HOW TO RAISE SUCCESSFUL PEOPLE by Esther Wojcicki.

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ये किताब किसके लिए है

-ऐसे लोग जो अभी-अभी पेरेंट्स बने हों

ऐसे लोग जिन्हें चाइल्ड हैवलपमेंट में इंटरेस्ट हो

गनिजर्स जो अपने स्टाफ को मोटिवेट करना चाहते हो

लेखक के बारे में

Esther Wiki पेशे से पत्रकार हैं. इसके साथ लामिका दो सक्सफुल बच्चों की मां भी हैं पत्रकार और मां होने के साथ ही साथ लेखिका एजुकेटर भी हैं.

अच्छे पैरेंट्स बनना है तो अपने पैरेंट्स के गुणों को मत भूलियेगा

साल था 1960, उस दौर में लेखिका मां बनी थीं मां बनने के बाद ही लेखिका को ऐसी जगह की तलाश थी. जहाँ उन्हें सही पेरेंटिंग एडवाइस मिल सके. उस एडवाइस के लिए उन्हें काफी स्ट्रगल भी करना पड़ा था लेकिन आज के दौर में सबकुछ बदल चुका है. आज के दौर की मां को काफी चीजें आसानी से मिल जाती है. लेकिन जो बात गौर करने वाली हे वो ये है कि इतनी सब एडवाइस का फोकस एक ही होता है कि अपने बच्चे को हाई अचीवर कैसे बनाए, किसी पेरेंटिंग इंस्टीट्यूट में ये नहीं सिखाया जाता है कि बच्चे को सही करेक्टर केरो दें, बच्चे को इस तरह कैसे बनाएं कि वो अंदर से खुश रह सके, उसे केसे समाज में रहना सिखाए

इसलिए लेखिका कहती हैं कि बच्चे को सिर्फ गोल के पीछे भागना ही नहीं सिखाना चाहिए बल्कि उसे आजाद रहना भी सिखाना चाहिए. उसे ये भी बताना चाहिए कि खुद के साथ दूसरों का भी ख्याल कैसे रखा जाता है. उसके सही चरित्र का निर्माण तभी होगा जब दया, प्रेम, आदर के भाव सौरवेगा बच्चे को एथिक्स और वैल्यूज़ सिस्वाहार, अपने जीवन के सार को लेखिका ने इस किताब में उतार दिया है. जिसको पटने के बाद आपको पता चाल जाएगा कि अगली जनरेशन को बड़ा करना एक बड़ी जिम्मेदारी का काम होता है. इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए.

जब परवरिश की बात आती है तो ये देखा गया है कि हम अपने बच्चों को उसी तरह पालते हैं जैसी परवरिश हमारी हुई थी. इस बात में कोई खामी भी नहीं है. अगर आपका बचपन खुशहाल रहा हो, तो आप अपने बच्चों की वैसी ही परवरिश कर सकते हैं. लेकिन वहीं ये भी देखने को मिलता है कि ज्यादातर लोगों के पैरेंट्स ने कई गलतियां की हुई रहती हैं. तो अब आप उन गलतियों को तो नहीं दोहरा सकते हैं,

साल 1950 के दौर में लेखिका एक ऑर्थोडॉक्स परिवार में बड़ी हो रही थी. 5 साल के ही उम्न में उनके पिता ने उनसे कह दिया था कि लड़के, लड़कियों से बेहतर होते हैं, उन्होंने अपनी अपद्रिगिंग के समय ये भी महसूस किया कि लड़कों को एक लिबर्टी मिलती है. उन्होंने महसूस किया कि उनके भाई के लिए अच्छे खिलौने आते थे काम करने के लिए भी सिर्फ और सिर्फ लेखिका को ही बोला जाता था. उनको ये बचपन से बताया गया था कि लड़कियों की जगह घर के अंदर होती है. बड़े होने के बाद जब उन्होंने शादी

से इंकार कर दिया था. तो उनका मासिक खर्चा भी बंद कर दिया गया था.

इसलिए जब लेखिका स्वयं मां बनौ थीं तो उन्होंने फैसला कर लिया था कि वो अपने बच्चों को वैसी परवरिश बिल्कुल नहीं देंगी जैसी उनकी हुई थी. उन्होंने अपने बचपन को फिर से याद किया था. इसके बाद उन्होंने अपने बच्चों को नई सोच के साथ पाला.

