FREEDOM IN EXILE by Dalai Lama.

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About Book

एक टाइम था जब तिब्बत चाइना का सिर्फ एक फ्री इलाका नहीं था, और दलाई लामा सिर्फ एक स्प्रीचुअल लीडर ही नहीं बल्कि एक पोलिटिकल लीडर भी थे. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इतने शांत देश के अंदर खून खराबे होने शुरू हो गए, मार-काट होने लगी.? कैसे एक आदमी इस खून खराबे और वायोलेंस के बीच लोगो को बुदधा की टीचिंग सिखाने लगा जिसे लोग भूल चुके थे. फ्रीडम इन एक्ज़ाइल दलाई लामा की सिर्फ एक ऑटोबायोग्राफी नहीं है बल्कि ये सच्ची स्टोरी है तिब्बत के लोगो के सरवाईवाल की. जो हमे बताती है कि जब सारी उम्मीदे खो जाती है तो खुद को जिंदा कैसे रखा जाता है, कैसे अपने वैल्यूज को प्रोटेक्ट किया जाता है और कैसे हम दुनिया में अपनी मिसाल कायम कर सकते है…

ये बुक किस किसको पढनी चाहिए? हर वो इन्सान जो तिब्बत के सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा की लाइफ और तिब्बत के लोगो के स्ट्रगल से इंस्पायर्ड है, ये बुक उनके लिए है. दलाई लामा के लाखो चाहने वाले है जो उनकी इस बुक के ज़रिये उनकी जिंदगी के अनछुए पहलु को जान सकते है.

इस बुक के ऑथर कौन है?

ये बुक दलाई लामा की ऑटोबायोग्राफी है जो उन्होंने खुद लिखी है.

इंट्रोडक्शन (ntroduction)

एक टाइम था जब तिब्बत चाइना का सिर्फ एक फ्री इलाका नहीं था, और दलाई लामा सिर्फ एक स्प्रीचुअल लीडर ही नहीं बल्कि एक पोलिटिकल लीडर भी थे. तो फिर ऐसा क्या हुआ कि इतने शांत देश के अंदर खून खराबे होने शुरू हो गए, मार-काट होने लगी.? कैसे एक आदमी इस खून खराबे और वायोलेंस के बीच लोगो को बुदधा की टीचिंग सिखाने लगा जिसे लोग भूल चुके थे. फ्रीडम इन एक्ज़ाइल दलाई लामा की सिर्फ एक ऑटोबायोग्राफी नहीं बल्कि ये सच्ची स्टोरी है तिब्बत के लोगो के सरवाईवाल की. जो हमे बताती है कि जब सारी उम्मीदे खो जाती है तो आप खुद को कैसे जिंदा रखोगे? आप अपने वैल्यूज को कैसे प्रोटेक्ट करोगे और कैसे चाइना जैसे जाएंट का मुकाबला करोगे?

होल्डर ऑफ़ द व्हाईट लोटस (Holder of the White Lotus)

बहुत से लोग मुझे यानी दलाई लामा को लिविंग बुद्धा मानते है. और कुछ मुझे एक गॉड किंग समझते है लेकिन मै तो बस एक इंसान हूँ, तिब्बत का रहने वाला एक सिंपल आदमी जिसने एक बुद्धिस्ट मोंक की लाइफ चूज़ की. एक दलाई लामा होने के नाते मेरी कुछ रिसर्पोंसीबिलिटीज है जो मुझे हर हाल में निभानी पड़ती है, दलाई लामा का मतलब होता है “ओसीन ऑफ विजडम यानी” ज्ञान का समुंद्” और मैं तिब्बत का 14वाँ दलाई लामा हूँ. मैं अपनी ये स्टोरी दो मेन रीजन्स से लिख रहा हूँ. पहला तो ये कि ज्यादा से ज्यादा लोग दलाई लामा की लाइफ के बारे में जान सके, और दूसरा मै अपनी इस स्टोरी के जरिये हिस्ट्री की कुछ बातो पर लाईट डालना चाहता हूँ. मेरे पेरेंट्स सिम्पल फार्मर्स थे, लेकिन हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमारे पास एक छोटा सा जमीन का टुकड़ा था. मेरे फादर बड़े काइंड नेचर के थे लेकिन कभी-कभी वो शोर्ट टेम्पर हो जाते थे, क्योंकि जब भी मै जोर से उनकी मूछे खींचता तो वो मेरी पिटाई कर देते थे. लेकिन ऐसा में बचपन में करता था. मेरी मदर बड़ी सब्र वाली लेडी थी.

एक बार चाइना में भुखमरी फैली तो वहां के कुछ लोग खाने की तलाश में बॉर्डर क्रोस करके तिब्बत में पुस गए थे. एक कपल ने हमारा दरवाजा नॉक किया. उन्होंने मेरी मदर से खाने के लिए मांगा. मेरी मदर ने उन्हें ना सिर्फ भरपेट खाना खिलाया बल्कि साथ ले जाने के लिए कुछ एक्स्ट्रा खाना भी दिया. हन 7 भाई-बहन है, मेरे दो और भाई भी मेरी तरह माक है और दोनों मेरे सबसे ज्यादा क्लोज भी है. पहले तिब्बत के लोग बहुत एग्रेसिव और लड़ाकू हुआ करते थे लेकिन बुद्ध की टीचिेंग ने उन्हें पूरी तरह बदल दिया है, तिब्बत के लोगों की वॉर पॉवर उनकी स्टेंग्ध ऑफ़ स्पिरिट में बदल है. आज

नरकी है आज की डेट में बुद्धिज्म तिब्बतियन सोसाइटी का एक वाइटल पार्ट बन चूका है. तिब्बत में ऐसा माना जाता है कि हर नया दलाई लामा अपने से पहले वाले दलाई लामाओं का दूसरा जन्म है. और वो भगवान बुद्ध का ही दूसरा रूप है। जिनके हाथ में व्हाईट लोटस है. मुझे जब 13वा दलाई लामा बनाया गया तो मैं सिर्फ 3 साल का था. दलाई लामा के रीकारनेशन को हूढने के लिए एक सर्च पार्टी भेजी जाती है, एक दिन सीनियर लामा को एक सपना आया कि वो पवित्र लेक को देख रहे थे कि अचानक हवा में तीन शब्द उभरे. ये वईस थे, आह, का और मा. उसके बाद सीनियर लामा ने पहाड़ी पर एक छोटा सा धर भी देखा. उस ड्रीम के बेस पर तिब्बत के नार्थ ईस्ट पार्ट में एक सच्च पार्टी

भेजी गयी. सर्च पार्टी अमदो प्रोविंस {Amdo province} पहुंची. फिर वो लोग कुम्बुम मोनेस्ट्री गए. वहां से उन्हें पहाड़ी पर बना वही घर नज़र आया जो सीनियर लामा को सपने में दिखा था. सर्च पार्टी ने उस घर में जाकर घर के मालिक से वहां रात गुज़ारने की परमिशन मांगी. उन्होंने अज्यूम किया कि आ से आमदो हो सकता है और का का मतलब होगा कुम्बुम और मा का मतलब सेरा लामा.

