About Book
ड्रग डीलर्स और बढ़ते हुए क्राइम रेट के बारे में आप जो कुछ भी जानते हैं उसे अपने दिमाग से निकाल दें क्योंकि आजकल बड़ी आसानी से इनफार्मेशन में हेरफेर की जा सकती है और जो आपने सोचा था कि सच है अक्सर वही गलत साबित हो जाता है. किसी भी चीज़ का सिर्फ एक पहलू नहीं होता, जिंदगी में हर चीज़ का सिक्के की तरह दो पहलू होते हैं. इस बुक में आप इतिहास के कुछ घटनाओं पर नज़र डालेंगे और आप उसे बिलकुल नए नज़रिए से देखने लगेंगे.
यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?
पेरेंट्स, टीचर्स
जो लीडर बनने की इच्छा रखते हैं
जिन लोगों के पास अधिकार (अथॉरिटी) है और जिनके
फ़ैसले दूसरों पर गहरा असर डालते हैं
ऑथर के बारे में
स्टीवन डेविड लेविट एक ऑथर और इकोनॉमिस्ट हैं. 2006 में वो टाइम मैगज़ीन के “100 People Who Shape Our World” की लिस्ट में शामिल किए गए थे. 2011 में एक सर्वे से ये पता चला कि लेविट 60 साल से कम उम्र के चौथे जीवित सबसे पसंद किए जाने वाले इकोनॉमिस्ट हैं. स्टीफेन जे. डबनर एक अमेरिकन ऑथर, जर्नलिस्ट और पॉडकास्ट होस्ट हैं. वो फ़्रीकोनोमिक्स रेडियो के होस्ट भी हैं. डबनर के काम को जाने माने न्यूज़पेपर जैसे New York Times और The New Yorker ने पब्लिश किया है.
इंट्रोडक्शन
क्या आप चीजों को जैसे दो हैं वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं या आप चीज़ों को शक की निगाह से देखते हैं? क्या आप किसी बात से सहमत सिर्फ इसलिए होते हैं क्योंकि ज्यादातर लोग उससे सहमत हैं? क्या आप मानते हैं कि इस दुनिया में हर इंसान अच्छा है? कि एक कहावत है हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती” ठीक उसी तरह जो चीज़ हमें जैसी दिखाई देती है अक्सर वो हमेशा वैसी नहीं होती.
क्या आपने कभी बिना सवाल किए या सीधे विश्वास कर के किसी चीज़ को स्वीकार किया है जो बाद में एक बुरा डिसिशन साबित हुआ जैसे आपने किसी बुक के attractive कवर को देखकर excitement में उसे खरीद लिया हो और आपने अपने दोस्तों को बड़े चाव से दिखाकर कहा हो कि आप उसे पढ़ने के लिए बहुत excited हैं लेकिन बाद में आप उसे पढ़कर बहुत निराश होते हैं क्योंकि वो बेहद बोरिंग था? आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, एक बार में ही किसी चीज़ पर भरोसा करना काफ़ी मुश्किल हो गया है. आजकल इनफार्मेशन में बड़ी आसानी से हेरफेर किया जा सकता है और अगर किसी इंसान की नॉलेज थोड़ी कम हो तो आसानी से उसका फ़ायदा उठाया जा सकता है. इसलिए आपको खुद ये जिम्मेदारी लेनी होगी कि आप इस तरह के झांसे और छल-कपट में ना फंसें.
इस बुक में आप इंसानों के व्यवहार के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि लोग एक दूसरे को धोखा देने की मानसिकता क्यों रखते हैं. आप सीखेंगे कि लोगों की बातों पर आँख बंद कर के विश्वास नहीं करना चाहिए और डेटा को स्टडी करने के बाद ही फैसला लेना चाहिए. इन सभी चीज़ों में इकोनॉमिक्स हमें गाइड करेगी. इकोनॉमिक्स उतना भी मुश्किल नहीं है जितना कि हम इसे समझते हैं. इकोनॉमिक्स की मदद से आप हर चीज़ के छुपे हुए पहलू को देखना सीखेंगे.
What Do School teachers and Sumo Wrestlers Have in Common?
इंसेंटिव एक ऐसा शब्द है जिसे हर फील्ड में लागू किया जा सकता है. आसान शब्दों में इसका मतलब होता है कोई भी ऐसी चीज़ जो आपको बढ़ावा दे यानी मोटीवेट करे. इकोनॉमिस्ट को भी इस शब्द का इस्तेमाल करना बहुत पसंद है क्योंकि असल में इकोनॉमिक्स इस बात को बताता है कि लोगों को वो
कैसे मिलता है जो उन्हें चाहिए या जिसकी उन्हें ज़रुरत है.
