GOOD PEOPLE by Anthony Tjan.

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लेखक के बारे में

एंथोनी टियान (Antharny Tjan ) क्युबॉल के सीईओ और मैनेजिंग पार्टनर हैं। चे एक लेखक भी हैं जो अपनी किताब हर्ट स्मार्ट्स, मट्स एन्ड लक के लिए जाने जाते हैं। वे वल्ल हकोनोमिक फोरम के ग्लोबल लीडर्स में से एक हैं।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए

क्या आपको अपना आखिरी इंटरव्यू याद है? या क्या आपको याद है जब आप ने किसी व्यक्ति से उसके बारे में जातने की कोशिश की थी तो आप ने किस तरह के सवाल पूछे थे? क्या आप ने उससे इस तरह के सवाल पूछे जिससे यह पता लग सके कि उसका स्वभाव केसा है या फिर आप ने उससे इस तरह के सवाल पूछे जिससे यह पता लगे कि यह कितना काबिल हे या उसे अपने काम के बारे में कितनी जानकारी है?

आज के वक्त में हम एक व्यक्ति के स्वभाव से ज्यादा महत्व उसकी काबिलियत को देते हैं। हम यह देखते हैं कि वो किसी काम को कितने अच्छे से कर सकता है और हम

उसके स्वभाव के बारे में जानने की कोशिश नहीं करते। लेकिन क्या इससे कंपनी पर कोई असर पड़ता है? यह किताब इस सवाल का जवाब देती है। यह किताब हमें बताती है कि एक कंपनी का कल्चर अच्छा होना क्यों जरूरी है और उसे अच्छा बनाने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

इसे पढ़कर आप सीखेंगे

-अच्छे लोगों का मंत्र क्या होता है।

अच्छाई के पिरामिड की क्या खास बात होती है।

-अच्छा लीडर बनने के लिए बोलने से ज्यादा सुनना क्यों जरूरी है।

काम में अच्छा होना और स्वभाव का अच्छा होना दो अलग अलग बातें हैं।

“अच्छा” शब्द का इस्तेमाल आज हम इतना ज्यादा करने लगे हैं कि हम खुद यह मूल जाते हैं कि उसका असल मतलब क्या होता है। जरा सोचिए कि जब आप किसी खाने को अच्छा बोलते हैं या किसी मूची को अच्छा बोलते हैं तो आप असल में उसके बारे में क्या कहना चाहते हैं? रोज़ की जिन्दगी में अच्छा” शब्द का कुछ भी मतलब हो, लेकिन कंपनियों में इसका मतलब पूरी तरह से बदल गया है।

कंपनी में जब किसी कर्मचारी को अच्छा कहा जाता है तो हम उसके काम की तारीफ कर रहे होते हैं, ना कि उसके स्वभाव की। हर कंपनी किसी भी व्यक्ति को काम पर रखने

से पहले यह देखती है कि वो कितना अच्छा काम कर सकता है या फिर अपने काम के बारे में कितनी जानकारी रखता है। लेकिन इस बीच हम उसके स्वभाव के बारे में

जानने की कोशिश नहीं करते हैं। कोई भी उसके उसूलों के बारे में नहीं पूछता।

अगर किसी कर्मचारी का स्वभाव अच्छा होगा तो वह अपने साथियों से साथ अछे संबंध बना कर मिल जुल कर काम कर सकेगा। लेकिन अगर वह स्वभाव का अच्छा नहीं होगा तो वह हमेश खुद के बारे में सोचेगा। किसी कर्मचारी का स्वभाव ही यह दिखाता है कि उसके आने से कंपनी के कल्चर पर क्या असर पड़ेगा।

सच्चाई, ईमानदारी, नर्म दिली और सहानुभूति जैसी भावनाएँ ही एक कंपनी को आगे तक लेकर जाती हैं। जहाँ पर ये भावनाएं पाई जाती हैं, वो जगह अपने आप ही ज्यादा कामयाब हो जाती है। अगर आपकी कंपनी में यह भावनाएं हैं तो जाहिर सी बात है हर कोई वहाँ पर जाकर काम करना चाहेगा और वहाँ काम करने वाले मिल जुल कर काम करेंगे।

