PURPLE COW by Seth godin.

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About Book

ट्रेडिशनल मार्केटिंग स्ट्रेटेजी अब किसी काम की नहीं रही. लोग advertisement देख देख कर बोर हो गए हैं. तो आप अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कैसे करेंगे? आप कस्टमर्स का ध्यान अपने प्रोडक्ट की ओर कैसे attract कर पाएँगे? तो इसका जवाब है ये बुक. ये हमें फ्रेश, यूनिक और एक्स्ट्राऑर्डिनरी मार्केटिंग के बारे में सिखाएगी.

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

जो लोग बिजनेसमैन बनना चाहते हैं

छोटे बिज़नेस ओनर्स के लिए

स्टार्ट अप के फाउंडर्स के लिए

जो लोग मार्केटिंग या एडवरटाइजिंग डिपार्टमेंट में काम करते हैं

ऑथर के बारे में

सेथ गोडिन एक ऑथर, ब्लॉगर, ट्रेनर और बिजनेसमैन हैं.पहले वो बुक पैकेजिंग और डॉट कॉम बिज़नेस में काम किया करते थे. अब तक उन्होंने बिज़नेस पर 19 बुक्स लिखें हैं. सेथ मार्केटिंग वर्कशॉप और ऑनलाइन कोर्स भी प्रदान करते हैं. इतना ही नहीं, वो अपने ब्लोग्स के ज़रिए लोगों को educate भी करते हैं.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

एक बार सेथ गोडिन अपने परिवार के साथ फ्रांस में छुट्टियां मना रहे थे. जब वो हाईवे से गुज़र रहे थे तो वहाँ गायों के एक झुंड को चरता हुआ देख चकित हो गए.मौसम सुहाना था, हल्की हवा चल रही थी और गायें बड़ी खुशी से धास चार रही थी. वो नजारा इतना प्यारा था लग रहा था मानो बच्चों की कहानी की किताब से उसे निकला गया हो. ये नजारा मीलों तक चलता रहा.

कर पहले तो सेथ और उनका परिवार उसे बड़े चाव से देख रहे थे लेकिन कुछ समय बाद वो उससे बोर होने लगे, उन्हें बस गायों का झुंड दिखाई दे रहा था, कुछ नया नहीं, अब ब्राउन रंग के गायों का नज़ारा कॉमन और बोरिंग लग रहा था, लेकिन इमेजिन करें कि उन ब्राउन गायों के बीच अगर एक पर्पल गाय होती तब क्या होता? तब ये काफ़ी दिलचस्प होता है ना? शायद इतना कि आप चाह कर भी उससे अपनी नज़रें नहीं हटा पाले. ो पर्पल काऊ का आईडिया आया. पर्पल काऊ का मतलब है कुछ फ्रेश,हट के, देखने लायक, अलग और एक्सट्रा ऑर्डिनरी. इस बुक में आप सीखेंगे कि कैसे एक एक अलग प्रोडक्ट बनाया जा सकता है और कैसे एक हटके मार्केटिंग स्ट्रेटेजी से लोगों का ध्यान attract किया जा सकता है.

आज मार्केट में प्रोडक्ट्स की भरमार है ऐसे में कस्टमर्स का ध्यान खींचना बेहद मुश्किल हो गया है इसलिए सेथ पर्पल काऊ का कांसेप्ट लेकर आए जिसका मतलब है नया, खास जिसे लोग देखने के लिए मजबूर हो जाएं. कुछ ऐसा जो लोगों ने ना कभी देखा हो और ना सुना हो और वो इसके बारे में पुरानी मार्केटिंग टेक्निक्स उन आउन गायों की तरह हो गई हैं जिन्हें देख कर लोग बोर हो गए हैं. अब वो उनका ध्यान अपनी ओर नहीं खींच सकते. मार्केट में ज़बरदस्त कम्पटीशन है और advertisement का अंबार लगा हुआ है. ऐसे में आप अपना प्रोडक्ट कैसे बेच पाएंगे? आप एक बात किए बिना ना रह सकें.

