DIGITAL MINIMALISM by Cal Newport.

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Digital Minimalism

Digital Minimalism Book Summary

क्या आप ज़्यादातर वक़्त अपने स्मार्टफ़ोन से चिपके रहते हैं? क्या कुछ समय के लिए अपने notification को चेक ना करने से आपको एक कमी सी लगती है? क्या आप उन लोगों में से हैं जो सोशल मीडिया के बिना नहीं रह सकते? अगर हाँ, तो ये बुक आपके लिए है. Digital Minimalism आपको ये एहसास दिलाएगी कि आप अपना कितना समय और अटेंशन स्मार्टफ़ोन में लगा रहे हैं. आप समझ पाएँगे कि आपके करीबी रिश्तों, प्रोडक्टिविटी और मेंटल हेल्थ पर आपकी हद से ज़्यादा सोशल मीडिया इस्तेमाल करने की आदत का क्या असर हो रहा है.

यह समरी किसे पढ़नी चाहिए?

  • teenagers, हाई स्कूल और कॉलेज स्टूडेंट्स
  • माता-पिता
  • सॉफ्टवेर इंजिनियर
  • यंग प्रोफेशनल्स

ऑथर के बारे में

कैल न्यूपोर्ट एक प्रोफेसर, ब्लॉगर और ऑथर हैं. उन्होंने MIT से कंप्यूटर साइंस में पीएचडी की है. कैल ने 6 किताबें लिखी हैं जिनमें उनकी बेस्ट सेलर किताबें "Deep Work" और "Digital Minimalism" शामिल हैं. वो Study Hacks नाम का एक popular ब्लॉग भी चलाते हैं जो academic और प्रोफेशनल सक्सेस हासिल करने पर फोकस करता है.

इंट्रोडक्शन

तो यहाँ आपको सबसे पहले ये जानना ज़रूरी है कि Facebook, Google और दूसरी टेक कंपनियां चाहती हैं कि आप अपना ज्यादा से ज़्यादा समय स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने में बिताएं. सोशल मीडिया प्लेटफार्म, तरह-तरह के app और मोबाइल गेम्स को बनाया ही इस तरह जाता है कि वो आपका ध्यान अपनी ओर खींच सके और उन्हें यूज करने के लिए आपको मजबूर कर दे. देखा जाए तो असल में इसमें आपकी गलती नहीं है कि स्मार्टफ़ोन के इस एडिक्शन में आप ख़ुद पर कंट्रोल नहीं रख पाते. सच्चाई ये है कि टेक कंपनियां जिनके पीछे उनके इन्वेस्टर्स और advertisers का सपोर्ट होता है, वो जानबूझकर ऐसे प्रोडक्ट बनाते हैं जो आपको attract कर अपने प्रोडक्ट को यूज करने के लिए मजबूर कर देती है. प्रोडक्ट काफ़ी आसान और यूजर फ्रेंडली होते हैं और धीरे-धीरे आपको अपने स्मार्टफ़ोन की लत लग जाती है. कैल इसे अटेंशन इकॉनमी कहते हैं.

क्या आप जानते हैं?

बिंदु विवरण
Attention Economy एक प्रणाली जहाँ कंपनियां लोगों के ध्यान को आकर्षित करने के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।
Intermittent Positive Reinforcement बिना चेतावनी के सकारात्मक प्रतिक्रिया देना, जैसे social media likes।

इस बुक में आप सीखेंगे कि कैसे टेक कंपनियां सोशल मीडिया और app के लिए इंसान की बेसिक प्रवृत्ति यानी ह्यूमन इंस्टिक्ट पर हमला करती है ताकि आपको इस नशे का आदि बनाया जा सके.

डिजिटल मिनिमलिज्म

डिजिटल मिनिमलिज्म एक मूवमेंट है जिसका मकसद है कि आप अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल कैसे और कब करते हैं, इसके बारे में आपको ज़्यादा अवेयर करना. अगर आप एक डिजिटल मिनिमलिस्ट बन जाते हैं तो आपके टाइम और अटेंशन का रिमोट आपके हाथों में होगा नाकि आप उनके कंट्रोल में होंगे.

ये बुक आपको डिजिटल सफ़ाई करना सिखाएगी ताकि आप कचरे से दूर रह सकें. इसे digital declutter कहते हैं, स्मार्टफ़ोन के एडिक्शन को रोकने के लिए इस बुक के ऑथर कैल ने 3 स्टेप्स की technique बताई है. इसके साथ-साथ आप उन लोगों की कहानियां भी सुनेंगे जिन्होंने इस technique को अपनाकर अपनी जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव महसूस किया है. तो आइए सबसे पहले आपको सबूत दें कि ये अटेशन इकॉनमी कितनी खतरनाक हो गई है. अगर मॉडर्न टेक्नोलॉजी सिर्फ एक टूल है तो ऐसा क्यों लगता है कि टेक के ये दिग्गज हमारा इस्तेमाल कर रहे हैं?

