TALK LIKE TED by Carmine Gallo.

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About Book

कुछ लोग वाकई में कमाल के स्पीकर होते है, उनकी कम्यूनिकेशन स्किल देख कर लगता है कि काश हम भी इस तरह बोल पाते. लेकिन क्या आपको पता है कि एक इफेक्टिव कम्यूनिकेशन स्किल्स हर कोई सीख सकता है. टॉक लाइक टेड एक ऐसी बुक है जो आपको पब्लिक स्पीकिंग के खास सीक्रेट बताने वाली है जिसे पढकर हर कोई अपने अंदर वो कांफिडेंस बिल्ड कर सकता है कि पब्लिक स्पीकिंग उसके लिए केक वाक् की तरह ईजी हो जायेगी.

  1. इस बुक से हम क्या सीखेंगे?

हर स्पीकर का एक डिफरेंट अप्रोच है, फिर भी उनमे कुछ कैरेक्टरिस्टिक कॉमन है- नोवेल्टी, इमोशन और मेमोरेबिलिटी. जो चीज़ स्टैंड आउट करती है, मेमोरेबल होती है. लोगो को डेली रूटीन से कुछ हटकर स्पेशल और डिफरेंट चीज़े पसंद आती है. इस बुक में ऐसे की- पॉइंट्स है जो आपको एक कमांडेबल स्पीकर बनने में हेल्प करेंगे जैसे की:

नोवेल्टी

• इमोशंस

*बीइंग मेंमोरेबल

*एथोस

• पाथोस

इसके अलावा और भी कई सारे टिप्स और आईडियाज है जो आप इस बुक में पढेंगे.

  1. ये बुक किस किसको पढनी चाहिए? अगर आपको भी पब्लिक स्पीकिंग से डर लगता है तो एक बार ये बुक ज़रूर पढ़े, हो सकता है कि उसके बाद पब्लिक स्पीकिंग आपके लिए एक बड़ी मजेदार चीज़ बन जाए. ये बुक वर्किंग पर्सन, स्टूडेंट्स, मैनेजर्स मोटीवेशनल स्पीकर्स, सबके काम आ सकती है. इसकी थ्योरीज रियल लाइफ में प्रेक्टिस करके आप भी अपनी कम्यूनिकेशन स्किल्स इम्प्रूव कर सकते है.
  2. इस बुक के ऑथर कौन है ? टॉक लाइक टेड के ऑथर कारमाईन गेलो की बेस्ट सेलर्स बुक लिस्ट काफी लम्बी है. 26 जुलाई 1965 में जन्मे कारमाईन एक अमेरिकन ऑथर, कोलमनिस्ट, और की-नोट स्पीकर है. वो फ़ोर्ब्स. कॉम के लिए आर्टिकल भी लिखते है. राइटर बनने से पहले वो एक न्यूज एकंर और जर्नलिस्ट थे.

टॉक लाइक टेड (Talk Like TED) कारमाइन गेलो द्वारा by CarmineGallo

आपने शायद कभी टेड का वीडियो देखके सोचा होगा: “गॉड, काश मै भी इस इन्सान की तरह पब्लिक में बोल सकता” क्योंकि रियली में टेड स्पीकर्स बड़े एंटरटेनिंग गुड पब्लिक स्पीकर होते है. लेकिन ऐसा नहीं है कि ये लोग पैदाइशी ही अच्छे पब्लिक स्पीकर होते है. बल्कि उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ती है इस फील्ड में मास्टर बनने के लिए, कारमाइन गेलो (Carmina Callo) ने 500 सभी ज्यादा टेड स्पीकर्स को एनालाइज करके देखा और उन्हें कुछ बड़ी इंट्रेस्टिंग बात पता चली.हालांकि हर स्पीकर का एक डिफरेंट अप्रोच है, फिर भी उनमे कुछ केरेक्टरस्टिक कॉमन है- नोवेल्टी (novelty. इमोशन और मेमो एबिलिटी (memo ability), जिनके बारे में हम बाद में पढ़ेंगे,

इस बुक का ऑथर कोई आम इंसान नहीं है जो खूब सारे टेड वीडियोज देखके सोचता है कि चलो अत अब मैं लोगों को सिखा सकता हूँ कि कैसे कॉफिडेंट और परस्यूएसिव(persuasive)बना जाए. वो एक कम्यूनिकेटर एक्सपर्ट और पब्लिक स्पीकर है जो पहले टीवी न्यूज़ वर्ल्ड में जॉब करता था. कई सालो तक उसने जर्नलिस्ट की जॉब की जिससे उसे करियर मुव करने में एक स्ट्रोंग बेस मिला, दो स्टीव जॉब्स की बॉडी लेंगुएज और परस्यूएसिव टेनिस एनालाइज करता था जो कि उसकी टाइम पर उसकी बेस्ट सेलर बुक भी थी.

नोवेल्टी (Novelty)

जो चीज़ स्टैंड आउट करती है, मेमोरेबल होती है. लोगो को डेली रूटीन से कुछ हटकर स्पेशल और डिफरेंट चीज़े पसंद आती है. तो पहली चीज़ जो आप सीख सकते है वो ये कि थोड़ा डिफरेंट वे में ड्रेस अप होना सीख ले. बोरिंग, ग्रे ब्लेंड ऑफिशियल सूट्स लोगो की भीड़ में नज़र नहीं आते और सब एक ही जैसे लगते है. कुछ ऐसा पहने जो थोडा हटके हो, थोड़ा क्रेजी, कलरफुल हिप्पी लुकिंग शर्त टाइप जो आप आज तक अवॉयड करते आये है. या फिर सारे रूल्स तोडकर केजुअली ऐसे ड्रेस अप करे जैसे आप फेंड्स के साथ घूमने जाते हैं. जैसे कि स्टीव जॉब्स रेयरली कभी ऑफिशियल सूट ते थे -वो अपने सिंपल टेस्ट के लिए जाने जाते थे. दुसरे वईस में बोले तो आप सिम्पल होकर भी मेमोरेबल लग सकते है. इम्पोर्टेट चीज़ है कि आप पहनते भीड़ से अलग दिखे.

