GOOD TO GREAT by James C.Collins.

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About Book

सिर्फ गुड बनके क्यों रहा जाए जबकि आप ग्रेट बन सकते है, ये इतना भी मुश्किल नहीं है जितना आप लगता होगा. ग्रेट बनने की ख़ुशी ही अलग होती है. एवरेज तो हर कोई होता है. इसलिए आज से ही सोच ले कि आपको लाइफ में सिर्फ गुड बनकर नहीं रहना बल्कि गुड से ग्रेट की तरफ जाना है. ये बुक किस किसको पढनी चाहिए?

हर वो इंसान जो ग्रेट बनने का फार्मूला सीखना चाहता है इस बुक में दिए यूनिक कांसेप्ट्स और आईडियाज की मदद से अपने ग्रेट बनके का सपना पूरा कर सकता है. चाहे आप कंपनी प्रोफेशनल हो या स्टूडेंट या फिर कोई एम्प्लोई, ये बुक सबके लिए बड़े काम की है. आप भी इसे पढकर अपनी लाइफ को गुड टू ग्रेट की तरफ ले जा सकते है.

इस बुक के ऑथर कौन है?

जिम कोलिन्स गुड टू ग्रेट बुक के ऑथर है जो एक अमेरिकन राइटर और कंसल्टेंट है, वो 1958 में पैदा हुए थे, वो बिजनेस मैनेजमेंट एंड कंपनी सस्टेनेबिलिटी एंड ग्रोथ सब्जेक्ट में लेक्चर भी देते है. कोलिन्स ने अपनी रीसर्च के बाद छेह बुक्स लिखी जिनमे क्लासिक बिल्ट टू लास्ट भी शामिल है. ग्रेट बाई चॉइस उनकी लेटेस्ट बुक है, इसके अलावा वो हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू, बिजनेस वीक और फॉर्च्यून जैसी मैगज़ीन्स में भी अपना कोंट्रीब्यूशन देते रहते है.

क्विक समरी (Quick Summary):

अगर आप सिर्फ अच्छा बनकर खुश है तो आप कभी भी ग्रेट नहीं बन पायेंगे. तो फिर क्यों एक एवरेज इंसान बनके रहा जाए जब आप ग्रेट बन सकते है?

गुड इज द एनिमी ऑफ़ ग्रेट (गुड ग्रेट का दुश्मन है) Good is the enemy of great

जिम कोलिन्स आग्यो करते है कि हमे जो चीज़ ग्रेट बनने से रोकती है, वो है हमारी अच्छाई. और ये बात उन्हें अपनी एक बिजनेस मीटिंग के दौरान समझ आई जब मिच्कन्स्की कंपनी (Mckinskey company) के सैन फ्रांसिस्को ऑफिस के मैनेजिंग डायरेक्टर ने कहा कि कुछ प्रोधोज्ड कंपनी उन्हें यूजलेस लगी क्योंकि वो उतनी भी ग्रेट नहीं थी. जिम कॉलिंस ने ये बात सुनी और इसके बारे में रीसर्च करने में जुट गए. उन्होंने अपनी रीसर्च में बहुत सी कंपनीज के बारे में इन्फोर्मेशन हासिल की और उन्हें दो गुप्स में डिवाइड किया.

एक गुड और दूसरा ग्रेट, ये रिसर्च कई फेसेस पर किया गया. इसका फर्स्ट फेस था “द सर्च” और जैसा कि एक्सपेक्टेड धा, इसमें दो चीजों को शामिल किया गया था; स्टडी के लिए कंपनीज सर्च करना और एक टीम सर्च करना जो स्टडी करे. इस टीम में 21 रीसर्चर्स रखे गए थे. और हर कंपनी सामने एक ग्रेट कंपनी बनने एक ही शर्त शी कि उनके रिटरन्स जेर्नल स्टॉक मार्किट से कम से कम तीन गुना होने चाहिए और वो भी लगातार 15 सालो के लिए, नेक्स्ट फेस था इनसाइड द ब्लैक बॉक्स” इस फेस में स्पेशली एक एनालिसिस किया गया था उन 28 सेलेक्टेड कंपनीज का. उन पर आर्टिकल्स पढ़ने लेकर रिलेटेड मैटर को सब गुप्स में डिवाइड करने तक और एक्जीक्यूटिव्स का इंटरव्यू लेने तक, हालाँकि ये काम इतनी ईजी नहीं था. रिसर्च का काम काफी बड़ा था जिसे पूरा करने में 10 एंड हाफ इयर लगे. और इस रीसर्च से जो रिजल्ट्स निकल कर आये उसने रीसर्स को हैरान कर दिया था. उन्हें ये देखके हैरानी थी कि एक्चुअल में ग्रेटनेस की कोई स्ट्रेटेजी है ही नहीं, क्योंकि ग्रेट कंपनीज की कोई काम्प्लेक्स स्ट्रेटेजीज़ नहीं होती. और ना तो टेक्नोलोजी और ना ही उनकी अचीवमेंट का कंपनीज़ की ग्रेटनेस से कोई लेना-देना था. किसी भी कंपनी को एक ग्रेट कंपनी बनने के लिए ना सिर्फ ये फोकस करना होता है कि “क्या करना है बल्कि इस चीज़ पर भी फोकस करना है कि क्या नही करना है”.