सर्च पार्टी के लीडर ने एक सर्वेट होने का नाटक किया. लेकिन घर के सबसे छोटे 3 साल के बेटे ने उसे पहचान लिया” सेरा लामा, सेरा लामा, छोटा लड़का चिल्लाया, सर्च पार्टी का लीडर एक्चुअल में सेरा मोनेस्ट्री का सीनियर मोंक क्यूसेंग रिनरपोंचे (Kewtsang Rinpoche था. उसके बाद सर्च पार्टी ने उस बच्चे बहुत सी चीज़े गिफ्ट की. जिनमे से कुछ 13चे दलाई लामा की थी. हैरत की बात थी कि उस छोटे से बच्चे ने दलाई लामा की सारी चीज़े उठा ली और कहा” ये मेरी है, ये मेरी है. और उसी मोमेंट से मेरी लाइफ चेंज हो गयी.

द लायन थ्रोन ( The Lion Throne)

जब मुझे अपने पेरेंट्स से दूर जाना पड़ा तो मै बड़ा दुखी था. लेकिन वो लोग बीच-बीच में मुझसे मिलने आ सकते थे. मोंक्स मुझे पोटाला पैलेस लेकर गए. मुझे तिब्बत का स्प्रिचुअल लीडर अनाउंस करने के लिए एक सेरेमनी रखी गयी. मै छोटा सा बच्चा था फिर भी मुझे लायन श्रोन में बैठाया गया था. ये श्रोन बड़ा सुंदर था जिसमे खूबसूरत नक्काशी की गयी थी और इसमें खूब सारे जवाहरात जड़े हुए थे. सेरेमनी के बाद एक मोंक की तरह मेरी ट्रेनिंग शुरू हो गयी. मैं एक खास मॉक था. रिनरपंचे और स्प्रिचुअल मास्टर्स मेरा ध्यान रखते थे. वहाँ पर रेतिंग रिनपोंचे भी घे जो रेजेंट या टेम्परेरी पोलिटिकल लीडर थे, और वही मेरे सीनियर ट्यूटर भी थे. वहां तथाग रिनर्पोंचे भी थे जो मेरे जूनियर ट्यूटर थे. ये लोग मेरे साथ बड़े ही काइंड और वार्म वे में बिहेव करते थे. अक्सर हमारे टीचिंग लेसंस खत्म होने के बाद तथाग रिनपोंचे मुझे स्टोरीज़ और चुटकुले सुनाया करते थे .सर्च पार्टी के लीडर थे केवसांग रिनर्पोचे (KevwtsangRinponche, ), वो मेरे धर्ड टूटर थे, क्योंकि वो भी आमदो से थे तो मैं उनके ज्यादा क्लोज फील करता था. कभी-कभी जब केवसाग रिनर्पोचे (Keswtsang Rinpoche ) मुझे कितबा से कुछ पदकर सुनाने के लिए बोलते थे तो मै उनकी गर्दन में झूलकर हंसने लगता था.” तुम पढो, तुम पढो मैं मस्ती में उनसे बोलता था. 8 साल का होने तक मेरे ब्रदर लोबसान सामतेन और मेरी पढ़ाई एक साथ हुई थी, उसे भी मौक बनने की ट्रेनिंग दी जा रही थी. हमारी मोनेस्ट्री में एक जगह थी जो स्कूलरूम की तरह यूज़ होती है.

वहां के स्वीपर्स हमारे फ्रेंड्स और प्लेमेट थे. मै सुबह छेह बजे उठता था और अपना रोजना के कपड़े पहनता था. सुबह उठके मेरा सबसे पहला काम था प्रेयर और मेडीटेशन करना. 7 बजे मुझे ब्रेकफास्ट में चाय के साथ तिब्बतेन स्टेपल फूड सम्पा (tsampa) सर्व किया जाता था. फिर उसके बाद मैं अपने लेसंस करता था. पहले रीडिंग राइटिंग की और फिर लेसंस मेमोराइज़ करना, 10 बजे मुझे गवर्नमेंट मीटिंग अटेंड करनी होती थी जिसमे मेरे साथ रिजेंट और काशेगओर हाई काउंसिल के चार आदमी रहते थे. दोपहर में लंच की बेल बजती, लंच खत्म करने के बाद मुझे कुछ देर खेलने की परमिशन थी.

मेरे पास बहुत सारे टॉयज जिनसे खेलता था. ये सारे टॉयज उन फॉरेन डेलिगेट्स ने मुझे गिफ्ट किये थे जो मुझसे मिलने आया करते थे. ब्रिटिश डेलिगेट्स ने मुझे कई सारे कन्स्ट्रक्शन सेट्स दिए थे. और अमेरिकन्स डेलिगेट ने मुझे दो खूबसूरत सिंगिंग बर्ड्स प्रजेंट की थी. मुझे 5 मेजर सब्जेक्ट्स पढाए जाते थे, मेडीसीन, संस्कृत, तिब्बतेन कल्चर और आर्ट्स, इसके अलावा मुझे म्यूजिक, पोएट्री, ड्रामा और एस्ट्रोलोजी भी सिखाई गयी, सबसे इम्पोर्ट चीज़ मुझे जो सिखने को मिली वो थी डिबेट और पब्लिक स्पीकिंग,

शाम के 4 बजे टी ब्रेक होता था, वर्ल्ड में ब्रिटिश लोगों के बाद अगर कोई सबसे ज्यादा चाय पीते है तो दो है हम लि्बती लोग, 5 बजे जैसे ही मेरे लेसंस खत्म होते, मै भागकर छत पर जाता और अपने टेलीस्कोप से पूरे शहर को एक्सप्लोर करता था. 7 बजे मेरा डिनर टाइम था. खाने में अवसर वेजीटेबल सूप, योगर्ट, ग्रेड और चाय होती था. मैं अपने तीन मोंक अटेंडेंटस के साथ खाना खाता था. कभी-कभी स्वीपर्स भी हामें ज्वाइन करते. सोने से पहले मैं कोर्टयार्ड में जाकर स्क्रिप्टचर पढ़ता और प्रेयर करता था. मेरा कई सालो तक यही हैप्पी और कोम्फर्टबल रूटीन रहा. मेरे ट्यूटर्स, मेरे अटेंडेंटस और मेरे स्वीपर्स सबने मुझे खूब प्यार दिया, उनकी देख-रेख ने मुझे एक शरारती बच्चे से एक रिस्पोरंसीबल टीनएजर बनाया था, तब तक तिब्बत एक सेफ और पीसफुल एरिया था. और फिर 1950 की ट्रेजडी हुई.

