MANTRA by Munshi premchand.

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शाम का वक्त था। डॉक्टर चड्डा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। उनकी गाड़ी दरवाजे के सामने खड़ी थी कि तभी दो लोग एक पालकी उठाकार लाते हुए दिखे। पालकी के पीछे-पीछे एक बूढा लाठी टेकता हुआ आ रहा था। पालकी अस्पताल के सामने आकर रुक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे दरवाजे पर लगे परदे से अंदर झाँका। ऐसी साफ-सुथरी जमीन पर पैर रखते हुए उसे डर था कि कहीं कोई डांट ना दे। वहां डाक्टर साहब को खड़े देखने के बाद भी उसकी कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई डाक्टर साहब परदे के अंदर से रौबदार आवाज़ में बोले” कौन है? क्या चाहिए?

बूढ़े ने उनके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा” साहब मै बड़ा गरीब आदमी हूँ। मेरा बेटा कई दिनों से बीमार है। डाक्टर साहब ने सिगार जलाया कल सुबह आना, इस समय हम मरीज़ नहीं देखते। बुढ़ा अपने घुटनों के बल जमीन पर सिर रख के बैठ गया और बोला” बड़ी मेहरबानी होगी आपकी साहब, मेरा बेटा मर जाएगा, बस एक बार देख लीजिए, चार दिन से उसने आँखे भी नहीं खोली है

और बोले”

डाक्टर चड्ढा ने अपनी घड़ी पर नजर डाली। सिर्फ दस मिनट और बचे थे। उन्होंने गोल्फ स्टिक उठाते हुए कहा कल सुबह आओ, ये हमारे खेलने का बूढ़े ने अपनी पगड़ी उतार कर दरवाजे पर रख दी और रोते हुए बोला” साहब बस एक बार देख लीजिए। बस, एक बार! मेरा बेटा मर जाएगा साहब, सात बेटो में से यही एक बचा है। इसके बिना हम दोनों मियां-बीवी रो-रोकर मर जाएंगे. आपका बड़ा एहसान होगा साहब, भगवान् आपका करेगा।

समय है”

अस्पताल में ऐसे गंवार देहाती रोज़ ही आते थे और डॉक्टर साहब इन लोगो की आदत से खूब वाकिफ थे । इन लोगों को कितना भी समझा लो, इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था, बस अपनी जिद पकड़कर बैठ जाते थे। डॉक्टर साहब धीरे से पर्दा उठाकर बाहर निकले और अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगे ।

उनके पीछे-पीछे बूढ़ा ये कहकर भागने लगा” साहब आपका बड़ा एहसान होगा। हम पर रहम कीजिए. मैं बड़ा दुखी आदमी हूँ, मेरा कोई नहीं है इस पर डॉक्टर साहब ने एक बार भी उसकी तरफ मुड़कर नहीं देखा। गाड़ी में बैठकर बोले” कल सुबह जाना। और उनकी गाड़ी चल पड़ी। बूढा कुछ देर तक यूं ही बेजान पत्थर की तरह गाडी को जाते देखता रहा उसे यकीन नहीं हो रहा था कि दुनिया में ऐसे दुनिया में लोग भी हो सकते है जो अपने मजे और खेल-तमाशे के लिए किसी की जान तक की परवाह नहीं करते। इन तमीज़दार लोगो की दुनिया इतनी बेदर्द, इतनी पत्थरदिल हो सकती ये उसे आज पता चला बूढ़ा उन पुराने जमाने के लोगों में से था जो किसी घर में लगी आग को बुझाने, मुर्दे को कंधा देने, लड़ाई-झगड़ा सुलझाने और किसी का भला करने के लिए हमेशा तैयार रहता था

जब तक गाड़ी दिखती रही, बुढ़ा एकटक उसे देखता रहा। शायद उसे अभी भी डॉक्टर के वापस लौट आने की उम्मीद थी। पर जब गाड़ी दूर चली गई तो उसने दोनों आदमियों से पालकी उठाने को बोला। पालकी जहाँ से आई थी, वही वापस चली गई। वो बूढ़ा हर तरफ से नाउम्मीद होकर डॉक्टर चड्डा के पास आया था। उसने डॉक्टर साहब की बड़ी तारीफ सुनी थी पर यहाँ भी उसे नाउम्मीदी ही हाथ लगी तो फिर वो किसी और डॉक्टर के पास नहीं गया। उसने अपनी किस्मत से हार मान ली।

उसी रात बूढे का सात साल का हंसता खेलता बेटा चल बसा। बूढ़े और बुढ़िया के जीने का बस वही सहारा था जो अब हमेशा-हमेशा के लिए उन्हें छोड़कर जा चुका था। घर के चिराग की मौत ने उन दोनों के जीवन की रौशनी छीन ली थी। मासूम बेटे की मौत से बूढ़े और बुढ़िया इस कदर सदमे में थे कि जिंदा लाश बनकर रह गए।

इस घटना को कई साल गुजर गये। वक्त के साथ डॉक्टर चडदा ने खुब पैसा और शोहरत हासिल की। बढ़ती उम्र में भी दो अपनी सेहत का बड़ा खयाल रखते थे। उनकी उम्र पचास के करीब हो चुकी थी पर उनकी चुस्ती-फुर्ती नौजवानो को भी मात करती थी। डॉक्टर साहब वक्त के बड़े पाबन्द थे, वक्त से खाते, वक्त से सोते और मजाल है कि वक्त की पाबंदी में ज़रा सी भी ढील हो जाए। अवसर लोग सेहत की फ़िक्र तब करते है जब वो बीमार हो जाते है पर डॉक्टर साहब उन लोगो में से थे जिनके लिए पहले सेहत बाकी चीज़े बाद में ।