किसी ग्रेट इंडस्ट्री में रहने का मतलब ये नहीं कि कंपनी भी ग्रेट हो जायेंगी. और फाइनली चेंजेस मैनेज करना और लोगों के इन्फ्लुएंश को अटेंशन देना खास बात है. इसे की टू सक्सेस भी कह सकते है. फिर आता है इसका लास्ट फेस “द चाओस”. जिम कोलिंस बताते है कि इस फेस में उन्होंने मीनिंगलेस डेटा से एक पूरा का पूरा फ्रेमवर्क क्रियेट कर लिया धा. इस रीसर्च के रिजल्ट्स को सिर्फ एक वर्ड में डिसक्राइब कर सकते है और वो है डिसप्लीन, इन चुनी हुई कंपनीयों के लीडर्स शर्मीले तो थे, लेकिन सेल्फ अफेक्टिंग और शांत थे. उन्होंने कंपनी के लिए कोई स्टेटीज़ी नहीं बनाई थी और ना ही उसे फुलफिल करने की कोशिश की थी बल्कि उन्होंने राईट लोगो को चज किया और मिसफिट लोगो करके आगे की प्लानिंग की. को रिमूव इससे रीसर्चर्स एक हैरतअंगेज रिजल्ट पर पहुंचे कि कंपनी को ग्रेट बनने के लिए इसे खुद पर यकीन रखना होगा कि चाहे जितनी भी मुश्किलें आये, यो एक दिन एक ग्रेट कंपनी बन के रहेगी. लेकिन इसके साथ ही कंपनी को अपनी करंट प्रोब्लम्स को भी हैंडल करना पडेगा. कोई भी काम अगर लम्बे टाइम तक किया जाए तो इसका ये मतलब नहीं कि आप उसमे बेस्ट है, और अगर आप बेस्ट नहीं है तो आप येट कभी नहीं बन सकते इसके लिए तो आपको कल्चर और डिसप्लीन अप्लाई करना होगा और लास्ट में टेक्नोलोजी कभी भी ग्रेटनेस नहीं दिला सकती. ये सिर्फ एक टूल है नाकि खुद एक ग्रेटनेस, सक्सेस के लिए कोई वन टाइम इवेंट नहीं होता. ये एक लॉन्ग टाइम प्रोसेस है जिसमे टाइम और एफोर्ट दोनों लगता है, तब जाकर पूरी पिक्चर कंप्लीट होती है. तो क्या ये आईडिया न्यू कंपनीज पर भी अप्लाई होगा? जी हाँ, ये बुक एक रास्ता बताती है आपकी कंपनी को गुड तो ग्रेट की तरफ ले जाने का.

लेवल 5 लीडरशिप (Level 5 leadership)

मान लोग दो रेसर मैराधन में है. उनमें से एक की जीत पक्की लग रही है और दूसरा इस रेस का डार्क है, वो जीतने के लिए अपना बेस्ट एफर्ट लगाता है और फाइनली ये रेस जीत जाता है. इसी तरह सीईओ का बेस्ट एक्जाम्पल है डार्विन स्मिथ, एक ऐसा सीईओ जो अपनी कंपनी को गुड तो ग्रेट की तरफ लेकर गए. 20वी सेंचुरी में, किम्बली-क्लार्क एक लीडिंग पेपर बैस्ड कन्यूमर प्रोडक्टूस की एक जानी-मानी कंपनी थी जो उस टाइम मार्किट में छाई हुई थी. सास ने वर्कशॉप बेचने का डिसीजन लिया ताकि बिजनेस को मेनस्ट्रीम और दीक होने से बचाया जा सके लेकिन हैरत की उस वक्त मिडिया में उनका काफी मज़ाक भी उड़ाया गया था. बात थी कि कंपनी के पास स्कॉट पेपर की ओनरशिप आई और प्रोक्टर एंड गैम्बल को उन्होंने 6 कैटेगरीज में हराया, ये ज़रूरी नहीं है कि कंपनी की हर अचीवमेंट के लिए लीड़र्स को ही रिस्पोंसिबल माना जाए, कभी-कभी एक डीप साइंटिफिक अप्रोच लेकर भी चलना चाहिए. लेवल 5 का लीडर बनने के लिए आपको हम्बल और फियरलेस बनना होगा. कोलमन मोकलेर (Colman Mockler) फेमस उन्होंने कंपनी में अपने शेयर नहीं बिकने दिए. क्योंकि उन्हें टेम्परेशी परा कभी हार नही मानी और लास्ट तक लड़ते रहे फिर भी।

