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बी.ए. पास करने के बाद चन्द्रप्रकाश को टयूशन देने के सिवा और कुछ न सूझा। उसकी माँ पहले ही मर चुकी थी, इसी साल पिता भी चल बसे थे और प्रकाश जीवन के जो मधुर सपने देखा करता था, वे सब धूल में मिल गये। पिता ऊँचे पद पर थे, उनकी कोशिश से चन्द्रप्रकाश को कोई अच्छी नौकरी मिलने की पूरी उम्मीद थी; पर वे सब अरमान धरे रह गये और अब गुजर-बसर के लिए वही 6000 रूपए महीने की टयूशन रह गई। पिता ने कुछ जायदाद भी न छोड़ी, उलटे पत्नी का बोझ और सिर पर लाद दिया और पत्नी भी मिली, तो पढ़ी-लिखी, शौकीन, जबान की तेज जिसे मोटा खाने और मोटा पहनने से मर जाना कबूल था।
Chamatkaar Munshi Premchand
बी.ए. पास करने के बाद चन्द्रप्रकाश को ट्यूशन देने के सिवा और कुछ न सूझा। उसकी माँ पहले ही मर चुकी थी, इसी साल पिता भी चल बसे थे और प्रकाश जीवन के जो मधुर सपने देखा करता था, वे सब धुल में मिल गये। पिता ऊँचे पद पर थे, उनकी कोशिश से चन्द्रप्रकाश को कोई अच्छी नौकरी मिलने की पूरी उम्मीद थी; पर वे सब अरमान धरे रह गये और अब गुजर-बसर के लिए वही 6000 रूपए महीने की टयूशन रह गई। पिता ने कुछ भी न छोड़ी, उलटे पत्नी का बोझ और सिर पर लाद दिया और पत्नी भी मिली, तो पढ़ी-लिखी, शौकीन, जबान की तेज जिसे मोटा खाने और
जायदाद मोटा पहनने से मर जाना कबूल था।
चन्द्रप्रकाश को 6000 की नौकरी करते शर्म तो आयी; लेकिन ठाकुर साहब ने रहने की जगह देकर उसके आँसू पोंछ दिये। यह मकान ठाकुर साहब के मकान से बिलकुल मिला हुआ था पक्का, हवादार, साफ-सुथरा और उसमें सारा जरूरी सामान मौजूद था। ऐसा मकान 7OC00 से कम किराए पर न मिलता, और काम था सिर्फ दो घंटे का। ठाकुर साहब का लड़का था तो लगभग उन्हीं की उम्र का; पर बड़ा निकम्मा, कामचोर। अभी नौवीं क्लास में पढ़ता था। सबसे बड़ी बात यह थी कि ठाकुर और ठाकुराइन दोनों प्रकाश का बहुत आदर करते थे, बल्कि उसे अपने बेटे की तरह समझते थे। वह नौकर
नहीं, घर का आदमी था और घर के हर मामले में उसकी सलाह ली जाती थी। ठाकुर साहब अंग्रेज़ी नहीं जानते थे। वो सोचते थे कि अंग्रेजों का नीकर शाम का समय था! प्रकाश ने वीरेन्द्र को पढ़ाकर छड़ी उठायी, तो ठाकुराइन ने आकर कहा, “अभी न जाओ बेटा, जरा मेरे साथ आओ, तुमसे कुछ भी उनसे ज्यादा बुद्धिमान, चतुर और अनुभवी था।
सलाह करनी है”। एकाश
प्रकाश ने मन में सोचा “आज कैसी सलाह करनी है, वीरेन्द्र के सामने क्यों नहीं कहा?” उसे अंदर ले जाकर रमा देवी ने कहा- “तुम्हारी क्या सलाह है,
बीरू की शादी कर दूं? एक बहुत अच्छे घर से रिश्ता आया है।
प्रकाश ने मुस्कराकर कहा- “यह तो बीरू बाबू से ही पूछिए।
‘नहीं, मैं तुमसे पूछ रही हूँ।
प्रकाश ने दुविधा में पड़कर कहा- “मैं इस बारे में क्या सलाह दे सकता हूँ? उनका बीसवाँ साल तो है; लेकिन यह समझ लीजिए कि पढ़ना हो चुका”
तो अभी न कर, यहीं सलाह है ? जैसा आप ठीक समझें। मैंने तो दोनों बातें कह दीं।’
तो कर डालूँ? मुझे यहीं डर लगता है कि लड़का कहीं बहक न जाय।’ मेरे रहते इसकी तो आप चिन्ता न करें। हाँ, इच्छा हो, तो कर डालिए। कोई हर्ज भी नहीं है।’
सब तैयारियाँ तुम्हीं को करनी पड़ेंगी, यह समझ लो।
तो मैं इनकार कब करता हूँ।
पेट भरने की चिंता करने वाले पढ़े लिखे नौजवानों में एक तरह की दुविधा होती है, जो उन्हें कड़वा सच कहने से रोकती है। प्रकाश में भी यही कमजोरी
थी।
बात पक्की हो गयी और शादी की तैयारियां होने लगी ठाकुर साहब उन लोगों में से थे, जिन्हें अपने ऊपर ज्यादा विश्वास नहीं था। उनकी नज़र में प्रकाश की डिग्री, उनके साठ साल के अनुभव से कहीं ज्यादा कीमती थी। शादी की सारी व्यवस्था प्रकाश के हाथों में थी। दस-बारह लाख खर्च करने का अधिकार कुछ कम र्व की बात न थी। देखते-देखते ही फटेहाल लड़का जिम्मेदार मैनेजर बन बैठा। कहीं कपड़े वाला उसे सलाम करने आया; कहीं गर्व मुहल्ले का बनिया घेरे हुए था; कहीं गैस और शामियाने वाला खुशामद कर रहा था। वह चाहता, तो थोड़े रुपये बड़ी आसानी से बना लेता, लेकिन वो इतना नीच न था। फिर उसके साथ क्या धोखा करता, जिसने सबकुछ उसी पर छोड़ दिया था। पर जिस दिन उसने एक लाख के गहने खरीदे, उस दिन
