IRRESISTIBLE by Adam Alter.

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About Book

2010 में स्टीव जॉब्स ने आईपैड लांच किया था. तब उन्होंने बोला था कि सबके पास आई पैड होना चाहिए. आईपैड एक्स्ट्राऑर्डनरी है. ये हमारे एक्सपीरिएंस को एकदम अलग लेवल पर ले जाता है. लेकिन स्टीव जॉब्स ने अपने बच्चो को कभी आईपैड टच भी नहीं करने दिया.

जर्नलिस्ट और बायोग्राफर्स ने ये प्रूव करके दिखाया कि स्टीव जॉब्स के घर में आईपैड अलाउड ही नहीं था. क्योंकि जॉब्स से बेहतर कौन जान सकता है कि मोबाइल डिवाइसेस कितने एडिक्टिव होते है. इसलिए स्टीव जॉब्स ने कभी भी अपने बच्चो को अपने प्रोडक्ट्स यूज़ नहीं करने दिए.

क्या आप जानते है फोन इतने एडिक्टिव क्यों होते है? क्या आपको जानना है कि हम खुद को और अपने बच्चो को फोन की एडिक्शन से कैसे बचा सकते है जो आप सबकी लाइफ को अफेक्ट कर रहा है? अगर आप भी इस सवाल का जवाब ढूंढ रहे है तो ये किताब पढ़िये.

ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए?

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पेरेंट्स

टीनएजर्स

कॉलेज स्टूडेंट

Millennials

ऑथर के बारे में

Adam Alter एक बेस्ट सेलिंग ऑथर, प्रोफेसर और कोलुम्निस्ट है. वो एनवाईयू में प्रोफेसर है. साथ ही वो ड्रंक टैंक पिंक के ऑथर भी है और उनकी अगली किताब भी आने वाली है जिसका टाईटल है एस्केप वेलोसिटी. एडम वाशिंगटन पोस्ट, न्यू यॉर्क टाइम्स और बाकि दूसरे पोपुलर पब्लिकेशन के लिए भी लिख चुके है.

इंट्रोडक्शन

इस स्केल के अनुसार दिए गए सवालों का जवाब दें.

O = Not Applicable

1- बहुत कम Rarely 2 = कभी कभार Occasionally

3= बहुत बार Frequently

4 = अकसर Often 5 = हमेशा Always

नंबर वन: जितना आपने सोचा था, उससे तकरीबन कितनी देर तक और आप ऑनलाइन रहते हो? नंबर टू.तकरीबन कितनी बार लोग आपके हमेशा ऑनलाइन होने की शिकायत करते है? नंबर श्री: तकरीबन कितनी बार आप बिना काम पड़े भी अपना ई-मेल चेक करते हो?

नंबर फोर: तकरीबन कितनी बार फोन की वजह से आपकी नींद पूरी नहीं हुई ? नंबर फाइव: तकरीबन तकरीबन कितनी बार आपने जब आप ऑनलाइन थे, ये कहा है कि” बस थोडा सा और”

इस स्केल में अगर आपके जवाब 7 या उससे नीचे है तो इसका मतलब आप इंटरनेट एडिक्ट नहीं हो. लेकिन अगर आपने 8-12 के बीच स्कोर किया की खतरनाक हद तक एडिक्शन हो चुकी है. आपका फोन यूज़ आपको और आपके करीबी लोगो को सिरियस प्रोब्लम दे रहा है. इस किताब में हम आपको बताएँगे कि आपको ऑनलाइन शोपिंग, वीडियो गेम्स, विज वाचिंग या सोशल मिडिया की एडिक्शन क्यों होती है. हम इनके अहम कारण पर डिस्कस करेंगे और आपको बताएँगे कि आप अपने बच्चो को इन सब चीजों का एडिक्ट बनने से कैसे रोक सकते है. इस किताब में ऐसे सोल्यूशन और सुझाव दिए गए है जो आपको इंटरनेट एडिक्शन से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते है और आप इस बुक में उन अलग अलग जाल के बारे में भी पढ़ोगे ताकि आप कभी दोबारा उनका शिकार ना बन सको.

The Rise of Behavioural Addiction

एडिक्ट कोई भी बन सकता है. इसकी कोई स्पेशल कैटेगरी नही होती, आप या हम कोई भी किसी लत का शिकार हो सकता है. आप ये नहीं बोल Dong Nguyen विएतनाम के एक विडियो गेम डेवलपर है, मई 2013 में उन्होंने एक गेम क्रिएट की और उसे रिलीज़ किया जिसे वो खुद भी बहुत

सकते कि ऐसा हमारे यहाँ या हमारे पड़ोस में नहीं होता

खेलते थे, ये गेम उनका ब्रेनचाइल्ड था.

