पंडित चंद्रधर ने अपर प्राइमरी में पढ़ाने का काम तो कर लिया था, लेकिन हमेशा पछताया करते थे, कि कहाँ से इस मुसीबत में आ फैसे। अगर किसी दूसरे दफ्तर में नौकर होते, तो अब तक थोडे पैसे जुड़ गए होते, आराम से जीवन गुजरता| यहाँ तो महीने भर काम करने के बाद कहीं पट्ह रुपये देखने को मिलते हैं। वह भी एक तरफ से आये, दूसरी तरफ से चले जाते हैं | न खाने का सुख, ना पहनने का आराम। हमसे तो मजदूर ही अच्छे हैं। पंडितजी के पड़ोस में दो और लोग रहते थे। एक ठाकुर अतिबलसिंह, वह थाने में हेड कान्सटेबल थे। दूसरे मुशी बैजनाथ, वह तहसील में हिसाब किताब लिखते थे। इन दोनों आदमियों की तनख्वाह पंडित जी से कुछ ज्यादा नहीं थी, तब भी उनकी जिंदगी आराम से गुजरती थी। शाम को वह कचहरी से से आते, बच्चों को पैसे और मिठाइयाँ देते। दोनों आदमियों के पास नौकर थे। घर में कुर्सियों, मेज़, फर्श जैसे सामान मौजूद थे। ठाकुर साहब शाम को आराम-कु्सी पर लेट जाते और खुशबूदार तंबाकू पीते मुंशीजी को शराब-कवाब की आदत थी । अपने सजे-सजाये कमरे में बैठे जाने बोतल-की-बोतल पी जाते! जब कुछ नशा होता तो हारमोनियम बजाते, सारे मुहल्ले में उनका दबदबा था उन दोनों को आता देखकर दुकानदार उठकर | था। उन सलाम करते। उनके लिए बाजार में अलग भाव था। महंगी चीज सस्ते में लाते। जलाने वाली लकड़ी मुफ्त में मिल जाती। हुए पंडिलजी उनके इस ठाट-बाट को देखकर जलते थे और अपने भाग्य को बुरा-भला कहते रहते। वह लोग इतना भी नहीं जानते कि धरती, सूरज का चक्कर लगाती है या सूरज धरती का | आसान से पहाड़ों की भी जानकारी नहीं थी, उस पर भी भगवान ने उन्हें इतना कुछ दे रखा था। यह लोग पंडितजी पर बड़ी मेहरबानी रखते थे। कभी थोड़ा बहुत दूध भेज देते, कभी थोड़ी सी सब्जिया दे देते लेकिन इनके बदले में पंडितजी को ठाकुर साहब के दो और मुंशीजी के तीन लड़कों की ख करनी। पड़ती।
ठाकुर साहब कहते- “पंडित जी यह लड़के हर समय खेला करते हैं, जरा इनका ध्यान रखा कीजिए “। मुशीजी कहते- “यह लड़के आवारा होते जा रहे हैं। जरा इनका ध्यान रखिए”। यह बातें बहुत एहसान जताते हुए रौब के साथ कही जाती थीं, जैसे पंडितजी उनके गुलाम हैं। पंडितजी को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगता था, लेकिन इन लोगों को नाराज करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे, उनके कारण कभी-कभी दूध-दही मिल जाता था, कभी अचार-चटनी का स्वाद चख लेते थे। इतना ही नहीं, बाजार से चीजें भी सस्ती ले आते थे। इसलिए बेचारे इस नाइंसाफी को जहर के धूँट की तरह पीते रहते।
इस बुरे जीवन से निकलने के लिए उन्होंने बड़ी कोशिश की| अपने हालात पर चिट्टियां लिखी, अफसरों की चापलूसी कीं, पर इच्छा पूरी नहीं हुई। अंत में हारकर बैठ गए। हां, इतना जरूर था कि अपने काम में गलती नहीं होने देते थे। ठीक समय पर जाते, देर में वापस आते, मन लगाकर पढ़ाते। इससे उनके अफसर लोग खुश थे। उन्हें साल में कुछ इनाम देते और तनख्वाह बढ़ने का जब समय आता, तो उनका अच्छे से ध्यान रखा जाता। लेकिन इस र की तनख्वाह बढ़ना बजर