About Book
जो लोग ज्यादा बाते नही करते, उन तक पहुंचना काफी मुश्किल होता है. ऐसी सिचुएशन आप दोनों के लिए काफी स्ट्रेसफुल हो सकती है. और उन तक पहुँचने के लिए आपको इफेक्टिव ढंग से कम्यूनिकेट का तरीका सीखना होगा. अब क्योंकि दो लोगो के कन्वेर्सेशन में आप हाफ यानी 50% है तो आपके लिए ये समझना बड़ा इम्पोरटेंट है कि हमारा ब्रेन कैसे काम करता है और कैसे आप अपने इमोशंस को मैनेज कर सकते हो. ये बुक पढ़िए जिसमे आपको सामने वाले की बात सुनने और बैटर रिलेशनशिप्स बनाने की इम्पोर्टेंस बताई जायेगी जोकि आपको दूसरो तक पहुँचने में काफी हेल्प करेगी.
ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए? Who will
learn from this summary?
- एम्प्लोईज़ और मैनेजर्स
- एंटप्रेन्योर्स एंड सेल्स एजेंट्स
- पेरेंट्स एंड टीचर्स
ऑथर के बारे में (About the Author)
मार्क गौल्सटोन (Mark Goulston) एक साइकेट्रिस्ट, कन्सल्टेंट है और साथ ही एक ऑथर भी है. गौल्सटोन ने कई पोपुलर पब्लिकेशन्स जैसे न्यू यॉर्क टाइम्स, फोर्ब्स और वाल स्ट्रीट जर्नल के लिए आर्टिकल्स लिखे है और इन पब्लिकेशंस ने उनके कई सारे इंटरव्यूज़ भी लिए है. इसके अलावा वो हार्टफेल्ट लीडरशिप के को-फाउंडर भी है जिसका मिशन वर्क प्लेस में और ज्यादा एम्पैथी और अंडरस्टैंडिंग लेकर आना है.
इंट्रोडक्शन ( Introduction)
क्या आप लोगो से बात करने में डरते है? किसी बात को कहने से पहले उसे सौ बार अपने दिमाग में रटना क्या आपकी आदत है? ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग इतनी आसानी से किसी के सामने खुलते नहीं, उनके बात करना दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता है ? ये लोग हमारे आस-पास ही होते जैसे कोई प्रोब्ल्मेटिक पेरेंट जो आपको सिर्फ एक नजर डालकर चुप करा सकते है, या कोई कलीग जो आपकी हर बात तुरंत काट देता है. सच तो ये कि इस टाइप के लोगो से हमारा सामना आये दिन होता है. और इनसे बात करना काफी फ्रस्टरेटिंग लग सकता है लेकिन इस प्रोब्लम का सोल्यूशन है जो आपको इस बुक में मिलेगा. असल में ऐसे लोग जिनसे बात करना मुश्किल होता है, इन्हें बस कोई सुनने वाला चाहिए, एक ऐसा लिस्नर जो इन्हें बड़े सब्र के साथ क आप सीखोगे कि दूसरों की बात सुनना भी उतना ही इम्पोरटंट है जितना कि अपने दिल की कहना. आप किसी की बाते सुनकर ही उसके इस बुक में दिल से कनेक्ट कर सकते हो. इस बुक में आप थोड़ा बहुत ब्रेन के बारे में भी सीखोगे और ये भी पढोगे कि क्यों कुछ लोगो से कम्यूनिकेट करना एक
डिफिकल्ट टास्क लगता है. और आप ये भी सीखोगें कि स्ट्रेसफुल सिचुएशन में खुद पर कण्ट्रोल कैसे रखना है ताकि आप लोगों की हेल्प कर सके. ये थोडा क्रूशियल है क्योंकि ऐसे लोगों से बात करते वक्त खुद पे कण्ट्रोल करना मुश्किल होता है. क्योंकि जो लोग आसानी से किसी से खुलते नहीं उनके सोच समझ कर सब्र के साथ बात करनी पड़ती है वरना सारी कम्युनिकेशन इनइफेक्टिव रहेगी. तो क्या आप भी अपनी कम्यूनिकेशन स्किल इम्पुव करने के लिए रेडी है ?
व्हू इज़ होल्डिंग यू होस्टेज (Who’s Holding You Hostage?
