाकर, उसमें हास्य बनाये रखने से कठिन समस्या भी आसानी से सुलझ जाती है.
एक अच्छा मजाक किसी भी जटिल से जटिल परिस्थिति में भी हँसी का एक लम्हा दे सकता है. यही हास्य खुशी के मार्ग का तीसरा स्तम्भ है. लेखक डेस्मंड टूटू जीवन में हास्य की महत्वता बताते हुए कहते है कि एक बार उन्हें एक ऐसी जगह बोलने के लिए बुलाया गया जहाँ दो गुटों में मनमुटाव के कारण काफी झगड़ा चल रहा था. ऐसी नाजुक परिस्थिती में लेखक ने हास्य का सहरा लेते हुए अपने चकतव्य के दोरान एक ऐसी कहानी सुनाई जिसे सुन कर दोनों गुटों के लोग खुद को हँसने से रोक नहीं पाए, लेकिन इस हास्य के साथ साथ उनकी कहानी में लड़ाई न करने की सीख भी शामिल थी. तो ऐसे डेस्मंड टूटू नें एक जटिल समस्या को हास्य का सहरा लेकर आसानी से सुलझा दिया.
हास्य के माध्यम से बड़ी से बड़ी बात आसानी से कही जा सकती है और साथ ही साथ हँसने से हमारे शरीर में ऐसे रसायन निकलते हैं जो हमारे शरीर को हल्का महसूस करवाते हैं और दिमाग में खुशी की लहर पैदा करते हैं. इसलिए जिंदगी में हमेशा याद रखें कि एक सफल जीवन के लिए हसें और हसाएं. चौथा स्तम्भ है परिस्थितियों को अपना लेना. यानी चाहे जीवन में सुख आये या दुःख आप ये मान लें कि ये दोनों जीवन चक्र का ही एक हिस्सा है. जिस प्रकार गुलाब के फुल में खुशबू के साथ साथ काटें भी होते हैं ये जान कर भी हम उसे पसंद करते हैं उसी तरह जीवन के काँटों को अपना कर हम उसकी खुशबू का आनंद ले सकते हैं.
उदहारण स्वरुप अगर आपके ऑफिस में आपके बॉस से आपकी कम बनती है तो ऐसी पारिस्थि में आपके पास 2 रास्ते होते हैं या तो आप हमेशा उसे कोसते रहें और खुद को दुखी करें, या फिर आप बॉस के साथ अपने संबधों को अच्छा करने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन ऐसे में सबसे जरुरी बात ये है कि आप ये बात अपने दिल में बिठा लें कि आपका बॉस आपके बारे में जो सोचता है आप उसे बदल नहीं सकते बस संबंध सुधारने की कोशिश ही आपके हाथ में है उसमें कितनी कामयाबी मिलेगी ये आपके हाथ में नहीं है.
जो बात आपके हाथ में नहीं उसे स्वीकार लेने में ही भलाई हे,
क्षमा और आभार को हमेशा अपने जीवन का हिस्सा बना कर रखें.
रोज़ सुबह आखें खोलने के साथ ही सूरज की गर्म रोशनी हमारे जीवन गें उजाला लती है, प्रकृति की गोद में हमें खान पान का वैभव मिलता है, लेकिन क्या हम इन सबके लिए इश्वर के शुक्रगुजार होते हैं, ज्यदातर लोग नहीं क्यूंकि आसानी से मिल जाने वाली चीजों का हमारे जीवन में कोई मोल नहीं है. एक बाल्टी पानी को हम यूँ ही बहा देते हैं जबकि देश के कई कोनों में लोग पीने के पानी तक के लिए मीलों पेदल चलते हैं. इसलिए लेखकों का कहना है कि चाहे सोगात छोटी हो या बड़ी आभार व्यक्त करना बहुत अहम है. चाहे मामार द्वार के लिए हो या किसी अपने के लिए एक बार हम आभार व्यक्त करना सीख गए तो हमें छोटी बड़ी सब चीजों का मोल पता चल जाएगा और खुशियाँ हमारे जीवन में खुद ब खुद आ जाएँगी सुखी जीवन का अगला स्तम्भ है क्षमा दान, अगर कोई व्यक्ति आपके साथ कुछ गलत करता है और उसे अपनी गलती का एहसास हो जाए तो उसे माफ़ कर देने में ही सबकी भलाई है क्यूंकि जब तक माफ़ करके जीवन में आगे नहीं बढ़ेंगे तब तक पुरानी बातों को भुला कर एक नए जीवन की शुरुआत नहीं कर पाएंगे,
क्षमा की भावना कैसा चमत्कार कर सकती है इसका एक उदहारण हमें केरला की एक ना रानी मारिया के हत्या कांड से मिल सकता है, इस केस के मुख्य आरोपी समंदर सिंह को रानी मारिया के परिवार ने ना सिर्फ माफ़ कर दिया बल्कि उसे अपने परिवार का एक सदस्य भी मान लिया ये देख कर समंदर सिंह जैसा हैवान भी एक कोमल हृदय का व्यक्ति बन गया और उसने अपना बाकी का जीवन रानी मारिया समाज सेवा के सपने को पूरा करने में लगा दिया वहीं दूसरी तरफ समंदर सिंह को पाकर रानी के परिवार को भी अपना गम भूलाने में आसानी हुई.