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जब स्टीव जॉब्स ने 2007 में iphone लॉन्च किया था तो उनका मकसद था एक ऐसा मोबाइल डिवाइस बनाना जिसमें ipod और सेल फ़ोन दोनों के features हों. जॉब्स ने कहा कि लोगों को अब म्यूजिक, फ़ोन कॉल और टेक्स्ट messages के लिए अलग-अलग डिवाइस इस्तेमाल करने की ज़रुरत नहीं होगी, शोर्ट में, iphone एक ऐसा ipod होगा जिससे आप कॉल भी कर पाएँगे.

2007 में Iphone का कोई app स्टोर नहीं था, ना instagram पर इंस्टेंट फ़ोटो अपलोड हो जाती थी और नाही अनगिनत सोशल मीडिया notification आते थे, लेकिन पिछले दस सालों में हमारे स्मार्टफोन की लत कंट्रोल से बाहर हो गई है. अब तो आलम ये है कि हम व्स की लाइन में इंतज़ार करते स समय, दोस्तों के साथ डिनर करते वक्त भी notification बिना चेक किए नहीं रह पाते हैं. अब तो हम अपने स्मार्टफ़ोन के बिना ना तो घर से बाहर निकलते हैं और ना अपने दिन की शुरुआत करते हैं,

हर रोज़ एवरेज दो घंटे सोशल मीडिया और इंस्टेंट messaging सर्विस पर खर्च कर देता है. हम पूरा एक घंटा facebook और उसके एक इंसा प्रोडक्ट पर ही बिता देते हैं. इसमें Instagram, Messenger और WhatsApp भी शामिल हैं, कि आपको अपने परिवार और दोस्तों साथ कनेक्ट करने के लिए सोशल मीडिया चाहिए. एक struggling आर्टिस्ट को अब आप कहेंगे कि instagram ताकि वो अपना आर्ट और टैलेंट पोस्ट कर उसे डिस्प्ले कर सके. एक आदमी जो विदेश में काम कर रहा है उसे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ टच में रहने के लिए whatsapp की ज़रुरत पड़ती है.

बात समझने की ज़रुरत है कि हमें स्मार्टफ़ोन की लत लगाने के लिए बिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया जाता है, ये सोशल मीडिया और हमें इस बात को app हमारे ऊपर हावी होने लगे हैं. हम इन्हें नहीं चला रहे बल्कि ये हमें चला रहे हैं.

ट्रिस्टन हैरिस एक स्टार्ट-अप के फाउंडर हैं जो पहले Google के इंजीनियर रह चुके हैं. उन्होंने बताया कि एक स्मार्टफ़ोन बिलकुल कसीनो में स्लॉट मशीन की तरह होता है. जब भी कोई notification आता है तो हमें ये जानने की इच्छा रहती है कि हमें कितने like मिले, या कौन सी नई इमेज और विडियो अपलोड हुई है जिसे हम देख सकते हैं.

ये बिलकुल एक स्लॉट मशीन की तरह है क्योंकि ये unpredictable है. हर एक पोस्ट एक जुए की तरह है, हमें पता नहीं होता कि हमें पॉजिटिव comments मिलेंगे या नेगेटिव, स्लॉट मशीन की तरह ही हम इसमें कभी जीतते हैं तो कभी हार जाते हैं. नोटिस करें कि हमें YouTube, Instagram या Twitter account पर मिले फ़ीड हमेशा पसंद नहीं आते. लेकिन जब हमें पसंद किया जाता है तो हम और भी ज्यादा ब्राउज़ करने लगते हैं.

ट्रिस्टन ने यह भी कहा कि अलग-अलग टेक्निक्स का एक पूरा सेट है जो टेक कंपनियां इस्तेमाल करती हैं ताकि वे हमारा ध्यान लंबे समय तक स्मार्टफ़ोन पर बनाए रख सकें, ताकि वे हमें और ज़्यादा ad दिखाकर ललचा सके और हमारे खरीदने के डिसिशन को इन्फ्लुएस कर सकें. Google और दूसरी टेक कंपनियां हमारे ब्रेन में जड़ तक घुसने की होड़ में लगे हुए हैं. फिर एक ऐसा बक़्त आया जब ट्रिस्टन इसे और बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी. उसके बाद उन्होंने "Time Well Spent" नाम के एक non-profit organization की शुरुआत की. ट्रिस्टन ये अवेयरनेस फैलाना चाहते हैं कि टेक्नोलॉजी को हमारी मदद करनी चाहिए, उसे हमें सर्व करना चाहिए एडवरटाइजिंग को नहीं. इस आर्गेनाइजेशन के जरिए ट्रिस्टन लोगों को आगाह करना चाहते हैं कि हमारे दिमाग को हाईजैक करने के लिए ये टेक कंपनियां किसी भी हद तक जा सकती हैं.