जिस वक्त आप समरी पढ़ रहे होंगे उस वक्त भी दुनिया में कोई न कोई इन्सान किसी न किसी प्रोब्लम से जूझ रहा होगा. यहाँ तक कि आप भी जो अभी किसी मुश्किल में फंसे होंगे, ऑफिस का कोई इश्यू, धर की प्रोब्लम या फिर आपकी सोशल लाइफ, हर जगह कुछ न कुछ प्रोब्लम चलती रहती है. आपने पहले भी कई सारे कोनफ्लिक्ट सोल्व किये होंगे लेकिन कुछ आता है, फ्रस्ट्रेशन होती ऐसी प्रोब्लम्स भी होती है जो हमसे सोल्व नही होती. और फिर हमे बेहद गुस्सा होपलेस फील करते हैं क्योंकि कई बारे सामने वाला इंसान इतना रेजिस्टेंट और जिद्दी होता है कि उसे समझना हमारे बस से बाहर हो जाता है, लेकिन बात अगर प्रोब्लम सॉल्व करने की हो तो इस बुक के ऑधर मार्क गोल्सटोन के पास एक स्पेशल टेलेंट है. मार्क के मेथड्स काफी इफेक्टिव भी है. चाहे लोग उनसे दूर जाने की कितनी भी कोशिश करे पर मार्क उन्हें अपनी तरफ खींच ही लेते है. इसे अच्छे से एक्सप्लेन करते है. मान आप एक ऐसी रोड पर ड्राइव कर रहे हो जो अपहिल यानी ऊपर की तरफ जा रही है. अब आप जानते हो अपहिल में ड्राइव करना मुश्किल होता है, गाडी बार-बार स्लिप होती है. हालाँकि जब आप एकदम चोटी पर पहुँच कर डाउनहिल आने लगते हो तो
ड्राइव करना ईजी हो जाता है. तो लोगों को अप्रोच करना भी कुछ-कुछ अपहिल में ड्राइव करने जैसा है. आप उन्हें कन्विंस करने की कोशिश करते हो, उन्हें एकरेज करते हो पर आप उन्हें जितना ही पुश करते हो चो आपसे उतना ही दूर जाते हैं. तो मार्क का मेथड यहाँ एकदम अपोजिट है. उन्हें कुछ बोलने के बजाए उनकी बाते सुनो, रिफ्वलेट करो और फिर सवाल पूछो. यही एक मेथड है जो उन्हें फील व कराएगा कि उनकी बात सुनी और समझी जा रही है. और फिर वो लोग आपके पास खुद चले आयेंगे. है।
हम यहाँ फ्रैंक का एक्जाम्पल ले सकते है जिससे कम्यूनिकेट करना एक डिफिकल्ट टास्क है. फ्रैंक एक मॉल के पार्किंग लोट में अपनी कार में बैठा था. उसके हाथ में एक शॉटगन थी जो उसने अपने गले पर लगा रखी थी. स्वाट (The SWWAT) टीम उससे बात करने की कोशिश कर रही थी कि कहीं वो ना दबा दे पर फ्रैंक उनकी कोई बात सुनने को तैयार ही नही था. वो चीख रहा था और सबको अब्यूज़िंग वर्ड्स बोल रहा था. स्वाट टीम ने जब फ्रेंक का बैकग्राउंड चेक किया तो उन्हें पता चला कि वो क्यों सुसाइड करना चाहता था. करीब 6 महीने पहले अपने को-वर्कर्स और कस्टमर्स के साथ रूड बिहेव करने की वजह से जॉब से निकाल दिया गया था. फ्रैंक ने ने दूसरी जॉब ढूँढने की कोशिश की थी पर उसे जॉब नही मिली, यही नहीं वो बात-बात पर अपनी फैमिली पर भी गुस्सा करता था, उसके इसी गुस्सैल बिहेवियर के चलते उसकी वाइफ दोनों बच्चों को लेकर अपने पेरेंट्स के घर चली गयी. फ्रैंक अपने फ्लैट का रेंट नहीं दे पाया तो फ्लैट ओनर ने उसे धक्के मारकर निकाल दिया. मजबूरी में उसे एक छोटे से गंदे रूम में रहना पड़ रहा था. अब वो एकदम अकेला रहता था. उसे अपनी साफ़-सफाई और खाने-पीने का भी होश सब वजहों से फ्रैंक की हालत और भी बदतर होती चली गयी थी. वो आज इस कंडिशन में पहुंच गया था कि कार में बैठकर फोटो को क लेने जा रहा था.