उसका मन चंचल हो उठा।
वो घर आकर चम्पा से बोला, “हम तो यहाँ रोटियों के मौहताज हैं और दुनिया में ऐसे आदमी पड़े हुए हैं जो लाखों रुपये के गहने बनवा डालते हैं। ठाकुर साहब ने आज बहू के चढ़ावे के लिए एक लाख के गहने खरीदे। ऐसी-ऐसी चीजें थीं कि देखकर आँखें ठप्डी हो जायें। सच कहता हूँ, कुछ चीजों से
आँख ही नहीं हट रही थी”।
चम्पा जलन की भावना से बोली- “ऊँह, हमें क्या करना है ? जिन्हें भगवान् ने दिया है, वे पहनें। यहाँ तो रोकर नरने ही के लिए पैदा हुए हैं।
चन्द्रप्रकाश “इन्हीं लोगों की मौज़ है। न कमाना, धमाना। बाप-दादा छोड़ गये हैं, मजे से खाते और चैन करते हैं। इसी लिए कहता हूँ, भगवान् बड़ा निर्दयी है”।
चम्पा- “अपना-अपना पुरुषार्थ है भगवान् का क्या दोष ? तुम्हारे बाप-दादा छोड़ गये होते, तो तुम भी मोज करते। यहाँ तो घर चलना मुश्किल हैं, गहने-कपड़े को कौन रोये। और न इस जिन्दगी में कोई ऐसी आशा है। कोई ढंग की साड़ी भी नहीं रही कि किसी भले आदमी के घर जाऊँ, तो पहन लूँ।
में तो इसी सोच में हूँ कि ठकुराइन के यहाँ शादी में कैसे जाऊँगी। सोचती हूँ, बीमार पड़ जाती तो जान बचती। यह कहते कहते चम्पा की आँखें भर आयीं।
प्रकाश ने तसल्ली दी- “तुम्हारे लिए साड़ी ना लाऊँ, अब क्या इतना भी न कर सकूँगा? मुसीबत के ये दिन क्या हमेशा बने रहेंगे? जिन्दा रहा, तो एक
दिन तुम सिर से पाँव तक गहनों से लदी होगी”। चम्पा मुस्कराकर बोली- “चलो, ऐसी मन की मिठाई मैं नहीं खाती। गुज़ारा ठीक से हो जाय, यही बहुत है। मुझे गहनों की इच्छा नहीं है”। प्रकाश ने चम्पा की बातें सुनकर शर्म और दुःख से सिर झुका लिया। क्या चम्पा उसे इतना गया गुज़रा समझती है?
रात को दोनों खाना खाकर लेटे, तो प्रकाश ने फिर गहनों की बात छेड़ी। गहने उसकी आँखों के सामने घुम रहे थे- “इस शहर में ऐसे बढ़िया गहने बनते
हैं, मुझे इसकी उम्मीद न थी।
चम्पा ने कहा- “कोई और बात करो। गहनों की बात सुनकर जी जलता है।
वैसी चीजें तुम पहनो, तो रानी लगो।”
गहनों से क्या | सुन्दरता बढ़ जाती है ? मैंने तो ऐसी बहुत-सी औरतें देखी हैं, जो गहने पहनकर भद्दी दिखने लगती हैं। ठाकुर साहब भी मतलब के यार हैं। इतना भी नहीं कहा कि, इसमें से कोई चीज चम्पा के लिए भी लेते जाओ।
भी कैसी बच्चों की-सी बातें करते हो ? तुम भी इसमें बचपने की क्या बात है ? कोई उदार आदमी कभी इतनी कंजूसी न करता।’
मैंने तो कोई ऐसा उदार आदमी नहीं देखा, जो अपनी बहू के गहने किसी गैर को दे दे। में गैर नहीं हैं। हम दोनों एक ही मकान में रहते हैं। में उनके लड़के को पढ़ाता हूँ और शादी का सारा इन्तजाम कर रहा हूँ। अगर पांच-सात हज़ार की कोई चीज दे देते, तो वह बेकार न जाती। मगर पैसे वालों का दिल दौलत भार से दबकर सिकुड़ जाता है। उनमें उदारता के लिए जगह ही नहीं
रहती।
रात के बारह बज गये, फिर भी प्रकाश को नींद नहीं आ रही थी। बार-बार चमकीले गहने उसकी आँखों के सामने आ जाते। कुछ बादल छा जाते और बार-बार बिजली चमक उठती।
अचानक प्रकाश चारपाई से उठा। उसे चम्पा के शरीर पर कोई भी गहना ना देखकर बड़ी दया आयी। यही तो खाने-पहनने की उम्र है और इसी उम्र में इस बेचारी को हर एक चीज के लिए तरसना पड़ रहा है। वह दबे पाँव कमरे से बाहर निकलकर छत पर आया। ठाकुर साहब की छत इस छत से मिली हुई थी। बीच में पाँच फीट ऊँची दीवार थी। वह दीवार पर चढ़कर ठाकुर साहब की छत पर धीरे से उतर गया। घर में बिलकुल सन्नाटा था।