समाप्ति विचार

आइए पहले इस शब्द एडिक्शन को समझते हैं. ये एक ऐसी कंडीशन है जिसमें एक इंसान किसी substance का इस्तेमाल करता जो उसे खुशी और सुकून देती है, इसकी इच्छा उस substance की लालसा बढ़ा देती है और ये जानने के बावजूद कि उसके नतीजे बुरे होंगे वो इंसान खुद को रोक नहीं पाता. अब इस substance में क्या क्या आता है - शराब, ड्रग्स, सिगरेट, इन चीज़ों में एक्टिव कंपाउंड होते हैं जो आपके ब्रेन में कुछ ना कुछ बदलाव करते हैं.

अब जब आप गौर से सोचेंगे तो आपको पता चलेगा कि एडिव्टिव behaviour जैसे जुआ या पोर्न देखने की लत की तरह ही हर बक्रत अपने फोन को चेक करना भी बिलकुल एक एडिक्शन की तरह है. अब facebook यूज़ नहीं करने से आपको withdrawal symptom से नहीं जूझना पड़ेगा. जब आप किसी नशे की लत को छोड़ने की कोशिश करते हैं जो बॉडी पर उसके लक्षण दिखने लगते हैं जैसे बेचैनी, muscle में दर्द, नींद ना आना वगैरह, लेकिन आपको ये बात समझनी होगी कि सोशल मीडिया बनाया ही इस तरह गया है कि ये एक नशे की लत में बदल जाती है. यहाँ दो तरीके हैं जिससे टेक कंपनियां ऐसा करती हैं. पहला है intermittent positive reinforcement यानी बीच बीच में आपको पोस्तिवे फ़ीडबैक देना और दूसरा है सोशल अप्रूवल की इच्छा,

जब भी हमें कोई इनाम मिलता है तो हमारे ब्रेन में डोपामाइन नाम का न्यूरोकेमिकल रिलीज़ होता है. ये हमें खुश और संतुष्ट महसूस कराता है. ये हमें फिर से उसी एक्टिविटी को रिपीट करने के लिए कहता है. अब क्या आप जानते हैं कि जब अचानक से हमें कोई इनाम मिलता है तो हमारे ब्रेन में और भी ज्यादा डोपामाइन रिलीज़ होता है? इस तरह जब रिवॉर्ड unpredictable होता है तो ये हमें बहुत ज़्यादा excited कर देता है और हमें उस एक्टिविटी की और भी ज्यादा लत लगा देता है.

Intermittent positive reinforcement को आसान शब्दों में irregular positive feedback कहा जा सकता है. स्लॉट मशीन के साथ स्मार्टफ़ोन का comparison इसी बारे में था. कई बार कोई फ़ोटो या विडियो पोस्ट करने पर हमें बहुत ज्यादा likes मिलते हैं तो कभी कम. अब इसका असर ऐसा होता है कि हम और भी ज्यादा इमेज या विडियो पोस्ट करने लगते हैं, जो हमें लगता है कि हमारे फ्रेंड्स और followers को कि हम पसंद आएगा, उसके बाद हम अपने स्मार्टफ़ोन पर ज्यादा अटेंशन देने लगते हैं कि हमारे आस पास क्या क्या हो रहा है.

जब आप मौसम चेक करने के लिए किसी न्यूज़पेपर की वेबसाइट पर जाते हैं और आप एक के बाद हैडलाइन ब्राउज करते हुए लंबा वक्त बिता देते हैं तो वो भी Intermittent positive feedback होता है. यहाँ unpredictable रिवॉर्ड ये है कि कभी कभी आपको एक ऐसा आर्टिकल मिल जाता है जो आपमें गहरी भावना पैदा कर देता है जैसे हंसी, गुस्सा, प्यार. ये एक जाल की तरह होता है जो आपको उस वेबसाइट पर ज़्यादा समय बिताने के लिए ललचाता है और जो वक्त आपको घर, स्कूल या किसी काम के लिए लगाना चाहिए था वो आप उस साईट पर बर्बाद कर देते हैं.