जब लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे होते हैं, तो वे फायदों के बारे में नहीं सोवते। ये एक साथ मिलकर एक मजिल हासिल करने के बारे में सोचते हैं जिससे एक कंपनी बहुत जल्दी कामयाबी तक पहुँच जाती है। इस तरह से अच्छे स्वभाव के कर्मचारी होने से एक कपनी का फायदा हो सकता है।

अच्छे लोगों के मंत्र को अपना कर आप अच्छे बन सकते हैं।

एक व्यक्ति अपने काम में कितना काबिल है इसे पता करना आसान है। लेकिन वह स्वभाव का कितना अच्छा है इसे पता कर पाता बहुत मुश्किल हो सकता है। सवाल यह उठता है कि आखिर हम अच्छे कैसे बन सकते हैं या फिर अपने कल्चर को अच्छा किस तरह से बना सकते हैं? इसके लिए आप अच्छे लोगों के मंत्र को अपनाइए, जिसके पाँच सिद्धांत नीचे दिए गए हैं।

-सबसे पहला सिद्धांत है लोगों को चुनिए, ना कि आहड़ियाज़ या फायदों को। हम में से हर कोई चाहता है कि वो किसी तरह से कामयाब बने और इसलिए जब चुनने की बारी आती है तो ज्यादातर लोग अच्छे लोगों को ना चुनाकर अपनी मंजिल, फायदे या फिर आहड़ियाज़ को चुनते हैं। यह बात जार्ज डोरिओट की रोसर्च से सामने आई है। डोरिओट का मानना है कि अगर हम एक अच्छे टीम के साथ काम करेंगे तो हम किसी भी आइडिया को अच्छे आइडिया में बदल सकते हैं और किसी भी तरह की मंजिल को

हासिल कर सकते हैं। इसलिए लोग ज्यादा जरूरी है।

दूसरा सिद्धांत यह है कि आप लोगों को अच्छा बनने में उनकी मदद कीजिए। हम सभी में कुछ ना कुछ खराबिया होती हैं। हर बार किसी की बुराई ना कर के उसकी मदद कीजिए ताकि वो अपनी खुद की क्षमता को पहचान कर एक अच्छा व्यक्ति बन सकें।

-तीसरा, एक व्यक्ति के स्वभाव को देखिए, ना कि उसकी काबिलियत को। काबिलियत बताती है कि वह व्यक्ति कितना अच्छा काम कर सकता है, लेकिन स्वभाव बताता है कि वह व्यक्ति कपनी के लिए कितना अच्छा है।

चौथा यह कि आप लोगों के बीच के संतुलन बना कर रखिए। किसी भी कंपनी में उतार चढ़ाव आते रहते हैं। इस तरह के हालात के साथ संतुलन बनाना बहुत जरुरी हे

क्योंकि यही वो हालात हैं जो हमें कुछ हासिल करने से रोकते हैं।

-पाँचवा सिद्धांत यह है कि आप हमेशा अच्छे बनने की कोशिश करते रहिए। बहुत से लोग दूसरों को दिखाने के लिए अच्छा बनते हैं। लेकिन ऐसा करने से यह साफ जाहिर होता है कि वह व्यक्ति अपने किसी फायदे के लिए अच्छा बनने का नाटक कर रहा है। जब उसका फायदा खत्म हो जाएगा तो वह अपना दिखा सकता है। इस तरह के लोग कभी अच्छे नहीं हो सकते।

अच्छाई के पिरामिड के तीन हिस्से एक अच्छा व्यक्ति बनने में आपकी मदद करेंगे।

अब हम अच्छाई के पांच सिद्धांतों के बारे में जान गए है। लेकिन यह पाँच सिद्धांत काम किस तरह से करते हैं? क्या इन्हें चलाने के लिए कोई दूसरी चीज़ आती है या फिर ये

अपने आप ही काम किया करते हैं? यह पाँच सिद्धांत अकाई के पिरामिड से चलते हैं और इसी से इन्हें चलने की ताकत मिलती है।

अच्छाई के पिरामिड के तीन हिस्से हैं जिसका सबसे नीचे का हिस्सा है – सच्चाई। इस सबक में हम सच्चाई की बात करेंगे। सच्चाई का मतलब है विनम्र होना, खुद के बारे में जानना और सबसे साथ मिलकर काम करना।

सबसे पहले अगर आप वाकई एक सच्चे व्यक्ति हैं तो आपके अंदर विनम्रता अपने आप ही रहने आ जाएगी। इसकी मदद से आप लोगों का दिल जीत पाते हैं और उनसे ज्यादा समय तक अच्छे रिश्ते बना पाते हैं। जरा सोचिए कि आप किस तरह के व्यक्ति के साथ काम करना पसंद करेंगे. एक लीडर जो बदतमीजी से बात करता है या एक जो विनम्न है?

