EMPRESS by Ruby Lal.

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यह किताब किसके लिए है?

उन व्यक्तियों के लिए जो इतिहास के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं।

-जन व्यक्तियों के लिए जो समाज में महिलाओं के हक के लिए उनके साथ हैं।

उनके लिए भी जो सच्ची घटनाओं से प्रेरणा लेते हैं।

लेखक के बारे में

रूबी लाल इतिहासकार होने के साथ साथ नारीचाची भी हैं। वो अमेरिका में रहती हैं। एटलांटा की एमोरी यूनिवर्सिटी में वो साउथ एशिया के इतिहास के बारे में पताती है। साथ हौ साथ बो जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में वीमन, जेडर शोर सक्सयूालीटी के अध्ययन के कार्यक्रम में प्रोफेसर रह चुकी हैं। उन पिछली किताबों में शामिल है Domesticity and Pewer in The Eary Mughal World (2005).

यह किताब आप को क्यों पढ़नी चाहिए?

कुछ आवाज़ों को नूरजहां के समकालीनों और बाद में कमेंटेटर्स दोनों ने महिलाओं की तरह हाशिए पर रखा है। यह वास्तव में केवल 1970 के दशक में था कि नारीवादी इतिहासकारों ने पहले अपने पुरुष सहयोगियों के इस तथ्य को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया कि उनके काम ने मानवता के आधे हिस्से की उपेक्षा की। उसके लगभग 50 साल बाद महिलाओं को उनका सम्मान मिलना शुरू हुआ, लेकिन उस समय भी कुछ कमी रह गयी थी। और उसी समय रुबी लाल ने नूर जहाँ की कहानी को सबके सामने लाने की कोशिश की।

जिस समय विश्व के एक तरफ एलिजाबेथ के सर पर ताज रखा गया उसी के एक दशक के बाद नूरजहाँ का जन्म हुआ और आगे चल कर नूरजहां ने शासन किया।

अपने शासनकाल में बहुत सी उपलब्धियों के बावजूद पुरुषों के द्वारा, नुरजहा को समाज के सामने एक खराब महिला के रुप में पेश किया गया। और उनके ऊपर लगे उन्ही आरोपी को मिटाने के लिए रुबी लाल ने अपनी इस किताब के जरिये लोगों को नूरजहाँ के शानदार व्यक्तित्व से परिचय करवाना वाहती है।

इस किताब से हम सीखेंगे।

आखिर क्यों नूर जहाँ के पेरेंट्स ने भारत में रहने का फेसला लिया।

नूर जहाँ कैसे मुगल शाशक बनी और कैसे उन्होंने लोगों के विस्वास को जीता।

हम जानेंगे कि आखिर किस तरह से नूर जहां ने उन लोगों की मदद की जो असहाय थे।

नूर जहां को उन माता पिता ने जन्म दिया जिनका की अपने ही देश में उत्पीड़न हो रहा था।

मैहर-उन-निसा याति नूरजहां की कहानी 1577 में शुरू होती है। उनका जन्म सड़क के किनारे खंडहर में उस जगह हुआ था जिसे आज हम अफगानिस्तान के नाम से जानते हैं। उनका जन्म उनके परिवार की कठिनाइयों को साफ दर्शाता था। सफविद रुलर, इस्माइल दुतीय की वजह से उनके परिवार को अपना देश परसिया छोड़ कर जाना पड़ रहा था।

सफविंद रुलर्स पहले से ही अपने देश के आज़ाद लोगों के खिलाफ नहीं थे। सफविंद समुदाय के जनक सूफी मुस्लिम थे। सूफी मुस्लिम हमेशा से ही अपने अच्छे व्यवहार के लिए जाने जाते थे। लेकिन 15वीं सदी के बाद चीजें काफी बदल गईं। धार्मिक अल्पसंख्यकों को उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। मैहर के पिता उन्हीं लोगों में एक थे इसलिए उन्हें अपने ही देश में काफी समस्या के साथ रहना पड़ रहा था। जब इस्माइल इतीय के पूर्वज ताहमस्प (Tahmasp) का निधन हो गया तब देश में स्थिति और खराब हो गई, इसलिए मैहर के पिता ने यह निश्चय किया कि वो और किसी देश में जा कर रहेंगे।