Facebook के founding प्रेसिडेंट शॉन पार्कर ने 2017 में एक इवेंट के दौरान एक बाल शेयर की थी. ये उस अटेंशन इंजीनियरिंग के कांसेप्ट के बारे में धा जो facebook और दूसरे सोशल मीडिया कंपनियां फॉलो कर रही थीं. शॉन ने कहा, "इन सॉपटवेर एप्लीकेशन को बनाने का सेंट्रल

Digital Minimalism

सोशल मीडिया का प्रभाव और डिजिटल मिनिमलिज्म

आईडिया था जितना पॉसिबल हो सके users का टाइम और अटेंशन इन एप्लीकेशन पर बनाए रखना. जिसका मतलब है कि हमें users को एक like, पॉजिटिव कमेंट जैसी चीज़ों के ज़रिए बीच-बीच में थोड़े से डोपामाइन का किक देने की ज़रुरत है. अब हम इंसान के स्वाभाव के दूसरे हिस्से में जाते हैं जिसका टेक कंपनियां फ़ायदा उठाती हैं जो हैं सोशल अप्रूवल की इच्छा. जब आप एक फ़ोटो अपलोड करते हैं तो Facebook तुरंत पहचान लेता है कि उस फ़ोटो में आपके साथ आपके कौन कौन से दोस्त हैं, बस कुछ क्लिक्स के ज़रिए आप सभी को टैग कर लेते हैं.

टैगिंग सोशल मीडिया का एक और एडिक्टिव फैक्टर है. सच्चाई यह है कि complex फेस रिकग्निशन एल्गोरिदम को फेसबुक पर प्रोग्राम किया जाता है ताकि आपकी फ़ोटो में लोगों को automatically नाम दिया जा सके और बेशक आपके दोस्त टैग किए जाने पर वो कमाल की डोपामाइन रिलीज़ को महसूस करते हैं. जैसा कि शॉन ने कहा ये एक Social-validation feedback loop है यानी आप अपने दोस्तों को टैग करते हैं या उसके पोस्ट को like करते हैं और वो भी बदले में बिलकुल ऐसा ही करते हैं. ये इंसान की बेसिक जरूरत होती है कि वो अपनाया जाना, पसंद किया जाना चाहता है. तो अब आप देख सकते हैं कि सोशल मीडिया कैसे हमारे इस अपनाए जाने की इच्छा को टारगेट करता है.

डिजिटल डीक्लटर और डिजिटल मिनिमलिज्म

अब अगर ये हमें फांसने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं तो हम इससे कैसे बच सकते हैं? हम अपना अटेंशन और समय वापस उन लोगों, एक्टिविटीज और वेल्यूज पर कैसे लेकर आएं जो असल में हमारे लिए मायने रखते हैं?

आइए पहले डिजिटल निनिमलिज्म को समझते हैं. ये एक फिलोसोफी है जिसमें आप अपने स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल सिर्फ उन गिने चुने कामों के लिए करते हैं जो जिंदगी में सच में आपके लिए मायने रखते हैं और बाकी चीजें आप खुशी-खुशी छोड़ सकते हैं. इसके लिए आपको इस फिलोसोफी की ज़रूरत क्यों है? क्योंकि स्मार्टफ़ोन की लत को छुड़ाने के लिए कोई शोर्ट कट या quick फ़िक्स तरीका नहीं है.

सोशल मीडिया अब हमारे कल्चर का अहम् हिस्सा बन गया है इसलिए आपको इसके जड़ तक जाने की ज़रुरत है. इसके खिलाफ़ आपके जो हथियार हैं वो हैं डिजिटल मिनिमलिज्म और वो वैल्यूज जिनमें आप गहराई से विश्वास करते हैं. कैल कहते हैं कि हमें तेजी से बदलाव की ज़रुरत है. यहाँ Digital Declutter technique के 3 स्टेप्स दिए गए हैं. पहला है, अपने स्मार्टफोन और सोशल मीडिया अकाउंट से एक महीने का ब्रेक लेना. दूसरा है उन एक्टिविटीज को फ़िर से शुरू करना जिन्हें आप ऑफलाइन करना पसंद करते हैं. तीसरा, एक महीने के ब्रेक के बाद एक नए सिरे से शुरुआत करना, ध्यान से सोचें कि आपको किन apps की सच में जरुरत है और आपको उनका इस्तेमाल कैसे करना चाहिए.