जाहिर सी बात है कि क्यों लोग उस लीडर के साथ ज्यादा काम करना पसंद करते हैं जो विनम्न है। जिम कोलिन्स ने अपनी किताब – गुड टु ग्रेट में बताया कि विनम्रता ही एक

लीडर की सबसे अच्छी पहचान होती है।

इसके बाद आता है खुद के बारे में जानना। जब आप खुद के बारे में जानते हैं तो आप खुद से हमेशा सच बोलते हैं। आपको पता होता है कि आप में क्या खुी या खराबी है या फिर आप कहाँ पर कमजोर पड़ रहे हैं। इस तरह से आप खुद की गलती मानने से पीछे नहीं हटेंगे क्योंकि उन्हें पता है कि वे असल में कौन है। अपने बारे में लिखने से, ध्यान करने से या फिर अपने बारे में दूसरों से राय लेने से आप यह पता कर सकते हैं कि आप असल में क्या हैं।

इसके बाद आता है ताल मेल बना कर रहना। इसका मतलब यह है कि आप अपनी बातों को और अपने काम को एक जैसा ही रखेंगे। इसका मतलब यह है कि आप अपने उसूलों से हटकर कोई काम नहीं करेंगे।ऐसा करने के लिए आप एक कागज पर अपने उसूलों को लिख लीजिए और हर दिन यह देखिए कि आप अपने उसूलों के हिसाब से काम कर रहे हैं या नहीं। हर हफ्ते के एक दिन बैठ कर यह देखिए कि आप ने वो कौन से काम किार जो भापके उसुलों से मिलते थे।

अच्छाई के पिरामिड के बीच का हिस्सा है सहानुभूति।

एक अच्छे व्यक्ति को यह पता होता है कि उसे कब सच बोलना है और कब नहीं। कभी कभी सच से वाकई तकलीफ होती है। इसलिए अच्छाई के पिरामिड का दूसरा हिस्सा

है सहानुभूति। इसमें आप खुद से बाहर निकलकर दूसरे व्यक्ति की भावनाओं को जानने की कोशिश करते हैं। आप यह देखते हैं कि उसे इस समय कैंसा लग रहा है और उसके हिसाब से यह तय करते हैं कि आपको क्या बोलना है। बिजनेस की दुनिया में सहानुभूति की तुलना कमजोरी से की जाती है। इंटरव्यू लेने के लिए हमेशा उस व्यक्ति को बैठाया जाता है जो सबसे कम हँसता हो। क्योंकि बिजनेस

में कभी कभी मुश्किल फैसले लेने होते हैं और जो व्यक्ति सबसे कम भावनाएं रखता होगा वही इस तरह के फैसले ले सकता है। लेकिन अगर आप चाहते हैं कि आप अपनी कंपनी के कल्चर को अच्छा बनाएँ तो आपके अंदर सहानुभूति होनी चाहिए। आप से प्रेरणा लेकर आपके कर्मचारी भी इस खूबी को अपने अंदर जगह दे पाएंगे। इससे लोग एक दूसरे को प्रेरित कर के अच्छे से काम कर पाएंगे। आइए इसके बारे में और जाने।

सहानुभूति के तीन हिस्से होते हैं। सबसे पहला हिस्सा होता है खुले होना- जिसका मतलब है नए आहडियाज़ को, विवारों को और बातों को अपने अदर आने देना। एक व्यक्ति जो खुला हुआ है, वो कभी यह नहीं सोचता है जो उसका मानना है वही सही है। वो दूसरों के विचारों की कद्र करता है। इसी खूबी को अपनाने के लिए आप 24×3 नियम का हस्तेमाल कर सकते हैं। इसका मतलब है जब भी कोई व्यक्ति आप से अपना विचार बाँटे तो उस पर अपन विचार देने से पहले कम से कम 24 सेकेंड, 24 मिनट या फिर 24 घंटे सोचिए। इसके बाद जब आप यह देख लें उस विचार के क्या फायदे हैं, तब अपना विचार दीजिए।

