यह किसके लिए है
-अगर आपका बच्चा रात में रोता है।
-अगर आप पैरेंट हैं या बनने वाले हैं।
-अगर आप फ्रांस और वहाँ की चीजों को पसंद करते हैं।
लेखिका के बारे में
पामेला इकरमेन (Parmets Drucker Main) बॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्टर हैं जिन्होंने गार्जियन, न्यू यॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट के लिए बहुत से लेख लिंख्े हैं। ये लस्ट इन ट्रांसलेशन (Lust in Translation ) और हन्फिडेलिंटी फ्रॉम टोक्यो टू टेनेसी (Infireity from Tokyo to renmesse) जैसी किताबों की लेखिका हैं।
अपने बच्चों की देखभाल फ्रांस के तरीकों से करिये।
अगर आप कभी फ्रांस गाए हैं तो आपने ये जरूर देखा होगा कि वहाँ के बच्चों का व्यवहार बहुत ही अच्छा होता है। वै बहुत छोटी उम्र से ही आत्मनिर्भर रहते हैं। वे खाने और दूसरी चीजों के लिए जिंद नहीं करते। तो सवाल ये है कि आखिर फ्रास के लोग अपने बच्चों को कैसे सभालते हैं?
आने वाले सबक़ में हम देखेंगे कि एक अमेरिकन महिला का फ्रांस में बच्चों की देखभाल करने के तरीकों के बारे में व्या कहना है। हम सीसेंगे कि किस तरह आप कुछ आसान से नियमों का पालन करके अपने बच्चे की देखभाल अच्छे से कर सकते हैं और साथ ही साथ खुद को भी थोड़ा समय दे सकते हैं।
और आप सीखेंगे कि
मार्शमैलो का बच्चों की देखभाल से क्या लेना देना है।
क्यों भाप के लड़के और लड़कियों में भेद भाव नहीं करना चाहिये।
क्यों फ्रांस के रेस्टॉरेन्ट में किडस मेनू नही होता
छोटे बच्चों को अगर सोने में कोई परेशानी न हो तो वो रात भर सोयेंगे।
फ्रांस में रहने वाले बच्चे रात भर शांति से सोते हैं जबकि दूसरे देशों के बच्चे रात में रोते हैं जिससे पैरेंट्स को रात भर जागना होता है।
अगर आपका बच्चा रात में रोता है तो जरूरी नहीं कि उसे किसी चीज़ की ज़रूरत हो। शायद उसे सोने में परेशानी हो रही हो। बच्चों को रात में खाने की कोई जरूरत नही होती। खाना पचने में दिक्कत की वजह से उनकी नींद स्वराब होती है।
1993 में टेरेसा पिनेल्ला (Teresa Pinella) और लीएन बि्च (Leann Birch) ने जर्नल पीडियाट्रिक्स की एक स्टडी में बताया कि एक माँ को कैसे अपने बच्चे को शांत करना चहिये। इसमें उन्होंने तीन नियमों का जिक्र किया।
- अपने बच्चे को जबरदस्ती मत सुलाइये।
जब आपका बच्चा थपथपाने और घुमाने पर भी चुप न हो तो ही उसे कुछ खाने के लिए दीजिये।
- उसके रोने के तरीके पर ध्यान दीजिये।
पिनेल्ला और बिर्च ने पाया कि 38% पेरेंट्स के बच्चे सिर्फ चार हफ्ते में ही रात भर सोने लगे जबकि जित 7% पेरेंट्स ने ये बातें नहीं मानी उनके हालात वैसे ही रहे।
अक्सर ऐसा होता है कि रात में बच्चे रोते वक्त पूरी तरह से नहीं जागे होते। उन्हें एक बार खुद से सोने का मौका दीजिये। अगर आप उनके रोते ही उन्हें उठा लेते हैं तो इससे उसकी नींद खराब हो सकती है और उसका रोना बढ़ सकता है।