बेशक आपकी कुछ चीजे कंसीडर करनी होगी जैसे कि:

  1. मेरे स्पेकटेटर्स और लिस्नेर्स (spectators and listeners) किस टाइप के लोग है?
  2. मै उन्हें किस टाइप का मैसेज देने वाला हूँ?
  3. क्या मैं उन्हें एक सिरियस, बिजनेस ओरिएंटेड इसान का इम्प्रेशन दूगा या उनके सामने जितना हो सके उतना रीलेक्स बनकर रहँगा? ये कुछ इ्पोर्टेंट चीज़े है जो आपको एक बद्धिया स्पीच देने से पहले कसीडर करनी होंगी, और आप एक बोरिंग सा ग्रे सूट पहनने के बावजूद भी स्टैंड आउट कर सकते है. अगर आपको टीनएजर्स के एक ग्रुप में ड्रग अब्यूज के डेंजर्स के ऊपर कुछ बोलना है तो ज़ाहिर है आपको थोड़ी बहुत कमांड शो करानी होगी जैसे कि यहाँ पर सूट पहन कर जाना एक राईट स्टार्टिंग पॉइंट है.

इमोशंस (Emotions)

जितने भी अच्छे स्पीकर्स है, सब इमोशनल होते है. स्पेकटेटर्स इस बात को फील कर सकते है और अगर स्पीच उतनी अच्छी भी नहीं है तो आपकी टोन ऑफ़ वौइस, पैशन जो आपकी आवाज़ में झलके, वो आपके लिस्नेर्स को केप्टिवेट कर सकती है. इमोशंस थोड़े ट्रिकी होते है क्योंकि इन्हें हर टाइम कण्ट्रोल नहीं किया जा सकता. ऐसा नहीं होता कि आप सीधे गए और बोले: “राईट, अब मैं इस चीज़ को लेकर पैशनेट होना चाहता हूँ” आपको शायद आईडिया मिल गया होगा कि ये चीज़ ऐसे काम नहीं करती है. जिस चीज़ के बारे में आप बात करे वो आपको बड़ी पसंद होनी चाहिए ताकि आपके बोलने में बेस्ट इमोशनल इफ्केट नजर आये.

मार्टिन लूथर किंग का एक्जाम्पल लेते है, वो एक ग्रेट स्पीकर थे. उन्होंने एक बड़े काज़ (cause) के लिए फाइट की थी -रेशियल इक्वेलिटी (racial equality). उसने ये तब किया जब बहुत मुश्किल टाइम था और इसकी वजह से फाइनली उसको मार दिया गया था, लेकिन उसकी स्पीच आज भी इतनी मेमोरियल है क्योंकि उनमे एक स्टेण्डर्ड है जिसकी कम्प्येर लोग आज भी स्पीचेस में करते है. उसकी एक टाइमलेस स्पीच में से एक लाइन धी: “आई हैव अ ड्रीम!” जोकि हिस्ट्री के पन्नों में लिखी जा चुकी है, आप उनकी स्पीच धोड़े मिनट के लिए देखो, आपको पता चल जाएगा.

सबसे पहले तो उन्होंने एक हाईली पर्सनल कॉज के लिए फाइट की थी -एक अफ्रीकन अमेरिकन होने के नाते उन्हें अपने जैसे लोगों का स्ट्रगल मालूम था और ये वो 20ची सेंचुरी में 60 का यो टाइम था जब रेशियल डिसक्रीमेशन अपने पीक पर था जब वो इस बारे में स्पीच देते थे तो उनकी वौइस कांपने लगती थी, उनकी आँखों में आंसू भर आते थे, उनके जेस्वर से पता चलता था कि वो कितने नर्वस और एनरजेटिक फील कर रहे हैं, अपने इमोशंस एक्सप्रेस करने के उनके ये तरीके थे. अगर कोई आदमी इस तरह से कोई वैक्यूम क्लीनर बेचने की कोशिश करे तो वो वर्ल्ड का बेस्ट मर्चेंट बन सकता

हैं. लेकिन एक ट्रिक है कि आप वैक्यूम क्लीनर्स के बारे में इतने इमोशनल होकर बात नहीं कर सकते. स्माल, इन्सिग्नीफिट चीजों को लेकर हम इस लेवल तक पैशन नहीं दिखा सकते, पैशन के लिए आपको अंदर डीप तक जाना होगा. अगर आप दो-चार टेड वीडियोज एनालाईज़ करे तो देख सकते है कि इनमें सभी स्पीकर्स अपनी लाइफ के बिगेस्ट पैशन के बारे में बता रहे है इनमें कुछ डॉक्टर्स है तो कुछ साईकोलोजिस्ट और कुछ इकोनोमिस्ट है. ये बस इतनी सी बात है कि आप जो है, सो है और खुद को लेकर कूल है. और जब आप

ओथेन्टिक (authentic) होते है तो खुद ब खुद अपने दिल की सुनने लगते है, और फिर आप वही बोलते है, वही करते है और उन्ही लोगो के साथ

होते है जो आपकी खुशी दे. आप उन लोगो से मिलते है जिनसे बात करना आपको अच्छा लगता है, उन जगहों पर जाते है जो आपकी ड्रीम डेस्टीनेशन

है और फिर आपकी लाइफ में एक तरह की फुलफिलमेंट आती है, और आप वही करते है जो आपका दिल कहता है”.