सक्सेसफुल बिज़नेस को कैसे बनाए रख सकेंगे? तो इस प्रॉब्लम का solution है पर्पल काऊ और ये कैसे करना वो ये बुक हमें सिखाएगी. ई यू नीड द पर्पल काऊ (Why You Need the Purple Cow) वहा

बिज़नेस में सिर्फ एक प्रोडक्ट बनाना ही काफ़ी नहीं होता, लोगों को उसके बारे में बताना, उसकी मार्केटिंग करना बिजनेस का सबसे अहम् हिस्सा होता है.अक्सर advertise करने से पहले, बिज़नेस वर्ड ऑफ़ माउथ के माध्यम से प्रोडक्ट बेचने की कोशिश करते हैं, अगर लोगों को प्रोडक्ट अच्छा लगा तो प्रॉब्लम सौल्व, वो इसके बारे में बात करेंगे और दूसरे लोगों को भी इसके बारे में बताएँगे. एडवरटाइजिंग ने टीवी और प्रिंट के ज़रिए एक नए फार्मूला को जन्म दिया.अब कंपनियां टीवी कमर्शियल और न्यूज़पेपर में ad देने लगे ताकि ज़्यादा से

ज़्यादा लोगों को प्रोडक्ट के बारे में बताया जा सके. लेकिनबाद में यही स्ट्रेटेजी हर कम्पनी अपनाने लगी और अब मार्केट में इतने प्रोडक्ट्स और ad भर हैं कि लोगों को इससे ऊब हो गई चुके है

लोग अपनी लाइफ में इतने बिजी हो गए हैं कि अक्सर उनका ध्यान किसी प्रोडक्ट के पोस्टर या ad पर नहीं जाता. अब ऐसे में आप अपने प्रोडक्ट की

मार्केटिंग कैसे करेंगे? यहाँ आता है पर्पल काऊ का कांसेप्ट. आपको अपने प्रोडक्ट को मार्केट में मौजूद तमाम ब्राउन cows के बीच एक पर्पल काऊ की तरह पेश करना होगा. आपको उसे इस तरह डिज़ाइन करना होगा कि लोग उसे देखे बिना ना रह सकें. एक्जाम्पल के लिए, एस्पिरिन की बात करते हैं, इस टेबलेट को बनाने वाली पहली कंपनी होना कितने कमाल की बात होगी ना, ये एक ऐसा प्रोडक्ट है

जिसकी बहुत से लोगों को ज़रुरत पड़ती है. ये सस्ती है, आसानी से मिल जाती है और असरदार भी है. इसे पहली बार manufacture करने वाले

लोगों ने काफी पैसा कमाया होगा.

लेकिन अगर आज आप एस्पिरिन के एक नए ब्रांड को बेचना चाहते हैं तो ये काफी मुश्किल होगा क्योंकि यहाँ पहले से ही एस्पिरिन बनाने वाले बहुत सारे brands मौजूद हैं जैसे advil, bayer, st joseph. यहाँ तक कि अगर आपका प्रोडक्ट इन सब से थोड़ा बेहतर भी होगा तो आप उसे कैसे

बेच पाएँगे?

अगर आपकी कंपनी के पास मार्केटिंग बजट है तो आप टीवी या ऑनलाइन ad पर पैसा खर्च कर सकते हैं, लेकिन इससे पहले आपको उन लोगों को

खोजने की ज़रूरत है जो आपका एस्पिरिन खरीदने के लिए तैयार हैं. और सच तो ये है कि हर कोई इसे नहीं खरीदेगा.ऐसे कितने लोग होंगे जो एस्पिरिन का नया brand ट्राय करना चाहेंगे? ज़्यादातर लोग उसी brand के साथ लॉयल रहना चाहेंगे जो उन्होंने बचपन से या लंबे समय से यूज़ किया

हो इन लोगों का उस brand पर भरोसा बन चुका है. अब वो एक नए brand में शिफ्ट होने का रिस्क क्यों लेंगे? ये मान कर चलिए कि ज्यादातर लोग आपका प्रोडक्ट नहीं खरीदेंगे, लेकिन ऐसा क्यों? हो सकता है कि उनके पास एक नए brand को देखने का समय ना हो, हो सकता है उनके पास उसे खरीदने के पैसे ना हों या हो सकता है कि उन्हें आपका प्रोडक्ट पसंद ना आए.और अंत में आप मार्केट से गायब हो जाएंगे. ये आजकल के मार्केटिंग की सच्चाई है. पुराने मार्केटिंग टेक्निक्स घिसे पिटे हो चुके हैं, इसलिए अब हमें पर्पल काऊ की ज़रुरत है.

