THE ART OF PUBLIC SPEAKING by Dale carnegie.

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About Book

पब्लिक स्पीकिंग के मास्टर डेल कारनेज अपनी बुक” द आर्ट ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग” से हमे ये बताते है कि हर आर्ट की तरह आर्ट ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग के भी कुछ रूल्स है जो स्पीकर को फोलो करने होते है. और बिना प्रेक्टिस के कोई मास्टर नहीं बनता. पब्लिक स्पीकिंग में वौइस् टोन, पिच, एम्फेसिस, कांफिडेंस, फीलिंग्स और डिसप्लीन जैसी चीजों की बहुत इम्पोर्टेंस होती है और एक स्पीकर को इन सब बातो का ध्यान रखना जरूरी है. एक शानदार और इफेक्टिव स्पीच वो होती है जो लोगो को लम्बे टाइम तक याद रहे और ऐसी स्पीच तभी डिलीवर हो सकती है जब आपने महीनो प्रेक्टिस की हो और इस बुक में दिए टिप्स और गाइड लाइन्स को फोलो किया हो. एक स्पीकर के तौर पर आपको पब्लिक स्पीकिंग से रिलेटेड जो भी इन्फोर्मेशन चाहिये वो सब

आपको इस बुक में मिलेगी.

ये बुक किस किसको पढनी चाहिए? अगर आप पब्लिक स्पीकिंग के नाम से ही नर्वस हो जाते है तो ये बुक आपके बेहद काम की है. खासकर उन लोगो को ये बुक ज़रूर पढनी चाहिए जिन्हें ऑडियंस के सामने अक्सर बोलना पढता है. ये बुक मार्केटिंग और सेल्स प्रोफेशनल्स, टीचर्स, ओरेटर्स, स्टूडेंट्स, लीडर्स के लिए बहुत ज्यादा यूजफुल है. पब्लिक स्पीकिंग का डर सबके अंदर होता है और इस डर को दूर करने के लिए आप इस बुक की टेक्नीक्स और टिप्स फोलो करके एक प्रोफेशनल स्पीकर बन सकते हो.

इस बुक के ऑथर कौन है? डेल कार्नेज जो कि एक अमेरिकन राइटर और लेक्चरर, कोर्पोरेट ट्रेनर, सेल्फ हेल्प बुक ऑथर, और पब्लिक स्पीकर है. उनका जन्म नवंबर 24, 1888 में अमेरिका में एक काफी गरीब फेमिली में हुआ था. उन्होंने कई सारी सेल्फ हेल्प और मोटिवेशनल बुक्स लिखी जिनमे आर्ट ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग के अलावा, “हाउ टू विन फ्रेंड्स एंड इन्फ्लूएंश पीपल”, जो आज की डेट में भी काफी पोपुलर बुक है, और उनकी एक और बुक”हाउ टू स्टॉप वरीइंग एंड स्टार्ट लिविंग” भी बेस्ट सेलर्स बुक्स में शामिल है.

परिचय (Introduction)

क्या आपने कभी अकेले पूरी क्लास के सामने प्रेजेंटेशन दिया है? क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप स्टेज पर हो और हज़ारो लोगों की नजरे सिर्फ आप पर टिकी हो ? क्या आप भी कोई स्पीच देने से पहले नर्वस फील करते हो ? अगर इन सारे सवालों का जवाब हाँ है तो ये बुक पढ़के देखे. ये आपके दिल से पब्लिक स्पीकिंग का डर हमेशा के लिए निकाल देगी. अब ज़रा सोचो कि आपको स्कूल के एक इवेंट में कुछ बोलना है. अब इस बात के पूरे चांसेस है कि आप ये सोचकर ही टेंशन में आ जाओगे कि किस टॉपिक पर बोलना है, लेकिन टेंशन की कोई बात नहीं क्योंकि आपके लिए टॉपिक चूज करने से लेकर स्पीच डिलीवर करने के मेथड तक, हर चीज़ में ये बुक आपकी हेल्प

डेल कार्निज लिखते है” द आर्ट ऑफ पब्लिक स्पीकिंग उन लोगों के लिए है जिन्हें पब्लिक स्पीकिंग के नाम से ही पसीने छूटते हैं. इस बुक में

करेगी. डेल

उन्होंने कई सारे टिप्स दिए है जिन्हें पढ़कर आप भी एक ग्रेट पब्लिक स्पीकर बन सकते हैं. इस बुक के अंदर कई सारे चैप्टर्स है जिसमे पब्लिक स्पीकिंग के डिफरेंट टॉपिक्स लिए गए है.

हर चैप्टर के एंड में कुछ सवाल और एकसरसाईजेस दिए है जो आपको जानने में हेल्प करेंगे कि चैप्टर आपको कितना समझ में आया है. आपको और गाइडेंस देने के लिए हर चैप्टर के अंदर कुछ सेलेक्शन और पैसेजेस भी है जिन्हें आप मेन टापिक के एक्जाम्पल की तरह यूज़ कर सकते है. लेकिन कोई भी चैप्टर अवॉयड ना करे क्योंकि हर चैप्टर में एक लेसन है और अलग यूज़ है.

चैप्टर ] (Chapter 1)

अक्वाइरिंग कांफिडेंस बीफोर एन ऑडियंस (Acquiring Confidence before an Audience

ऑडियंस के सामने कांफिडेंस बनाकर रखना

हमें बोलते हुए कोई देख रहा है, ओब्जेर्व कर रहा है, ये सोचकर ही अक्सर हम सेल्फ कांशस हो जाते है. लोग हमें जजमेंट करेंगे ये ख्याल हमेशा हमारे मन में रहता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या हमे इस डर को खुद पे हावी होने देना चाहिए?