बीइंग मेमोरेबल (Being memorable)

नोल्टी और इमोशंस कुछ ऐसे तरीके है जिनसे आप मेमोरेबल बन सकते है. लेकिन बाकी दुसरे मेथड्स भी है जैसे हमने मार्टिन लूथर किंग की एटरनल (eternal लाइन मेंशन की थी: “आई हैव अ ड्रीम” । हमे जैसे ही इस एक सेंटेंस के बारे में सोचते है तुरंत मार्टिन लूथर किंग और उनके आईडियाज माइंड में आ जाते है. आपकी स्पीच में एक अच्छी सी “पंच लाइन” और एक बढ़िया स्ट्रक्चर होना चाहिए जो मेमोरेबल हो. पुराने टाइम में लोग औरेटर्स को बड़ा पसंद करते थे जोकि एनशियेंट पब्लिक स्पीकर होते थे और बोलने में बड़े माहिर माने जाते थे. और इनकी स्पीच भी बेस्ट होती थी.

बेशक बेस्ट से बेस्ट स्पीच में भी इम्प्रूवमेंट की गुंजाईश है लेकिन अपने स्पीच का स्ट्रक्चर पहले ही डेवलप करके रख ले. कारमाइन गेलो (Carmine @alls ने ये टेक्नीक्स एनालाइज की है जिससे लोग आपकी स्पीच लॉन्ग टाइम तक याद रखेंगे, नेक्स्ट चैप्टर्स में हम इन टेक्नीक्स के बारे में और पढ़ेंगे, जो है लोगोस {logos, एथोस (ethos, और पायोस (pathos. ये एनशियेंट ग्रीक वर्ड्स है और शायद इसीलिए गेलो (Gallo) ने इन्हें एम्प्लोय करने के बारे में सोचा. हमने पहले ही मेशन किया है कि एनशियेंट सीवीलाईजेश्स जैसे ग्रीक्स और रोमंस खासकर (Creeks and Romans in particular) ने आर्ट ऑफ़ परस्यूएशन (persuasion) में अपना काफी कंट्रीब्यूशन दिया है. बाकी कुछ और तरीके भी है जो आपकी प्रेजेंटेशन को मेमोरेबल बना सकते है -एक्सट्रीम मोमेंट्स और न्यू स्टेटीस्टिव्स आपकी हेल्प कर सकते है. लोगोस, एथोस, और पाथोस के बारे में बताने के बाद हम आपको इन एक्सट्रीम मोमेंट्स और नोवल स्टेटिसटिक्स के बारे में बताएँगे.

एथोस (Ethos)

जैसा हमने पहले बताया कि एनशियेंट सीवीलाईजेशन्स खासकर ग्रीक्स (especially Creeks) डिबेट और परस्यूएशन (persuasion) स्किल के बड़े शौकीन थे. यहाँ के लोगों को बाते करना बड़ा पसंद था और अक्सर इस चीज़ का भी कॉम्पटीशन होता था. सुकरात( 5ocrates) पुराने टाइम का एक बड़ा ग्रेट फिलोसफ़र अपनी परस्यूएशन स्किल्स (persuasion skills) के लिए फेमस था. वो अपने लिस्नेर्स को अपनी बातो से कन्दिंस कर लेता था और राईट क्वेश्चन पूछ कर वो कम्प्लीटली अपोजिट ओपिनियन इंड्यूस कर लेता था. और एंड में उसके लिस्नेर्स कम्पलीटली अमेज़ड (completely amazed) हो जाते थे. और जब वो उनको बेवकूफ़ नहीं बना पाता था तो वो सिम्पली उनसे कुछ सवाल पूछता, और उस पर आग्ग्यमेंट करता फिर सुनने वाले खुद से ही कोई कनक्ल्यूजन निकाल लेते थे.

आपको भी कुछ इस टाइप की स्टाइल अपनानी होगी. क्योंकि कोई भी बेदकूफ बनना या झूठ सुनना पसंद नहीं करता. और इसीलिए अपनी स्पीच में हमेशा रियल, रेलेवेंट आग्ग्यमंट्स रखो, यही एथोस का एसेंस है. एथोस का मतलब है क्रेडीबिलिटी, गेलो(Callo) एक इंट्रेस्टिंग टेक्निक के बारे में बताते है जिससे राईट अमाउंट ऑफ़ एथोस लाया जा सकता है. -जैसे कि आप अपने क्लेम्स (claims) रियल डेटा से मूव कर सकते है, या उससे भी बैटर जैसे स्टेटिसटिक्स और ग्राफ्स. स्पेशली ग्राफ्स पब्लिक स्पीकर्स के बड़े काम आते है क्योंकि ये समझने में ईजी है और लोगों को बस एक पिकचर से काफी इन्फोरमेशन मिल जाती है. लेकिन उससे भी ज्यादा इम्पोटेंट है आपकी पर्सनल क्रेडिबीलिटी -आपकी पर्सनेलिटी और केरेक्टर, सिम्पली बोले तो लोग आपकी लेडीबीलिटी चेक करना चाहते है इसीलिए खुद को हमेशा पोजिटिव लाइट में प्रजेंट करे.