डिजिटल डीक्लटर के स्टेप्स

स्टेप विवरण
पहला अपने स्मार्टफोन और सोशल मीडिया अकाउंट से एक महीने का ब्रेक लेना
दूसरा उन एक्टिविटीज को फ़िर से शुरू करना जिन्हें आप ऑफलाइन करना पसंद करते हैं
तीसरा एक महीने के ब्रेक के बाद एक नए सिरे से शुरुआत करना, ध्यान से सोचें कि आपको किन apps की सच में जरुरत है

डिजिटल डीक्लटर: एक चैलेंज

तो क्या आप इस चैलेंज के लिए तैयार हैं? Digital Declutter एक एक्सपेरिमेंट है जो कैल ने अपने ब्लॉग के followers के साथ आज़माया था. उन्होंने उन्हें इन 3 स्टेप्स को फॉलो करने और अपने एक्सपीरियंस को शेयर करने के लिए कहा, इससे कैल को ये पता चला कि Digital Declutter सच में काम करता है. अगर आप इसे ठीक से फॉलो करेंगे तो ये आपके लिए भी बिलकुल काम करेगा. पहला स्टेप स्मार्टफ़ोन और सोशल मीडिया से एक महीने का ब्रेक लें.

अपने फ़ोन से सभी apps को डिलीट कर दें जैसे नेटफ्लिक्स, फेसबुक, शॉपिंग apps वगैरह. अगर आपको अपने लैपटॉप या टीवी पर विडियो गेम्स खेलने लत है तो उसे भी डिलीट कर दें क्योंकि वो भी ऑष्शनल टेक्नोलॉजी की category में आता है. हाँ, ऑप्शनल क्योंकि अगर आप इन apps को डिलीट कर देंगे तब भी आपके करियर या आपकी जिंदगी में भूचाल नहीं आ जाएगा. अगर आपको अपने साथियों से जुड़ने के लिए Asana या अपने बॉस से ईमेल रिसीव करने के लिए gmail चाहिए तो आप उसे रख सकते हैं. लेकिन उन apps से छुटकारा पाएं जिनका असल में कोई यूज़ नहीं है जैसे Tiktok और Snapchat.

अपने ऐप्स का यूज़ कैसे करें?

एक लिस्ट बनाना भी बेहद ज़रूरी है कि आप अपने apps को कब और कैसे यूज़ करेंगे ताकि आप अपने रूल्स को तोड़ने से बच सकें. एग्ज़ाम्पल के लिए, मैरी एक फ्रीलान्स राइटर जिसका बहुत बड़ा परिवार है और जिसे facebook ग्रुप में चैट करना बहुत पसंद है. इस technique को अपनाना मैरी के लिए काफ़ी मुश्किल था क्योंकि मैरी के पति को काम के सिलसिले में अक्सर ट्रेवल करना पड़ता था और वो दोनो मैसेंजर के ज़रिए बातचीत करते थे, इसलिए मैरी ने सिर्फ अपने पति के मैसेज के लिए notification को ऑन रखा और बाकी सभी के लिए notification बंद कर दिया.

अब आप कहेंगे कि आपको अपने उन दोस्तों से टच में रहने के लिए Skype की ज़रुरत है जो बाहर रहते हैं, तो यहाँ आपके लिए एक सवाल है. इन लोगों में से कौन आपके सच्चे दोस्त हैं? ऐसा की कुछ बेलारस की एक कॉलेज स्टूडेंट आन्या के साथ हुआ था जो अभी अमेरिका में पढ़ रही है, उसने कहा कि एक महीने के ब्रेक ने उसे एहसास दिलाया कि वो कौन से दोस्त हैं जो सच में उसकी परवाह करते हैं. अगर आपकी दोस्ती सच्ची और बूत है तो यकीनन एक महीना बिना कम्युनिकेशन के भी वो वैसी की वैसी बरकरार रहेगी.

ऑफलाइन एक्टिविटीज का आनंद

आपको उन दोस्तों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने का मौका मिलेगा जिनसे आप ऑफलाइन मिल सकते हैं. अब आप पूछेंगे कि लाइन में इतज़ार करते वक्त क्या करें? अपने असाइनमेंट के रिसर्च के लिए किस चीज़ का इस्तेमाल करें या स्मार्टफ़ोन के बिना आप अपने मोर्निंग एक्सरसाइज रूटीन को ट्रैक कैसे करेंगे? अब यहाँ पर दूसरा स्टेप शुरू होता है. उन एक्टिविटीज को हूँढें जिनको आप ऑफलाइन एन्जॉय कर सकते हैं.

के एक्सपेरिमेंट में जिन लोगों ने हिस्सा लिया था उन्होंने बताया कि जब उन्होंने एक महीने का ब्रेक शुरू किया तो उन्हें बोरियत, चिंता और कुछ ना कुछ ब्राउज करने की बेचैनी महसूस होती थी, हम अपने स्मार्टफोन के जरिए अपने मन को distract करने और एंटरटेनमेंट का इंस्टेंट डोज़ लेने के आदी हो गए हैं. शुरू के हप्ते दो हफ़्ते आपको ऐसी दिक्कत होगी लेकिन अपने रूल्स को ना तोड़े, अगर आप इस पॉइंट पर दोबारा अपने apps को यूज़ करने लगे तो Digital Declutter बिलकुल काम नहीं करेगा.