इस गेम में प्लेयर्स को एक उड़ती हुई चिड़ियाँ के रास्ते की रूकावटे पार कराके उसे आगे बढ़ाना होता था. चिड़िया को कहीं टकराना नही था, वर्ना आप हार गए. प्लेयर्स को चिड़िया को बचाने के लिए मोबाइल स्क्रीन पर लगातार टैप करते रहना होता था.

ये गेम रातो-रात पोपुलर नही हुई. इस गेम को हिट होने में पूरे आठ महीने लग गये. ये जनवरी 2014 की बात थी, ये गेम एप्पल स्टोर की सबसे ज्यादा डाउनलोड होने वाली गैम बन गई थी. डॉना नगुयेन

$50,000 कमाए.

ने सिर्फ एड रेवेन्यू से एक दिन के

उन्हें तो खुश होना चाहिए था, उन्हें अपनी सक्सेस सेलिब्रेट करनी चाहिए थी. पर आप जानते है डोन्ग खुश नहीं थे, उन्हें लग रहा था जैसे उन्होंने एक एक यूजर ने एप्पल के स्टोर पर कमेन्ट में लिखा था” इस गेम में मेरी जिंदगी बर्बाद कर दी है. ये कोकीन से भी बदतर है’. एक और यूजर का कमेन्ट

मोंस्टर बना लिया है.

आया” इस गेम को डाउनलोड मत करना. मै सो नहीं पाता हूँ, खा नहीं। हूँ. मैंने अपने सारे दोस्तों को गँवा दिया है, मैं सारा दिन ये गेम खेलता हूँ

इसके सिर्फ एक महीने बाद फरवरी 2014 में डॉन्ग ने ट्वीट करते हुए लिखा आई एम सॉरी, अब से 22 घंटे बाद मैं ये गेम हटा दूंगा. अब मै और बर्दाश्त नहीं कर सकता”

और उन्होंने अपना वादा पूरा किया. बात सिर्फ ये थी कि ये गेम बहुत ज्यादा एडिक्टिव धी. कई लोगो की लाइफ में इस गेम की वजह से प्रोब्लम क्रिएट

रही थी. डॉन्ग ने गेम को हटा दिया और खुद भी कहीं गायब हो गये. वो लोगों का सामना करने से बच रहे थे. क्या आपने इस गेम का नाम सुना है?

क्या आप भी इसके एडिक्ट रहे थे?

कोई और गेम नहीं बल्कि फ्लैपी बर्ड था.

ऐसा कोई मोहल्ला नहीं था, कोई बस्ती नहीं थी कोई देश नही था जो इस गेम की एडिक्शन का शिकार ना हुआ हो. कहने का मतलब है कि एडिक्ट हर जगह है.

गली-मोहल्ले के नुक्कड़ में जो सिगरेट बिकती है उसके अंदर भी ड्रग्स है. दुनिया की हर इललीगल चीज़ में एक नशा छुपा है. लेकिन एडिवशन की चीजे सिर्फ बाहर ही नहीं बल्कि आपके ऑफिस, घर और बाकि जगहों में भी मौजूद है. ये आपकी जेब के अंदर ही है. और

वक्त आपने हाथ में भी पकड़ी हुई है.

ये नशा है आपका फोन.

इस

इंटरनेट एडिक्शन टेस्ट में आपने कितना स्कोर किया था? आपकी लाइफ में, करियर में या फिर फेमिली में जो भी प्रोब्लम है शायद उसकी वजह भी

आपका ये मोबाइल ही है.

और इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है. आप चाहकर भी इससे दूर नही रह सकते.

The Addict in All of Us

किसी की लत छुड़ाने का एक ही तरीका है कि उस इन्सान को उस चीज़ से दूर रखो जिसकी उसे एडिक्शन है. जैसे अगर आपको ऑनलाइन गेमिंग की लत है तो फिर कभी उस शहर में, उस घर में या उन दोस्तों के पास लौट कर मत जाना जिनके साथ आपको ये एडिक्शन लगी थी. खुद को ऐसे माहौल

से हमेशा बचा कर रखो जहाँ आपको एडिक्शन की लत लगे,

क्योंकि वो शहर, वो जगह या वो लोग आपको उस नशे की लत दोबारा लगा सकते हैं. चलिए हम यहाँ आइजक स्वर्ग की स्टोरी लेते है जिसे वर्ल्ड ऑफ़ बॉरक्राफ्ट की एडिक्शन थी.

1992 में आइजैक वेनेजुएला में पैदा हुआ था. उसे बेहद प्यार करने वाली माँ और ख्याल रखने वाले पिता मिले थे, हालंकि उसके पिता को बहुत काम रहता था और काम के सिलसिले में वो सारा दिन बाहर रहते थे.लेकिन जब भी वो घर आते, आइजैक को जोर से गले लगा लेते. आइजैक को घर में खूब प्यार मिलता था, सब कुछ ठीक चल रहा था कि फिर उसके पेरेंट्स का तलाक हो गया. वो और उसकी माँ वेनेजुएला छोड़कर मियामी में रहने लगे.