इन्वेजन: द स्ट्रोम ब्रेक्स (Invasion: The Storm Breaks) धरती चूमती है, ज़मीन में हलचल होती है, भूचाल आते है. एक के बाद एक. ये समर फेस्टिवल के टाइम की बात थी, एक मेसेंजर भागता हुआ मेरे पास

आया. रीजेंट ने लैटर रिसीव किया. तब तक मेरी कोई पोलिटिकल पॉवर नहीं थी. लेकिन मुझे लग रहा था कि कुछ गलत हो रहा है. लैटर पढ़ने के बाद

रीजेंट तुरंत बाहर चला गया था, उसने कशाग से तुरंत सबको इकठ्ठा होने को बोला, ये टेलीग्राम हमे खाम के गवर्नर ने भेजा था. उसने इन्फोर्मेशन भेजी थी कि तिब्बतेन पोस्ट पर पर कुछ चाइनीज़ सोल्जेर्स ने अटैक कर दिया है. खाम तिब्बत के नार्थ ईस्ट बॉर्डर का इलाका है.

चाइनीज़ सोल्जेर्स ने ।

अनाउंस किया कि वो तिब्बत

त को इम्पीरियलिस्ट फोर्सेज” से आजाद कराने आये है. तिब्बत अब सिरियस डेंजर में था. हमारे पास

सिर्फ 8,500 लोगो की आर्मी थी. अगर लड़ाई छिड़ी तो हम लिबरेशन आर्मी का मुकाबला नहीं कर सकते थे जिन्होंने अभी-अभी चाइना में कम्यूनिस्ट

पार्टी की सरकार बनाई थी. दो महीने बाद 80,000 फपीएलए सोल्जेर्स ने बॉर्डर क्रोस किया. चाइनीज़ रेडियो स्टेशन से खबरे आ रही थी कि कम्यूनिस्ट

पार्टी “तिब्बत का पीसफुल लिब्रेशन” आ रही है. और उनकी आर्मी हमारे कैपिटल ल्हासा की तरफ बढ़ रही है, हम चाइना के साथ वीपन्स की लड़ाई के बारे में सोच भी नहीं सकते थे. रीजेंट और कशाग में अपने पूरे एफोर्ट्स के साथ मामले को डिप्लोमेसी से हैंडल गवर्नमेंट ने चाइना से करने की कोशिश की. ब्रिटिश और इंडियन गवर्नमेंट ने चाइना अपील की. क्योंकि उन्हें भी यही लगता था कि ज़बर्दस्ती की पुसपैठ से शान्ति कायम नहीं रखी जा सकती, तिब्बतेन गवर्नमेंट ने बातचीत वही पर रुक गयी थी. सिचुएशन डी नेशनल से भी अपील की लेकिन तिब्बत हमेशा से ही पीसफुली सबसे अलग-धलग रहा था इसलिए ये

बद से बदतर होती जा रही थी, कुछ लोग ऐसे थे जो चाहते थे कि मुझे अभी से पोलिटिकल लीडरशिप दे दी जाए. उन्हें लगता था कि दलाई लामा को इस ग्रेट क्राईसिस के टाइम पर कुछ करना चाहिए. अभी कस्टम के हिसाब से मेरे दलाई लामा बनने में दो साल बाकि थे. इन्फेक्ट कुछ और लोग भी थे जिन्हें लगता था कि मै अभी रेडी नहीं हूं. हालाँकि ओरेकल ने डिक्लेयर कर दिया था कि मेरा टाइम अब आ चूका है. इसलिए मेरे सीनियर ट्यूटर रीजेंट की पोस्ट से उतर गए, बड़े सोच-विचार के बाद मेरी ताजपोशी की डेट फिक्स कर दी गयी,

17 नवंबर, 1950, इस दिन में एक केयरफ्री यंग एडल्ट से एक ऐसी कंट्री का लीडर बनने जा रहा था जो लड़ाई की कगार पर खड़ा था, सेम मंथ में

एक अबोट बड़ी सेड न्यूज़ लेकर पेलेस में पहुंचा. वो परेशान लग रहा था और बड़े टेशन में था, ऐसा लग रहा था कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है.

वो अब्बोट(abbot ) एक्चुअल में मेरा सबसे बड़ा ब्रदर तक्तसर रिनपोचे (Taktser Rinpoche) था. वो कुम्बुम मोनेस्ट्री का अब्बोट बन गया था. उसने बताया कि बॉर्डर के पास के हमारे इलाके आमदों अब चाइनीज़ कम्यूनिस्ट आर्मी के कण्ट्रोल में है. तक्त्सर रिनपोछे (Taktser Rinpoche) को उनकी अपनी ही मोनेस्ट्री में नज़रबंद कर दिया गया था, चाइनीज़ उन्हें कम्यूनिज्म सीखने के लिए फोर्स कर रहे थे. उन्होंने उनसे कहा कि अगर उन्हें अपनी फ्रीडम चाहिए तो वो ल्हासा आकर मुझे कन्विंस करे कि तिब्बत को चाइना के आगे सरेंडर कर देना चाहिए. और उन्होंने उन्हें ये भी कहा कि अगर मै ना मानू तो वो मेरा मर्डर कर दे. मेरे बड़े भाई ने बताया कि कैसे चाइना वालों ने मेरे होम प्रोविंस को बर्बाद कर दिया था. मेरे भाई ने उनकी बातो में आने का बहाना बनाया ताकि वो ल्हासा आकर मुझे वार्न कर

सके. ताकस्तेर रिनपोची ने मेरे सीनियर ओफिशिय्ल्स को कन्विस किया कि वो मुझे किसी भी हालत में कम्यूनिस्ट के हाथ ना लगने दे.

