ATOMIC HABITS by James clear.

Readreviewtalk.com

About Book

क्या आपमें कुछ बुरी आदतें हैं जिन्हें आप बदलना चाहते हैं? अगर हाँ तो ये बुक आपके लिए है. जेम्स क्लियर आपको अपनी बुरी आदतों को अच्छे में बदलने के तरीके के बारे में स्टेप बाय स्टेप बताएंगे. ये आपको विलपॉवर और अपने अंदर जोश पैदा करने जैसी क्वालिटीज़ को डेवेलप करना सिखाएगा ,आप खुद पर विश्वास करना सीख जाएंगे. एटॉमिक हैबिट्स ये कहती है कि आप हर रोज़ पहले से 1% ज़्यादा बेहतर हो सकते हैं. अगर आप सच में अपने लाइफ में बदलाव लाना चाहते हैं, तो इस बुक को पढ़ने का समय

आ गया है.

यह बुक किसे पढनी चाहिये

जिन लोगों की आदतें खराब हैं, जो लोग खुद को बेहतर बनाने के लिए बदलना चाहते हैं, जो लोग नई शुरुआत

चाहते हैं.

आथर के बारे में

जेम्स क्लियर एक राइटर , मोतिवतिओनल स्पीकर और ऑथर हैं. वो अपनी वेबसाइट और समाचार पत्र के माध्यम से लोगों की मदद करते रहते हैं.

1: द सरप्राइजिंग पॉवर ऑफ़ एटोमिक हैबिट्स (The Surprising Power of Atomic Habits)

2003 में एक दिन ब्रिटिश साइकिलिंग का फैट चेंज हो गया. 1908 से ब्रिटिश राइडर्स ने ओलिंपिक गेम्स में अब तक सिर्फ एक गोल्ड मेडल जीता था. 10 सालों में कोई भी ब्रिटिश साईकिलिस्ट टूर डे फ्रांस नहीं जीता था. ब्रिटिश राइडर्स की परफोर्मेस इतनी खराब थी कि कोई भी टॉप बाइक मैंनुफेक्चर्स टीम को बाइक बेचना नहीं चाहती थी कि कहीं उनकी रेपूटेशन ना खराब हो जाए, लेकिन जब ओर्गेनाईजेशन – गवर्निंग बॉडी फॉर प्रोफेशनल साइकिलिंग इन ब्रिटेन (the governing body for professional cycling in ) ने डेव ब्रेल्सफोर्ड को हायर किया तो कुछ यानी कि हर छोटी से छोटी चीज़ में भी इम्प्रूवमेंट की गुंजाइश देखना, अपनी टीम में स्माल एडजस्टमैंट करके उसने अपनी स्ट्रेटेजी की शुरुवात की.

ऐसा हुआ जो आज तक नहीं हुआ था. जो चीज़ उसे बाकि के कोचेस से अलग करती थी, वो थी उसकी अपने स्ट्रेटेजी को लेकर कमिटमेंट, जिसे वो” द एग्रीगेशन ऑफ़ मार्जिनल गेन्स बोलला था.

ये चेंजेस बहुत बड़े नहीं थे बल्कि छोटे-छोटे थे जैसे कि बाइक की सीट को रीडिजाईन करके ज्यादा कम्फर्टबल बनाना, उसने राइडर्स को आइडियल थ मसल्स टेम्प्रेचर मेंटेन रखने के लिए इलेक्ट्रीकली हीटेड ओवरशॉर्टस पहनने को बोला, टायर्स पर बैटर ग्रिप के लिए अल्कोहल रब करना वगैरह-वगैरह ! इन स्माल चेंजेस की वजह से इम्प्रूवमेंट हुई और रिजल्ट भी बैटर मिल रहा था. और फिर 2008 बीजिंग ओलिंपिक गेम्स में टीम ने परफोर्म किया और झंडे गाड़ दिए. लेकिन ये हुआ कैसे? कैसे एक आर्डिनरी एथलीट्स की टीम वर्ल्ड चैंपियन बन गयी और वो भी छोटे-छोटे चैंजेस से? कोई भी नहीं सोच सकता था कि ये स्माल एफोर्टूस इतना बड़ा डिफ़रेंस ला सकते

अक्सर हम इन छोटे-छोटे इम्पूट्मेंट्स को चाहे वो 1% ही क्यों ना हो, कभी नोटिस नहीं करते लेकिन अगर आप गौर करे तो ये बड़े इफेक्टिव होते है और