इसका मतलब ये नहीं कि आप रोते हुए बच्चे को पूरी तरह से अनदेखा कर दें। उन्हें रोता हुआ देख कर कुछ सेकंड़ के लिए शांत रहिए और भगर वो रोना बंद नहीं करते तब उनके पास जाइए। शुरुआत के दिनों में कुछ सेकेण्ड इतज़ार करिए और फिर इस समय को थोड़ा थोड़ा बढ़ा कर कुछ मिनट तक ले जाइये ।
बच्चों को खुद से सोना सीखने के लिए कुछ समय चाहिए और ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप इसमें उनकी मदद करें।
अपने बच्चे को सेहतमंद खाना खाने के लिए तैयार करिये।
यूनाइटेड स्टेट्स के ज्यादातर बच्चे अच्छे से खाना नहीं खाते। जब लेखिका इटैलियन और क्यूबा रेस्टरेंट्स में गई तो उन्होंने देखा कि सारे रेस्टोरेंट्स के मेनू में हैम्बर्गर , चिकन फ्राई और पिज्जा जैसी चीजे ही थी।
लेकिन फ्रांस के रेस्टॉरेंट्स में कोई किड्स मेनू नहीं होती। फ्रांस के लोग अपने बच्चे को हर तरह का खाना खिलाते हैं। वहाँ घोटे बच्चो के खाने में रेड कैबेज, फिश और डिल सॉस, बेक्ड एप्पल और चीज़ जैसी चीज़ें होती हैं। स्वादिष्ट खाने में बच्चों को फोल ग्रास, सारडाइन माउस या गोट चीज़ खिलाया जाता है।
बच्चों को हर तरह के पलेवर और स्वाद वाला खाना खाना चाहिये। इसलिए फ्रांस के लोग अपने बच्चों को अलग अलग तरह के खाने खिलाते हैं। जरुरी नहीं कि फ्रांस के बच्चों को हर तरह का खाना अच्छा लगे, पर उन्हें हर तरह के स्वाने को कम से कम एक बार ज़रूर खिलाया जाता है। फ्रान्स के पेरेंट्स का मानना है कि अगर वो एक ही तरह के खाने को बार बार खाएगे तो उन्हें इसकी आदत पड़ जाएगी। लेखिका एक फ्रेंच महिला से मिली थी जो अपनी बेटी को उसके प्लेट में रखे गए हर तरह के खाने को एक बार ज़रूर खिलाती थी। इसलिए फ्रांस के लोग अपने बच्चों को श्री कोर्स मील्स देते हैं। इससे न सिर्फ उन्हें अलग अलग खाना खाने को मिलता है बल्कि उन्हें न्यूटीएंटस की समझ भी होती है।
पहले कोर्स में वेजिटेबल सूप या सलाद हो सकता है। बच्चों को मेन कोर्स का खाना तब तक नहीं दिया जाता जब तक वे अपने सलाद न खा लें।
आप बच्चों को सब्जिया खाने की भी आदत डलवा सकते हैं। बस उन्हें कम से कम एक बार उसे खाने दीजिये।
खाने के लिए सख्त होने से बच्चे सेहतमंद और अनुशाषित रहते हैं।
हम अक्सर बच्चों को सेहतमंद खाना खाने के लिए कहते हैं पर खुद नहीं खाते। अक्सर हम काम के बीच में सैंडविच या कुछ और फास्ट फूड खाने लगते हैं। लेकिन फ्रांस के लोग जानते हैं कि सेहतमद होने का मतलबा मोटा न होना ही नहीं होता।
एक निश्चित समय पर खाना खाने से हम मोटे नहीं होते। फ्रांस के बच्चों को दिन में चार बार खाना खिलाया जाता है- 8 बजे, दोपहर में, शाम 4 बजे और रात में फिर 8 बजे। इसके बीच अगर उन्हें चॉकलेट खाने का मन हो तो वो नहीं खा सकते।