उस समय भारत में मुगल साम्राज्य चल रहा था इसलिए मेहर के पिता को लगा कि भारत में जा कर रहना उनके और उनके परिवार के लिए उचित रहेगा। भारत उस समय बहुत तेज गति से उन्नति कर रहा था और साथ ही साथ भारत में गुगल शाशक राज कर रहे थे। वो बाहर से आने वाले लोगों का दिल खोलकर स्वागत करते थे। और मैहर के पिता के लिए भारत इसलिए भी अच्छी जगह थी क्योंकि यहां से इरान काफी करीब था।

मैहर के पिता का यह फैसला सही साबित हुआ। उनका परिवार आगरा में आ कर बस गया। आगरा उस समय उत्तर भारत में में मुगलों की राजधानी हुआ करती थी। मेहर के पिता गियास ने बहुत जल्द आगरा में अपनी एक अलग पहचान बता ली थी जिसकी वजह से उनको अकबर के दरबार में काम करने के लिए बुलाया गया। गियास को इसके बाद एहसाह हुआ कि अब वो इतने समृद्ध हो चुके हैं कि वो अपनी बेटी मैहर को अच्छी शिक्षा दिला सकते हैं। इतिहासकार बताते है कि ये वहीं समय था जब मेहर पहली दफा जहागीर से मिली थीं। जहागीर जिन्हें आप गुगल ए आज़म फिल्म की वजह से सलीम के नाम से जानते हो, उस समय गद्दी के उतराधिकारी थे और बाद में जहांगीर ने मैहर उन निसा को नूरजहां का नाम दिया। नूरजहां का मतलब होता है दुनिया की रोशनी

जब दोनों पहली बार मिले तब उनमें से किसी को एहसास तक नहीं था कि किस्मत उनके साथ क्या खेल खेलने वाली है है। कुछ समय बाद नूरजहाँ की शादी हो गई और वो अपने पति अली कुली बेग के साथ बंगाल में रहने चली गई और आगरा में जहाँगीर ने गद्दी सम्भाल ली थी। नूरजहा ने एक बेटी को भी जन्म दिया जिसके नाम लाडली था। 1607 में जहागीर ने अपने कुछ सैनिकों को अली को मारने भेजा क्योंकि उनको खबर मिली थी कि वो मुगलों के खिलाफ गद्दारी कर रहा है। अली के मर जाने के बाद नूरजहाँ विधवा हो गई और उन्होंने आगरा वापस जाने का फैसला लिया।

जहांगीर से शादी करने के बाद नूर जहां उनकी सबसे भरोसेमंद और शक्तिशाली विश्वासपात्रों में से एक बन गईं।

1611 में जब नूरजहा 34 साल की थी तब उनकी और जहांगीर की शादी हुई। नूरजहा जहांगीर की 20 वीं पनी थी। जहांगीर के महल में उनकी रानियों के लिए एक अलग ही हिस्सा हुआ करता था लेकिन धीरे धीरे समय के साथ नूरजहां ने खुद को जहागीर के सबसे भरोसेमंद और शक्तिशाली पात्रों में एक बना लिया। 2 साल बाद नूरजहां मुगल कोर्ट के सबसे स्वास प्रथा का हिस्सा बनी। इस प्रथा गें बादशाह को सोना, चांदी और रेशम से खोला जाता था। बाद में तोला हुआ सोना चांदी दान में दे दिया जाता था। इस प्रथा में मुगल साम्राज्य के सबसे जरूरी लोग ही शामिल हुआ करते थे। जहांगीर ने नूरजहां को इस रिचुअल का हिस्सा बनाकर यह साबित कर दिया था कि वो उनकी कितनी करीबी हैं। प्रथा खत्म होने के बाद जहांगीर ने नूरजहां के ऊपर उपहारों की बरसात कर दी। ये शायद मुगल इतिहास में पहली बार हो रहा था।