जब स्वाट टीम के लेफ्टिनेंट ने फ्रैंक से बात करने की कोशिश की तो फैंक ने उन्हें गालियाँ देनी शुरू कर दी. उसने कहा कि तुम्हे मेरी हालत के बारे में स बात करने की कुछ नहीं जानते हो इसलिए मुझे अकेला छोड़ दो. तो व भी लेफ्टिनेंट फ्रैंक उसे कम्यूनिकेट करने की कोशिश करता, फ्रैंक उसे चुप करा देता और उसे और भी गुस्सा आ जाता था. ये सिलसिला करीब । घंटा 30 मिनट चला. फिर नेगोशिएटर क्रमेर को बुलाया गया जो एक होस्टेज नेगोशिएशन ट्रेनिंग से ग्रेजुएट था जिसे ऑथर ने कन्डक्ट किया था. उसने फ्रैंक से बात की.
नेगोशिएटर क्रेमर को फ्रेंक से हमदर्दी थी. उसने फ्रैंक से पुछा ” क्या तुम वाकई में मरना चाहते हो? तो फ्रैंक बोला किसी को क्या फर्क पड़ता है? क्रेमर फ्रैंक से बातचीत करते रहे, वो उससे उसकी लाइफ की प्रोब्लम्स पूछ रहे थे. कुछ ही टाइम बाद फ्रैंक शांति से क्रेमर की बातें सुनने लगा. क्रेमर ने फ्रैंक को कन्विंस किया कि वो उसकी सारी प्रोब्लम्स समझते है. जो चो सोच रहा है उस पर यकीन करते है. इस तरह फ्रेंक के थोटस और क्रेमर के वर्डस मैच कर गए जिससे फ्रेंक केमर की बातों पर ध्यान देने लगा था,
सच तो ये है कि आप लगातार किसी को पर्सएड करने की कोशिश कर रहे हो. शायद आप काफी टाइम से किसी फ्रेंड को स्मोकिंग छोड़ने के लिए बोल रहे हो या किसी को अपने लिए कुछ के लिए कन्विंस पर किसी की पसुएड करना इतना ईज़ी नही होता कर रहे होगे या फिर किसी को डेट पे ले जाने या ऑफिस में बॉस को इम्प्रेस करने में लगे होंगे. क्योकि हम सबका एक अलग एजेंडा होता है, अपनी नीडस और डिजायर्स होती है यहाँ तक कि किसी को पूरी तरह कन्विंस करना इम्पोसिबल है फिर भी थोड़ी बहुत होप बचती है लेकिन आपको ऑधर के हिसाब से अपनी अप्रोच में चेंज लाना पड़ेगा. किसी से हाँ बुलवाने के लिए आपको पर्सुएशन साइकिल के इन स्टेप्स से होकर गुजरना होगा.
फ्रॉम रेजिस्टिंग टू लिस्निंग (From RESISTING to LISTENING . फ्रॉम लिस्निंग टू कंसीडरिंग (From LISTENING to CONSIDERING
फ्रॉम कंसीडरिंग टू विलिंग टू डू (From CONSIDERING to WILLING TO DO
फ्रॉम विलिंग टू डू टू डूइंग (From WILLING TO DO to DOING फ्रॉम डूइंग टू बीईंग From DOING to BEING GLAD THEY DID and CONTINUING TO DO
लिटिल साइंस (A Little Science)
ब्रेन हाँ से ना की तरफ कैसे जाता है (How the Brain Coes from No” to “Yes”)
किसी को पर्सुएड करने से पहले थोडा अपने ब्रेन के बारे में जाने. हम ब्रेन के उन पार्ट्स पर फोकस करेंगे जो किसी को अप्रोच करते वक्त एक्टिवेट होते हैं. इसमें पर्सन साइकिल के दो फर्स्ट स्टेजेस आते है : रेजिस्ट से लेकर लिस्निंग तक और लिस्निंग से कंसीडरिंग तक, यानी किसी से दूर जाने के बजाए उसकी बात सुनने तक और सुनने से लेकर उस पर सोचने विचारने तक, इसे बाई इन्स बोलते है क्योंकि ये वो स्टेज है जहाँ आप लोगो को कुछ नही बोलते बल्कि उनकी बात सुनते हो. बाई-इन्स वो स्टेज है जहाँ आपको उनके थोट्स के बारे में पता चलेगा, वो क्या सोचते है या क्या कहना चाहते है. ये आपको उन्हें बाद में पर्सुएड करने में काफी हेल्प करेगा. तो चलो ब्रेन के डिफरेंट सेक्शस पर चलते है. अमिगडला, (the amygdala,) और लास्ट में द मिरर न्यूरोस (mirror neurons.) श्री