फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट: एक संक्षिप्त परिचय
हम यही सोचते है कि हमारे पास टाइम की कमी है, पर असल में हम टाइम निकाल सकते है. इसके लिए जरूरी नहीं कि हमे हर मिनट का शेड्यूल बनाना होगा बल्कि हमे डिसाइड करना होगा कि हमारे लिए क्या जरूरी है और क्या नहीं. अगर आप फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट का कांसेप्ट सीखना चाहते हो तो ये बुक एक बार पढ़के देखो. ये बुक पढ़ने के बाद आपको समझ आ जायेगा कि आपकी लाइफ में सबसे इम्पोर्टेट चीज़ क्या है.
ये समरी किस-किसको पढ़नी चाहिए:
- स्टूडेंट्स और एम्प्लोईज़ (Students and employees)
- पेरेंट्स और मैनेजर्स (Parents and managers)
- हर कोई जो टाइम मैनेजमेंट सीखना चाहता है (Anyone who needs help with time Management)
ऑथर के बारे में (About the Author)
स्टीफेन कोवे एक फेमस ऑथर, एजुकेटर और स्पीकर है. उन्होंने सेल्फ हेल्प पर कुछ बुक्स लिखी है जिनमे से "द 7 हैबिट्स ऑफ़ हाईली इफेक्टिव पीपल" भी एक है जोकि एक इंटरनेशनल बेस्ट सेलर बन चुकी है. टाइम मैगेजीन ने कोवे को 25 मोस्ट इन्फ्लुएंशल पीपल की लिस्ट में रखा है. वो कोवे लीडरशिप सेंटर के फाउंडर है जो ऑर्गेनाइजेश्न्स और इंडीविजुअल लेवल पर ट्रेनिंग सर्विस प्रोवाइड करती है.
इंट्रोडक्शन (Introduction)
क्या आपने कभी खुद से ऐसा प्रोमिस किया है जिससे कि आपको फायदा हो? जैसे कि खुद को हेल्दी कैसे रखा जाए या केक कैसे बेक करे पर लास्ट में आपने किया कुछ नहीं? तो क्या आपको हर चीज़ करने के लिए 24 घंटे काफी लगते है? हम हमेशा यही सोचते है कि हमारे पास खुद के लिए कभी टाइम नही होता. हमे अपनी फेमिली को पालना होता है, हमारे ऊपर कई सारी रिस्पोंसेबिलिटीज़ है, हमारे अपने कमिटमेंट्स है जो हमें पूरे करने है.
लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आप जो काम करने के लिए टाइम निकाल रहे हो, क्या वो समय में वर्थ करता है? अक्सर लोग कोई एक्टिविटी स्टार्ट करते है, फिर उसे छोड़कर दूसरी करने लग जाते हैं. और आपको रिएलाइज़ भी नहीं होता कि उनमे से कुछ एक्टिविटीज़ तो एकदम बेकार होती है. हम कुछ ऐसा करना चाहते है जो मीनिंगफुल हो, और जिससे दुनिया का भी भला हो. आप भी चाहो तो आप भी खुद से शुरुवात कर सकते हो. इस बुक में आप सीखोगे कि अपने लिए टाइम कैसे निकाला जाए और ऐसी कौन सी चीजे हे जो आपके लिए इम्पोर्टंट है. और आप ये सीखोंगे कि आपके लिए क्या सिग्नीफिकेंट है और क्या नहीं.
क्योंकि हम अक्सर हर अर्जेंट टास्क को ऑटोमेटिकली इम्पोर्टेन्ट समझ बैठते हैं. और फाइनली इस बुक से आप फर्स्ट थिंग फर्स्ट का प्रोसेस सीखोगे यानी जो इम्पोर्टेट है उसे प्रायोरिटी देना.