फ्रांस में सिर्फ 3.7% बच्चे ही मोटे होते हैं जबकि यूनाइटेड स्टेट्स में 10.4% बच्चे मोटे होते हैं। ये अतर उनके बड़े होने के साथ बढ़ता ही जाता है। फ्रांस के बच्चे बाजार में चॉकलेट के लिए रोते नहीं क्योंकि वो जानते है कि इसका कोई फायदा नहीं होगा! जब तक उनके खाने का समय नहीं हो जाता तब तक उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिलने वाला।
भूख को काबू करने से बच्चों में ज्यादा सन्न करने की क्षमता आ जाती है। 1930 में वॉटर माइकल (Walter Michael) नाम के एक मशहूर साइकोलॉजिस्ट ने इसपर प्रक एक्सपेरिमेंट किया। उन्होंने कुछ बच्चों को एक टेबल पर मार्शमैलो को साथ बैठा दिया और कहा कि अगर वो उसे 15 मिनट तक नहीं खाते है तो उन्हें दो मार्शमैलो खाने को दिया जाएगा। इन्ही बच्चों के बड़े होने पर माइकल ने पाया का जो याचे खुद को खाने से रोकने में सक्षम थे, वे ज़िन्दगी में सफल हुए।
खाने के लिए सख्त होने का मतलब सिर्फ सेहत से नहीं है। इसका मतलब खुद पर काबू करने से भी है।
आपको अपने बच्चों के लिए खुद की ज़रूरतें छोड़ने की कोई ज़रुरत नहीं है।
एक पैरेंट बनने के बाद ज्यादातर अमेरिकन पेरेंट्स अपने बच्चों की खुशी के लिए अपने शौक, जरूरतें और सेक्स लाइफ को छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि पैरेंट बनने के बाद उनकी जिन्दगी पूरी तरह से बदल चुकी है और अब वो पहले के जैसे नहीं रह सकते।
फ्रांस में बच्चों के लिए अपनी सेक्स लाइफ को छोड़ना सेहतमंद नहीं गाना जाता। ज्यादातर फ्रांस के लोगों का मानना है कि सेक्स लाइफ छोड़ने से बहुत सारी साइकोलॉजिकल बीमारियाँ होती हैं और इससे तनाव बढ़ सकता है।
हेलीन डी लीरसाइन्डर (Helene de Leersynder) एक बच्चों की डॉक्टर है। उनका कहना है कि सेक्स इंसान की ज़रुरत है। इसलिए फ्रांस में जब पेरेंट्स को खुद के लिए कुछ समय चाहिए होता है तो वो अपने बच्चों को कुछ दिन के लिए दूर भेजने में नहीं हिचकिचाते। वहाँ के प्राइमरी स्कूल के बच्चों को भी एक हफ्ते के लिए घुमाने ले जाना आम बात है।
लेखिका ने एक ऐसे पेरेंट्स से बात की जो अपने बच्चों को साल में एक बार 10 दिन के लिए उनके दादा दादी के पास छोड़कर छुट्टियों पर जाते थे।
बर्थडे पार्टीज में पेरेंट्स अपने बच्चों को एक दिन के लिए दूसरे पेरेंट्स के यहाँ छोड़कर भी अपने लिए कुछ समय निकाल लेते हैं। जब वो अपने बच्चों को लेने जाते हैं तो साथ ही साथ वहाँ के पैरेंट्स के साथ शेम्पेन भी पीते हैं।
ये मानने में कोई बुराई नहीं है कि बच्चों और बड़ों की दुनिया अलग अलग होती है। अपने लिए कुछ समय निकालने में कोई बुराई नहीं है। खुद को और अपने बच्चों को आराम करने के लिए कुछ साली समय दीजीए।
फ्रांस के पैरेंट्स जेंडर डिफरेंसेस को स्वीकार करते हैं।
आज दुनिया भर के लोग लड़के और लड़कियों को एक बराबर का अधिकार दिलाने के लिए काम कर रहे हैं। फ्रांस की महिलाएं भी इसमें शामिल हैं पर उनका तरीका दूसरों से कुछ अलग है।