अब सवाल है कि इस डर से बाहर कैसे निकले? तो जवाब है-फेस इट, यानी डर का सामना करो. आपको ऑडियंस के सामने स्पीच देनी है, फियर ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग यही से स्टार्ट होती है, कई लोगो की आँखे आपको देख रही है, ये सोचकर ही आप नर्वस होने लगते है, राईट? इस डर से

निकलने के लिए आपको बार-बार प्रेक्टिस करनी होगी, जितना हो सके उतना पब्लिक के सामने बोलने की कोशिश करनी होगी. इसके बाद जल्दी ही आपकी हेज़िटेशन भी दूर हो जायेगी और कांफिडेंस बिल्ड होगा. इसलिए जितना हो सके पब्लिक के सामने बोलने की प्रेक्टिस करो, आपके अंदर का डर खुद ब खुद हट जाएगा.

पहली कोशिश में मिस्टेक हो सकती है मगर डरने की कोई बात नहीं, दुनिया में कोई भी परफेक्ट नही होता, पहली आार में सबसे गलती होती है. लेकिन लगातार प्रेक्टिस करते रहो ताकि नेक्स्ट टाइम आप बैटर कर सको दुनिया के बेस्ट मास्टर स्पीकर्स में से एक डेनियल वेबस्टर अपनी फर्स्ट स्पीच के दौरान इतने नर्वस हो गए थे कि वो स्पीच बीच में ही छोड़कर वापस अपनी सीट में जा बैठे थे.

इस बुक में दिए ए गए फाइव स्टेप्स आपको बताएँगे कि ऑडियंस के सामने कांफिडेंस कैसे बनाये रखे. फर्स्ट स्टेप है” आपकी ऑडियंस आपको ओब्ज़ेर्व है इसलिए आपको अपनी ऑडियंस पर फोकस करना है, क्योंकि यही वो लोग है जिनसे आपको डायरेक्ट बात करनी है नाकि दिवार पे लटकी पर आप खड़े है. इस बात पे कांसेंट्रेट करे कि आप पब्लिक को क्या मैसेज देना चाहते है, सेकंड स्टेप, जो भी

पड़ी से और ना ही उस प्लेटफॉर्म से जिस पर आपको बोलना है, उसकी तैयारी करके आए.

अपनी स्पीच को अच्छे से याद कर लो, एक खाली दिमाग के साथ प्लेटफ़ॉर्म जाना बेवकूफी होगी. जब आपका माइंड खाली होता है तो आप दूसरी अनइम्पोटेंट चीजों के बारे में सोचने लगते हो, जैसे” मेरे बाल ठीक तो लग रहे है?” मैं सही कर रहा हूँ या नहीं?’ अगर मैं फेल हो गया तो? तो सेल्फ कांफिडेंस बिल्ड करने के लिए आपको कुछ ऐसा चाहिए जिसके बारे में आप पूरे कॉफिडेंट हो. और अगर आप पब्लिक स्पीकिंग कर रहे हो तो आपके पास स्पीच रेडी होनी चाहिए. ऐसा टॉपिक जिसके बारे में आपने रिसर्च किया हो, स्टडी किया हो. ज़ाहिर है आप ऑडियंस के सामने ऐसा कुछ नहीं बोल सकते जिसके बारे में आप खुद फेमिलियर नहीं है.

कॉफिडेंट होना अच्छा है लेकिन ओवर कॉफिडेंट होने से बचो. थर्ड स्टेप है” आफ्टर हेविंग सक्सेस एक्स्पेक्ट इट यानी सक्सेसफुल होने के बाद इसकी एक्सपेक्टेशन भी करो”. जैसे कि एक डिनर पार्टी में वाशिंग्टन इरविंग ने अपने फ्रेंड चाल्ल्स डिकेन्सको इंट्रोड्यूस किया. चार्ल्स डिकेंस स्पीच दे रहे थे कि अचानक बीच में ही वो रुक गए, उन्हें इतनी शर्म आई कि वो अपने सीट पे जाकर बैठ गए. ये बड़ी अजीब सी सिचुएशन थी, वो साइड में बैठे अपने बेस्ट फ्रेंड की तरफ मुड़े और बोले मैंने बोला था ना कि मुझसे नहीं होगा, देखा मै फेल हो गया” इसलिए हमेशा पोजिटिव एटीट्यूड रखो, अगर आप सोचोगे

आपसे नहीं होगा तो डेफिनेटली आप फेल हो जाओगे. कि फोर्थ स्टेप हैं अज्यूम मास्टरी र योर ऑडियस” यानी आपको इमेजिन करना है कि ऑडियंस पर आपका पूरा कण्ट्रोल है”. पढ़ा होगा कि इलेक्ट्रिसिटी में नेगेटिव और पोजिटिव फ़ोर्स होता है. तो या तो आप में या आपकी ऑडियंस में कोई एक फ़ोर्स होगी. अगर आप पोजिटिव फील करोगे तो आपकी ऑडियंस भी पोजिटिव रहेगी. तो इसलिए ये सोचो कि आप एक कमाल की स्पीच डिलीवर कर सकते हो. एकदम नौर्मल और शांत रहो और

चाहे कुछ भी हो जाए हिम्मत मत हारो. फिपथ और लास्ट स्टेप है” जल्दबाजी मत करो जैसा हमने पहले भी कहा है जितना हो सके कुल रहो, जैसा आपने प्रेक्टिस किया है, उसी हिसाब से चलो. जब आपको खुद पे 100% कांफिडेंस हो जाएगा तब आपको पता चलेगा कि पब्लिक स्पीकिंग इतना भी मुश्किल काम नहीं है जितना आप सोचते थे, याद रखो, खुद पे कांफिडेंस रखना बहुत इम्पोटेंट है, आप कर सकते हो, ये भरोसा रखो. डर को दूर भगाकर खुद पे बिलीव करो.