उसने सोचा पहले नीचे उतरकर ठाकुर साहब के कमरे में चलूँ। अगर वह जाग गये, तो जोर से हसँगा और कहूँगा- “कैसा डरा दिया या कह दूँगा- “मेरे घर की छत से कोई आदमी इधर आता दिखायी दिया, इसलिए मैं भी उसके पीछे-पीछे आया कि देखें वो क्या करता है”। अगर बक्से की चाबी मिल गयी फिर जीत है। किसी को मुझ पर शक ही न होगा। सब लोग नौकरों पर शक करेंगे, में भी कहूँगा- “साहब! नौकरों की हरकत है, इन्हें छोड़कर और ने जा सकता है? में बेदाग बच जाऊँगा! शादी के बाद कोई दूसरा घर ढूंढ लूँगा। फिर धीरे-धीरे एक-एक चीज चम्पा को दूंगा,जिसमें उसे कोई शक फिर जब वह नीचे उतरने लगा तो उसका दिल धड़क रहा था।
धूप निकल आयी थी। प्रकाश अभी सो रहा था कि चम्पा ने उसे जगाकर कहा- “बड़ा गजब हो गया। रात की ठाकुर साहब के घर में चोरी हो गयी। चोर गहने का बक्सा उठा ले गया।
प्रकाश ने पड़े-पड़े पूछा- किसी ने पकड़ा नहीं चोर को ?”
किसी को खबर भी ना लगी! वह बक्सा ले गया, जिसमें शादी के गहने रखे थे। न-जाने कैसे चाबी उड़ा ली और न-जाने कैसे उसे मालूम हुआ कि इस बबसे में सामान रखा “नौकरों से पूछताछ होगी। बाहर के चोर का यह काम नहीं है।’
नौकर उनके तीनों पुराने हैं।
नीयत बदलते क्या देर लगती है आज मौका देखा, तो उठा ले गये। जाकर जरा उन लोगों को तसल्ली तो दो। ठाकुराइन बेचारी रो रही धीं। तुम्हारा नाम ले-लेकर कहती थीं कि बेचारा महीनों इन गहनों के लिए दौड़ा,
एक-एक चीज अपने सामने जवानी और चीर ने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया। प्रकाश चटपट उठ बैठा और घबराता हुआ-सा जाकर ठाकुराइन से बोला- “यह तो बड़ा अनर्थ हो गया माताजी, मुझसे तो अभी-अभी चम्पा ने बताया”। ठाकुर साहब सिर पर हाथ रखे बैठे हुए थे। बोले- “क़हीं सेंध नहीं, कोई ताला नहीं टूटा, किसी दरवाजे की कुंडी नहीं उतरी। समझ में नहीं आता, चोर
आया किधर से –
ठाकुराइन ने रोकर कहा- “मैं तो लुट गयी भैया, शादी सिर पर खड़ी है, कैसे क्या होगा, भगवान्! तुमने दौड़-धूप की थी, तब कहीं जाके चीजें आयी थीं।
न-जाने किस । मनहूस का साया पड़ गया।
प्रकाश ने ठाकुर साहब के कान में कहा- “मुझे तो किसी नौकर की शरारत लगती है। ठाकुराइन ने विरोध किया- “अरे नहीं भैया, नौकरों में ऐसा कोई नहीं है। दस-दस हजार रुपये यों ही ऊपर रखे रहते थे, कभी एक पाई भी नहीं गयी”।
ठाकुर साहब ने नाक सिकोड़कर कहा- “तुम क्या जानो, आदमी का मन कितनी जल्द बदल जाया करता है। जिसने अब तक चोरी नहीं की, वह कभी चोरी न करेगा, यह कोई नहीं कह सकता। में पुलिस में रिपोर्ट करूंगा और एक-एक नौकर की तलाशी कराऊँगा। कहीं माल उड़ा दिया होगा। जब पुलिस के जूते पड़ेंगे तो अपने आप ही कबूलेंगे”। प्रकाश ने पुलिस का घर में आना खतरनाक समझा। कहीं उन्हीं के घर में तलाशी ले लें, तो अनर्थ ही हो जाएगा। वो बोले- “पुलिस में रिपोर्ट करना और तहकीकात कराना बेकार है। पुलिस माल तो न बरामद कर सकेगी। हाँ, नौकरों को मार-पीट भले ही लेगी। मेरी तो सलाह है कि एक-एक नौकर को अकेले में बुलाकर पूछा जाय”।
ठाकुर साहब ने मुँह बनाकर कहा- “तुम भी क्या बच्चों की-सी बात करते हो, प्रकाश बाबू! भला चोरी करने वाला अपने आप कबूलेगा? तुम मारपीट भी तो नहीं करते। हाँ, पुलिस में रिपोर्ट करना मुझे भी बेकार ही लग रहा है। सामन बरामद होने से रहा, उलटे महीनों की परेशानी हो जायेगी।
प्रकाश- “लेकिन कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा”।
ठाकुर “कोई फायदा नहीं। हाँ, अगर कोई खुफिया पुलिस हो, जो चुपके-चुपके पता लगाए, तो यकीनन माल निकल आये; लेकिन यहाँ ऐसी पुलिस कहाँ? तकदीर ठोंककर बैठ रहो और क्या।’
प्रकाश – ‘आप बैठ रहिए; लेकिन में बैठने वाला नहीं। मैं इन्हीं नौकरों के सामने चोर का नाम निकलवाऊँगा!” नौकरों ठाकुराइन पर मुझे पूरा विश्वास है। किसी का नाम निकल भी आये, तो मुझे विश्वास नहीं होगा। ये किसी बाहर के आदमी का काम है। चाहे
जिधर से आया हो; पर चोर आया बाहर से है । तुम्हारे छत से भी तो आ सकता है!”