चाहे इंसेंटिव अच्छा हो या बुरा हम सभी उसके प्रति respond करते हैं जैसे आपके पेरेंट्स आपसे कहते हैं कि अगर आप स्कूल में अच्छे ग्रेड्स लेकर आए तो वो आपको आपका मनपसंद लैपटॉप लाकर देंगे या अगर आप किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी में घुसते हुए पकड़े गए तो पुलिस आपकी हवा टाइट कर देगी और ची जुर्म हमेशा आपके नाम से रिकॉर्ड में दर्ज हो जाएगा. इंसेंटिव तोहफ़े की तरह होते हैं क्योंकि ये लोगों को बुरे काम के बजाय अच्छे काम करने के लिए यकीन दिलाने का तरीका होता है. इंसेंटिव तीन तरह के
होते हैं इकनोमिक, सोशल और moral. आइए एक एग्ज़ाम्पल से इन्हें समझते हैं. जब अमेरिका में “एंटी-स्मोकिंग” कैंपेन शुरू किया गया तो सिगरेट के हर पैक पर कॉस्ट में “सिन-टैक्स” नाम से 3$ एक्स्ट्रा जोड़ा गया था. अब जितने
भी थे अगर उनके पास ज्यादा पैसे नहीं होंगे तो वो सिगरेट नहीं खरीद पाएंगे. इस तरह, ये “सिन -टैक्स” उन्हें सिगरेट ख़रीदने से रोकता था. इसे
इकनोमिक इंसेंटिव कहते हैं. जैसे-जैसे ये कैंपेन बढ़ता जा रहा था, रेस्टोरेंट और बार ने अपने आस-पास
के एरिया में स्मोकिंग पर बैन लगाना शुरू कर दिया. अब अगर कोई स्मोकर
उस एरिया में अक्सर स्मोक करता था तो उसे ये देखकर कभी ना कभी तो शर्मिंदगी ज़रूर होगी कि उसके अलावा वहाँ कोई स्मोक नहीं कर रहा था. ये सोशल साल इसटिव
अंत में, गवर्नमेंट ने पब्लिक के सामने इस बात का खुलासा किया कि आतंकवादियों के पास इतना पैसा इसलिए था क्योंकि वो सिगरेट को ब्लैक मार्केट में बेचते थे. ऐसी बात सुनकर आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और आपका moral इंसेंटिव आपसे कहने लगता है कि आप indirectly
आंतकवादियों को पैसे दे रहे हैं.
इंसेंटिव होने का मतलब ये नहीं है कि लोग automatically अच्छा काम करने के लिए मोटीवेट हो जाएँगे, हर वो इंसान जो एक नया इन्वेंट करने की कोशिश करता है, उसे 100 लोग अलग-अलग तरीकों से धोखा देने के लिए तैयार हो जाते हैं. अगर आप इसके बारे में ज़रा गौर से सोचें
इंसेंटिव प्लान
तो धोखा देना एक बेसिक सर्वाइवल technique बन गई है. इसका मतलब है कम काम के बदले ज़्यादा मिलना यानी कम एफर्ट के बदले ज्यादा
इनाम मिलना,
एग्ज़ाम्पल के लिए, आपके दोस्त ने आपसे उधार लिया और कुछ समय बाद पूछने पर कि उसे कितने पैसे लौटाने हैं, आपने उसमें 1 $ ज़्यादा जोड़कर बताया. एक और एग्ज़ाम्पल है, अपने प्रोजेक्ट के एक मुश्किल सवाल के लिए गूगल का इस्तेमाल करना और ऑनलाइन मौजूद चीट शीट से सारे जवाब
कॉपी-पेस्ट करना.
तो स्कूल के टीचर्स और सूमो wrestlers में क्या कॉमन है? जब अमेरिकन पब्लिक स्कूलों में स्टैण्डर्ड टेस्ट को शुरू किया गया तो उसके दो पहलू
थे. पहला, अगर ज़्यादातर बच्चों के मावर्स कम आते हैं तो स्कूल बंद होने का ख़तरा है जिसका मतलब है कि सारे स्टाफ़ की नौकरी चली जाएगी. दूसरी ओर, जो इस टेस्ट के पक्ष में थे उनका कहना था कि ये लर्निंग क्वालिटी बढ़ाने का काम करेगा,
इसके साथ ही, इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों के लिए एक इंसेंटिव का काम करेगा क्योंकि उन्हें अच्छी परफॉरमेंस के लिए अवार्ड दिया जाएगा. जिन टीचर्स के स्टूडेंट्स के बहुत ख़राब मार्क्स आएँगे उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा और जिनके स्टूडेंट्स के अच्छे मार्क्स
आएँगे उन्हें रिवॉर्ड के तौर पर प्रमोशन दी जाएगी.