जिलेट (Gillette)

एक लॉन्ग टर्म सेक्सी चाहिए थी. डेविड मैक्सवेल (David Maxwell), फन्नी एंड में (Fannie and Mae) के सीईओ ने कंपनी को जैसे जादू से एक मिलियन डॉलर कंपनी बना दिया था जो हर रोज़ 4 मिलियन डॉलर का प्रोफिट कमाके जेर्नल स्टॉक मार्किट से 3.8 से 1 पर पहुँच गयी थी. लेकिन वो नहीं चाहते थे कि उनकी रिटायरमेंट के बाद भी कंपनी लोस में जाये इसलिए उन्होंने अपने 5.5 मिलियंस की रिटायरमेंट मनी कंपनी के लो-इनकम हाउसिंग के फंड में जमा करा दिए. नहीं प्राइज

यही चीज़ एक गुड टू ग्रेट कंपनी के लीडर्स में कॉमन में होती है कि वो कंपनी को हर हाल में आगे ले जाना चाहते है. वो अपने पर्सनल लोस या फायदे জ में कानिन में ै के बदले कंपनी का बेनिफिट देखते है. एक और की सीक्रेट है जो कंपनी की सक्सेस में इम्पोर्टेट होता है और वो हे कि अपने पीछे एक ऐसी कंपनी छोड़ जाओ जो आपके जाने के बाद भी एक्सलीलेंट पोजीशन में बनी रहे. और सबसे ज़रूरी बात ये है कि लीडर्स को हमेशा मॉडेस्ट रहना चाहिए जो खुद से ज्यादा कंपनी के बारे में सोचे, अपने बोर्ड मेंबर की फ़िक़ करें.

ऐसे लीडर्स हेमशा शांत रहते है, उनमें कोई शो ऑफ नहीं होता और ना ही ये अपने बारे में बढ़चढकर बोलते है. बल्कि ये चुपचाप अपना काम करते है और अपने टारगेट पूरे करते है. जो लीडर्स अपने काम का शो ऑफ़ करते है उनकी सक्सेस लॉन्ग टाइम तक नहीं टिकली, ली लाकोच्चा (Lee lacocca) क्यस्लेर (Crysler) के सीईओ ने कंपनी को डूबने से अचाया और उनका एक बड़ा हाथ रहा अपनी कंपनी को अमेरिकन बिजनेस हिस्ट्री की मोस्ट सेलीब्रेटेड कम्पनी बनाने में. लेकिन शो ऑफ़ ने क्रयस्लेर (Crysler) को एक दूसरी जैन कार मेकिंग कंपनी के हाथों बिकने को मजबूर कर दिया था,

एक 5 लेवल का लीडर होने का मतलब है कि आप ना सिर्फ मॉडेस्ट रहे बल्कि आपके अंदर एक स्ट्रोग डिसीज़न मेकिंग पॉवर भी हो, अगर कंपनी की भलाई के लिए आपको खुद अपने किसी फेमिली मेंबर को फायर करना पड़े तो आप करेंगे जैसा कि ज्योर्ज केन (George Caine) ने किया. जोसेफ ऍफ़, कुलमेन और एलन वुजेल, एक न्यूकोर एक्जीक्यूटिव मानते है कि किसी कंपनी को ग्रेट बनाने में लक भी एक इम्पोरेंट रोल प्ले करता है. इन फैक्ट, किसी भी ग्रेट कंपनी की सक्सेस में लक कोई मायने ही नहीं रखता. अपने खराब रिजल्ट्स को बेड लक बोलना सिर्फ एक बहाना है. क्या हर कोई लेवल 5 लीडर बनना सीख सकता है? नॉन इगोइस्टिक लोग सीख सकते है. स्टडी में जितने भी सीईओ को स्टडी किया गया था, उन सबकी लाइफ में ऐसे चेलेंजेस आये जिसने उनकी पर्सनेलिटी को एक मैच्योर अप्रोच दी. तो ऐसे कोई भी फिक्स स्टेप्स नहीं है जिन पर चलकर आप लेवल 5 लीडर बन जाए, ये तभी होगा जब आप एक लीडर की टू क्वालिटी रियेल में अप्लाई करेंगे.