उनका इफेक्ट तुरंत नहीं बल्कि कुछ सालो बाद नजर आता है. चलो देखते है ये मैध में कैसे वर्क करता है: अगर आप एक साल में हर दिन 19% इम्प्रूव

करते है तो साल में आप 37 टाइम्स बैटर बन चुके होंगे. हैबिट्स सेल्फ इम्प्रूवमेंट के लिए कम्पाउंड इंटरेस्ट की तरह होती है. इनका असर एक दिन में नहीं दीखता लेकिन कई मंथ्स की प्रेक्टिस के बाद डेफिनेटली आपको वो इफेक्ट दिखने लगेगा. हालाँकि इसका सेड पार्ट ये है कि ये इतनी स्लो पेस में असर करती है कि कई बार बेड हैबिट्स से छुटकारा पाने में बहुत टाइम लग जाता है. अगर आज आप अन्हेल्दी मील खाते है, तो स्केल पर आपका वेट बिलकुल भी चेंज नहीं होगा लेकिन बार-बार यही चीज़ रीपीट करेंगे तो टोक्सिक रीज्ल्ट्स भी मिलेंगे. जैसा कि बोला जाता है, आज आप सक्सेसफुल है या अनसक्सेसफुल ये उतना मैटर नहीं करता, मैटर करती है आपकी हैबिट्स कि वो आपको

राईट डायरेक्शन में ले जाती है या नहीं. 2: आपकी हैबिट्स कैसे आपकी आईडेंटीटी को शेप करती है

हाउ योर हैबिट्स शेप योर आइडेंटिटी ( एंड वाइस वर्सा )How Your Habits Shape Your Identity (and Vice Versa)

बैड हैबिट्स को छोड़ना इतना मुश्किल क्यों है जबकि गुड हैबिट्स जल्दी से अपनाई नहीं जाती? चाहे हम कितने भी अच्छे इंटेशन के साथ चले बुरी आदते एक बार लग जाए तो पीछा नहीं छोड़ती. हम लाख कोशिश कर ले उन्हें चेंज करने की लेकिन अक्सर हम फेल हो जाते है और इसकी वजह है ।) हम गलत चीजों को चेंज करने की कोशिश करते है और 2) हमारा तरीका सही नहीं होता. बहुत से लोग प्रोसेस ऑफ़ चेंज स्टार्ट करने के लिए उस चीज़ पर फोकस करने लगते है जो उन्हें अचीव करनी होती है.ये हमें आउट कम बेस्ड हैबिट्स में लेकर आता है लेकिन अगर हम आइडेंटिटी बेस्ड हैबिट्स बिल्ड करीत करे तो हम इस चीज़ पर फोकस करना स्टार्ट कर देंगे कि हमे क्या बनना है. मान लो कि लोग सिगरेट छोड़ना चाहते है. फर्स्ट पर्सन को जब सिगरेट ऑफर की जाती है तो वो बोलता है” नो थैंक यू, मै सिगरेट छोड़ने की कोशिश कर रहा हूँ अब ये सूनने में बड़ा रिजनेबल लगता है लेकिन देखा जाए तो ये आदमी ये बात मनाता है कि वो बेसिकली एक स्मोकर है जो अब कुछ और बनना चाहता है. वो अपने बिहेवियर में एक चेंज चाहता है जबकि उसके बिलिफ्स अभी भी सेम है.

दूसरे आदमी को जब सिगरेट ऑफर की जाती है तो वो भी मना कर देता है लेकिन उसके बोलने का तरीका डिफरेंट है” नौ, थेंक यू, लेकिन मे सिगरेट नहीं पीता”, तो देखा आपने, स्माल डिफ़रेंस है लेकिन सिर्फ इससे ही दोनों की आइडेंटिटी चेंज हो जाती है. ज्यादातर लोग इम्प्रूवमेंट करते वक्त आइडेंटिटी चेंज के बारे में सोचते तक नहीं है. आप अपने एक अस्पेक्ट को लेकर जितना ज्यादा प्राउड फील करेंगे उतना ही आप न्यू हैबिट्स अपनाने के लिए मोटिवेट होंगे, आपको बस ये डिसाइड करना है कि आप क्या बनना चाहते हो, और अपनी हैबिट्स में स्माल चेंजेस लाकर आप ये बात पूच कर सकते हो.