इस इनफार्मेशन को देखते हुए, टीचर्स भी चीट करने की कोशिश करेंगे, कुछ टीचर्स ने एग्जाम के जवाब बोर्ड पर लिख दिए तो कुछ ने अपने स्टूडेंट्स के गलत जवाब को मिटाकर उसे सही कर दिया. असल में चीटिंग है क्या, इसके बारे में सोचें. इसमें हम कम काम कर के ज़्यादा पाने चाहते हैं. टीचर्स ने सोचा कि अगर हम अपने स्टूडेंट्स के मार्क्स को घोड़ा बढ़ा देते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है. अगर स्टूडेंट को अच्छे मा्क्स मिलते हैं तो टीचर
को भी उसका फ़ायदा होगा. इस सिचुएशन में हर कोई जीत सकता था. लेकिन ये जीत कुछ समय के लिए ही टिक पाती क्योंकि आज नहीं तो कल ये धोखा सामने आ जाता और चीट करने वालों को उसका परिणाम भुगतना पड़ता. अब, सूमो रेसलिंग को जापान में एक बहुत सम्मानजनक खेल माना जाता है. अगर आप एक अच्छे सूमो रेसलर हैं तो आपको एक राजा समान समझा जाता है और आप इससे बहुत कुछ कमाते हैं लेकिन ये तब होता है जब आप एक हाई रैंकिंग रेसलर हों,
हालांकि, सूमो रेसलिंग में बहुत सम्मान मिलता है लेकिन वहाँ चीटिंग की संभावना भी काफ़ी होती है. अगर एक सूमो रेसलर किसी टूर्नामेंट के दौरान 8
बार जीत हासिल करता है तो उसकी रैकिंग बढ़ जाएगी और उसके पास सुमो elite केटेगरी में शामिल होने का मौका होगा, लेकिन अगर उसने 8 से कम बार जीत हासिल की है तो उसकी रैंकिंग गिर जाएगी. तो आप कह सकते हैं कि आठवों मेच “करो या मरो” वाली सिचुएशन में आ जाता है. अब यहाँ क्या ये पॉसिबल है कि आठवे मैच में 7 जीत के साथ एक सुमों रेसलर और उससे मुकाबला करने वाले 6 जीत के रेसलर के बीच कोई डील हो जाए कि वो उसे जीतने दे? तो जवाब है कि हाँ, यहाँ बहुत हाई चांस है कि ये डील हो जाएगी. वो यहाँ चीट कर सकते हैं क्योंकि ‘7 जीत वालें रेसलर
का 6 जीत वाले रेसलर की तुलना में बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है.
अक्सर ये साबित करना काफी मुश्किल हो सकता है कि कौन सा आर्गेनाइजर धोखाधड़ी में शामिल है. एक बार, दो रेसलर थे जिन्होंने उन लोगों को बेनकाब करने की कोशिश की थी जिन्होंने घूस देकर मैच में हेरफेर की थी, उन्होंने टोक्यो में प्रेस कांफेरंस के जरिए सब कुछ दुनिया के सामने लाने का प्लान बनाया, लेकिन घटना से कुछ घंटे पहले दोनों सूमो रेसलर बड़े ही रहस्यमय ढंग से मरे हुए पाए गए. इसलिए इंसेंटिव लोगों के अंदर से अच्छाई और बुराई दोनों को बाहर निकालता है. जब लोगों को लगता है कि उनकी इकनोमिक, सोशल और moral इंसेंटिव बढ़ने वाली है तो उनके धोखा देने की संभावना भी बढ़ जाती है
How is the Ku Klux Klan Like a Group of Real Estate Agents? Ku Klux Klan अमेरिकन हिस्ट्री का सबसे दुखद और काला इतिहास है जो सिर्फ अंधकार से भरा हुआ था. इस klan के मेंबर गोरों को सबसे ऊँचा
और सर्वश्रेष्ठ मानते थे. वो रंग और जाति के नाम पर भेदभाव कर आतंक फैलाते थे. उनका मकसद था काले लोगों को डराना, जान से मारना और उन पर अपना खौफ बनाए रखना. अगर कोई गोरा काले लोगों के अधिकार के लिए उनका पक्ष लेता था तो ये लोग उसे भी नहीं बक्शते थे. उसे भी डराने
और टार्चर करने के लिए कई पैंतरे अपनाए जाते थे.