फर्स्ट वह, देन व्हट (First who, then what)

बस को कहाँ लेकर जाना है ये डिसाइड करने से पहले, बस में राइट लोग बैठे है, इस बात को श्योर कर ले. वो लोग (बस डाइवर) आपको राइट डिसीजन लेने के लिए मोटीवेट करते है, वो लोग जो एक ब्यूटीफुल डेस्टीनेशन तक जाने के लिए खराब रास्तो की परवाह नहीं करते. इसलिए वो राईट लोग कौन होंगे, ये एक ग्रेट लीडर को मालूम होना चाहिए, वो अपनी टीम में सिर्फ उन्हीं लोगों को रखता है जो राईट है, तभी वो आगे की स्ट्रेटेज़ी प्लान कर सकता है. अगर आप गलत लोगों को साथ लेकर चलोगे तो कोई भी गोल अचीव नहीं कर पाओगे इसलिए हमेशा राईट लोगो के साथ काम करो, रोंग लोगों को हमेशा राईट लोगो से ज्यादा मोटिवेट करना पड़ता है. और रोंग लोगों के साथ राईट डिसीजन डाउटफुल लगेगा. यहाँ हम वेल्स फ़ार्गो का केस लेंगे जिसके सीईओ ने अपनी कपनी में बेस्ट लोगों की टीम बनाई में एक सक्सेसफुल डिसीजन था क्योंकि आने वाले टाइम में बैंक ने मार्किट को पूरे 4 बार नॉक आउट किया. कुछ कंपनीज की एक और बेड हैबिट्स होती है कि वो कॉम्पटीटिव बनने के चक्कर में वीक लीडर्स को हायर कर लेते है. लेकिन कंपनीज ग्रेट बनने के लिए दो सिंपल रूल्स फोलो करे तो उनकी ये परेशानी काफी हद तक दूर हो सकता उसके बजाये किसके साथ काम करना है” ये चीज़ क्लियर कर ले. और सेकंड है कि ‘हाउटूपेदेम पें” पर फोकस करे. क्योंकि राइट लोग वही करेंगे तो कंपनी के लिए बेस्ट है, फिर चाहे वो कितना ही अर्न करते हो, इसलिए बेस्ट हार्ड वर्किंग लोगों को हायर करो करत हैो. कंपनी के फायदे की सोचे और अपनी बेस्ट प्रोडक्टीविटी दे. एक ग्रेट कंपनी चलाना बड़ा मेहनत का काम होता है. हर एम्प्लोईज को बेस्ट परफोर्मेंस देने के लिए मोटीवेट करना और अनवांटेड लोगों को तुंरत फायर कर देना, ये सब तो करना ही पड़ेगा. लेकिन इसके लिए आपको थ्री प्रिंसीपल अप्लाई करने होंगे. 1. अगर आपको डाउट है तो तुरत हायर मत करो, वेट करो कि कोई बैटर मिल जाए 2. जब आपको लगे कि लोगो को चेंज करना है तो एक्ट करो 3. अपनी बिगेस्ट अपोरच्यूनिटी को अपना बेस्ट दो नाकि अपनी प्रोब्लम्स को. तो क्या आप एक ग्रेट कंपनी और एक ग्रेट लाइफ बिल्ड कर सकते हो? एक ग्रेट लीडर को पता होता है कि अपने काम और पर्सनल लाइफ को कैसे बेलेंस किया जाए. क्योंकि उसे पता है कि फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करना उतना ही इम्पोर्टेंट है जितना कि वर्क प्लेस में गोल्स अचीव करना, पहला के बजाये कंफर्ट द ब्रुटल फैक्ट्स (Confront the Brutal Facts)

दो ओल्ड कंपनीज के बीच क्या डिफरेंस है जो सेम स्ट्रेटेजी शेयर करती है और वो भी एक खास टाइम पीरियड के लिए? इनमें से एक कंपनी को ये हार्श रियेलिटी फेस करनी ही होगी कि उसे खुद को अपडेट रखना है, मार्किट के ट्रेंड के हिसाब चलना है, ना सिर्फ अपनी प्रोब्लम को एक्सेप्ट करना होगा बल्कि उसे रिसर्च और फिजिकल एफोर्टस भी लगाने होंगे, गुड टू ग्रेट जाने के लिए कंपनी को दो डिसीजंस लेने होते है: फर्स् तो ये कि सारे प्रोसेस को रियलिटी की से देखे और सेकंड ये कि सारे डिसीजंस एक डीप और इंट्यूटिय फ्रेम ऑफ रेफेरेंस से लिए जाए. नज़र