द क्लॉक एंड द कम्पास (The Clock and the Compass)
हमे अपना टाइम कैसे स्पेंड करना चाहिए और हमारे लिए क्या इम्पोर्टेंट है, इसके बीच एक गैप है. द क्लॉक डेडलाइन्स और उन एक्टिविटीज़ को रीप्रेजेंट करता है जोकि हमे करनी है. ये हमे ट्रेक करने में हेल्प करता है कि हमे क्या करना चाहिए और कैसे अपना टाइम मैनेज करना है. दूसरी तरफ कंपास हमारी लाइफ के मिशन्स और डायरेक्शन को रीप्रेजेंट करता है. और ये उन एक्टिविटीज़ को भी रीप्रेजेंट करता है जो हमारे लिए जरूरी चीजे है और हमें कम्प्लीट करती है.
हालांकि हम अपने टाइम और अपनी मोस्ट वैल्यूएबल चीजों के बीच बेलेंस बनाने की कोशिश करते है फिर भी ये थोड़ा मुश्किल है. आप सोच रहे होंगे "सिर्फ टाइम मैनेजमेंट की बात है और कुछ नहीं" पर ऐसा नहीं है. चाहे आप उन चीजों को करने की कोशिश करों जो जरूरी है, फिर भी चीज़े हाथ से निकलती चली जाती है. ऐसा क्यों है?
क्योंकि स्पीड में किया गया काम हमेशा एक्यूरेट हो, ये ज़रूरी नहीं. जैसे कि आप एक ही दिन में अपने सारे एसाइनमेंट्स पूरे करते हो ताकि नेक्स्ट डे रिलेक्स कर सको. लेकिन जल्दी चक्कर में आपने स्पेशिफिक इंस्ट्रक्शन मिस कर दिए और आपके ग्रेड कम हो गए.
पहले करे, क्या नही ये एक ऐसा चेलेंज है
यह चैलेंज है जो हम सब फेस करते हैं. हम वो काम करना चाहते है जो हमे खुशी दे या फिर कुछ ऐसा जो हमारे क्या प्रिंसीप्लस को स्ट्रोंग बनाये. पर हम अक्सर इसके लिए टाइम ही नहीं निकाल पाते क्योंकि हमे बाकी काम करने होते है जैसे ऑफिस जाना या अपनी फेमिली की केयर करना. टाइम मैनेजमेंट इतना मुश्किल इसलिए है क्योंकि हर एक्टिविटी जो टाइम मांगती है, या तो हमारे क्लॉक के लिए अच्छी है ( मैंने डेडलाइन से पहले प्रोजेक्ट फिनिश कर लिया) या हमारे कम्पास के लिए अच्छी है (बुक्स पढ़ना कितना रिलेक्सिंग है)।
लेकिन अफ़सोस! हम अक्सर दोनों साथ में पूरे नहीं कर पाते. गैप काफी पेनफुल हो सकता है, लोगो को लगता है जैसे कि वो फंस गए उन्हें फुलफिलमेंट का एहसास नही होता क्योंकि उन्हें क्लॉक की डेडलाइन और शेड्यूल पूरे करने होते है. उन्हें डर होता है कि कहीं कंपास सेटिसफाई करने के चक्कर में कुछ गलत ना हो जाए. ये वो लोग होते है जिन्हें लगता है कि कोई और उनकी लाइफ जी रहा है.
द एवोल्यूशन ऑफ़ श्री जेनरेशंस ऑफ़ टाइम मैनेजमेंट (The Evolution of the Three Generations of Time Management)
बात जब क्लॉक और कंपास की आती है तो लोग अक्सर दोनों में गैप क्लोज करने की कोशिश करते है. यानी अपनी रिस्पोंसेबिलिटीज़ और अपने पैशन के बीच बेलेंस. स्टेफन कोवे टाइम मैनेजमेंट की फील्ड जाकर देखने की कोशिश करते है कि इतने सालो में लोगों ने इस गैप को कैसे सोल्व करने की कोशिस की है. हालाँकि लोगो की डिफरेंट अप्रोच रही है पर उन्होंने इनमें से 3 पर फोकस किया क्योंकि ये सबसे ज्यादा रिलेट करती है. कोवे उन्हें श्री जेरेन्स ऑफ टाइम मैनेजमेंट बोलते हैं.