में खेती जैसा है। बड़े भाग्य से हाथ में आती थी। गांव के लोग उनसे खुश थे, लड़कों की गिनती बढ़ गई थी और स्कूल दफ्तर के लड़के तो उन पर जान देते थे। कोई उनके घर आकर पानी भर देता,कोई उनकी बकरी के लिए पत्ती तोड़ लाता। पंडितजी इसी को बहुत समझते थे। एक बार सावन के महीने में मुशी बैजनाथ और ठाकुर अतिबलसिंह ने श्रीअयोध्याजी की यात्रा की तैयारी की। दूर की यात्रा थी। कई दिनों पहले से तैयारियाँ होने लगीं। बरसात के दिन थे पूरे परिवार के साथ जाने में दिक्कत थी। लेकिन घर की औरतें किसी भी तरह नहीं मान रही थीं। अंत में तंग आकर दोनों लोगों ने एक-एक हफ्ते की छुट्टी ली और अयोध्याजी चले। पंडितजी को भी साथ चलने के लिए जबरदस्ती मनाया | मेले में एक फालतू आदमी से बड़े काम लिए जाते हैं। पंडितजी सोच में पड़ गए, लेकिन जब चह लोग उनका खर्चा देने को तैयार हो गए तो मना नहीं कर सके और अयोध्याजी की यात्रा का ऐसा सुन्दर मौका पा कर नहीं रुक सके।
बिल्हौर से एक बजे रात को गाड़ी चली। यह लोग खा-पीकर स्टेशन पर आ कर बैठ गए। जिस समय गाड़ी आयी, चारों तरफ भगदड़ सी मच गई। हजारों यात्री जा रहे थे। उस जल्दी में मुशीजी पहले निकल गये। पंडितजी और ठाकुर साहब साथ थे। एक कमरे में बैठे थे | ऐसे समय में कौन किसका इन्तजार करता है।
गाड़ियों में जगह की बड़ी कमी थी, लेकिन जिस कमरे में ठाकुर साहब थे, उसमें सिर्फ चार आदमी थे। वो सब लेटे हुए थे। ठाकुर साहब चाहते थे कि वह लोग उठ जाएँ तो जगह जाये बन उन्होंने एक आदमी से डॉटकर कहा-“उठ कर बैठो जी देखते नहीं, हम लोग खड़े हैं।
मुसाफिर लेटे-लेटे बोला- “क्यों उठ कर बैठे जी ? तुम्हारे बैठने का ठेका लिया है क्या ?
ठाकुर- “क्या हमने किराया नहीं दिया है मुसाफिर- “जिसे किराया दिया है, उस से जाकर जगह माँगो।”
ठाकुर- “जरा होश में बातें करो। इस डब्बे में दस लोगों को बैठने की इजाजत है। मुसाफिर- “यह थाना नहीं है, जरा जबान संभालकर बातें कीजिए।”
ठाकुर- “तुम कौन हो जी ?
मुसाफिर- “हम वही हैं, जिस पर आपने जासूसी का आरोप लगाया था, जिसके दरवाजे से आप नकद 25 रु. लेकर हटे थे।
ठाकुर- “अहा ! अब पहचाना। लेकिन मैंने तो तुम्हारे साथ अच्छा व्यवहार किया था। चालान कर देता तो तुम्हे सजा हो जाती।” मुसाफिर- “और मैंने भी तो तुम्हारे साथ अच्छा व्यव्हार ही किया था, कि गाड़ी खड़ी रहने दी। ढकेल देता तो तुम नीचे चले जाते और तुम्हारी हड्डियों का पता नहीं लगता।” इतने में दूसरा लेटा हुआ मुसाफिर जोर से हँसा और बोला- “क्यों दरोगा साहब, मुझे क्यों नहीं उठाते ?”
ठाकुर साहब गुस्से से लाल हो रहे थे। सोच रहे थे, अगर थाने में होता हो इनकी जबान खींच लेता, पर इस समय बुरे फैसे थे। वह ताकतवर आदमी थे, पर यह दोनों आदमी भी मोटे -तगड़े थे।
ठाकुर- “बक्सा नीचे रख दो, बस जगह हो जाय।”
दूसरा मुसाफिर बोला- और आप ही क्यों नहीं नीचे बैठ जाते इसमें कौन-सी इज़्ज़त चली जाएगी। यह थाना थोड़े ही है कि आपके रोब में फर्क पड़ जाएगा।”
ठाकुर साहब ने उसकी ओर भी ध्यान से देखकर पूछा- ‘क्या तुम्हरी भी मुझसे कोई दुश्मनी है?
