About Book
आपका गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट ( gastrointestinal tract ) या गट क्या करता हैं? क्या ये सिर्फ खाना पचाता हैं और बताता हैं कि कब टॉयलेट जाना हैं? आप शायद अपने बॉडी के उस हिस्से के बारे में जानना नहीं चाहते जो सिर्फ टॉयलेट जाने से जुड़ा हैं, पर आपका गट बहुत ही दिलचस्प चीज़ हैं. शुरू में, ये आपका ध्यान नहीं खींचता पर आखिर में आपको पता चलेगा कि डाइजेस्टिव ट्रैक्ट (digestive tract ) कितना दिलचस्प हैं. ये बताने की ज़रूरत नहीं कि ये आपके ब्रेन और हार्ट जैसे ही बहुत पावरफुल हैं.
इस समरी से कौन सीख सकता हैं?
. मेडिकल स्टूडेंट
.
जिन लोगों के गट में प्रॉब्लम हैं
जो भी डाइटिंग कर रहे हैं
ऑथर के बारे में
जूलिया एंडर्स एक जर्मन ऑथर हैं जो आजकल गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी पर पीएचडी कर रही हैं. उनकी पहली बुक, गट : दी इनसाइड स्टोरी ऑफ़ आवर बॉडीस मोस्ट अंडररेटेड ऑर्गन, बहुत हिट हुई. इसकी दो मिलियन से भी ज़्यादा कॉपी बिक चुकी हैं. ये बुक बहुत सारे भाषाओं में भी ट्रांसलेट किया गया है. जूलिया ने टेड टॉक में भी इस मज़ेदार गट के बारे में बात किया. इस वीडियो को यूट्यूब में 800,000 से भी ज़्यादा बार देखा गया है.
इंट्रोडक्शन
क्या आपने कभी किसी चीज़ पर सिर्फ इसलिए फैसला लिया है क्योंकि आपके गट (gut) में महसूस हुआ कि आपका फैसला सही है? जब आप देखते हैं कि जिस शख्स को आप पसंद करते हैं, दो आपको देखकर मुस्कुरा रहा है, तो आपको कैसा महसूस होगा? शायद “पेट में तितलियों के उड़ने जैसा”. चलिए बात करते है आपके उस दोस्त के बारे में जिसने आपकी पीठ में छुरा घोंपा था. क्या उस एक्सपीरियंस की याद आपका मन ख़राब कर देती है?
इन सारे सवालों में एक बात कॉमन है, ये सब आपके आपके गट, यानि के पेट से जुड़ी है इसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट ( gastrointestinal tract) या डाइजेस्टिव सिस्टम (digestive system) भी कहते है, हाँ आपका गट जिसका एक ही काम है, आपके बॉडी टोक्सिन को मल के द्वारा बाहर निकालना.
टॉयलेट जाते समय को छोड़कर, आप कभी भी इसके बारे में नहीं सोचते. लेकिन, आप इस बुक से सीखेंगे कि कैसे आपको अपने गट की प्रशंसा ठीक
वैसे ही करनी चाहिए जैसे आप अपने ब्रेन की करते है. आप मल करने कॉम्लिकेटेड प्रोसेस को भी जानेंगे, अआप ये भी जानेंगे कि आपका गट आपके ब्रेन से कितने कमाल के काम करवाता है.
क्या आप जानने के लिए तैयार है कि आपके गट में कितनी ताकत है?
पॉटी करना किस तरह से होता है? और, ये सवाल बहुत ज़रूरी क्यों है ? How Does Pooping Work? And Why That’s an Important Question?
हम अपने बॉडी को नज़रअंदाज़ कर देते हैं. हम ध्यान ही नहीं देते कि हमारे बॉडी का हरेक ऑर्गन दिन रात, हर एक सेकंड चलता रहता है. इसमें कुछ कुछ बहता रहता है, पंप करता है या ठीक होता रहता है. ये सब हमारे बॉडी के अंदर होता है पर हम इन पर ध्यान ही नहीं देते है, ये बहुत ही मजेदार हार्ट और ब्रेन बहुत काम करते है इसलिए ज्यादातर लोग इन्हीं की तारीफ़ करते है, सारी पढ़ाई, आर्ट, या कविता इनके ही बारे में होते है. इनके ही तरह बात है, है न?
