DRIVE by Daniel H.Pink.

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About Book

क्या आपको अपने काम में बोरियत होती है? क्या आप अपनी जॉब से सेटिसफाईड नहीं है ? अगर जवाब हाँ है तो ये बुक आपको मोटिवेशन देने के काम आएगी. इस बुक से आपको पता चलेगा कि रीवार्ड्स और पनिशमेंट का कांसेप्ट अब उतना इफेक्टिव नहीं रहा जितना कि पहले था. अब लोग ऑटोनोमी और सेंस ऑफ़ फुलफिलमेंट के लिए काम करते है. ये बुक हमे ये भी बताती है कि अपने काम को एन्जॉय करने में जो ख़ुशी और सेटिसफेक्शन मिलता है वो किसी भी रीवार्ड से बढकर है.

ये समरी किस किसको पढनी चाहिए? Who will learn from this summary?

मैनेजर्स और एम्प्लोईज़

हर किसी को जिसे अपनी जॉब में मोटिवेशन चाहिए

ऑथर के बारे में

डेनियल पिंक एक बेस्ट सेलिंग ऑथर है, उन्होंने बिजनेस और ह्यूमन बिहेवियर पर कई सारी बुक्स लिखी है और वो नेशनल जियोग्राफिक टीवी शो” क्राउड कण्ट्रोल” के होस्ट और को-प्रोड्यूसर दोनों है. डेनियल पिंक के आर्टिकल्स और एसेज न्यू यॉर्क टाइम्स और हार्वर्ड बिजनेस रीव्यू जैसे बड़े-बड़े पब्लिकेशंस में पब्लिश रेगुलर पब्लिश होते है.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

आपको बिस्तर से उठने के लिए क्या मोटिवेट करता है? क्या आप अपनी लाइफ के गोल्स खुद डिसाइड करते हो या कोई और आपके लिए डिसीजन लेता है? क्या आप कोई काम सिर्फ इसलिए करते हो क्योंकि उसे करने के पीछे कोई लालच है? बीते कुछ सालों में बहुत से साइकोलोजिस्ट्स इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे है कि आखिर इन्सान को क्या मोटिवेट करता है, आखिर ऐसी कौन सी चीज़ है जो हमे कुछ करने के लिए इंस्पायर करती है ? और उन्हें इस सवाल के डिफरेंट आंसर्स भी मिले जिनके पीछे डिफरेंट रीज़न्स थे.

बेशक रीजन्स चाहे जो भी हो, हम जिसने हमारे ! इंसान कहीं न कहीं या तो रीवा से या पनिशमेंट से इन्फ्लुयेश रहते है, इसे हम मोटिवेशन 20 बोल सकते है। को भी गाइड किया था । हमें भी कर रहा है.

हालाँकि हमे सिर्फ रीवार्ड्स का ही लालच नहीं होता. हमारे अंदर एक इनर मोटिवेशन भी होती है जो हमे कुछ करने के लिए इंस्पायर करती है और हम इसलिए भी करते है क्योंकि हमे अच्छा लगता है.

इस बुक में आपको वो सारे रीजसं समझ आयेंगे कि हम ना चाहते हुए भी कई बार कोई काम क्यों करने लगते हैं. रीवार्ड्स से हमें खुशी मिलती भी है और नही भी मिलती, और खुद का बॉस बनकर हम फिजिकली और मेंटली और भी बेहतर बन सकते है.

इस बुक को पढ़कर आप भी समझ पाएंगे कि आपको क्या मोटिवेट करता है और आप इसका एडवांटेज कैसे ले सकते हो..

द राइज़ एंड फाल ऑफ़ मोटिवेशन 2.0 (The Rise and Fall of Motvation 2.0)

ऑपरेटिंग सिस्टम” टर्म हर उस प्रोग्राम के लिए यूज़ होती है जिसमें प्रोग्राम को स्मूथली चलाने के लिए इंस्ट्रक्शन दिए जाते है. हालाँकि ये टर्म सिर्फ कप्यूटर्स और गैजेट्स पर ही अप्लाई नहीं होती. हम इंसानों की लाइफ में भी ऑपरेटिंग सिस्टम होता है. सोसाईटी में एक पीसफुल तरीके से जीने के