द डेथ ऑफ़ द टीवी -इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स (The Death of the TV-Industrial Complex)

टीवी इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स 1950 से 1990 तक काफ़ी हावी रहा. सभी कम्पनीज भारी मात्रा में टीवी ad में पैसा लगाने लगी. आइए समझते हैं कि कैसे काम करता है. पहले एक बिजनेसमैन के रूप में आपको एक ऐसे मार्केट को खोजने की ज़रुरत है जो expand हो रहा हो और जहां कोई

brand या प्रोडक्ट छाया हुआ ना हो,

मार्केट ढूंढने के बाद आप अपना प्रोडक्ट बनाते हैं और टीवी पर जोरों शोरों से ad के द्वारा प्रमोट करते हैं, फिर लोग उसे देखेंगे जिससे आगे की प्रोसेस डिस्ट्रीब्यूशन और सेल शुरुआत होगी. क्योंकि टीवी ad की पहुंच बहुत लोगों तक होती है तो प्रोडक्ट की डिमांड हाई होगी जिससे ज्यादा प्रॉफिट होगा. अब इस पैसे से और ज्यादा टीवी ads खरीदे जाते हैं,ये ad लोगों को एक तरह की गारंटी देता है कि प्रोडक्ट हाई क्वालिटी का है. लोग ज्यादातर उन चीज़ों को खरीदते हैं जिसका उन्होंने ad देखा हुआ हो. जिन प्रोडक्ट्स की ad नहीं की जाती कस्टमर उससे अनजान ही रह जाते टीवी इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स ने Revlon, Quaker, Proctor Gamble के साथ साथ कई कंपनियों के लिए कमाल किया है. इन सभी कम्पनीज ने इस मीडियम का भरपूर और बखूबी फायदा उठाया और उन्हें advertisement पर किए गए खर्च से कई गुना ज़्यादा प्रॉफिट भी हुआ. इस मीडियम को करीब 50 साल तक खूब इस्तेमाल किया गया. लेकिन आज के समय में इसका असर फ़ीका पड़ने लगा है. बड़े brands अभी भी टीवी पर ad देने के लिए लाखों खर्च करते हैं लेकिन अब मार्केट पहले जैसा नहीं रहा. पहले का मार्केटिंग रूल था एक आर्डिनरी और सेफ़ प्रोडक्ट बनाओ और फ़िर ज़बरदस्त मार्केटिंग के साथ जोड़ कर उसे लोगों के सामने पेश करो”, लेकिन आज का मार्केटिंग रूल है कुछ लोगों की ज़रुरत को टारगेट कर के एक हटके और अलग प्रोडक्ट बनाओ जिसे वो सही में खरीदना चाहते हैं.

गेटिंग इन (Getting In)

क्रासिंग द चास्मकै ऑथर जेफ़ मूर ने डिप्यूज़न कर्व के बारे में बताया था. ये दिखाता है कि कैसे एक नया आईडिया या प्रोडक्ट लोगों के बीच मूव करता

है.ये एक bell कर्व की तरह लगताहै जिसके 5 हिस्से होते हैं,

लेफ्ट में पहला और सबसे छोटा हिस्सा होता है इनोवेटर्स का. उसके बगल में होता है adopter का. बीच में सबसे बड़ा हिस्सा होता है अर्ली और लेट मेजोरिटी का. राईट साइड में लास्ट हिस्सा होता है laggards का.

मूर का कहना है कि सभी तरह के प्रोडक्ट लांच के बाद इस पैटर्न को फॉलो करते हैं.जो सबसे पहले इसे खरीदते हैं वो इनोवेटर्स होते हैं, ऐसे लोग हमेशा प्रोडक्ट्स को खरीदने में दिलचस्पी रखते हैं. इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि उन्हें उस प्रोडक्ट की ज़रुरत है या नहीं, वो सिर्फ उसे खरीदना चाहते हैं. नए!

उसके बाद आते हैं अर्ली adopters. ऐसे लोग हमेशा नए करने को तैयार हो जाते हैं जिसके तरे में सकी स प्रडक्ट को यूज़ करने के लिए तैयार रहते हैं. यहाँ तक कि वो ऐसे brand पर ख् दोस्तों से नए प्रोडक्टस के बारे में सनते कभी नहीं सुना.

इसके बाद मार्केट का सबसे बड़ा हिस्सा अर्ली और लेट मेजोरिटी से बना है. हालांकि इन्हें नए प्रोडक्ट्स में ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती. ये उन आ रहे है. कभी कभार ये लोग अपने अर्ली adopter brands संतुष्ट होते हैं जिन्हें ये सालों : नेविन स ता कके सके काल सी पु करते नहीं है कि वो प्रोडक्ट खरीदेंे

टीवी की ad इंडस्ट्री ने मार्केट के सबसे बड़े हिस्से को टारगेट किया था. यही कारण है कि कोई भी कपनी ad पर इतना खर्च करती है, बड़े brands अर्ली और लेट मेजोरिटी को अपने प्रोडक्ट्स की ओर खींचते हैं, लेकिन पर्पल काऊ के कांसेप्ट में अली adopter का ध्यान खींचना ही काफ़ी होता वादातिर कस्टमर पहल से यूज़ किए जाने वाले प्रोडक्ट से खुश होते हैं. उन्हें जल्दी से कुछ नया पसंद नहीं आता. इसलिए बल्धिमानी বसी में है कि टारगेट करना चाहिए जो नया सामान खरीदना पसंद करते हैं, जिन्हें चंज और नए प्रोडक्ट के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद है.