एक बहुत जरूरी ऑर्गन बैकग्राउंड में छिपा होता है. हमें लगता है कि इस गट का काम सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए ही होता है. दअरसल, ये उससे भी
ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड है, आप ये जानकार हैरान रह जाएंगे कि आपका गट आपको जिंदा रखने के लिए क्या-क्या नहीं करता, लेकिन, ये सब जानने से पहल, चलिए आपके दिमाग में जो सवाल है, उसका जवाब दे देते है. कैसे आता है?
मल चलिए अब चम (bum) की तरफ फोकस करते है, बम के आखिर में एनस (anus) होता है. इस एनस में दो स्फिन्क्टर मसल्स (sphincter muscles) होते है. ये गोल चुमे हुए मसल्स है जो तय करते है कि आपको मल करना है या नहीं, बाहर वाले स्फिन्क्टर मसल को हम कंट्रोल कर सकते हैं. आप उसे अपनी मर्जी से बंद और खोल सकते हैं. लेकिन, अंदर के स्फिन्क्टर मसल को हम कंट्रोल नहीं कर सकते हैं, बाहर का स्फिंक्टर हमारे कॉन्शियसनेस्स (consciousness) यानी चेतना को हैं. मतलब ये हैं कि ये सुनता हैं कि कब हमारा ब्रेन कह सुनता इसका ना हैं कि रहा अभी टॉयलेट जाने का समय नहीं हुआ है. बाहर का स्फिन्च्टर मसल ऐसे मैसेज को समझता हैं और खुद को बंद रखने के लिए पूरा जोर लगा देता है. लेकिन, अंदर के स्फिन्वटर मसल को तो सिर्फ अंदर की दुनिया यानी कि हमारे बॉडी के अंदर जो कुछ हो रहा हैं, उस से मतलब होता हैं. इसका मिशन ही डोता हैं ये देखना कि हमारे अंदर मिशन ही होता।
द र सबकुछ ठीक चल रहा है या नहीं. मान लीजिए कि अंदर के स्फिन्वटर मसल को महसूस हुआ कि आपके अंदर गैस का प्रेशर बढ़ रहा हैं. फिर तो ये आपसे कभी भी, कहीं भी गैस छुड़वा सकता है. अच्छी बात ये हैं कि बाहर का स्फिकटर मसल इसे पसा करते से रोक सकता है
दोनों स्फिंक्टर को तभी तसल्ली मिलती हैं जब ये दोनों मिलकर काम करते हैं. आप जो खाना खाते हैं, उसमें से जो बच जाता हैं वो अंदर के स्फिन्क्टर में पहुँचता है. खाना पहुँचते ही वो automatically थोड़ा सा खुलता हैं और बचे हुए खाने में से थोड़ी सा निकाल देता हैं, लेकिन ये खाना निकलकर बाहर के स्फिन्कटर तक सीधे नहीं पहुँच पाती. रास्ते के बीच में, बहुत सारे टेस्टर्स (testers) होते हैं जिनसे होकर इस बचे हुए खाने को गुज़रना पड़ता हैं. मान लीजिये कि ये टेस्टर्स छोटे-छोटे लोग हैं जो खाने को चेक करते हैं, वे इस खाने को नज़दीक से ऐसे मुयायना करते हैं जैसे कोई फौजी एक चेकपॉइंट की करता हैं, यही टेस्टर्स तय करते हैं कि ये बचा खाना solid हैं या गैस बन चुका हैं, हैं । ये पता करने के बाद, टेस्टर्स आपके ब्रेन को मैसेज भेजते हैं, फिर, आपका ब्रेन फैसला लेगा कि आपको अभी टॉयलेट जाना हैं या कुछ देर रूकना हैं. आपका ब्रेन अपने इस फैसले के बारे में बाहर के स्फिन्दटर को मैसेज भेजता हैं. ये स्फिन्वटर मसल खुद को उस मैसेज के अनुसार बंद करता हैं या खोल देता हैं, अगर आप एक कमरे में काफी लोगों के साथ बैठे हैं तो आपका ब्रेन तथ करेगा कि इस समय गैस नहीं छोड़ सकते या पॉटी करने नहीं जा सकते. इसी फैसले को बाहर का फिल्टर भी मानेगा, तो अगली बार जब आपको वैसा ही कुछ महसूस हो तो, आप इन अंदर और बाहर के स्फिन्क्टर के बारे में ज़रूर सोचना. इन्हीं के वजह से आपको अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के सामने या फिर लिफ्ट में आपके ऑफिस के लोगों के सामने शर्मिंदा नहीं होना पड़ता.