3:4 सिम्पल स्टेप्स में बैटर हैबिट्स कैसे बिल्ड करे (How to Build Better Habits in 4 Simple Steps)

1898 में एक साइकोलोजिस्ट एडवर्ड थोर्डाईक(Edward Thorndike.) ने एक एक्सपेरिमेंट किया जिसमें पता चला कि हम करंटली हैबिट्स और रूल्स कैसे समझते है जो बाद में हमारा बिहेवियर बन जाती है. एडवर्ड को एनिमल्स का बिहेवियर स्टडी करने का बड़ा शोक था इसलिए उन्होंने बिल्लियों से स्टार्ट किया. उन्होंने हर केट को एक डिवाइस पज़ल बॉक्स के अंदर रखा, बॉक्स के अंदर एक डोर बना था ताकि कैट ईजिली निकल सके, एक लीवर प्रेश करके या एक कोर्ड लूप पुल करके ये ड़ोर खुल जाता था. ज्यादातर कैट्स बॉक्स के अंदर जाते ही बाहर निकलने की कोशिश करती थी. कैट्स अपनी नोज़ कोर्नेस में घुसा के देखती, अपने पजे मारती फिर कुछ मिनट बाद उन्हें लीवर दीखता और फिर डोर खोल कर बाहर आ जाती थी. 20-30 बार के ट्रायल के बाद उनका बिहेवियर ओबेज्च् करने के बाद ये पता चला कि कैट्स को बार बार बॉक्स में जाना हैबीचुअल लगने लगा और पर फोकस किया. इस ही वो लेवल प्रेस करके बाहर निकल आती थी. बार-बार की प्रेक्टिस से कैट्स ने मिस्टेक कम की ेटिसफाइंग रिजल्ट्स देते है, हम स्टडीज से थोन्डाईकEdvward Thorndike.) लर्निंग प्रोसेस को कुछ ऐसे डिस्क्राइब करते है “जो बिहेवियर्स। उन्हें रीपीट करते है और जिनका रिजल्ट्स हमारे फेवर में नहीं होता हम उन बिहेवियर्स को अपनी हैबिट्स में शामिल नहीं करते. में है: हैबिट्स क्रिएट करने के प्रोसेस को हम चार ईजी स्टेप्स में डिवाइड कर सकते है : क्यू (cue, क्रेविंग(Craving, रिस्पॉंस (response, और रीवार्ड की तरफ ले जाता है. क्रेविंग्स एक तरह से मोटिवेशनल फ़ोर्स है; बिना किसी भी हमारे ब्रेन को बिहेवियर स्टार्ट करने के से. और क्योंकि क्यू रीवा्स का फर्स्ट साईन है, कस्ट साईन है. ये अक्सर क्रेविंग्स र करता है. रीवार्ड प्रेडिक्ट होता है काइंड ऑफ़ इन्फोर्मेशन डिजायर के हम कोई एक्शन नहीं लेते. आपको सिगरेट स्मोकिंग की क्रेविंग्स नहीं होती बल्कि उस रीलिफ की होती है जो सिगरेट पीने से मिलती है. थर्ड प्लेस पर रीस्पांस आता है. यही वो एक्चुअल हैबिट है जो आप बनाते है जो किसी भी थौट या एक्शन के फॉर्म में हो सकती है. चाहे कोई एक्चुअल

रिस्पॉन्स हो या नहीं ये डिपेंड करता है कि आप कितने मोटिवेटेड है. और फाइनली रीस्पोंस ही रीवार्ड लाता है. ये बेसिकली किसी भी हैबिट का गोल

होता है. क्यू रीवार्ड को नोटिस करता है, क्रेदिंग्स उस रीवार्ड की डिजायर रखती है और रीस्पोंस रीवार्ड अचीव करने से जुड़ा हुआ है. अगर कोई

बिहेवियर इन चारो स्टेजेस में से किसी एक के लिए भी काफी नहीं है तो ये मान के चलो कि वो कभी भी हैबिट नही बन सकता.