इसके बाद का हिस्सा होता है सहानुभूति – जिसका मतलब है लोगों की भावनाओं को समझना और उनकी कद्र करना। इसका मतलब है लोगों से उनके सेहत के बारे में पूछना कि वो कैसे हैं या फिर यहाँ काम कर के उन्हें कैसा लग रहा है।

अंत में आप अपने अंदर लोगों की मदद करने की भावना रखिए। आप उन्हें हमेशा कुछ देने की कोशिश कीजिए भले ही वे आपको बदले में कुछ ना दे पाएँ। एडम ग्रेंट ने अपने रोसर्च में पाया कि जो लोग सबसे ज्यादा कामयाब हैं वे दूसरों की मदद सबसे ज्यादा करते हैं। एज्ञाम्पल के लिए बिल गेट्स, वैरन बुफ्फे या मार्क जुकरबर्ग को ले लीजिए जो दुनिया के सबसे ज्यादा कामयाब लोग माने जाते हैं। यह सभी लोग अपनी इनकम का बहुत सारा हिस्सा चैरिटी को दे दिया करते हैं।

अच्छाई के पिरामिड के सबसे ऊपर का हिस्सा है अपने आप में पूरा होना।

पूरा होने का मतलब है प्यार, इज्जत और समझदारी से भरा होता। यह अच्छाई के पिरामिड का सबसे ऊपर का हिस्सा इसलिए है क्योंकि यहाँ तक पहुँच पाना बहुत ज्यादा मुश्किल है। दूसरे शब्दों में, यह एक कभी ना खत्म होने वाला सफर है। आइए इसके तीन हिस्सों के बारे में जानते हैं।

प्यार का मतलब है अपने काम से प्यार करना, अपने ब्रान्ड से प्यार अपने कर्मचारियों से प्यार करना और साथ ही साथ अपने ग्राहकों से प्यार करना। जब आप किसी चीज़ को प्यार करते हैं जो आप उसकी परवाह करते हैं। इसके अलावा आप जिससे भी प्यार करते हैं, आप उसे खुश रखने की कोशिश करते हैं। जब आप अपने ग्राहकों को दिल से खुश रखने की कोशिश करेंगे, तो समय के साथ आप बहुत ज्यादा कामयाब हो जाएंगे।

इसके बाद आपको खुद की और दूसरों की इज्जत करना सीखिए। बिना इज्जत किए आप किसी से प्यार कर ही नहीं सकते। जब आप अपने कर्मचारियों की और अपने ग्राहकों की इज्जत करेंगे तो वे आपके साथ ज्यादा समय तक रहना चाहेंगे।

इसके बाद पूरे होने का सबसे आखिरी हिस्सा है समझदारी, जिसका मतलब है अपने ज्ञान और अपने अनुभव का इस्तेमाल करते हुए फैसले लेना। इसका मतलब होता है उन चीजों पर ध्यान देना जो आप वाकई काबू कर सकते हैं ना कि उनके बारे में चिंता करना जो आपके हाथ में नहीं है। जो व्यक्ति समझदार है वो जिन्दगी के हर लम्हे को अलग तरह से देखने की खूल्यों रखता है और यही वो चीज़ है जो हमें पुरा करती है।

परेशानियाँ जिन्दगी का हिस्सा हैं, उन्हे सुलझाना सीखिए।

आप जब भी कुछ नया सीखने जाएंगे, आपको परेशानियों का सामना करना होगा। हमने अब तक अच्छाई के बारे में बहुत सी बातें जानी और यह भी देखा कि उन्हें अपनाने के