पार्ट बेन की तीन लेयर्स होती है जोकि कई हज़ार सालों में इवोल्व होती गयी है. ये है प्रिमिटिव रेपटाइल लेयर, द मोर ईवोल्ट्ड मैमल लेयर और फाइनल प्राइमेट लेयर प्रीमिटिव रेष्टीलियन लेयर हमारे ब्रेन के एक फाईट ओर फ्लाईट फंक्शन की तरह काम करती है. ये उन सारे एक्शस के लिए जिम्मेदार है जो आप बिना सोचे समझे करते हैं. और मिडल मैमल लेयर में आपके पॉवरफुल इमोशंस होते हैं. और लास्ट में प्राइमेट लेयर आपके लोजिकल थिंकिंग के लिए रीस्पोंसेबल है. ये हर उस चीज़ को ऐनालाइज करती जो हम एक्सपीरिएंस करते है और हमें डिसीजन मेकिंग में हेल्प करती है. जब आप स्ट्रेसफुल सिचुएशन में होते हो तो आपका रेप्टाइल या मैमल ब्रेन आपको कण्ट्रोल में करता है और तब हमारी प्राइमेट लेयर यानी लोजिकल थिंकिंग काम नहीं करती. आपको ये बात समझनी पड़ेगी क्योंकि यही चीज़ डिसाइड करती है कि हम लोगो को कैसे और कब अप्रोच करे. जब आप किसी को पर्सुएड करोगे तो उनके प्राइमेट लेयर से बात करो, यानी उनका ह्यूमन अपर ब्रेन जो लोजिकल थिकिंग के लिए जिम्मेदार है. जिस वक्त हमारा प्रीमिटिव या मैमल लेयर चार्ज में हो उस वक्त बात करने का कोई फायदा नहीं है. इस वक्त इन्सान या तो किसी प्रेशर में होता है या उसके इमोशस उस
पर हावी रहते है. यूं तो अमिगडला ब्रेन का एक छोटा सा पार्ट ही कवर करता है पर यही पार्ट सबसे सेंसिबल होता है, ये ह महसूस करा देता है कि सामने वाले का मुड ठीक है या नही. जब कोई डरा हुआ या किसी मुश्किल में होता है तब अमिगडाला इंसान की सोचने समझने की पॉवर को अपने कण्ट्रोल में ले लेता है. उस वक्त हमारा लोजिकल ब्रेन डीएक्टिवेट हो जाता है. आप अपने प्रीमिटिव इंस्टिक्ट पर आ जाते हो यानी फाईट और फ्लाइट रीस्पोंस,
ास्ट में मिरर न्यूरो है जोकि हमें दूसरों के साथ एक हमदर्दी भरा रिलेशन मेंटेन करने में हेल्प करते है. मार्क गौलस्टोन (Mark Coulston) की थ्योरी है कि हम हमेशा दुनिया की नकल करने की कोशिश करते है और दुनिया से प्यार और अप्लूवल पाना चाहते है. और जब हम दुनिया की नकल करने में सक्सेसफुल रहते है तो हमारे अंदर एक फीलिंग आती है कि बदले में दुनिया भी हमारी नकल । ऐसा नही होता तो एक तरह से मिरर न्यूटन रिसेप्टर्स डेफिसिट” पैदा होता है. तरह से। यानी हम जो करते है वही सब करे, पर जब हम सबके साथ ये कभी ना कभी हुआ है. हम अपना बेस्ट देते हे पर बदले में कई बार हमे मनचाहा रीस्योंस नही मिलता या लोगो का बेरूखी झेलनी पड़ती है. आप लोगों के साथ अच्छे से पेश आते हो पर बदले में उनसे सेम एक्स्पेक्ट करते हो पर ऐसा होता नहीं, तो ये चीज़ आपके अंदर एक नेगेटिविटी क्रिएट करती है. हालांकि अगर कोई आपके वैसे ही सेम रीस्पोंस करे तो आपको बेहद खुशी होती है. एक जीत का एहसास होता है. यही वजह है कि जब कोई हमारे प्यार का बदला प्यार से देता है तो दिल खुश हो जाता है, तो इस तरह बाई इन में आपको सामने वाले के लोजिकल अपर ब्रेन को अप्रोच करना पड़ता है, कम्यूनिकेट करते वक्त फाईट और फ्लाईट रिस्पांस या ईमोशनल होने के बजाए लोजिक और रीजनिंग यूज़ करो. इस तरह सामने वाला भी सेम बिहेव करेगा. वो शांत होकर आपकी बात सुनेगा. और जब इन्सान खुले दिल से किसी को सुनता है तो उसके साथ कनेक्शन बनाना और भी ईजी हो जाता है.