डिजिटल डीक्लटर की प्रक्रिया

पूरे एक महीने की ज़रुरत इसलिए है क्योंकि ये आपको गहराई से सोचने में मदद करेगा कि आपको अपनी जिंदगी में किन apps की सच में जरुरत है. आइए एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं, 28 साल की मैनेजमेंट कंसलटेंट डारिया ने अपना एक्सपीरियंस शेयर किया, इस technique को फॉलो करने के पहले हफ़्ते के दौरान उसका हाथ बार-बार अपने स्मार्टफोन की ओर जाता था. फिर उसे याद आता कि उसने तो सारे app डिलीट कर दिए थें. अब वो अपने फोन पर सिर्फ मौसम का हाल चेक कर सकती थी. क्योंकि उसे अपना फ़ोन ब्राउज करने की इतनी ज़्यादा इच्छा हो रही थी कि उसने एक घंटे के अंदर चार शहरों का मौसम चेक कर लिया.

डारिया ने कहा कि पहले हफ्ते में फ़ोन यूज़ करने की बहुत इच्छा होती है. लेकिन दो हफ़्तों के बाद ये आदत कमज़ोर पड़ने लगी. अब उसने ऑनलाइन कुछ भी देखने का इंटरेस्ट खो दिया था. उसे एहसास हुआ कि वो सोशल मीडिया का इस्तेमाल किए बिना भी अच्छे से अपना दिन गुज़ार सकती थी. जेम्स दो छोटे बच्चों का पिता था. उसने भी इस technique को आज़माया. अपने एक महीने के ब्रेक में वो अपने परिवार को ज्यादा टाइम दे पाया. उसने महसूस किया कि पहले जब उसके बच्चे उसे कुछ दिखाना चाहते थे तो वो उन पर ध्यान नहीं देता था.

बच्चों के साथ समय बिताना

उसने ये भी कहा जब वो अपने बच्चों को प्लेग्राउंड में ले गया तो वो इकलौता पैरेंट था जो अपने फ़ोन को यूज़ नहीं कर रहा था बल्कि अपने बच्चों पर ध्यान दे रहा था, उनके साथ समय बिता रहा था. अनाइज़ा एक ग्रेजुएट स्टूडेंट थी जिसे हर रात सोने से पहले Reddit ब्राउज़ करने की आदत थी. उसने जब इस technique को अपनाया तो वो लाइब्रेरी से कई किताबें लेकर आई. उस एक महीने में उसने 8 किताबें पढ़ी. अनाइज़ा ने कभी नहीं सोचा था कि वो इतनी किताबें पढ़ सकती थी.

इस technique के काम करने के आपको ऐसी एक्टिविटीज की ज़रुरत होती है जो आपके स्मार्टफोन यूज़ करने की बेचैनी की जगह ले सके. इसके लिए आप अपने cupboard को साफ़ कर सकते हैं, रात को तारों की सुंदरता निहार सकते हैं, जर्नल लिख सकते हैं, पेंट या स्केच कुछ भी कर सकते हैं. आप पाएँगे कि ऑफलाइन की ये दुनिया कितनी खूबसूरत है जिसमें आपको देने के लिए कितना कुछ है.

नए सिरे से शुरुआत

अब जैसे-जैसे आपका एक महीने का ब्रेक खत्म होता है तो तीसरे स्टेप की शुरुआत होती है. आपको ये सोचना होगा कि आप इन apps को अपनी जिंदगी में दोबारा कैसे लाएंगे. इस बात का खास ध्यान रखें कि आपको अपनी पुरानी आदतों को फिर से नहीं दोहराना है. आपको एक नए सिरे से शुरुआत करनी होगी और उन ऑप्शनल टेक्नोलॉजीज को यूज़ करना होगा जो आपके मिनिमम स्टैण्डर्ड को पास कर सके. अपने फ़ोन पर apps को reinstall करने से पहले आपको खुद से तीन सवाल पूछने होंगे.