सबसे बड़ी बात कि एक ग्रेट बिजनेस के लीडर को रियल प्रोब्लम्स मालूम होती है तभी वो राइट स्टेप्स ले पाता है, और साथ ही एक मोटिवोरटिंग एन्वायर्नमेंट का होना भी ज़रूरी है जिससे आपका कीमती टाइम एमलोईज जो मोटीवेट करने में वेस्ट ना हो, लेकिन यहाँ प्रोबलम ये है कि आप चाहोगे. एम्प्लॉइज को कंपनी के रियल स्ट्रगल बता कर उन्हें ही मोटीवेट बिलकुल नहीं करना थ व्या चल रहा है? इस तरह सवाल पूछने से आपके सामने इसके लिए आप नॉन-फॉर्मल मीटिंग रखी, जिसमें सवाल पूछे जाए जैसे कि आपके माईंड डिवीजन शो ल के साथ जायेगी. इसके अलावा, एक लीडर को दितेट भी रखने चाहिए, जिसे एम्प्लोईज को ये ना लगे कि उन पर फ़ोर्सफूली कोई प्रजेंट रियलिटी जा रहा है. एक एफिशियंट लीडर अपने बेड डिसीजन्स खुद एक्सेप्ट करता है नाकि एम्प्लोईज को ब्लेम करता है. सिर्फ इन्फोर्मेशन से काम नहीं चलता, उसकी वैल्यू तभी है जब लीडर ये बता सके कि कौन सी इन्फोर्मेशन ज़रूरी है कौन सी नहीं, ग्रेट लीडर इतना स्ट्रोंग हो कि कंपनी की किसी भी डिजास्टर इंसिडेंट को हैंडल कर पाए. और कंपनी अपने डाउनफाल से सबक सीख कर कुछ बड़ा अचीव कर पाए फिर चाहे कंपनी को कैसी ही प्रोब्लम्स या कॉम्पटीशन फेस करना पड़ रहा हो. इसके साथ ही कंपनी का ” स्टॉक डेल पैराडॉक्स” पर एक एफिशिएंट पकड़ हो. यानी कि अपने फेलर्स को एक्स्पेट करके उसके सबक लेकर सक्सेस की तरफ कदम बढ़ाने की क्वालिटी, लाइफ हमेशा एक जैसी नहीं रहती, कभी प्रोब्लम्स तो कभी अचीवमेंट मिलती है लेकिन हम इन डिफीकल्टीज को कैसे फेस करते है ये इम्पोर्टेन्ट बात हैं.

दहेज़हाँग कांसेप्ट (The Hedgehog Concept)

हेजहोग और फॉक्स? हम सब इन दो ग्रुप्स में डिवाइडेड है. फॉक्स बड़ा क्लीवर एनिमल है इसलिए उसे कई सारी स्ट्रेटेजीज मालूम है जिससे वो हेज़हाँग का शिकार कर सके, लेकिन हेज़हाँग सिर्फ एक चीज़ में गुड है जो वो जानता है. हेज़हाँग्स बेवकूफ नहीं होते, लेकिन वो सिर्फ उस पर फोकस करते है जो उनके लिए इम्पोटेंट है बाकि चीजों पर वो ध्यान नहीं देते. जैसे एक्जाम्पल के लिए वाल्ीस । (Walgreens) ने हेज़हाँग कांसेप्ट यूज़ करके दूसरी कंपनीज जैसे कोका कोला की कॉग्पटीशंन दिया, उन्होंने सिंपली इन्कविनिएंट स्टोर्स लोकेशंस को ज्यादा कांदिनिएंट लोकेशंस से एक्सचेंज कर दिया! लेकिन व ये इतना ही सिंपल है तो हर कोई यूज क्यों नहीं कर सकता? अक्सर कंपनी किसी भी इश्यू को सोल्व करने के लिए ज्यादा काम्प्लेक्स प्रोसेस सूज़ करने लगती है, जबकि सिंपल सोल्यूशन उनके सामने ही होता है. तो हेज़हाँग कांसेप्ट सिंपलीसिटी का कांसेप्ट है लेकिन से डीप दे में एक्शन लेता है.

इसलिए हमें लगता है कि कोई एक्ट जो इतना सिंपल है, फिर भी इतना डीप है तो कैसे असर है। करेगा? आप खुद सोचो, आप क्या बेस्ट बन सकते हो, आपका पैशन क्या है, ऐसा क्या है जो आपके इकोनोमिक इंजन को आगे बढ़ने के लिए मोटीवेट करता है. यहाँ हम बेस्ट टारगेट रखने की बात नहीं कर रहे बल्कि आप क्या बैस्ट कर सकते हो, ये पूछ रहे है. एक ग्रेट कंपनी बनने के लिए ये ज़रूरी नहीं कि आपकी इंडस्ट्री भी ग्रेट हो. लेकिन हाँ आपके पास एक फैनामोनल वर्क इंजिन ज़रूर होना चाहिए. अपने प्रॉफिट लार्जेर स्केल पर रखना एक इकोनोमिक की है. सिर्फ वही काम करो जो आप दिल से करना चाहते हो, यही हेजहाँग कांसेप्ट का फंडामेंटल रुल है. वैसे ये कांसे्ट इतना ईजी भी नहीं है, इसमें टाइम और एफोर्ट्स दोनों लगते है. इसमें आपके एम्प्लोईज को डिबेट में पार्ट लेकर मीनिंगफुल क्वेश्चन्स भी पूछने होंगे. इसी तरह का एक और कॉन्सेप्ट्स समझने की जरूरत है।

जिसे” द कॉसिल” बोलते है.