लिए आपके अंदर क्या क्या चीजें होनी चाहिए। लेकिन यह जरूरी नहीं है कि जब आप उन्हें लागू करने जाएगे तो वे तुरंत लागू हो जाएगे। इसमें भी बहुत सी परेशानियां आ सकती है। इन में से सबसे पहले आपको यह देखना होगा कि कौन सी चीज़ आपके साथ लम्बे समय तक रहने वाली है या फिर लम्चे समय तक आपको फायदा देते रहेगी। हम सभी को पता है कि दूर तक देखने वाले बहुत ज्यादा कामयाब होते हैं और हम यह भी जानते हैं कि ऐसा करने से हम भी कामयाब हो सकते हैं, लेकिन फिर भी हम वो फैसले

ज्यादा लेते हैं जिनमें हमें कम समय में फायदा मिलेगा। हम कम समय में कम फायदा पाने के बारे में सोचते रहते हैं जबकि हम ज्यादा समय में उसके मुकाबले बहुत ज्यादा

फायदा कमा सकते हैं।

अगर आप कुछ ऐसा बनाना चाहते हैं जो लम्बे समय तक के लिए रहता हो तो आपको दूर तक का सोवना होगा। भले ही उस चीज़ को हासिल करने के लिए अभी आपको नुकसान सहना हो या भी आपको उससे कुछ ना गिले, लेकिन आपको फिर भी उसे करना होगा।

इसके सबसे अच्छे एवज़ाम्पल रतन टाटा हैं। जब रतन टाटा ने जैगुमार कंपनी से डील की थी ते पूरा मीडिया कहने लगा कि उन्होंने अपनी जिन्दगी का सबसे खराब फैसला लिया है। यह डील उनके लिए बहुत नुकसानदायक साबित होगी। लेकिन रतन टाटा इटे रहे। आज जैगुभार टाटा कंपनी की सबसे बड़ी कैश काऊ कपनी मानी जाती है। रतन टाटा ने दूर की सोच रखी।

आप लोगों को उनकी असली कीमत दिखा कर उन्हें सुधार सकते हैं। उन्हें बताइए कि वे असल में यया करने के लिए पैदा हुए थे। साथ ही उनसे अपने बारे में फीडबेक लेते रहिए ताकि आप भी खुद को पहले से ज्यादा बेहतर बना सकें।

पहचानना, समस्या के अंदर तक जाना, अपने विचार बाँटना और फिर उसे लागू करना वो चार कदम हैं जिनसे आप अच्छे फैसले ले सकते हैं।

हमने देखा कि किस तरह से मुश्किलें हमारे रास्ते का काँटा बन सकती है। सवाल या उठता है कि किस तरह से हम इन मुश्किलों से लड़ सकते हैं? इसके लिए आप नीचे दिए गए चार स्टेप्स का इस्तेमाल कर सकते है।

सबसे पहला स्टेप है पहचानना। इसका मतलब होता है कि कोई काम करने से पहले उसमें आने वाली समस्याओं को पहचान कर ऐसा समाधान खोजने की कोशिश करना

जो असल जिन्दगी से मिलता हो। अक्सर हम कुछ इस तरह की प्लानिंग करते हैं जिसे असल जिन्दगी में उतार पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। हम यह सोचते हुए प्लान करते हैं कि हमारे रास्ते में कोई रुकावट नहीं आएगी। इसलिए सबसे पहले आपको समस्या को अच्छे से पहचानना होगा। इसके बाद होता है समस्या को अंदर तक जाना। इसका मतलब है कि आप हर उस नतीजे के बारे में सोचिए और उन नतीजों के हिसाब से अलग अलग प्लान बनाइए ताकि

अगर आपका सामना किसी भी तरह की मुश्किल से हो तो आप इसके लिए पहले से तैयार रहें।

एक्जाम्पल के लिए आप लेखक की कंपनी मिनीलक्स को ले लीजिए। जब यह कंपनी शुरु होने वाली थी तो लेखक और उनकी टीम ने मिलकर हर एक समस्या के बारे में गहराई से सोचा। उन्हें कंपनी लाँच करने की कोई जल्दी नहीं थी। हर एक पहले को परख लेने के बाद उन्होंने अपनी कपनी को लॉच किया जिसका नतीजा यह हुआ कि मिनीलयस पिछले 10 सालों से कामयाब कंपनी रही है।।

इसके बाद यह जरूरी है कि हम अपने विचारों को अपने साथियों के साथ बाँटे ताकि हम ज्यादा से ज्यादा समस्याओं को पहवान कर उनके समाधान के बारे में सोच सकें। इससे हम ज्यदा अच्छा प्लान बना सकते हैं और पहले से ज्यादा समस्याओं के लिए तैयार हो सकते हैं।

