INSIGHT by Tasha Eurich.

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यह किसके लिए है

-ये जो अपने बाप को समझाना चाहते हैं।

-वै जो अपने व्यवहार को पहले से बेहतर बनाना चाहते हैं।

वे जो अपनी रोग को पहले से बेहतर बनाना चाहते हैं।

लेखिका के बारे में

तासा यूलि (Tasha Eunch) एक साहकोलाजिस्ट, रीसर्चर और न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलिंग लेखिंका है। वे अलग अलग बिजनेस के कर्मचारियों को पहले से बेहतर बनाने का काम करती । पिछले 15 सालों से उन्होंने लीडर्स के साथ साथ कर्मचारियों और कंपनियों की मदद की है ताकि वे सुद को अच्छे से साझा सकें।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपको किसी ने कुछ मजाक में कहा हो और आपको यह पता हो कि उसने सिर्फ मजाक किया है, लेकिन फिर भी आपको गुस्सा आ गया हो? क्या आपको कभी कभी यह समझ में नहीं आता कि आप जो कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं? अगर हाँ, तो चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि यह सिर्फ आपकी समस्या नहीं है।

यह किताब हमें बताती है कि क्यों खुद को समझना बहुत जरूरी है और कैसे आप खुद को समझ सकते हैं। साथ ही यह किताब बताती है कि एक टीम कैसे खुद को समझ सकती है, जिसमें बहुत से लोग साथ मिलकर काम करते हैं।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

-खुद को समझने से किस तरह से आप खुश रह सकते हैं।

खुद को समझने के लिए किन बातों से पर्दा उठाना जरूरी है।

किस तरह के लोगों को आप कभी उनकी गलती का एहसास नहीं दिला सकते।

जब हम खुद को अच्छे से समझ पाते हैं तो हम ज्यादा खुश रहते हैं।

इसान की एक खास बात यह है कि वो खुद को समझा सकता है। वो अपने कामों पर ध्यान देकर उसे सही या गलत का दर्जा दे सकता है, वो यह तय कर सकता है कि एक दिए गए हालात में उसका बर्ताव कैसा होगा और वो अपनी भावनाओं को समझ सकता है कि किस तरह के हालात में उसे केसा महसूस होगा।

हमारे अदर यह काबिलियत तो है कि हम खुद को समझ सके, लेकिन बहुत से लोग इस काबिलियत का इस्तेमाल नहीं करते। इसका इस्तेमाल करने का फायदा यह है कि जब हम खुद को समझते हैं तो हम खुश रहते हैं. बेहतर फैसले ले पाते हैं और बेहतर रिश्ते बना पाते हैं। रीसर्च में यह बात सामने आई कि खुद को समझने के दो पहलू हो सकते हैं भीतरी और बाहरी।

भीतरी पहलू का मतलब हमें यह पता होना चाहिए कि हमारी पसंद नापसंद क्या है और हम किस तरह से रहना पसंद करते हैं। बाहरी पहलू का मतलब हमें क्या लगता है कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं। इसका मतलब होता है खुद को एक बाहरी व्यक्ति की नजर से देख पाना।

खुद को समझने के लिए हमें 7 तरह की बातों पर ध्यान देना होगा।

सबसे पहले हैं हमारी वेल्यूस, कि हम किस तरह के उसूलों पर काम करते हैं और एक दिए गए हालात में किस तरह के फैसले लेते हैं।

दूसरे और तीसरे है हमारे शौक और हमारी उम्मीदें जो यह तय करती है कि हम किस तरह के काम को करना पसंद करते हैं।

चौथा है हमारा फिट, जो यह तय करता है कि हम किस तरह के वातावरण में सबसे ज्यादा खुश रहेंगे।

पाँचवाँ है पैटर्न जो यह तय करता है कि हमारी पर्सनैलिटी क्या होगी और हमारा बर्ताव कैसा होगा।

छठची है हमारा रीएक्शन जो यह दिखाता है कि हम एक दिए गए हालात में किस तरह के कदम उठाएगे और कैसे रीएक्ट करेंगे।

सातवां और आखिरी है यह जानना कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं।