पहला, क्या ये टेक्नोलॉजी मेरे वैल्यूज को सपोर्ट करती है? एग्जाम्पल के लिए, ट्विटर आपके लिए इतना ज़रूरी नहीं है लेकिन अपनी नन्ही से भतीजी की फोटो देखने के लिए आपको instagram की ज़रुरत होगी. नंबर दो, क्या मेरे लिए ये टेक्नोलॉजी सबसे बेस्ट ऑप्शन है? तो, मान लीजिए कि आप अपने परिवार को बहुत महत्त्व देते हैं. लेकिन क्या इकलौता जरिया है अपने परिवार से टच में रहने का? मुझे यकीन है कि इसका जवाब ना ही होगा. आप महीने में एक बार अपने परिवार instagram के लोगों से मिल सकते हैं, अपनी बातें शेयर कर सकते हैं, साथ खा सकते हैं और उस नन्हीं सी भतीजी का फ़ोटो देखने के बजाय उसे अपनी गोद में लेकर खिला भी सकते हैं.

तीसरा सवाल, मुझे इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए ताकि ये मुझे नुक्सान ना पहुंचाए? अब आप कहेंगे कि मेरे परिवार के कुछ लोग बहुत दूर रहते हैं तो उनसे बातचीत करने के लिए आपको whatsapp तो चाहिए. देखिए, ये अटेंशन इंजीनियरिंग के जाल का एक हिस्सा है. वो बस किसी तरह आपको आपके फ़ोन से चिकाए रखना चाहते हैं, आप जब एक बार सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को खोलेंगे तो वो आपको अपने झांसे में लेने लगेगा.

टेक्नोलॉजी का उपयोग

जैसे, आप सिर्फ अपनी भतीजी का फोटो देखना चाहते थे लेकिन app आपको recommended सेक्शन में और चीजें देखने का लालच देगा, आपको और ad दिखाएगा. इसलिए नंबर तीन का सवाल आपको एक टाइम फिक्स करने के लिए कहता है कि आप अपना स्मार्टफ़ोन कैसे यूज़ करेंगे. एग्जाम्पल के लिए, आपने एक facebook अकाउंट तो खोल लिया है लेकिन आप सिर्फ उन लोगों के दोस्त बनते हैं जिनकी आप असल जिंदगी में परवाह करते हैं. तब आपको अपने फ़ोन में वो app इस्टाल नहीं करना चाहिए. हर रोज़ के बजाय आप सिर्फ हर सैटरडे अपने facebook अकाउंट को चेक कर सकते है.

आइए केल के followers के कुछ और एग्ज़ाम्पल देखते हैं. माइक एक ऐसा आदमी है जो लेटेस्ट न्यूज़ से खुद को हमेशा अपडेटेड रखना चाहता है. लेकिन वो अपने फ़ोन पर न्यूज़ वैबसाइट को ब्राउज़ करने के बजाय रेडियो सुनता है. वो एक कारपेंटर है तो रेडियो सुनते हुए वो अपना काम भी करता जाता है. माइक अब फ़ेक हेडलाइंस के झांसे में भी नहीं आता.

अटेंशन रेजिस्टेंस में शामिल हों

लोना एक डिजिटल एडवरटाइजर है. उसने कहा कि अपने करीबी दोस्तों से चैट करने के लिए उसने हर फ्राइडे रात को एक धंटे का टाइम सेट कर लिया है. हाँ, इलोना इस बात को स्वीकार करती है कि उसके दोस्तों की जिंदगी के अपडेट को शायद वो मिस कर देगी लेकिन ये सही फैसला है क्योंकि वो ज़्यादा शांत महसूस कर रही थी, अब सोशल मीडिया की वजह से उसका ध्यान इतना नहीं भटकता था. ऐबी लन्दन की एक ट्रेवल एजेंट है. उसने अपने फ़ोन पर गूगल ब्राउज़र को बंद कर दिया था.

उसने महसूस किया कि उसे चीज़ के लिए तुरंत जवाब मिलने की जरुरत नहीं है. ऐबी ने ट्रेन के सफ़र के दौरान अपने आईडिया को लिखने के लिए एक नोटबुक भी ख़रीदी. रिबेका एक कॉलेज स्टूडेंट है. उसका कहना था कि टाइम चेक करते वक्त हमेशा उसकी नज़र notification पर पड़ ही जाती थी. इस प्रॉब्लम को सोल्व करने के लिए रिबेका ने wrist watch पहनना शुरू कर दिया. इस तरह वो टाइम चेक करने के बावजूद भी अपनी पढ़ाई पर कंसन्ट्रेट कर सकती थी. इसके साथ-साथ उसने TikTok, Netflix और Twitter भी यूज़ करना बंद कर दिया था.