रिफ्यूजी इन साऊथ (Refuge in the South)

सारी चीज़े सीक्रेट रखी गयी, अगर लोगो को पता चलता कि दलाई लामा कैपिटल छोडकर जा रहे है तो वो पेनिक हो सकते थे. वो बहुत खूबसूरत शाम थी जब हम पैलेस से निकले. अँधेरे आसमान में तारे चमक रहे थे. हमारा एंटोरेज (entourage) द्रोमो (Dromo) की तरफ जा रहा था जो वहां से 200 मील दूर था. 1. रास्ते में मुझे कई सारे कॉमन लोग मिले, मैंने अपनी असलियत छुपाते हुए सबसे बात की. मैंने उनकी स्ट्रगल की कहानियाँ सुनी. और खुद से प्रोमिस किया कि एक दिन मै लौटकर आऊंगा और इन लोगो की हेल्प करूँगा.

हम दो हफ्ते तक चलते रहे. द्रोमो (Dromo) आकर मै एक छोटी सी मोनेस्ट्री में रहने लगा और एक बार फिर अपनी प्रेयर और स्टडी वाली रूटीन लाइफ जीने लगा. मुझे अपने लोगो की हेल्प करनी थी इसलिए मै अब खुद को और भी ज्यादा ट्रेन करना चाहता था. मैंने अपने रिलाएबल डेलीगेट्स को चाइना भेजा ये मैसेज देने के लिए कि तिब्बत को लिब्रेशन नहीं चाहिए और दोनों कंट्रीज एक पीसफुल रिलेशन में जैसे पहले थी वैसे ही रहे. मै हर रेडियो पेकिंग सुना करता जिसमें हर चाइनीज के लिए इंडस्ट्रीयल प्रोग्रेस और इक्वल राइट्स की अनाउंसमेंटहोती थी. और जब मैंने “सेवनटीन न पॉइंट एग्रीमेंट फॉर द पीसफुल लिब्रेशन ऑफ़ तिब्बत की न्यूज़ सुनी तो मै शोक्ड रह गया. मैंने तुरंत अपने सारे काउंसलर्स को बुलाया. हम सारे एक-एक वर्ड बड़े ध्यान से सुन रहे थे, स्पीकर बोल रहा था कि 100 सालों से तिब्बत इम्पीरियलिस्ट के अटैक सह रहे है इसलिए अब उन्हें अपनी फ्रीडम के लिए चाइना की हेल्प चाहिए. सेवनटीन पॉइंट एग्रीमेंट का क्लाज़ वन था कि तिब्बत की लोकेलिटी अब मदरलैंड को वापस मिलनी चाहिए. क्लाज़ दू में कहा गया कि तिब्बत की लोकल गवर्नमेंट को पीएलए का वेलकम करना चाहिए. ताकि आर्मी तिब्बत के नेशल डिफेन्स को स्ट्रोंग कर सके, डेवलपमेंट्स की खबर रख रहा था. हर रात में लेकिन सच तो ये था कि हम तिब्बतियों का चाइना के साथ कभी कोई एथनिक या रेशियल रूट नहीं रहा. हम लोगो के बोलने और राइटिंग की लेंग्वेज रहा, हम चाइनीज़ लेंग्वेज से काफी डिफरेंट है. हमारा अपना कल्चर है, अपनी टेरेटरी है और अपना गवर्नमेंट सिस्टम है, सेवनटीन पॉइंट एग्रीमेंट में सब कुछ झूठ था, इसमें ये भी बोला गया था कि सारा तिब्बत अब चाइना के कण्ट्रोल में है. और तिब्ब्तेन सरकार और यहाँ की जनता की जिम्मेदारी अब चाइनीज़ गवर्नमेंट की होगी जिसे वो लोग ग्लोरियस मदरलैंड बुला रहे थे. खैर एक बात तो साफ़ थी कि मेरे डेलिगेट्स से जबर्दस्ती एग्रीमेंट पर साइन लिए गए थे. फिर कुछ दिनों में ही चाइना का गवर्नर जेर्नल अपनी आर्मी लेकर आया, मैं वापस ल्हासा आ गया था, और अपने लोगो के भले के लिए मुझसे जो बन पड़ा मेंने किया.

इन कम्यूनिस्ट चाइना (In Communist China)

मुझे साऊथ में एक रिफ्यूजी की तरह रहते हुए आज चार साल हो गए है. अब मै उन्नीस साल का नौजवान हूँ, कम्यूनिस्ट ने मुझे बोला कि मैं अपने कुछ ओफिशियल्स को चाइना भेजू ताकि तिब्बतियों को पता चल सके कि उनकी ग्लोरियस मदरलैंड में क्या-क्या है. कुछ मंथ्स बाद ही ओफिशिय्ल्स तिब्बत लौटे, उन्होंने मुझे एक रिपोर्ट पेश की जिसमे चाइना की बड़ी तारीफ की गयी थी. साफ ज़ाहिर था कि उन्हें डरा धमका ये सब लिखवाया गया था. मुझे भी वार्न किया गया कि चाइनीज़ ओफ्शिय्ल्स के साथ रहते टाइम में अलर्ट मै भी उन लोगों के साथ रहते हुए अपनी रियल फीलिंग्स छुपाना सीख गया था. 1954 में मुझे चाइना आने के लिए पर्सनली इनवाईट किया गया. तिब्बत के लोगों को डर था कि अगर में चाइना गया तो शायद वापस ना लौट पाऊं लेकिन मेंने सोचा कि चेयरमेन माओ से फेस टू फेस बात करने का यही मौका है. चाइनीज़ कम्यूनिस्ट बहुत जिद्दी होते हैं, कांफ्रेंस में मुझे और मेरे हाई ओफिशियल्स को हमेशा रैंक के हिसाब से प्रेजेंट होना पड़ता था. हमें बोला जाता था कि हमें क्या करना है जैसे कि कितने स्टेप्स लेने है और हम में कितने लोगो को लेफ्ट या राईट टर्न करना होगा.

वैसे नै कम्यूनिजम को इस बात के लिए एप्रीशिएट करता हूँ कि उनका गोल सब लोगो को एक जैसी इक्व्लेटी और जस्टिस प्रोवाइड करना है. लेकिन

अपना गोल अचीव करने का उनका जो मेथड है, मै उसे गलत समझता हूँ. लेकिन मैंने ये बात कभी एक्सप्रेस नहीं की, मैने खुद को कम्यूनिस्ट पार्टी का एक मेंबर बना लिया था, मुझे स्टीयरिंग कमेटी का वाईस प्रेजिडेंट बना दिया गया. हमारी फस्स्ट असेम्बली पर चेयरमेन माओ ने एक स्पीच दी. स्पीच खत्म होने के बाद हमें और ऑडियंस को अपना ओपिनियन देने को बोला. उसने कहा कि जो भी हमारे कंसन््स है, हम खुलकर एक्सप्रेस करे. मगर दो-चार मीटिंग्स के बाद ही पता चल गया कि ये सब एक ड्रामा है.