साथ ही वो ईलाज और परहेज के फायदे भी जानते थे। उनके दो बच्चे थे, एक बेटा और एक बेटी और दोनों बच्चे उनकी तरह नियम-कायदों के पावंद थे। यही नहीं डॉक्टर साहब की पत्नी श्रीमती चढ़ा दो बच्चो की माँ होने पर भी जवान लगती थी। उनकी बेटी की शादी हो चुकी थी। बेटा कालेज में पढ़ता था और माँ-बाप का लाड़ला था। वो एक खूबसूरत और शरीफ लड़का था, कालेज की शान, 1.

यार-दोस्तों में मशहूर।

उसका आज बीसवा जन्मदिन था। शाम हो चुकी थी। हरी घास पर लोगो के बैठने के लिए कुर्सियां लगाई गई थी। एक तरफ शहर के नामी-गिरामी अमीर लोग और दूसरी तरफ कालेज के लड़के-लड़कियां बैठकर खाना खा रहे थे

बिजली के रंग-बिरंगे तारो से उनका बगीचा जगमगा रहा था। कुछ हंसी-मजाक और ननोरंजन का भी इंतजाम था एक छोटा सा ड्रामा खेलने की तैयारी हो रही थी। ड्रामा खुद डॉक्टर साहब के बेटे कैलाशनाथ ने लिखा था। इस ड्रामे का हीरो भी वही था। इस वक्त वो एक रेशम का कुर्ता पहने नंगे पाँव इधर से उधर भागता अपने दोस्तों की खातिरदारी में लगा हुआ था। कोई आवाज़ देता – “कैलाश, जरा यहाँ आना” तो कोई उधर से बुलाता-“कैलाश यार उधर ही रहोंगे या यहाँ भी आओगे?” आज उसके जन्मदिन में भौके पर सब उसे छेड़ रहे थे, उससे हंसी मजाक कर रहे थे। बेचारे को दम लेने की भी फुर्सत नहीं थी। तभी एक खूबसूरत लड़की उसके पास आई और पूछा” कैलाश तुम्हारे सांप कहाँ है, जरा मुझे भी तो दिखाओ”

कैलाश ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा” मृणालिनी, इस वक्त माफ़ करो, कल दिखा दूंगा” पर मृणालिनी नहीं मानी, जिद करती हुई बोली” जी नहीं, आज ही दिखाने पड़ेंगे, मे नहीं मानने वाली । तुम रोज़ कल-कल करके मुझे टाल देते हो”

मृणालिनी और कैलाश कॉलेज में साथ पढ़ते थे और एक-दुसरे से प्यार भी करते थे। कैलाश को सांप पालने, उनसे खेलने और उन्हें नचाने का शौक था। उसके पास कई किस्म के सांप थे। वो उन सापो की फितरत और उनके स्वभाव को जानने के लिए उन्हें आजमाता रहता था। कुछ दिन पहले उसने अपने कॉलेज में सांपो के ऊपर एक भाषण दिया था और सबके सामने सापो को नचा के भी दिखाया। बायोलोजी के बड़े-बड़े प्रोफेसर भी उसका ये भाषण सुनकर हैरान रह गए थे दरअसल कैलाश ने सापो को वश में करने और उन्हें पालतू बनाने का हुनर एक बड़े संपेरे से सीखा था। साथ ही उसे ऐसी जड़ी-बूटियाँ जमा करने का भी शौक था जो सांप के इसने के ईलाज में काम आती है। अगर उसे कहीं से पता भी चल जाता कि किसी आदमी के पास कोई खास किस्म की जड़ी बूटी है, तो फिर उसे पाए बिना उसे चैन नहीं मिलता था क था जिसमें वो बस उसका यही एक शौक था।

1.

वो अब तक हजारों रूपये उड़ा चूका था। मृणालिनी कई बार उससे मिलने घर आ चुकी थी पर कैलाश ने उसे एक बार भी अपने सांप नहीं दिखाए थे पर आज उसके जन्मदिन पर ना जाने क्यों उस पर जिद सवार हो गई थी। ये कहना मुश्किल था कि उसे सच में

साप देखने थे या फिर सबके सामने वो केलाश पर अपना हक जताना चाहती थी। उसे इस बात का ज़रा भी अंदाजा नही था कि कैलाश जहाँ सांपो को रखता है, उस छोटी सी कोठरी में लोगो की भीड़ जुट जायेगी तो साप बेवक्त छेड़े

जाने से परेशान हासत हजार इसमें खतरा भी काफी था

कैलाश इस बात को समझता था इसलिए उसने मृणालिनी को समझाते हुए कहा नहीं, आज नहीं पर कल जरूर दिखा दूंगा और इस वक्त अच्छे से दिखा भी नहीं पाऊंगा, देखो ना कितनी भीड़ हो जायेगी।

तभी उसके दोस्तों में किसी ने कैलाश को चिढाया’ अरे दिखा क्यों नही देते, इतनी सी बात के लिए टाल-मटोल कर रहे हो। मृणालिनी बिल्कुल मत