मूव योरसेल्फ फ्रॉम” ओह फक टू ओके”
Move Yourself from “Oh f#@& to OK”
वैसे तो ये पूरी बुक ही आर्ट ऑफ़ लिस्निग पर है लेकिन आप इसमें ये भी सीखोगे कि अपने थोट्स और ईमोश्स पर कण्ट्रोल कैसे किया जाए. किसी से बातचीत करते वक्त हम कम्यूनिकेशन का 50% पार्ट होते है. इसलिए कम्यूनिकेशन में खुद को सही तरीके से प्रजेंट करना बेहद जरूरी है. हम अपने इमोशन और थोट्स को सही तरीके से प्रेजेंट करे. क्या आपने कभी गौर किया कि एक होस्टेज नेगोशिएटर एक बेहद गुस्से वाले होस्टेज टेकर से केसे नात बरवा मान लो बात करते टाइम उसकी फिसल जाए या कुछ गलत जुबान बोल दे तो क्या होस्टेज टेकर को और इसलिए ऐसी स्टेसफूल सिचुएशन और लोगो को हैंडल करने से पहले खुद के इमोशंस पर कण्टोल रखना बेहद जरूरी है. ज्यादा गुस्सा नही आएगा? आप शायद पहले कई तरह की टेंस सिचुएशंस से गुजर चुके होंगे, जैसे कि किसी रीसर्च पेपर की डेडलाइन आने वाली है और आपने अब तक शुरू भी नहीं किया. इस टाइप की सिचुएशन में आप पहले तो पैनिक हो जाओगे लेकिन फिर शांत होकर पूरे दिन का शेड्यूल बनाओगे. लेकिन अगर आप पैनिक ही करते रहोगे तो समझ लो आपने इतना इतना टाइम यूं ही वेस्ट कर दिया जबकि आप इसमें अपना । स्टार्ट कर सकते थे.
हम इंटेलीजेंट डिसीजन लेते है लेकिन जब एक्शन का टाइम आता है तो स्लों पड़ जाते हैं. स्ट्रेसफुल सिचुएशन में हमें अपनी थौट्स और ईमोश्स को कण्ट्रोल करने में कुछ ही मिनट्स लगने चाहिए. कहीं ऐसा ना हो कि हम घंटो बैठ कर सोचते रहे. हम ये नही कह रहे कि लाइफ की हर प्रोब्लम मिनटों में सोल्व करनी चाहिए पर हाँ इतना जरूर सीख लो कि पैनिक मोड से तुरंत सोल्यूशन मोड में आ आओ. इससे ना सिर्फ आपको एक लेजर शार्प माइंड मिलेगा बल्कि आप इमोशंस कण्ट्रोल करना भी सीख जाओगे. इसे अचीव करने के लिए हम यहाँ एक स्टेप बाई स्टेप गाइड दे रहे है जो आपकी हेल्प करेगी फर्स्ट स्टेप है : ओह फक या रिएक्शन फेस, अपने इमोशंस कण्ट्रोल में रखने का मतलब ये नहीं है कि आपको स्ट्रेसफुल सिचुएशंस में अपनी फीलिंग्स छुपानी चाहिए. अपने इमोशस समझो जो आप उस टाइम फील कर रहे हो, फिर वहां जाओ जहाँ आप अकेले हो और अपने इमोशंस जोर से बोलकर एक्सप्रेस करो, जैसे कि मुझे बड़ा डर लग रहा है, मै टाइम से पेपर नही दे पाउंगा और फेल हो जाऊँगा. सेकंड स्टेप है : ओह गॉड या रिलीज़ फेस, जब आपने अपने इमोशंस समझ लिए और उन्हें एक्सप्रेस भी कर दिया लो अब अपनी ब्रीदिंग पर फोकस करो. इससे आपको शांत होने में हेल्प मिलेगी और आप पैनिक मोड़ से सोल्यूशन मोड़ में आ जाओगे.
थर्ड स्टेप है: ओह जीज या द रेसन्टर फेस, अपनी ब्रीदिंग पर फोकस रखो और मेंटली उस फेस से दुबारा गुजरो. खुद से रीपीट करते रहो ओह फक! ओह गॉड, ओह जीज, ओह वेल.