अपने पूरे टीनएज के दौरान आइजैक अकेलेपन से जूझता रहा. उसके पेरेंट्स के तलाक की वजह से वो कभी वेनेजुएला तो कभी यू.एस. रहता था. वो दोस्त जल्दी बना लेता था पर उसकी फ्रेंडशिप लॉन्ग टाइम तक नहीं रह पाती थी और ना ही उसके ऐसे खास दोस्त कभी बन पाए जिनसे वो अपनी

फीलिंग्स और ड्रीम्स शेयर सके.

आइज़क ने 14 साल की उम्र से वॉरक्राफ्ट खेलना शुरू कर दिया था. बाकि प्लेयर्स की तरह दो भी एक गिल्ड में शामिल हो गया था. गिल्ड मेंबर्स रोज़ आपस में चैट करते थे और कामरेडरी बनाते थे. आइजैक की अपने गिल्ड मेट्स के साथ क्लोज फ्रेंडशिप हो गई थी. वॉरक्राफ्ट की दुनिया के ज़रिये

उसे एहसास हुआ कि डीप फ्रेंडशिप किसे कहते है, क्योंकि रियल लाइफ में उसके कोई ऐसे मीनिंगफुल रिश्ते नही बन पाए थे.

फिर उसे वाशिंगटन डी.सी. की अमेरिकन यूनिवरसिटी में एडमिशन मिल गया. उसका पहला सेमेस्टर अच्छा गुजरा. वो स्ट्रेट ए स्टूडेंट था. लेकिन सेकंड सस्ते में आइजैक काफी स्ट्रेस में रहने लगा था. वो होस्टल के कमरे में अकेलापन महसूस करता था इसलिए उसने फिर से वॉरकापट खेलना शुरू कर दिया. और वो सारे र सारे सब्जेक्ट्स में स्ट्रेट ए से सी, डी, और ई तक पहुँच गया था.

आइजैक की माँ ने उसका एडमिशन रीस्टार्ट में करवा दिया. ये दुनिया का पहला इंटरनेट एडिवशन ट्रीटमेंट सेंटर है. रीस्टार्ट उन टीनएजर्स का ट्रीटमेंट करता है जो ऑनलाइन गेमिंग एडिक्ट है, ये सेंटर एक सिक्स वीक प्रोग्राम ऑफर करता है जहाँ पार्टीसिपेंट्स को रीस्टार्ट सेंटर में रहना पड़ता है, और

ये जगह सीएटल के जंगलों के अंदर है. इस सेंटर में टीनएजर्स को किसी भी तरह का गेजेट्स रखने और यूज़ करने की मनाही है. इन लोगो को नेचर

के बीच रहना होता है. उन्हें टॉयलेट साफ करना, अंडे वगैरह पकाना और मोनिंग में अपना बिस्तर ठीक करने जैसी बेसिक स्किल सिखाई जाती है. इन बच्चों को रोज फिटनेस जिम में ट्रेनिंग भी दी जाती है,

आइजैक ने भी अपना छैह हफ्ते का फिटनेस प्रोग्राम पूरा किया. उसे पहले से बेहतर फील हो रहा था. उसे फील हुआ जैसे उसकी लाइफ फिर

बार ट्रेक ।

लेकिन फिर एक गलती हो गई. आइज़क को फिर से वाशिंगटन डी.सी. में अमेरिकन यूनिवरसिटी जाना पड़ा क्योंकि उसे अभी अपनी कॉलेज डिग्री पूरी करनी थी.

पर जहाँ आपको कोई लत लगी हो, उसी जगह दुबारा जाना बहुत बड़ी गलती है.

आइजैक को वो डेट अच्छे से याद है, वो दिन था 21, फरवरी, 2013 का, बस इतना हुआ था कि उसे अपने एक बॉरक्राफ्ट गिल्ड के फ्रेंड का मैसेज मिला.

आइजैक कॉफिडेंट था, उसे भरोसा था कि वो गेमिंग एडिक्शन से पूरी तरह रीकवर हो चूका है इसलिए वो अब दुबारा इसका शिकार नही बन सकता, पर जब उसके फ्रेंड ने उससे मुछा कि क्या वो एक छोटे से वॉरक्राफ्ट सेशन ज्वाइन करना चाहेगा तो वो आइजैक मना नही कर पाया. 27 फरवरी के दिन आइजैक ने एक बार फिर से वॉरक्राफ्ट खेला और अगले पांच हफ्तों तक खेलता ही रहा. यहाँ तक कि वो रूम से बाहर नही निकला, उसने नहाना छोड़ दिया, क्लास अटेंड करना छोड़ दिया, बस दिन-रात वो वॉरक्रापट ही खेलता रहता था. उसे एक गेम की ऐसी लत गई कि वो सिर्फ चार घंटे ही सो पाता था. और जब उठता तो फिर से खेलना शुरू कर देता, जो पूरे 35 दिन उन्ही कपड़ों रहा जो उसने 21 फरवरी के दिन पहने थे. उसने कॉलेज होस्टल के डोरमेन के साथ ऐसी सेटिंग कर ली थी कि वो उसका खाना सीधे उसके रूम में