जेनरेशन | विशेषताएं |
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फर्स्ट जेनरेशन | इसमें सब करते जाते हो और कोस कउ रामाइंडर्स पर है. इस अप्रोच में टू-डू लिस्ट आपके बड़े काम आती है व्योंकि एक-एक कर आप अपने काम फिनिश करते हो, और अगर आप नहीं करते तो आप उन्हें आगे की टू-डू लिस्ट में डाल सकते हो. हालाँकि ये बड़ी अच्छी आप्रोच लगती है पर इसमें गलती की काफी गुंजाइश है. |
सेकंड जेनरेशन | प्लानिंग और प्रिपरेशन पर जोर देती है. इस जेनरेशन का ब्रांड है कैलेंडर, ये आपको एफिशिएंट बनने और प्लानिंग करने के लिए पुश करती है. आप अपनी मीटिंग्स, एक्टिविटीज़, या कमिटमेंट्स टाइम से पहले ही पूरे कर लेते हो. हालाँकि ये जेनरेशन के पास वो है जो जेनरेशन के पास नही है फिर भी आपके शेड्यूल्स आपको एक तरह से अकेलापन फील कराते है. |
थर्ड जेनरेशन | प्लानिंग पर चलती है पर यहाँ पर प्रायोरिटीज़ फिक्स है और काम पर भी कण्ट्रोल रहता है. ये अप्रोच भी थोड़ी स्ट्रिक्ट और स्ट्रक्चर्ड फील हो सकती है. इस जेनरेशन को जिस लेवल का फोकस और कंसंट्रेशन चाहिए, उसे मेंटेन करना बड़ा मुश्किल है. |
द अर्जेसी एडिक्शन (The Urgency Addiction)
इससे पहले कि हम 4थ जेनरेशन में आये, आपको दो फैक्टर्स पता होने चाहिए जो हमारे टाइम स्पेंडिंग हैंबिट पर काफी बड़ा इम्पैक्ट डालते है. और ये दो फैक्टर्स है अर्जेंट और इम्पोटेंस. 4थ जेनरेशन काफी हद तक इम्पोर्टेंस फैक्टर पर डिपेंड है. यानी जब आप वो करते हो जो रियली में इम्पोटेंट तो है पर अर्जेंट नही. इससे आप फर्स्ट थिंग्स फर्स्ट में रियली सवसेसफुल रहते हो.
तो ये जानने के लिए हम पहले अर्जेसी के बारे में सीखेंगे कि ये आपकी लाइफ कैसे इफेक्ट करती है और आप कौन सी अप्रोच यूज़ कर रहे हो या फिर आपको अप्रोच चेंज करनी चाहिए नही. ऐसी सिचुएशन में जहाँ आपको कोई भी प्रोब्लम सक्सेसफूली मैनेज करने की हैबिट हो वहां आप को अर्जेंसी की आदत सी हो जाती है. जैसे कि आप महीने भर की रीपोर्ट्स एक रात में ही फिनिश कर लेते हो, या कई वीक्स पहले का स्कूल प्रोजेक्ट कुछ ही घंटों में निपटा देते हो.
आपको अजेंट प्रोब्लम्स सोल्व करना अच्छा लगता है. इंस्टेंट रीजल्ट्स इंस्टेंट सेटिसफेक्शन देते है. जब हम जल्दी में कुछ करते है तो लगता है कि हम बिजी है और हमारा बिज़ी होना ही हमें इंपोर्टेंट फील कराता है. ये हमें वेलिडेट करता है पर साथ ही लाइफ की कुछ वेल्यूएबल चीजों से भी दूर करता है.