इस kian के कई मेंबर गवर्नमेंट और आर्मी में हाई पोजीशन पर काम कर रहे थे. लेकिन एक ऐसा शख्स था जो इनके आतंक से डरा नहीं बल्कि उसने एक्शन लेने की ठानी. वो एक राइटर और एक्टिविस्ट थे जिनका नाम विलियम stetson कैनेडी था. कैनेडी के अपनी आँखों के सामने अपने यहाँ काम करने वाली एक ब्लैक औरत का क्रूरता से रेप और मर्डर होते हुए देखा था. वजह सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएँगे, उसका गुनाह सिर्फ इतना था कि उसने एक गोरे ड्राईवर को पलटकर जवाब दे दिया था. कैनेडी ये अन्याय सह नहीं सके और तभी
उन्होंने इस klan को जड़ से ख़त्म करने की कसम खाई,
कैनेडी एक अंडरकवर klan मेंबर बन गए और उनके बीच रहकर उन्हें पला चला कि उनकी एक अलग ही दुनिया था. उनकी भाषा अलग थी, उनके रस्मो रिवाज़ अलग थे और वहाँ भी ऊपर से नीचे एक सिस्टम चलता था जैसा किसी आर्गेनाइजेशन में होता है. इतना ही नहीं, उनका आर्गेनाइजेशन
टॉप पर रहने वालों के लिए पैसा बनाने वाली एक मशीन से ज़्यादा कुछ नहीं था. हर मेंबर को हर महीने मेम्बरशिप फ़ीस देनी पड़ती थी. ये klan labor यूनियन को डरा धमकाकर उनसे सर्विस फ़ीस वसूलता था और लोगों से
डोनेशन भी स्वीकार करता था, कैनेडी ने बड़े ही अनोखे तरीके खोल दी. ये klan इतना पावरफुल इसलिए था क्योंकि उसे उन्हें थूल चटाई. उन्होंने आम जनता के सामने उनके सीव्रेट आर्गेनाइजेशन की पोल उन्होंने गुमनामी का चोला ओढ़ रखा था.
इनफार्मेशन इकट्ठा करने के बाद कैनेडी ने The Actventures of Superman रेडियो शो को कांटेक्ट किया, उसके बाद वो हर रात पूरे देश के लाखों लोगों के सामने इस आर्गेनाइजेशन के काले सच के बारे में बताने लगे. कैनेडी ने बताया कि वो एक दूसरे को कोड नेम से बुलाते थे जो बड़े फनी और दिलचस्प थे जैसे प्रेसिडेंट के लिए ग्रैंड ड्रैगन, वाईस प्रेसिडेंट के लिए Klalif, और लेक्चरर के लिए Klokard. उन्होंने कई पासवर्ड और सीक्रेट कोड भी शेयर किए जो klux klan इस्तेमाल करता था, The Adventures of Superman रेडियो शो सुपरहिट शो बन गया.
जल्द ही kian के मेंबर शिकायत करने लगे कि बच्चे उनकी यूनिफार्म का मज़ाक उड़ाने लगे थे. कुछ ने तो सुपरमैन बनकर klan के मेंबर्स को पकड़ने का नाटक भी किया. अब ये klan गुमनाम नहीं रह गया था बल्कि इनकी सच्चाई सबके सामने आ गई थी. अब कुछ गिने चुने लोग ही klan में शामिल
होना चाहते थे और उनमें से ज़्यादातर मीटिंग तक अटेंड नहीं करते थे. लोगों को सच्चाई बताकर और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस इनफार्मेशन को पहुंचाकर इस klan को खत्म किया गया था.