द फर्स्ट लॉ: मेक इट ओबवीयस (The 1st Law: Make t Obvious)

4: द मेन व्हू डीड नोट लुक राईट (The Man Who Didn’t Look Right)

मेंने एक बार एक लेडी स्टोरी सुनी जो कई सालो तक पैरामेडिक की जॉब करती थी, जो एक बार एक फैमिली गेदरिंग में गयी, उसने वहां अपने फादर इन लॉ को देखा तो बड़ी कंसर्न हो गयी. उसने अपने फादर इन लॉ से कहा कि उसे उनकी कडिशन कुछ ठीक नहीं लग रही इसलिए उन्हें तुरत हॉस्पिटल जाना चाहिए. और कुछ ही घंटो बाद होस्पिटल में उनकी सर्जरी की गयी जिससे ये पता चला कि एक मेंजर आर्टरी ब्लॉक्ड थी जिससे उन्हें A कभी भी हार्ट अटैक आ सकता था. उस लेडी अलर्टनेस की वजह से ओल्ड मैन की जान बच गयी थी, ह्यूमन ब्रेम एक प्रेडिक्शन मशीन की तरह है. ये हर स्माल डिटेल को ऑब्जर्व करता है, ये हर वक्त ओब्ज़ेर्व करता है कि आपके आस-पास क्या चल रहा है जो काम आपकी हैबिट में शामिल है जैसे कि एक पैरामेडिक एक हार्ट अटैक पेशेंट का फेस देख कर ही समझ जाता है कि अटैक आने वाला है-उसी तरह आपका ब्रेन भी नोटिस करने लगता है कि क्या चीज़ | आपके लिए इम्पोटेंट है. और जितनी आपकी प्रेक्टिस बढ़ेगी आप खुद ही उन क्यूज़ को नोटिस करना शुरू कर डोज जो सटेन रिजल्ट्स प्रेडिक्ट करती है, वो व्यूज जो हमारी हैबिट्स इतना कॉमन बना देते है कि हमे नजर भी नहीं आते. लेकिन न्यू हैबिट्स बिल्ड करने से पहले हमे अपने करेंट हैबिट्स पर ध्यान देना होगा. वैसे ये थोडा मुश्किल है क्योंकि ये इतनी पुरानी होती है ऑटोमेटिक हैबिट्स बन जाती है इसमें बिगेस्ट चलेंज है जो आप एक्चुअल में करते हो उसके बारे में अवेयर होना. और ये करने के लिए आपको अपने डेली हैबिट्स की एक लिस्ट बनानी होगी, जब आपकी पास फुल लिस्ट बन जाए तो हर एक

बिहेवियर को स्कैन करो फिर खुद से पूछो कि ये हेबिट अच्छी है या बुरी या न्यूट्रल है? बसअपनी हैबिट्स को रकोर करो लेकिन कुछ चेंज करने की

ज़रूरत नहीं है. आपको बस एकनॉलेज करना है कि आप क्या करते हो. फोल्ट्स के लिए खुद को ब्लेम मत करो और ना ही खुद को सक्सेस के लिए

प्रेज़ करो, बिहेवियर चेंज का प्रोसेस हमेशा अवेयरनेस स्टार्ट होता है.

5: द बेस्ट वे टू स्टार्ट अ न्यू हैबिट (The Best Way to Start a New Habit) 2001 में ग्रेट ब्रिटेन के कुछ रिसर्चर्स ने टू वीक्स के लिए 248 लोगो पर बैटर एक्सरसाइ हैबिट्स बिल्ड करने के लिए एक रिसर्च कंडक्ट किया. फर्स्ट

ग्रुप एक कण्ट्रोल ग्रुप था जिन्हें बस ट्रेक रखना था कि दो कितनी बार एवसरसाइज़ करते है. सेकंड ग्रुप “मोटिवेशन” ग्रुप था उन्हें बोला गया था कि वो अपनी एक्सरसाइज ट्रेक करे और एक्सरसाइज़ के उपर कुछ बुक्स भी रीड करे, इसके अलावा रीसर्वर्स ने उन्हें बोला कि वर्क आउट करने से कोरोनरी

हार्ट डीज़ीज़ का रिस्क कम होता है और हार्ट हेल्थ इम्पूरूव होती है. लास्ट में वर्ड ग्रुप को सेकंड गुप की तरह सेम डेटा प्रेजेंट किया गया था जिसका मतलब था कि उन्हें भी इक्वल लेवल मोटिवेशन मिली. हालांकि उन्हें एक प्लान बनाने के लिए भी बोला गया था कि उन्हें कब और कहाँ एक्सरसाइज़ करना है. अब इसे और स्पेशिफिक वे में करने के लिए धर्ड गुप के हर मेंबर ने लिखा” अगले नेक्स्ट वीक के अंदर मै एट लीस्ट 20 मिनट्स की हार्ड एक्सरसाइज़ करूंगा इस दिन और इस टाइम और इस जगह पर. फर्स्ट और सेकड ग्रुप में 35-38% ने वीक में एट लीस्ट एक बार वर्क आउट किया. एक्चुअल में इन लोगो पर मोटिवेशनल प्रेजेंटेशन का कोई खास इम्पैक्ट

नहीं हुआ था.