डिजिटल डीक्लटर का सारांश

आइए Digital Declutter के स्टेप्स को summarize करते पहला स्टेप है, अपने स्मार्टफ़ोन, सोशल मीडिया और दूसरे apps से एक महीने का ब्रेक लेना. दूसरा स्टेप है, उन एक्टिविटीज को करना जिन्हें आप ऑफलाइन कर सकते हैं. तीसरा स्टेप है, जब आप दोबारा सोशल मीडिया से जुड़ें तो उन apps को फ़िल्टर करना जिनकी आपको सच में ज़रुरत है.

app को दोबारा इंस्टाल करने से पहले आपको खुद से तीन सवाल करने होंगे. पहला सवाल, क्या ये app मेरे वैल्यूज को सपोर्ट करता है? दूसरा, क्या इस काम को पूरा करने के लिए ये app सबसे बेस्ट और इकलौता ऑप्शन है? तीसरा, अपने स्मार्टफ़ोन के यूज़ को कंट्रोल करने के लिए मैं कौन से रूल्स सेट कर सकता हूँ? अगर आप इसे अप्लाई करेंगे तो आप अटेंशन रेजिस्टेंस में शामिल हो जाएँगे, क्या आपने कभी नोटिस किया है कि Facebook, youtube, Twitter ज्वाइन करना बिलकुल फ्री है, यही तो उनका जाल है. टेक कंपनियां किसी भी तरह चाहती हैं कि हम उनकी सर्विस को सब्सक्राइब करें.

वो हमें कुछ बेचना नहीं चाहते या नहीं चाहते कि हमें किसी चीज के पैसे देने पड़े. लेकिन ऐसा क्यों? क्योंकि ये टेक्निकल दिगाज हमारा अटेंशन चाहते हैं ताकि वो हमें advertisers को बेच सकें. आप शायद जानते होंगे कि हर पोस्ट, हर इमेज, हर शब्द जो आप Google पर देखते हैं, और हर प्रोडक्ट जो आप Amazon पर सर्च करते हैं, टेक कंपनियों के आपकी वो सारी इनफार्मेशन स्टोर हो जाती है. ऐसा इसलिए ताकि वो आपको टारगेट कर आपके लिए exact ad बना सकें. सच्चाई यह है कि हमारे स्मार्ट फोन किसी पोर्टेबल होर्डिंग की तरह हैं जिन्हें हम 24/7 देख सकते हैं.

Digital Declutter के बाद

digital declutter के बाद शायद लोग आपसे पूछेंगे कि आपका facebook अकाउंट क्यों नहीं है, उन्हें ये भी लग सकता है कि आप अजीब एक और फैक्ट है जिसे आपको जानना चाहिए कि पिछले कुछ सालों में फेसबुक ने खुद को एक फाउंडेशन टेक्नोलॉजी बनाने का इरादा किया है. इसका मतलब है कि फेसबुक ने खुद को एक बेसिक फैसिलिटी के रूप में बना लिया है जिसके बिना आप रह नहीं सकते जैसे कि आप इलेक्ट्रिसिटी या पानी के बिना नहीं रह सकते.

आजकल ज़्यादातर apps या ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ने के लिए आपको फेसबुक वा Google अकाउंट की जरुरत होती है. यही तो इनका main मकसद है. फेसबुक और Google ज्यादा से ज़्यादा users चाहते हैं ताकि वे अपने मल्टीबिलियन डॉलर के वैल्यूएशन को बनाए रख सकें. अगर फेसबुक के शेयर सिर्फ एक पॉइंट भी नीचे गिर जाएं तो वॉल स्ट्रीट और बड़े इन्वेस्टर्स घबरा जाते हैं. देखा जाए तो Attention Resistance डेविड और गोलिअथ की लड़ाई जैसी है, एक digital minimalist के रूप में हम इन multi बिलियन डॉलर कंपनियों से लड़ रहे हैं जिनमें टेक कंपनियां पैसा लगाती हैं.

कन्क्लूजन

इस बुक में आपने डिजिटल मिनिमलिज्म के बारे में सीखा, आपने digital declutter technique के 3 steps और 3 स्क्रीनिंग सवालों के बारे में सीखा, आपने उन ट्रिक्स के बारे में भी जाना जो टेक कंपनियां हमें अपने प्रोडक्ट्स की ओर attract करने के लिए यूज़ करते हैं, आपने जाना कि ये attention economy कितनी स्ट्रोंग है और कितनी गहराई तक हमारे माइंड में घुस सकती है.

अब अपने आप से पूछे कि आपके लिए क्या इम्पोर्टेन्ट है, आपके पेरेंट्स, बच्चे, लाइफ पार्टनर या सोशल मीडिया अकाउंट? आपका टाइम और अटेंशन कौन deserve करता है आपकी पढ़ाई, करियर या स्मार्टफ़ोन? हम उम्मीद करते हैं कि आप सही चुनाव करेंगे.

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