अपने बवपन को लेखिका ने याद किया जिसमें उन्होंने पाया कि उनके पिता का स्वभाव अख्खड़ टाइप का था. उनके पिता हमेशा हिटलर बनकर आदेश देने में भरोसा रखते थे. लेखिका ने अपने पिता के स्वभाव को नकार दिया और अपने बच्चों की परवरिश में इस बिंदु को कभी लेकर नहीं आयीं वहीं दूसरी तरफ लेखिका की मां काफी सौम्य स्वाभाव की थी. काफी मिलनसार भी थी लेखिका ने अपनी बच्चियों की परवरिश में इस स्वभाव को एड किया. हसी के साथ वो अपने बच्चों से और ज्यादा फ्रेंडली हुई

लेखिका के पिता ने जो गलती की थी वो गलती उनसे ना हो, इसलिए उन्होंने अपनी बच्चियों को सिखाया कि जीवन में अपने फैसले खुद लेना. हमेशा सजग रहता कि कोई तुम्हारे ऊपर अपने फैसले लादने ना पाए. इसलिए हमेशा खुद से ही सवाल करते रहना जब कभी कुछ लेना हो तो ये देखना कि क्या तुम्हे इसकी ज़रूरत है? इन खूबियों को अपने अदर लाने का एक तरीका है कि आ से ईमानदार रहें और लोगों से सवाल करते रहें. प खुद

पेरेंटिंग हैबिट्स को हम आगे के अध्याय में भी समझने की कोशिश करेंगे.

बच्चों के ऊपर विश्वास करना बहुत ज़रूरी है

लेखिका अब दादी बन चुकी हैं. उनकी प्यारी सी नातिन भी है, जिसका वो काफी ज्यादा ख्याल भी रखती है. एक दिन घर में उनकी बेटी नहीं थी. वो काम पर गई थी. तब लेखिका के मन में एक ख्याल आया कि नातिन को शॉपिंग के लिए पास के ही स्टोर में छोड़कर आती हूं, देखती हूँ उसे केसा लगता है. वो क्या खरीदती है खुद के लिए

लेखिका ने वैसा ही किया एक घंटे के लिए नातिन को शॉपिंग में गॉल में अकेले छोड़ दिया. बच्ची को ये फ्रीडम काफी अच्छी लगी. लेकिन जब ये बात उसकी मां को पता चली तो वो चिंतित हो गई. बच्ची की माँ को इस बात से सख्त ऐतराज हुआ कि उसकी बेटी को अकेले छोड़ा गया था. उसके मन में लगातार सवाल आ रहे थे कि अगर कुछ हो जाता तो, अब यहां सवाल ये उठता है कि क्या उन्हें सरकारी तन्त्र पर भरोसा नहीं है?

एक रिसर्च की रिपोर्ट पढ़ें तो पता चलता है कि अमेरिकन्स का अपनी सरकार के ऊपर भरोसे में 9 पॉडटस की गिरावट देखने को मिली है. इसी के साथ एक और रिसर्च तो ये बताती है कि अमेरिकन्स अपने पड़ोसी के ऊपर भी भरोसा नहीं करते हैं.

साल 2015 में हुई पीयू रिसर्च के हिसाब सिर्फ 52 प्रतीशत अमेरिकी अपने पड़ोसी के ऊपर ट्रस्ट करते हैं. इसके साथ ही रिपोर्ट ये भी बताती है कि सिर्फ 19 प्रतीशत अमेरिकी को लगता है कि ज्यादातर लोग भरोसेमंद होते हैं,

अगर आप अपने बच्चे को लेकर चिंतित रहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं आप उससे उसकी आज़ादी ही छीन लीजिये. अगर आप उन्हें सिखायेंगे कि बाहर लोग भरोसेमंद नहीं हैं तो आप भी उसे उसी तरीके का बना रहे हैं. इसलिए अपने बच्चे की काबिलियत पर भरोसा करिए उसे जिम्मेदार बनाने से पहले जिम्मेदारी उठाना सिखाइए अब हम बात करेंगे बच्चे की चॉइस की लेखिका की बेटी को लेकर एक किस्सा है कि जब ऐनी ने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया तब उसने अपने एक फैसले से सबको चकित कर दिया था. यो फैसला ये था कि अब वो कैरियर को आगे नहीं बड़ाना चाहती है. बल्किं घर में ही रहना चाहती है.