ठाकुर “हाँ, जरा अपने छत पर तो देखो, शायद कुछ निशान मिले। कल दरवाजा तो खुला नहीं रह गया था?” प्रकाश का दिल धड़कने लगा। वो बोला- “मैं तो दस बजे दरवाज़ा बन्द कर लेता हूँ। हाँ, कोई पहले से मौका देखकर छिपा बैठा रहा हो, तो बात दूसरा छत पर चला गया हो और वहाँ तीनों आदमी छत पर गये तो बीच की मुंडेर पर किसी के पाँव की रगड़ के निशान दिखाई दिये। जहाँ पर प्रकाश का पाँव पड़ा था वहाँ का चूना लग जाने के कारण छत पर पाँव का निशान पड़ गया था। प्रकाश की छत पर जाकर मुंडेर की दूसरी तरफ देखा तो वैसे ही निशान वहाँ भी दिखाई दिये। ठाकुर साहब सिर झुकाये खड़े थे, हिचकिचाहट के मारे कुछ कह न सके ! प्रकाश ने उनके मन की बात पढ़ ली -“इससे तो साफ़ होता है कि चोर मेरे ही घर में से आया था। अब तो कोई शक ही नहीं रहा”।
ठाकुर साहब ने कहा- हाँ, मैं भी यही समझता हूँ, लेकिन इतना पता लग जाने से ही क्या हुआ। माल तो जाना था, सो गया। अब चलो, आराम से बैठे!
अब रुपये की फिक्र करनी होगी”।
प्रकाश – “मैं आज ही वह घर छोड़ दूंगा”।
ठाकुर- “क्यों, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं”। प्रकाश – “आप ना कहें तो ना सही लेकिन में समझता हूँ मेरे सिर बड़ा भारी अपराध लग गया। मेरा दरवाजा नौ-दस बजे तक खुला ही रहता है। चोर ने रास्ता देख लिया। क्या पता, दो-चार दिन में फिर आ घुसे। घर में अकेली एक औरत सारे घर की निगरानी नहीं कर सकती। इधर वह तो रसोई में बैठी उधर कोई आदमी चुपके से ऊपर चढ़ जाय, तो जरा भी आहट सुनाई नहीं देगी मैं घूम-घामकर कभी नौ बजे आता हूँ, कभी दस बजे और शादी होगी, के दिनों में तो देर ही रहेगी। उधर का रास्ता बन्द हो जाना चाहिए। में तो समझता हूँ, इस चोरी की सारी जिम्मेंदारी मेरे सिर है”।
ठाकुराइन डरी “तुम चले जाओगे भैया, तब तो घर और सुना हो जाएगा। प्रकाश – “कुछ भी हो माताजी, मुझे बहुत जल्द घर छोड़ना ही पड़ेगा। मेरी लापरवाही से चोरी हुई, उसका मुझे प्रायश्चित्त करना ही पड़ेगा”।
प्रकाश चला गया, तो ठाकुर ने पत्नी से कहा- बड़ा लायक आदमी है। ठाकुराइन – “क्या बात है। चोर उधर से आया, यही बात उसे लग गयी?”