टाइम मैनेजमेंट मेट्रिक्स (Time Management Metrics)
तया आप किसी फड को ये बोलते वक्त गिली फील करते हो कि सॉरी में मिलना तो चाहता हूँ पर मेरा एक अरजेंट प्रोजेक्ट है? या शायद आप खुद को ये बोलकर मना लेते हो" एक्सरसाइज़ से भी ज्यादा और इम्पोटेंट काम पड़े है". आप शायद सोचते होगे" वेल, कम से कम मैंने कुछ किया तो सही?
लेकिन ऐसा नही है. आप बस उन चीजों को टाइम दे रहे हो जो आपके लिए असल में वैल्यूएबल है ही नही. हर काम हमेशा अर्जेसी में करने से आप उन चीजों को मिस कर रहे हो जो लाइफ में बेहद जरूरी है. आप खुद को इतना बिज़ी कर लेते हो कि ये सोचने की भी फुसर्त नही मिलती कि आपके लिए इम्पोर्टेट है और क्या नही.
कौन सा काम इम्पोर्टेंट है (What is Really Important?)
तो फिर आप ही बताओ आपकी हेल्थ या आपकी फेमिली से बढ़कर कौन सा काम इम्पोर्टेंट है? और सच जानकर आप हैरान रह जाओगे. असल में जो चीजें आपके लिए इम्योरेंट है, प्रायोरिटी देनी चाहिए. अब जो हम पर बिल्कुल भी प्रेशर नही डालती है, ये वो काम ही जो बिलकुल भी अर्जेंट नहीं लगते हालंकि इन्हें हमे सबसे ज्यादा जैसे कि हेल्दी बॉडी और माइंड के लिए एक्सरसाइज बहुत जरूरी है, आप इसे इम्पोर्टेंट तो समझते हो पर अर्जेंट नहीं, और इसे डिले करते रहते है जब तक कि कोई हेल्थ प्रोब्लम ना आ जाए.
टाइम मैनेजमेंट मेट्रिक्स (Time Management Metrics)
और इम्पोर्टेंस आपकी लाइफ में क्या इम्पेक्ट डालती है, इसे समझने के लिए टाइम मैनेजमेंट मेट्रिक्स पर नजर डालो और देखो कि असल में अर्जेसी हम सबसे ज्यादा किस क्वाड्रेट में टाइम स्पड जो आपको तुरंत करनी है. जैसे कि आपको कस्टमर हैंडल करना है जो गुस्से से चिल्ला रहा है क्वार्ेट : अर्जेंट और इग्पोर्टेंट : ये वो एक्टिविटीज़ : या मसल्स पे मसल्स भेज रहा है.
इस क्वाडेंट में हम काफी टाइम स्पेंड करते है क्योंकि हमे ये इग्पोटेंट और अर्जेंट दोनों लगता है, हम यहाँ तुरत एक्शन लेते है, पर ज़रा खुद से पूछो" जो एक्टिविटी लग रही है? असल में हर काम को अब आप कर रहे हो क्या उसे अभी करना जरूरी है"? क्या आप उसे सिर्फ इसलिए कर रहे हो कि वो अर्जेंट लेने से हम अपना काफी टाइम बेकार में वेस्ट करते है.
बवार्डेट 2 इम्पोर्टेट पर अर्जेंट नही: इसे क्वाड़ेंट ऑफ़ क्वालिटी और पर्सनल लीडरशिप बोलते है. क्याडेट 2 में हम अपनी प्लानिंग करते है और उन पर एक्शन लेते हैं. इसमें हम जो भी एक्टिविटीज़ करते है वो हमारी स्किल्स डेवलप करती है जिससे कि हम खुद को और दूसरों को भी फायदा पहुंचा सके. जैसे किसी ओल्ड फ्रेंड के साथ फिर से रिलेशनशिप मेंटेन करना या किसी इम्पोटेंट मीटिंग की तैयारी करना.