कैनेडी ने उन्हें expose किया उससे पहले सही इनफार्मेशन लोगों तक पहुँचती ही नहीं थी. इस सीक्रेट आगेनाइजेशन को पता था कि उनके पास कितनी पॉवर थी और कौन उन्हें सपोर्ट कर रहा था. सिर्फ Rlan का मेंबर बनकर ही इन बातों को करीब से जाना जा सकता था. आम जनता को तो
इसकी भनक तक नहीं
इनफार्मेशन की कमी से कैसे असर हो सकता है आप इसका अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हैं कि हो सकता था कि लोग अनजाने में इस klan के बारे किसी के सामने बुराई कर रहे उन्हें इस बात की खबर तक नहीं कि वो इंसान कोई और नहीं बल्कि उस आर्गेनाइजेशन में काम करने वाला एक हाई रैंकिंग ऑफिसियल था, तो वो उनकी जान को खतरे में डाल सकता था, इसलिए इनफार्मेशन एक बहुत पावरफुल इंसेटिव होता है. चलिए अब इसे रियल एस्टेट से जोड़कर समझते हैं. एग्जाम्पल के लिए, आप एक घर खरीदना चाहते हैं. शायद आप सोचेंगे कि आपको एक रियल एस्टेट एजेंट की मदद की ज़रुरत है क्योंकि आपको रियल एस्टेट के बारे में कुछ पता नहीं है और शायद आप सही भी हैं क्योंकि एक एजेंट के पास आपसे ज़्यादा जानकारी होती है. वो सेल्स ट्रेंड, घर के लिए बोली लगाने की सही कीमत और सेलर इन सब के बारे में इनफार्मेशन रखता है.
तो आप लिस्ट में एक घर देखते हैं जिसकी कीमत है 4.,69,000$ और आप 4,50,000 $ का ऑफर देना चाहते हैं. लेकिन आप सबसे पहले एजेंट
को पूछते हैं कि सबसे कम कीमत क्या है जो सेलर को मंजूर होगी. तब यो आपको बताता है कि सेलर आपके ऑफर से भी कम कीमत एक्सेप्ट कर
लेगा. इस इनफार्मेशन के साथ आप 4,30,0005 का ऑफर देते हैं जिसके लिए सेलर राज़ी हो जाता है, अब यहाँ एजेंट की बदौलत सेलर ने 20,000 $ खो दिए. दूसरी ओर एजेंट को सिर्फ 3005 का नुक्सान हुआ. लेकिन देखा जाए तो ये बहुत छोटी सी
कीमत थी क्योंकि एजेंट ने तुरंत उस डील को क्लोज किया और उसे 6.450 $ का कमीशन मिला, क्योंकि सेलर को रियल एस्टेट के बारे में ज्यादा पता नहीं था इसलिए उसने अपनी प्रॉपर्टी उसकी वैल्यू से कम दाम में बेच दी,
हालांकि, ऑथर ये नहीं कह रहे हैं कि हर फील्ड के एक्सपर्ट इनफार्मेशन का नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं लेकिन लोग उनके और क्लाइंट के बीच इनफार्मेशन की जो कमी है उसका फायदा ज़रूर उठाते हैं. रियल एस्टेट एजेंट के केस में उसे इकनोमिक इसेंटिव मिला क्योंकि सेलर के पास पूरी इनफार्मेशन नहीं थी. इसलिए Ku Kux Klan रियल एस्टेट एजेंट्स जैसे ही थे क्योंकि उन्होंने अपने पास मौजूद इुनफार्मेशन का इस्तेमाल करके अपनी पॉवर का गलत फायदा उठाया था.
Why Do Drug Dealers Still Live with Their Moms?
“कन्देशनल विजडम” वो टर्म है जिसका इस्तेमाल जॉन केनेथ गैलनेथ करते थे, जो एक इकोनॉमिस्ट थे. उन्होंने इस टर्म का इस्तेमाल उस नॉलेज को समझाने के लिए था जो सिंपल, सुविधाजनक और कम्फर्टेबल हो -भले ही वो सच हो या नहीं. एग्ज़ाम्पल के लिए, 1980 के समय बेघर लोगों के नंबर के बारे में बात करते हैं. जब अमेरिकन advocate मिच स्नाइडर (Mitch Snyder) ने बताया कि कम से कम 3 मिलियन अमेरिकन बेधर थे, तो
र से हलचल मच गई. यहां तक कि मिच ने कहा कि हर सेकंड 45 बेघर लोगों की मौत हो जाती है लोगों ने सोचा कि ये बात ही होगी क्योंकि इसकी जानकारी उन्हें एक एक्सपर्ट दे रहे थे. लेकिन बाद में पता चला कि मिच ने अपने खुद के फ़ायदे के लिए मनगढत नंबर बताया था. कई लोग बड़ी चालाकी से झूठ बोल जाते हैं. ऐसी बातें लोगों का ध्यान अपनी और खींचती है और उससे भी ज़्यादा पैसा खींचती है. यही मिच ने किया था और यही 1990 के दौर में पुलिस किया था. अचानक से क्रैक कोकेन नाम का म पूरे अमेरिका में फैल गया गया. पुलिस ने इसके जवाब में कहा कि ये बराबरी की लड़ाई नहीं थी क्योंकि ड्रग डीलरों
