DO BHAI by Munshi premchand.
About सुबह सुबह सूरज की सुहानी सुनहरी धूप में कलावती दोनों बेटों को गोद में बैठाकर दूध और रोटी खिला रही थी। केदार बड़ा था, माधव छोटा। दोनों मुँह में निवाला …
DO BHAI by Munshi premchand. Read MoreDiscover Insightful Book reviews here
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About सुबह सुबह सूरज की सुहानी सुनहरी धूप में कलावती दोनों बेटों को गोद में बैठाकर दूध और रोटी खिला रही थी। केदार बड़ा था, माधव छोटा। दोनों मुँह में निवाला …
DO BHAI by Munshi premchand. Read Moreअब न वह जवानी है, न वह नशा, न वह पागलपन। वह महफिल उठ गई, वह दिया बुझ गया, जिससे महफिल की रोशनी थी। वह प्यार की मूर्ति अब नहीं रही। …
DO KABREIN by Munshi premchand. Read MoreAbout आदमियों और औरतों में बड़ा अन्तर है, तुम लोगों का दिल काँच की तरह कड़ा होता है और हमारा दिल नरम, वह जुदाई का दर्द नहीं सह सकता। काँच चोट …
DHARAM SANKAT by Munshi premchand. Read MoreAbout रफाकत हुसैन मेरे दफ्तर का दफ्तरी था। 10 रु. महीना तनख्वाह पाता था। दो-तीन रुपये बाहर के छोटे मोटे काम से मिल जाते थे। यही उसकी जीविका थी, पर वह …
DAFTARI by Munshi premchand. Read MoreAbout Book बी.ए. पास करने के बाद चन्द्रप्रकाश को टयूशन देने के सिवा और कुछ न सूझा। उसकी माँ पहले ही मर चुकी थी, इसी साल पिता भी चल बसे थे …
CHAMATKAR by Munshi premchand. Read MoreAbout औरत मैं असल में अभागिन हूँ, नहीं तो क्या मुझे रोज ऐसे बुरे नजारे देखने पड़ते दुख की बात यह है कि वे मुझे सिर्फ देखने ही नहीं पड़ते, बल्कि …
BRAHM KA SWAANG by Munshi premchand. Read Moreबेतवा नदी दो ऊँचे किनारों के बीच इस तरह मुँह छिपाये हुए थी जैसे साफ दिलों में हिम्मत और उत्साह की धीमी रोशनी छिपी रहती है। इसके एक किनारे पर एक …
BETI KA DHAN by MUnshi premchand. Read MoreAbout नामों को बिगाड़ने की रीत न जाने कब चली और कहाँ से शुरू हुई। अगर आप हर जगह फैली इस बीमारी का प्रता लगा पाए, तो आप मशहूर हो जाएँगे। …
AANSUO KI HOLI by Munshi premchand. Read MoreAbout महाशय दयाकृष्ण मेहता के पाँव जमीन पर न पड़ते थे। उनकी वह इच्छा पूरी हो गयी थी जो उनके जीवन का सुंदर सपना था। उन्हें वह राज्याधिकार मिल गया था …
AADARSH VIRODH by Munshi premchand. Read MoreAbout साधारण इंसान की तरह शाहजहाँपुर के डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर सरदार शिवसिंह में भी भलाइयाँ और बुराइयाँ दोनों ही थीं। भलाई यह थी कि उनके यहाँ इंसाफ और दया में कोई न …
SAJJANTA KA DANG by Munshi premchand. Read More