बच्चे के इस तरह के फैसले के बाद भाम तौर पर पैरेंट्स काफी पैनिक करने लगते हैं. लेकिन लेखिका काफी रिलैक्स थी. उन्होंने कहा कि ये जिंदगी उनकी बेटी की है और अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण फैसले लेने का उसे पूरा हक है. लेखिका ने अपने टीचिंग करियर के दौरान ये ओब्स किया था कि पेरेंट्स अपने बच्चों के करियर को लेकर काफी ज्यादा चिंतित रहते हैं, जिसका प्रेशर बच्चों के दिमाग में पड़ने लगता है.

येल यूनिवर्सिटी के रिसर्च में ये बात निकलकर सामने आई है कि दिमागी प्रेशर का परिणाम बहुत खतरनाक है. रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि इसी दिमागी प्रेशर के कारण अमेरिकन सोसाइटी में टीनेज उम्र के बच्चे आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं इसके पीछे का कारण यही है कि पैरेंट्स अपने बच्चों के फैसलों को महत्त्व नहीं देते हैं. जिसके कारण बच्चों के अंदर हीन भावना का जन्म होता है. वो अपने पैरेंट्स से दूर होने लगते हैं. उसी दूरी का परिणाम होता है कि वो अवसाद जैसी बीमारी के चंगुल में फंस जाते हैं.

अगर आपसे ये सवाल किया जाए कि बच्चे कम उम्र में आत्म हत्या क्यों कर रहे हैं? इस सवाल का एकदम सटीक जवाब किसी के पास नहीं है. ये बात भी सत्य है कि इसके पीछे कई सारे कारण है, लेकिन एक कारण ये भी है कि बच्चे अपनी जिंदगी में ही खुद को फसा हुआ महसूस करते हैं. इसके पीछे मुख्य वजह है मेंटल हेल्थ आखिर मेंटल हेल्थ इतनी कम उम्र में खराब केसे होती है? इसका जवाब है उम्मीदों का बोझ और उनके फैसलों को लगातार नकारते जाना इसलिए अपने बच्चों के फैसलों का समर्थन करिए, पैरेंटल प्रेशर की कोई जरूरत ही नहीं है. उनकी जिंदगी है उन्हें खुद रास्तों की तलाश करने दीजिये.

बच्चों को असफलता का सामना करना सिखाइए

जीवन में हम जो चाहते हैं उसका आसानी से मिल जाना मुश्किल ही होता है. लेखिका बताती है कि उन्होंने अपने टीचिंग करियर में कई बार देखा है कि बच्चे मुश्किलों का सामना नहीं कर पाते हैं, लेकिन कुछ इस मुश्किलों से लड़कर जीत के मुकाम तक भी पहुँचते हैं. लेखिका एक किस्सा शेयर करती है. वो बताती हैं कि एक गेडी नाम का लड़का था,वो स्कूल की मैगजीन में आर्टिकल लिखता था लिखना उसका शोक भी धा और काबिलियत भी, लेकिन उसके स्कूल के बच्चों ने जब एडिटर इन चीफ बुनने की बारी आई तो किसी और को चुन लिया था.

इस बात से गेडी निराश हुआ लेकिन उसने और मेहनत करने की शुरुआत भी कर दी थी. वो और अच्छा लिखने लगा, वो लेखन की प्रतिभा में इतना धनी हो गया था कि हार्वर्ड की मैगजीन में उसका चयन हो गया था. आज के समय वो बहुत नामी बिजनेस मैगजीन का एडिटर है.

लेखिका मानती है आज के समय में भी इस कहानी से पैरेंट्स और बच्चों को काफी कुछ सीखना चाहिए.

साइकोलॉजिस्ट एजेला ने कई सक्सेसफुल लोगों के ऊपर अध्यन किया है. उन लोगों में उन्होंने दो चीजे कॉमन पाई हैं. पहली कि सफल लोगों का गोल बिलकुल क्लियर रहता है, दूसरा अपने गोल को अचीव करने की गजब की चाहत होती है, यानी अपने काम के प्रति बहुत ज्यादा ईमानदारी होती है,

पैरेंट्स को ये गुण अपने बच्चों को सिखाने चाहिए.

आप अपने बच्चे की काबिलियत की पहचान करिए अगर उसे कहीं सक्सेस मिली है तो उसकी प्रोत्साहन करिए, उसे बताइए कि ईमानदारी से कर्म करने का फल क्या होता

है. जीवन में एथिक्स के वेल्यूज उसके अंदर डालिए.