मानना । आज तो कैलाश को सांप दिखाने ही पड़ेंगे। मिस गोविंद, हर्गिज न मानना। देखें कैसे नहीं दिखाते”! एक दूसरे दोस्त ने और छेडा” मिस मृणालिनी (मिस गोविंदा इतनी सीधी और भोली है तभी तुम इतने नखरे दिखा रहे हो, कोई और लड़की होती तो इस बात पर बवाल खड़ा कर देती। तीसरे दोस्त ने मजाज उड़ाते हुए कहा” अरे बवाल क्या खड़ा करती, बात करना ही छोड़ देती। ये कोई बात है भला,

और ऊपर से बोलते हो कि मृणालिनी के लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है” मृणालिनी ने जब देखा कि कैलाश के यार-दोस्त इस बात को कुछ ज्यादा ही तूल दे रहे हे तो उसने कहा आप लोगों को मेरी तरफदारी करने की जरूरत नहीं है। मुझे नहीं देखने कोई सांप-वांप, चलो बात खत्म हुई। में इस वक्त सांपो का तमाशा नहीं देखना चाहती, चलो छुट्टी हुई कैलाश के दोस्त जोर-जोर से हंसने लगे। उनमें से एक ने बोला” देखना तो तुम चाहती हो पर कोई दिखाए तो देखना तो आप सब कुछ चाहे, पर दिखायें भी तो?”

कैलाश ने मृणालिनी के उतरे हुए चेहरे को देखा तो समझ गया कि उसकी बात का मृणालिनी को बुरा लग गया है। जैसे ही खाना-पीना खत्म हुआ और गाना शुरू हुआ, उसने मृणालिनी और बाकी दोस्तों को सॉपों की कोठरी के सामने ले जाकर बीन बजाना शुरू किया। फिर एक-एक डब्बा खोलकर उसमे से एक-एक सांप बाहर निकाला। वाह! कमाल की बात थी, ऐसा लगता था कि वो सांप नहीं है बल्कि उसके पालतू कीड़े है जो उसके इशारों पर नाचते थे, उसकी एक-एक बात समझते थे । कैलाश कभी किसी को उठा कर गले में डाल रहा था तो कभी किसी को अपने हाथ में लपेट रहा था। मृणालिनी को अब थोडा डर लग रहा था, वो बार-बार कैलाश को बोल रही थी” गले में मत डालो, बस दूर से दिखा दो। बस, थोडा सा नचा दो”। केलाश के गले में सांप लिपटे देख कर उसकी जान निकल रही थी थी। अब वो सच में पछता रही थी कि मैंने बेकार में इतनी जिद की पर कैलाश उसकी एक नहीं सुन रहा था। अपनी प्रेमिका के सामने ऐसा हुनर दिखाने का मौका वो भला क्यों छोड़ता?

पी एक दोस्त बोला

इनके दांत तोड़ दिए होंगे

कैलाश हस कर बोला” दांत तो मदारी और सपेरे तोड़ते है। इनमें से किसी के भी दांत नही तोड़े है, बोलो तो दिखा दूं?” और ये कहते हुए उसने एक काले रंग के सांप को पकड़ लिया और बोला मेरे पास सबसे जहरीला और खतरनाक सांप यही है इसके ज़हर का ईलाज़ नहीं, अगर काट ले तो

इसान ज्यादा देर जिंदा नहीं रह सकता। दिखाऊँ क्या इसके दांत? अब तो मृणालिनी बेहद डर गई, उसने कैलाश का हाथ पकड़ा और बोली

नहीं, नहीं कैलाश इसे छोड़ दो। मै तुम्हारे पैर पडती हूँ।

पर कैलाश के दोस्त भी कुछ कम नहीं थे, एक ने चुटकी लेते हुए कहा” मुझे तो यकीन नही होता, पर खैर तुम कहते हो तो मान लेते है”।

कैलाश को ताव आ गया, अपनी बात सच साबित करने के लिए उसने साप की गर्दन पकड़ कर कहा”ये लो, अपनी आँखों से देख लो तब यकीन आएगा। अगर दांत तोडकर वश में किया तो क्या फायदा? सांप बड़ा समझदार जानवर होता है, अगर उसे लगे कि इस इंसान से मुझे कोई खतरा नहीं

है तो वो उसे कभी नहीं काटेगा “। मृणालिनी को एहसास हो चुका था कि इस वक्त कैलाश पर भूत सवार है और अब वो किसी की नहीं सुनने वाला. वो बात बदलने की नियत से बोली”

अच्छा चलो ये तमाशा यही खत्म करो। देखो, गाना भी शुरू हो गया है, चलो सब यहाँ से। आज तो मै भी कुछ सुनाउंगी” और ये कहते हुए उसने कैलाश के कंधे पकड़ कर उसे वहां से चलने का इशारा किया और कोठरी से निकल गई पर कैलाश अपने दोस्तों का शक दूर करके ही दम लेना चाहता था। उसने उस काले जहरीले नाग की गर्दन इतनी जोर से दबाई कि सांप का मुंह लाल हो गया और उसके बदन की सारी नसे तन गई। सांप ने कैलाश का ऐसा बर्ताव आज तक नहीं देखा था।