मैंने तो आपके खून का प्यासा हूँ।” दूसरा यात्री बोला तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, तुम्हारी तो शक्ल भी मैंने नहीं देखी।’ दरोगा जी बोले
दूसरा यात्री- “आपने मेरी शक्ल नहीं देखी होगी, पर आपकी मैंने देखी है। कल के मेले में आपने मुझे कई डंडे मारे, मैं तो चुपचाप तमाशा देख रहा था, पर आपने आकर मेरा बुरा हाल कर दिया। मैं चुपचाप गया, पर चोट दिल पर लगी हुई है आज उसकी दवा मिलेगी।” यह कहकर उसने और भी पैर फैला दिये और गुस्से से आँखें दिखाने लगा। पंडितजी अब तक चुपचाप खड़े थे। डर रहे थे कि कहीं मारपीट ना हो जाय। पाकर ठाकुर साहब को समझाया। जैसे ही तीसरा स्टेशन आया, ठाकुर साहब ने बच्चों को वहाँ से निकालकर दूसरे कमरे में बैठा दिया। इन मैंने मौका दोनों बदमाशों ने उनका सामान उठा-उठा कर जमीन पर फेंक दिया। जब ठाकुर साहब गाड़ी से उतरने लगे, तो उन्होंने उन्हें ऐसा धक्का दिया कि बेचारे प्लेटफार्म पर गिर पड़े। गार्ड से कहने के लिए दौड़े थे, कि तभी गाड़ी के इंजन ने सीटी दी। वह जाकर गाड़ी में बैठ गए।
उधर मुंशी बैजनाथ की और भी बुरी हालत थी। सारी रात जागते गुजरी। जरा सा भी पैर फैलाने की जगह नहीं थी। आज उन्होंने जेब में बोतल भरकर रख ली थी! हर स्टेशन पर थोड़ी सी ले लेते थे। उसका नतीजा यह हुआ कि पचना मुश्किल हो गया। एक बार उल्टी हुई और पेट में दर्द होने लगा, बेचारे बड़ी मुश्किल में पड़ गए। वो चाहते थे कि किसी तरह लेट जाएँ, पर वहाँ पैर हिलाने को भी जगह नहीं थी। लखनऊ तक तो उन्होंने किसी तरह समय निकाला। लेकिन आगे चलकर मजबूर हो गए। एक स्टेशन पर उतर पड़े। खड़े नहीं हो पा रहे थे और प्लेटफार्म पर लेट गए। पत्नी भी घबरायी, बच्चों को लेकर उतर गयी। सामान उतारा, पर जल्दी में बड़ा बक्सा उतारना भूल गई। गाड़ी चल पड़ी। दरोगा जी ने अपने दोस्त को इस हालत में देखा तो वह भी उतर पड़े। समझ गए कि मुंशी जी ने आज ज्यादा पी ली है देखा तो मुंशी जी की हालत बिगड़ गई थी। बुखार, पेट में दर्द, नसों में तनाव, उल्टी और दस्त। बड़ा बुरा हुआ। स्टेशन मास्टर ने यह हालत देखी तो समझा, हैजा हो गया है। आदेश दिया कि मरीज को अभी बाहर ले जाओ। मजबूर होकर मुंशीजी को लोग एक पेड़ के नीचे उठा लाये। उनकी पत्नी रोने लगीं। डॉक्टर की तलाश हुई। पता लगा कि जिला बोर्ड की तरफ से वहाँ एक छोटा-सा अस्पताल है। लोगों की जान में जान आयी। किसी से यह भी पता लगा कि डॉक्टर साहब बिल्हौर के रहने वाले हैं। हिंम्मत बंधी, दरोगाजी अस्पताल दौड़े।
डाक्टर साहब से सारा हाल सुनाया और कहा- “आप चलकर जरा उन्हें देख तो लीजिए।” डॉक्टर का नाम था चोखेलाल, कंपाउंडर थे, लोग आदर से डॉक्टर कहा करते थे।
सब बात सुनकर रूखेपन से बोले- “सबेरे के समय मुझे बाहर जाने का आदेश नहीं है।”
दरोगा- तो क्या मुंशीजी को यहीं लायें ?” चोखेलाल-“हाँ, आप चाहे तो ले आईये”।
दरोगाजी ने दौड़कर एक डोली का इंतजाम किया उसी में मुंशीजी को उठा कर अस्पताल लाये। जैसे ही बरामदे में पैर रखा,
चोखेलाल ने डाँटकर कहा- “हैंजा के रोगी को ऊपर लाने की इजाजत नहीं है।”
बैजनाथ बेहोश तो थे नहीं, आवाज सुनी, पहचाना। धीरे से बोले- अरे, यह तो बिल्हौर के ही हैं, अच्छा-सा नाम है इनका तहसील में आते रहते हैं।
भाई! मुझे पहचानते हैं?”