एक नज़र पेरेंटिंग स्टाइल पर भी डाल लेते हैं, अगर हम मॉइर्न पेरेंटिंग एडवाइस की बात करें तो अधिकतर लोगों को ये कहते सुना है कि बच्चों पर थोड़ी लगाम लगाना ज़रूरी है. उन्हें बताना चाहिए कि डिनर टेबल पर कितना खाना है? सोने व जाना है? इस तरह की पैरेटिंग क्या सच में सही रिजल्ट देती है?

भले ही इस तरह की परवरिश से आपको कुछ रिजल्ट मिल जाए लेकिन इसका प्रभाव बच्चे की मेंटल हेल्थ पर काफी बुरा पड़ता है.

साइकोलॉजिस्ट डायना ने इसके ऊपर काफी ज्यादा रिसर्च की, उन्होंने अपनी रिसर्च में पाया कि ऑथरिटेटिंव पेरेटिंग स्टाइल के कुछ फायदे तो हैं. जैसे की, जिन बच्चों की परवरिश इस तरह से हुई थी, वो नशे के आदि नहीं थे. लेकिन ऑथरिटेटिव स्टाइल और ऑथरिटेरियन स्टाइल में एक पतली लाइन होती है, इस लाइन पैरेंट्स को ध्यान रखना पड़ेगा.

लेकिन लेखिका मानती है कि इससे बेहतर पेरेंटिंग स्टाइल का आविष्कार होना अभी बाकी है. उस स्टाइल को उन्होंने नाम दिया है कोलेबरेटिव स्टाइल आखिर क्या होती है कोलेबरेटिव स्टाइल ऑफ़ पेरेंटिंग इस स्टाइल में पेरेंट्स अपने बच्चों के साथ किसी काम को करते हैं बजाए उन्हें आईर देने के आँथरिटेटिव पैरेंटिंग स्टाइल में पेरेंट्स बच्चों को अपना आदेश सुनाते हैं कि ऐसा ही होना चाहिए. लेकिन कोलैबरेटिब स्टाइल में पेरेंट्रस बच्चों के साथ बैठकर डिसकस करते हैं कि किसी भी सिंचुएशन को कैसे सॉल्च किया जाए,

लेखिका बताती हैं कि गुड पेरेंट्स बच्चों के लिए एक सीमा बनाने से घबराते नहीं है. लेकिन ग्रेट पैरेंट्स वही होते हैं जो बच्चों के साथ चलते हैं. निराशा हो या मंजिल का सफर साथ मिलकर तय करते हैं,

पर्सनल अचीवमेंट्स को महत्व दें या व्यवहार से दयालु बने

फिर से लेखिका एक किस्सा सेयर करती हैं. इस बार कहानी उनकी मा से जुड़ी हुई है. लेखिका बताती है कि उनकी मां की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी. उनके पास अब कुछ ही समय बचा हुआ था उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया गया, वहा का स्टॉफ जानता था कि इनके पास समय ज्यादा नहीं है. इसलिए स्टॉफ उनकी देख भाल भी नहीं कर रहा था फिर उनकी बेटी ऐनी ने अपने काम से दो हफो की छुट्टी ली बस इसलिए कि अपनी दादी की सेवा कर सके क्योंकि भले ही जीवन कम बचा हो लेकिन उनकी मां प्यार और केयर डिजर्व करती थी.

अब यहां मानवता के दो रंग देखने को मिलते हैं, एक स्टॉफ का जिसको सिर्फ फायदा नज़र आ रहा था. वहीं दूसरा रंग ऐनी ने दिखाया अपनी दादी की सेवा करके ये हमें तय करना होता है कि हम इंसानियत के किस साइड पर खड़े होना चाहते हैं.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने 10,000 बच्चों के ऊपर रिसर्च किया था. उस अध्ययन की रिपोर्ट इराने वाली है. अध्ययन में हार्वर्ड युनिवर्सिटी ने ये पाया कि 80 प्रतीशत बच्चों के लिए खुद की अवीवमेंट ही मायने रखती है. उन्हें दूसरों की भावनाओं से कुछ लेना-देना नहीं है. रिसर्व में बस 20 प्रतीशत बच्चों ने ही दूसरों की केयर को प्राथमिकता दी थी

हस रिसर्च में अधिकतर बच्चों ने बताया कि उनके पैरेंट्स ने उन्हें सिखाया है कि दूसरों की केयर के बजाए खुद की अचीवमेंट में ध्यान दो, दूसरों का ध्यान रखने की तुम्हे जरूरत नहीं है,

इस रिसर्च ने ये बात साबित कर दी कि अमेरिकन्स के अंदर अब कितनी इसानियत बची हुई है?