आखिर था तो वो जानवर ही, उसे समझ नहीं आया कि उसे पालने वाला इंसान आज उससे क्या चाहता है। उसे लगा शायद ये मुझे मारना चाहता है तो अपनी जान बचाने के लिए वो भी जवाबी हमले के लिए तैयार हो गया। कैलाश ने उसकी गर्दन खूब जोर से दबा कर सबको उसके ज़हरीले दांत दिखा दिए और बोला” जिसको शक है, आकर देख ले। ये रहे इसके दात, यकीन आया कि अभी भी कोई शक है ?” दोस्तों ने पास जाकर दांत देखे और हैरान रह गए शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी। दोस्तों को अपनी बात का यकीन दिलाकर कैलाश को चैन आ आया। उसने सांप की गर्दन ढीली की और उसे जमीन पर रखना चाहा पर वो काला नाग तो गुस्से से फुफकार रहा था। गर्दन पर पकड़ ढीली पड़ते ही उसने कैलाश की अंगुली पर जोर से काट लिया और आनन-फानन में वहां से भाग गया।

कैलाश की अंगुली से खून की बूंदे टपकने लगी उसने अपनी अंगुली जोर से दबाई और अपने कमरे की तरफ भागा। वहां मेज़ की दराज में एक जड़ी-बूटी रखी थी जिसे पीस कर लगाने से जहर का असर खत्म हो जाता था। अब तक उसके यार-दौस्तों में खबर फ़ैल गई, बाहर दावत में आए लोगों तक भी बात पहुँच चुकी थी। डॉक्टर साहब घबरा कर दौड़े हुए आये। उसकी अंगुली कस के बाँध दी गई और जड़ी-बूटी पीसने के लिए दे दी गई।

डॉक्टर साहब इन देसी टोटको को नहीं मानते थे ।

वो अंगुली पर सांप के डसे हिस्से को चाकू से काटना चाहते थे पर कैलाश को जड़ी-बूटी पर पूरा यकीन था। मृणालिनी प्यानो बजा रही थी, उसने जब सुना तो भागी-भागी आई और कैलाश की अंगुली से टपकते खून को अपने रूमाल से पोछने लगी। जड़ी-बूटी पीसी जा रही थी पर उसी पल कैलाश की आँखे झपकने लगी, होंठ पीले पड़ने लगे। वो ठीक से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था। सारे के सारे मेहमान कमरे में जमा हो गये। लोग तरह-तरह की बाते कर रहे थे। इतने में जड़ी-बूटी कर लाई गई। मृणालिनी ने कैलाश की अंगुली में बूटी का लेप लगा दिया पर एक मिनट में ही कैलाश की आँखे बंद होने लगी, वो लेट गया और पंखा झलने का ईशारा किया। उसकी माँ ने आकर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया। उसके आगे टेबल फैन चला दिया गया

डॉक्टर साहब ने उसके पास झुक कर पूछा” केलाश बेटा, कैसी तबियत है?” केलाश ने कुछ जवाब नहीं दिया, बस धीरे से हाथ उठा दिया। मृणालिनी ने हुए पूछा क्या ये जड़ी असर नहीं करेगी ?” डॉक्टर साहब अपना सिर पकड़ कर बैठ गए और बोले” क्या कहूं, मैं इसकी बातो में आ गया अब लगाने से भी कुछ तो चाकू लगाने नहीं होगा “। करीब आधा घंटा यूं ही गुज़र गया। कैलाश की हालत हर पल बिगड़ती जा रही थी। यहाँ तक कि अब उसकी आँखे पथरा गई थी, हाथ-पाँव ठंडे पड़

चुके थे, चेहरा सफेद पड़ चूका था

। और नब्ज़ नहीं मिल रही थी। उसकी मौत बेहद करीब थी। पूरे घर में कोहराम मच गया। मृणालिनी अपना सिर

पीटने लगी, माँ पछाड़े खाती गिर रही थी। डॉक्टर चड़ा को उनके दोस्तों ने पकड़ लिया नहीं तो वो उसी चाकू से अपना गला काट लेते तभी एक

आदमी बोला” कोई मंत्र फूकने वाला मिले तो शायद जान बच जाए”।

एक मुस्लिम आदमी ने हाँ में हाँ मिलाई” सही कहा, अरे कब्र में पड़ा मुर्दा जिंदा हो जाता है झाड़-फुंक से कई बार ऐसे-ऐसे कमाल हुए है”। डाक्टर चड्ढा बोले, “मेरी अक्ल पर पत्थर पड़ गया था कि इसकी बातों में आ गया। अगर चाकू लगा देता तो ये नौबत ही नहीं आती। हजार बार समझाया था बेटा, सांप पालना खतरनाक हो सकता, पर मेरी एक नही सुनी इसने ! अब बुलाओ, किसी झाड़-फूंक वाले को ही बुलाओ। चाहे मेरा सब कुछ लेले , अपनी सारी जायदाद उसके पैरों में रख दूंगा, एक लंगोट बांध कर घर से निकल जाऊँगा बस एक बार मेरा बेटा, मेरा कैलाश उठ जाए।

भगवान के लिए किसी को बुला

एक आदमी किसी झाड़-फूंक वाले को जानता था। वो दौडकर गया और उसे बुला लाया, पर जब झाड़-फूंक चाले ने कैलाश का चेहरा देखा तो मंत्र

चलाने की उसकी हिम्मत नहीं हुई।

वो बोला” अब क्या फायदा, साहब? जो होना था, हो चुका”। अरे बेवकूफ, यह क्यों नहीं कहता कि जो कुछ न होना था, वह कहाँ हुआ? अभी माँ-बाप ने बेटे का सेहरा कहाँ देखा ? अभी मृणालिनी के हाथों में