अ कल्चर ऑफ़ डिसप्लीन (A Culture of Discipline)

अक्सर स्टार्ट-अप्स ग्रेट कंपनी नहीं बन पाती है? क्यों? जवाब है क्रिएटिविटी की कमी. स्टार्ट-अप खुलते है, फिर अचानक बड़े बन जाते है, फिर उनको बड़े ऑर्डर्स और क्लाइंट्स मिलने लगते है, और यही शुरू होता है उनका डाउन फाल. फिर कोई डिसाइड करता है कि ये सब गडबड बंद होनी चाहिए, वो नए रूल्स और स्ट्रेटेजी प्लान करता है जो कंपनी को मिडीयोक्रिटी की तरफ ले जाती है.

फर्स्ट स्टेप है कि आप एक ऐसी सोसाइटी क्रिएट करो जहाँ फ्रीडम और रिस्पॉंसेबिलिटी हो. फिर आप अपनी इस सोसाइटी में ऐसे लोगो को शामिल करो जो अपनी रिस्पोसेबिलिटी पूरी करने के लिए डीटरमाइन हो. लेकिन लीडर को डिटेक्टरशिप् से बचना चाहिए. आपको हेजहाँग कांसेप्ट बहुत ही केयरफूली यूज़ करना है जिसमे इसके तीनो रूल्स का ध्यान रखा जाये. एम्प्लोईज़ के पास अपने रूटीन वर्क का चेकलिस्ट जरूर हो, भले ही उन्हें कूशियल डिसीजन लेने और अपनी रिस्पोंसेबिलीटी पूरी करने की फ्रीडम दी जाए.

रिन्सिंग योर कॉटेज चीज़? मतलब कि आपको ग्रेट बनने के लिए हर छोटे से छोटा स्टेप लेना होगा, एक गुड टू ग्रेट लीडर को भी अपनी कॉटेज चीज़ रिंस करना पड़ता है चाहे पसंद हो या ना हो, लेकिन गुड और ग्रेट कंपनी के बीच सिर्फ डिसप्लीन का ही डिफ़रेंस नहीं है बल्कि उसे एक डिसप्लीन्ड सोसाइटी डेवलप करनी भी आती हो. डिस्प्लीन एक ऐसी चीज है जो कभी भी फोर्सफूली अप्लाई नहीं की जा सकती. है। क्योंकि आप एक पर्सन को डिसप्लीन सिखा सकते है लेकिन अगर वो पर्सन कंपनी से चला जाता है तो क्या डिसप्लीन भी खो जाएगा. बिलकुल नहीं. क्योंकि डिसप्लीन एक हैबिटू है जो हम अपनी लाइफ में इम्प्लीमेंट करते है. एक गुड टू ग्रेट कंपनी स्पेशिलिटी पर फोकस करती है यानी एक चीज़ जिसमे वो एक्सपर्ट है बाकि को वो ध्यान नहीं देते. उनकी स्टॉप डूइंग लिस्ट छोटी होती है जहाँ उन्हें पता है कि किस एक्टिविटी पर फोकस करना है और किसे छोड़ना है.

टेक्नोलोजी एक्सेलरेटर्स (Technology Accelerators )

थिंकिंग ऑप्शनल नहीं है. 21वी सेंचुरी में हार्ड वर्क के बजाये स्मार्ट वर्क पर जोर दिया जाता है, ये आज की ज़रूरत भी है कोई लक्जरी नहीं. पॉवर ऑफ़ थिकिंग यानी सोचने की ताकत सक्सेस का एक ज़रूरी पार्ट है. जैसे एक्जाम्पल के लिए ड्रगस्टोर.कॉम का स्टोर ओपन होते ही इसके स्टॉक : गुना बड़ गए थे, क्योंकि उन्होंने एडवांस टेक्नोलोजी यूज़ की थी इसलिए उन्हें ह्यूज़ स्कसेस मिली. बही दूसरी तरफ वालग्रीन्स को सक्सेस काफी टाइम बाद मिली क्योंकि वो सोच सकते थे, कोई भी न्यू डिस्कवरी अचानक से नही हो जाती. इसके लिए इलेक्ट्रीसिटी, इंटरनेट की ज़रूरत पड़ती है तब जाकर रिजल्ट्स मिलते है. आईडिया ये है कि हम इंटरनेट को कुछ एक्स्ट्राओर्डीनेरी के लिए यूज़ करे. वालगरीन ने इप्टरकॉम बनाया, क्रोगेर ने बारकोड, और जिलेट (Gillette) ने हाई टोलरेंस रेजर ब्लेड्स, सक्सेसफुल बनने के लिए ज़रूरी नहीं कि आपके पास दुनिया की बेस्ट टेक्नोलोजी हो,