चैप्टर 2 (Chapter 2

द सिन ऑफ़ मोनोटोनी (The Sin of Monotony)

टाइम के साथ इंग्लिश लेंगुएज में काफी चेंजेस आये है. और सबसे बड़ी बात ये है कि कुछ वर्डस के एक्स्टा मीनिंग भी एड हो गए है जो पहले नहीं थे. जैसे कि लैक ऑफ़ वेरीएशन और रीपीटीटियस या डल को अन्न मोनोटोनस (monotonous बोला जाता है. मोनोटोनस (monotonous)स्पीकर स्पीच के शुरू से लेकर एंड तक एक हो टोन में बोलता है. यही नहीं, वो अपनी पूरी स्पीच में सेम स्पीड और सेम एक्सप्रेशन देता है. कितना बोरिंग है ना राईट?

तो मोनोटोनी एक मोस्ट कॉमन मिस्टेक है जो ज्यादातर स्पीकर्स करते है. ऐसा स्पीकर एक थोट को दूसरे से अलग एक्सप्रेस नहीं कर पाता है, उसकी बोली हुई हर बात सेम लगती है, जहाँ उसे जोर देना होता है वहां भी सेम टोन होती है. इससे होता ये है कि ऑडियंस बोर होने लगती है, स्पीच में उनका इंटरेस्ट खत्म हो जाता है. अगर कोई आपके पास आकर बोले कि आपकी स्पीच मोनोटोनस (monotonous) लगी तो बुरा मत मानो. क्रिटिसिज्म एक्सेप्ट करना सीखो और इम्प्रूवमेंट लाने की कोशिश करो स्पीच देंते वक्त उन वर्ड्स या पफ्रेजेज़ पर ज्यादा जोर दो जो आप ऑडियंस के नोटिस में लाना चाहते हो, और जहाँ ज़रूरत हो वहां अपनी टोन का वोल्यूम कम या ज्यादा कर सकते हो. कुछ लोगों का मानना है कि मोनोटोनी हमारी लिमिटेशन शो

कराता है.

ये हमें बताता है कि हमें और कितना इम्पूव करना है. मोनोटोनी और गरीबी एक जैसी चीज़ है. डिपेंड करता है कि आपको इस गरीबी से छुटकारा पाना है कि नहीं, अपनी स्पीच में वेराइटी इनक्रीज करने के कुछ और तरीके सोचो, स्पीच को इंटरेस्टिंग बनाओ बोरिंग नहीं. एक ओर्गेनिस्ट के पास कुछ खास कीज़ मालूम होते है जिससे वो हारमोनी कण्ट्रोल करता है. एक कारपेंटर के पास स्पेशल टूल्स होते है जिससे वो बिल्डिंग के डिफरेंट पार्ट्स कंस्ट्रकट करता है. स्पीकर भी कुछ ऐसा ही होता

उसके पास भी कुछ स्पेशल टूल्स होते है जीससे वो अपनी स्पीच की मोनोटोनी कण्ट्रोल कर सकता है. उसे मालूम है कि कहाँ पर जोर देना है, कहाँ पर फीलिंग्स एक्सप्रेस करनी है और कैसे अपने ऑडियंस के बिलिफ्स को गाइड करना है. स्पीच में वेरिएशन देना आपकी केपेबिलिटी से बाहर की चीज़ है, एक या दो दिन की प्रेक्टिस से कुछ नहीं होने वाला इसलिए ज्यादा से ज्यादा प्रेक्टिस करो, या तो अकेले में करो या आडियस के सामने करो. अगर ऑडियंस के सामने प्रेक्टिस करोगे तो ज्यादा अच्छा है, वो आपको फीडबैक दे सकते है कि कहाँ पर इम्पूरूवमेंट की ज़रूरत है. लेकिन अगर आपके पास कोई ऑडियंस नहीं है तो खुद ओब्ज़ेर्व करो और देखो कि कहाँ कमी है, नैचूरल वे में बोलना थोड़ा बोरिंग लगता है इसलिए थोड़ा डामा क्रियेट करो. अपने हार्ड वर्क से आप एंडलेस पोसिबिलिटीज एक्सप्लोर कर सकते हो और एक स्पीकर के तौर पे अपनी स्किल्स को इम्प्रव कर सकते हो,

चैप्टर 3 (Chapter 3)

एफिशिएंसी श्रू एम्फेसिस एंड सबओर्डीनेशन (Efficiency Through Emphasis and Subordination )

कोई स्पीकर जब स्पीच देते टाइम डिफरेंट टोन यूज़ करे या किसी रेंडम सेंटेंस पर जोर दे तो ज़रूरी नहीं कि उसे रिजल्ट भी बढ़िया मिलेगा. आप हर एक वर्ड पर जोर नहीं दे सकते क्योंकि कुछ वर्ड्स इतने इम्पोरटेंट नहीं होते. अब जैसे इस सेंटेंस को ले लो” डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर ऑफ़ चांस’, इट्स अ मैटर ऑफ चॉइस” अब यहाँ पर आप डेस्टिनी वर्ड पे जोर दोगे क्योंकि ये आपकी बात का मेन आईडिया है, फिर आप नोट पर जोर दोगे ये बताने के लिए कि डेस्टिनी एक चांस की बात है. लेकिन आपको चांस व्ड पे भी जोर देना होगा क्योंकि ये आपके सेंटेंस का दूसरा प्रिंसिपल आईडिया है. अब आप पूछोगे कि चांस पे क्यों जोर देना है तो जवाब ये है कि ये चॉइस का कंट्रास्ट है. और इससे दो कंट्रास्टिंग बातो पर जोर दिया जा रहा है. अब आप इन दोनों सेंटेंस को पढ़ और कैपिटल लैटर में लिखे चरस पे जोर देकर बोलो.:

“डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर र ऑफ़ चांस, इट इज़ अ मैटर ऑफ़ चॉइस”. (DESTINY is not a matter of CHANCE. IT IS A MATTER डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर चांस, इट इज अ मैटर ऑफ़ चॉइस. (DESTINY is NOT a matter CHANCE. It is a matter of

OF CHOICE.”