खुद को बेहतर तरीके से समझ पाने के लिए आपको अपने ऊपर से कुछ पर्दे उठाने होंगे।

क्या आपको कभी कोई ऐसा व्यक्ति मिला है जिसे लगता हो कि वो बहुत अच्छा है और उसने जो किया वो सही किया बल्कि हर कोई उसे नापसंद करता होर कोई ऐसा जो खुद को बहुत काबिल समझता हो लेकिन असल में औसत से भी नीचे हो? लोग अक्सर खुद को ज्यादा काबिल समझते है और यह बात आप पर भी लागू होती है।

अगर आपको खुद को अच्छे से समझना है तो आपको खुद पर से तीन पर्दे उठाने होंगे – ज्ञान का पर्दा, भावनाओं का पर्दा और बर्ताव का पर्दा।

जान का पर्दा तब लगता है जब आप यह नहीं देखते कि आपको कैसा पफार्म कर रहे हैं बल्कि यह देखते हैं कि आपको कैसा पर्मि करना चाहिए। अमेरिका के 92% लोग सोचते हैं कि वे औसत से अच्छे डराइवर है, ले किन यह संभव ही नहीं हो सकता। मैथ्स के हिसाब से सिर्फ 50% लोग औसत से अच्छे हो सकते हैं और बाकी उससे कम होंगे। इसका मतलब 42 % लोग खुद को कुछ ज्यादा काबिल समझाते हैं।

भावनाओं का पर्दा मतलब सोच समझ कर जवाब ना देना बल्कि आपको उस समय केसा महसुस हो रहा है उसके हिसाब जवाब देना। एक्ञाम्पल के लिए – आप से पूछा जाए कि आपको क्या लगता है कि आपके कामयाब होने की संभावना कितनी है? ऐसे में अगर आप अभी अभी एक गोटीवेशनल वीडियो देखकर आए हैं तो आपको लगेगा वो संभावना ज्यादा है लेकिन अगर आप अभी अभी अपने बिजनेस में एक नुकसान देखकर आए हैं तो आपको लगेगा वो संभावना कम है। इस तरह से आपका जवाब आपके मूड पर निर्भर करता है।

बर्ताव का पर्दा तब सामने आता है जब आप खुद को दूसरे की नजर से नहीं देख पाते बहुत से लेखकों को लगता है कि उनकी किताब बहुत अच्छी लिखी गयी है लेकिन जब यो मार्केट में जाती है तो उसके रिव्यू अच्छे नहीं आते। इस तरह से वो लोग खुद को दूसरों की नजर से नहीं देख पाए।

इसके अलावा आज के वक्त में बहुत से लोगों को लगता है कि वे बहुत खास हैं। उन्हें उनके माता पिता बताते हैं कि वे जो चाहे वो हासिल कर सकते हैं। लेकिन यहां पर आपको यह समझना होगा कि सिर्फ आपके सोचने से आप वास नहीं बन जाते। इस तरह की सोच रखने वाले लोग अक्सर खुद को पर्फेक्ट समझते हैं और गलतियों को सह नहीं पाते।

खुद को समझने की कोशिश अगर आप गलत तरीके से करेंगे तो इसके नतीजे भी गलत हो सकते हैं।

खुद को समझाने के लिए बहुत से लोग अपनी भावनाओं पर और अपने खयालों पर ध्यान देने लगते हैं। लेकिन ऐसा करने के बहुत से नेगेटिव नतीजे भी हो सकते हैं। हमारा दिमाग बहुत आलसी होता है और वो हमें वो जवाब देता है जो उसे आसानी से मिल जाता है। अगर आपको बहुत ज्यादा गुस्सा आता है, तो शायद आपका दिमाग आपको यह जवाब दे सकता है कि आप बुरे इसान हैं। इसका मतलब यह कि जरूरी नहीं है कि आपके नेगेटिव भावनाओं के होने का मतलब आप एक खराब इंसान हैं। खुद को ज्यादा समझने की कोशिश करने वाले हमेशा अपने फैसलों पर शक करते रहते हैं। वे यह सोचते रहते हैं कि उन्होंने सही किया या गलत किया। वे हमेशा खुद में कमियां निकालते रहते हैं। इस तरह से उनमें तनाव का लेवेल बहुत ज्यादा रहता है और खुद को समझने की बजाय वे खुद को डिप्रेशन में डाल देते हैं।