आखिर में आता है बनाए गए प्लान को लागू करना। यह वो काम है जो सबसे ज्यादा जरुरी और शायद सबसे ज्यादा मुश्किल है। इसके लिए आपको यह भरोसा होता चाहिए कि आपका लिया गया फैसला एकदम सही है और आप ऐसा इसलिए मानते हैं क्योंकि उसके पीछे एक वजह है। इस वजह को और अपने फैसले को एक नोटबुक पर लिख लीजिए ताकि समय समय पर उसे देखकर आपको याद आता रहे कि आपने यह फैसला क्यों लिया था।

अच्छाई की मदद से हम लोगों को प्रेरित कर उन्हें सही रास्ता दिखा सकते हैं।

एक लीडर की सबसे खास बात यह होती है कि उसे पता होता है किस तरह से लोगों को नियंत्रित कर उनसे काम करवाना है। एक लीडर यह जानता है कि किस तरह से वह अपने लोगों को सही रास्ते पर ला सकता है और वो यह जिम्मेदारी पूरी तरह से अपने ऊपर ले लेता है।

जब हम किसी को रास्ता दिखाने की जिम्मेदारी ले लेते हैं तो अच्छे लोगों का मंत्र ऐसा करने में हमारी मदद करता है। हम अच्छाई की मदद से ही लोगों की मदद कर सकते हैं। लोगों की मदद करने के लिए सबसे पहले आपको काबिलियत को छोड़कर, उसूलों और अच्छे स्वभाव पर ध्यान देना होगा। जब तक आप ऐसा नहीं करेंगे आप अपने लोगों से अच्छे संबंध नहीं बना पाएंगे। सीखने वाले और सिखाने वाले जब एक दूसरे से अच्छे से जुड़ जाते हैं तो वे एक दूसरे को अच्छे से समझ या समझा पाते हैं।

अगर आप लोगों को सिखाने का काम कर रहे हैं तो सबसे पहले आपको अच्छे से सुनना सीखना होगा। सुनना एक ऐसी कला है जिसके बगैर कोई भी व्यक्ति कामयाब नहीं हो

सकता। यहाँ पर सवाल यह उठता है कि जब माप लोगों को सिखाने का काम कर रहे हैं आपको बोलना सीखने की जरूरत होंगी। फिर हम यहाँ सुनने की बात क्यों कर रहे हैं?

सुनना इसलिए जरूरी है क्योंकि जब तक हम सामने वाले की समस्या को समझेंगे नहीं तब तक हम उसके हिसाब से उसका समाधान नहीं दे पाएंगे। एक बार जब आपको यह समझ में आ जाएगा कि वो किस तरह की समस्या से परेशान है तो आप उसे अच्छे से प्रेरित कर पाएंगे।

इसके बाद आप कोशिश कीजिए कि आप फेटिक कम्युनिकेशन ना करें। इसका मतलब होता है उन शब्दों का इस्तेमाल करना जो रोज की जिंदगी में हतना ज्यादा इस्तेमाल होते हैं कि उनका असली मतलब खो गया है। एकज़ाम्पल के लिए – और बताइए”, या फिर “अगर आप बुरा ना मानें तो।

इस तरह के शब्दों में सहानुभूति नहीं होती और हम इनके जवाब को अच्छे से सुनते भी नहीं है। इसकी जगह पर आप यह सवाल पूछ सकते हैं

आप क्या हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

-चो कौन सी चीज़ है जो उसे हासिल करने में आपकी मदद कर रही है?

-कोन सी चीज आपको रोक रही है।

  • आप खुद के अंदर कौन से जरूरी बदलाव करना चाहते हैं?

में आपकी मदद कैसे कर सकता हूँ?

इस तरह के सवालों से आप सामने वाले की जरूरत को पहचान कर उसका सही समाधान दे सकते हैं। साथ ही आप अच्छाई के पिरामिड और अच्छे लोगों के मंत्र को हमेशा अपने साथ रखिए क्योंकि इसकी मदद से आप खुद अच्छे व्यक्ति बनकर लोगों को अच्छा बता सकते हैं।

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