मेहँदी कहाँ रची, अभी वो दुल्हन कहाँ बनी ? अभी क्या उनके सारे सपने पूरे हो गए? अभी क्या उनकी जिंदगी में बहार आई ? नहीं, अभी तो कुछ भी नहीं हुआ पर हाँ जो नहीं होना था, वो हो गया”। वही हरा-भरा बगीचा था, वही खूबसूरत चांदनी रात थी, वही यार दोस्तों की महफ़िल थी, दही दिल बहलाने के साजो-सामान थे पर जहाँ पहले हंसने-खिलखिलाने की आवाज़े थी वहां अब मौत का हाहाकार मचा था, रोने और चिल्लाने का शोर था ।

शहर से कई मील दूर एक छोटे से घर में एक बूढ़ा और बुढ़िया सर्दी की रात में जलती हुई अंगीठी के सामने बैठे थे। बूढ़ा नारियल का पानी पी रहा था और बीच-बीच में खास रहा था। बुढ़िया अपने सिर दोनों घुटनों पर रखे जलती हुई आग को टकटकी लगाए देख रही थी। पास ही एक मिट्टी के तेल का लैंप जल रहा था। एक मिट्टी के तेल की कुम्मी तख्ते पर जल रही थी। घर में ना चारपाई थी, ना ताकिए और ना ही बिछाने के लिए चादर। एक

कोने पर थोड़ी सी सूखी घास बिछी थी। एक कोने में चूल्हा था। बुढ़िया सारा दिन गोबर के ऊपले और सूखी लकड़ियाँ जमा करती और बूढ़ा रस्सीयाँ बनाकर बाज़ार में बेच आता था यही उनका रोज़गार था। दोनों

किसी से घुलते-मिलते नहीं थे, किसी ने उन्हें ना तो कभी रोते देखा था, ना हसंते बस मौत के इंतज़ार में किसी तरह जिए जा रहे थे। वैसे भी जब तभी एक आदमी ने आकर उनके दरवाजे पर आवाज़ लगाई भगत, भगत, सो गए क्या ? ज़रा दरवाजा खोलो!” *हाँ, हाँ, वहाँ बहुत हल्ला मचा हुआ है. जाना चाहते हो तो जाओ, खूब पैसा मिलेगा!” उस आदमी ने कहा।

मौत दरवाजे पर खड़ी हो मात बार खाडी ही तो हसने और रोने की किसे फुर्सत ? बुढ़िया ने बूढ़े से पूछा” कल के लिए रस्सी बनाने की धास तो है नही, काम क्या करोंगे?

बूढा बोला” जा कर झगडू साह से दस सेर उधार ले आऊंगा?

“पर उसके पहले के पैसे तो दिए नहीं, और उधार कैसे दे देगा ? बुढ़िया ने फिर पूछा बुढा बोला, “नहीं देगा तो ना सही, घास तो है ना। दोपहर तक क्या दो रूपये की भी नहीं काटगा?

भगत ने उठकर दरवाजा खोला । एक आदमी अंदर आकर बोला” कुछ सुना तुमने, डॉक्टर चड़ा के बेटे को सांप ने काट लिया है। भगत चौंक कर बोला” डॉक्टर चड्डा के बेटे को? वही डॉक्टर चडा ना जो छावनी वाले बंगले पर रहते है?”

बूढा बेरहम अंदाज में सिर हिलाते हुए बोला नहीं जाऊँगा! मेरी बला जाए! ये वही डॉक्टर चड्ढा है, खूब जानता हूँ इन्हें । अपने बेटे को लेकर उन्ही के

पास गया था। खेलने जा रहे थे। में पैरो पर गिर पड़ा, बहुत मिन्नते की कि एक नजर देख लीजिए पर उनका दिल नहीं पसीजा, सीधे मुंह बात तक नहीं

की। ऊपरवाला बैठा सब सुन रहा था। अब पता चलेगा कि बेटा मरने का गम केसा होता है। कई बेटे हैं उनके ?” नहीं, बस यही एक लड़का था, सुना है सबने हाथ खड़े कर लिए है” आदमी बोला।

“ऊपरवाला सब देखता है, उस वक्त मै रो रहा था पर उन्हें जरा भी दया न आई। अगर अभी मै उनके दरवाजे पर भी होता तो भी परवाह नहीं करता”।

खुदा ने उसी लापरवाही से कहा।

तो तुम नहीं जाओगे ? भैय्या हमने जो सुना था, वो कह दिया, आगे तुम्हारी मर्जी वो आदमी बोला। * अच्छा किया। कलेजे को ठंडक पड़ गई, आंखे ठंडी हो गई। अब तक तो लड़का ठंडा हो गया होंगा तुम जाओ, आज मै चैन की नींद सोऊंगा । बूढ़े ने कहा और फिर बुढ़िया की तरफ देख कर बोला

ज़रा तम्बाकू ले आ, एक हुक्का और पीऊँगा। अब पता चलेगा डॉक्टर साहब को, सारी अकड़ निकल जाएगी। हमारा क्या गया, एक लड़का था उसके मरने से कोई राज तो नहीं चला गया ? जहाँ छ; बच्चे मरे वहां एक और चला गया पर तुम्हारा तो राज-पाट सुना हो जायेगा। उसी की खातिर इतनी दौलत गरीबो का खून चूस-चूस कर जोड़ी थी ना। अब क्या करोगे उस दौलत का ? हाँ एक बार देखने जाऊंगा साहब को, पर कुछ दिन बाद हाल