जब हम काफी टाइम स्पेंड करते है तो हम बना देते हैं क्योंकि प्लानिंग और तैयारी करना क्वाड्रेंट 1 का दुश्मन है. ववारडेट 2 हम पर एवशन नहीं लेता बल्कि हम इस पर एक्ट करते है, ये मोस्ट आइडियल क्वाड्रेट है जहाँ हमे अपना मोस्ट ऑफ़ टाइम स्पेंड करना चाहिए क्योंकि ये हमारे कंपास को प्रायोरिटी देता है, यही से हम अपनी लाइफ के गोल्स और पैशन्स पर फोकस करते है.
3 अर्जेट पर इम्पोर्टेट नही; ये क्वाडेंट। की तरह है और इसे क्वारडेट ऑफ़ डिसेप्शन भी बोलते है. हमे लगता है कि कुछ अजेंट है तो हम अपना कंपास पूरा कर रहे है पर ऐसा नही है. इसलिए इसे क्वाडेंट ऑफ़ डिसेप्शन बोलते हैं. हम खुद को बिज़ी शो करने के लिए बेकार के कामो में उलझे रहते है. खुद से पहले हम औरों के गोल्स को प्रायोरिटी देते है. जैसे आप अपने कलीग को प्रोजेक्ट में हेल्प करते हो या फिर अपने बॉस के एक्स्ट्रा काम निपटाते हो.
आपको ये सब करना इम्पोरटेंट लगता है पर इससे आपको कोई फायदा नही होता. वाडेट 4: ना अर्जेंट और ना ही इम्पोर्टेट: इसे वताईट ऑफ़ वेस्ट बोलते है. हम इस क्वाड़ेंट में वो सारी एक्टिविटीज करते है जो हमे रिलेक्स फील कराती है. क्योंकि क्वाडेंट 1 और 3 में ज्यादा टाइम स्पेंड करना काफी स्ट्रेसफूल होता है. इसलिए ये हमारा रिलेक्स जोन है.
वैसे हमे ये भी पता होता है कि इसमें हम टाइम वेस्ट करते है पर हम खुद को रोक नहीं पाते. अब जैसे कि माइंडलेस मूवीज़ या सीरियल्स देखना या ऑफिस के लंच ब्रेक में कलीग्स से देर तक गप्पे मारना.
The Importance Paradigm and the 4th Generation
खुद से पूछो "कौन सी एक्टिविटीज़ मेरी पर्सनल और चर्कलाइफ पर एक सिग्नीफिकेंट रोल प्ले करती है? अगर आप उन्हें ऐनालाइज़ करोगे तो उन्हें कौन से क्वाईंट में में रखोगे? क्योंकि ऑथर के हिसाब से इन्हें क्वाडेंट 2 में होना चाहिए? ये वो एक्टिविटीज़ है जो हमे अजेंट नही लगती पर असल में इंपॉर्टेंट होती है.
ऑथर ने जब यही सवाल कई सारे लोगो से पुछा तो उन्हें जो जवाब मिले वो लगभग इन सेवन थीम्स के अंडर थे. और ये थीम्स है: कम्युनिकेशन, प्रिपरेशन और ऑर्गेनाइजेशन में थोडा और बैटर बनना, अपना और ज्यादा अच्छे से ख्याल रखना, ज्यादा से ज्यादा अपोच्यूनिटीज़ ग्रेब में एडाप्ट करना, पर्सनल डेवलपमेंट और एम्पॉवरमेंट, चवाडेंट 2 की एव्टिविटीज़ में वो चीज़े आती है जिन्हें लोग ज्यादा अर्जें नहीं मानते इसलिए छोड़ देते है.