ये लोग किसी की बात नहीं सुनते. यहाँ के ओफिशियल्स भी खुलकर अपनी बात नहीं कह सकते है फिर आग्यूमेंट और सजेशन्स का तो सवाल ही नहीं

उठता, चेयरमेन माओ बड़ी डायनेमिक पर्सनेलिटी के थे, उनको ब्रीथिंग की प्रोब्लम थी इसलिए बोलते टाइम उनकी स्लो हो जाती थी. वो शोर्ट सेंटेंस बोलते थे लेकिन हमेशा पॉइंट की बात करते. चेयरमेन माओं के साथ अपनी फर्स्ट प्राइवेट मीटिंग में उन्होंने मुझे कहा कि हमे सेवेंटीन पॉईंट एग्रीमेंट के सारे पॉइंट एक साथ इम्प्लीमेंट करने की ज़रूरत नहीं है. एक कमिटी रखी जायेगी जो इन रिफ्रोम्स को देखेगी. उन्होंने कहा कि तिब्बत एक” ऑटोनोमोउस रीजन” है और हमारे लिए यही बेस्ट होगा कि क्योकि तिब्बत वॉर सर्वाइव नहीं कर पायेगा. कम से कम हमे डिप्लोमेटिक तरीके से अपनी इंडिपेंडेंस की लड़ाई लड़ने की उम्मीद तो थी. दूसरी मीटिंग में चेयरमेन ने कहा कि पूरा चाइना तिब्बत की हेल्प करना

चाहता है. उन्होंने कहा तिब्बत तो एक ग्रेट कंट्री है, बहुत साल पहले आप लोगो ने चाइना के भी कुछ हिस्से जीते थे लेकिन अब आप लोग दुनिया से

पीछे रह गए है और चाइना आपकी हेल्प करना चाहता है

जाने से पहले मै एक लास्ट टाइम उनसे मिला. चेयरमैन माओ ने मुझे गवर्नमेंट चलाने के बारे में कुछ एडवाइस और टिप्स दिए. उन्होंने कम्यूनिकेशन की इम्पोटेंस के बारे में बताया. उन्होंने मुझसे मीटिंग्स ओर्गेनाइज करने और मेजर इश्यूज डिसाइड करने के बारे में भी काफी कुछ शेयर किया. और फिर चेयरमेन माओ मेरे पास आये और बोले, “आपका एटीट्यूड अपनी जगह सही है लेकिन रिलिजन एक जहर की तरह होता है. पहले थे पोपुलेशन कम करता है, नन्स और मैक्स के जरिए जो शादी नहीं करते और फिर ये इंसान की मटिरियल प्रोग्रेस को रोक देता है और में जानता था कि चेयरमेन माओ धर्म के सबसे बड़े दुश्मन है.

मिस्टर नेहरु रिग्रेटस (Mr Nehru Regrets)

मिस्टर नेहरु का सबसे बड़ा रिग्रेट यही रहा कि इण्डिया तिब्बत की हेल्प नहीं कर पाया. उन्होए सीनों इंडियन ट्रीटी साइन की थी कि इंडिया और चाइना एक दुसरे के मामलों में दखल नहीं देंगे. फाइनली मैं समझ गया कि मिस्टर नेहरु को बस अपने देश के लोगों की फ़िक है, सबसे ज्यादा नुक्सान आमदो और खाम प्रोविंस को हुआ था. ये दोनों इलाके बॉर्डर के बेहद करीब थे इसलिए यहाँ पर कम्यूनिस्ट का स्ट्रोंग कण्ट्रोल था. जो भी इनके खिलाफ सर हो रहा उसे कुचल दिया जाता था, मेरे लोगो पर हद से ज्यादा जुल्म ह उठाता हा था.

उनके साथ जो कुछ हो रहा था उसके बारे में सोच कर ही रूह काँप जाती है. यकीन नहीं होता कि कोई इन्सान दुसरे इंसान के साथ ऐसा बर्ताव भी कर सकता है. कम्युनिस्ट किसी को नही छोड़ते थे उनके लिए नन्स, मोंव्स, औरते बच्चे सब बराबर थे. कोई उनके खिलाफ कुछ नहीं बोल सकता था. लोग चाइना के अगैस्ट बोलने में डरते थे. चेयरमैन माओ ने ल्हासा में जो कमिटी बनाने का प्रोमिस किया था उसका नाम था पीसीएआरटी या प्रीपेरिटी कमिटी फॉर द ऑटोनोमोउस रीजन ऑफ़ तिब्बत”. और इसमें 5। डेलिगेट्स रखे जाने की बात थी जिसमें से सिर्फ 5 चाइनीज़ होंगे, देखने में ये एक ग्रेट हालाँकि तिब्बत डेलिगेट्स की पॉवर वही थी तक कि वो कम्यूनिस्ट पार्टी की बात मानते रहे. इसी बीच आमदो और खाम रीजंस में कम्यूनिस्ट इनिशिएट था

पार्टी के खिलाफ फ्रीडम फाइटर्स इकठ्ठा होने लगे थे. कम्यूनिस्ट पार्टी ने 40,000 एक्स्ट्रा सोल्जेर्स भेजकर लोगो को बुरी तरह कुचल डाला था.

मैंने डिमांड रखी कि मुझे पीएलए के जेर्नल चियांग से बात करनी है. मैंने उनसे कहा” अगर चाइना इस तरह से बिहेच करेगा तो तिब्बत कैसे टरस्ट कर सकता है? जेर्नल चियांग को गुस्सा आ गया, उसने कहा कि मैं उनकी ग्लोरियस मदरलैंड की इन्सल्ट कर रहा हूँ, चाइना तो सिर्फ तिब्बत की हेल्प करना चाहता है और जो लोग इस रीफॉर्म में को-ऑपरेट नहीं करेंगे उन्हें पनिशमेंट मिलेगी. मैंने आर्ग्युमेंट किया कि आप इस वजह से इनोसेंट लोगो का टार्चर नहीं कर सकते. लेकिन मेरी बातो से जैर्नल कोई कोई फर्क नहीं पड़ा. उसी टाइम मै समझ गया कि जेर्नल चियांग की बात का कोई लॉजिक ही नहीं था और चेयरमेन माओ की हर बात झूठी थी, दोनों कार्ल मार्क्स के फोलोवर होने का दावा करते थे लेकिन सिर्फ दिखावे के लिए. मावर्स ने सबके लिए एक बेहतर दुनिया का सपना देखा था लेकिन इन चाइनीज कम्यूनिस्ट की सोच बड़ी छोटी है इन्हें सिर्फ अपनी बात मनवानी आती थी, इन्हें तिब्बत और उसके लोगों से कोई हमदर्दी नहीं थी,