कही यह चोर को पकड़ ले, तो कच्चा खा जाय।’
मुझे तो लगता है मार ही डालेगा
देख लेना, कभी-न-कभी माल बरामद करेगा।
‘अब इस र में बिलकुल न रहेगा, कितना समझाओ।
किराये के रूपए और दे ढूंगा।
हम किराया क्यों दें ? वह अपने आप ही घर छोड़ रहे हैं। हम तो कुछ कहते नहीं। किराया तो देना ही पड़ेगा। ऐसे आदमी को ज्यादा भी देना पड़े, तो बुरा नहीं लगता।
मैं तो समझती हैं, वह किराया लेंगे ही नहीं।
इतने कम रूपए में गुज़ारा भी तो न होता होगा।
प्रकाश ने उसी दिन वह घर छोड़ दिया। उस घर में रहने से जोखिम था। लेकिन जब तक शादी की धूमधाम रही, अक्सर पूरा दिन यहीं रहते थे। चम्पा से कहा- “एक सेठजी के यहाँ 5000 महीने का काम और मिल गया है; मगर वह रुपये में उन्हीं के पास जमा करता जाऊँगा। वह पैसे सिर्फ गहनों पर खर्च होंगे। उसमें से एक पाई भी घर के खर्च में न आने दुगा। चम्पा फडक उठी। पति-प्रेम का यह रूप देखकर वो अपने अच्छे भाग्य पर खुश हो रही भी, भगवान में उसकी श्रद्धा और भी बढ़ गयी।
अब तक प्रकाश और चम्पा के बीच में कोई परदा न था। प्रकाश के पास जो कुछ था, वह चम्पा का था। चम्पा ही के पास उसके बक्से, आलमारी की चाबियाँ रहती थी; मगर अब प्रकाश का एक बक्सा हमेशा बन्द रहता। उसकी चाबी कहाँ है, इसका चम्पा को पता नहीं था वह पूछती,”इस में क्या है?” तो वह कह देता – “कुछ नहीं, पुरानी किताबें इधर-उधर पड़ी रहती थीं, तो उठा कर बक्से में बन्द कर दी”। चम्पा को शक करने की कोई वजह दिखाई न दी।
एक दिन चम्पा पति को पान देने गयी तो देखा, वह उस बक्से को खोले हुए देख रहे हैं। उसे देखते ही उन्होंने बक्से को जल्दी से बन्द कर दिया। उनका चेहरा जैसे सफ़ेद हो गया। अब शक का बीज उगा; मगर पानी न मिलने से सुख गया। चम्पा किसी ऐसे कारण की कल्पना ही न कर सकी, जिससे शक बढ़ता।
लेकिन एक लाख की जायदाद को इस तरह छोड़ देना कि उसका ध्यान ही न आए. प्रकाश के लिए नामुगकिन था। वह कहीं बाहर से आता तो एक बार बक्सा ज़रूर खोलता।
एक दिन पड़ोस में चोरी हो गयी। उस दिन से प्रकाश अपने कमरे ही में सोने लगा। असाढ़ के दिन थे। गर्मी के मारे दम घुटता था। ऊपर एक साफ-सुथरा बरामदा था, जो बरसात में सोने के लिए ही शायद बनाया गया था। चम्पा ने कई बार ऊपर सोने के लिए कहा,पर प्रकाश नहीं माना। अकेला घर कैसे छोड़ दे?
चम्पा ने कहा- “हमारे जैसे घरों में चोरी नहीं होगी। चोर धर में कुछ देखकर ही जान खतरे में डालता है। यहाँ क्या रखा है ?”
प्रकाश ने गुस्से में कहा- “कुछ नहीं है, बरतन-भाँड़े तो हैं ही। गरीब के लिए अपनी हाँडी ही बहुत है। एक दिन चम्पा ने कमरे में झाडू लगायी तो बक्से को खिसकाकर दूसरी तरफ रख दिया। प्रकाश ने बक्से की जगह को बदला हुआ
पूछा- “बक्सा तुमने हटाया ?”
यह पूछने की कोई बात न थी। झाडू लगाते वक्त अक्सर चीजें इधर-उधर खिसक ही जाती हैं। वो बोली- “में क्यों हटाने लगी?”
फिर किसने हटाया ? मैं नहीं जानती।
घर में तुम रहती हो, तो और कौन जानेगा?’
‘अच्छा, अगर मैंने ही हटा दिया, तो इसमें पूछने की क्या बात है? कुछ नहीं, यूं ही पूछ था।
मगर जब तक बक्सा खोलकर सब चीजें देख न ले, तब तक प्रकाश को चैन कहाँ? चम्पा जैसे ही खाना पकाने लगी, उसने बक्सा खोला और गहनों को देखने लगा। आज चम्पा ने पकौड़ियाँ बनायी थीं। पकौड़ियाँ गरम-गरम ही मजा देती हैं। प्रकाश को पकौड़ियाँ पसन्द भी थीं। उसने थोड़ी-सी पकौड़ियाँ एक प्लेट में रखीं और प्रकाश को देने गयी। प्रकाश ने उसे देखते ही बक्से को धमाके से बन्द कर दिया और ताला लगाकर उसे बहलाने के इरादे से बोला, ‘प्लेट में क्या लायीं है ? अच्छा, पकौड़ियाँ हैं “
आज चम्पा को शक हो गया। बक्से में क्या है, यह देखने की बड़ी इच्छा हुई। प्रकाश उसकी चाबी कहीं छिपाकर रखता था। चम्पा किसी तरह वह चाबी उड़ा देने की चाल सोचने लगी। एक दिन एक सामान बेचने वाला चाबियों का गुच्छा बेचने निकला। चम्पा ने उस ताले की चाबी ले ली और बक्से को खोल डाला। अरे! ये तो गहने हैं। उसने एक-एक गहने को निकालकर देखा। ये गहने कहाँ से आये मुझसे कभी इनकी चर्चा नहीं की। अचानक उसके मन में भाव उठा कहीं ये ठाकुर साहब के गहने तो नहीं हैं। चीजें वही थीं, जिनका वह बखान करते रहते थे। उसे अन्न कोई शक न रहा; लेकिन इतनी नीच हरकत ! शर्म और दुःख से उसका सिर झुक गया।
त बक्से को बन्द किया और चारपाई पर लेटकर सोचने लगी। इनकी इतनी हिम्मत कैसे हुई ? यह गलत भावना इनके मन में आयी ही क्यों?