खुद को समझाने के लिए आपको एक फ्लेक्सिबल माइडसेट रखना होगा। आपको यह समझाना होगा कि अगर आप उसी चीज़ को अलग नजरिए से देखें तो आपको चो अच्छी और बुरी दोनों लग सकती है।

इसके अलावा आप यह जानने की कोशिश मत कीजिए कि आप जैसे भी हैं वैसे क्यों हैं। बल्कि यह जानने की कोशिश कीजिए कि आप असल में किस तरह के व्यक्ति हैं। आप खुद को समझने की कोशिश कीजिए, ना कि उसके पीछे की वजह जानने की कोशिशा क्योंकि आपका दिमाग आपको तरह तरह के नेगेटिव जवाब देने लगेगा और आप अगर वो मान लेंगे तो आप खुद को नहीं बदल पाएंगे।

अगर आपको अपनी नेगेटिव भावनाओं को काबू करता है तो आप उसे एक नाम देना शुरू कर दीजिए। रीसर्च में यह बात सामने आई है कि जब आप अपने नेगेटिव भावनाओं

को एक नाम देते हैं तो आप उसे समझा पाते हैं और इस तरह से उसे काबू कर पाते हैं। इससे आप उन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देते।

इसके बाद अंत में आप अपनी नेगेटिव भावनाओं पर अपना ध्यान लगाए मत रखिए। बहुत बार जब हम किसी से गुस्सा होते हैं तो उससे लड़ने के बाद बहुत देर तक अपने दिमाग में ही उसे मारते रहते हैं और उसके साथ झगड़ा कर सकते हैं। तनाव में होने पर हम अपनी जिन्दगी भर की नाकामियों को याद करते रहते हैं। ऐसा करने से आप कभी खुद को नहीं समझा पाएंगे। इससे आपका तनाव और बढ़ जाएगा।

ध्यान कर के आप खुद को बेहतर तरह से समझ सकते हैं।

लोग अक्सर ध्यान को धर्म से जोड़ने लगते हैं और जो लोग इसका नाम पहली बार सुनते हैं उनके दिमाग में एक साधु की तस्वीर बन जाती है। लेकिन यह जरुरी नहीं है कि ध्यान करने के लिए आपको साधू बनना पड़े। ध्यान करने का मतलब होता है अपनी भावनाओं या विचारों को अच्छा या खराब ना कहकर सिर्फ उन पर ध्यान देना इससे आप खुद के बारे में नई बातें जान पाएंगे. खुद को अच्छे से समझ पाएगे और ज्यादा खुश रह पाएंगे।

लेखिका हमें तीन तरह के ध्यान करने के तरीकों के बारे में बताती हैं

सबसे पहले तरीके को रीफ्रेमिंग कहते हैं। इसका मतलब होता है जिस हालात को आप बुरी नजर से देख रहे हैं, उसी को अलग नजर से देखने की कोशिश कीजिए। अगर आपको कुछ नुकसान हुआ है तो आप यह सोचिए कि किस तरह से आगे चलकर आपको इस नुकसान से फायदा हो सकता है। अगर आपका ब्रेकअप हुआ है तो यह देखिए कि कैसे इसमें आपको फायदा हो सकता है।

दूसरे तरीके को कंपेयरिंग एन्ड कान्ट्रेस्टिंग कहते हैं। इसमें आप यह देखते हैं कि समय के साथ किस तरह से आपके विचार बदल गए हैं। यह सोचने की कोशिश कीजिए कि दो साल पहले आप अपने काम के बारे में क्या सोचते थे और अब आप क्या सोचते हैं।

अंत में तीसरा तरीका डेली चेक इन। हर रोज कुछ वक्त निकाल कर यह सोचने की कोशिश कीजिए कि आज आपके साथ क्या अच्छा हुआ और आप कल क्या बेहतर कर सकते हैं। यह सोचने की कोशिश कीजिए कि आज के दिन से आप क्या सीख सकते हैं।

यह तीन तरीके अपना कर आप खुद को अच्छे से समझ सकते हैं।

खुद को अच्छे से समझ पाने के लिए आपको यह समझना होगा कि दूसरे आपको किस तरह से देखते हैं।