CHOICE.”

दोनों में डिफरेंस है, राईट? एक एवरेज स्पीकर फर्स्ट सेंटेंस में उन वर्डस पे भी उतना ही जोर देगा जो ज्यादा इम्पोटेंट नहीं है. लेकिन अगर एम्फेसिस और सबओडीनेशन में एफिशिएंट है तो आप सेकंड सेंटेंस पे जोर देकर बोलोगे और ऑडियंस को चो वर्ड्स लाउड एंड क्लियर वे में हमेशा याद रहेंगे. इस चैप्टर में एम्फेसिस का सिर्फ एक फॉर्म बताया गया है और वो हैं इम्पोर्ेंट वर्डस पे ज्यादा जोर देना और अनइम्पोट्ेंट वर्डस पे कम ज़ोर देना, हालाँकि हमें लाउडनेस को एम्फेसिस से कन्फ्यूज़ नहीं करना चाहिए.

कोई किसी वर्ड को जोर से बोलने का मतलब ये नहीं कि वो इम्पोरटेंट है. और वैसे भी जोर-जोर से बोलना इंटेलिजेंस की निशानी नहीं होती. एक स्पीकर को ये समझना होगा कि एम्फेसिस का कोई परमानेंट रुल नहीं है. क्योंकि हम पहले से नहीं बोल सकते कि किस वर्ड पे जोर देना है और किस पर नहीं, ये स्पीकर की इंटरप्रेशन पर डिपेंड करता है, और जरूरी नहीं कि हर स्पीकर सेम इंटरप्रेट करे. इसमें राईट क्या है और रोंग क्या, ये बताना मुश्किल है, बस हमारे माइंड में ये प्रिंसिपल रहना चाहिए,

चैप्टर 4 (Chapter 4)

एफिशिएंसी थ्रू चेंज ऑफ़ पिच (Efficlency Through Change of Pitch)

वौइस् टोन की हाई या लो डिग्री को और उसकी देरिएशन को पिच बोलते हैं. पिच को हम पब्लिक स्पीकिंग में एक एक्स्क्ले मेशन के तौर पर अप्लाई करके यूज़ करते है. इस चैप्टर में आप सीखेंगे कि कैसे आपको अपनी स्पीच के अंदर वर्ड्स के डिफरेंट पार्ट्स में पिच को एफिशिएंटली चेंज करना है. थौट के हर चेंज के साथ वौइस् चेंज की भी ज़रूरत पड़ती है, इसी को हम पिच बोलते है. जब स्पीकर पिच चेंज का रुल फोलो करता है तो स्पीच में एक गुड वौइस् वेरिएशन आती है. हालांकि कुछ लोग इसे बड़े अनइफेक्टिव तरीके से यूज़ करते है, जिससे ऑडियंस बोर होने लगती है. बिगेनर्स यानी नए सीखने वालों और प्रोफेशनल में चेंजिंग ऑफ़ पिच डिफरेंट होती है, खासकर जब उन्हें स्पीच याद हो. पिच के डिफरेंट वेरिएशंस होते है, जैसे एक पियानो होता है, पियानो में कई सारी कीज होती है और हर एक की एक अलग टोन या पिच देती है. यहीं

हमारी आवाज़ के साथ भी है. हम अपनी स्पीच के अंदर वेरिएशन देने के लिए कई सारी टोंस यूज़ कर सकते है,

पिच भी लगातार चेंज होती रहती है. अब जैसे एक बच्चे को ही देख लो. बच्चा मोनोंटोनस्ली (monotonously) बात नहीं करता, यहाँ तक कि बड़े लोग भी डिफरेंट वेरिएशन में बोलते है. कभी बस की चर्पिंग को ध्यान से सुनो, इनकी आवाज कितनी प्यारी लगती है. इनकी वौइस् टोन बदलती रहती

है फिर भी हमें अच्छी लगती है.

पिच चेंजिंग से भी हम एम्फेसिस कर सकते है यानी किसी वर्ड को एक खास तरीके से बोलकर सूनने वालों का ध्यान उस तरफ खीच सकते है. इसका तरीका ये है कि आप उनकी अटेंशन लेने के लिए अपनी पिच को एक खास डिग्री में चेंज कर दो. जैसे एक्जाम्पल के लिए: “अब कांग्रेस आगे क्या करने वाली है? (हाई पिच) (What is Congress going to do next? (High pitch) -मुझे नहीं पता (I do not

know.” लो पिच (Low pitch) अपनी वौइस् पिच में अचानक चेंज लाकर आप अपनी स्पीच के कुछ खास वर्डस या सेंटेंस पर जोर दे सकते है. लेकिन ध्यान रहे कि पिच बहुत हाई या

लो ना हो जाए.