हमारे ऑर्गन्स खाने को कैसे ले जाते हैं
How Our Organs Transport Food
इमेजिन कीजिये, आपने टेबल पर केक का एक मजेदार टुकड़ा देखा. आपकी आँखें आपके ब्रेन को ये मैसेज भेजती हैं. आपका ब्रेन फिर इस मैसेज को उन ऑर्गन्स को भेजती हैं जो इस प्रोसेस के इंचार्ज होते हैं, आपके मुंह में पानी आने लगता हैं, आपका पेट केक को हज़म करने के लिए जूस पैदा करता ही इस केक के टुकड़े को अपने मुंह के सामने लाते हैं, आपका नाक उसे सूंघता हैं. नाक को पता चल जाता हैं कि इस केक में वनीला, हैं। रम और चॉकलेट भरा हुआ है. ये आपके नाक के अंदर जो ओलफैक्टरी नर्स (Olfactory nerves) होते हैं, वे ही इसका पता करते हैं. यही नर्स आपको सूघने में मदद करते हैं.
आप केक को उठाकर पास ले जाते हैं तो जैसे-जैसे वो नाक के पास आती हैं, उसकी खुशबु तेज़ हो जाती हैं. आप अपना मुंह खोलते हैं और सोचते हैं कि आपने इतना अच्छा केक कभी नहीं खाया था. आपके मुंह में भी बहुत पावर होती हैं. आपके मसूड़ों के मसल, आपकी पूरी बॉडी के सबसे मज़बूत मसल होते हैं और, आपका जीभ आपकी बॉडी का सबसे फ्लेविसिबल ( fexible) यानी कि लचीला मसल होता हैं. सबसे कठोर चीज़ जो आपका है। बॉडी पैदा करता है, वो हैं आपके द्वांलों इनेमल। (enamel). का जैसे ही आप केक को निगलने की तैयारी करते हैं, आपका जीभ ये देखता है कि कहीं केक का कोई टुकड़ा आपके दांत में तो नहीं फंसा, इसके बाद ये केक को लेने पहुँचता हैं. आपके थूक के कारण ये केक अब बिलकुल नरम हो गया हैं. जीभ इस खाने को आपके मुँह की छत पर ले जाकर मसल देता हैं. मुँह के इस भाग को फेरिक्स ( pharynx} कहते हैं. ये नरम केक अब फैरिंक्स में पहुँचता हैं, जब भी आपका खाना फैरिक्स में पहुँचता हैं, आपको पता चल जाता हैं क्योंकि यहाँ पहुँचने पर आपके कान में किसी चीज़ के फटने जैसी आवाज़ होती हैं. अब, आपका केक इसोफैगस (esophagus) में पहुंचता है.
इसोफेगस में खाना पहुँचते ही इसोफेगस चौड़ा हो जाता है. ये खाने को अपने अंदर लेकर पीछे से बंद हो जाता हैं. ये ऐसा इसलिए करता हैं ताकि खाने का कोई भी टुकड़ा वापस पीछे न चला जाए. यहाँ, आपको एक बहुत ही ज़रूरी बात पता होनी चाहिए, इसोफैगस जब खाने को निगलता हैं, उन कुछ सेकड्स के लिए आपकी साँसे बंद हो जाती हैं ताकि कोई भी खाने का टुकड़ा आपके लंग्स (lungs) में न जाकर आपके पेट में जाए. आपका पेट अब इस नरम खाने को लेने की तैयारी करता हैं. पेट रिलैक्स हो जाता हैं और खाने को भरने के लिए फ़ैल जाता है. खाना अब इसोफैगस से निकलकर पेट के दिवार में गिरता हैं. दिवार से ये टकराकर पेट के फर्श में पहुँच जाता हैं.
एक केक के टुकड़े को बहुत छोटे-छोटे भागों में बांटने के लिए. आपके पेट को लगभग दो घंटे लगते हैं. इनके छोटे- छोटे टुकड़े होने के बाद ये पेट के अंत में जो छेद होता हैं, उसमें चले जाते हैं. छोटी आंत यानि स्मॉल इंटेस्टाइन (small intestine के दरवाज़े पर एक दरबान होता हैं. कार्बोहायड्रेट ं भरे खाने जैसे केक, चावल या पास्ता इस दरबान के सामने से आसानी से निकल जाते हैं. इस तरह के खाने आसानी से हज़म होते हैं या इनके बहुत छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते खाना हमारे खून में शुगर पहुंचाते हैं, मीट और दूसरे खाने जिनमें प्रोटीन भरा होता हैं, उन्हें और फैट को हज़म होने में काफी लम्बा टाइम लग जाता मीट के एक बड़े टुकड़े को छोटे छोटे टुकड़ो में तोड़ने के लिए आपके पेट को लगभग छ: घंटे लग जाते हैं जिसके बाद ही वो स्मॉल इंटेस्टाइन से गुज़र पाएगा.