उस आदमी के चले जाने के बाद भगत ने दरवाजा बंद कर लिया और हुक्के में तंबाकू भरकर पीने लगा। “इतनी रात गए इस ठंड में भला कौन जायेगा?’ बुढ़िया बोली ।

अरे दिन-दोपहर होती तो भी ना जाता। अगर गाड़ी भेजकर बुलाते तो भी नहीं। भूला नहीं हूँ मैं, पन्ना की शक्ल आँखों के आगे धूम रही है । इस बेरहम कसाई ने उसे एक नज़र देखा तक नहीं। क्या मुझे नहीं मालूम कि वो नहीं

बचने वाला? खूब पता था। डॉक्टर चढ़ा कोई भगवान् नहीं थे कि उनकी एक नजर देख लेने से अमृत बरस जाता। नहीं, बस खाली मन की दौड़ थी। अब जाऊँगा किसी दिन उनके पास और पूछूगा, क्यों साहब, क्या हाल है ? दुनिया मुझे लाख बुरा कहे तो कहे कोई परवाह नहीं। बुरे तो बस छोटे लोग

,इन बड़े लोगों में तो कोई ऐब नहीं होता, ये तो जैसे सब के सब देवता है। बूढ़ा बड़ी कड़वाहट से बोला. ही होते हैं. पर भगत की जिंदगी में ये पहला मौका था जब वो ऐसी खबर सुनकर भी बैठा रह गया हो। उसकी अस्सी बरस की उम्र में आज तक कभी ऐसा नही हुआ था कि सांप के काटने की खबर सुनकर वो दौड़ कर गया हो। चाहे सर्दी की अँधेरी रात हो या गर्मी की लू या फिर सावन-भादो में उफनते नदी-नाले, उसने कभी परवाह नहीं की थी। वो बगैर किसी लालच के लोगो की मदद करने तुरंत घर से निकल पड़ता था। रूपये-पैसे का खयाल उसके दिमाग में कभी आया ही नहीं। भला किसी की बचाने की क्या कीमत हो सकती है? ये तो नेकी का काम: । उसने अपने मंत्री से ना जाने

कितने ही लोगों की जान बचाई थी पर आज उसने खबर सुनकर भी घर से बाहर कदम नहीं रखाऔर अब सोने जा रहा था।

बुढ़िया ने कहा तम्बाकू अंगीठी के पास रख दी है, उसके भी आज ढाई रूपये हो गए। देती ही नहीं थी”। और ये कहकर बुढ़िया लेट गई।

बूढ़े ने लैंप बुझा दी, कुछ देर यू ही खड़ा रहा फिर बैठ गया और आखिर में सोने के लिए लेट गया। पर खबर उसके सीने पर बोझ की तरह रखी थी, उसके पता था उसे अब नींद नहीं आएगी। ऐसा लगता था जैसे उसकी कोई चीज़ खो गई है, जैसे सारे कपड़े गीले हो गए या पैरो पर कीचड लगा हो, जैसे कोई उसके दिल के अंदर बैठा उसे बाहर जाने के लिए उकसा रहा हो।

थोड़ी ही देर में बुढ़िया के खर्राटों की आवाज़ आने लगी। बूढ़े लोग बाते करते करते सो जाते है और जरा सी आहट होते ही उठ जाते है।

भगत धीरे से उठा, अपनी लाठी उठाई और दरवाजा खोला। बुढ़िया की आँख खुल गई

“कहाँ जा रहे हो? उसने पूछा

“कहीं नहीं, देख रहा था कि रात कितनी और बाकि है” बूढ़ा बोला

अभी बहुत रात है, सो जाओ” बुढ़िया ने कहा

नींद नहीं आ रही” बोला

*नींद कहां से आएगी? मन तो चढ़ा के घर पर लगा हुआ है?” बुढ़िमा ने कहा

चट्टा ने मेरे साथ कौन सी भलाई की थी जो मैं वहां जाऊँगा? पैरो पर गिर के माफी भी मांग ले तो भी नहीं जाऊँगा,” बुढा उसी रूखाई से बोला

  • पर उठे तो तुम इसी इरादे से हो?” बुढ़िया ने जवाब दिया

“नहीं रे! ऐसा पागल नहीं हूँ जो मेरे लिए कांटे बोए उसके लिए मैं फूल बिछाऊँ।

बुढ़िया फिर से सो गई। भगत ने दरवाजा बंद किया और आकर बैठ गया। पर उसके दिल का हाल कुछ ऐसा था, जैसा बाजे का शोर कानो में पड़ते ही प्रवचन सुनने वाले की होती है। आँखे चाहे उपदेश देने वाले की तरफ लगी हो पर कान बाजे की ओर ही होते है। दिल में भी बाजे की आवाज़ गूंजती शर्म की वजह से वो अपनी जगह से उठ नहीं पा रहा था पर उसका दिल बाहर जाने को बेताब हो रहा था। बार-बार दिल में उसी बदकिस्मत लडके का

बूढा का ठीक यही हाल था

ख्याल आ रहा था जो अब बस कुछ ही देर का मेहमान था एक पल की देरी भी उसे मौत के मुंह में धकेल सकती थी। उसने उठकर फिर से दरवाजा

खोला, इतने धीरे से कि बुढ़िया की पता भी नहीं चला और घर से बाहर निकल आया। गाँव में उस वक्त चौकीदार पहरा लगा रहा था, उसने देखा तो पूछा

इस वक्त कैसे उठे भगत? आज तो बड़ी ठंड है, कहीं जा रहे हो व्या ?