पहुंचा देता था. आइजेक की डेस्क पर कचरे का ढेर लग गया था. उसके मोबाइल पर 142 कॉल आये थे लेकिन उसने एक का भी रीपलाई नही किया. फिर जब 143वा कॉल आया तो उसने उठा लिया, ये उसकी माँ का फोन था. उसकी माँ ने उसे बताया कि वो दो दिन बाद उससे मिलने आ रही है, तब जाकर आइजेक ने

फाइनली गेम खेलना छोड़ा और अपनी हालत देखी तो हैरान रह गया. वो एक महीने से वही कपड़े पहने था, खाने-पीने के खाली पैकेट से उसका रूम भरा हुआ था. उसके बालो में गंद भर गई थी और वो काफी मोटा हो गया था. खुद को शीशे में देखकर उसे एहसास हुआ कि सारा दिन रूम में बैठकर गेम खेलने से उसका वजन 60 पाउंड बढ़ गया है, उसकी माँ उससे मिलने आई तो आइज़ैक रो पड़ा, उसने अपनी गलती क्रुबूल कर ली थी.

उन्होंने मिलकर डिसाइड किया कि उसे बार फिर से रीस्टार्ट जाना चाहिए. इस बार उसने सिक्स वीक इन पेशेंट प्रोग्राम और उसके बाद 7 महीने का स एक बार आउटपेशेंट प्रोगाम करने का फैसला लिया. आइजैक फिर हमेशा के लिए सीएटल में रहा और कभी लौटकर वाशिंगटन डी. सी. नहीं गया. सिक्स वीक पेशेंट प्रोग्राम के बाद आइजैक रीस्टार्ट सेंटर के पास ही रहने लगा था, उसे एक पार्ट टाइम जॉब भी मिल गई थी.

फिर कुछ महीनो बाद उस इक फिटनेस जिम में मैनेजर की जाब मिल गई, उस जिम के मालिक ने जब जिम बैचने फैसला लिया तो आइजैक ने उनसे वो जिम खरीद लिया. सिर्फ चार महीने बाद ही उसके मैनेजमेंट के अंडर जिम की मेंबरशिप तीन गुना बढ़ गई थी, आइजैक के अब अच्छे दोस्त भी बन गए

थे. वो अब एक फिट, हेल्दी और एक सक्सेसफुल एंटप्रेन्योर था. उसकी वॉरक्राफ्ट की एडिक्शन हमेशा के लिए दूर हो चुकी थी.

The Biology of internet Addiction

बिहेवियरल एडिक्शन के पीछे की वजह क्या है? इसकी वजह है डोपामाइन लेवल में बढ़ोत्तरी और साइंकोलोजिकल प्रोब्लम्स का एक साथ होना. अगर आप डिप्रेशन या टेंशन में है तो शायद आप अपना दर्द कम करने के लिए फूड, ड्रग या किसी और नशे का सहारा लेते हो. अगर आप अकेले हो, आपका कोई दोस्त नहीं है तो आप शायद ऑनलाइन गेमिंग में फ्रेंड्स बनाओगे.

हमे सिर्फ डोपामाइन हिट्स ही एडिक्ट नहीं बनाता. ये स्वसटेन्स एडिक्शन से अलग है. शराब, तंबाकू या हेरोइन जैसे ड्रग्स का सेवन करते ही हम तुरंत अच्छा महसूस करने लगते है. हमें लगता है जैसे हमारा तनाव, हमारी परेशानियां दूर हो गई है. हमे अपना दिलो-दिमाग हल्का लगने लगता है. लेकिन अगर डोपामाइन ही असली गुनहगार होता तो शायद हर बच्चा जो पहली बार आईस क्रीम टेस्ट करता है, वो इसका एडिक्ट बन जाता. बीहेवियरल एडिक्शन के पीछे एक और वजह है, और वो हे साईंक्लोलोजिकल प्रोब्लम्स,

एक इन्सान होने के नाते हम सब रोमांटिक लव और पेरेंटिंग चाहते है, पर क्यों? क्योंकि हमारी ह्यूमन स्पीशीज को अपने जींस को आगे बढ़ाना है. हम अपने बच्चों का ख्याल रखते है, उन्हें पाल-पोस कर बढ़ा करते है ताकि वो सर्वाइव कर सके और जेनरेशन को आगे बढ़ा सके. हमे लव का कांसेप्ट अच्छा लगता है क्योंकि हमें अपने जींस पास करने के लिए सेक्स की जरूरत पडती है. बस इतनी सी बात है. अब अगर किसी को पेरेंट्स प्यार ना मिले या कोई लाइफ पार्टनर ना मिले जो उसे प्यार करे तो जाहिर है कि वो एडिक्शन का शिकार हो सकता है.