आपकी कोशिश होनी चाहिए कि लोगों भी लोग बातों के जरिए या सोशल मीडिया पोस्ट के ज़रिए आपके प्रोडक्ट के बारे में सबको बताएँगे तो आपका प्रोडक्ट कर्व के दूसरे हिस्से में पहुँच जाएगा इसलिए आपको एक ऐसा प्रोडक्ट बनाने की जरुरत है जिसे अल्ली adopters खरीदने से को रोक ना सके., इसलिए आपका प्रोडक्ट फ्रेश, यूनिक और इनोवेटिव होना चाहिए लेकिन इसके साथ ही वो कुछ ऐसा होना चाहिए जो लोगों की जरुरत को पूरा कर सके, अब डिजिटल कैमरा को ही ले लीजिये. पहले इसे कंप्यूटर और गैजेट्स को पसंद करने वाले लोग ही खरीदते थे क्योंकि इसे यूज़ करना थोड़ा मुश्किल था और फोटो की क्वालिटी इतनी बढ़िया नहीं थी. फिर manufacturers ने अपने प्रोडक्ट को इम्प्रूव करना शुरू किया, उसे इस्तेमाल करना बताएं जब ये आसान बनाया. अब अर्ली adopters इसे इस्तेमाल कर के अपने दोस्तों को भी बताने लगे, इस वजह से डिजिटल कैमरा की सेल बढ़ने लगी. डिजिटल कैमरा चीप और इस्तेमाल करने में आसान हो गए थे और आखिरकार उसने फिल्म कैमरा की जगह ले ली. इस वजह से अब अली और लेट मेजोरिटी भी इसे पसंद करने लगे, अगर आपका प्रोडक्ट यूनिक हुआ तो वो बहुत जल्द अर्ली adopters को attract कर लेगा बशर्ते आपके प्रोडक्ट के फ़ायदे उन्हें साफ़ साफ़ दिखना चाहिए और वो बताने में आसान होना चाहिए ताकि वो दूसरों को भी आसानी से समझा सकें,

आइडियाजडेट सोड विन (Ideas That spread Win)

किसी भी नए प्रोडक्ट या brand की शुरुआत एक आईडिया से होती है. जो आईडिया जितना ज्यादा स्प्रेड होता है उतना ही ज़्यादा सबसेसफुल होता है और प्रॉफिट कमा कर देता है. सेथ गोडिन इसे आईडिया को वायरस कहते हैं. इस आईडिया के वायरस को फैलाने वालों को sneezers कहा जाता है. ये लोग अपने परिवार, दोस्तों और साथ काम करने वालों को उन प्रोडक्ट्स के बारे में बताते हैं जो उन्होंने नया नया ट्राय किया है. आप अर्ली

adopters को भी sneezers कह सकते हैं.

अब सवाल आता है कि कैसे एक ऐसा प्रोडक्ट क्रिएट किया जाए जो sneezers को तुरंत पसंद आ जाए? इसमें एक बात याद रखें कि ऐसा प्रोडक्ट ना बनाएं जो सबके लिए हो आम प्रोडक्ट बन कर रह जाएगा जो किसी का नहीं होगा. बड़े brands पहले की ये स्पॉट लें चुके हैं. इसके बजाय मार्केट के एक पर्टिकुलर सेगमेंट को टारगेट करें. उस सेगमेंट के लोगों के लिए प्रोडक्ट बनाएं. कोशिश करें कि अर्ली adopters को ऐसी चीज़ दें जो उन्हें सच में चाहिए या जो उनकी ज़रुरत को पूरा कर सके. आप उन्हें जितनी ज़्यादा वैल्यू

प्रोवाइड करेंगे वो उतने ही अच्छे से आपको response भी देंगे.अगर आपने उन्हें satisfy कर दिया तो येआपके प्रोडक्ट की माउथ पब्लिसिटी जरूर करेंगे बिलकुल डिजिटल कैमरा की तरह.आइए इसके कुछ एक्जाम्पल देखते हैं.

क्या आप जानते हैं कि फेमस बास्केटबॉल प्लेयर शकील ओनील कौन सा बाइक यूज़ करते हैं? उनकी बाइक को जेसी जेम्स ने डिजाइन किया है जो कस्टमर की पसंद के हिसाब से बड़ी बाइवस डिज़ाइन करते हैं. वो West Coast Choppersbrand के मालिक हैं. इनके बाइक्स की कीमत 1,00,0005 के आस पास होती है. जेसी की एक डिज़ाइन को बनाने में कई महीने लगते हैं. लेकिन क्लाइंट उस प्रीमियम क्वालिटी, पर्सनलाइज्ड और

हैंड मेंड बाइक को पाने के लिए इंतजार करने को भी तैयार होते हैं.