लेकिन थर्ड ग्रुप में से 97% लोगो ने पर चीक एक बार तो वर्क आउट किया और जो सेंटेंस उन्होंने लिखे थे, उन्हें रीसर्चर्स इम्प्लेमेंशन्स इंटेशन्स बोलते हैं, एक प्लान जो आप पहले से बनाकर रखते हो कि आप कब और कहाँ एक्शन लोगे. कई रीसर्चर्स ने पूव किया है इम्लीमेंशन इंटेशंस हमे अपने गोल से कनेक्टेड रहने में हेल्प करते हैं. कई लोगो को कगता है कि उनके पास कोई मोटिवेशन नहीं है लेकिन सच ये है कि वो अपने गोल को लेकर क्लियर नहीं है. कब और कहाँ एक्ट करना है, ये ऑब्वियस नहीं होता लेकिन बिहेवियर का फर्स्ट लॉ है इसे ऑब्वियस बनाना. ऑब्वियस होना एक प्रेक्टिकल तरीका है ताकि आपको अपनी हैबिट्स के लिए क्लियर क्यूज मिल सके और आप एक प्लान डिजाईन कर सके कि कब और कहाँ एवट करना है. 6. मोटिवेशन इज़ ओवररेटेड: एन्वायर्नमेंट ओपन मैटर्स मोर (Motivation is Overrated; Environment Often Matters

More) बोस्टन के मस्सचुसेट्स Massachusetts)जेर्नल हॉस्पिटल में एक प्राइमरी केयर फिजिशियन एन्ने थोर्नडाइक को एक क्रेजी आईडिया आया. उसे लगता था कि वो हॉस्पिटल स्टाफ और विजिटर्स की ईटिंग हैबिट्स को बैटर बना सकती है वो भी उनका मोटीवेशन चेंज किये बिना या उनके बगैर किसी डिस्कन के. उसने अपनी कलीग के साथ मिलकर हॉस्पिटल के कैफेटेरिया का” चॉइस आर्कीटेक्चर” चेंज करने के लिए एक सिक्स मंस स्टडी कन्डक्ट की. सबसे पहले तो उन्होंने अरेंजमेंट ऑफ ड्रिंक्स चेंज किये रेफ्रिजरेटर कैश रजिस्टर के पास रखे थे और उनमे सिर्फ सोडा रखा होता था. उन्होंने सोडा के बदले बाटर बोटेल्स रखवा दी. सिर्फ रेफरीजरेटर में ही नहीं बल्कि रूम के फूड स्टेशन में भी.

सोडा अभी भी मेन रेफ्रिजरेटर में था लेकिन वाटर अब सब जगह अवलेबल था. अगले तीन मंथ्स में सोडा की सेल 11.4% तक डिक्लाइन हो गयी थी जबकि बोटेल वाटर की सेल 25.8% इनक्रीज हो थी. इसी तरह के चेंजेस कैफेटेरिया के फूड में भी किये गए और यहाँ भी उन्हें सेम रिजल्ट्स मिले. लेकिन किसी ने कोई नोटिस नहीं किया. अक्सर लोग चीज़े इसलिए नहीं लेते या खाते कि उन्हें वही चीज़ चाहिए बल्कि उनका लेना या खाना डिपेंड करता है वि चीज़ रखी कहाँ है. मान लो आप किचन में गए, बल्कि आपको कुकीज दिख गयी तो आपको खाने का मन किया, आपकी हैबिट्स भी इसी तरह चेंज हो जाती है बस डिपेंड करता है कि आप कहाँ पर हो और आपके सामने क्या कयूज़ है. ह्यूमन बिहेवियर फॉर्म करने में एन्वायर्नमेंट का इनविजिबल हाथ माना जाता है. चाहे हमारी पर्सनेलिटीज कितनी भी डिफरेंट क्यों ना हो कुछ बिहेवियर खुद ब खुद हमारे एन्वायर्नमेंट कंडिशन की वजह से भी बन जाते है. अनफॉर्चूनेटली, जिस एन्वायर्नमेंट में हम रहते है और काम करते है, हमे कुछ स्पेशिफिक एक्शन्स लेने से रोक देता है क्योंकि बिहेवियर को ट्रिगर करने का कोई ऑब्दियस क्यू होना ज़रूरी है. आप किसी हैबिट को अपनी लाइफ का मेन पार्ट बनाना चाहते हो तो क्यू को अपने एन्वायर्नमेंट का मेन पार्ट बनाओ.