चैप्टर 5 (Chapter 5)

एफिशिएंसी भरू चेंज ऑफ़ पेस (Efficiency Through Change of Pace) चलते वक्त, भागते वक्त या मूब करते टाइम जो कंसिस्टेंसी रहती है उसे हम पेस बोलते है, पब्लिक स्पीकिंग में पेस का मतलब है टेम्पो, टेम्पो रेट ऑफ़

मूवमेंट है. एक मिनट के सिक्स हंड्रेड में जब कोई गन शूट करती है तो वो फ़ास्ट टेम्पो है. एक ओल्ड मजलहोल्डर जिसे लोड करने में तीन मिनट लगते है, स्लो टेम्पो में शूट करता है. म्यूजिशियंस उस टेम्पो से फेमिलियर होते है जिस स्पीड पे म्यूजिक का कोई पैसेज प्ले किया जाता है. ग डिलीवरी में नेचुरलनेस आती है, और पब्लिक स्पीकिंग में नेचुरलनेस ज़रूरी है, टेम्पो में चेंज लाते रहने से आप अपनी स्पीच डिलीवरी टेम्पो चेंजिंग से को नैचुरल बना सकते है. मिस मार्गरेट अंग्लिन के स्टेज मैनेजर मिस्टर होवार्ड लिंडसे (Howard Lindsay,)ने कहा था कि चेंज ऑफ़ पेस एक एक्टर के लिए मोस्ट इफेक्टिव टूल होता है. और किसी भी स्पीकर के लिए इस टूल को अचीव करके यूज़ करना कोई इम्पॉसिबल चीज़ नहीं है. एक स्पीकर जब बोलते हुए अपना पेस चेंज करता है तो नैचुरलनेस साफ़ देखी जा सकती है. और टेम्पो चेंज करने से आप एम्फेसिस भी ला सकते है. टेम्पो को अगर अचानक चेंज करोगे तो ऑडियंस को तुंरत पता चल जायेगा. अगर आप अपने ऑडियंस के सामने कोई पॉइंट रखना चाहते हो तो टेम्पो को तुरंत चेंज कर दो. लोग एकदम से आपका पॉइंट नोटिस कर लेंगे,

मगर आपको इसके लिए टेम्पो रेगुलेटिंग की प्रेक्टिस करनी होगी वर्ना आपकी मूवमेंट ज्यादा फ़ास्ट हो सकती है. क्योंकि ज़्यादातर स्पीकर्स यही सेम मिस्टेक करते है. यहाँ हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि इन चीजों को सीखने में वक्त लगता है. इसलिए टेक योर टाइम और लगातार प्रेक्टिस करते रहो.

चैप्टर 6 (Chapter 6)

पॉज एंड पॉवर ( Pause and Power)

पॉज और स्टम्बलिंग में फर्क होता है, पब्लिक स्पीकिंग में बड़े ग्रेसफूली पॉज लिया जाता है. स्टम्बलिंगअलग चीज़ है जब आप स्पीच देले वक्त किसी वर्ड अटक जाते हो या गलत ढंग से बोलते हो. पब्लिक स्पीकिंग में पॉजिंग भी काफी मैटर करती है. आपकी स्पीच पर इसका पाँवरफुल इम्पेक्ट पड़ता है। और आपको इम्पोर्टेन्ट वर्ड्स या फ्रेजेस से पहले या बाद में पॉज़ लेना पड़ता है इसलिए इसकी प्रेक्टिस ज़रूरी है. अगर आप लाइन्स के बीच में पॉज लेते है तो ये नोर्मल है लेकिन कई न्यू स्पीकर्स काफी लंबा पॉज लेने की गलती करते है जोकि ठीक नहीं है.एफिशिएंट

पॉजिंग के एक या चारो रिजल्ट्स कैसे अचीव किये जाए, ये आपको इस चैप्टर में सीखने को मिलेगा. स्पीच के दौरान पोज लेना स्पीकर को नेक्स्ट मेजर आईडिया डिलीवर करने की फ़ोर्स देता है. जैसे मेपल का पेड़ तरीMaple trees. for

example, are rarely tapped continually. फ्लों की ज़रूरत होती है तो पॉज लिया जाता है, When a strong flow is wanted, a pause is made, nature is जब स्ट्रोग given reserve its forces, and when the tree is reopened, a stronger flow is the result. fari ft time to

लड़ाई में कूदने से पहले पूरी तैयारी ज़रूरी है.वर्ना हार पक्की है. एक स्पीकर के थौट उसके ऑडियंस के माइंड में नहीं भरे होते. स्पीकर जो उन्हें बताना

पड़ता है. इसलिए आप पॉज लेते है, फिर फ़ोर्स के साथ एक नया आईडिया ऑडियस के सामने रखते है,

जब स्पीकर बोलते वक्त पॉज लेता है तो उसके भी ऑडियंस मैसेज रिसीव करने के लिए प्रीपेयर्ड रहते है. हर्बर्ट स्पेंसर ने एक बार कहा था कि ये पूरा यूनिवर्स मोशन में रहता है और हर परफेक्ट मोशन एक रिद है, रिद्य का एक पार्ट रेस्ट भी है. रेस्ट के बाद फिर एक्टिविटी शुरू होती है, जैसे, सीजन चेंज होता है, सांस आती है और जाती है और जैसे हार्टबीट चलती है, इसी तरह हर मोशन के बीच में एक पॉज ज़रूरी है. आप भी जब स्पीच में पॉज लेते हो तो आपकी ऑडियंस को भी एक रेस्ट मिलता है, जो आपने कहा, उस पर सोचने का मौका मिलता है क्योंकि लगातार स्पीच सुनने से ऑडियंस का माइंड थक जाएगा फिर उन्हें इम्पोर्टंट पॉइंट्स याद नहीं रहेंगे और आपकी बात क्लीयरली उन तक पहुँच नहीं

पाएगी. पॉज एक तरह का सस्पेंस भी क्रियेट करता है. सुनने वालो को इंतज़ार रहता है कि अब आगे क्या इन्फोर्मेशन मिलेगी. आपकी पब्लिक बेसब्री से आपकी नेक्स्ट लाइन्स का वेट करती है. इसलिए थोड़ा पॉज लेकर उन्हें वेट करने दे, आपने देखा होगा कि अक्सर शेर्लोक होम्स की स्टोरी पढ़ते वक्त हम कितने क्यूरियस हो जाते है, जब तक मिस्टी सोल्च नहीं होती, आप स्टोरी पढ़ना नहीं छोड़ते लेकिन अगर मिस्टी जल्दी सोल्व हो जाए तो आपका इंटरेस्ट भी खत्म हो जाएगा तो फिर आप पूरी बुक क्यों पढेंगे?