चोखेलाल- “जी हाँ, अच्छे से पहचानता हूँ।”
वैजनाथ- “पहचानकर भी इतना रूखापन। मेरी जान निकल रही है। जरा देखिए, मुझे क्या हो गया ?”
चोखेलाल -“हाँ, यह सब कर दूंगा और मेरा काम ही क्या है ! फीस?”
दरोगाजी- “अस्पताल में कैसी फीस जनाब ?” चोखेलाल- “वैसी ही जैसी इन मुंशीजी ने वसूल की थी जनाब।”
दरोगा- “आप क्या कह रहे हैं, मेरी समझ में नहीं आ रहा।”
चोखेलाल- “मेरा घर बिल्हौर में है, वहाँ मेरी थोड़ी-सी जमीन है, साल में दो बार उसकी देख-भाल के लिए जाना पड़ता है। जब तहसील में टैक्स जमा करने जाता हूँ, तो मुंशीजी डांटकर अपना हक वसूल लेते हैं। न दूं तो शाम तक खड़ा रहना पड़ता है लिखा पढ़ी ना हो, फिर जनाब,” कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर मेरी फीस दस रुपये निकालिए। देखें, दवा हूँ, नहीं तो अपने रास्ते चलिए ।”
दारोगा- ‘दस रुपये चोखेलाल-“जी हाँ, और यहाँ रुकना चाहें तो दस रुपये रोज।”
दरोगाजी मजबूर हो गए। बैजनाथ की पत्नी से दस रुपये माँगे। तब उसे अपने बक्से की याद आयी। छाती पीट ली। दरोगाजी के पास भी ज्यादा रुपये नहीं थे, किसी तरह दस रुपये निकालकर चोखेलाल को दिये। उन्होंने दवा दी। दिन-भर कुछ फायदा नहीं हुआ। रात को हालत सँभली। दूसरे दिन फिर जरूरत पड़ी मुशी की पत्नी का एक गहना जो 20 रु. से कम का नहीं धा, बाजार बेचा गया, तब काम चला। चोखेलाल को दिल में खूब गालियाँ दीं।
श्री अयोध्याजी में पहुंचकर जगह की खोज हुई। पौधों के घर जगह नहीं थी। घर-घर में आदमी भरे हुए थे। सारी बस्ती छान मारी, पर कहीं रहने की जगह नहीं मिली । अंत में यह फैसला हुआ कि किसी पेड़ के नीचे रहना चाहिए। लेकिन जिस पेड़ के नीचे जाते, वहीं यात्री पड़े मिलते। सिवाय खुले मैदान में रेत पर पड़े रहने के और कोई उपाय नहीं था। एक साफ़ जगह देखकर बिस्तरे बिछाए और लेटे। इतनी देर में बादल घिर आये। बूंदें गिरने लगीं। बिजली चमकने लगी। बादल के गरजने कान के परदे फटे जा रहे थे। लड़के रो रहे थे, औरतो के दिल काँप रहे थे। अब यहाँ रुकना बेकार था, पर जाएँ कहाँ अचानक एक आदमी नदी की तरफ से लालटेन लिए आता दिखाई दिया। वह पास पहुँचा तो पंडितजी ने उसे देखा। देखने पर कुछ जाना पहचाना सा लगा,लेकिन यह याद नहीं आया कि कहाँ देखा है। पास जाकर बोले- “क्यों भाई साहब! यहाँ यात्रियों के रहने की जगह नहीं मिलेगी ?” वह आदमी रुक गया।
पंडितजी की तरफ ध्यान से देखकर बोला- “आप पंडित चन्द्रधर तो नहीं है?” पंडित खुश होकर बोले- “जी हाँ। आप मुझे कैसे जानते हैं ?”