जैसे कि हमने बताया आप टीनएजर्स के सामने ऐसे ही नहीं चले जायेंगे, आपमें कुछ रोब वाली बात होनी चाहिए. इसके लिए आपको अपने लुक्स पर और पर्सनल स्टास (personal stance) पर ध्यान देना होगा. कोई चश्मा पहने है तो लोग कभी-कभी बोल देते हैं: “ओह, आप तो एक साइंटिस्ट लगते है!” या कोई गंजा होगा तो बोलेंगे: “तुम ठग लगते हो” तो देखा आपने अपिरिएंश (Appearances) धोखा देता है, लेकिन कई बार आप इसे मैक्सिमम अमाउंट ऑफ एथोस अचीव करने के लिए भी यूज़ कर सकते है. वही दुसरी तरफ क्राउंड पर भी काफी कुछ डिपेंड करता है. जैसे एक्जाम्पल के लिए जो लोग पोलिटिकल इवेंट्स अटेंड करते हैं उन्हें आग्ग्यमेंट्स नहीं चाहिए होते और अगर वो ऐसा करते भी है तो उन्हें क्रेडिबिलिटी की परवाह नहीं होती. हम बाद मे बताएँगे कि बाकी और भी टेवनीक्स है जो ऐसे क्राउड के लिए एकदम सूटेबल है.

लोगोस (Logos)

लोगोस एक बड़ा इम्पोर्टेट ग्रीक वर्ड है. इसके हंड्रेड डिफरेंट मिनिग्स है लेकिन लोग नॉर्मली इसका मतलब रीजन, रेशनलटी और माइंड से निकालते है. कारमाइन गेलो(Carmine Callo) कहते है कि लोगोस का मतलब है आग्ग्यमंट्स और आप चीजों को किस तरह देखते है.सिम्पल वे में बोले तो आपके कनवल्यूजंस लोजिवली आपके डेटा को फोलो करते है. और ये एवस्ट्रीमली इम्पोर्टेंट चीज मानी जाएगी और वो भी उस क्राउड जो हाइली क्रीटिकल और एजुकेटेड है, गेलो(Gallo) आपको सिखाते है कि अपनी स्पीच एडवांस में ही प्रीपेयर कर ले ताकि कोई कंफ्यूजन ना रहे और ऐसा ना हो कि आप कुछ अनाप-शनाप बोलने लगे जिससे आपकी क्रेडीबिलीटी और लोगोस पर लोग सवाल उठाये. एथोस और लोगोस एक्चुली साथ-साथ चलते है और एक के बिना दुसरे के बारे में सोच भी नहीं सकते.

जैसे कि माना अगर आप बच्चो को ड्रग अब्यूज के डेंजर्स के बारे कन्विंस करना चाहते है तो ऐसे नहीं कि आप सीधे गए और बोला: “बच्चो ड्रग्स मत लेना, ये बुरी चीज़ है, ओके” जैसा कि मिस्टर मैकी करते थे. आप भी जाकर कुछ ऐसा नहीं बोलना चाहेंगे: “देखो, इतनी थाउजेंड स्टडीज से पून हुआ है कि कुछ साइकोएक्टिव सबटेंसेस (psychoactive substances) का आपकी बॉडी में एडवर्स इफ्केट पड़ता है, जैसे कि प्रोलोंग्ड एमडीएमए(prolonged MDMA) का यूज़ करने से इस्रीवर्सेबल न्यूरल डैमेज (Irreversible neural damage) होता है”. अब ये पहले वाले स्टेटमेंट से ज्यादा कोम्प्रीहेन्सिव और लोजिकल डीबेट है. लोगोस और एथोस इम्पोर्टेट है क्योंकि अगर लोग आपके डिसकोर्स में लोजिकल फ्लाव्स(logical flaws) नोटिस करेंगे तो उन्हें आपकी कही किसी भी बात का यकीन नहीं आएगा चाहे आप कितनी भी लोजिकल बात क्यों ना बोले. क्योंकि लोगो की हैबिट होती है ओवरजर्नलाइज (over generalize) करने की और ये चीज़ आप ध्यान रखो तो अच्छा होगा.

पाथोस (Pathos)

और अब हम इन तीनो में से मोस्ट इम्पोर्टेट टेवनीक पर आते है -पाथोस (pathos) ये इमोशनल कनेक्शन है जो आपका अपने ऑडिएंश (audience) से कनेक्ट करती है. वैसे ये बोलना सेफ है कि अगर पहले वाले दो टेक्नीक भूल भी जाये तो कोई बात नहीं क्योंकि गुड पारथीस से आप फिर भी एक अच्छा इम्प्रेशन जमा लेंगे. हाइली एजूकेटेड क्राउड को एधोस और पथोस शायद पसंद आये फिर भी उन्हें थोड़ी बहुत इमोशनल रटीम्यूली (emotional stimui) चाहिए कि वो अपने स्पीकर पर पूरा फोकस कर सके. ज्यादातर ऑंडीएश (audiences) काफी डाइवर्स होती है जिसका मतलब ये है कि पाथोस अब और भी इम्पोर्ेंट हो गए है. गुड पाथोस के लिए सिम्पेधी (Sympathy ) और एमपेथी(empathy एक्सट्रीमली इम्पोरटेंट है. जैसे कि आप ऑरडीएंश (audience) में से किसी एक को अपनी स्टोरी बताने के लिए इनवाईट करे.