शादी के तीन साल बाद ही नूरजहा, मंत्रियों की बैठक का हिस्सा भी बनने लगीं। इसके बाद सभी को एहसास होने लगा था कि तुर जहा मुग़ल सम्राट जहागीर की कितनी करीबी है। जहागीर उस समय अस्थमा की बीमारी से जूझ रहे थे। नूर. जहागीर के इतने करीब थीं कि जहांगीर डॉक्टर्स की सलाह तभी मानते थे जब नूरजहा उस सलाह को ठीक मान लेती थीं। सभी के लिए यह बहुत आश्चर्य की बात थी क्योंकि मुगल इतिहास में आजतक किसी भी शाशक ने किसी महिला पर इतना विस्वास नहीं किया था।

नूरजहां सिर्फ विश्वासपात्र नहीं थी बल्कि उनके पास वो सारी ताकतें थी जो एक शाशक के पास होती थी। 1516 में जहांगीर ने नूरजहां को एक राज्य भी गिफ्ट किया। इस राज्य का नाम था रामसर, जो आगरा से 400 किलोमीटर की दूरी पर था। यह चीज़ एक बार फिर जनता के लिए साधारण नहीं थी क्योंकि ऐसी संपत्ति का मालिक होना सोने की खान पर बैठने जैसा था। शाशक बनने से आपको अपने निवासियों से टैक्स एकत्र करने और क्षेत्र में इम्पोर्ट और एक्सपोर्ट पर टैक्स लगाने का अधिकार मिल जाता है। बदले में, शासन के लिए एक शासक वाली भावना की जरूरत होती है और उस समय माना जाता था की ये कौशल सिर्फ पुरुषों के पास होता है। इसलिए यह सबसे लिए आश्चर्य की बात थी कि नूरजहां को उस जगह का शाशक नियुक्त कर दिया गया है।

पूरे मुगल साम्राज्य में नूरजहां के जैसी ताकत किसी और महिला के पास नहीं थी। धीरे-धीरे नूरजहां ने अपने राज्य के सारे काग करने शुरु कर दिए। चह अपराधियों को दंड भी देती थीं, मंत्रियों की बैठक भी लेती थी और भी सारे काम जो एक शासक करता था, उन सभी कामों को नूरजहां पूरी तरह और अच्छी तरीके से करती थीं।

नूरजहां ने अपनी ताकतों का बखूबी इस्तेमाल किया और वह एक समझदार और दयावान शासक के रूप में सबके सामने उभर कर आई।

इतिहास में हमने देखा है कि कई शासक ऐसे थे जिन्होंने अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल किया। लेकिन नूरजहाँ उन सब से विपरीत थी। उन्होंने अपनी ताकत की मदद से अपने राज्य की जनता को हर प्रकार के सुख दिए और इसी काह से बह एक दयावान, बहादुर और समझदार शासक के रुप में स्थापित हुई।

जहांगीर और नूरजहाँ के शासनकाल के सबसे बड़े लेखकों में शामिल फरीख भाकरी ने नूरजहां के शासन करने की विधि को अपने लेख द्वारा सभी के सामने रखा। उन्होंने लिया था कि नूरजहां ने अपने शासनकाल में गरीबों को शिक्षा दी और साथ ही साथ उन्होंने लगभग 500 अनाथ लड़कियों की शादी भी करवाई। उन्होंने लड़कियों की शादी में एक अलग तरह की ड्रेस भी डिजाइन करवाई थी जिसको आज भी भारत में काफी महत्व दिया जाता है। उस डेस का उन्होंने नाम दिया था नुर महली। नूरजहा का उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना नहीं था। जैसा कि हम सभी जानते हैं की पहले के समय में कई शाशक ऐसे हुआ करते थे जो कि अपने राज्य के गरीबों से टेक्स वसूल