लिए हमे भी लॉ और गाइडलाइन्स फोलो करने पड़ते हैं,

सबसे पहले हयूमैन के आपरेटिंग सिस्टम यानी माईन्ड में आया था कि motivation 1.0 जिसमें survival से related सिर्फ basic

functions ही थे यानी अगर शिकारी हमारे पीछे है तो भागो और शिकार हमारे सामने है तो पकड़ो और बस किसी तरह से जिन्दा रहो। बाद में इंसान की लाइफ और ज्यादा कॉम्प्लेक्स होती चली तो उसके बिहेवियर मे भी चेंज आता चला गया. हालाँकि आज भी हमारा मेन गोल सर्वाइव करना ही है लेकिन एक और चीज़ जो हमारे नैचर में एड हुई है, वो है ड्राइव. यानी Punishment से बच्चों और रिवार्ड की तरफ जाओ, इसे हम मोटिवेशन 2.0 बोलेंगे. और अभी तक हम अपनी लाइफ मोटिवेशन 2.0 के हिसाब से जी रहे है लेकिन इसके भी अपने कुछ ड्राबैक है. मोटिवेशन 2.0 इस प्रिंसिपल पर बेस्ड है कि हम कोई भी काम पेसे के लिए करते है. लेकिन ये कान्सेप्ट एक दम ठीक नही है। अब आप पूछेगे क्यो?

क्योकि अगर हम सिर्फ पैसों के लिये काम करते तो हमारे पास विकिपिडिया नहीं होता, या कोई भी आपन सोर्स सर्विस नही होती। इस से ये पता चलता पैसो के अलावा भी लोग और चीजो से मोटिवेट होते है।

ओपन सोर्स इनफार्मेशन में कंट्रीब्यूशन करना एक अलग टाइप का रिवार्ड है और ये है इंट्रीसिक मोटिवेशन (intrinsic.motivation). पही वो मोटिवेशन है जो आपको अंदर से ड्राइव लाता है, जैसे कि आप किसी अच्छे काम में अपना कोंट्रीब्यूशन देकर अंदर से अच्छा फील करते हो. जैसे कि आप अपना काम एन्जॉय करते हो और अगर आपके काम से किसी का भला होता है तो आपको खुद पे प्राउड भी फील होता है. हमें लगता है कि कर रहे है जो बेस्ट है और जिससे हमे सबसे ज्यादा पैसा मिल रहा है.-जैसा कि मोटिवेशन 2.0 से कहा जा सकता है. लेकिन

हमेशा ऐसा नहीं होता क्योंकि अक्सर हमारे एक्शन इररेशनल भी होते हैं. अगर मोटिवेशन 2.0 के हिसाब से सोचे तो इंसान सिर्फ पैसे से मोटिवेट होता है. तो फिर क्यों हमे पजल्स सोल्व करना अच्छा लगता है जबकि इससे कोई कमाई नहीं होती ? क्यू लोग घंटो तक कोई music instrument सब इंट्रीन्सिक मोटिवेशन की वजह से होता है, हम बहुत से काम सिर्फ पैसे के लिए नहीं करते बल्कि इसलिए भी करते है क्योंकि उस काम को करने

सि एन्जाय करने के लिये ही प्ले करते है?

के बाद एक फुलफिलमेंट का एहसास होता है. हमे लगता है हमने कुछ अचीव किया. बेशक ये इररेशनल हो सकता है और हमें इससे कोई पैसा नहीं

मिलता लेकिन फिर भी हमें लगता है कि ये हमारे लिए बेस्ट है.

एक और एक्जाम्पल लेते है. कई बार हम अच्छी खासी सेलरी वाली जॉब भी छोड़ देते है. बेशक काम में अच्छा पैसा मिल रहा हो पर अगर सेंस ऑफ़

सेटिसफेक्शन ही ना हो तो क्या फायदा. जिस काम में कोई चेलेंज ना हो उसे करना का मज़ा नही आता. फिर चाहे आप कम सेलरी में कोई ऐसा काम करना पसंद करे जहाँ एक पर्पज जॉब्स होती है. पहली है अल्गोरिथ्मिक यानी जिसमें ज्यादा दिमाग नही लगाना पड़ता बस एक टाईप का काम कोई मोटिवेशन हो. मोटिवेशन की बात करे तो दो टाइप की।

रिपिट होता है जैसे पम्प ऑफरेटर जिसमें सुबह और शाम बस दो बार पानी के लिये पम्प ऑन या ऑफ करना है, और दूसरा टाइप है हयूरिस्टिक यानी

जिसमें हमारी ब्रेन पावर यूज़ होती है. अल्गोरिमिक टास्क में स्टैण्डर्ड इंस्ट्रक्शन होते है कि किसी काम को कैसे करना है, जबकि हयूरिस्टिक टास्क में

आपको दिमाग लगाकर क्रिएटिव आईडियाज़ लाने पड़ते है.