अगर आप उस इंसान के साथ सही ढंग से सिम्पेथी शो करते है तो आपकी ऑडीएंश आपकी काफी पंसद करेगी. और आपकी स्टोरीटेलिंग भी एक्सट्रीमली इम्पोर्टेट चीज़ है. जब आप कोई पर्सनल स्टोरी शेयर करते है तो आपके अंदर इमोशंस उमड़ पड़ते है और ये चीज़ पाथोस और पैशन के लिए बड़ी इम्पोटेंट है. कारमाइन गेलो(Carmine Callo) के हिसाब से स्टोरीटेलिंग से स्ट्रोंगेस्ट इमोशंस निकल के आते है इसीलिए ये आपकी प्रेजेंटेशन का एक मोस्ट ब्रेथ टेकिंग और एसेंशियल पार्ट है. गेलो(Callo) अपना फार्मूला भी शेयर करते है: परफेक्ट टॉक है 65% पाथोस pathos, 25% लोगोस logos, और 10% एथोस ethos, जैसे कि आप देख सकते है इस फोर्मुला में पाथोस मोस्ट इम्पोर्टेट एलिमेंट है जिसके बाद आता है लोगोस और एस, एथोस लीस्ट इम्पोर्टेट है. “जब तक लोग खुद इंस्पायर नहीं होते वे दूसरो को इंस्पायर नहीं कर सकते””-जैसा कि कारमाइन का मानना है,

एक्सट्रीम मोमेंट्स और इन्नोवेटिव स्टेटिसटिक्स (Extreme moments and innovative statistics) जिस वर्ल्ड में हम रहते है, लोग इन्फोर्मेशन से ओवरव्हेलाड (overwhelmed) हो जाते है. इंटरनेशनल न्यूज़, सोशल नेटवर्क्स, शोर्ट में बोले

तो इंटरनेट वगैरह ने लोगो की अटेंशन और चीजों को मेमोराइज़ करने की एबिलिटी काफी नेरो डाउन कर दी है. हमे गलत ना समझो, ऐसा नही कि लोग एकदम डम्ब (dumb) होते जा रहे है, लेकिन इन्फोरमेशन की इतनी सारी नई चीज़े आ गयी है कि लोगो को याद रखने में मुश्किल आ रही है. इसीलिए तो आजकल इतने नोइज़ी (noisy) एड्स दिखाते है जो बड़े अजीब लगते है -कंपनीज आपकी अटेंशन पाने के लिए फाईट कर रही है और कुछ तो एक्सट्रीम लेवल तक चली जाती है.

एक तरीका है जिससे आपकी प्रजेंटेशन लोगों को लॉन्ग टाइम तक याद रहेगी और वो ये कि उसमे कोई पर्सनल स्टोरी एड कर दो. जब आप बड़े पैशन के साथ उन मोमेंट्स को याद करते है ।पाथीस याद रखे) तो आपकी ऑडीएंश(audience) तुरंत नोटिस करती है और फिर उसका फोकस पॉइंट सिर्फ आप होते है, जैसे स्कॉट डीन्समोर (Scott Dinsmore) सैन फ्रांसिस्को में अपने साथ हुआ एक हाइली पर्सनल इंसिडेंट सुनाते है. उस दिन जोरो का तूफ़ान आया और बारिश भी बड़ी तेज़ हो रही थी और उन्हें अल्काटरज (Alcatraz) से मेनलैंड जाना था.

उन्हें डीप ब्लू वाटर से बड़ा डर लगता था, यहाँ तक कि उस दिन को याद करके ही उन्हें शिवरिंग होने लगती है. लेकिन फिर भी हिम्मत करके वो गहरे पानी में उतरे, वो भी तूफान में, (और पानी भी बिलकुल फ्रीजिंग था) तो स्कॉट अभी थोडा आगे ही गए थे कि उन्हें एक लड़का दिखा जो पानी में सांस लेने के लिए स्ट्रगल कर रहा था. इस इंसिडेंट के बाद 9 साल का वो लड़का उन्हें दुबारा दिखा व्हील चेयर पर, ये स्कॉट के लिए रियल गेम चेंजर था, उससे पूछा: “मै हमेशा सोचता था कि 20 साल बाद वो लड़का कहाँ और कई लोगों ने कहा भी रहने दो, तुम कभी नहीं पाओगे, लेकिन उसने हार नहीं मानी । ये टिपिकल हाइली पर्सनल स्टोरी है जो काफी इमोशनल है इसीलिए स्कॉट डीइंसमोर के जॉब के लिए एकदम परफेक्ट थी -लोगो के लिए मोटिवेटिंग,

दूसरी ओर कुछ बाकी तरीके भी है जो आपकी प्रेजेंटेशन ज्यादा मेमोरेबल बन जाएगी और बगैर किसी फनी मोटीवेशनल स्टोरीज़ के. अपने टेड टॉक में बिल गेट्स ने एक ऐसी चीज की जो किसी ने सोची भी नहीं होगी. वो मलेरिया को लेकर लोगों की कांशसनेस इम्पूरूव करना चाहते थे, जोकि वर्ल्ड की सबसे डेडली बीमारी है. अब अगर आप बोले तो: “200 मिलियन से ज्यादा लोग हर साल मलेरिया से मरते है लोगो को ये चीज समझ आएगी लेकिन ये बहुत ज्यादा एबस्ट्रेक्ट है. तो बिल गेट्स अपने साथ कुछ मुट्ठी भर मच्छर लेकर आये धे जो उन्होंने क्राउड में छोड़ दिए. तो इस तरह एक मेमोरेबल और इंट्रेसिंग वे में उन्हें ऑडीएंश की अटेंशन मिल गयी, मलेरिया नाम की बिमारी के बारे में बात करना अलग बात है लेकिन जब आप इसे पर्सनली एक्सपिरिएश करते है