ही खाना पहुँचता हैं, स्मॉल इंटेस्टाइन अपने काम में लग जाता हैं. ये खाने के टुकड़ों को अपने अंदर दबाता हैं और उसे इधर से उधर, उधर से इधर हिलाता हैं. सबकुछ हिलता हैं और जब केक को तसल्ली से मिक्स करता हैं, उसे वो आगे भेजता हैं. पर, उस केक का कुछ ही बचा कुचा हिस्सा 3 कहाँ गए? वो सब आपके खून में चले गए, बस थोड़े ही टुकड़े जा पाते हैं. इन यहाँ पहुँच पाती है. तो बाकी के डुकड ती नाह का के जला जाता है आपके पेट और स्मॉल इंटेस्टाइन में क्योंकि आपके का सबसे ज़्यादा हिस्सा मे थैसी चीजें शामिल होती हैं जैसे कि मकई का दाना या वो च्युइंग गम जिसे आपने गलती से निगल लिया हो. आपको अपने स्मॉल इंटेस्टाइन के टुकड़ों में वैसी में जानना चाहिए कि ये आपको साफ़ रखने के लिए ही ह है, अगर आप अपने स्मॉल इंटेस्टाइन को खाने को हजम करने के दो घंटे बाद देखेंगे तो आप पूरी जगह को साफ़ सुथरा पाएँगे, वहाँ कोई बदबू भी नहीं होती, स्मॉल इंटेस्टाइन खाना हजम करने के एक घंटे बाद खुद को साफ़ कर लेता हैं.
आप कह सकते हैं कि स्मॉल इंटेस्टाइन खुद ही अपनी देखभाल कर सकता है. लेकिन, बड़ी आंत या लार्ज इंटेस्टाइन ( large intestine ), बिलकुल भी स्मॉल इंटेस्टाइन जैसा नहीं हैं, इससे जब खाना गुजरता हैं तो ये सफाई नहीं करता. लार्ज इंटेस्टाइन उस खाने को देखता हैं जो अभी तक हज़म नहीं हो पाया. आपने जो केक खाया था, वो केक पहले जैसा बिलकुल नहीं दिखता. उसमें सिर्फ फलों का रेशा बचा होता है जो उस केक में डाला गया था या फिर वो चीज़ें होते हैं जो केक में था और अभी तक हज़म नहीं हुआ.
यहाँ हज़म करने वाला जूस भी उसमें मिला होता है,
स्मॉल इंटेस्टाइन के मुकाबले लार्ज इंटेस्टाइन बहुत ही सुस्त होता है. ये एक माले में पिरोये हुए दाने जैसा दिखता हैं. जब इसमें खाना जाता हैं, ये खाने को संभालने के लिए फूल जाता हैं. ये इसी पोजीशन में काफी देर तक रह सकता हैं, खासकर तब तक, जब तक पीछे से कोई खाना धक्का न लगा दे. जो लोग ज़्यादा खाते हैं, उनका लार्ज इंटेस्टाइन जल्दी ही भर जाता हैं, ऐसे लोगों को शायद दिन में दो से भी ज़्यादा बार टॉयलेट जाने की ज़रूरत पड़ती हैं,
आमतौर पर, हज़म करने के इस प्रोसेस को लगभग चौबीस घंटे लग जाते हैं. अगर आपका बॉडी खाने को जल्दी हज़म कर पाता हैं तो शायद आपको आठ घंटे में ही टॉयलेट जाने की जरूरत पड़ जाती हैं, और, अगर आप बहुत ही धीरे से हज़म करने वाले शख्स हैं तो इसमें आपको तीन से चार दिन भी लग सकते हैं,
ब्रेन और गट
The Brain and the Gut
हमारे आइडिया और एहसास या भावनाएं सब हमारे ब्रेन से आते हैं. हम ब्रेन को बहुत ज़रूरी मानते हैं. पर, सिर्फ ब्रेन नहीं हैं जिसका हमारे बॉडी पर राज चलता हैं. हमारा गट, जिसका काम हैं मल करवाना, वो भी बड़ा पावरफुल हैं. गट में अनगिनत नर्स होते हैं. ये नव््स हमारे बॉडी के दूसरे नर्स बिलकुल अलग होते हैं.