अल्गोरिमिक टास्क यानी जिन टास्क में दिमाग नही लगाना पड़ता उसके लिये रीवार्ड और पनिशमेंट का रुल काम करता है, लेकिन ये उन लोगो पर भी काम नहीं करेगा जो हयूरिस्टिक टास्क करते है यानी जिन्हें अपने काम के लिये ज्यादा ब्रेन यूज़ करना पड़ता है, क्योंकि क्रिएटिविटी को किसी वार्ड का लालच या पनिशमेंट का डर नहीं होता, ह्यूरिस्टिक जॉब करने वाले अपने काम को एन्जॉय करते है. उन्हें अपने काम में पूरी प्रीडम मिलती जिससे उनका क्रिएटविटी लेवल एकदम हाई रहता है, हालाँकि ज्यादातर पोपुलेशन मोटिवेशन 2.0 के हिसाब से काम करती है लेकिन ऐसे लोग भी कम नहीं है जो अपने बॉस खुद है. धीरे-धीरे अब ये टेंड

है जहाँ काम में कोई रुटीन नही है. एम्प्लोईज़ खुद अपनी नज़ी से काम करते है. हयूरिस्टिक टास्क यानी ब्रेन वाले टास्क करने वाले लोगो के बॉस अगर उन्हें अपने तरीके से काम करने दे तो प्रोडक्टीविटी लेवल और भी बढ़ जाएगा. जैसा कि हमने आपको कहा मोटिवेशन 20 के भी अपने कुछ ड्रावैक्स है तो इंसान को क्या चीज़ मोटिवेट करती है, वो हम इस summary के श्रू डिस्कवर करेंगे. इसे हम बोलेंगे मोटिवेशन 3.0 जिसके हिसाब से इंसान रीवाई और पनिशमेंट के रुल से चलता है पर कुछ और भी ऐसी चीज़ है जो उसे मोटिवेट करती है, और ये चीज़ है ड्राइव. ड्राइव एक अपोच्च्यूनिटी है खुद को इम्प्रूव करने और आगे बढ़ने के लिए.