7: द सीक्रेट टू सेल्फ कंट्रोल: The Secret to Self-Control)

1971 में जब वियतनाम वॉर अपने सिक्सटीन्थ इयर में चल रही थी, कनेक्टीकट से कांग्रेसमेन रोबर्ट स्टीले और इलइनॉय से मोर्गन मर्फी ने एक डिस्कवरी की जिसने अमेरिकन पब्लिक को हैरान कर दिया. उन्होंने जब टूप विजिट किया तो उन्हें पता चला कि जितने भी यू.एस. सोल्जेर्स वहां भेजे गए थे उनके से ऑलमोस्ट 15% ड्रग एडिक्ट थे. इसके फोलो अप रीसर्च से ये बात सामने आई कि वियतनाम भेजे गए 35% सर्विस मेंबर हेरोइन ट्राई

कर चुके थे और 20% को ड्रग की लत थी,

इस डिस्कवरी की वजह से एक स्पेशल एक्शन ऑफिस ऑफ ड्रग एब्यूज़ प्रीवेंशन क्रिएट किया गया ताकि जब ये सर्विस मेंबर वापस अमेरिका लोटे तो उनकी ये छुड़ाई जा सकते या उन्हें रिहैब में रखा जाए. ली रॉबिन्स एक रीसर्च इंचार्ज धे और उन्होने प्रव किया कि अगर एन्वायर्नमेंट में रेडिकल चेंज जाए तो एडिक्शन्स भी तुरंत डिसअपीयर हो सकता है, वियतनाम में गए हुए सोल्ज़ेर्स अपना सारा टाइम ऐसे क्यूज के बीच स्पेंड करते थे जो उन्हें हेरोइन लेने के लिए ट्रिगर करता था.: एक तो ये ईजिली एक्ससीबल था, उपर से वार का स्ट्रेस, और फिर उनके साथी भी हेरोइन यूजर्स थे (फेलो सोन्जेसी और अपने घर परिवार से दूर रहने का टेशन एक एंजाएटी क्रिएट करता था. लेकिन जब ये सोल्जर्स वापस अमेरिका आये तो उन्हें ऐसा माहौल

मिला जिसमें ऐसे कोई क्यूज से ही नहीं जो उन्हें ड्रग लेने पर मजबूर करते इसलिए उनकी हैबिट्स इस वियतनाम स्टडी बेड हैबिट्स को लेकर हमारे बहुत से कैल्चरल विलापिस की साती हैा हे जत साइटिस्ट ने ऐसे लोगो को ओव्ज़र्व किया जिनका का सोल्यूशन बस थोड़े से डिसिप्लिन में है लेकिन सीमेंट रीसीचेंस ने कुछ और ही पूव करती खुद चेंज हो गयी. है. हमारा कल्चर सिखाता है कि हमारी सारी प्रोब्लम्स सेल्फ कण्ट्रोल बहुत स्ट्रोंग था, तो उन्हें पता लगा कि ये लोग भी उन लोगों से ज्यादा डिफरेंट नहीं है जो स्ट्रगल कर रहे है. बल्कि” डिसप्लींड” लोग अपनी लाइफ में बैटर इसलिए है क्योंकि ये लोग खुद को टेम्प्टिंग सिचुएशन से दूर रखते है.

जो लोग सबसे ज्यादा सेल्फ कण्ट्रोल वाले होते है वो सबसे कम कण्ट्रोल यूज़ करते है, अगर आपको हर बार कण्ट्रोल करने की ज़रूरत ना पड़े तो सेल्फ कण्ट्रोल प्रेक्टिस करना ज्यादा ईजी होता है. दुसरे वईस में बोले तो हमारा सेल्फ कण्ट्रोल हमारी बेड हैबिट्स दूर नहीं करता है. आपकी एनेर्जी कुछ होनी चाहिए जो ज्यादा पॉवरफुल है जैसे कि अपने एन्वायरमेंट को ऑप्टीमाइज़ करना. अपने गुड हैबिट्स का ऑब्वियस क्यूज़