मरीसा मेयर गूगल की एम्प्लोई हैं.एक आदमी इनकी कोर टीम को रोज़ ईमेल भेज कर गूगल सर्च इंजन को criticise करता था लेकिन उसने कभी

अपना नाम नहीं बताया. उसके ईमेल में सिर्फ दो डिजिट का नंबर था और कुछ नहीं. मरीसा और दूसरों को समझने में कुछ वक्त लगा कि इन नंबर्स का क्या मतलब है.वो आदमी गूगल के होम पेज पर कितने वर्डस हूं उस बारे में बता रहा था. पेज पर जब ज़्यादा वर्ड्स होते जैसे कि 52 तो वो irritate

हो जाता.

लेकिन इस लड़के की वजह से गूगल के शुरूआती designers को बहुत मदद मिली.उन्होंने इंटरफ़ेस को बनाने में ज़्यादा disciplined होना

सीखा.वो सावधान हो गए कि वो बहुत सारे लिंक्स ना डालें. इसलिए क्रिटिसिज्म को पॉजिटिव तरीके से लें और अपने प्रोडक्ट को इम्प्रूव करने की सोच

रखें.

चीटिंग(Cheating)

कुछ कंपनियां ऐसी होती हैं जो पुराने मार्केटिंग स्ट्रेजी को यूज़ नहीं करती. ये एक यूनिक प्रोडक्ट या सर्विस मार्केट में लेकर आते हैं. ये advertisement पर ज्यादा खर्च भी नहीं करते फ़िर भी इनके प्रोडक्ट आसानी से बिक जाते हैं. अब इनके competitors को लगता है कि ये कंपनियां धोखा दे रही हैं, लेकिन ऐसा क्यों? क्योंकि जो बाकि के लोग कर रहे हैं ये वो नहीं करते लेकिन फ़िर भी आसानी से मार्केट पर कब्जा कर लेते

हैं. है. आइए कुछ एग्जांपल से इसे २ समझते हैं,

Starbucks की बात करें तो हॉवर्ड शुल्ट्ज़(Howard Schultz) कॉफ़ी जैसी चीज़ को एक्सपीियंस के उस लेवल पर ले गए कि आज

कॉफ़ी के बारे में सोचते हैं तो उनके जुबान पर Starbucks का नाम आता है. Amazon ने ऑनलाइन शॉपिंग में फ्री शिपिंग सर्विस और हज़ारों प्रोडक्टस की रेंज दे कर मार्केट में तहलका मचा दिया था, इसलिए इनके competitors हमेशा इनसे कुछ कदम पीछे ही रहेंगे.

जब लोग

Ducati हर किसी के लिए मोटरसाइकिल नहीं बनाते हैं वो सिर्फ उन खास क्लाइंट्स की ही डिमांड पूरी करते हैं जो टॉप लाइन मोटरसाइकिल के लिए

कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं. अगर ये सारी कम्पनीज इतनी ज़्यादा प्रॉफिटेबल हैं तो पर्पल काऊ के कांसेप्ट को क्यों ना अपनाएं?

केस स्टडी हाउ डचबॉय स्टर्ड अप द पेंट बिज़नेस (Case Study: How Dutch Boy Stirred Up the Paint Business) अब पेंट बिजनेस में कुछ नया कैसे किया जाए? तो एक डच लड़के ने इसका बड़ा सिंपल सा हल निकाला. उसने पेंट के कैन का डिज़ाइन ही बदल दिया. पहलेट के डिब्बों को खोलना, उसमें से पेंट निकालना और उसका ढक्कन बंद करना थोड़ा मुश्किल काम था क्योंकि वो स्टील के बने थे और उठाने में काफ़ी भारी भी थे. ये डिज़ाइन लंबे समय से चला आ रहा था और सबने सोचा पेंट के कैन ऐसे ही होते हैं.