हमारे गट में नर्स का इतना कॉम्प्लिकेटेड सिस्टम क्यों होता हैं जबकि इसका काम सिर्फ मल करवाना या डकार मारना ही हैं. देखिए, गट इतना पावरफुल और इंडिपेंडेंट होता हैं कि अक्सर हम इसे गट-बरेन” के नाम से भी बुलाते हैं. साइंटिस्ट दोबारा सोचने में लगे हैं कि ब्रेन ही हमारे बॉडी का सबसे जरूरी ऑर्गन हैं भी कि नहीं क्या आपने ध्यान दिया है कि हम काफी बार किसी बात को कहने में अपने गट के अलग-अलग हिस्सों का नाम लेते हैं. जैसे कि, जब आप किसी बुरे पल को याद करते हैं तो चो आपका मन खराब कर देता हैं. जिसे आप पसंद करते हैं, वो शख्स अगर आपको देखकर मुस्कुराये तो आपके पेट में तितलियाँ उड़ने लगती हैं, इस बात से हम इंकार नहीं कर सकते कि आपके ब्रेन में जो भी चलता हैं, उस पर आपके गट का भी हुक्म चलता हैं. हमेशा साइंटिस्ट अपनी थ्योरी को टेस्ट करने के बारे में सोचते हैं और देखते हैं कि उनका हमारे ब्रेन पर क्या असर होता है. यहां तक कि फ्रैंकफर्ट में एक स्टडी किया गया था जहां रिसर्च करने वालों ने एक टूथब्रश का यूज़ करके कुछ लौगों के प्राइवेट पार्ट्स में गुदगुदी करके ब्रेन के हलचल को बढ़ाया. ये सुनने में एक मजेदार स्टडी लगती हैं पर इससे रिसर्च करने वालों को ये जानने में मदद मिली कि उस जगह को अगर स्टिमुलेट किया जाए तो हमारे ब्रेन के कौन से हिस्से में असर होता हैं. उनको ये पता चला कि प्राइवेट पार्टस से सिग्नल ब्रेन के ऊपर वाले हिस्से के बीच में पहुँचती हैं. MRI स्कैन में ठीक इसी जगह लाइट जलती हैं. तो वहीं, डर लगने पर सिग्नल ब्रेन के ठीक बीच में पहुँचती है, आपके दोनों कानों के बीच, तो आपका गट आपके ब्रेन को सिग्नल कैसे भेजता हैं?
गट सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि काफी जगह सिग्नल भेजते हैं, ये इंसुला insula) को भी सिग्नल भेजती हैं. इंसुला वो जगह होती हैं जिसकी जिम्मेदारी हैं self -awareness, लिम्बिक सिस्टम (limbic system) जो हमारी भावनाओं से जुड़ी होती हैं और प्रीफ़रंटल को्टेक्स (prefrontal cortex) जो हमारे सही-गलत के समझ से जुड़ा होता हैं. सिर्फ ये ही नहीं, हमारा गट काफी और जगहों पर भी सिम्नल भेजटा ntal डर का सिग्नल अभिग्डला (amygdala) को, हिण्पोकैम्पस (hippocampus) को याददाश्त के लिए, और एंटीरियर सिंगुलेट कोर्टेक्स anterior cingulate cortex ) को मोटिवेशन के लिए.
एक एक्सपेरिमेंट किया गया जिससे ये बात साबित हुई कि आपके गट और एंटीरियर सिंगुलेट कोर्टेक्स के बीच एक गहरा रिश्ता है. रिसर्च करने वालों चूहों पर स्विमिंग टेस्ट किया. उन्होंने चूहों को पानी से भरे एक डब्बे में डाल दिया और वो डब्बा इतना गहरा था कि चूहे डब्बे के नीचे तक नहीं पहुँच सकते थे, चूहों को लगातार हाथ पैर मारना पड़ा जबकि वहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. वे चूहे जिनमें हार मानने या निराश होने की tendency थी वे ज्यादा देर तक बच नहीं पाए. वे बस धोड़ी देर के लिए तेरेऔर फिर कोशिश करना बेकार हैं ये मानकर तैरना छोड़ दिया, उन्होंने बस हार मान ली ली और डूबने का इंतज़ार किया.