आपको दूसरे किस तरह से देखते हैं यह भी जानना आपके लिए जरूरी है। कभी कभी हम खुद के बारे में झूठी बातें अपने दिमाग को बताने लगते हैं। हम खुद को एक बाहरी

व्यक्ति की तरह नहीं देख पाते। इसलिए हमें एक बाहरी व्यक्ति की जरूरत होती है। ऐसे हालात में लोग अपने दोस्तों के पास फीडबैक मांगने के लिए जाते हैं।

लेकिन यहीं पर सारी समस्या शुरू होती है। हमारे दोस्त हमें तकलीफ नहीं पहुंचाना चाहते और अक्सर वो बातें बोलते हैं जो सुनकर हमें अच्छा लगे। यह फीडबैक लेने के रास्ते में पहली रुकावट है कि जो लोग हम से प्यार करते हैं, वो हमारे बारे में हमारे सामने बुरा नहीं बोलना चाहते।

दूसरी रुकावट यह है कि हम खुद को ही फीडबैक लेने से रोकते हैं। इसके पीछे पर तीन तरह की वजह हो सकती है। सबसे पहला तो यह कि हमें लगे कि हमें फीडबैक की जरूरत नहीं है। हमें लगता है कि दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते है वो हमारे लिए जरूरी नहीं है।

दूसरा यह कि हमें लगता है फीडबैक लेने से हम लोगों के सामने यह कबूल कर लेंगे कि हम कमजोर हैं और हमारे अंदर कमियां हैं। लेकिन जो लोग फीडबैक लेते हैं, ये

असल में खुद को सुधारने की कोशिश कर रहे होते हैं और जो खुद को सुधारने की कोशिश कर रहा है उन्हें कमजोर समझना एक गलती होगी।

तीसरा यह कि हम फीडबैक लेना ही नहीं चाहते क्योंकि हम खुद को तकलीफ नहीं देना चाहते। अगर आप इन सारी रुकावटों को पार कर सकें तो आप खुद को बेहतर तरीके से समझा पाएंगे। लेकिन कैसे कैसे आप इन रुकावटों को पार कर सकते हैं।

इसके लिए आप 360 डिग्री फीडबेक ले सकते है। इसका मतलब है हर उस व्यक्ति से फीडबैक लेना जो आपके आस पास है। आप दूसरों से अपने बारे में एक फार्म भरने के लिए कह सकते हैं जिसमें हर कोई आपके बारे में कुछ लिखे। इससे हर कोई अपने विचारों को लिख सकता है और यह किसी को नहीं पता लगेगा कि किस फार्म को किसने भरा है। आप यह फार्म सिर्फ उन लोगो को भरने के लिए दीजिए जिन पर आप भरोसा करते हैं।

फीडबैक से फायदा लेने के लिए आपको उनका इस्तेमाल करना होगा।

जब आपको फीडबैक मिल जाएगा, तो उसमें से कुछ बातें आपको अच्छी नहीं लगेंगी। कुछ ऐसी भी बातें होंगी जिन्हें सुधारने की कोशिश करता आप जरूरी नहीं समझते होंगे। तो ऐसे हालात में किस तरह से आप फीडबैक का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकते है

इसके लिए सबसे पहले आपको उस फीडबैक को एक खुले दिमाग के साथ लेना होगा। आपको उसे अच्छे से समझना होगा। एक्जाम्पल के लिए अगर आपको किसी ने घमंडी कहा, तो आपको उससे एक्जाम्पल माँगना होगा कि उसे क्यों लगता है कि आप ऐसे हैं? जब आपको आपको एक्जाम्पल दे तो आप उसे रिजेक्ट मत कीजिए। बहुत से लोग अपने बारे में बुरा सुनते ही बुरा मान जाते हैं।

एक बार जब वो आपको बता दे कि वो आपके कौन से बर्ताव को देखने के बाद ऐसा कह रहा है, तो उस पर विचार करने की कोशिश कीजिए। आप यह देखिए कि वो जो बोल रहा है, वो आपके हिसाब से कितना सच है? लम्बे समय में अगर आप अपने अदर उस कमी को लिए रहेंगे तो उसका आपके केरियर पर क्या असर होगा? क्या आपको सच में उस पर काम करने की जरूरत है?