इसलिए पॉजिंग को हम सस्पेंस क्रियेट करने के लिए एक ईस्टूमेंट की तरह यूज़ कर सकते है, अनस्किल्ड स्पीकर्स अपनी ऑडियंस के सामने सिर्फ फ्लेट व रखते हैं, उनकी स्पीच में कोई एक्सप्रेशन या एंटरटेनमेंट नहीं होता. सक्सेसफुल और अनसक्सेसफुल स्पीकर्स के बीच यही एक मेजर डिफ़रेंस है. आप अपनी ऑडियंस को किस तरह स्पीच डिलीवरी करते है ये आपकी स्किल पे डिपेंड करता है, है। हर बड़े आईडिया के बाद पॉज देना ज़रूरी होता है ताकि वो आईडिया ऑडियंस के भाइंड में फिट हो जाए. जो लोग एक ही स्पीड में फटाफट अपनी बात खत्म कर लेते है, उनकी स्पीच किसी को याद नहीं रहती, जैसे बारिश एकदम तेजी से आकर बरस जाए तो फसल को कोई फायदा नही पहुँचता, इसलिए पॉज लेकर अपनी बात कहो, खासकर तब जब आपको कोई इम्पोटेंट पॉइंट नोटिस में लाना हो, टाइम लो और ऑडियंस को भी टाइम दो.

आपकी ऑडियंस कहीं भाग नहीं रही.

चैप्टर 7 (Chapter 7)

एफिशिएंसी ध्रू इन्प्लेक्शन (Efficiency Through Inflection )

इन्फ्लेक्शन का मतलब है वौइस् पिच का मोड्यूलेशन, हमने चैप्टर 4 में चेंज ऑफ़ पिच की इम्पोर्टेंस बताई थी. अब हम बताते है कि इन्फ्लेक्शन का क्या मतलब है. रेंडम वर्ड्स आपकी स्पीच को काफी बोरिंग बना देते है इसलिए कुछ ऐसे वईस एड करने चाहिए जो वईस को एक डीप मीनिंग देते हो, दो तरह के इन्पलेक्शन होते है. राईजिंग और फालिंग. इन दोनों को कम्बाइन करके मोड्यूलेशन के कई और वेरिएशन क्रियेट किये जा सकते है. ये बिलकुल ऐसे ही है जैसे आप कुछ खास वर्ड्स या सेंटेस को नोटिस में लाने के लिए वौइस् पिच चेंज कर लेते है. अब ज़रा ये पदधों” ओह, “ओह ही इज आल राईट (वो एकदम ठीक है” )Oh, he’s all right,” देखा, फेंट प्रेज़ या पोलाईट डाउट या जहाँ

अनसटॅनिटी के लिए कैसे राईजिंग इन्फ्लेक्शन यूज़ किया गया, अब नोट करे कि कैसे सेम वर्ड्स एक फालिंग इन्फ्लेक्शन के साथ ज़ोरदार तारीफ को एक और एक्जाम्पल है जहाँ आप इन्फ्लेक्शन का डिफरेंस देख सकते है. दो सिचुएशन है, एक में आप किसी इमेजनरी पर्सन को गुड बाई बोल रहे हो जिससे आप कल फिर मिलने के बारे में सोच रहे हो और दूसरा जहाँ आप एक पुराने दोस्त को गुड बाई बोल रहे हो जिससे आप शायद फिर कभी नही मिलोगे.

एक्सप्रेस करते है..

ध्यान रहे कि आपको ओवर इन्फ्लेक्ट नहीं होना है क्योंकि ये थोड़ा अनप्लीजेंट और अननैचुरल हो जाएगा. सेम चीज़ आपको इस चैप्टर के खत्म होने पर रीमाइंड कराई जायेगी. प्रेक्टिस करो, अपनी वौइस् को सुनो और इस बुक में दिए टिप्स की हेल्प से अपनी वौइस् क्वालटी इम्पूरूव करो.

चैप्टर 8 (Chapter 8)

कंसन्ट्रेशन इन डिलीवरी (Concentration in Delivery)

अपने हाथों से एक सर्कुलर मोशन बनाओ और साथ ही अपने पैरो से एक रेक्टेगुलर मोशन बनाने की भी कोशिश करो. ऑफ़ कोर्स ये काफी मुश्किल है क्योंकि बिना प्रेक्टिस किये आप अपने हाथ और पैरो को दो अलग-अलग मोशन में नहीं चला पाएंगे. यही सेम मिस्टेक अवसर स्पीकर्स भी करते है. उनकी पहली बात अभी पूरी भी नहीं होती कि वो दूसरी के बारे में सोचने लगते है. फिर होता क्या है कि उनका कंसन्ट्रेशन फेल हो जाता है, स्पीच स्टार्टिंग में तो सही चलती है लेकिन लास्ट तक आते- आते उसका इम्पेक्ट खत्म हो जाता है. किसी भी वेल प्रीपेयर्ड स्पीच में जिन वर्ड्स पे जोर देना होता है वो अक्सर सेंटेंस के एंड में आते है. लेकिन जब स्पीकर इम्पोर्टेन्ट बर्ड्स बोले बिना ही ह