इस तरह के पेरेंट्स को लेखिका हेलीकॉपटर पेरेंट्स कहती हैं. ये बो सब कुछ करते हैं जो उनके बच्चे को सक्सेस की तरफ ले जाए. इनके अंदर एथिक्स की कमी होती है. अब हम बात करेंगे की यह एक अमूल्य चीज़ है है, हसे आपको अपने बच्चों को सिखाना चाहिए. अपने बच्चे को आप बताइए कि उसे दूसरों के प्रति दयालु होने की जरुरत है. उसके अंदर अगर ये खूबी अभी नहीं है तो आप डालिए क्योंकि आपके बाद आपके नाम को आगे लेकर वहीं जायेगा, अब आपके मन में सवाल आ रहा होगा कि क्या दयालु होने से उसे कुछ फायदा होगा?

जवाब ये है कि इससे बहुत फायदा होगा. एक छोटा सा एग्जाम्पल लेते हैं काइड़नेस का इसका छोटा सा हिस्सा होता है जिसे हम ग्रेटीट्यूड कहते है. कभी बस इसे अपने अंदर लाकर देखिए उन लोगों के प्रति सम्मान दिखाइये जिन्होंने आपकी मदद की हो, आप देखेंगे कि बस इस एक सूबी से ही आपकी रुह को कितनी शांति मिलेगी आपका मेंटल हेल्थ भी अच्छा रहेगा.

साल 2018 में जर्नल ऑफ पॉजिटिव साइकोलॉजी में एक रिपोर्ट एपी इस रिपोर्ट में ये बताया गया है कि दयालु इंसान ज्यादा दिमाग से तंदरुस्त रहते हैं. उनके अदर जीवन को लेकर ज्यादा उम्मीद के साथ खुशी भी रहती है. सबसे बड़ी बात जो इस रिपोर्ट में छपी थी. वो ये थी कि इस तरह के लोग अवसाद के भी शिकार नहीं होते हैं.

अब सवाल ये उठता है कि अपने बच्चे को ग्रेटीटয়ের कैसे सिखाएं?

दिन भर में बच्चे सबसे ज्यादा अपने माता-पिता से ही सीखते हैं. इसलिए ये सही टाइम है कि आप खुद के अंदर ही बदलाव लेकर आहये, जब आप खुद को बदलने लगेंगे तो आपके बच्चे भी आपको देखकर बदलेंगे इसकी शुरुमात भाप इस दिवाली से भी कर सकते हैं. दिवाली की शाम जब भाप और भापका परिवार एक साथ हो तो आप सबसे पहले अपने बच्चों को थैंक यू बोलिए, थैंक यू बोलने का रौजन कुछ भी हो सकता है. उन्हें बताइए कि अगर कोई आपके लिए कुछ भी करता है तो उसका धन्यवाद करना ना भूलें किसी के भी गिफ्ट को कभी पैसों से तौलने की कोशिश ना करियेगा अगर आप ये छोटी-छोटी आदतें अपने बच्चों के अंदर डालेंगे तभी आप पॉजिटिव बदलाव भी देख पायेंगे,

बच्चों के अंदर प्रेटीट्यूड की भावना डालने के लिए उनको आप डायरी लिखने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं. आप उनसे बोलिए कि वो अपने जीवन में जिसके लिए भी आभारी हैं. उसके लिए कुछ ना कुछ लिखा करें. कई स्टडीज में ये निकलकर सामने आया है कि डायरी लिखने से इंसान की मेंटल हेल्थ अच्छी रहती है.

अगर हम अपने बच्चों को दयालु बनना बता पायें तो हम इस समाज को भी बेहतर कल दे सकते हैं. करना बस यही कि पहले हम खुद दयालु बने फिर ये दुनिया भी बन जायेगी. अगर आपको अपना कल बेहतर करना है तो सबसे पहले प्यार और स्नेह के साथ अपने बच्चे का आज बेहतर करिए, उसे सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा दीजिये

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