इसलिए लेखकों का कहना है कि जहाँ एक ओर हमें रोज़ इश्वर का आभार मानते हुए अपने दिन की शुरुआत एक मुस्कराहट से करना चाहिए वहीं दूसरी ओर जो भी बुरा समय या बुरी घटना आपके साथ हो उसे भुला कर और क्षमा दान देते हुए खुशियों के रास्ते पर निकल पड़ना चाहिए दूसरों के प्रति प्रेम और सौहाद्र की भावना रखने से जीवन खिल उठता है.
क्या आपके जीवन में कभी ऐसा कोई पल आया है जब आपकी वजह से किसी के चेहरे पर मुस्कान आई हो, और उसकी मुस्कान को देख कर आप अपना दुःख दर्द सब भूल गए हों अगर सच में आपने ऐसा कोई पल जीया है तो आपको यकीनत पता होगा कि कैसे दूसरों के प्रति दयालुता दिखाने से हमें एक अजीब सी आतरिक खुशी और सुकून का एहसास होता है. कई वैज्ञानिकों ने भी अपने शोध में ये बात साबित की है कि एक दूसरे के प्रति दयालुता की भावना मानच जाती के अस्तित्व का मूल उद्देश्य हे और इसके बिना मानव जाती का पतन होना निश्चित है.
वैज्ञानिकों की शोध में ये भी पता चला कि जब भी हम किसी के प्रति दया भावना से सोचते हैं तो हमारे शरीर में इंडोरफिन (endorphin) नाम का एक रसायन निकलता है जो हमें वैसी ही खुश का एहसास दिलाता है जैसा की अपना मनपसंद काम करने से मिलता है. तो चाहे आप किसी पर दया करें या कोई आपका हाथ पकड़ कर कहे कि कोई बात नहीं सब ठीक हो जाएगा, सतुष्टि और सुकून दोनों को मिलता है क्यूंकि ये एक दो तरफा सिस्टम है जहाँ एक की आँखों का सुकून दुसरे की आँखों की खुशी बन जाता है. इसलिए लेखकों का मानना है की स्वाभाव में हमेशा दयालुता रखना खुशियों का सातवाँ स्तम्भ है.
आठवां और आखरी स्तम्भ है दूसरों की मदद करना अगर आप समर्थ है आपके पास रुपया पैसा अच्छा घर सब है लेकिन सुकून नहीं तो ये सारी दौलत किसी काम की नहीं है, इसलिए लेखकों का कहना है की अगर आप अपनी दौलत के कुछ हिस्से से किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं तो आपको ऐसी खुशी महसूस होगी जैसी पहले कभी नहीं हुई हो,
भारतीय सिनेमा के महानायक नाना पाटेकर को तो आप जानते ही होंगेवो अपनी आधी से ज्यादा कमाई क़र्ज़ तले दबे किसानों के परिवार की मदद में लगा देते है. खुद वो मात्र एक बेड रुम के फ्लेट में अपनी माँ के साथ रहते हैं, जब किसी पत्रकार ने उनसे पूछा कि वो जीवन के ऐशो आराम को छोड़ समाज सेवा में क्यूँ लग गए तब उनका कहना था कि रुपया पैसा ऐशो आराम ये सब उन्हें वो तहीं दे सकता था जो सेवा ने उन्हें दिया और वो चीज़ थी मरते दग तक जीने की एक वजह ऐसी ही कई प्रेरणादायी कहानियाँ हमें अपने आस पास देखने को मिलती है जिसे देख कर ये लगता है कि खुद के लिए जीया तो क्या जीया सच्चा जीवन तो वो है जो किसी की मदद कर बीता हो,