एस्केप इनटू एक्जाइल (Escape Into Exile)

गोम्पो ताशी नाम का एक फार्मर फ्रीडम फाइटर्स का लीडर था. चाइनीज़ आर्मी के जुल्मो से तंग आकर आमदो और खाम के ज्यादा से ज्यादा लोग फ्रीडम फाइटर्स को ज्वाइन कर रहे थे. चाइनीज़ आर्मी ने कई टाउन्स और विलेजेस पर एयर बोम्ब ड्राप किये थे, जो भी नारा लगाता लॉन्ग लिव द दलाई लामा” उसकी जुबान काट ली जाती. अब ये लड़ाई सेंट्रल तिब्बत तक पहुँच गयी थी. इस लड़ाई में हज़ारो लोग शामिल थे. मै नहीं चाहता था कि वॉर ल्हासा तक पहुंचे. पूरे देश में खून-खराबा हो ये मै बिलकुल नहीं चाहता था.

मैं नहीं चाहता था कि चाइना हम पर पूरी फ़ोर्स से अटैक कर दे. मैंने ए एक लामा को फ्रीडम फाइटर्स के पास ये मैसेज देने के लिए भेजा कि वो लोग लड़ाई रोक दे लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी, सिचुएशन अब आउट ऑफ़ कप्ट्रोल हो गयी थी. हालात बद से बदतर होते जा रहे थे, मै खुद को बड़ा पॉवरलेस फील कर रहा था. मैं मजबूर था, मै डायरेक्टली कम्यूनिस्ट के अगेंस्ट कुछ नहीं कर सकता था. इससे बात और भी बिगड़ सकती थी. मुझे बेस्ट सोल्यूशन यही लगा कि में अपना फाइनल मोनेस्टिक एक्जाम पास करके डॉक्टर ऑफ़ बुद्धिस्ट स्टडीज़ बन जाऊं, शायद तब मै अपने लोगो की बैटर तरीके से सकूँ, फिर वो टाइम भी आया जब ये लड़ाई त्सेथंग (Tsethang) तक पहुँच गयी जहाँ से लहासा हेल्प कर सिर्फ दो दिन दूर धा. पीएलए का जेल तेन मेरे पास आया. उसने ने डिमांड रखी कि मै तिब्बतेन आर्मी को कमांड दूँ कि वो रेबेल्स को कण्ट्रोल करे, उसने ये भी कहा कि ये मेरी ड्यूटी है इसलिए मुझे ये करना ही होगा. मैंने जवाब दिया कि अगर मै ऐसा आर्डर देता हूँ तो तिब्बतेन सोल्जेर्स भी फ्रीडम फाइटर्स के साथ मिल जायेंगे. जेर्नल तेन को मेरी बात से गुस्सा आ गया. उसने कहा 1 कि मै अपने एक्स ऑफिशियल को रिबेलियन ज्वाइन करने के लिए पनिश करू जिसमे मेरा बड़ा भाई भी शामिल था. जेर्नल तेन की डिमांड थी कि मै उन लोगो की सिटीजनशिप छीन लूँ. उस वक्त मेरा बड़ा भाई इंडिया में था. और मेरे बाकी एक्स ओफिशिय्ल्स भी तिब्बत से बाहर थे. मुझे जेर्नल तेन की बात मानने का यही सही मौका लगा, इस तरह से मेरे भाई और बाकी लोग सेफ रहेंगे.

और सबसे इम्पोर्टेंट बात तो ये कि मै किसी भी कंडिशन में चाइनीज़ आर्मी को प्रोवोक नहीं करना चाहता था. मेरे कुछ काउंसलर्स ने मुझे सजेस्ट किया कि साऊथ जाकर वहां से तिब्बत पर अपनी टू अथॉरिटी डिक्लेयर कर दूँ, लेकिन ये भी एक बेवकूफी होती. इसके बजाये मैंने अपनी स्टडीज पर फोकस किया. मै हर में पास होना चाहता था क्योंकि में जानता था कि मेरे देश के 6 मिलियन लोग सिर्फ मेरे भरोसे है. मेरे फाइनल टेस्ट में मुझे एक डिबेट करना था जिसमे पूरा दिन लग में लेकिन फाइनली मुझे “गेशा” यानी डॉक्टर ऑफ़ बुद्धिस्ट स्टडीज का टाइटल मिल गया थक गया था था. मैं नोरबूलिंग्का पैलेस लौट भाया. खुशी के इन लास्ट मोमेंट्स को मैंने ल्हासा में अपने लोगों के साथ शेयर किया.

कलरफुल रेगालिया पहने हुए मेरे बॉडीगाईस ने मेरी पालकी उनके पीछे काशाग के चार आदमी खड़े थे. ल्हासा के बड़े-बड़े लोग भी वहा आये हुए थे. सबने सिल्क की ड्रेस पहनी हुई थी जो तिब्बत में खास मौको पर पहनी जाती है. उनके बाद रिस्पेक्टेड लामाज और कट्री के अब्बोट्स आये. और मेरे हजारो प्यारे देशवासी भी वहां मौजूद थे. चाइना से एक आर्टिस्ट का एक गुप आया हुआ था. ने मुझे मिलिट्री हेडक्वार्टर्स में एक थिएट्रीकल शो देखने के लिए इनवाईट किया तो मैंने हाँ कर दी लेकिन उन्होंने रिक्वेस्ट किया कि मेरे साथ कम्युनिस्ट कोई तिब्बती सोल्जर ना आये. हाँ मेरे कुछ अनआर्म्ड बॉडीगार्ड मेरे साथ आ सकते थे. फाइनली वो ये भी चाहते थे कि मेरे अटेंडेंस को इस बारे में कुछ पता ना चले, ये बात थोड़ी अजीब लग रही थी. ट्रेफिक रिसट्रिक्शंन लगाई गयी थी तो लोगो को भी कुछ शक हो रहा था. जल्दी ही खबर फ़ैल गयी. परफोर्मेस वाले दिन मुझे पैलेस से शाउटिंग की आवाजे सुनाई दी, मैंने देखा हज़ारो तिब्बतीयों ने बिल्डिंग को घेरा हुआ था. वे लोग मुझे चाइनीज लोगो में बचाने आये थे, ये लोग चाइना को तिब्बत छोड़ देने के नारे लगा रहे थे,