ये वो काम है जिनका हम पर कोई प्रेशर नहीं होता पर हमे वो करने होते है, तो यही वो काम है जिन्हें हमे सबसे पहले करना चाहिए. इनमें क्या कॉमन है? ये वो चीज़े है जो ह्यूमन फुलफिलमेंट की फाउंडेशन है. क्वाडेंट 2 की चीजों को जल्दबाज़ी में करने की जरूरत नही है. क्योंकि हम सिर्फ अर्जेंट एक्टिविटीज़ को ही इम्पोर्टेट मानते है, ऐसी एक्टिविटीज़ जो हमारे इनर कंपास को मजबूत करे, एक और चीज़ जो इन 7 एक्टिविटीज़ के साथ कॉमन है, वो ये कि आप उन्हें एक्जेक्टली लिस्ट से हटा नही सकते.
अब आप ये तो नहीं बोलोगे कि ओह, अब तो मैं एक ग्रोन अप पर्सन हूँ तो इस एक्टिविटी को अपनी टू-डू लिस्ट से हटाना चाहिए" रियल में ये एक्टिविटीज़ आपको एक बैटर पर्सन बनने में हेल्प करती है. क्योंकि ये आपसे और आपकी लाइफ से जुड़ी हुई है. इसलिए आपको ये सारी एक्टिविटीज़ उतनी ही इम्पोर्टेट समझ के करनी चाहिये.
Human Fulfillment and Inner Compass
अपने क्लॉक्स के तुरंत सेटिसफाई होने पर हमे हमेशा एक फुलफिलमेंट का एहसास होता है. अपने दिनभर के सारे काम निपटाकर किसे रिलेक्स फील नहीं होता? हमारे कम्पास की फुलफिलमेंट अलग चीज़ है. आप इसे तभी फील करते हो जब स्टार्ट करते हो. और जो लाइफ आप जी रहे हो उसी में और ज्यादा सेटिसफिकेशन और लाईट फील करते हो. चीज़ 4थ जेनरेशन या अप्रोच के साथ सही फिट बैठती है.
हालाँकि पहली 3 जेनरेशन ने हमें ज्यादा एफिशिएंट बनने में और अपने क्लॉक पर ज्यादा कंट्रोल हेल्प की थी पर ये हमारे इनर कंपास पर ध्यान नहीं देती थी, आज ज्यादातर लोग अपने वलॉक्स को प्रायोरिटी देकर सेटिंसफाईड नहीं रहते. वो ऐसी लाइफ जीना चाहते है जो मीनिंगफुल हो और कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे दुनिया का फायदा हो. अपने बिजी शेड्यूल्स और नेवरएंडिंग मीटिंग्स के वाबजूद में स ये लोग लाइफ की खूबसूरती को फील करना चाहते है.
तो इसलिए 4थ जेनरेशन एक बैटर क्वालिटी लाइफ के लिए बेलेंस क्रिएट करने पर जोर देती है. हां, आपका क्लॉक आपको अपनी रीस्पोंसेबिलिटीज़ और शेड्यूल्स रीमाइड कराता रहता है, और आप इसे इग्नोर भी नहीं कर सकते, पर आपको अपने कम्पास को भी प्रायोरिटी देनी होगी. आपको रिमांड कराता है कि लाइफ में टू लिसट के अलावा भी और काफी कुछ है.
The Roger's Story
तो चलो, ये स्टोरी चेक करते हैं, रॉजर कुछ टाइम पहले ही नए घर में शिफ्ट हुआ और तो किसी ऐसे एक्सपर्ट को ढूंढ रहा था जो उस जगह को डेकोर कर सके. उसने प्रोफेशनल से कहा कि उसे ऐसा गार्डन चाहिए जिसे ज्यादा मेंटेनेस की जरूरत ना पड़े. एक तो वो काफी बिजी रहता है और दूसरा उसे आए दिन ट्रेवल करना पड़ता है. यानी उसे बिना कोई एफर्ट किए अपने घर के बाहर एक ब्यूटीफुल गार्डन चाहिए था.