ये बात आप खुद से पूछो कि क्या ऐसी टेक्नोलोजी हेंजहाँग कांसेप्ट में फिट होती है या नहीं. अगर हाँ तो आगे बढ़ो वर्ना इग्नोर करो. इनफैक्ट टेक्नोलोजी सक्सेस फैक्टर है ही नहीं, बल्कि टेक्नोलोजी को कैसे मैनेज किया जाए ये मैटर करता है. टेकनोलोजी सिर्फ प्रोसेस को स्पीड देती है, देखा जाए तो कोई भी टेक्नोलोजी आपको लेवल 5 लीडर नहीं बना सकती और ना ही ये लीडर को रिएलिटी दिखा सकती है. ग्रेट कंपनीज कॉम्पटीटिव स्ट्रेटेजी के मामले में थोड़ा पीछे होती है, क्योंकि ये उस बारे में बात ही नहीं करती. उन्हें सिर्फ जीतने से और बेस्ट बने रहने से मतलब होता है, उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं रहता कि उनकी राईवल्स कंपनीज क्या कर रही है, उनके लिए उनका काम और बेस्ट पोजीशन मैटर करता है. इसकी एक वजह ये भी है कि ग्रेट कंपनीज को किसी तरह का डर नहीं होता, ना इस बात का कि उन्हें क्या समझ नहीं आ रहा और ना ही बेस्ट होने या ना होने का.

द फ्लाईव्हील एंड द डूम लूप The Flywheel and the Doom Loop

क्या आपने कभी नोटिस किया कि फेरिस व्हील कैसे चलता है? पहले पुश में जोर से धक्का देना पड़ता है फिर उसके बाद ये स्मृथ चलने लगता है. सेम यही चीज़ कंपनीज के साथ भी है. शुरुवात में एक मोमेंटम बिल्ड करना ज़रूरी है ताकि बाद में मिनिमम एफोर्टस में सेम रिजल्ट्स मिल सके. सक्सेस एक झटके में अचानक नहीं मिलती, ये एक लॉन्ग प्रोसेस है.

किसी भी ब्रेकथू के लिए टाइम चाहिए. उसके बाद सक्सेस को लॉन्ग टर्म तक बनाये रखने के लिए मिनिमम एफ्टस ही काफी है. इस चीज़ को हम “फ्लाईव्हील मॉडल बोलते है. कुछ लोग शायद ये सोचे कि ये सिर्फ कोइन्सिडेन्स है कि कोई कंपनी चल पड़ी. लेकिन अगर देखा जाए तो स्कसेस हमेशा डिसप्लीन और प्लानिंग से मिलती है, एक केयरफुल ग्रेट कंपनीज़ को भी प्रोब्लम्स फेस करनी पड़ती है लेकिन दो उन्हें कैसे फेस करते हैं, ये चीज़ उन्हें डिफरेंट और ग्रेट बनाती है. क्योंकि ये कंपनीज़ अपनी प्रोब्लम्स डिस्प्लीन और प्लांड एक्शन से सोल्व क है. अगर एक राईट वर्क एटमोस्फेयर हो तो ग्रेट कंपनीज को कमिटमेंट और मोटीवेशन जैसी चीजों की फिक्र नहीं करनी पड़ती. बल्कि उनकी ये चीज़े खुद सोल्व हो जाती है. और एक ग्रेट कंपनी को अपने लिए गोल्स भी सेट नहीं करने पड़ते क्योंकि फ़िक़ उनके एम्प्लोईज आलरेडी फ्लाईव्हील मॉडल के हिसाब से काम करते है. और उन्हें पता होता है कि उन्हें किस तरह का और कितना काम करना है. कुछ कंपनीज बैटर रिजल्ट्स की उम्मीद में एक न्यू डायरेक्शन क्रियेट करने के चक्कर में पड़ जाती है, लेकिन नतीजा एकदम उल्टा निकलता है. लेकिन ऐसा होता क्यों है? इसकी वजह है कि ऐसी कंपनीज अपने ही बेड रिजल्ट्स से मोटीवेट होकर ऐसा डायरेक्शन क्रियेट कर लेती है जिसका कोई बिल्ड अप नहीं होता और ना ही कोई मोमेंटम जेनरेट होता है. कुछ कंपनीज को ज्यादा एसेट्स गेन करके ज्यादा सक्सेस मिलती है.. इसका सीक्रेट है कि ये कंपनीज नोटेबल मोमेंटम क्रियेट करने के लिए फ्लाईव्हील मॉडल और हेज़हॉग कांसेप्ट यूज़ करना पसंद करती है. उनके एसेट्स या गेन उनके मोमेंटम को क्रियेट नहीं करते बल्कि उसकी स्पीड बढ़ाते है. एक और ट्रेप है जिसमें अक्सर कुछ लीडर्स फस जाते है।

और वो ये कि कंपनी जब आलरेडी एक स्टेशन डायरेक्शन में जा रही होती है तो ये लीडर्स कोई दूसरी डायरेक्शन चूज़ कर लेते है. स्कसेस का एक की-एडजेक्टिव यानी एक दूसरा नाम कोहेरेंस {coherence) है जिसमें सिस्टम का हर पार्ट दुसरे से कनेक्ट है जो फाइनली मिलकर एक बड़ी पिक्चर बनाते है.