दिया कि में नहीं मैंने कम्यूनिस्ट तक मैसेज पहुंचा दिया सकता. मुझे लगा कि थोड़ी देर में भीड़ छंट जाएगी और सब कुछ नार्मल हो जायेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. लोग वहां से हटने का नाम नहीं ले रहे थे, मैंने अपने ओफिशिय्ल्स को भीड़ के पास ये बताने भेजा कि मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ लेकिन फिर भी वो लोग अड़े रहे. ये खबर सुनकर जेर्नल तेन आग बबूला हो गया था. उसने अज्यूम कर लिया कि तिब्ब्तेन गवर्नमेंट रेबेल मूवमेंट को सपोर्ट कर रही है. इसी बीच भीड़ के लीडर ने अनाउंस कर दिया कि वो लोग सेवेनटीन पॉइंट एग्रीमंट और चाइना के इटरफेयर को ओपनली डिसमिस करते है, भीड़ एग्रेसिव हो चुकी थी, वो लोग ना तो मेरी बात सुनने को तैयार थे और ना ही कशाग की, वो लोग मॉस डेमोंस्ट्रेशन करने की जिद पर अड़े हुए थे. उधर जेर्नल तेन भी मुझसे नाराज़ था. मैंने उसे मनाने के लिए लैटर भेजा. लेकिन तीसरे दिन उसका जवाब आया कि पीएलए पैलेस पर एयर बोम्ब गिराने जा रहा है तो मै किसी सेफ जगह पर चला जाऊं और उन्हें इंडीकेशन दे दूं ताकि सोल्जेर्स उस जगह को अवॉयड करे,

तिब्बतियों ने अब तक बहुत सहा था, इस लड़ाई में उनका बहुत नुकसान हो चूका है. उन्होंने अपने परिवार के साथ अपना धर, अपनी ज़मीन सब कुछ खो दी थी. उन पर इससे ज्यादा और क्या जुल्म हो सकता था. मैंने जेर्नल तेन को बोला कि वो थोड़ा ठंडे दिमाग से काम ले. इसी बीच ओरेकल से भी मेरी बात चल रही थी कि मुझे रहना चाहिए या मैं चला जाऊं. नेक्स्ट मोरनिंग उन्होंने मुझसे कहा” जाओ! आज रात ही चले जाओ ! शायद इस वो इस बात पे ए थे लेकिन किसी के पास कोई डेफीनाईट प्लान नहीं था. अपने चेम्बरलेंन से हेल्प के लिए बोला. हमने अपने एक्शन की तैयारी शुरू कर दी थी. मैं अपने साथ अपनी इमीडिएट फेमिली, मेरे दो ट्यूटर और मैंने मेरे क्लोज़ एडवाईजर्स को ले जा सकता था. दोपहर में कशाग और मेरे ठ्यूटर्स वेगोन में छुप गए थे. शाम को मेरी माँ और मेरे दो भाई बहन नन्स बनकर निकले. रात में मेरी बारी थी. मैंने चुपके से भीड़ के लीडर्स को बुलाया और उसे बताया कि मै चोरी छुपे वहां से निकल रहा हूँ. मैंने उन्हें समझाया कि मेरा अभी वहां से निकलना जरूरी है और वो लोग मेरा साथ दे. जब मै निकल जाऊँ तो वो लोग भीड़ को ये न्यूज़ दे सकते है. जाने से पहले मैंने पैलेस में लास्ट टाइम प्रे किया. मैंने भगवान से माँगा कि वो मुझे गाइड करे और इतनी हिम्मत दे कि मैं इस मुश्किल वक्त को फेस कर सकूँ, 10 बजे के करीब मैंने पैलेस छोड़ दिया. मैंने कोट पेंट पहना था. मेरे साथ मेरे हेड बॉडी गा्डस और चीफ ऑफ़ स्टाफ थे. हम अँधेरे में वहां से निकल आये और क्यिछु रिवर (Kyichu River) तक पहुंचे. मेरी साथ फेमिली, मेरे टुयटर और कशाग था. हम पहाड़ो और छोटे विलेजेस में से छुपते-छुपाते आगे गुजर रहे थे. लगातार तीन हफ्तों तक हम इसी तरह हर प्रोविस कोस करते रहे. हम जब तिब्बत के लास्ट आउटपोस्ट तक पहुंचे तो एक बर्फीला तुफ़ान आया. ये एक छोटा सा विलेज था मांगमांग. हमें रात को यही रुकना पड़ा क्योंकि मै बुरी तरह थक चूका था. नेक्स्ट डे मेंने अपने सोल्जर्स और पफ्रीडम फाइटर्स को गुड़ बाई बोला जिन्होंने वहां से निकलने में मेरी हेल्प की थी, और फाइनली में अपनी मंजिल इंडिया पहुँच चूका था.

अ डेसपेरेट इयर (A Desperate Year)

बॉर्डर पर इंडियन ओफिशियल्स ने हमारा वेलकम किया. उन्होंने मुझे प्राइम मिनिस्टर नेहरु का टेलीग्राम दिया जिसमें लिखा था” सेफली इण्डिया पहुँचने पर आपका स्वागत है. आपको और आपके एनटोरेज(entourage) को हर तरह की फेसीलिटीज ऑफर करके हमें बेहद खुशी होगी. पूरा इंडिया आपकी बड़ी रिस्पेक्ट करता है”.

मैं करीब 10 दिनों तक बोमडीला में रहा. मुझे डिस्ट्रिक्ट कमि श्रर के घर पर रखा गया था, जब मै पूरी तरह ठीक हुआ तो मैंने मसूरी जाने की तैयारी की. इंडियन गवर्नमेंट बिरला हॉउस को मेरा ऑफिशियल रेजिडेंस बनाना चाहती थी. और वो मुश्किलों से भरा साल मैंने वही पर गुज़ारा, पंडित नेहरु भी कुछ दिनों बाद वहां आये. हमारी चार घंटो तक एक प्राइवेट मीटिंग चली जिसमें सिर्फ हम और हमारे इंटरप्रेटर्स थे.