तो प्रोफेशनल ने कहा कि ये इम्पॉसिबल है क्योंकि गार्डनर के बिना एक सुंदर गार्डन नही बन सकता. तो हम लोग कई मायनों रॉजर जैसे है. हम एक्स्पैक्ट करते है कि कोई और आकर हमारी लाइफ को बैटर बना देगा. जैसे कोई खेत में सीड्स डालकर भूल जाता है और फिर उम्मीद करता है कि उसे एक अच्छी क्रॉप मिलेगी. पर ऐसा नही है, एक ब्यूटीफुल गार्डन चाहिए तो आपको उसमे सिर्फ सीड्स नहीं डालने बल्कि उन्हें पानी और खाद भी देना है और टाइम-टाइम पर घास-फूस भी क्लीन करनी पड़ेगी.
Applying Principles and Daily Practice
मतलब आपको एफर्ट तो करने ही पड़ेंगे, आपको इस बुक में दिए प्रिंसिपल्स अप्लाई करने होंगे ताकि ये आपको याद रहे और आपकी हैबिट बन जाए. नेक्स चैप्टर आप सीखोगे कि इन कॉन्सेप्ट्स को अपनी डेली प्रेक्टिस में फोलो कैसे करना है.
Putting First Things First
आपको स्टेप्स अप्लाई करने से पहले वीकली वर्कशीट बनानी होगी. चीजों को वीकली प्लान करने से आपको उनको बैटर पर्सपेक्टिव से देख पाओगे. चीजों को डेली बेसिस पर प्लान करने से टनल विज़न की प्रोब्लम होगी जहाँ आप सिर्फ उन टास्क पर फोकस करोगे जो अर्जेंट तो है पर उतने इम्पोर्टेट नहीं है. जबकि वीकली ऑर्गेनाइजिंग आपको कॉन्टेक्स्ट देगी और आप जान सकते हो कि क्या आपके लिए रियली इम्पोरटेंट है और क्या नहीं.
Steps for Weekly Planning
Step | Description |
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Step 1: अपने विज़न और मिशन के साथ कनेक्ट रहो | जब आप नोट करना शुरू करते हो कि नेक्स्ट वीक क्या करना है, तो पहले खुद से पूछ लो कि आपकी लाइफ में सबसे इम्पोर्टेंट क्या है, ऐसा क्या है जो सबसे ज्यादा मैटर करता है? आपकी लाइफ मीनिंगफुल कैसे बनेगी? और जब आपको इन सवालों के जवाब मिल जायेंगे और आपको समझ आएगा कि आपकी लाइफ किस डायरेक्शन में जा रही है, तब आप अपने फ्यूचर गोल्स सेट कर सकते हो और राईट डिसीजन ले सकते हो. ये आपका पर्सनल मिशन स्टेटमेंट है. |
Step 2: अपने रोल्स आईडेंटीफाई करो | आप सिर्फ अपने पेरेंट्स के बच्चे नहीं हो, आप एक सिबलिंग भी हो, एक को-वर्कर भी हो, एक लवर और फ्रेंड भी हो. हम अपने रोल को रिस्पांसिबिलिटी निभाते है. और ह का र हमे अपनी लाइफ के सबसे बड़े दुःख भी इन्ही रिलेशस से मिलते है. कई बार हम अपना एक रोल बढ़िया निभा लेते है जबकि बाकि में हमें पेन मिलता है. जैसे हो सकता है कि आप एक अच्छी मैनेजर तो है पर जरूरी नहीं कि आप अच्छी मदर भी बन पाए. |
Step 3: अपने हर रोल के लिए क्वाडरेंट 2 सेलेक्ट करो | क्योंकि अब आपके पास पहले से ही एक पर्सनल मिशन स्टेटमेंट है और आपको अपने सारे रोल्स भी मालूम है तो आपको खुद से एक सवाल पूछना होगा. कौन सी ऐसी क्रूशियल चीज़ है जो आपको हर वीक अपने हर रोल में करनी है जो आपकी लाइफ को एक ग्रेट वे में इम्पैक्ट करेगी? |