के पास लेटेस्ट टेक्नोलॉजी वाले हथियार और अथाह पैसा था. ये इनफार्मेशन मिलने के बाद मीडिया ने इस पर स्टोरी बनाई और वे ख़बर आग की तरह
फैलने लगी. जिस तरह मीडिया ने स्टोरी दिखाई उससे आम लोगों तक ये मैसेज पहुंचा कि ड्रग्स बेचना अमीर बनने का सबसे आसान ज़रिया है. इस कन्वेंशनल विजडम इनफार्मेशन ने ड्रग डीलर्स और ड्रग्स के धंधे के प्रति लोगों के नज़रिए पर गहरा असर डाला. सुधीर वेंकटेश सोशियोलॉजी में पीएचडी कर रहे थे. क्योंकि कोर्स के दौरान फील्डवर्क की ज़रुरत थी, वेंकटेश को शिकागो के सबसे गरीब इलाके का सर्वे करना था जहां काले लोग रहते थे. दुर्भाग्य से, वेंकटेश का सामना Black Disciples नाम के एक ड्रग गैंग से हुआ. उन्होंने वैंकटेश को पकड़ा स, वेंकटेश की
और जान से मारने धमकी दी लेकिन 24 घंटे बाद उन्हें छोड़ दिया गया, गैंग ने सोचा कि वेंकटेश से उन्हें कोई खतरा नहीं था, उन्होंने उन्हें एक मामूली स्टूडेंट समझकर जाने दिया. वेंकटेश घर जाकर फ्रेश हुए और दोबारा उस गैंग के अड्डे पर गए. उन्होंने गैंग के लीडर जे.टी से पूछा कि क्या वो उनके गैंग पर रिसर्च कर सकते थे. उसने वेंकटेश को इजाज़त दे दी, उनकी ये रिसर्च सालों चली. अपनी पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद भी वेंकटेश उनके अड़े पर जाते रहे. एक दिन, उन लोगों ने वेंकटेश को कई
लेविट से मिले. दोनों ने साथ मिलकर उस फाइनेंसियल डेटा को स्टडी किया. जानते हैं सबसे चौकाने वाली बात क्या थी. Black Disciples के यहाँ
भी एक मैनेजमेंट जैसा सिस्टम बना हुआ था जैसे कि Mcdonalds में होता है. आसान शब्दों में Black Disciples को Mcdonalds की
जमट जसा
फ्रेंचाइजी के रूप में सोचिए जिसका मैनेजर जे.टी. था,
जैसे किसी आर्गेनाइजेशन में बोर्ड को डायरेक्टर्स को रिपोर्ट करना एड़ता है ठीक वैसे ही जे.टी. भी बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स को रिपोर्ट करता था, वो जो भी कमाता उसका 20% उन्हें दे देता था. जे.टी के नीचे भी ऑफिसर्स काम करते थे जो उसे रिपोर्ट करते थे. वो उन ऑफिसर्स और जो लोग असल में ड्रग्स बेचने का काम करते थे, जिन्हें फुट सोल्जर कहा जाता है, दोनों को पैसे देता था,
फुट सोल्जर के नीचे लगभग 200 मेंबर काम करते थे. अब इन नीचे लेवल के लोगों को पैसा नहीं दिया जाता था बल्कि गैंग इनसे पैसे लेती थी. वो पैसा
देने के
इसलिए तैयार हो जाते थे थे क्योंकि वो दुश्मन गैंग से बचना चाहते थे और उन्हें ये उम्मीद थी कि एक दिन वो भी फुट सोल्जर बन जाएँगे.
लिमिट की मदद से वेंकटेश
कि जे.टी. हर घंटे G6$ कमाता था यानी साल के 1.00,0005 उसके ऑफिसर 75 हर घंटे कमाते थे यानी साल के
665
7005 और फुट सोल्जर की की कमाई थी 3.30 $, ये डेटा हमें क्या बताता है? ये हमें बताता है कि पेमेंट का सिस्टम बिलकुल एक पिरामिड की तरह था. जो लोग टॉप पर थे जैसे जे.टी. और बोर्ड मेंबर्स वो दौलतमंद थे और शानदार जिंदगी जी रहे थे. बीच में और सबसे नीचे वाले लोग पैसों की तंगी झेल रहे थे. ड्रग्स बेचने से आप रातोंरात अमीर नहीं बन जाते. बड़ा पैसा कमाने वाले के पीछे सैंकड़ों लोगों का हाथ होता है जिनकी हालत ख़राब होती है.