इसके बाद जब अंत में आपको लगे कि आप में वाकई एक कमी है और आपको उसे सुधारना चाहिए, तो अपने कुछ और दोस्तों से राय लीजिए कि उनका आपकी इस कमी को लेकर क्या कहना है।

एक बार अंत में आपको यह समझाना चाहिए कि आप पर्फेक्ट नहीं है और आप में कमिया हो सकती है। इसलिए अगर कोई आपको फीडबैक दे रहा है तो उसे अपनाइय। साथ ही आपको अपने बारे में सब कुछ बदलने की जरूरत नहीं है। आप अपने बारे में कुछ बातें नहीं बदल सकते। कुछ लोग दूसरों को आसानी से अपना दोस्त नहीं बना पाते। यो अजनबी लोगों के साथ घुल मिल नहीं पाते। सिर्फ उन पहलुओं पर ध्यान दीजिए जिनमें सुधार कर के आप ज्यादा कामयाब बन सकते हैं या जो आपके कैरियर के लिए जरूरी हैं।

कंपनी को आगे लेकर जाने के लिए एक टीम को भी खुद को समझने की जरुरत है।

हमने देखा कि किस तरह से एक व्यक्ति को कामयाब होने के लिए खुद को समझाने की जरुरत है। लेकिन एक कंपनी के कामयाब होने के लिए उसकी टीम को भी खुद को समझाने की जरूरत है, जहाँ पर बहुत से लोग साथ मिलकर काम करते हों, वे सब एक दूसरे को जातते हों और यह जानते हों कि बाहर की दुनिया उनकी उनकी कंपनी को किस तरह से देखती है। लेखिवा बताती है कि ऐसा करने के लिए आपको पाँच बातों पर ध्यान देना होगा मकसद, तरक्की, तरीके, अंदाज और हर व्यक्ति का कंपनी के प्रति योगदान।

एक टीम को खुद के बेहतर तरीके से समझ पाने के लिए उसे इन पाँचों पहलुओं से संबंधित सवाल पूछने होंगे। एक्ज़ाम्पल के लिए वो अपने मकसद को लेकर यह सवाल पूछ सकते हैं कि इस महीने वे अपनी कंपनी को कितना आगे लेकर जाना चाहते हैं या फिर इस साल के उनके क्या प्लान हैं? वे खुद से यह पूछ सकते हैं कि उनका सबसे जरूरी मकसद क्या है।

इसके बाद तरक्की को नापने के लिए आप यह पूछ सकते हैं कि आप ने पिछले टार्गेट को पूरा किया या नहीं ? इस समय के गोल को पूरा करने के आप कितने करीब है?

क्या आप डेडलाइन से पहले इसे पूरा कर लेंगे?

ठीक इसी तरह से आपको अपने तरीकों को लेकर खुद से सवाल करना होगा कि आपके तरीके कितने अच्छे हैं और कैसे आप उसे बेहतर बना सकते हैं। आपको यह पूछना होगा कि आपकी कंपनी को लेकर बाहरी लोगों की क्या राय है। लोग आपके ड के बारे में या आपकी टीम के बारे में क्या सोचते हैं।

आपको यह पता करना होगा कि अपनी टीम को लेकर आप क्या सोचते हैं। आपके अंदाजे क्या है कि आपकी टीम कैसा पफ्फार्म कर रही है। कहीं आप खुद को कुछ ज्यादा

काबिल तो नहीं समझते

अंत में आपको यह देखना होगा कि आपकी टीम का हर व्यक्ति कितना काम कर रहा है और उसका योगदान क्या है। अगर कोई व्यक्ति कम काम कर रहा है तो किस तरह से आप उससे ज्यादा काम करवा सकते हैं? अगर कोई ज्यादा काम कर के भी कम नतीजे पैदा कर रहा है, तो कैसे आप उसकी प्रोडक्टिविटी को बढ़ा सकते हैं।

अपनी टीम को खुद को समझने में मदद करने के लिए आपको तीन बातों का खयाल रखना होगा।

किसी टीम को खुद को समझाने में मदद करने के लिए आपको रोल माडल, साइकोलाजिकल सेफ्टी नेट और कल्चर आफ इवैलुएशन चाहिए होगा।