कर काफी पैसा कमाते थे। लेकिन नूरजहां ऐसी बिल्कुल नहीं थी। अगर किसी को भी राज्य में पैसे की आवश्यकता होती थी तो वह बिना झिझक महल में जाकर अपनी बात रख सकता था और नूरजहां की हसी बात से लोग काफी प्रभावित थे और उन्हें पसंद भी करने लगे थे।

नूर जहाँ दयावान और समझदार होने के साथ साथ काफी बहादुर भी थीं। राइफल चलाने में उनका को सानी नहीं था। मुल शाशनकाल के एक महान पेंटर अबुल हसन के द्वारा बनाई गई नूर जहां की एक तस्वीर उनके बहादुर होने का परिचय देती है। उस तस्वीर में नूर जहाँ ने पगड़ी पहनी है जोकि उस समय केवल पुरुष ही पहनते थे और उन के हाथ में एक गोल्डन राइफल भी है। यह बहुत ही ताकतवर चित्र है।

जहांगीर का बेटा शाहजहाँ, नूर जहां का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी बना और उसने बाद में नूर जहां को किनारे भी किया।

जहांगीर और उनके साथ साथ लोगों को भी लगता था कि शाहजहा आगे चलकर मुगल साम्राज्य को सभालेंगे। पहले तो नूरजहां और शाहजहां के बीच संबंध काफी अच्छे थे, लेकिन बाद में उसमें दरार पड़ गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ?

नूरजहां और शाहजहां के बीच संबंध दो वजहों से स्वराब हुए। सबसे पहली बजह तो यह थी कि शाहजहां बहुत जल्द राजगद्दी को पाना चाहते थे और दूसरी वजह थी नूरजहां की भांजी जिनसे कि शाहजहां को काफी लगाव था और बाद में उन्हीं के लिए शाहजहां ने ताजमहल जैसी शानदार इमारत को बनवाया। लेकिन हुआ यूं कि नूरजहां को लगता था कि उनकी बेटी लाडली तभी रानी बन पाएगो जब उसकी शादी जहांगीर के बेटे से होगी। इसलिए उन्होंने जहांगीर के एक बेटे से अपनी बेटी लाडली की शादी करवा दी।

यह बात शाहजहाँ को बिल्कुल पसंद नहीं आई और इस बात ने नूरजहाँ और शाहजहाँ के बीच संबंध बिल्कुल स्वराब कर दिए।

बात तब और ज्यादा बिगड़ गयी जब 1622 में शाहजहा ने अपने पिता को मारकर राजगद्दी को हड़पने की कोशिश की। लेकिन उनका प्लान असफल रहा। बाद में उन्होंने खत लिखकर जहांगीर से माफी मांगी, उन्हें माफ कर दिया गया।

4 साल बाद जहांगीर को उनके ही सलाहकार माहभर ने बन्दी बना लिया। उनको छुड़ाने के लिए नूरजहां ने हाथी पर सवार हो कर शानदार तरीके से युद्ध लड़ा और उन्हें बचा कर ले भाई। लेकिन उसके बाद जहांगीर ज्यादा दिन तक सांस नहीं ले सके और अपनी अस्थमा की बीमारी के कारण 1627 में उन्होंने प्राण त्याग दिए। जहांगीर के मरने के बाद सत्ता शाहजहाँ के हाथ में भा गयी।

जहांगीर के मरने के बाद नूरजहा काफी अकेली हो गयी थी। उनके सारे साथियों ने भी उनका साथ छोड़ दिया था। इसीलिए वह लाहौर, पाकिस्तान चली गयी और वहां पर उन्होंने सामाजिक कार्यों में समय देना शुरू किया।