साइटिस्ट को कैसे पता चला कि कुछ चूहे हार मानने वाले थे? स्ट्रेस में उनका रिएक्शन कुछ ज़्यादा ही था. आधे चूहों को लैक्टोबैसिलस रहम्नोसस lactobacillus rhamnosus) बैक्टीरिया खिलाया गया था जो गट के लिए फायदेमंद होता हैं, जिन चूहों ने इस बैक्टीरिया को खाया था, वे ज़्यादा देर तक तैरे थे. उनके खून में कम स्ट्रेस हॉर्मोन पाया गया.
इन बैक्टीरिया खाये हुए चूहों की यादाश्त और सीखने की काबिलियत भी दूसरे चूहों से बेहतर थी. साइंटिस्ट यही नहीं रुके. उन्होंने बैक्टीरिया खाये हुए चूहों के वेगस नर्व काटे. रिजल्ट से पता चला कि कटे हुए वेगस नर्व के बाद अब वो ख़ास नहीं रह गए थे बल्कि ये चूहे भी दूसरे चूहों के बराबर हो गए थे.
इन्होंने उन डिप्रेशन वाले चूहों की ही तरह जल्दी हार मान ली. ये वेगस नर्व हैं क्या? ये गट से ब्रेन तक का सीधा और तेज़ रास्ता हैं. ये गट से होकर डायाफ्राम, इसोफैगस, गर्दन और आखिर में ब्रेन तक पहुँचता इसलिए हमारे ब्रेन को दूसरे ऑर्गन के हेल्प की जरूरत पड़ती हैं ये तसल्ली करने में कि सबकुछ सही चल रहा हैं. ब्रेन अकेले ही ये काम नहीं कर सकता क्योंकि वो एक ऊँचे महल में रहने वाली राजकुमारी की तरह हैं, ब्रेन के लिए एक भारी भरकम सिक्योरिटी होती हैं, एक मज़बूत खोपड़ी जिसके अंदर मोटी लिक्विड भरी होती हैं जिसे मेम्ब्रेन कहते हैं. जबकि, दूसरी तरफ हमारा गट सबके बीच होता हैं. इसे पता होता हैं कि हमने क्या खाया हैं और हमारे खून में क्या जा रहा है. और, अगर कुछ मिसिंग हैं, तब भी ये ब्रेन को बता देता हैं. जब आप छोटे से बच्चे थे, आपके ब्रेन और गट को एकसाथ मिलकर काम करना पड़ता था आप ये कह सकते हैं कि बचपन में सिर्फ ये दो ऑर्गन्स हैं जो सबसे ज़रूरी होते हैं. जब आपका पेट खाली होता तो आपका गट ब्रेन को बताता कि आपके पेरेंट्स की बताये कि आपको भूख लगी हैं. फिर ही उनका ध्यान खींचने के लिए आप ज़ोर-ज़ोर से रोते थे, अगर आपका पेट भरा हुआ हो तो आपको नींद आती हैं और आप हंसी-खुशी से रहते हैं. आप अपने मम्मी के साथ खेलते हैं या फिर खाने के बाद सो जाते हैं. जब आप बड़े हुए, तब आप खाना पसंद न आने पर रोते नहीं थे. पर, जब से आप एडल्ट हुए हो, और आपका गट ख़राब हो तो वो आपके मूड़ पर असर करता है. अगर पेट खाने से भरा है और सबकुछ सही हैं, तो ये हमारे हालचाल को बेहतर बनाता हैं. हमारी इम्युनिटी सिस्टम और बैक्टीरिया
The Immune System and Our Bacteria
हमारे आसपास सभी जगह बैक्टीरिया रहते हैं. बस में आपके सामने बैठे हुए शख्स के सेंट की खुशबू में बैक्टीरिया हैं, कुत्ते के एक छोटे से बच्चे के गीली नाक में बैक्टीरिया हैं. हमारे अंदर, हमारे ऊपर और सब जगह ही बैक्टीरिया हैं. हम अंदाज़ा लगाते हैं कि बैक्टीरिया हमेशा खराब और खतरनाक होते हैं. अनगिनत स्टडी ने ये साबित किया हैं कि ऐसे भी बैंकटीरिया होते जो ज़रा भी नुकसान नहीं पहुंचाते. कुछ तो ऐसे भी होते हैं जो हेल्प करते हैं. ते हैं हमारे अंदर, खासकर हमारे गट में भिक्रोबॉयोम (microbiome) होता हैं. इसका मतलब हैं कि यहां एक ऐसा वातावरण होता हैं जहाँ बैकटीरिया हमार और दूसरे छोटे-छोटे सौ ट्रिलियन बैक्टीरिया केकति है, हमारे गेट के अंदर इतने सारे मिक्रोबॉयोम होते हैं कि ये लगभग दो किलो के बजन जितना होता हैं. इसमें लगभग। होते हैं. माइक्रो बायो के अंदर के कीटाणु हमारे हज़म करते हैं आसानी से हज़म नहीं होता. वे हमारे गट को ताकत देते हैं और उसमें से टॉक्सिन्स (toxins) निकाल सकते हैं. पर कुछ बैक्टीरिया से डायरिया और दूसरे पेट की बीमारियाँ हो जाते हैं. इस जानकारी की सबसे मज़ेदार बात हैं कि हर एक इंसान के मिक्रोबॉयोम में अलग-अलग टाइप के बैक्टीरिया होते हैं. ये इस बात पर निर्भर करता हैं कि वे कहाँ रहते हैं, खाने में कितना उस खाने को नटिशन लेते हैं और उनका टोक्सिन का लेवल कितना हैं.