तो ये काफी सिरियस मैटर है. और सबसे बड़ी बात कि नम्बर्स और स्टेटिसटिक्स काफी इफेक्टिव होते है. जैसे कि मलेरिया के बारे में सिम्पल इन्फोरमेशन देने के बजाये बिल गेट्स ने कुछ इट्रेस्टिंग “यूजर फ्रेंडली” ग्राफ्स और मैप्स यूज़ किये. कोई भी इन्फोरमेशन जब विजुअली प्रेजेंट की जाती है तो लोगो को ये देर तक याद रहती है -ये समझना तब और भी ईजी हो जाता है कि मलेरिया अभी एक सिरियस प्रोब्लम है जब आप इसे वर्ल्ड मैप पे देखते हैं. और बिल गेट्स इसी तरीके से इसे शो कराना चाहते थे कि डेवलप कंट्रीज़ में मलेरिया कोई बड़ी बीमारी नहीं है लेकिन डेवलपिंग कंट्रीज में आज भी लाखो लोग इससे मर रहे हैं.

इसी तरह जो स्मिथ (Joe Smith ) ने भी बड़े इनोवेटिव वे में स्टेटिसटिक्स प्रेजेंट किये. स्पेशीफिक्ली (specifically) बोले तो उन्होंने एनवायरमेंट और पेपर टोवेल्स कम यूज़ करने के बारे में बात की, बजाये सिर्फ ये बोलने के कि एनवायरमेंट को सेव रखने के लिए ये बड़ा ज़रूरी है कि हम कम पेपर टावल्स यूज़ करे, उन्होंने कुछ यू बोला: “अगर हर कोई डेली बस पेपर टॉवल यूज़ करे तो साल में हाफ बिलियन पाउंड से ज्यादा पेपर सेव किया जा सकता है” इस तरह बोल के वो अपनी ऑडीएंश को पर्सनली इन्चोल्च करते है, और लोग उनकी बातो से खुद को रीलेट फील करते है.

“एक पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन क्रिएट करनी हो तो सबसे पहले क्या करना होगा?” पॉवर पॉइंट को ओपन करेंगे और क्या? बहुत सारे लोगो की शायद आपका भी यही जवाब होगा लेकिन ये आंसर रोंग है, आपको सबसे पहले एक स्टोरी प्लान करनी चाहिए, जैसे कोई मूवी डायरेक्टर शूटिंग से पहले सीन सोच लेता है. कोई भी टूल ओपन करने से पहले आपके माइंड में एक स्टोरी होनी ज़रूरी है. फिर जब स्टोरी कम्प्लीट हो जाए तो जितना मर्जी टाइम लगा के उसे खूबसूरत स्लाइड्स से सजा लो, लेकिन अगर आपकी स्टोरी ही बोरिंग है तो आपके कुछ बोलने से पहले ही आपकी ऑडीएंश भाग जाएगी.

प्रेजेंटेशन 18 मिनट्स में फिट होनी चाहिए (The presentation should fit in 18 minutes)

ज्यादातर टेड टॉक्स 18 मिनट्स से ज्यादा के नहीं है. और इसकी एक वजह है. साइंटिस्ट की एक टीम ने टेडएक्स ओफिशियल्स (TEDX officials,) के साथ काम करने बाद ये रियलाइज किया कि एक परफेक्ट टेड टॉक की लेंग्थ 15 से 20 मिनट के बीच होनी चाहिए, 18 मिनट बेस्ट लेंग्थ है. टेड के साथ काम करने वाले साइकोलोजिस्टस (Psychologists) ने पाया कि ज्यादातर लोगों के लिए 18 मिनट एक एवरेज स्पान ऑफ़ अटेंशन है. क्रिस एंडरस (Chris Anderson) जोकि एक टेड क्यूरेटर है, उनका कहना है कि: 18 मिनट का टाइम काफी है कि लोग सिरियस होकर किसी प्रजेंटेशन को देखे और इतना लंबा भी नहीं कि लोग बोर हो जाए”,

और ये लेग्ध ऑनलाइन के लिए भी काफी बढ़िया है, क्योंकि कॉफी ब्रेक भी ज्यादातर इतनी ही देर का होता है. तो आप कॉफ़ी पीते-पीते एक ग्रेट टॉक देख सकते हो और साथ ही 1-2 लोगों को लिंक भी फॉरवर्ड कर सकते हो जो ईजिली वायरल भी हो सकता है. 18 मिनट लेंग्थ उसी तरह काम करता है जैसे ट्विटर (Twitter) लोगो को डिसप्लीन में रहकर लिखने को बोलता है. जो स्पीकर्स नॉर्मली 45 मिनट्स लेते है उन्हें 18 मिनट्स का टाइम देकर आप उन्हें फोर्स कर सकते है ताकि उन्हें सोचने का मौका मिले कि वो क्या बोलना है ? उनकी कम्यूनिकेशन का की पॉइंट क्या है? जो कुछ वो प्रेजंट करे उसमे एक क्लियरेटी होनी ज़रूरी है.