उसने तुरन्त मैंने तो कभी गहनों नहीं मांगें । अगर मांग भी लेती , तो क्या उसका मतलब यह होता कि वह चोरी करके लाए ? चोरी, गहनों के लिए ! इनका मन क्यों इतना कमज़ोर हो गया? उसके जी में आया, इन गहनों को उठा ले और ठाकुराइन के चरणों पर डाल दे। उनसे कहे यह मत पूछिए कि ये गहने मेरे पास केंसे आयें। आपकी चीज आपके पास आ गयी, इसी से सन्तोष कर लीजिए।’ लेकिन इसका नतीजा कितना भयंकर होगा।
उस दिन से चम्पा कुछ उदास रहने लगी। प्रकाश से उसे वह प्रेम न रहा, न वह सम्मान-भाव रहा। बात-बात पर उनका झगडा होता। उनकी जिंदगी की कमी में उनके बीच जो प्रेम था, वह गायब हो गया। पहले एक दूसरे से दिल की बात कहते थे, भविष्य के ख्वाब बाँधे जाते थे, आपस में हमदर्दी थी। अब दोनों ही कटे-कटे रहते। कई-कई दिनों तक आपस में एक बात भी न होती। कई महीने गुजर गये। शहर के एक बैंक में असिस्टेण्ट मैनेजर की जगह खाली हुई। प्रकाश ने इकोनॉमिक्स पढ़ा था; लेकिन शर्त यह थी कि बीस हजार रूपए की सिक्यूरिटी देनी होगी। इतनी बड़ी रकम कहाँ से आएगी । प्रकाश तड़प-तड़पकर रह जाता।
एक दिन ठाकुर साहब से इस बारे में बात चल पड़ी।
ठाकुर साहब ने कहा- “तुम क्यों नहीं एप्लीकेशन भेजते ?” प्रकाश ने सिर झुकाकर कहा,”बीस हजार की सिक्यूरिटी माँगते हैं।
अजी, तुम एप्लीकेशन तो दो। अगर सारी बातें तय हो जायें, तो सिक्यूरिटी भी दे दी जायगी। इसकी चिन्ता न करो।
प्रकाश ने चकित होकर कहा- “आप सिक्यूरिटी दे देंगे ?” हाँ हाँ, यह कौन-सी बड़ी बात है।
मेरे पास रुपये कहाँ रखे प्रकाश घर चला तो बहुत उदास था! उसे यह जगह अब ज़रूर मिलेगी; लेकिन फिर भी वह खुश नहीं था। ठाकुर साहब की सरलता, उनका उस पर इतना अटल विश्वास, उसे चोट पहुंचा रहे थे। उनकी शराफत उसके कमीनेपन को कुचल रही थी। उसने घर आकर चम्पा को यह खुशखबरी सुनायी।
चम्पा ने सुनकर मुँह फेर लिया।
एक पल के बाद बोली, ‘ठाकुर साहब से तुमने क्यों सिक्यूरिटी दिलवायी प्रकाश ने चिढ़कर कहा, ‘फ़िर और किससे दिलवाता?’
?
यही न होता कि काम न मिलता। रोटियाँ तो मिल ही जातीं। रूपये-पैसे की बात है। कहीं भूल-चूक हो जाय, तो तुम्हारे साथ उनके रूपये भी जाएंगे?
यह तुम कैसे समझती हो कि भूल-चूक होगी? व्या में अनाड़ी हूँ ?”
चम्पा ने बेरुखे मन से कहा, ‘आदमी की नीयत भी तो हमेशा एक-सी नहीं रहती।
प्रकाश सुन्न रह उसने चम्पा को चुभती हुई आँखों से देखा; पर चम्पा ने मुँह फेर लिया। वह उसके भावों को समझ नहीं पा रहा था, लेकिन ऐसी र भी चम्पा का उदास रहना उसे परेशान करने लगा। उसके मन में सवाल उठा “इन शब्दों में कहीं ताना तो नहीं छिपा हुआ है। चम्पा ने खुशखबरी सुनकर बक्सा खोलकर देख तो नहीं लिया ? इस सवाल का जवाब पाने के लिए इस समय वह कुछ भी कर सकता था। खाना खाते समय प्रकाश ने चम्पा से पूछा- “तुमने क्या सोचकर कहा था कि आदमी की नीयत तो हमेशा एक-सी नहीं रहती ?” जैसे या मौत का सवाल हो।
चम्पा ने संकट में पड़कर कहा-“कुछ नहीं, मैंने दुनिया की बात कही थी”। प्रकाश को संतोष न हुआ। क्या जितने आदमी बैंकों में नौकर हैं, उनकी नीयत बदलती रहती है ?’ वह बोला।
यह उसकी जिंदगी चम्पा ने पिंड छुड़ाना चाहा- “तुम तो जबान पकड़ लेते हो। ठाकुर साहब के यहाँ इस शादी ही में तुम अपनी नीयत ठीक नहीं रख सके। 10-20 हज़ार प्रकाश के दिल से बोझ उतर गया। वो मुस्कुराकर बोला- “अच्छा, तुम्हारा इशारा उस तरफ था, लेकिन मैंने कमीशन के सिवा उनकी एक पाई भी नहीं रुपये की चीजें घर रख ही ली”।