नूरजहां का आखिरी सराहनीय कार्य यह था कि उन्होंने अपने पति जहांगीर के लिए समाधि बनवाई थी। हालांकि आजकल लोग उस इमारत को शाहजहां का बनवाया हुआ मानते हैं, परंतु उस समय नूरजहां ने ही उसका कंस्ट्रक्शन और डिजाइन तैयार किया था। यह इमारत बहुत ही ज्यादा खूबसूरत है। इससे मिलती जुलती दुनिया में सिर्फ एक ही इमारत है और वो है नूरजहां का मकबरा। इस मकबरे को नूरजहा से 1745 में अपनी मौत से पहले बनवाया था।

कई लोगों ने नूरजहाँ की प्रतिभा से खतरा महसूस किया और उनकी उपलब्धियों को कम करने की कोशिश की, लेकिन आज भी नूरजहां का नाम अमर है।

इसके साथ ही हम नूरजहां की कहानी के अंत में आते है। नूरजहाँ के जैसी महिला, मुगल शासन में कभी दोबारा नहीं हुई। लोग उनकी प्रतिभा से इतने जलने लगे थे कि उन्होंने उनका नामोनिशान मिटाने की कोशिश की। और इसकी शुरुआत की खुद शाहजहा ने। सबसे पहले तो शाहजहाँ ने उन सिक्कों का चलन बंद कर दिया जिस पर नूरजहा की तस्वीर हुआ करती थी।

लोगों ने भी शाहजहाँ का अनुसरण किया। पीटर वैन डेन ब्रोके, एक डच कपड़े के व्यापारी को ही ले लीजिए, वो नूरजहाँ के जीवनकाल के दौरान डच ईस्ट इंडिया कंपनी में काम करता था। नूरजहां इतनी पॉपुलर हो चुकी थीं कि ब्रोके ने जलन के कारण दावा किया, कि नूरजहा अपने पति जहांगीर के लिए इग्स और शराब का इतजाम करवाती हैं।

बल्कि नूरजहां का स्वभाव इससे बिल्कुल अलग था। जब उन्हें पता वला था कि जहांगीर अस्थमा की समस्या से जूझ रहे हैं तब उन्होंने उनकी सेहत पर अलग से ध्यान देना शुरू किया। उन्होंने शराब को उनसे दूर रखा। जहांगीर को शराब काफी पसंद थी, लेकिन इसके बावजूद नूरजहां ने उन्हें उससे वंचिंत रखा क्योंकि उनको पता था कि अगर जहांगीर शराब का सेवन करेंगे तो उनकी तबियत और ज्यादा बिंगड़ जाएगी।

लोग नूरजहां की कितनी बुराई कर लें, लेकिन सबको पता है वो बहुत कामयाब महिला थीं। इस बात को तो हम सभी जानते हैं कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज के लिए ताजमहल जैसी शानदार इमारत की नीव रखी। लेकिन क्या आप लोगों को पता है कि ताजमहल जैसी ही एक इमारत नूरजहाँ ने भी अपने माता पिता के मकबरे के रूप में तैयार करवाई थी। परन्तु शाहजहां ने ताजमहल को प्यार की निशानी के तौर पर पेश किया, इसलिए यह ज्यादा प्रसिद्ध हुआ।

नूरजहां केवल एबिलिटी के लिए फेमस नहीं थी अपनी बहादुरी के लिए जाती थी। जैसा हमने पढ़ा कि उन्होंने जहांगीर की रक्षा की। ऐसी ही बहादुरी की मिसाल उन्होंने तब पेश की जब उन्होंने एक ही शॉट से चीते को मार दिया था। नूरजहाँ हाथी की सवारी करती थीं। वह युद्ध में भी हाथी का ही इस्तेमाल करती थी।

लोगों ने वाहे जितनी कोशिश की हो कि वो नूरजहा को एक खराब महिला के रूप में सभी के सामने पेश करें, लेकिन आज भी नुरजहा पुरे विश्व की महिलाओं के लिए एक मिसाल के तौर पर जानी जाती हैं।

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