एक पॉईट पर मैंने पंडित नेहरु को बोला कि मैं तिब्बत को फ्री कराना चाहता हूँ लेकिन उससे पहले मै चाहता हूँ कि ये खून-खराबा बंद हो जाए. मिस्टर नेहरू ने टेबल पर जोर से हाथ मारा” आप कह रहे कि फ्रीडम चाहिए और ये भी बोल रहे कि बिना किसी लड़ाई के. ये तो इम्पॉसिबल है!” मुझे लगा कि पंडित नेहरु मुझे अभी बच्चा ही समझते है जिसे टाइम-टाइम पर समझाना पड़ता है, शायद लेकिन हमारे सामने अभी तिब्बत की फ्रीडम से ज्यादा कुछ और भी प्रोब्लम्स थी, मेरे देश के हज़ारो लोग बॉर्डर क्रोस करके इंडिया में रिफ्यूजी बनकर आ रहे थे. मुझे न्यूज़ मिली कि चाइना ने नोरबुलींगका पैलेस, पटोला पैलेस और जोखांग मोनेस्ट्री को बम से उड़ा दिया है. और इस अटेक में 80,000 फ्रीडम फाइटर्स मारे गए. रिप्यूजीस ने मिसामारी और बुक्सा दुअर (Missamari and BuxaDuar) में अपने कैप लगा लिए थे. मुझे पता था मेरे देश के लोग एक्सट्रीम क्लाइमेट चेंज बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे क्योंकि उन्हें गर्मी की आदत नहीं थी, ऐसी हालत में वो बीमार पड़ सकते .मिस्टर नेहरु के साथ रिफ्यूजीस की प्रोब्लम डिस्कस करने में दिल्ली चला गया. मिस्टर नेहरु का फस्स्ट रिएक्शन था कि मैं कुछ ज्यादा ही डिमांड कर रहा हूँ क्योंकि इण्डिया भी आखिर एक डेवलपिंग कटी ही तो है, लेकिन फिर उनके अदर की इंसानियत जाग गयी.

उन्होंने डिसाइड किया कि इन रिफ्यूजीस को नार्थ इण्डिया के इलाको में शिफ्ट किया जाए जहाँ वो एक न्यू लाइफ स्टार्ट कर पाए, मिस्टर नेहरु का ये तिब्बत के लोगो पर बड़ा एहसान था. मै बहुत खुश हुआ. पंडित नेहरु मानते थे कि बच्चो की एजुकेशन ज्यादा इफेक्टिब है बजाये इसके कि यूनाइटेड नेशन उन्हें और कोई हेल्प करे, तिब्बत का कल्चर और हिस्ट्री कल इन्ही बच्चो के हाथ होगा. दो ही फ्यूचर में हमारी फ्रीडम की लड़ाई को आगे बढ़ायेंगे. मिस्टर नेहरू ने मुझे रिफ्यूजी बच्चों के लिए स्कूल्स खोलने का प्रोमिस किया. धर्मशाला में एक्जाइल तिब्बत गवर्नमेंट एस्टेबिलिश की गयी. अब तक एक साल गुज़र चूका था. मै और मेरे 00,000 लोग ने मिलकर इंडिया में अपनी एक नयी लाइफ स्टार्ट कर दी थी.

यूनिवर्सल रिसर्पोंसेबिलिटी एंड द गुड हार्ट (Universal Responsibility and the Good Heart)

ल्हासा पर अब कम्यूनिस्ट ने मार्शल लॉ लगा दिया था. फ्रांस, अमेरिका और योरोपियन पार्लियामेंट हमें सपोर्ट दे रही थी, चाइना ने जो वायोलेंस तिब्बत में किया था, सारी दुनिया उसका प्रोटेस्ट कर रही थी. और फिर जल्द ही कम्यूनिस्ट पार्टी को अपने ही होमलैंड में अपोजिशन फेस करने की नौबत आ गयी थी. हज़ारो स्टूडेंट्स ने मिलकर मास डेमोंस्ट्रेशन निकाला और भूख हड़ताल पर बैठ गए थे.

और इस वजह से हर तरफ मार-काट मच थे. कम्युनिस्ट मानने को तैयार नहीं थे कि उनका सिस्टम फेल हो सकता है, वो हमेशा यही बोलते रहे कि दो लोगो को सर्व करना चाहते है, वो लोगों के लिए होकि बनवा रहे है, उन्होंने लोगो की आर्मी बनाई है वगैरह-वगैरह. लेकिन सच तो ये था कि इन लोगों में कॉमन पीपल शामिल नहीं थे. जिसे वो लोगो के व्यूज़ बोलते थे वो दरअसल उनके अपने व्यूज़ होते थे.

मैं इंसानियत में बिलीव करता हूँ. मेरा मानना है कि लीडरशिप ऐसी होनी चाहिए जो ओल्ड, यंग और डिसएबल्ड सबको प्रोटेक्ट कर सके. जहाँ औरतो से मुझे लगता है कि लोग दूसरो को इसलिए हर्ट करते है क्योंकि ऐसा करने से उन्हें खुशी मिलती है. लेकिन असल में सच्ची खुशी कभी भी कण्ट्रोल, को सपोर्ट मिले जहाँ नेचर और डेवलपमेंट के बीच एक बेलेंस क्रियेट किया जाए. मै कर्मा के कांसेप्ट पर भी पूरा बिलीव करता हूँ इसलिए मुझे लगता है कि लीडर और पब्लिक दोनों इसे अपनी डेली लाइफ में अप्लाई करे. अगर आपको अपना कर्म पता है तो आपको पता होता है कि आप क्या कर रहे हो. और आप कुछ भी करने या बोलने से पहले अपने आस-पास के लोगो के बारे में सोचोगे,

पॉवर या पैसे से नहीं मिलती बल्कि मन की शांति और संतोष से मिलती है. सच्ची खुशी पानी हो तो आपको पहले गुस्से और लालच से छुटकारा पाना होगा. आपको अपने अंदर प्यार और कम्पैशन जगाना होगा. कुछ लोग सोचते है कि मै भोला हूँ लेकिन मै मानता हूँ कि हम सब इंसान है. हम सबकी सेम नीड्स है. ये गरीबी, भुखमरी, पोल्यूशन, ये वार, ये सब हम लोगों ने ही क्रियेट किये है. इसलिए इन सब प्रॉब्लम्स का सोल्यूशन हमे ही मिलकर निकालना होगा.

कनक्ल्यू जन

आपने इसमें तिब्बत की स्टोरी सुनी. आपने 14वे दलाई लामा के बारे में जाना, 1989, में दलाई लामा को नोबल पीस प्राइज़ मिला था. वो कई सारे इंटरनेशनल लीडर्स से भी मिल चुके है जैसे कि पॉप जॉन पॉल ।। और इंग्लैण्ड के प्राइम मिनिस्टर दलाई लामा अब 84 साल के है लेकिन आज भी चो दुनिया भर के लाखो लोगो को अपनी बातो से इंस्पायर और गाइड कर रहे है, और आज भी वो हमें लव और कम्पैशन का मैसेज दे रहे है,

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