आप सोच रहे होंगे, ” अगर मेरे अंदर खतरनाक बैक्टीरिया हैं तो इम्युनिटी सिस्टम क्यों कुछ नहीं कर रही?”
हमारा इम्युन सिस्टम इम्यून सेल्स (immune cells) से बने होते हैं जो हमें वायरस या बाहर की कोई चीज़ से बचाती हैं, बैक्टीरिया हमारे गट के म्यूकस मेम्ब्रेन या चिपचिपी लिक्विड में होते हैं. ये वहाँ इसलिए होते हैं ताकि ये गट के अंदर के सेल्स को नुक्सान न पहुंचाए. हमारे इम्यून सेल्स, जिनका काम हैं हमें बचाना, इन बैक्टीरिया से दोस्ती करने की कोशिश करते हैं, वे ऐसा क्यों करते हैं? ताकि अगली बार जब वही बैवटीरियम आए तो ये इम्यून सेल्स जल्दी से उसे पहचान ले कि वो अच्छा है ले कि वो हैं या बुरा, अगर वो अच्छा हैं, इम्यून सेल्स उसे वहाँ रहने की इज़ाज़त देती हैं. अगर वो बुरा निकला तो इम्यून सेल्स उसे मार डालना चाहेगा. इम्यून सेल्स को बहुत ात देती सावधानी बरतनी पड़ती हैं कि गलती से कहीं सारे बैक्टीरिया को न मार दें, क्योंकि जैसा की पहले ही बताया गया हैं, कुछ अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं. कुछ बैक्टीरिया के सेल्स इंसानों के सेल्स की तरह ही दिखते हैं. इसलिए इम्यून सेल्स को बहुत सावधानी लेनी पड़ती हैं कि कौन से सेल्स पर हमला करना हैं. नहीं, तो वे गलत सेल्स को ही मार डालेंगे. इसका एक कारण ये हो सकता है कि इम्यून सेल्स को मैसेज ही गलत मिल रहा हैं. या फिर ये कि गट के अंदर के इम्यून सेल्स को सही ट्रेनिंग नहीं मिली है. हमारे बॉडी में इम्यून सेल्स के लिए बूट कैंप जैसा कुछ होता हैं ताकि इम्यून सेल्स ऐसी गलती न करें. सबसे ज़्यादा इम्यून सेल्स हमारे गट में होते हैं. इनको खून में शामिल होने से पहले बूटकैंप से गुज़रना होता हैं. इन इम्यून सेल्स को लम्बी दूरी तय करनी पड़ती हैं,साथ ही इनको हमारे बॉडी में अलग -अलग मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है. मान लीजिए, रास्ते में ही इम्यून सेल्स का किसी से आमना-सामना हो जाता हैं. तो, ये अचानक ही रुक जाता हैं क्योंकि इसे पता नहीं होता कि वो हमारे ही बॉडी का हिस्सा हैं या फिर कुछ और हैं. वैस तो इम्यून सेल्स इस बात का मुयायना करते हैं तो ये अच्छी बात हैं पर इसने तो गलती कर ही दी, वो कैसे? कीजिए इम्यून सेल्स का वो बैक्टीरिया के साथ दोस्ती करना, आप कह सकते हैं इम्यून सेल्स गट में ट्रेनिंग लेते हैं, वे बैक्टीरिया से पहचान करते हैं याद ताकि दोबारा जब वे एक दूसरे से मिले तो या तो उसे मार दे या जाने दे, जो इम्यून सेल्स किसी से आमना-सामना होने पर हिचकते हैं, वे अपने ही बॉडी के सेल्स पर हमला कर सकते हैं. पर, ऐसा कोई नहीं चाहता हैं क्योंकि इसके बहुत ही गंभीर नतीजे हो सकते हैं.