ऐसा करना ज़रूरी है क्योंकि इससे डिसप्लीन मेंटेन रहता है. और कभी लोग सुनते-सुनते भी थक जाते है खासकर अगर आप सब्जेक्ट पर फोकस

कर रहे हो तो आपके ब्रेन को काफी एनेर्जी चाहिए. यही रीजन है कि कई बार इंटेलेक्चुअल एक्टिविटी के बाद हमें एग्जॉस्ट (exhausted) फील करने लगते है. इसे “कोगनिटिव ब्लोकेज”( cognitive backlog”) बोलते है. जितना आपकी प्रेजेंटेशन मेमोरेबल होगी उतनी ही एनेर्जी आपके ऑडीएश को यूज़ करनी पड़ेगी तो केयरफुल रहे कि आप अपने लिस्नेर्स को बहुत ज्यादा बोर ना करे. डॉक्टर पॉल किंग (Dr. Paul King) जिन्होंने टर्म’ कोगनिटिव ब्लोकेज’ क्रियेट की थी, उन्होंने इसे पूव करने के लिए एक स्टडी भी की. और उन्हें एक अमेजिंग चीज़ पता चली, जो स्टूडेंट्स वीक में बन आवर की 3 प्रेजेंटेशन सुनते है, उन्हें ज्यादा टाइम तक याद रहता है बजाये उन स्टूडेंट्स के जो 3 आदर की एक ही प्रेजेंटेशन सुनते थे. यही सेम चीज़ टेड टॉक्स (TED talks) के साथ भी

आपको शायद लगेगा कि 18 मिनट्स काफी नहीं है लेकिन फिर से एक बार सोच ले. अब जैसे जॉन केनेडी (John Kennedy) की एटरनल स्पीच बस 15 मिनट्स की थी. उन्होंने भी अनजाने में मोस्ट इम्पोर्टेट रुल फोलो किया जो हमने यहाँ डिसक्राइब किया है -अब जैसे वो अपनी स्पीच एक मेमोरेबल सेंटेंस में फिनिश करते है: “ये मत पूछो कि अमेरिका तुम्हारे लिए क्या कर सकता है, बल्कि ये बताओ कि तुम अमेरिका के लिए क्या कर सकते हो” ऐसे ही डॉक्टर मार्टिन लूथर किंग की स्पीच” आई हेव अ ड्रीम” सिर्फ 17 मिनट्स तक थी, एक और मेमोरेबल सेंटेंस जो लोगों के माइंड में स्टक हो गया था. बाकी कुछ और भी एक्जाम्पल है जैसे स्टैंड फोर्ड में स्टीव जॉब्स का क्नेंसमेंट एड्रेस जोकि बस 15 मिनट्स का था!

“डिसप्लीन सीखने के लिए 18 मिनट रुल सिम्पली कोई गुड एक्सरसाइज नहीं है, क्योंकि अपने ऑडीएंश को ओवर लोड करना क्रिटिकल हो सकता है, याद रहे कि कंसट्रेन्ड प्रेजेंटेशन (constrained presentations) को ज्यादा क्रिएटिविटी की ज़रूरी पड़ती है.-गेलो(Callo ) ये इम्पोर्टेंट रुल समझाते है,

कवर 3 टॉपिक्स मैक्सीमम (Cover 3 topics maximum)

यहाँ एक बार और साइकोलोजिस्ट हमारी हेल्प करते है कि बेस्ट प्रेजेंटेशन कैसे बनाई जाएं. उन्होंने देखा कि लोग किसी भी इन्फोरमेशन को ओर्गेनाइज़ करते है ताकि वो इजीली याद रखी जा सके, अब जैसे कि अगर आप 661944 याद करने की कोशिश कर रहे है तो मुश्किल लगेगा लेकिन अगर आप इसे डेट ऑफ़ डी डे 06.06.1944.की तरह याद करेंगे तो ईजी लगेगा, सेम चीज़ स्पीच की साथ भी है, भी।

इसके अलावा एक मीनिंगफुल, इंट्यूटिव वे में इन्फोरमेशन ओर्गनाइज़ करने में ध्यान रहे कि आप बहुत सारे टॉपिक्स ना ले, टेड क्यूरेटर्स (TED curators) कनक्ल्यू ड करते है कि आप एक बार में मैक्सीमम 3 टॉपिक्स ले. और ये भी नौट करे कि लोग वन मोमेंट में मैक्सीमम 7 यूनिट्स कवर कर सकते है. ये एक फेमस मैजिकल नंबर है 7+-2, जिसे हार्वर्ड डिपार्टमेंट ऑफ़ साइकोलोजी के साइकोलोजिस्ट जॉर्ज मिल्लर (George Miller) ने डिस्कवर किया था. तो ग्राफ ऑफ़ टेबल्स क्रियेट करते टाइम बहुत ज्यादा एलिमेंट्स इन्क्ल्यू ड ना करे -9 से ज्यदा तो बिलकुल नहीं.

कंनक्ल्यू जन Conclusion

अब तक आपने देखा कि एक मेमोरेबल और इमोशनल प्रेजेंटेशन बनाना कोई ईजी टास्क नहीं है. आपको इसके लिए काफी चीज़े कंसीडर करनी होगी क्योंकि पब्लिक को कण्ट्रोल करना एन्जाईटी (anxiety) क्रिएट करता है और किसी भी पब्लिक स्पीकर का ये सबसे बुरा नाईटमेंयर होता है. तो आपको अपनी स्पीच में थोड़ा स्ट्रेस भी एम्प्लोय करना होगा -स्टेज पर जाने से पहले रिलीविंग टेक्नीक्स जो आपको शांत रखे. जैसे मेडीटेशन और कुछ एक्सरसाइज़, जैकबसन का मसल्स रीलेक्सन टेक्नीक्स (Jacobson’s muscle relaxation technigue) काफी हेल्पफुल पलूव हो सकती है. चॉइस आपकी है कि आप कैसे रीलेक्स होते हैं. अब हम मोस्ट इम्पोर्टेंट सब्जेवट्स सम अप करेंगे;

  1. नोवेल्टी Novelty.