Step 4: वीक के लिए एक डिसीजन मेकिंग फ्रेमवर्क बनाओ | बेशक आपने ऐसे गोल्स सेट कर लिए होंगे जो क्वाडरेंट 2 के हिसाब से फिट बैठ सके तो भी इन्हें क्लियरली समझने में मुश्किल आ सकती है. हम क्वाडरेंट 1 और 3 की एक्टिविटीज़ में इतने बिज़ी रहते है कि क्वाडरेंट 2 की एक्टिविटीज़ के बारे में सोचते रह जाते है. हम प्लान करते है, फिर पोस्टपोन करते है, कई बार तो प्लान कैंसल भी कर देते है क्योंकि ये हमे उतने इम्पोर्टंट नही लगते. |
Step 5: इंटेग्रिटी एक्सरसाइज इन द मोमेंट | अब आपने वीक की थोड़ी बहुत प्लानिंग कर ली है तो जो टास्क पहले आये उस पर फोकस रखो. |
Step 6: इवैल्यूएट करो | यानि आपने पूरे वीक में जो किया उससे आप अपना नेक्स्ट वीक और भी इफेक्टिव वे में प्लान कर सकते हो. |
Conclusion
इस बुक में आपने सीखा कि अपने क्लॉक और कम्पास के हिसाब से अपना टाइम कैसे स्पेंड किया जाए. आपका क्लॉक आपके सारे शेड्यूल्स, डेडलाइन्स और अपोइन्टमेंट्स रीप्रेजेंट करता है. और जहाँ तक कम्पास की बात है तो ये आपकी लाइफ के मिशन्स और गोल्स को रीप्रेजेंट करता है. आपने इस बुक में टाइम मैनेजमेंट पर श्री अप्रोचेस या जेनेरेश्न्स के बारे में सीखा.
एक फोर्थ जेनरेशन की जरूरत है क्योंकि पहले वाली जेरेश्स लोगो के कम्पास से नहीं सिर्फ उनके क्लॉक्स से सेटिसफाई थी. इस बुक में अपने ये सीखा कि हमें अपना टाइम स्पेंड करने से पहले देखना पड़ेगा कि वो टास्क कितना अर्जेंट और इम्पोर्टेट है. क्वाडरेंट 1 में वो एक्टिविटीज़ जो आपको इम्पोर्टेट और अर्जेंट लगती है. क्वाडरेंट 2 में वो एक्टिविटीज़ आती है जो इम्पोर्टेट तो है पर अर्जेंट नही, यही आपका आइडियल क्वाडरेंट है जहाँ आपको ज्यादा टाइम देना चाहिए.
क्वाडरेंट 3 में जो एक्टिविटीज़ होती है वो आपको अर्जेट तो लगती है पर इम्पोर्टेंट नहीं होती. लास्ट में क्वाडरेंट 4 में जो एक्टिविटीज़ है, वो ना तो इम्पोर्ेंट है और ना ही अर्जेंट. बात जब चीजों को प्रायोरिटी देने की आए तो हमेशा अपन कम्पास की सुनो, उन एक्टिविटी के बारे में सोचो जो आपको सेटिसफेक्शन देती है, ऐसा क्या है जो आपकी देल बीइंग के लिए इम्पोर्टेट है? टाइम को गोल्ड इसीलिए बोला गया है क्योकि टाइम बहुत कीमती है, एक बार खोया हुआ टाइम फिर नही आता.
इसलिए इसे उन्ही चीजों पर स्पेंड करो जो आपकी लाइफ में इम्पोर्टेट है. जो आपकी लाइफ को मीनिंग दे, जरा सोचो आप लास्ट टाइम अपने पेरेंट्स के पास कब बैठे थे ? लास्ट टाइम आपने अपने बच्चे के साथ मिलकर मस्ती कब की थी? लास्ट टाइम आपने अपने पार्टनर के साथ दिल खोलकर बात की थी? तो अब टाइम गया है उन चीजों को टाइम देने का आपके लिए रियली में मैटर करती है.
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