फोर्थ स्टेप है ओह वेल” या दरीफोकसिंग फेस, अपनों प्रोब्लम सोल्द करने के लिए जो प्लान आप सोच सकते हो सोचो, आप बहुत कुछ कर सकते हो, बहुत से सोल्युशन निकाल सकते हो, बस ध्यान रहे कि आपके ऑप्शन में बो बेस्ट चॉइस होना चाहिए. फिफ्थ फेस है” ओके” या री-एंगेजिंग फेस. ये तब होता है जब आप एक्शन लेना स्टार्ट करते हो, इसलिए अपने बेस्ट ऑप्शन अप्लाई करो. इन सभी फेसेस से क्विक्ली मूव करना डिफिकल्ट है क्योंकि आप अगर ओह फक” वाले फेस पर अटक गए तो गिल्टी फील करते रहोगे, इमोशनल हर कोई होता है, हर कोई अपने हालात पर खुलकर रोना चाहता है पर ये आपको प्रोडक्टिव चीज़े करने से रोकता है जैसे कि अपनी स्ट्रेसफुल सिचुएशन से बाहर निकलने की कोशिस करना.
लेकिन अगर आप स्ट्रेसफुल सिचुएशन में इन फेसेस को रीपीट करोगे तो आप बहुत जल्दी और बैटर तरीके से पैनिक मोड से ओवरकम हो सकते हो. और ये फेसेस आपको उन चीजों को करने और कहने से भी रोकेंगी जो अवसर आप बाद में रिग्रेट करते हो,
रीवायर योरसेल्फ टू लिस्न
Rewire Yourself to Listen जब हम किसी ऐसे इंसान से मिलते है जो हमारी एक्सपेक्टेशन पर पूरा नही उतरता तो हम उसे जज करने लगते है. हम बगैर सोचे समझे उन्हें घमंडी क्रेजी या स्टूपिड और ना जाने क्या-क्या बोलने लगते है. इस तरह के मोमेंट वो होते है जब हम वाकई में बात को सीरियसली सुनते नही है. तो ऐसा क्यों होता है? क्योंकि आपके लेबल्स से आप सिर्फ वही सनते हो जो उस इसान के बारे में आपके आईडिया से मैच करे क्योंकि आप उनकी
कने कोशिश हो नहीं की. सच्चाई सुनने की ही –
हो सकता है किसी के बारे में आप सोचते होंगे ” वैल ये इंसान तो क्रेजी है! ये कुछ नहीं कर सकता है क्योंकि ये कुछ करना ही नहीं चाहता. अब आपने उस इंसान को ओव्ज़ेर्च करके ये बात कही है लेकिन ये जरूरी तो नहीं कि आपकी ओन्ज़े्वेशन एकदम सही हो. अपनी पूरी लाइफ आपने लोगो कहते सुना होगा कि से आदमी लेज़ी है या वो कुछ नही करता. एक बार हम किसी को ओबज़ेर्च कर ले तो तुरंत उस पर लेज़ी का लेबल चिपका देते है. आपने सिर्फ उनकी एक हैबिट देखकर उन्हें जज कर लिया और हमेशा उसी नजर से देखते रहोगे. दुःख की बात तो ये है कि आपने उन्हें सेकंड थौट भी नही दिया. जब हम उन फिल्टर्स से उन्हें जज करते है जो हमने उन पर लगाये है तब हमें उनकी बात तो सुनाई देती है पर हम उन्हें समझ नहीं पाते. मार्क गौलस्टोन ने एक बार एजेंट्स और ब्रोक्स से बात करके जानने की कोशिश की थी कि वो एक अच्छे लिस्नर है या नही. मार्क ने उनसे पुछा” अगर मैं बोलूं कि मेरा ऑफिस असिस्टेंट टास्क फिनिश करने में हमेशा लेट होता है तो आप उसे क्या बोलोगे?’ तो एजेंट्स और ब्रोकर्स ने कहा कि उनका अस्सिस्टेंट जरूर बड़ा लेजी, स्लोपी या अनप्रोफेशनल टाइप होगा. अब जैसा कि आप देख सकते हो, यहाँ लोगो ने सुनी-सुनाई बात पर ऑफिस असिस्टेंट को तुरंत जज कर लिया और उस पर लेज़ी होने का लेबल चिपका दिया. अब हो सकता है कि ये लोग उसके पीठ पीछे उसकी बुराई करना शुरू कर दे, उस पर चिल्लाये या फिर उसे जॉब से ही निकालने की एडवाईज दे.