लेकिन एक डच लड़के को एक कमाल का आईडिया आया. उसने सोचा क्यों ना पेंट केन को उठाना, उससे पेंट निकालना सब आसान बना दिया जाए. उसका मानना था कि कैन का डिज़ाइन भी प्रोडक्ट का एक अहम् हिस्सा होता है, उसने सोचा कि लोगों को बस अपनी दीवारें पेंट करने से मतलब है और अगर पेंट के केन को ऐसा बना दिया जाए जिसे कोई भी आसानी से उठा सके तो सारी प्रॉब्लम हल हो जाएगी. इसलिए उसने स्टील के बजाय प्लास्टिक कैन को यूज़ करने के बारे में सोचा जिसके साइड में उसे पकड़ने के लिए एक हैंडल भी होगा. उसने twist एंड pour कंटेनर का इस्तेमाल किया जिसे इस्तेमाल करना बहुत आसन था और वो काफ़ी हल्का भी था.इस वजह से उस डच लड़के के कैन की ज़बरदस्त सेल हुई.अब इसे मार्केटिंग सही दिशा में करना कहते हैं. इफेक्टिव मार्केटिंग उसे कहते हैं जब बिज़नेस ad को नहीं बल्कि प्रोडक्ट को ही बदल देते हैं. लेकिन उस डच लड़के ने प्रोडक्ट को नहीं सिर्फ उसकी पैकेजिंग को बदला था. इसी तरह क्या आप भी अपने प्रोडक्ट को redefine कर सकते हैं?

केस स्टडी: क्रिस्पीक्रिम(Case Study: Krispy Kreme) इस दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं – एक वो जो क्रिस्पीक्रिम के दीवाने हैं और ये मान लेते हैं कि सब इसके बारे में जानते हैं. दूसरे वो लोग जिन्होंने क्रिस्पी क्रिम का कभी नाम भी नहीं सुना,

क्रिस्प क्रिम एक अमेरिकन brand है जो अपने डोनट के लिए मशहूर है. इनके डोनट इतने लाजवाब हैं कि आप उंगलियाँ चाटते रह जाएँगे और ये एक फैक्ट है. लेकिन क्या सच में इसके लिए एक घंटा ड्राइव करके जाना वर्थ है? इसके चाहने वालों का तो यही मानना है कि बिलकुल वर्थ है. यही कारण है कि इस कंपनी ने इतनी huge सक्सेस देखी.

जब भी क्रिस्पी क्रिम किसी नए शहर में अपना जॉइंट लांच करते हैं तो वो अपनी प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए और लोगों को attract करने के लिए हज़ारों डोनट फ्री में बाँटते हैं.अब जिन्हें डोनट पसंद है या जो भी कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं वो वहाँ सबसे पहले पहुँचते हैं. अब ये sneezers इसके बारे में अपने दोस्तों को बताते

इसके बाद सेकंड फेज़ शुरू होता है.एक बार क्रिस्पी क्रिम किसी एरिया में अपना जॉइंट शुरू कर लेते हैं तो बो वहां के कॉफ़ी शॉप्स और गैस स्टेशन के साथ डील करते हैं. वो कॉफ़ी शॉप्स और गैस स्टेशन पर अपने डोनट को डिस्प्ले करते हैं ताकि वहाँ भी कस्टमर्स डोनट खरीद सके, इसका गोल हैइस प्रोडक्ट को लोगों तक पहुंचाना ताकि लोग इसे कहीं भी खरीद सकें तो ये क्रिस्पी क्रिम की स्ट्रेटेजी है, sneezers को attract कर के शुरुआत करना और उन लोगों तक प्रोडक्ट पहुंचाना जो ज़्यादा दूर ट्रेवल नहीं करना चाहते हैं.यहाँ इस बात को समझना ज़रूरी है कि ये स्ट्रेटेजी ब्राउनी या किसी और प्रोडक्ट के साथ काम नहीं करेगी क्योंकि कंपनी ने लोगों का डोनट के लिए जो क्रेज़ है उसे टारगेट किया था, क्रिस्पी क्रिम ने मार्केट में एक सेगमेंट का पता लगाया कि लोगों को क्या चाहिए और उसके बाद एक कमाल का प्रोडक्ट बनाया. अगर क्रिस्पी क्रिम ने पहले प्रोडक्ट बनाकर फिर टारगेट कस्टमर ढूँढा होता तो वो सक्सेसफुल नहीं होते.

व्हाट डज़ हॉवर्ड नो? (What does Howard know?)

Starbucks अपनी बेहतरीन कॉफी के लिए जाना जाता है. इसका कारण है उनके फाउंडर, Howard जिन्हें कॉफ़ी बेहद पसंद है.जो लोग सुबह कॉफ़ी नहीं पीते हॉवर्ड उन्हें “pre-caffeinated” बुलाते हैं. हॉवर्ड कोफ़ी के बारे में ज्यादा जानने और उसे स्टडी करने के लिए कई महीनों तक इटली में रहे थे.