नेक्स्ट लाइन के बारे में सोचने लगता है तो उसका कंसन्ट्रेशन ढीला पड़ जाता है और इम्पोर्टेट इन्फोर्मेशन छूट जाती है. यहाँ आपको ये ध्यान रखने की ज़रूरत है कि कोई भी सेंटेंस को बोलते वक्त उसके अगले सेंटेंस के बारे में मत सोचो, जो आप बोल रहे हो, सारा फोकस उसी पर रखो. अगला सेंटेस

आ जाएगा. खुदा

बीच-बीच में पॉज लेते रहो कि अब आगे क्या बोलना है लेकिन करंट सेंटेंस पर भी फोकस करो.

अपने देखा होगा कि रटी रटाई स्पीच सुनने कितनी बोरिंग लगती है? एक स्किल्फुल स्पीकर के वर्ड्स हर बार बोलते वक्त दुबारा जन्म लेते है. उनमे एक नई जान होती है इसलिए लोग पूरे एन्थूयाज्म से सुनते है.वर्ड्स की फीलिंग्स लूज़ मत करो, जो भी बोलो दिल से बोलो तभी आपके वर्ड्स ऑडियंस के

माइंड में लम्बे टाइम तक रह पायेंगे.

अगर आप किसी ऐसी चीज़ पे कंसन्ट्रेट करते हो जो आपको हर्ट कर रही है तो आपको ज्यादा दुःख होगा. इसलिए प्रेजेंट पर ध्यान दे, जो आप बोल रहे है उसी पर पूरा फोकस रखे, फ़ालतू बातों को माइंड से हटा दे.

चैप्टर 9 (Chapter 9)

फ़ोर्स (Force)

इस चैप्टर में हम इनर और आउटर फोर्स के बीच का डिफरेंस देखेंगे. इनमे से एक कॉज है और दूसरा इफेक्ट है. एक स्प्रीचुअल है तो दूसरा फिजिकल, इसलिए हमे ह्यूमन फ़ोर्स और फिजिकल फ़ोर्स के बीच का डिफ़रेंस समझना होगा.

The book samples loudness, नेचर का लाउडनेस फ़ोर्स नहीं है, हालाँकि फ़ोर्स कभी-कभी नॉइज़ से भी होता है. स्पीच में जोर-जोर से वई बोलकर आप उसे गुड़ या रीमार्केबल नहीं बना सकते, हालाँकि कई बार किसी बात को इफेक्टिव बनाने के लिए हमे ऊँची आवाज़ का भी सहारा लेना पड़ता है. फ़ोर्स को अगर छोड़ दिया जाए तो उससे कुछ भी हो सकता है, ऑडियंस अलर्ट हो जायेगी कि स्पीकर क्या बोल रहा है. लेकिन फ़ोर्स

अचीव करने के लिए आपको खुद को लूज़ रखना होगा.

माना जाता है कि आदमी खुद ही फाइनल फैक्टर है, वो खुद ही अपने फ्यूल का सप्लायर है. और इस आग को हवा देती है आपकी ऑडियंस ऐसा खुद स्पीकर. लेकिन आपके अंदर फ़ोर्स ही नही होगी तो कहाँ से पैदा होगी?

अगर

आग

या

इस चैप्टर में फ़ोर्स के चार फैक्टर्स मेंशन किये गए है जो आपके कण्ट्रोल में है” आईडियाज, सब्जेक्ट के बारे में फीलिंग्स, दर्डिंग और डिलीवरी, इस

में हमने इन चारो के बारे में डिस्कस किया है.

अच्छे वर्ड्स चॉइस से भी स्पीच में फ़ोर्स आती है. प्लेन वर्ड्स ज्यादा फ़ोर्सफुल होते है उन व््स के मुकाबले जो कम यूज़ होते हैं. शोर्ट वर्ड्स लॉन्ग वईस से ज्यादा स्ट्रोंग होते है. स्पेशिफिक बडस जेन्नल वरस से ज्यादा स्ट्रोंग होते है.

बुक

अपनी स्पीच में अगर आप सोच-समझकर वई अरेंजमेंट करते है तो उससे भी आपकी स्पीच में फ़ोर्स आएगा. मोडीफायर्स और वनेव्टेव्स को कट आउट करो. स्पीच हमेशा ऐसे सेंटेंस या वर्स से स्टार्ट करो जिस पर तुंरत ध्यान जाए. ये कुछ एक्जाम्पल है जिनकी हेल्प से आप अपनी स्पीच में एक फ़ोर्स ला सकते है.

चैप्टर 10 (Chapter 10) फीलिंग एंड एन्थूयाज्म (Feeling and Enthusiasm)

जो लोग फीलिंग के बिना स्पीच देते है, सच बोले तो ऑडियंस का टाइम वेस्ट करते है. क्योंकि उनकी स्पीच सुनने में बड़ी बोरिंग सी लगती है. ऐसी स्पीच पर लोग ध्यान ही नहीं देते. लोग कुछ देर सुनेगे फिर उठ कर चल देंगे, चैप्टर 10 में आप सीखोगे कि स्पीच को जानदार कैसे बना सकते हो, हम आपको ऐसे टिप्स देंगे जो आपको पूरे एन्थूयाज्म और फीलिंग्स के साथ एक बढ़िया स्पीच डिलीवर में हेल्प करेगी. अपनी आँखों के सामने ही अपने बच्चे बिकते हुए देखने वाली नीग्रो मदर्स ने अमेरिका के कुछ गिने-चुने और सबसे जानदार स्पीच्स को इंस्पायर किया