रीजन्स व्हाई कैरट्स एंड स्टिक्स आफ्न डोंट वर्क (Reasons Why Carrots and Sticks Often Don’t Work) जैसा हमने पहले बताया रीवाईस और पनिशमेंट का कांसेप्ट हमेशा गुड या बेड बिहेवियर नही देता. और ये स्पेशली सिर्फ हयूरिस्टिक टास्क पर अप्लाई नहीं होता. बल्कि ये किसी भी टाइप की जॉब पर अप्लाई हो सकता है. मोटिवेशन 2.0 की ये कुछ कमियां है, रीवाईस लोगो को गुड परफोर्मेंस देने के लिए डीमोटिवेट कर सकता अब जैसे कि एक शेफ अपने छुट्टी वाले दिन गरीब लोगो के लिया खाना पकाता है. पर अगर कोई उसे बोले कि तुम्हारी सर्विस के बदले तुम्हे पैसे मिलेंगे तो उसे यही चेरीटी वर्क एक टास्क की तरह लगेगा यानि एकदम बोरिंग, यहाँ तक कि वो demotivate होकर इस काम को छोड़ भी सकता है. यानी चैरिटी वर्क से उसे जो खुशी मिलती थी, में बदल जाने से उसका मोटिवेशन ही खत्म हो गया, ह्यूमन बिहेवियर के र में एक मजेदार बात ये है कि जब कोई काम फन के लिए करते है तो मजा आता है घर अगर उसी काम के पैसे मिले तो अचानक काम बोरिंग लगने लगता है, एक्सटर्नल रीवार्ड जैसे पैसा आपके इटीन्सिक मोटिवेशन को खत्म कर सकता है. याद रहे कि इंट्रीन्सिक मोटिवेशन वो चीज़ है जो आपके अदर से आती है जब आप किसी काम को एन्जॉय करते हो | पैसा मोस्ट कॉमन एक्सटर्नल रीवार्ड है. हालाँकि कई स्टडीज़ में ये बात पूव हुई है कि चाहे कितना भी पैसा ऑफर किया जाए, ये जरूरी नहीं है कि लोगों की परफोर्मेस भी इम्पूच होगी. यही बात चैरिटी एक्टिविटीज़ पर कंपनसेशन पर भी अप्लाई होती है. अगर ब्लड डोनर्स को इस काम के पैसे मिलने में ब्लड डोनेट करने वाले कम हो जायेंगे. लगे तो कुछ ही दिनों में रिवार्ड पर ज्यादा फोकस करने वाले अनएथिकल (galat) एवशन लेने में भी नहीं हिचकते. जैसे एकजाम्पल के लिए कोई स्कूल अपने स्टूडेंट्स को फेक परफोर्मेस रिपोर्ट देकर उन्हें अच्छे कॉलेज में एडमिशन करा दे. एक और एक्जाम्पल है, जब कोई एथलीट ड्रग्स की हेल्प से परफोर्मेस बूस्ट करना पा इससे भी बुरी बात हो सकती है कि लोग रीवार्ड्स के एडिक्ट्स बन सकते है, एक बार आदत लग जाए तो लोग पहले से ज्यादा बड़ा रिवार्ड चाहेंगे. अब ज़रा एक एथलीट का एक्जाम्पल लेते है. मान लो उसे ऑर्गेनाइजर्स से फर्स्ट टाइम $50,000, का रीवार्ड मिला तो अगली बार वो 5100,000 डिमांड करेगा. रीवा का उल्टा असर भी हो सकता है, और ये बात हम मार्क ट्वेन की क्लासिक बुक” द एडवेंचर ऑफ़ टॉम सॉयर” से समझ सकते है. टॉम को उसकी आटी पोली ने घर के बाहर की दीवार पेंट करने का टास्क दिया था. अब टॉम को ये काम करने का ज़रा भी मूड नही था. और जब उसके फ्रेंड बेन उसे बताया कि तो टॉम को जरा भी अच्छा नही लगा, टॉम एक clever बॉय था. तो उसने बेन को बोला कि दिवार पेंट करने का टास्क बड़ा मजेदार है. टॉम की बातो ने बेन को कन्विंस कर दिया कि दिवार पेंट करना वाकई मजेदार काम है. उसने टॉम से रिक्वेस्ट की कि वो उसे भी दिवार पेंट करने दे. और फिर क्या था. टॉम के सारे फेंड्स आ गए और सब बारी-बारी दिवार पेंट करने लगे. और बदले में टॉम ने सबसे कुछ ना कुछ रीवार्ड लिया. कहने का मतलब है कि रीवार्ड्स का आईडिया हमेशा काम नहीं करता. इसमें पांच मिस्टेक्स है. पहला, ये डीमोटिवेट कर सकता है, दूसरा ये परफोर्मेस कम कर सकता है, तीसरा ये क्रियेटीविटी खत्म कर देता है, चौथा, बेड बिहेवियर और पांचवा रीवा एडिक्शन पैदा करता है.

एंड द स्पेशल सर्कमटाँसेस व्हेन दे डू (and the Special Clrcumstances When They Do)

अपनी कमियों के बावजूद मोटिवेशन 2.0 आज भी चल रही है. जो टास्क आपको मिला है अगर वो अल्गोर्थिमिक टाइप हो vaani kof रूटीन जॉब हो तो उसे करने के लिए आपको भी रीवार्ड ही मोटिबेट करेगा. लेकिन ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि अल्गोरिथ्मिक टास्क में ज्यादा दिमाग खपाने की जरूरत नहीं पड़ती. अगर पेमेंट अच्छी है तो बैटर पर्फोर्मस की उम्मीद की जा सकती है,

तो उन टास्क का क्या जहाँ क्रिएटिविटी चाहिए? बॉस ये नहीं बोल सकता कि अगर तुम ये प्रोजेक्ट क्रिएटिव वे में करोगे तो तुम्हें अच्छा बोनस मिलेगा”. एम्प्लोईज को कि उन्हें एप्रिशिएट नही किया जाता तो उनका क्रिएटिव लेवल ऑटोमेटिकली कम हो जाता है. फिर उनका सारा फोकस टास्क से ज्यादा रीवार्ड पर रहेगा.