तो एक यूनिक और हट के प्रोडक्ट कैसे बनता है? ऐसा देखा गया है कि अक्सर ऐसे प्रोडक्ट्स बनाने वालों का पैशन ही वो प्रोडक्ट होता है जैसे इस केस में हॉवर्ड को कॉफ़ी बहुत पसंद थी तो उन्होंने ऐसी कॉफ़ी जॉइंट बनाई जिसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता.अब Starbucks की चॉकलेट वहाँ की कॉफ़ी जितनी लाजवाब नहीं है. चॉकलेट हॉवर्ड का पैशन नहीं है वो तो सिर्फ़ मेनू कार्ड का एक हिस्सा है. अब खुद से पूछिए कि क्या आप बस सर्वाइव करने के लिए कुछ कर रहे हैं या बो कर रहे हैं जो आपका पैशन है? पर्पल काऊ के बारे में सबसे पहला सवाल यही पूछा जाता है कि आपको कैसे पता चलेगा कि ये प्रोडक्ट यूनिक होगा? ये सवाल उन लोगों से आता है जो अपने प्रोडक्ट के लेकर इतने पैशनेट नहीं होते. श्रैफेनबर्गर चॉकलेट के क्रिएटर जॉन श्रैफ़ेनबर्गर (John Scharffenberger) बड़ी आसानी से एक हाई क्वालिटी चॉकलेट और आर्डिनरी चॉकलेट में फ़र्क बता सकते हैं.

सेथ गोडिन पहले बुक पैकेजिंग का बिज़नेस करते थे. दो अपने क्लाइंट से अक्सर पूछते, “आप बुक स्टोर में कितनी बार जाते हैं”? ऐसा इसलिए क्योंकि जो लोग बुक्स खरीदना पसंद करते हैं उन्हें पता होगा कि किस तरह की बुक्स ज्यादा बिकती हैं.

पेटागोनिया एक कंपनी है जो स्पोर्ट्स वियर या एडवेंचर ट्रिप पर पहने जाने वाले कपड़े बनाती है. उनका पूरा स्टाफ एडवेंचर लवर हैं. जब भी बीच पर लहरें ऊँची होती हैं तो वो एडवेंचर स्पोर्ट का मज़ा लेने निकल जाते हैं और अक्सर तब उन्हें एक यूनिक प्रोडक्ट बनाने का आईडिया भी आता है. अब इन लोगों को उनसे compare करें जो General Mills या Keloggs में काम करते हैं बहुत कम लोग होंगे जो cereal या बेंकिंग प्रोडक्ट्स में दिलचस्पी रखते होंगे, वो बस वहाँ अपना प्रोडक्ट बेचने की कोशिश करते हैं.

क्या होगा अगर आप कुछ ऐसा बनाते हैं जिसमें आपको ज़्यादा इंटरेस्ट नहीं है? इसका solution ये है कि आपको उन लोगों के दिमाग में झांकना होगा जो उस प्रोडक्ट को पसंद करते हैं.

केस स्टडी : द बेस्ट बेकर इन द वर्ल्ड(Case Study: The Best Baker in the World) लायोनेल पोइलेन एक फ्रेंच कर थे. उनके पिता के बाद उन्होंने अपने फॅमिली बिज़नेस को संभाला, लेकिन लायोनेल सारा दिन बेकरी में बैठ कर सिर्फ थेक नहीं करते थे उन्होंने कुछ अलग ही कमाल किया था.उन्होंने हज़ारों फ्रेंच बेकर्स का इंटरव्यू लिया और उनसे ब्रेड बनाने के कई टेक्निक्स को सीखा. वो पूरे फ्रांस में आर्गेनिक आटा यूज करने वाले पहले इंसान धे.लायोनेल ने दुनिया भर से कई ब्रेड बनाने के बुक्स को भी पढ़ा.

उनका फेमस पोइलेन ब्रेड सिर्फ चार चीजों से बना था जो थे आटा, खमीर, सी साल्ट और पानी, लायोनेल उसे हाथ से बनाते और लकड़ी से बने ओवन में बेक करते, तब से लेकर आज तक उस बेकरी में इसी रेसिपी को फॉलो किया जा रहा था. लायोनेल ने कभी प्रोफेशनल बेकर्स को काम पर नहीं रखा. उनका कहना था उनमें कई बुरी आदतें थीं जिन्हें छुड़ाना मुश्किल था इसलिए वो सिर्फ कम उम्र के लोगों को काम पर रखते थे. फ्रेंच रेस्टोरेंट्स ने पहले पोइलेन के ब्रेड को रिजेक्ट कर दिया था.उन्हें लगता था कि लायोनेल की रेसिपी बहुत अलग और अजीब धी. लेकिन वो इस बात से इनकार नहीं कर सकते थे कि लायोनेल के ब्रेड बहुत हाई क्वालिटी के थे. आखिरकार लायोनेल रेस्टोरेंट के ओनर्स को मनाने में कामयाब रहे और रेस्टोरेंट उनके ब्रेड को सर्व करने लगा.