हम सबको अपनी लाइफ में पेरेंट्स के केयर और प्यार की जरूरत होती है, हमे जीवनसाथी भी चाहिए जो हमे चाहे. हम अपनी माँ का अनकडिशनल लव और केयर चाहते है, खासकर पैदा होने से पांच साल की उम्र तक. यही वो उम्र होती है जब एक बच्चे में सीखने की संभावना सबसे ज्यादा होती है. इस उम्र में बच्चा कोई भी लेंगुएज़ या सामाजिक तौर-तरीके जल्दी सीखता है. लर्निंग, फोकस्ड अटेंशन और सवसेस का एम रखने के लिए लेंगुएज़ ही पहली सीढ़ी है. और सामाजिक तौर-तरीके हमे दोस्ती करना, और रिश्ते निभाना सिखाते हैं और यही आगे चलकर हमें इंटीमेट रिलेशनशिप बनाने में भी हेल्प करते हैं.

अगर किसी बच्चे को प्रॉपर प्यार और केयर ना मिले और वो बचपन से ही फोन या टेबलेट के साथ वक्त गुज़ारे तो वो बच्चा बेसिक लाइफ स्किल्स कभी नहीं सीख पायेगा. वो किसी और के तो क्या खुद अपने ईमोशंस भी नहीं समझ पाएगा. वो सक्सेस पाने के लिए मेहनत करना नहीं सीखेगा. उसे दूसरो के साथ शेयरिंग और एम्पयी करनी नहीं आएगी. ऐसा बच्चा दूसरे बच्चे को हर्ट करने के बाद भी सॉरी नहीं फील करेगा. वो किसी भी दूसरे बच्चे को जाकर सीधा तुम मोटे हो या बदसूरत हो बोल देगा और चलता बनेगा. क्योंकि उसे पता ही नहीं कि उसने किसी को हर्ट किया है.

ये तब होता है जब बच्चा फेसियल एक्सप्रेशन रीड नही कर पाता, क्योंकि उसे बस मोबाइल या टेबलेट चलाना आता है. इंसान की जिंदगी में एन्जाइटी, डिप्रेशन, अकेलापन तब आता है जब उसे बचपन में माँ-बाप का प्यार ना मिला हो. और इस साईकोलोजिकल प्रोब्लम

की वजह से ऐसे बच्चो या बड़ो को डोपामाइन हिट लेने के लिए शराब, सिगरेट, ड्रग्स या ऑनलाइन शोपिंग, वीडियो गेम्स, गैंबलिंग, सोशल मिडिया या बिंज वाचिंग की लत लग जाती है. और जरा सा भी इनसिक्योरिटी, डिप्रेशन या अकेलापन फील होते ही वो इन चीजों का सहारा लेने लगते है. एडिक्शन कोई भी हो, इसका रूट कॉज और क्योर यही है कि आप बचपन से ही बच्चो को एक प्यार भरा माहौल दे, उनके साथ भरपूर वक्त बिताए, उन्हें अटेंशन दे. अगर आप ये चाहते है कि आपका बच्चा आपके जैसी मिज़रेबल लाइफ ना जिए, तो एक अच्छे पेरेंट बनकर दिखाए, अपने बच्चे को भरपूर प्यार दे जिसका यो हकदार है,

आपका बच्चा बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनेगा, एक सक्सेसफुल इंसान बनेगा. वो किसी अपनी खुशियों या गम के लिए किसी ड्रग या बिहेवियर पर डिपेंड नहीं रहेगा, उसे पता होगा कि वो अपने आप में एक कम्प्लीट इंसान है, उसे किसी का ध्यार पाने के लिए किसी नशे की जरूरत नही है. और आप उसके साथ 100% हो, और वो पूरे कांफिडेंस के साथ दुनिया का सामना करेगा और सक्सेसफुल बनकर दिखायेगा.

The Ingredients of Behavioural Addiction चलिए अब फोन एडिक्शन पर फोकस करते है. यानि सोशल मिडिया, ऑनलाइन शोपिंग, बिंज वार्चिंग, और वीडियो गेम्स, ऐसे 6 हुक्स है जो गेम

डिज़ाइनर यूज़ करते है ताकि लोग अपने फोन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करे, और जहाँ भी जाए हमेशा मोबाइल से चिपके रहे. फर्ट हुक है गोल्स. अब जैसे फिटनेस वाचेस को ही ले लो, आप अपने स्टो काउंट चेक करोगे, कैलोरी काउंट करोगे, एक्सरसाइज़ रेप्स, पल्स रेट यानी हर चीज़ चेक करते रहोगे, आप सारा दिन स्केल और नंबर ही देखते रहोगे.