नहीं जी, इतनी ठंड में कहाँ जाऊँगा! देख रहा था कि कितनी रात बची है। अभी कितने बजे होंगे ?” चौकीदार बोला “एक बजा होगा और क्या, अभी थाने से आ रहा था तो डॉक्टर चङ्का के बंगले पर भीड़ देखी। उनके बेटे की खबर तो तुमने सुनी होगी, सांप ने काट लिया। शायद अब तक मर भी गया हो। तुम चले जाओ तो क्या पता बच जाए। सुना है, दस हजार तक देने को तैयार है 1.

भगत बोला “मै तो नहीं जाऊँगा चाहे दस लाख भी दे दे। मुझे दस हजार या दस लाख लेकर क्या करना है? कल मर गया तो फिर किसके काम

आयेगा ये पैसा?” इस वक्त उसका हाल नशे में डूबे उस इंसान जैसा था जो पैर कहीं रखता है, पड़ता और है, बोलना कुछ चाहता है पर जुबान से निकलता कुछ और है।

उसके मन में गुस्सा था, बदले की भावना थी पर उसका फ़र्ज़ उसे पुकार रहा था। भगत अपनी लाठी टेकता चला जा रहा था। दिमाग कदम रोकना

चाहता था पर दिल आगे धकेल देता था। जिसने कभी तलवार नहीं चलायी, वह इरादा करने पर भी तलवार नहीं चला सकता। उसके हाथ कीपते हैं,

उठते ही नहीं। उसका दिल उस पर हावी हो चुका था। आधा रास्ता तय करने के बाद अचानक वो रुक गया नफ़रत ने फ़र्ज़ की आवाज़ दबा दी।

“मै बेकार ही इतनी दूर चला आया, ऐसी ठंड में मरने की मुझे क्या पड़ी थी भला ? घर में आराम से सोया क्यों नहीं? नींद नहीं आ रही थी तो ना सही, न गा लेता और क्या ? यूं ही इतनी दूर दौड़ा चला आया चट्टा का लड़का मरे या जिए मेरी बला से उसने मेरे साथ कौन सा अच्छा सुलूक

दो-चार भजन

किया था जो मै उनके लिए इतनी तकलीफ उठाऊं ? दुनिया में रोज़ हजारो मरते है, हजारो जीते है, मुझे किसी से क्या मतलब ?”

मगर अब उसके दिल में एक दूसरा ख्याल भी आ रहा था। वो डॉक्टर चड्ढा के यहाँ झाड़-फूंक करने नहीं जा रहा है, वो बस देखेगा कि लोग क्या कर रहे है। डॉक्टर साहब कैसे रोते है, कैसे सिर पटकते है, किस तरह पछाड़े खाते है ? सुना है पढ़े-लिखे लोग ज्ञानी होते है। तो वो जाकर देखेगा कि ये बड़े लोग भी हमारी तरह छाती पीट-पीटकर रोते है या सन्न कर लेते है

अपने मन को इस तरह समझाता हुआ वो फिर से आगे बढ़ा। इतने में सामने से दो आदमी आते दिखे । दोनों आपस में बाते कर रहे थे। चड्डा साहब का तो घर ही उजड़ गया, एक ही लड़का था।

भगत ने उनकी बाते सुनी तो उसकी चाल और भी तेज़ हो गई। उसके पैर धकने लगे थे, साँस फूल रही थी, लगता था अब गिरा, तब गिरा पर वो लगातार चलता रहा। अभी कोई दस मिनट बीते होंगे कि डॉक्टर साहब का बंगला नजर आया बंगले की लाईटे जल रही थीं पर चारो तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। रोने-पीटने की आवाज़े भी बंद हो गई धी।

भगत का कलेजा धक-धक करने लगा। कहीं मुझे पहुंचने में देर तो नहीं हो गई? वो पूरी ताकत से दौड़ पड़ा। इतना तेज़ वो आज तक कभी नहीं

दौड़ा था। उसे लग रहा था जैसे मौत उसका पीछा कर रही है।

रात के दो बज चुके थे। ज्यादातर मेहमान जा चुके थे। रोने के लिए बस आसमान के तारे रह गए थे बाकि सारे रो-रोकर थक गए थे। लोग रह-रह के आसमान की तरफ देख कर इंतज़ार कर रहे थे कि जल्दी से सुबह हो तो लाश गंगा की गोंद में प्रवाहित कर दी जाए। तभी भगत ने दरवाजे पर पहुँच कर आवाज़ लगाई। डॉक्टर साहब ने समझा कोई मरीज़ आया है।

कोई और दिन होता तो शायद वो उस आदमी को डाट-डपट कर भगा देते पर आज बाहर निकल आयें तो देखा एक बूढा आदमी खड़ा है। कमर झुकी हुई, पोपला मुह, सर के बाल तो बाल भौंहे तक सफेद धी। हाथ की लकड़ी के सहारे खड़ा कॉप रहा था। डॉक्टर साहब ने बड़ी नर्म आवाज़ में कहा क्या है भाई, आज तो हमारे ऊपर ऐसी मुसीबत आन पड़ी है कि क्या कहें, फिर कभी आना। अभी एक महीने तक तो शायद मै कोई मरीज़ भी नहीं देख पाऊंगा।