में आज मंज़र ये है कि पेरिस के हर रेस्टोरेंट में पोइलेन का ब्रेड सर्व किया जाता है. दुनिया भर से लोग लायोनेल कासिग्नेचर ब्रेड खरीदने आते हैं. उनके ब्रेड बड़े औरगोल होते हैं और उन पर पोइलेन के नाम का पहला अक्षर “P” बना हुआ होता है. पोइलेन के ब्रेड को बाहर के कई देशों में भेजा जाता है, ये ब्रेड एक ग्लोबल हिट प्रोडक्ट बन गया है. अपोलोनिया पोइलेन, लायोनेल की बेटी हैं जो अब कंपनी को संभालती हैं. ये काम इनकी तीन पीढी करती आ रही है. पोइलेन का टोटल सेल हर साल 10 मिलियन से ज़्यादा है.

तो हम इस कहानी से क्या सीख सकते हैं? यही कि अलग होने से डरना नहीं चाहिए. अगर आपने मार्केंट को स्टडी करके अपना एक यूनिक प्रोडक्ट बनाया है और आपको यकीन है कि आपके टारगेट कस्टमर्स को वो पसंद आएगा तो वो ज़रूर ट्राय करने के लायक है.

पोइलेन ब्रेड पर्पल काऊ का परफेक्ट एकताम्पल है. फ्रांस में baguette ब्रेड कॉमन हैं, वो आर्डिनरी और बोरिंग है बिलकुल एक ब्राउन काऊ की तरह ह.तो वहीं पोइलेन के ब्रेड आगेनिक, हैंड मेड और लकड़ी के ओवन में बनाए गए थे जिसने उसकी क्वालिटी और taste को एक नए लेवल पर पहुंचा दिया था और वो एक पर्पल काऊ प्रोडक्ट बन गया जिसने पूरे मार्केट पर कब्ज़ा कर लिया था.

कन्क्लू ज़न (Conclusion)

तोइस बुक ने हमें एक नए कांसेप्ट पर्पल काऊ के बारे में सिखाया जिसमें आपने मार्केटिंग की एक नई technique के बारे में सीखा कि सबके लिए नहीं बल्कि कुछ लोगों को टारगेट कर के एक यूनिक प्रोडक्ट बनाना चाहिए.

आपने मूर के कर्म के बारे में भी जाना. आपने अली adopters और sneezers के बारे में जाना. आपकी सक्सेस में सबसे बड़ा हाथ उनका ही होता है.

आपने डच बॉय, Starbucks, पोइलेन ब्रेड की सक्सेस स्टोरी के बारे में भी जाना. इफेक्टिव मार्केटिंग की शुरुआत प्रोडक्ट डिज़ाइन से होती है. पहले प्रोडक्ट बनाकर बाद में अपना टारगेट सेगमेंट ढूँढने की गलती ना करें. पहले अपना टारगेट मार्केट खोजें उसके बाद एक फ्रेश और यूनिक प्रोडक्ट बनाएं.

तो आज के इस मॉडर्न मार्केट में सक्सेस पाने के सारे राज़ आप जान गए हैं तो अपनी क्रिएटिविटी का इस्तेमाल कर कोई हटके प्रोडक्ट बनाएं, अगर आपको एक्स्ट्राऑर्डिनरी सक्सेस चाहिए तो आर्डिनरी सोच से काम नहीं चलेगा, आपको थोड़ा मार्केट रिसर्च करने की और अपने टारगेट कस्टमर के ज़रूरतों को समझने की जरुरत है.

किसी ने बड़ी अच्छी बात कही है कि मंज़िल तो मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं”. इसलिए अलग होने से ना घबराएं, कभी कभी अलग होना आपको खास बना देता है,अगर आपको लगता है कि आप कोई ऐसा प्रोडक्ट या सर्विस ऑफर कर सकते हैं जो कस्टमर की लाइफ में ज्यादा वैल्यू जोड़ देगा तो बेशक उसे आज़माने से पीछे ना हटें.

और सबसे ज़रूरी बात, क्या आपने गौर किया कि इस बुक का नाम “पर्पल काऊ” इतना यूनिक है कि इसने एक बार तो आपका ध्यान अपनी और ज़रूर खींचा होगा, आप सोचने पर मजबूर हुए होंगे कि आखिर ये किस बारे में हैं इसे कहते हैं इफेक्टिव मार्केटिंग,

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