हर बार जब एक बैक्टीरिया हमारे बॉडी में घुसता है, उसका हमारे इम्यून सिस्टम में अलग ही असर होता हैं. कुछ बैक्टीरिया हमारे इम्यून सिस्टम के सहने की शक्ति को बना देता हैं, वे इम्यून सेल्स को हल्का कर देते हैं जिससे हमारा इम्यून सिस्टम सख्ती करना छोड़ ही देता हैं, जो बैक्टीरिया ये कर पाते हैं, वो काफी चालाक होते हैं क्योंकि ऐसा करने से इम्यून सेल्स उन्हें छोड़ देते हैं. अच्छे बैक्टीरिया का दूसरा फायदा ये हैं कि वे बुरे बैक्टीरिया को भगा देते हैं. जैसा कि पहले बताया गया, अच्छे बैक्टीरिया हमारे गट के अंदर के एक चिपचिपे से लिक्विड में रहते हैं. जन्म बुरे बैक्टीरिया हमला करते हैं तो उन्हें कोई जगह नहीं मिलती और उनके पास भागने के अलावा कोई और चारा नहीं होता.
कन्क्लूज़न
तो आपने गट या डाइजेस्टिव सिस्टम के बारे में जाना. आपने ये जाना कि इसका काम सिर्फ आपको मल करवाना नहीं हैं. इसमें आपके एनस के आसपास के दो गोल मसल्स शामिल हैं. जब भी कोई बचा कुचा खाना इसके रास्ते में आता हैं, अंदर वाला स्फिन्क्टर ऑटोमेटिक ही खुल जाता है पर,
बाहर का स्फिन्क्टर आपके ब्रेन के साथ कम्यूनिकेट करते हैं ये तय करने के लिए कि गैस छोड़ने के लिए या मल करने के लिए ये वक्त सही हैं या नहीं. आपने हमारे खाने खाने के सफर के बारे में भी जाना. इसके लिए हमारे मुँह, इसोफैगस, पेट, स्मॉल इंटेस्टाइन और लार्ज इंटेस्टाइन के बीच काफी तालमेल की जरूरत पड़ती हैं,
गट लगातार आपके ब्रेन के कांटेक्ट में रहता हैं. ऐसा सिर्फ टॉयलेट जाने के लिए नहीं होता. गट हमारे ब्रेन को वो सब कुछ बताता हैं जो हमारे अंदर होता रहता हैं. अगर हमारा पेट खराब हो जाता हैं तो हमारे मूड पर इसका असर होता हैं. हम चिड़चिड़े हो जाते हैं. लेकिन अगर हमने पेट भर अच्छा खाया हैं, तो ये हमें पहले से बेहतर महसूस करवाते ते हैं.
गट के अंदर हमारे इम्यून सेल्स भी रहते हैं. ये सेल्स हमें खतरनाक बैक्टीरिया और बाहरी हमलों से बचाते हैं. लेकिन, हमारे गट में कुछ अच्छे बैक्टीरिया भी होते हैं. ये अच्छे बेक्टीरिया हमारे गट को साफ़ रखने में और उन खानों को पचाने में हेल्प करते हैं जो हजम नहीं हो पाया. हात है. हमारी बॉडी बहुत दिलचस्प हैं और इसके अंदर के ऑर्गन तो और भी दिलचस्प हैं. हम अक्सर इनहें अनदेखा कर देते हैं पर ये सब ऑर्गन्स हमें जिंदा रखने के लिए दिन-रात, लगातार काम करते हैं. जी हाँ, हमारा ब्रेन और हार्ट बहुत ही जरूरी ऑर्गन्स हैं, पर हमारे बॉडी को बनाए रखने और उसे चलाने में हमारे गट की भी ज़रूरत उतनी ही है.
छोटे-छोटे काम को करने के पीछे भी बहुत सारी मेहनत लगती हैं. हमें ये एक आसान काम लग रहा था, पर असलियत में इसमें बहुत सारे स्टेप्स होते हैं. अपने हेल्थ को हलके में मत लीजिए, खासकर आपके गट को. गट को थैंक यू कहने का सबसे बढ़िया तरीका हैं अच्छा खाना खाना और उसमें लापरवाही न बरतना.