अगर आप फ्लाईव्हील में रहना चाहते हो तो आपको डेवलपमेंट के लिए एक पैटर्न फोलो करना ही पड़ेगा जो आपको ब्रेकथू की तरफ ले जाए और जिसमें हेजहाँग कांसेप्ट अप्लाई होता हो, वही दूसरी तरफ आप डेवलपमेंट के बगैर सीधे ब्रेकध्रू पर पहुंच जाना और लगातार इनकंसिस्टेंसी शो कराने से ये बात जाहिर होती है कि एक डूम लूप में हो.

फ्रॉम गुड टू ग्रेट टू बिल्ड टू लास्ट From Good to Great to Built to Last

एक कंपनी लॉन्ग टर्म तक कैसे टिकी रहती है? ऐसा क्या है जो उसे लॉन्ग रन सक्सेस देता है ? इसके लिए हम बोल सकते है कि किसी भी कंपनी को अपनी कोर वैल्यू पता होनी चाहिए.- प्रॉफिट कमाने के अलावा- और फिर अपनी कोर वेल्यू को एक डायनामिक प्रोसेस ऑफ़ प्रोग्रेस से मिक्स कर दे. गुड टू ग्रेट बनने के कांसेप्ट को जेर्नली अप्लाई करने का एप्लीकेशन इस बुक में डिस्कस किया गया है जोकि ग्रेट रिजल्ट्स की गारंटी देते है. हालांकि बिल्ट टू लास्ट कांसेप्ट एक लॉन्ग लास्टिंग गेट कंपनी की गारंटी देता है, जैसाकि किसी भी गुड टू ग्रेट कंपनी पर अप्लाई होता है; कि एक्चुअल में कोई ब्रेकथ है. आपको टाइम और हार्ड वर्क दोनों की ज़रूरत पड़ेगी. लॉन्ग लास्टिंग ग्रेट कंपनीज़ सिर्फ शेयरहोल्डर्स को प्रॉफिट देने के लिए नहीं नहीं बनी है. बल्कि इन कंपनीज का बाकि कंपनीज की इस बात पर भी एक बड़ा इम्पैक्ट पड़ता है वो इतने सालों से कैसे मैनेज करती आ रही थी. और सबसे बड़ी बात कि ग्रेट कंपनी पूरी लाइफ नहीं है बल्कि लाइफ का एक पार्ट कि गेट भी ग्रेट कंपनी अपने कोर वैल्यूज़ के बिना टिक नहीं सकती. इसलिए वो इसका पूरा ध्यान रखते है चाहे उनकी कोर वैल्यू जो भी हो. ये कोर वैल्यू इंडीविजुअल् या सोशल रिस्पोर्सेबिलिटी भी हो सकती है. तो कोर वैल्यूज को प्राइज यानी उसे मेंटेन कैसे रखा जाये? इसका जवाब है कोर प्रोग्रेस के कांसेप्ट को एक्सेप्ट करके. इसके लिए 4 आईडियाज मोटे तौर पर एक्सप्लेन किये जा सकते है कि गुड टू ग्रेट और बिल्ट टू लास्ट कांसेप्ट को कैसे अप्लाई किया जाए 1, सबसे पहले एक टीम डेवलप करो जो हर जेनरेशन के लीडर्स के साथ कोम्पेटेबल हो, 2. आपको किसी भी चीज़ के दो एक्सट्रीम ऑप्शन ढूढने होंगे: जैसे फ्रीडम और रिस्पोंसेबिलीटी 3. एक कोर आईडीयोलोजी रखे. 4. प्रोग्रेस को स्टीमुलेट करे. अब सवाल है कि क्या ग्रेटनेस इतनी ज़रूरी चीज़ हैइस सवाल के दो जवाब हो सकते है. पहला तो ये कि कुछ गुड बनाने से कुछ ग्रेट बनाना उतना भी मुश्किल नहीं है. दूसरी चीज़ कि जब आप कुछ ग्रेट अचीव करते हो तो आप खुद को एक मैजिकल वर्ल्ड में फील करते हो, ऐसा ड्रीम जो आप हमेशा देखते आये, जो आप अचीव करना चाहते थे.

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