जिन लोगो के पास फिटनेस watch है उनके साथ कुछ इस तरह की प्रोब्लम होने लगती है जैसे अगर उन्हें रनिंग करनी ही करनी है चाहे उन्हें पैर क्यों ना दर्द करने लगे, कैलोरी काउंट करना चाहे वो भूखे मर रहे हो. लेकिन ये हेल्दी नहीं है, इसे हम फिट रहना नही बोल सकते है. फिटनेस watch पहनने वाले लोग वही देखते रहते है कि आज हम सिर्फ 13 किलोमीटर भागे या इतना भागे. और फिर वो अपना टारगेट पुरा करने के लिए और भागने लगता है. ऐसे लोग अपने स्टेप काउंट के साथ कभी सेटिसफाई नहीं होते, इसलिए वो रनिंग करता रहता है. खाते वक्त भी ऐसे लोग हमेशा कैलोरी काउंट करते रहते है. बॉडी को एनर्जी के लिए शुगर चाहिए. बॉडी को फिजिकल और मेंटल एव्टिविटीज़ के लिए कार्बोहाईड्रेट्स की ज़रूरत पड़ती है. फिटनेस वाच पहनने वाले ब्रेड, चावल, चीनी खाना छोड़ देते है चाहे वो कितने की कमजोर क्यों ना हो जाये.

सेकंड हुक है फीडबैक, आपने शायद कैंडी क्रश खेला होगा, इसके मैकेनिक्स एकदम सिंपल हैं. 3 या 5 कैंडीज को एक लाइन में मैच करो तो पॉइंट मिलते है. लेकिन एडिक्टिव पार्ट ये नही है, यहाँ जो ड्रग यानी लत है उसे गेम डिज़ाइनर्स द जूस बुलाते है, हर मैच के लिए कैंडीज जलने लगती है, हर राईट मूव के बाद विजुअल इफ्केट्स और साउंड प्ले होता है. यही इसका जूस हैं. हर क्लिक पर इंस्टेंट फीडबैक माँगा जाता है, स्क्रीन पर हर टैप के साथ और आप कैंडीज मैच करते रहते हैं और गेम के एडिक्टिव बन जाते है.

धर्ड हुक है प्रोग्रेस, शिगेरू मियामोटो एक मास्टर गेम डिज़ाइनर है. उन्होंने सेकंड, फिफ्य और सिक्स्थ और इसी तरह आगे के टॉप ग्रोसिंग गेम्स डिजाईन किये है, मियामोटो वो इन्सान है जिन्होंने मारियों ब्रोस और डंकी कोंग बनाया. जितने भी पोपुलर गेम आपने खेले होंगे, उनके पीछे मियामोटो

का ही दिमाग

निटेंडो ऐसी कंपनी थी जो खत्म होने के कगार पर थी. फिर मियामोटो को हायर किया गया और उन्होंने मारियो brothers क्रिएट किया. गेम की शुरुवात में सिर्फ स्पेस होता है. मारियों का न्यू प्लेयर अपनी मज़ी से कंकाल एक्सप्लोर करके पता लगाता है कि कोन से एरो से मारिओ वाक या जम्प करता है और गेमर के पास सिर्फ आगे बढ़ने की चॉइस है. लेवल वन में प्लेयर गेम के मैकेनिक्स सीख जाता है. ये खुद में एक मैन्युअल होता है. पर मारियो किसी को भी बोरिंग नहीं लगता, एक्सपर्ट को भी नहीं. क्यों? क्योंकि मियामोटो ने गेम में सीक्रेट टेक्नीक्स डाले है. क्या आप हंड्रेड लाइन्स टर्टल के बारे में जानते हो? इसमें एक पॉइंट ऐसा आता है जब प्लेयर मारियो को जितनी बार चाहे टर्टल पर जम्प करा सकता है ताकि उसे और लाइफ मिल जाये. एक एक्सपर्ट प्लेयर को ड्रेगन को हराने और प्रोसेस को बचाने के लिय वो एक्स्ट्रा लाइव्स चाहिए होती है. मारियो में यूज़वल टर्टल एक बार जम्प करने पर चला जाता है पर हंड्रेड लाइव्स टर्टल एक सीक्रेट है जो सिर्फ एक एक्सपर्ट प्लेयर ही जानता है, फोर्थ हुक है एस्वलेशन (escalation). जैसे-जैसे आप गेम में एक्सपर्ट होते जाते है, गेम मुश्किल होती जाती है. अब गेम टेट्रिस को ही ले लो. इसे

रशियन साइंटिस्ट अलेक्सी पजिल्नोव ने इन्वेंट किया था, टेट्रिस एक साइड प्रोजेक्ट के तौर पर किएट हुआ था. ये टेनिस और four पीस डोमिनो गेम

टेत्रोमिनोज़ का मिला-जुला रूप है.