छुई और कमीशन लेना तो कोई पाप नहीं! बड़े-बड़े हुक्काम खुले-खजाने कमीशन लिया करते हैं। चम्पा ने अपमान के भाव से कहा- “जो आदमी अपने ऊपर इतना विश्वास रखे, उसकी आँख बचाकर एक पाई भी लेना में पाप समझती हूँ। तुम्हारी सज्जनता तो मैं जब जानती कि कमीशन के रुपये ले जाकर उनके हवाले कर देते। इन छ: महीनों में उन्होंने तुम्हारे साथ क्या-क्या सलूक किये,
कुछ याद है ? मकान तुमने खुद छोड़ा; लेकिन वह किराया भी देते हैं। इलाके से कोई सौगात आती है, तो तुम्हारे यहाँ जरूर भेजते हैं। तुम्हारे पास घड़ी थी, अपनी घड़ी तुम्हें दे दी। तुम्हारी नौकरानी जब नागा करती है, खबर मिलते ही वो अपना नौकर भेज देले हैं। मेरी बीमारी में डाक्टर साहब की फीस उन्होंने दी, और दिन में दो बार हाल-चाल भी पूछने आया करते थे। यह जमानत ही क्या छोटी चात है ? अपने रिश्तेदारों तक की सिक्यूरिटी तो जल्दी कोई करता ‘ नहीं, तुम्हारी सिक्यूरिटी के लिए बीस हजार रुपये निकाल कर दे दिये। इसे तुम छोटी बात समझते हो ? आज तुमसे कोई भूल-चूक हो जाय, तो उनके रुपये तो जब्त हो ही जायेंगे जो आदमी अपने ऊपर इतनी दया रखे, उसके लिए हमें भी जान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। प्रकाश खाना खाकर लेटा: तो उसकी आत्मा उसे धिक्कार रही थी। दुखते हुए फोड़े में कितना मवाद भरा हुआ है, यह उस वक्त मालूम होता है, जब उसे चीरा जाता है। मन का पाप उस वक्त मालूम होता है, जब कोई उसे हमारे सामने खोलकर रख देता है। किसी सामाजिक या राजनीतिक अन्याय का व्यंग्य-चित्र देखकर क्यों हमारे मन की चोट लगती है ? इसीलिए कि वह चित्र हमारी जानवरों वाली हरकत को खोलकर हमारे सामने रख देता हैं। वह, जो बड़े से समद्र में बिखरा हुआ पड़ा था, जैसे एक जगह आकर बहुत बड़ा हो जाता है। तब हमारे मुँह से निकल पड़ता है उप्फोह ! चम्पा के इन अपमान -भरे शब्दों ने प्रकाश के मन में ग्लानि पैदा कर दी। वह बक्सा कई गुना भारी होकर पहाड़ की तरह उसे दबाने लगा। मन में फैला हुआ पाप एक जगह इकट्ठा होकर उसे कचोटने लगा।
कई दिन बीत गये। प्रकाश को बैंक में जगह मिल गयी। इसी जश्न के लिए उसके यहाँ मेहमानों की दावत थी। ठाकुर साहब, उनकी पत्नी, बीरू और उसकी नई नवेली बहू सभी आये हुए थे । चम्पा सेवा – सत्कार में लगी हुई थी। बाहर दो-चार दोस्त गा-बजा रहे थे खाना खाने के बाद ठाकुर साहब चलने को तैयार हुए।
प्रकाश ने कहा- “आज आपको यहीं रहना होगा, दादा ! मैं इस वक्त न जाने दूंगा”। चम्पा को उसका यह आग्रह बुरा लगा। चारपाइयाँ नहीं हैं, बिछाने के लिए कुछ नहीं है और न इतनी जगह है। रात-भर उन्हें तकलीफ देने और खुद तकलीफ उठाने की क्या जरूरत थी उसकी समझ में न आयी; लेकिन प्रकाश विनती करता ही रहा, इतना कि ठाकुर साहब राजी हो गये। बारह बज थे। ठाकुर साहब ऊपर सो रहे थे। बीरू और प्रकाश बाहर बरामदे में थे। तीनों औरतें अन्दर कमरे में थीं, प्रकाश जाग रहा था। बीरू के सिरहाने उसकी चाबियों का गुच्छा पड़ा था। प्रकाश ने गुच्छा उठा लिया। फिर कमरा खोलकर उसमें से गहनों का बक्सा निकाला और ठाकुर साहब के हे तरफ चला। कई महीने पहले वह इसी तरह कांपते दिल के साथ ठाकुर साहब के घर में घुसा था। उसके पाँव तब भी इसी तरह थरथरा रहे थे; घर की ज लेकिन तब काँटा चुभने का दर्द था, और आज काँटा निकलने का तब बुखार चढ़ा था, वो पागलपन, बेचैनी और घबराहट से भरा हुआ था; और आज बुखार उतर रहा था इसलिए सब शान्त और ठंडा था। तब कदम पीछे हट रहे थे, आज आगे बढ़ रहे थे।
ठाकुर साहब घर पहुँचकर उसने धीरे से बीरू का कमरा खोला और अन्दर जाकर ठाकुर साहब के बिस्तर के नीचे बक्सा रख दिया, फिर तुरन्त बाहर आकर धीरे से दरवाज़ा बन्द किया और घर को लौट पड़ा। हनुमान संजीवनी बूटी वाला पहाड़ उठाये जिस गर्व और आनन्द का अनुभव कर रहे थे, कुछ वैसा ही आनन्द प्रकाश को भी हो रहा था। गहनों को अपने घर ले जाते समय उसके जान सूखी जा रही थी, मानो किसी गहरी अंतहीन खाई में गिरा जा रहा हो। आज बक्से को लगाकर उसे लगा, जैसे वह किसी हवाई जहाज़ में बैठा हुआ आसमान की ओर उड़ा जा रहा है ऊपर, ऊपर और ऊपर! वह घर पहुँचा, तो बीरू सोया हुआ था। उसने चाबियाँ उसने सिरहाने रख दी।