ने एजेंट्स और ब्रोकर्स से कहा” अगर ऑफिस असिस्टें आपको बोले कि उसकी मदर अचानक बीमार पड़ गयी थी जिसके चलते उन्हें होस्पिटल ले जाना पड़ा, इसलिए वो अपना टास्क टाइम पर फिनिश नहीं कर पाया. अब आप क्या बोलोगे? क्या अब उसकी इमेज आपकी नजर में चैंज हो जायेगी? लोगो ने कहा हाँ.
तो देखा आपने, फर्स्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन. जैसा हम किसी को पहली नजर में ओब्ज़ेर्व करते है, उसकी वही इमेज हमेशा हमारे माइंड में रहती है. और दुःख की बात तो ये है कि हम इस इमेज से आगे सोच ही नहीं पाते है. हम उस इन्सान की असलियत जानने की कोशिश तक नहीं करते. अगर आप किसी को राईट पर्सपेक्टिव में देखना चाहते हो तो उन्हें लेबल्स देना बंद कर दो और उन्हें तरत जज मत करो, उनके एकश्न्स के पीछे क्या रीजन्स है ये जानने की कोशिश करो, इस तरह आप उनसे और भी इफेक्टिव वे में कम्यूनिकेट कर पाओगे और सच में उन्हें सुन पाओगे.
बी मोर इंट्रेस्टेड देन इंट्रेस्टिंग
इंट्रेस्टिंग बनने से ज्यादा दूसरों में इंटरेस्ट दिखाओ
Be More Interested Than Interesting एक और चीज़ जो आपको दूसरों से कम्यूनिकेट करने से रोकती है वो ये कि वो आपके बारे में क्या सोचेंगे. आप डरते हो कि कहीं लोग आपको ना समझ बैठे. और इसी वजह से आप खुद को और ज्यादा इंट्रेस्टिंग बनाने की कोशिश करने लगते हो, हालाँकि जैसे ही आप ये कोशिश करते हो बोरिंग लोग आपकी इंटेशन समझ जाते हैं. लेकिन खुद को इंटरेस्टिंग आप तभी बना पाओगे जब आप उनमें ज्यादा इंटरेस्ट लोगे.
मान लो आपको फ्रेंडा और फ्रेंड 2 से ईमेल मिली है. फ्रेंड बताता है कि उसका फेमिली ट्रिप कितना अमेजिंग था. उसने और उसके हजबैंड ने वहां बॉलरूम डांस किया और साथ में बेकिंग भी की. और उसे अपने बैरिटी वर्क के लिए एक अवार्ड भी मिला है. ऊपर से उसके बच्चे भी पढ़ाई में अच्छे ग्रेड्स लाते है. और लास्ट में वो आपसे जल्द ही मिलने की बात भी बोलती अब आप फ्रेंड 2 का मेसेज पढ़ते हो जिसमें उसने लिखा है कि कैसे एक ओल्ड कार की देखकर उसे और उसके हजबैंड को आपकी याद आ गयी क्योंकि कॉलेज के जमाने में आपके पास ठीक ऐसी ही कार थी. और वो आगे मजाक में लिखती है कि कैसे आप एक ओल्ड कार होने के बावजूद इतनी सारी डेट्स पर जाया करते थे. फ्रेंड 2 आगे लिखती है कि वो आपके साथ लंच प्र जाना चाहती है और पूछती है कि क्या तुम्हारी बेटी ने कॉलेज में अप्लाई किया. आपकी फ्रेंड 2 और उसका हजबैंड हार्ड वर्किंग होने के बावजूद भी बहुत कम अर्निंग कर पाते है. लेकिन फिर भी दोनों लाइफ एन्जॉय करते तो किसकी लाइफ आपको ज्यादा इंट्रेस्टिंग लगी? फ्रेंड | की या फ्रेंड 2 की. बेशक फ्रेंड की, इसमें कोई शक नही है. हालाँकि ये भी सोचने वाली बात है कि कौन सी फ्रेंड आप में ज्यादा इंट्रेस्टेड है? यकीनन फ्रेंड 2 क्योंकि वो आपकी लाइफ में बारे में भी पूछ रही है और आपको याद करती है. और आप भी अपनी इस फ्रेंड के साथ लंच पर जरूर जाना चाहोगे जबकि फ्रेंड 1 को कोई बहाना बनाकर टाल दोगे.