बनाओ और बेड हैबिट्स का न्यूज़ इनविजिबल कर के सेकंड लॉ: मेक इट अट्रेक्टिव (The 2nd Law: Make It Attractve)

8: हाउ टू मेक अ हैबिट इररेजिस्टेबल (How to Make a Habit Irresistible) आयरलैंड, डब्लिन के एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग स्टूडेंट रोनन व्यने (Ronan Byrne) को नेटफ्लिक्स देखना बड़ा पसंद है, लेकिन उसे ये भी पता

ही कि उसे एक्सरसाइज़ करनी चाहिए. तो उसे एक आईडिया आता है वो अपने स्टेशनरी बाइक को अपने लेपटॉप और टीवी से कनेक्ट कर देता है. फिर वो एक ऐसा कंप्यूटर प्रोग्राम बनाता है जिससे साइकल को एक ख़ास स्पीड पर चलाने पर नेटफ्लिक्स काम करने लगता है. उसने टेम्पटेशन इस तरह यूज़ किया कि अब उसे एक्सरसाइज करना और भी मजेदार लगने लगा. तो ये चीज़ कैसे काम कर गयी? सिम्पल है, जो एक्शन आपको करने की ज़रूरत है उसे उस एक्शन से कनेक्ट कर दो जो आप करना चाहते हो. टेम्प्टशन बंडलिंग मेथड है एक साइकोलोजिकल

ध्योरी को अप्लाई करने का जिसे प्रेमैकस प्रिंसपल बोलते है. ये प्रिंसपल बेसिकली ये बताता है कि अगर आप कोई चीज़ नहीं भी करना चाहते है तो भी आप उसे करने पर मजबूर हो जाते है, वो इसलिए क्योंकि आपको ऐसा करने में कुछ ऐसा मिल रहा है जो आप वाकई में अचीव करना चाहते है. इसका मतलब है हैबिट्स को अट्रेक्टिव बनाना या फेवरेबल बनाना जिसके बदले में कुछ भी छोड़ना ऐसा मिले रहा पड़े. 9: द रोल ऑफ़ फेमिली एंड फ्रेंड्स इन शेपिंग योर हैबिट्स (The Role of Family and Frlends in Shaping Your Hablts) हम अपनी फर्स्ट हैबिट्स चूज़ नहीं करते, हम उन्हें नकल करते है. क्योंकि हम अपनी फेमिली और फ्रेंड्स, अपने चर्च, अपने स्कूल, अपनी लोकल कम्यूनिटी और सोसाईटी इन सबको फोलो करते है. हर कल्चर और ग्रुप के अपने कुछ स्टैंडर्ड्स होते है जो हमारी हैबिट्स को अफेक्ट करती है. हम अपने करीबी लोगो को अनजाने ही इमीटेट करते है, उनकी हैबिट्स पिक कर लेते हैं, हम अपने पेरेंट्स की कॉपी करते है, उनके जैसे ही आग्ग्यमेंट्स और

फाइट्स को हैंडल करने की कोशिश करते है. इतना ही नहीं हम अपने को-वर्कर्स को भी कॉपी करते हैं. एक जाना-माना रुल है अगर आप किसी के वलोज है तो पॉसिबल है कि आप उन्हें कॉपी करे. एक स्टडी से पता चला कि अगर हमारा कोई फ्रेंड फेट है तो हमारे फैट होने के चांसेस भी 57% बढ़ जाते है या इसके उल्ट भी हो सकता है. एक तरह से बोले तो हमारे फ्रेंड्स और फेमिली इनविजिबल पीअर प्रेशर है, ये जिस डायरेक्शन में जाते है हम भी उधर ही जाते है. ऑफ़ कोर्स पीअर प्रेशर तभी बुरा है जब वो बेड इन्फ्लुएंश डाले. इसलिए बेस्ट धिंग है कि ऐसा कल्चर ज्वाइन करो जहाँ आपकी गुड हैबिट्स को वेलकम और एंकरेज किया जाए.