फ्रांस के पुरुष अमेरिका के पुरुषों की तरह दुनिया के सबसे अच्छे डैड बनाने की कोशिश नहीं करते। न ही वहाँ की महिलाए उनके घर के काम न करने पर गुस्सा होती हैं। डेब्रा ओलिवर व्हाट फ्रेंच वीमेन नो ( What French Women Know) की लेखिका हैं। उनकी माने तो फ्रांस की महिलाएं पुरुषों को अपने जैसा नहीं मानतीं। उनका मानना है कि वो डाइपर खरीदने या पेडिएट्रिशीयन के पास अपॉइंटमेंट लेने का काम नहीं कर सकते।
लेखिका मानती है कि ऐसा करने से घर में प्यार का माहौल बना रहता है। अमेरिका की महिलाए चाहती है कि पुरुष उनके घर के काम में हाथ बटा। द बिच इन द हाउस ( The Bitch In The House ) एक बेस्ट सेलिंग अमेरिकन अन्योलोजी है जिसमें बताया गया है कि ज्यादातर महिलाएं अपने हस्बैड के उन कामों को लिख के रखती है जो उन्होंने नहीं किया। इससे उनका गुस्सा और विचिड़ापन और बढ़ जाता है।
लेखिका ने बहुत सारी फ्रेंच महिलाओं से ये सवाल किया कि उन्हें अपने हस्बैंड्स के घर के काम में हाथ न बटाने पर केसा लगता है। ज्यादातर महिलाओं ने कहा कि इससे उन्हें कोई परेशानी नहीं है। उन्हें कभी कभी इससे चिढ़ होती है पर फिर भी वो अपने हस्बैंड से उतना ही प्यार करती है। वो घर में नेगेटिव माहौल नहीं बनाती। फ्रांस के लोगों का तरीका घर में शांति लाता है।
अपने बच्चों पर जोर मत डालिये, लेकिन ना कहना ज़रुर सीखिये।
पिछले कुछ सालों से हेलीकाटर पैरेंटिंग अमेरिका में बहुत चर्चित है। ज्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों के सारे काम करते हैं और उनकी सारी ज़रूरतों को पूरा करते हैं।
लेकिन फ्रांस में ऐसा नहीं होता। फ्रांस में आप पेरेंट्स को बच्चों के साथ खेलते या उन्हें झूला झुलाते नहीं देंगे। जब वहाँ के बच्चे खुद से खेल रहे होते हैं तो पेरेंट्स आपस में बातें करते हैं।
लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बच्चे जो चाहे वो कर सकते हैं। पेरेंट्स के कुछ नियमों को उन्हें मानना होता है जैसे- “झगड़ा मत करना और “प्लेग्राउंड के बाहर मत जाना।
जब वहाँ के बच्चे कोई नियम तोड़ देते हैं तो पेरेंट्स उन्हें इसके बारे में बताते हैं। उन्हें पता है कि कब आपको ना कहना है। आपको पूरे आत्म विश्वास के साथ ना कहना चाहिए और आपको पूरा भरोसा होना चाहिए कि आपका बच्चा आपकी बात मानेगा।
वहाँ के कुछ पैरेंट्स सख्त होने पर गर्व करते हैं। लेकिन वे सख्त तभी होते हैं जब उनके बच्चों से कोई बड़ी गलती करते हैं। आपको छोटी और बड़ी गलतियों में अंतर करना सीखना होगा।
इस तरह आपको अपने बच्चों को समय के साथ कम समझाना पड़ेगा। इससे बच्चे खुद ही ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे आपको गुस्सा आए।
बच्चे की ज़िन्दगी में पेरेंट्स का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा होता है। अपने बच्चे को गलतियां करने का मोका दीजिए लेकिन इसमें अपने औहदे को मत भूलिये। आखिर में उन्हें वही करना है जो आप कहेंगे।