फ्रेंड ने इंट्रेस्टिंग बनने की काफी कोशिश की लेकिन बन नही पाती, क्योंकि उसके शो ऑफ ने उसे सेल्फ सेंटर्ड और बोरिंग बना दिया. जितना ज्यादा वो पूजा करने की कोशिश करती है कि उसकी लाइफ खुशहाल है, उतना ही ज्यादा वो आपको बोरिंग लगती है चो है. तो आप भी फ्रेंड 1 की तरह बोरिंग होने से केसे सकते हो? सिंपल है. आप जिनसे बात करते हो उनमें इंटरेस्ट दिखाओ. उन्हें बोलने का मौका दो और आप सुनो. अपनी हर बातचीत में गोल बना लो कि आप उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की कोशिश करोगे. कोई भी सवाल पूछते वक्त फील थिंक डू डिलीवरी या ऍफटीडी डिलीवरी यूज़ करो यानी आई फील, आई थिंक एंड आई डू. इसका मतलब है कि उस इंसान से उसकी फीलिंग्स, थॉट्स ओर एक्श्न्स के बारे में पूछो. ऐसा करने से सामने वाले को आपसे बात करके सेटिसफेक्शन मिलेगा, उन्हें शो कराओ कि आपको उनकी बातो में मजा आ रहा है, बीच में उनकी बात मत काटो. ध्यान से सुनते रहो और बीच-बीच में सवाल पूछो जैसे कि अगर कोई बोले कि उसके कॉलेज प्रोफेसर की वजह से उसकी लाइफ ही चेंज हो गयी है तो उससे पूछो कि क्या वो अभी भी अपने प्रोफेसर ताकि उन्हें यकीन हो कि आप वाकई में सुन रहे है.
के टच में है. जैसे कोई आपसे अपने वीकेंड वेकेशन प्लान शेयर करे तो उसकी स्टोरी के कुछ हाईलाइट्स रीपीट करो, जैसे आप बोल सकते हो” यकीन नहीं होता कि तुम्हारा सामान खो गया फिर भी तुमने खूब एन्जॉय किया मै भी एक ट्रिप प्लान कर रहा हूँ, मुझे कोई टिप्स दोगे क्या”?
किसी से एडवाइस माँगना भी आपके पॉइंट्स बढ़ा देता है क्योंकि एडवाइस देना सब पसंद करते है. इससे उन्हें लगता है कि वो काफी समझदार और इंटेलीजेंट है. तो देखा आपने, सामने वाले ने नोटिस भी नहीं किया और आपने उसके साथ बातचीत का रास्ता खोल दिया. जब आप इंटरेस्ट लोगे तो लोग भी आपकी तरफ खींचे चले आयेंगे,
कनक्ल्यू जन (Conclusion)
इस बुक में आपने पसुएशन साइकिल के बारे में पढ़ा और सीखा कि कैसे आप इसके इस्तेमाल से उन लोगो को भी पर्सुएड कर सकते हो जिन्होंने आपको ब्लॉक कर रखा है. लोगों तक पहुँचने से पहले आपको खुद पर थोड़ा काम करना पड़ेगा. दूसरो को पर्सुएड करते वक्त खुद पर कण्ट्रोल में रखना आपको और भी ज्यादा इफेक्टिव बना देगा. इस बुक में ऑथर हमे उन फेसेस को आईडेंटीफाई करना बता रहे है जिनसे कोई इन्सान तब गुजरता है जब वो किसी स्ट्रेसफुल सिचुएशन में होता है. जो लोग वि किसी से ज्यादा खुलते नहीं है, उनके इस बिहेवियर का एक रीजन ये भी है कि अक्सर लोग उन्हें बोलने नहीं देते. लेकिन हमे अपने ब्रेन को इस तरह रीवायर करने की जरूरत है कि हम दूसरों की बात भी सुने और बगैर सोचे-समझे लोगों को जज करना छोड़ दे. आपने स बुक से सीखा कि आप लोगो की बातों में इंटरेस्ट लेकर एक अच्छा लिस्नर कैसे बन सकते हो. जब आप किसी से कम्यूनिकेट करो तो ने इस एसटीडी डिलीवरी यूज़ करो, करने के लिए खिंचे चले आएंगे. यानी: आई फील, आई थिंक, आई डू. और लोग आपके साथ बात करके इतना सेटिसफाई फील करेंगे कि यो आपके बाते व लोग हमसे बात करने में इंट्रेस्टेड नहीं होते तो उनतक पहुंचना बड़ा मुश्किल होता है. लेकिन अगर आपने सीख लिया कि लोगो तक कैसे पंहुचा जब तक जाए, तब आप ना सिर्फ उनकी हेल्प करोगे बल्कि खुद की भी हेल्प करोगे. आपके अंदर वो कैपेबिलिटी और नॉलेज है कि आप किसी के काम आ सको इसलिए जितना हो सके लोगों की हेल्प करो,