याद रहे कि रीवार्ड्स कई बार डीमोटिवेट भी कर सकता है. जिसके पास हयूरिस्टिक टास्क है यानी ब्रेन लगाने वाला काम है उसे मोटिवेट करने के लिए ऑटोनोमी को एंकरेज करो, उन्हें अपने तरीके से टास्क करने दो, और अगर आप वाकई में रीवार्ड देना चाहते हो तो एम्प्लोईज़ को काम खत्म कर लेने दो, उसके बाद रीवार्ड दो.

मान लो आप किसी छोटी सी कंपनी के बॉस हो और आपकी कंपनी पोस्टर्स मेल करती है. अब आपके सारे एम्प्लोईज़ के पास अल्गोथ्मिक टास्क है। क्योंकि उन्हें सिर्फ पोस्टर्स को रोल करके मेलिंग ट्यूब्स में डालकर डिलीवरी के लिए भेजना होता है. अब अगर आप उन्हें किसी रीवार्ड का लालच दोगे तो आपके एम्प्लोईज़ पर मोटिवेशन 2.0 का कोई नेगेटिव इफेक्ट नहीं होने वाला उन्हें अपना मोनेटरी रीवाईस मिलेंगा और आपको सबसे गुड परफोर्मेस मिलती रहेगी.

मान लो आप अपने एम्प्लोईज़ के लिए कोई क्रिएटिव टास्क रखना चाहते हो, आप एक कांटेस्ट रखोगे जहाँ सबको खुद का पोस्टर क्रिएट करना है. अब जैसा कि हमने मेंशन किया था, रीवाई के लालच में सब अपने बेस्ट क्रिएटीव वर्क देंगे, पर उन्हें ये मत बोलो कि पोस्टर फिनिश करने के बाद सबको कुछ रीवार्ड मिलेगा. इसके बदले आप उन्हें डिनर करा सकते हो या एक दिन का ऑफ दे सकते हो. तो इस तरह आपके एम्प्लोईज़ रीवार्ड पर नहीं बल्कि अपने टास्क पर ज्यादा फोकस कर करेंगे,

ऑटोनोमी (Autonomy)

मोटिवेशन 20 में ऑटोनोमी एक फॉरेन कांसेप्ट है. इसमें किसी एक के पास रीवार्ड्स या पनिशमेंट का चार्ज होता है. हालाँकि इंसान nature से हमेशा curious रहा है. बचपन में क्या आप किसी चीज़ को लेकर क्यूरियस नहीं होते थे? जो चीज़ आपको समझ ना आये उसे आप खुद एक्सप्लोर करने कोशिश नहीं करते थे ?

मोटिवेशन 2.0 की सेटिंग में अक्सर मैनेजमेंट और ऑटोनोमी मिक्स नहीं होती. लेकिन स्टडीज़ प्रद करती है कि अगर हमारे पास खुद को डायरेक्ट करने की फ्रीडम हो तो बिना थके अपनी बेस्ट प्रोडक्टीविटी दे सकते है, और ख़ासकर ये हमारे साईकोलोजिकल वेल-बीइंग यानी मेंटल स्ट्रैग्ध को भी इनक्रीज कर सकता है. याद रहे कि रिचर्ड रयान और एडवर्ड डेची की सेल्फ डिटरमिनेशन थ्योरी में ऑटोनोमी एक इंसानी जरूरत मानी गयी है. स्कॉट फर्कुहार और माइक केनन-बरुक्स ने भी अपनी टेक कंपनी में चारो चीजों के जरिये ऑटोनोमी को एकरेज किया. ये चार चीज़े है टास्क, टाइम, टेक्नीक और टीम दिन ऐसा रखते है जब एप्लोईज़ अपना काम छोडकर अपनी पसंद का कोई भी काम या प्रोजेक्ट कर सकते है. ये टेक्नीक एम्प्लोईज़ का मोराल बूस्ट करने के अलावा उनकी प्रोडक्टीविटी भी बढ़ाता है.