उस आदमी ने आदर के साथ पंडितजी के पैर छुए और बोला- “मैं आपका पुराना शिष्य हूँ। मेरा नाम कृपाशंकर है। मेरे पिता कुछ दिनों बिल्लौर में डाकखाने में मुंशी रहे थे। उन्हीं दिनों मैं आपके पास में पढ़ता था।” पंडितजी को याद आया बोले- “ओ हो, तुम्हीं हो कृपाशंकर। तब तो तुम दुबले-पतले लड़के थे, कोई आठ नौ साल हुए होगे।”
कृपाशंकर- “जी हाँ, नौ साल हो गए, मैंने वहाँ से आकर इंट्रेंस पास किया। अब यहाँ म्युनिसिपैलिटी में नौकरी करता हूँ। आप बताइये आप तो अच्छे से मेरा सौभाग्य था कि आपसे मिलना हुआ।
पंडितजी- “मुझे भी तुमसे मिलकर बड़ा अच्छा लगा तुम्हारे पिता अब कहाँ हैं?” कृपाशंकर- “उनका तो देहान्त हो गया। माताजी है। आप यहाँ कब आये ?”
पंडित जी- “आज ही आया हूँ। पौधों घर जगह न मिली मजबूर हो कर यही रात बिताने को रुके हैं। में के
कृपाशंकर- ‘बाल-बच्चे भी साथ हैं ?”
पंडितजी- “नहीं, मैं तो अकेला ही आया हूँ, पर मेरे साथ दरोगा जी और तहसील के मुंशी जी आये हैं- उनके बाल-बच्चे भी साथ हैं। कृपाशंकर कुल कितने आदमी होंगे?
पंडितजी- “हैं तो दस, लेकिन थोड़ी सी जगह में गुजारा कर लेंगे”। कृपाशंकर- “नहीं साहब, बहुत-सी जगह लीजिए। मेरा बड़ा मकान खाली पड़ा है। चलिए, आराम से एक, दो, तीन दिन रहिए। मेरा बड़ा सौभाग्य है आपकी कुछ सेवा करने का मौका मिला।”
कृपाशंकर ने कुली बुलाए। सामान उठवाया और सबको अपने मकान में ले गया। साफ-सुथरा घर था। नौकर ने तुरंत खटिया बिछा दीं। घर में पूरियाँ पकने लगीं। कृपाशकर हाथ जोड़े नौकर की तरह दौड़ता था। खुशी से उसका चेहरा चमक रहा था उसके प्यार भरे व्यवहार ने सबको खुश कर दिया। और सब लोग तो खा-पीकर सो गए, लेकिन पंडित चंद्रधर को नींद नहीं आई। वह इस यात्रा की घटनाओं पर सोच-विचार कर रहे थे। रेलगाड़ी में झगड़ा और अस्पताल में भी बुरा व्यवहार और पैसे की लूट के सामने कृपाशंकर का प्यार और अच्छा व्यव्हार रौशनी से भरा दिखायी देता था| पडितजी आज गुरु होने की महानता समझी। उन्हें आज इस पद की महानता पता चली। यह लोग तीन दिन अयोध्या में रहे। किसी बात की कोई दिवकत नहीं हुई, कृपाशंकर ने उन्हें उस धार्मिक जगह का दर्शन कराया। तीसरे दिन जब सब चलने लगे, तो वह स्टेशन तक पहुँचाने आया। जब गाड़ी ने सीटी दी, तो उसने आँखों में आंसू भर के पंडितजी के पैर छुए और और बोला- “कभी-कभी इस सेवक को याद करते रहिएगा”। पंडितजी घर पहुंचे तो उनके स्वभाव में बड़ा बदलाव हो गया था। उन्होंने फिर किसी दूसरे दफ्तर में जाने की कोशिश नहीं की।
सीख टीचर ही हैं जिन्हें हमारी भारतीय संस्कृति में माता-पिता के बराबर दर्जा दिया जाता है क्योंकि वो ही हमें समाज में रहने लायक बनाते हैं। टीचर ये बात बहुत अच्छे से समझते हैं कि उनके ऊपर कितनी बड़ी ज़िम्मेदारी है और बच्चे किसी भी देश का भविष्य होते हैं शिक्षा वह मज़बूत ताकत है जिससे हम समाज को सकारात्मक बदलाव की ओर ले जा सकते हैं,