इसी वजह से कई ड्रग डीलर आज भी अपने परिवार के साथ रहते हैं क्योंकि वो इतना नहीं कमा पाते कि अपना खर्चा चला सकें. फुट सोल्जर इसलिए गैंग नहीं छोड़ते क्योंकि वो उम्मीद लगाए रहते हैं कि एक दिन वो भी जे.टी या उसके ऑफिसर जैसे बनेंगे.
जैसा कि हमने पहले देखा, कन्वेंशनल विजडम अक्सर झूठ होता है. लेकिन फिर भी लोग सबूत देखने के बाद भी इस झूठ को ही सच मानते हैं. जैसे कि ड्रग्स बेचने वाले सच्चाई देखने की बजाय यही मानते हैं कि सभी ड्रग डीलर पैसों के ढेर पर बैठे हैं जबकि असल में उनमें से ज्यादातर ड्रग डीलर आज भी अपने परिवार के साथ ही रहते हैं.
Where Have All the Criminals Gone?
1890 के आसपास, अमेरिका में अचानक भयानक अपराध होने लगे, क्राइम रेट 80% बढ़ गया था. हर कोई परेशान और डरा हुआ था, किसी को क्राइम बढ़ने का कारण समझ नहीं आ रहा था. हर अमेरिकन के डर को आसानी से देखा जा सकता था क्योंकि न्यूज़ क्राइम की खबरों से भरा हुआ था. लेकिन 1990 की शुरुआत में अचानक क्राइम रेट अपनाप कम होने लगा. बिना कारण अचानक क्राइम रेट का तेज़ी से बढ़ना और अचानक से उसमें
गिरावट आना, आखिर ये कैसे हुआ?
कई एक्सपर्ट्स ने कारण हूँढने की कोशिश की. उन्होंने कई कारणों के बारे में चर्चा की, पहला कारण उन्हें लगा इकॉनमी हो सकता था. क्योंकि इकॉनमी मज़बूत हो रही थी, बेरोजगारी कम होती जा रही थी. लेकिन इकॉनमी बढ़ रही थी इसका ये मतलब नहीं था कि क्राइम में कोई कमी आई थी. 1960 के दौरान भी इकॉनमी बड़ी तेज़ी से ग्रो कर रही थी और उस वक्त क्राइम रेट तेज़ी से बढ़ने लगा था. इसलिए ये कहा जा सकता है कि क्रिमिनिअल एक्टिविटीज पर इकॉनमी का कोई असर नहीं पड़ता है.
दूसरा कारण उन्होंने सोचा वो था कि वो सब जेल पर ज्यादा भरोसा करने लगे थे. 1980 और 2000 के बीच जब ड्रग्स के आरोप के कारण लोगों को जेल भेजने की आई तो देखा गया कि कैदियों की संख्या 15 गुना बढ़ गई थी. साल 2000 के अंत तक, लगभग 20 लाख लोग जेल में थे. हालांकि, सजा बढ़ा देने से क्राइम कम हो जाता है लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना था कि इससे क्राइम होना पूरी तरह बंद नहीं हो सकता, इसलिए इससे
भी क्राइम रेट में 1/3 गिरावट आई थी, तीसरा कारण जो उन्होंने सोचा वो था, ज्यादा कड़े कानून और ड्रग्स मार्केट में बदलाव लाना, गन कंट्रोल लॉ के आने से पहले कोई भी आदमी आसानी
से बंदूक खरीद सकता था. अमेरिका में बंदूकों की इतनी भरमार थी कि उसे चलाने वाले उतने हाथ नहीं थे जितनी की मार्केट में बंटूकें थीं. इसका एक कारण ये भी था कि बलेक मार्केट बड़े तादाद में बंदूकें बेच रहा था. सख्त कानून लागू किए गए ताकि कोई भी आसानी से बंदूक ना खरीद पाए. 1993 में Brady Act पास किया गया जिसमें बंदूक खरीदने वाले का क्रिमिनल रिकॉर्ड चेक किया जाता था और उसे बंदूक मिलने से पहले कुछ समय तक इंतज़ार भी करना पड़ता था. लेकिन इस रूल और बाद के बनाए हुए रूल्स का भी क्राइम रेट की कमी में कोई असर नहीं पड़ा. ऐसा इसलिए था क्योंकि ज्यादातर क्रिमिनल्स कानूनी रूप से बंदूक नहीं ख़रीदते थे. आप ही सोचिए, जब ब्लैक मार्केट मौजूद था तो कोई भी क्रिमिनल लीगल तरीके
से बंदूक खरीदने क्यों जाएगा? इन सभी कारणों में एक्सपर्ट्स एक एंगल को देखने में बिलकुल चूक गए थे और असल में यही क्राइम रेट में आई कमी का सही कारण था. 1900 के
दौरान, अमेरिका ने डॉन को legal कर दिया था, कारण ये बताया गया कि एबॉ्शन करवाना खतरनाक और महँगा था. ऐसी सिचुएशन में गरीब औरतों के लिए एबॉर्शन कराना संभव नहीं था और birth कंट्रोल की सुविधा और जानकारी तक उनकी पहुँच नहीं थी. 1970 के दौरान, Roe v. Wade केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण एबॉर्शन को लीगल कर दिया गया. जूरी ने महसूस किया कि बच्चों का पालन पोषण करना एक माँ के आमतौर पर औरतों के पास एबॉर्शन करवाने की एक खास वजह होती थी जैसे कि वो एक बच्चे की परवरिश का खर्च उठाने के काबिल नहीं थी या वो सोचती थी कि वो एक माँ की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं थी या उसे लगता था कि वो अपने बच्चे को पलने बढ़ने के लिए एक अच्छा माहौल
लिए कितना मुश्किल हो रहा था.