गुन्थेर कई कंपनी के सीईओ है, उन्होंने अपनी एक कंपनी में आरओडबल्यूई (ROWE) यानी रीजल्ट ओनली वर्क एनवायरमेंट का कांसेप्ट एडाप्ट किया. उन्होंने अपने एप्लोईज़ को फ्रीडम दे रखी थी कि जैसे ही उनका काम खत्म हो वो घर जा सकते थे. इस नए माहौल में एडजस्ट होने में एम्प्लोईज़ को कई हफ्ते लगे व्योंकि आज से पहले उन्हें वर्कप्लेस में इतनी फ्रीडम नहीं मिली थी. कुछ लोग तो जॉब छोडकर भी चले गए क्योंकि उन्हें लग क्योंकि से ओल्ड रूल्स से काम करने की आदत धी जहाँ कोई और उनके मूवमेंट्स कप्ट्रोल करता था.

कुछ टाइम बाद अंधेरे के सारे एम्प्लोईज़ को इस न्यू ऑटोनोमी की आदत पड़ गयी. रिजल्ट ये हुआ कि काम का स्ट्रेस कम हो गया और प्रोडक्टीविटी पहले से बेटर हो गयी. बेशक उनका जो काम था उससे आरओडब्ल्यूई (ROWE) काफी सक्सेसफुल हुआ क्योंकि एम्प्लोईज़ सॉफ्टवेयर डेवलपर और डिजाइनर्स थे. टास्कस मीनिंग क्रिएटिविटी के लिए ऑटोनोमी बहुत इंपॉर्टेंट है. जैसा कि हमने पहले भी मेंशन किया एम्प्लोईज़ पर ऑटोनोमी का बहुत ज्यादा इफेक्ट पड़ता है. रिचर्ड रयान और एडवर्ड डेची (Richard Ryan and Edward Deci) ने अमेरिकन इन्वेस्टमेंट बैंक के एम्लोईज़ पर एक स्टडी की. जिन एम्प्लोईज़ के बॉस ने उन्हें ” ऑटोनोमी सपोर्ट दिया था, वो अपनी जॉब से सेटिसफाईड थे, और इस जॉब सेटिसफेक्शन से उनकी परफोर्मेंस में काफी इम्प्रूवमेंट भी आया था.

मास्टरी (Mastery)

मास्टरी का मतबल है किसी ऐसी चीज में इममूवमेंट लाना जो आपके लिए काफी मायने रखती है. लेकिन आप मास्टरी सिर्फ उसी चीज़ पर पा सकते हो जिसे करने की आपको पूरी फ्रीडम मिले या जिस पर आपका होल्ड हो, जब आप किसी एक्टिविटी में लॉन्ग टाइम तक एंगेज रहते हो तो आप उस काम के मास्टर बन जाते हो.

अपने काम को इतना डूब कर करना कि आपको टाइम और जगह का ख्याल ही ना रहे, यही वो स्टेज है जिसे हम बोलते है “पलो में होना इस स्टेज में आकर आपके और आपके काम के बीच एक परफेक्ट कनेक्शन होता है. “फ्लों वो स्टेट ऑफ़ माइंड है जब कोई रीवार्ड की परवाह किये बगैर अपने काम को दिल से एन्जॉय करता है. उस वक्त आपका पूरा फोकस और होल्ड अपने काम पर रहता है. हंगरी में जब नाज़ी आर्मी का अटैक हुआ तो Mihaly Csikszentrnihalyi और उसकी फेमिली बड़ी मुश्किल से जान बचाते हुए भाग आये. वर्ल्ड वार || के वक्त ऑर्डर्स फोलो करना बड़ा जरूरी होता था वर्ना जान बचाना मुश्किल हो जाता था. अगर Minaly और उसकी फेमिली ऑर्डर्स फोलो करते हुए इटली वाली ट्रेन में नहीं चढ़ते तो शायद नाज़ी उन्हें पकड़कर ले जाते.