जो चीजे स्टैंड आउट करती है वो मेमोरेबल होती है. लोग उन चीजों की तरफ अट्टेक्ट होते है जो नार्मल बोरिंग से कुछ हटकर हो. इसलिए सबसे पहले तो आप कुछ डिफरेंट वे में ड्रेस अप करना सीख लो, क्योंकि अगर आप ब्लैंड, ग्रे जैसे बोरिंग कलर के कपड़े पहनते है तो भीड़ का हिस्सा बनकर रह जायेंगे.

2 इमोशंस Emotions,

सारे गुड स्पीकर्स इमोशनल लोग होते है, और ये बात ऑडीएंश फील कर सकती है, और अगर एक बढिया स्पीच नहीं दे पाए या ये मेमोरेबल नहीं है, तो भी आपकी टोन ऑफ़ वौइस् (tone of voice, ) आपकी बातो से झलकता पैशन ही काफी है जो सुनने वालो के दिल में उत्तर जायेगा,

  1. बीइंग मेमोरेबल Being memorable.

अपनी स्पीच में नोवेल्टी और इमोश्स लाकर आप इसे मेमोरेबल बना सकते हैं. लेकिन कुछ और तरीके भी आप अप्लाई कर सकते है जैसे हमने मार्टिन

लूथर किंग की एटरनल स्पीच के बारे में बताया: “आई हेव अ ड्रीम” बस कोई छोटा और इफेक्टिव सेंटेंस सोचे और तुरंत मार्टिन लूथर किंग और उनके

आईडियाज माइंड में आ जायेंगे, अपनी स्पीच में एक बढ़िया सी” पंच लाइन” जरूर रखे और स्ट्रक्चर ऐसा हो जो लॉन्ग टाइम तक याद रहे.

  1. लोगोस (Logos)

लोगोस एक बड़ा इम्पोर्टेट ग्रीक वर्ड है. इसके हड्रेड डिफरेंट मिनिग्स है लेकिन लोग नॉर्मली इसका मतलब रीजन, रेशनलटी और माइंड से निकालते है. कारमाइन गेलो(Carmine callo) कहते है कि लोगोस का मतलब है आग्ग्यूमेंट्स और आप चीजों को किस तरह देखते है. सिम्पल वे में बोले तो आपके कनक्ल्यूजंस लोजिक्ली आपके डेटा को फोलो करते है, आपके आग्ग्यमेंट्स और आप कैसे कोई चीज़ प्रेजेंट करते है.

5 एथोस (Ethos)

सुकरात(Socrates)पुराने टाइम का एक बड़ा ग्रेट फिलोसफर अपनी परस्यूएशन स्किल्स (persuasionskills) के लिए फेमस था. वो अपने लिस्नेर्स को अपनी बातों से कन्विस कर लेता था और राईट क्वेश्चन पूछ कर वो कम्प्लीटली अपोजिट ओपिनियन इंड्यूस कर लेता था. और एंड में उसके लिस्नर्स कम्प्लीटली अमेज़ड (completely amazed) हो जाते थे. और जब वो उनको बेवकूफ़ नहीं बना पाता था तो वो सिम्पली उनसे कुछ सवाल पूछता, और उस पर आग्ग्यमेंट करता फिर सुनने वाले खुद से ही कोई कनक्ल्यूजन निकाल लेते थे. आपको यही स्टाइल अप्लाई करनी. कोई भी इंसान बेवकूफ बनना या झूठी बात पसंद नहीं करता इसीलिए हमेंशा रियल और रेलेवेंट टॉपिक्स ही मेन्शन करें, यही एथोस का एसेंस है.

  1. पाथोस (Pathos

ये इमोशनल कनेक्शन है जो आपका अपने ऑडिएंश (audience) से कनेक्ट करती है. वैसे ये बोलना सेफ है कि अगर पहले वाले दो टेक्नीक भूल भी जाये तो कोई बात नहीं क्योंकि गुड पाथोस से आप फिर भी एक अच्छा इम्प्रेशन जमा लेंगे.

  1. प्रेजेंटेशन 18 मिनट्स से ज्याद लॉन्ग ना हो –

ज्यादातर टेड टॉक्स 18 मिनट्स से ज्यादा टाइम नहीं लेते. क्योंकि इसके पीछे एक रीजन है, साइंटिस्ट की एक टीम ने टेडएक्स ओफिशियल्स के साथ काम करने के बाद ये रियलाइज किया कि एक परफेक्ट टेड टॉक 15 से 20 मिनट के बीच हो, वैसे 18 मिनट बेस्ट टाइम है.

  1. कवर 3 टॉपिक्स मैक्सीमम Cover 3 topics maximum एक बार फिर यहाँ साइकोलोजिस्ट हमारी हेल्प करते है ताकि हम अपनी बेस्ट प्रेजेंटेशन दे सके, टिप ये है कि प्रेजेंटेशन में मैक्सीमम 3 टॉपिक्स ही रखे क्योंकि लोग मेमोराइज करने के लिए इन्फोरमेशन अपने माइंड में ओर्गेनाइज़ करते है.

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