पजित्नोव इस मेम को प्रोगाम करते-करते खुद एडिक्टिव हो गए थे. वो फ्रस्ट्रेड हो गए थे क्योंकि वो गेम को खत्म करने वाला कोड फिनिश नहीं कर पा रहे थे, फिर जब उनका काम पूरा हुआ तो उनके कलीग्स भी इस गेम के एडिक्ट बन गए.

इसमें लेवल सीक्रेट होते हैं, जैसे-जैसे आप इसमें स्किल्ड होते है गेम और हार्ड होता चला जाता है. ब्लॉक्स तेज़ी से नीचे गिरते हैं, आपको उनकी

जरूरत नहीं होती फिर भी वहीं आपको मिलते हैं.

जब आप एक लाइन कम्प्लीट करते है तो वो तुंरत गायब हो जाती है, और फिर आपकी सारी गलती बचती है जो आपको ठीक करनी होती है और यही है एस्क्ले शन, मिहाइ विकसेंटमिहाइ (Mihaly Csikszentmihalyi) ने भी अपनी इंटरनेशनल बेस्ट सेलिंग बुक फ्लो में इसे एक्सप्लेन किया है. एंजाईटी और बोरडम के बीच एक पतली सी लाइन है. गेम अगर ईजी हो तो एक्सपर्ट बोर हो जायेंगे और गेम खेलना बंद कर देंगे. तो इसका सोल्यूशन है कि लेवल और डिफिकल्ट बनाये जाए जो गेमर की एबिलिटी से मैच करे और उसे चेलेंज करे कि वो और ज्यादा कोशिश करे. इस तरह से प्लेयर बोर होकर गेम क्विट नहीं करेगा क्योंकि उसके सामने चैलेंज होंगे.

हर टीचर और पेरेंट को ये बात मालूम होनी चाहिए. और एक स्टूडेंट या बच्चे को एंगेज होने के लिए एक्टिविटी उनके एक्सपर्ट लेवल से मैच होनी चाहिए पर टास्क भी चेलेंजिग होने चाहिए.

एस्क्लेशन रूल है कि प्लेयर हमेशा जीतेगा तो बोर हो जायेगा. और अगर हमेशा हारेगा तो मेम क्विट कर देगा इसलिए तो कैसिनो में स्लॉट मशीन में कुछ गिने-चुने ही जीत पाते है और बाकि सब हारते है. और हर गैम्बलर ये सोचकर दांव लगाता है कि शायद वो अगला दांव जीत जाए.

पर हर दांव के साथ वो अपना पैसा हारता रहता है, और जैसे ही गैम्बलर क्विट करने की सोचता है कि स्लॉट मशीन उसे जीता देती है. और वो एक बार

फिर से गेम खेलने के लिए मोटीवेट हो जाता है. लाटरी उअर टीवी गेम शोज़ का भी यही सीक्रेट है. व्युवेर्स को जब लगता है कि कोई नही जीत रहा तो अचानक जैकपॉट विनर अनाउंस होता है और व्यूवर्स फिर से गेम देखने में मशगूल हो जाते ।

फिफ्थ हुक है क्लिफहैंगर। क्या आपका वो गाना याद है सेप्टेमबर बाई बी गीज़? जरा इस सोंग को अपने माइंड में रीफ्रेश करो, बड़ी कैची ट्यून है ना इसकी? “क्या तुम्हें सेप्टेम्बर की 21st नाईट याद है” इसका कोरस और अगली लाइन जुबान पे चढ़ जाती है. इसे ही क्लिफहेंगर बोलते है. लोग किसी गाने, मूवी या सीरीज के एडिक्टिव हो जाते है, क्योंकि हमारा ब्रेन क्लोजर पसंद करता है, हमे कोई क्लोजर चाहिए होता है ताकि हम मूव ओन हो सके और नेक्स्ट टास्क पर फोकस कर सके. अगर मूवी ओपन एंडेड हुई तो हम इसके लिए पागल हो जाते है. हम यही सोचते रहते है कि एंड में क्या होगा. सेम यही चीज़ पोड कास्ट सीरियल और आल टाइम टॉप टीवी सीरीज के साथ भी लागू होती है जैसे द सोप्रानोस वगैरह, और ये लिस्ट

एंडलेस है. अब आप समझ गये होंगे कि क्यों अक्सर लोग एक्स लवर या पार्टनर को भूल नही पाते जिसने अचानक से ब्रेक-अप कर लिया. वो इसलिए क्योंकि हमे क्लोजर नही मिल पाया. ये एक क्लिफहँगर वाली सिचुएशन है.