है. बेशक इन मदर्स को स्पीकिंग की टेक्नीक नहीं पता धी और ना ही उन्हें बोलने के तरीका मालूम था लेकिन उनके पास कुछ ऐसा था जो हर टेक्नीक और रीजन्स से ज्यादा इफेक्टिव था और वो थी उनके अंदर की फीलिंग, जो वो अपने बच्चो के लिए फील करती थी, पोलिटिकल पार्टीज अक्सर लोगों को या ऐसे बैंड्स को हायर करती है जो उनकी स्पीच में तालियाँ बाजाते है और एन्थूयाज्म बढ़ाते है. अब लीडर सही बोल रहा है या गलत ये तो सुनने वाले पर डिपेंड करता है मगर इस बात पे कोई डाउट नहीं कि तालियों की आवाज़ लोगों का एन्थूयाज्म ज़रूर बढ़ा देती

है.

न्यू यॉर्क में, एक वाच मेन्यूफेक्चरर ने एडवरटीज़मेंट की दो सीरीज ट्राई की. एक में वर्कमेंनशिप, ड्यूरेबिलिटी और वाच के सुपीरियर स्ट्रक्चर की बात थी वही दुसरे एड में लिखा था एक वाच जिस पर आप प्राउड कर सकते हो, जिसका साफ़ मतलब ये था कि अगर आपके पास ये वाली वाच है तो आपको एक तरह का प्लेजर और प्राइड फील करना चाहिए. ज़रा अंदाजा लगाओ कि कौन से एडवरटीज़मेंट ने ज्यादा कमाई की होगी? ऑफ कोर्स

दुसरे वाले

अपनी स्पीच में फीलिंग लाने का एक तरीका ये भी है कि आप केरेक्टर की स्किन में घुस जाओ. आप जो मैसेज देना चाहते हो, जो पॉइंट रखना चाहते हो, या जिस पर्पज से आy करना चाहते हो, आप ये सारी चीज़े अपने माइंड में अच्छे से बिठा लो. जो बोलना है उस पर इतना यकीन करो कि जब

आप बोलो तो लोगों को सच लगे. आपकी बात आपके एक्सप्रेशन और फीलिंग्स से मैच होनी चाहिए, अपने सब्जेक्ट के लिए ऑडियंस में सिम्पेथी

क्रियेट करो, आपका एन्थूयाज्म रियेल लगना चाहिए तभी वो सामने वाले पर भी असर करेगा. ज्यादातर पब्लिक स्पीचेस में ह्यूमैनिटी के टॉपिक भी होते है जैसे लिटरेचर, मॉडर्न लेंगुएज, ह्यूमन जियोग्राफी, लॉ और पोलिटिक्स, रिलीजन, आर्टस और हिस्ट्री, स्पीकर्स अक्सर अपने पॉइंट रखने के लिए या अपने टॉपिक की इम्पोर्टस शो कराने के लिए इन टोपिक्स को यूज़ करते हैं. इमेजिन करो कि आप ऑडियंस हो, अब इमेजिन करो कि आपके सामने कोई स्पीकर बगैर किसी फीलिंग के अमेरिकन हिस्ट्री पर स्पीच दे रहा है. तो आप क्या करोगे? ज़ाहिर है आपका ध्यान दूसरी चीजों पर चला जाएगा. क्योंकि जब आपको इंटरेस्ट ही नहीं होगा तो आप फोकस कैसे करोगे? तो भला ऐसी स्पीच से क्या फायदा जब लोगो को कोई इन्फोर्मेशन या नॉलेज ही ना मिल पाए.

एक एवरेज स्पीकर स्पीच देते वक्त थोडा शर्माता है, उसकी फीलिंग्स ऑडियंस के सामने खुलकर नहीं आ पाती लेकिन आप अगर प्रेक्टिस करते रहोंगे तो आपका कांफिडेंस बढ़ेगा, फिर आप भी किसी प्रोफेशनल स्पीकर की तरह एक जानदार और शानदार स्पीच दे सकते हो. एक ऐसी स्पीच जो आपके सुनने वालो को लम्बे टाइम तक याद रहेगी.

कनक्ल्यू जन (Conclusion)

डेल कारनेज की “द आर्ट ऑफ पब्लिक स्पीकिंग” बुक पहकर ना सिर्फ आपके अंदर से पब्लिक स्पीकिंग का डर निकलेगा बल्कि इसके बाद आपको

पब्लिक स्पीकिंग में और भी मज़ा आएगा. अगर आप भी एक सक्सेस फुल पब्लिक स्पीकर बनना चाहते हो तो एक बुक आपको गाइड करेगी. इस बुक के अच्छे और एफिशिएंट रिजल्ट्स भी आपको तभी मिलेंगे जब आप अपने अंदर एक पोजिटिव एटीट्यूड डेवलप करोगे. अगर आपको खुद पे यकीन है तो बेशक रीजल्ट भी मिलेगा.

और इसके लिए डिसप्लीन भी उतना ही ज़रूरी है. रूल्स फोलो करो, टिप्स और गाइड यूज़ करो, इस बुक के हर चैप्टर में दिए गए सवालों के जवाब दो. लेकिन आपको एक भी चैप्टर स्किप नहीं करना है. क्योंकि हर एक चैप्टर में एक लेसन है जो आपको मिस नहीं करना है. जल्दबाजी मत करो, जल्दबाजी से कभी कुछ हासिल नहीं होता. पब्लिक स्पीकिंग एक आर्ट है जिसे आप प्रेक्टिस के साथ ही धीरे-धीरे सीखोगे. इसलिए प्रेक्टिस करते रहो.

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