हालाँकि Minaly ने अपना बचपन मोटिवेशन 2.0 फोलो करते हुए गुज़ारा था पर जब वो बड़ा हुआ तो उसने गोल सेट किया कि वो अपने काम मे मास्टरी हासिल करके रहेगा. मिहाली अपने सवालों का जवाब तलाशने यूनाईटेड स्टेट्स चला आया. क्योंकि उसे नहीं लगता था कि सिर्फ ऑर्डर्स फोलो करने से या रीवाईस पाकर एक बैटर लाइफ जी जा सकता है. एक बार जब मिहाली ने कार्ल जंग (Carl ung) का लेकचर सुना तो उसे लगा कि शायद उसे अपने सवालों के जवाब मिलने वाले है. साइकोलोजी में

पी.एच.डी की डिग्री लेने वो इस फील्ड में आगे स्टडी करने का कोई क्रिएटिव तरीका सोचने लगा.

फिर धीरे-धीरे मिहाली की पहचान एक रिस्प्केटेड साइकोलोजिस्ट के तौर पर होने लगी. “ऑटोटेलिक एक्सपिरियेंस” (“3utotelic ences”] टर्म उसने ही ईजाद की है जिसके हिसाब से किसी भी एक्टिविटी को करने का एक ही गोल होना चाहिए कि हम उस एक्टिविटी को experie

एन्जॉय करे. तो जब कोई किसी काम को इतने दिल लगाकर करने लगता है तो वो एक ट्रांस जैसी स्टेट में पहुँच जाता है और उसे टाइम का पता ही नहीं चलता, उसका सारा फोकस सिर्फ और सिर्फ अपनी पोर्मस पर रहता है. मिहाली ने ये “ऑटोटेलिक एक्सपीरिएस” महान पेंटर्स और म्यूजिशियंस के अदर देखी थी.

हालाँकि ऑटोटेलिक एक्सपिरियस होने के बाद उसे रीकोर्ड करने से उसका मैजिक समझ नहीं आएगा. इसलिए मिहाली ने एक method डेवलप की जिसे उन्होंने एक्सपीरिएंस सैंपलिंग मेथड नाम दिया. उन्होंने दिनभर में कई लोगो को कांटेक्ट किया और उनसे पूछने के बाद कि वो कैसे है और क्या कर रहे वगैरह एक पेपर में लिखते गए. इन रीकोर्डिंग्स से मिहाली को लोगो के स्टेट ऑफ़ फ्लो जानने में हेल्प hui जिससे उन्हें पता चल सका कि कौन, कब किस एक्टिविटी को सबसे ज्यादा एन्जॉय कर रहा था और वो भी बिना किसी रीवार्ड्स के लालच में.

कनक्ल्यू जन (Conclusion)

इस बुक में आपने मोटिवेशन की ओल्ड थ्योरी पढ़ी motivation 1.0 जिसमें हम सिर्फ अपने को जिन्दा रखने के बारे में सोचते है। Motivation 2.0 जिसमें हम रिवार्ड की तरफ भागते है और पनीसमेन्ट से दूर भागते हैं। Motivation 3.0 जिसमें हमे ड्राईव आती है यानी हम काम को enjoy करने के लिये करते है ना कि पैसो के लिये।

फिर हमने देखा कि एल्गोरिदिभिक टास्कस यानी बिना दिमाग वाला कामो के लिये लिए motivation 20 अप्लाई होता है जबकि हयूरिस्टिक यानी ब्रेन और क्रियेटिव कामो के लिये motivation 3.0 apply होता है।

टास्क

इस summary में आपने कांसेप्ट ऑफ़ फ्लो के बारे में पढ़ा है यानी कि जब आप रीवार्ड्स के लिए काम नहीं करते बल्कि आप खुद उस एक्टिविटी को एन्जॉय करते हो. तो सोचो अगर आप अपने काम में कांसेप्ट ऑफ़ फ्लो अप्लाई कर सको तो कितना मज़ा आएगा? आप अपनी हाई क्वालिटी परफोर्मेंस देते जाओगे और टाइम कैसे बीता पता भी नही चलेगा. अभी जो जॉब आपके पास है, उसमे रीवार्ड की उम्मीद करने के बजाए अपनी स्किल्स इम्यूब करने पर फोकस करो. अगर इसी तरह लगातार हार्ड वर्क करते रहे तो अपने काम में एबिलिटी और कण्ट्रोल हासिल कर लोगे, एक्सीलेंस को अपना गोल बनाओगे तो सक्सेस खुद पीछे-पीछे आएगी.

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