सबसे पहले आते हैं रोल माडल। इसका मतलब एक टीम को एक ऐसा लीडर चाहिए होगा जिसे देखकर टीम के लोग प्रेरित हो सके और आगे बढ़ सकें। एक लीडर को अपनी गलतियों को खुलकर सबके सामने रखना होगा जिससे टीम का हर एक व्यक्ति प्रेरित होकर अपनी गलतियों को खुलकर गान सकें। उनका रोल माइल एक ऐसा व्यक्ति होना चाहिए जो कि अपने विचारों को और उसूलों को सबके सामने खुलकर रख सके और टीम को अपने एवज़ाम्पल के जरिए आगे लेकर जा सके।

इसके बाद आपको एक साइकोलाजिकल सेपटी नेट की जरूरत होगी। इसका मतलब एक ऐसे माहौल से है जिसमें होने पर एक व्यक्ति सुरक्षित महसूस करे। वो अपनी कर्मियों को खुलकर सबके सामने रख सके और दूसरों की कर्मियों को उसे खुलकर बता सके। आपको अपने टीम के लिए एक ऐसा वातावरण बनाना होगा जिसमें वे सभी लोग एक दूसरे को सहारा दे सकें।

अंत में आपको कल्चर आफ इवेलुएशन चाहिए जिसका मतलब है कि आप अपनी टीम के लिए यह सारे काम करते रहने होंगे। लोगों में अकसर नेगेटिविटी फेल जाती है और लोग नियमों को भूलकर एक दूसरे की बुराई करने लगते हैं। इसलिए आपको अपनी टीम को बार बार यह बातें याद दिलानी होंगी। आप चाहें तो अपनी कंपनी महीने में एक दिन शिकायतों के लिए रख सकते हैं जिसमें हर व्यक्ति खुलकर यह बता सके कि कंपनी की कोन सी बात उसे नहीं पसंद है और किस तरह से उसे बेहतर बनाया जा सकता है।

आपको तीन तरह के लोग मिल सकते हैं जो कि खुद को लेकर एक भ्रम में रहते हैं।

अब तक हमने देखा कि किस तरह से आप खुद को समझा सकते हैं या फिर किस तरह से एक टीम खुद को समझा सकती है। अब हम बात करेंगे कि किस तरह से आप उन लोगों से निपट सकते हैं जो कि खुद को नहीं समझाते। इस तरह के तीन लोग हो सकते हैं – एक जो खुद को असल में नहीं समझते, एक जो खुद को समझते तो है पर सुधारने की कोशिश नहीं करते और एक जो खुद को नहीं समझते पर उन्हें समझाया जा सकता है। सबसे पहले आते हैं वे लोग जो खुद को नहीं समझते और जिन्हें कुछ समझाया भी नहीं जा सकता। इस तरह के लोगों की खास बात होती है कि वे पूरी तरह से भ्रम में रहते

हैं और उन्हें लगता है कि वे जो कर रहे हैं वो सही ही कर रहे हैं। इस तरह के लोगों को आप कभी इनको कमियों को नहीं समझा पाएंगे। इनका नेगेटिव असर आप पर ना पड़े,

इसके लिए आपको इनसे दूर रहता होगा।

इसके बाद आते हैं वे लोग जो जानते तो है कि उनमें कमिया है, लेकिन वे इसकी परवाह नहीं करते। उन्हें पता रहता है कि उनकी हरकतों से दूसरों को परेशानी हो रही है लेकिन उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेखिका बताती हैं कि इस तरह के लोगों से बचने के लिए आप यह सोचिए कि वे हँस रहे हैं। एकाम्पल के लिए अगर आपको कोई बुरा बोल रहा है और उसे पता है कि आपको बुरा लग रहा है तो आप यह सोचिए कि वो व्यक्ति जोर जोर से हँस रहा है।

अंत में माते हैं वे लोग जो खुद के बार में नहीं जानते और जिन्हें आप सुधार सकते हैं। इस तरह के लोग खुले दिमाग के होते हैं और अपनी कमियों को अपनाते हैं। बस इस तरह के लोगों को अपनी कमियों के बारे में नहीं पता। इस तरह के लोगों को आप सुधार सकते हैं।

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