भगत ने कहा सुन चुका हूँ बाबू जी इसलिए तो आया हूँ। भैय्या कहाँ है? ज़रा एक बार दिखा दीजिए। भगवान बड़ा रहमदिल है, मुर्दे को भी जिंदा कर सकता है। कौन जाने ऊपरवाले को दया आ जाए”।

डॉक्टर चड्ढा ने बड़ी दुःखभरी आवाज़ में कहा” चलो, देख लो, पर तीन-चार घंटे हो गए है जो कुछ होना था, हो चुका। बहुत से झाड-फूंक करने वाले आए और देख कर चले गए”।

डॉक्टर चड्ढा को कुछ उम्मीद तो नहीं थी बस बूढ़े की हालत पर रहम आ गया। उसे अंदर ले गए। भगत ने एक मिनट तक लाश की तरफ देखा और

फिर मुस्कुरा कर बोला” अभी कुछ नहीं बिगड़ा बाबू जी ऊपरवाले ने चाहा तो आधे घंटे में भैय्या उठ बैठेंगे। आप दिल छोटा मत कीजिये। ज़रा नौकरों से कहिये पानी भरकर लाए”। नौकरों ने बुढे के कहने पर पानी भर-भर कर कैलाश को नहलाना शुरू कर दिया। नल का पानी खत्म हो गया था। नौकर कम थे इसलिए मेहमानों ने

आंगन के कुंए से पानी निकाल कर नौकरानी को देना शुरू किया। मृणालिनी धड़े में पानी ला-लाकर दे रही थी। बूढा भगत मुस्कुरा कर मंत्र पढ़े जा रहा

था मानो जीत उसके सामने खड़ी हो ।

एक मंत्र खत्म होता तो वो एक जड़ी केलाश के सिर पर डालता। ना जाने भगत ने कितनी बार कैलाश पर मंत्र फूंका। आखिरकार जब सुबह की पहली किरण फूटी तो कैलाश ने भी अपनी लाल-लाल आँखे खोली। एक पल में उसने अंगड़ाई ली और पीने के लिए पानी माँगा डॉक्टर चड्डा ने दौडकर अपनी पत्नी को गले लगा लिया। उनकी पत्नी भगत के पैरों पर गिर पड़ी । मृणालिनी आँखों में आंसू लिए कैलाश से पूछ रही थी” अब कैसी तबियत है ?”

एक पल में ये खबर चारो तरफ फैल गई। यार-दोस्त सब मुबारकबाद देने आ गए। डॉक्टर चड्ढा हर एक के सामने भगत का गुणगान करने लगे। सब

लोग भगत की एक झलक पाने के लिए बैचेन हो रहे थे पर अंदर जाकर देखा तो भगत का कहीं पता नही धा। नौकरों ने कहा ” अभी तो यही बैठे हुक्का पी रहे थे। हम लोग तंबाकू देने लगे तो नहीं ली, अपने पास से निकाल कर हुक्का भरा”। वहा सब लोग भगत को ढूंढ रहे थे पर भगत तेज़ कदम बडाता घर की तरफ चला जा रहा था कि बुढ़िया के उठने से पहले पहुँच जाऊ

आखिर जब सारे लोग चले गए तो डॉक्टर चड्डा अपनी पत्नी से बोलें बुला पता नही कहाँ चला गया एक हुकका की तंताकू भी नहीं ली उसने” ।

उनकी पत्नी बोली” मैंने सोचा था उसे बड़ा ईनाम दूंगी”।

डॉक्टर चट्टा थोडा शर्मिंदा होते हुए बोले ” रात को तो मै ठीक से देख नही पाया पर सुबह उजाला होने पर उसका चेहरा पहचान गया। एक बार ये आदमी एक मरीज को लेकर मेरे पास आया था। मुझे याद है, उस वक्त में गोल्फ खेलने जा रहा था तो मरीज़ देखने से मना कर दिया था ।

आज उस दिन की बात याद करके मुझे इतना अफ़सोस हो रहा है कि क्या कहूं । पर मै उसे ढूंढ लूँगा और उसके पैरो पर गिरकर अपनी गलती की माफी मांगूंगा। मुझे मालूम है वो एक पैसा भी नहीं लेगा, दो इस दुनिया में लोगों का भला करने के लिए ही आया है। उसकी इंसानियत और भलाई मेरे लिए जिंदगी भर एक मिसाल बनकर रहेगी”।

सीख – सदियों से ये दुनिया अमीर-गरीब की खाई में बंटी हुई है। कुछ लोग अपनी अमीरी और तालीम के गुरूर में गरीब-अनपढ़ लोगों को अपने से कमतर समझने लगते है ऐसे लोग किसी का दुःख-दर्द नहीं समझते उन्हें सिर्फ अपने फायदे और नुकसान से मतलब होता है। चाहे कोई उनके सामने कितना ही मजबूर हो, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। ऐसे लोगों को किसी और की तकलीफ का सिर्फ उस वक्त एहसास होता है जब वो खुद उस तकलीफ से गुज़रते है । ये कहानी हमें सिखाती है कि सुख और दुःख हर एक की जिंदगी में आते है पर एक सच्चा इंसान चही है जो जरूरत पड़ने पर किसी के काम आए, किसी की मदद कर सके क्योंकि इसानियत से बढ़कर कोई चीज़ नहीं है।

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