सिक्स्थ और लास्ट हुक है सोशल इटरएक्शन यानि लाइक्स जो हमे सोशल मिडिया में मिलले है. हम अपनी फ़ोटोज़, वीडियोज या स्टेट्स पोस्ट करते है ताकि हमे ज्यादा से ज्यादा लाइक्स मिल सके,

आपको एक सीक्रेट टिप देते है, अगर आप अपने फीड के हर पोस्ट को लाइक करे तो भी आपको ज्यादा लाइक्स मिलेंगे, लोग आपकी पोस्ट तभी लाइक करते है जब आपने भी उनकी पोस्ट पर लाइक किया हो, स्मीत चावला एक एप डेवलपर है. उन्होंने लवमैटीकली क्रिएट किया है जो ऑटोमेटिकली आपके इन्स्टाग्राम की पोस्ट पर लाइक करता है. 14, फ़रवरी,

2014 को चावला ने 5000 यूजर्स को अपनी एप डाउनलोड करने दी थी. सिर्फ दो घंटे बाद ही इन्स्टाग्राम ने लवमैंटीकली की टम्म्स और कंडिशंस को

टोड़ने करने के लिए शट डाउन कर दिया था.

Conclusion

चलिए एक बार फिर से हम इंटरनेट के छह एडिक्शन हुक्स को दोहराते है. ये है गोल्स, फीडबैक, प्रोग्रेस, एस्क्लेशन, क्लिफहैन्गर और सोशल इंटरएक्शन, इनके चक्कर में आप कभी दोबारा मत पड़ना.

सब्सटेंस या बिहेवियर के प्रति कोई भी एडिक्टेड हो सकता है. लोगो के ऐसे कोई ग्रुप नहीं है जो इनकी तरफ ज्यादा एडिक्टेड हो या कोई ऐसी स्पेशल ब्रेन वायरिंग नहीं है जो इन्सान को एडिक्ट बना दे. सच तो ये है कि शराब, सिगरेट और ड्रग्स इन्सान को एडिविटेव बनाने के लिए ही खासतौर पर बनाये गए है. यही वजह है कि लोग इनके चंगुल में फंस जाते है और चाह कर भी छोड़ नही पाते है. यही बात जुए की लत, सोशल मिडिया, ऑनलाइन शोपिंग, बिज वाचिंग, और वीडियो गेम्स पर भी लागू होती है. गेम डिज़ाइनर्स लोगों को एडिक्टेड

बनाने के लिए इंटरनेट हुक्स का इस्तेमाल करते है.

बिहेवियरल एडिक्शन में साइकोलोजिकल प्रोब्लम मेन फीचर है. लेकिन अगर किसी के पास एक प्यार करने वाला साथी और देखभाल करने वाले पेरेंट्स है तो वो बिहेविरियल एडिक्शन का शिकार होने से बच सकता है.

एजाईटी, डिप्रेशन और अकेलेपन से घबरा कर लोग अक्सर कुछ ऐसी एक्टिविटीज़ में इन्वोल्च हो जाते है जो उन्हें डोपामाइन हिट का इफेक्ट देती है.

लेकिन अब सवाल ये है कि इस फोन की एडिक्शन से बचा कैसे जाए? अपना फोन दूर रख दो, सारे एप्स डिलीट कर दो, ऐसे जियो जैसे आप 80 या

90 के दशक में जी रहे हो जब इंटरनेट और मोबाइल नही हुआ करते थे, और जिन्हें आपसे मिलना होगा या बात करनी होगी, वो कोई ना कोई तरीका ढूंढ लेंगे. वर्कप्लेस में जरूरी मैसेज आते रहेंगे और आपको पता भी चलता रहेगा. इंटरनेट को एकदम अवॉयड करने से आप किसी मुसीबत में नही फंसोगे और ना ही किसी एडिक्शन हुक का शिकार बन पाओगे.

क्या आपको लगता है कि इंटरनेट बिना जीना मुश्किल है? तो जरा सोचो कि 80 और 90 के लोग कैसे रहते होंगे? म्यूजिक तब भी होता था, तब भी लोग मजे करते थे. ऑफ़लाइन रहकर भी आप उतना ही एन्जॉय कर सकते हो, आप माउंटेन क्लाइम्बिंग कर सकते हो, नैचर वॉक पर जा सकते हो या लाइव कंसर्ट अटैंड कर सकते हो, या अपनी फेमिली और दोस्तों के साथ खाना खाने रेस्टोरेन्ट वरगैरह जा सकते हो,

फोन के बगैर आप अपने आस-पास की दुनिया को और बेहतर तरीके से देख और समझ पाएंगे. आपकी फेमिली और फ्रेंड्स और ये पूरी दुनिया कितनी इंट्रेस्टिंग है ये आप तभी जान सकते हो जब आपका मोबाइल आपसे दूर होगा, तो कुछ देर के

लिए अपना मोबाइल टर्न ऑफ कर दो, अपना राऊटर की वायर निकाल कर रख दो और इस दुनिया को देखो क्योंकि अभी भी बहुत कुछ ऐसा है जो

हमने एक्सप्लोर नहीं किया है.

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