नहीं दे पाएगी. एबॉर्शन को लीगल करने के बाद, 750,000 औरतों ने एबॉर्शन करवाया. 1980 तक ये नंबर बढ़कर 1.6 मिलियन हो गया था जिसका
मतलब ये था कि अमेरिका में 1.6 मिलियन सिटीजन कम पैदा हुए थे.
एक स्टडी से पता चला कि अगर एबॉर्शन illegal ही रहता तो एक बच्चे की गरीबी में जीने की बहुत ज्यादा संभावना थी. गरीबी क्राइम को जन्म देती है और एक ऐसी माँ जो उम्र में बहुत छोटी है और अपने बच्चे को सही रास्ता नहीं दिखा सकती उनके बच्चे भी अंत में क्रिमिनल ही बन जाते हैं, इसलिए आसान शब्दों में, एबॉर्शन लीगल कर देने से औरतों को उन बच्चों को जन्म नहीं देना पड़ा जो शायद दुखी और क्राइम से भरा हुआ जीवन जीते, एबॉर्शन
उसका एबॉर्शन करवाना ही ठीक फैसला था,
को लीगल करने से क्राइम रेट में कमी आई थी क्योंकि वो बच्चे जिनकी परिस्थिति के कारण क्रिमिनल बनने की ज़्यादा संभावना थी वो तो पैदा ही नहीं हुए थे. लेकिन क्राइम रेट तो घटा था तो आखिर सारे क्रिमिनल्स कहाँ गायब हो गए थे? वो कहीं गायब नहीं हुए थे बल्कि वो पैदा होने से बच गए थे.
कन्क्लू जन
हर इंसान जिंदगी में हमेशा आगे बढ़ना चाहता है इसलिए आपको बहुत सोच समझकर इनफार्मेशन अंदर माईंड में स्टोर करना चाहिए. इस दुक ने
आपको ये समझने में मदद की कि इंसान को अच्छे या बुरे काम करने के लिए क्या चीज़ मोटीवेट करती है. इंसेंटिव बहुत पावरफुल होते हैं, इसके साथ ही इनफार्मेशन में भी बहुत ताकत होती है,
सच्चाई अक्सर कड़वी होती है इसलिए लोग कन्वेशनल विजडम में विश्वास करने में कम्फर्टेबल महसूस करते हैं, लेकिन आपको कभी भी अपने आप को बेवकूफ़ नहीं बनने देना है, अब जब आपने इतना कुछ समझ लिया है तो दूसरों को भी समझाने में मदद करें कि किसी भी चीज़ को देखकर, बिना कोई सवाल किए उस पर आँखें बंद कर यकीन करना कितनी बड़ी गलती है.
फ्रीकोनोमिक्स शब्द का मतलब है पुरानी बातों को अंधाधुन मानना नहीं चाहिए बल्कि इसमें ये समझाने की कोशिश की गई है कि लोगों को असल में कैसे काम करना चाहिए. वहीं दूसरी ओर, इकोनॉमिक्स हमें दिखाता है कि रियलिटी में दुनिया कैसे काम करती है. हमेशा सच जानने की कोशिश करें और उसके साथ खड़े रहे, उस सच का इस्तेमाल सही डिसिशन लेने के लिए करें और कभी किसी को चीट ना करें. हमेशा याद रखें कि सक्सेस तक पहुँचने का कोई शोर्ट कट नहीं होता.