ठाकुर साहब सुबह-सुबह ही चले गये।
प्रकाश शाम के वक़्त पढाने जाया करता था। आज वह बेचैन होकर जल्दी जा पहुँचा। देखना चाहता था, वहाँ आज क्या गुल खिल रहे हैं। वीरेन्द्र ने उसे देखते ही खुश होकर कहा- ‘बापूजी, कल आपके यहाँ की दावत बड़ी शुभ थी। जो गहने चोरी हो गये थे, सब मिल गये”। ठाकुर साहब भी आ गये और बोले, ‘बड़ी शुभ दावत थी तुम्हारी! पूरा का पूरा बक्सा मिल गया। एक चीज भी गायब नहीं हुई। जैसे सिर्फ रखने ही के लिए ले गया हो।
प्रकाश को इन बालों पर कैसे विश्वास आये, जब तक वह अपनी आँखों से बक्से न देख ले। कभी ऐसा भी हो सकता है कि चोरी हुआ माल बाद मिल जाय वो भी वैसे का वैसा ! बक्से को देखकर उसने गम्भीर भाव से कहा- “बड़े आश्चर्य की बात है। मेरी बुद्धि तो कुछ काम नहीं ठाकुर – “किसी की बुद्धि काम नहीं कर रही भई, तुम्हारी ही क्यों”। बीरू की माँ कहती है, “कोई दिव्य घटना है। आज मुझे गयी”।
प्रकाश-“अगर आँखों देखी बात न होती, तो मुझे तो कभी विश्वास ही न होता ।
ठाकुर-“आज इसी खुशी में हमारे यहाँ दावत होगी” प्रकाश – “आपने कोई पूजा पाठ या यज्ञ तो नहीं कराया था ?”
ठाकुर -“पूजा पाठ तो बीसों ही कराये।
प्रकाश -“बस, तो यह पूजा पाठ का ही चमत्कार है।
घर लौटकर प्रकाश ने चम्पा को यह खबर सुनायी; तो वह दौड़कर उसके गले से लिपट गई और न जाने क्यों रोने लगी, जैसे उसका बिछुड़ा हुआ पति बहुत दिनों का प्रकाश ने कहा- “आज उनके यहाँ हमारी दावत है”। मैं कल एक हजार गरीबों को खाना खिलाऊँगी।
तुम तो हज़ारों खर्च बतला रही हो।
मुझे इतनी खुशी हो रही है कि लाखों खर्च करने पर भी अरमान पूरा न होगा।
प्रकाश की आँखों से भी आँसू निकल आये। सीख -इस कहानी में मुंशी जी ने बताया है कि लालच इंसान को क्या से क्या बना देता है. प्रकाश पढ़ा लिखा था और एक बच्चे को पढ़ाता भी धा तो इस हिसाब से वो गुरु भी हुआ लेकिन लालच ने उसे नीचे गिरा दिया था, उसे चोर बना दिया था. ठाकुर साहब ने उस पर कितने एहसान किए, उसे अपना परिवार माना लेकिन लालच ने प्रकाश की आँखों में उनकी सब अच्छाई को धुंधला कर दिया था, हम यहाँ साफ़-साफ़ देख सकते हैं कि गलत काम करने के बाद इंसान कितना डरा और घबराया हुआ सा रहने लगता है, गहनें चुराने के बाद प्रकाश को एक पला भी चैन नहीं मिला, वो घड़ी-घड़ी बक्से को चेक किया करता था, इंसान जब एक झूठ बोलता है तो उसे छुपाने के लिए वो और झूठ बोलता चला जाता है और एक ऐसे जाल में फंस जाता है जिससे निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है. हमें यहाँ ये भी सीख मिलती है कि हमें कभी किसी पर आँख बंद करके विश्वास नहीं करना चाहिए, आपकी सावधानी आपको कई हादसों से बचा सकती है. हाँ, प्रकाश ने बहुत गलत काम किया लेकिन अपनी गलती का एहसास होने के बाद उसने गहनें लौटाकर ये साबित कर दिया कि अपनी गलती मानना और उसे सुधारना एक अच्छे इंसान की निशानी है.
हमारे सामने भी जिंदगी में ऐसे मौके आएँगे जब गलत रास्ते की ओर जाना ज़्यादा आसान लगेगा लेकिन वो रास्ता आगे जाकर आपको सिर्फ दुःख और तकलीफ़ ही देगा. उस कमजोर पल में अगर आपने खुद को डगमगाने नहीं दिया तो आप खुद को बहुत सारी मुसीबतों से बचा लेंगे. शोर्ट कट या गलत रास्ता सिर्फ कुछ समय के लिए सुख दे सकता है, भले ही वो आपको थोड़े ज़्यादा पैसे दे दे लेकिन सुकून और चैन कभी नहीं दे सकता, इसलिए अपना रास्ता संभलकर चुनें.