10: हाउ टू फाइंड एंड फिक्स द कॉजेस ऑफ़ योर बेड हैबिट्स (How to Find and Fix the Causes of Your Bad Habits) आप किसी भी हार्ड हैबिट को ईजी बना सकते है अगर आप उसे एक पोजिटिव माइंड सेट से लिंक कर दे. जैसे कि हम हमेशा बोलते है कि हमे ये करना है, वो करना है. लेकिन अगर हम सिर्फ एक वर्ड चेंज कर दे तो क्या होगा? “मुझे काम पर जाने के लिए उठना है” के बजाये अगर हम बोले कि ” में इसलिए उठता हूँ कि काम पर जा जाऊं, बस को सिम्पली चेंज करके आप अपना पुरा पर्सपेकिटेव बदल देते हैं. इस तरह से आप अपनी हैबिट के बेनेफिट्स को हाईलाईट करते है नाकि सेटबैक और डिसएडवांटेजेस को. जो चीज़ आपमें बेड हैबिट्स लाती है उसे

ढूंढ कर फिक्स करने का सीक्रेट है कि आप उस एसोसिएशन को रीफ्रेम करो जो उसके बारे में आप सोचते हो, इस तरह से आप किसी भी हार्ड हैबिट को एक मजेदार हैबिट में टर्न कर सकते हो,

द थर्ड लॉ: मेक इट ईजी (The 3rd Law: Make t Easy) II: वाक् स्लोली, बट नेवर बैकवार्ड (Walk Slowly, but Never Backward)

हैबिट फॉर्म करना एक प्रोसेस है जिसमे एक बिहेवियर रीपीटेशन के बाद ऑटोमेटिक रीफ्लेक्स बन जाता है. हैबिट रीपीटेशन ब्रेन में क्लियर फिजिकल चेंजेस लाता है. जैसे एक्जाम्पल के लिए, म्यूजिशियंस के ब्रेन का सेरिबेलम पार्ट नॉन-म्यूजिशियंस के कंपेयर में बड़ा होता है. हर बार जब आप कोई एक्शन रीपीट करते हो तो आप असल में एक स्पेशिफिक न्यूरल सर्कट को एक्टिवेट करते हो जो उस हैबिट से जुड़ा होता है. हैबिट फोरमेशन में टाइम कितना लगा ये उतना मैटर नहीं करता, टाइम का कभी भी प्रोब्लम नहीं था. मैटर करता है वो रेट जिस पर आप सर्टन बिहेवियर को परफोर्म करते हो. जैसे आप कोई चीज़ 40 डेज में टू टाइम्स करो या 200 टाइम्स, ये टाइम की बात नहीं है बल्कि फ्रीक्वेंसी की बात है. कोई भी हैबिट क्रियेट करने के लिए आपको उसकी प्रेक्टिस करनी पड़ेगी.

12 द लॉ ऑफ़ लीस्ट एफोर्ट (The Law of Least Effort) एनेर्जी वैल्यूएबल है और ब्रेन इस तरह बना है कि ये जब चाहे इसे कंज़र्व कर सकता है. ये एक ह्यूमन नेचर है कि हम लॉ ऑफ़ लीस्ट एफोर्ट फोलो

करते है जो कहता है कि जब लोगों को दो सेम चॉइस दी जाती है तो जिस काम में ज्यादा एफर्ट नहीं लगता लोग नेचुरली उसीको चूज़ करेंगे, हर एक्शन में एक सर्टेन अमाउंट ऑफ़ एनेर्जी लगती है. और जितनी ज्यादा एनेर्जी की डिमांड होगी उतना ही कम हम उसे करना चाहेंगे. कुछ सेंस में देखे तो हर एक ओब्सटेकल है उस चीज़ के बीच में जो आप चाहते है. डाईट एक ओब्स्टेकल है फिट होने के लिए,मेडीटेशन एक ओब्सटेकल है मन

हैबिट सिर्फ की शान्ति के लिए.

आप एक्चुअल में हैबिट से प्यार नहीं करते बल्कि उस आउटकम से करते है जो ये डिलीवर करता है. लेकिन अगर हम सब इतने लेज़ी है तो कैसे कुछ लोग मुश्किल गोल्स भी अचीव कर लेते है ? इसका सोल्यूशन है कि एक ऐसा एन्वायर्नमेंट क्रियेट करो जहाँ राईट चीज़े करना हमेशा ईजी हो इस तरह आप फ्रिक्शन ऑफ ओल्सटेकल रिड्यूस कर पाओगे, जैसे मील डिलीवरी सर्विस ग्रोसरी शौपिंग का फ़रिक्शन डिक्रीज करती है, जैसे डेटिंग एप्स की वजह से सोशल इंट्रोडक्शन करने का फ्रिक्शन कम हो गया है. इसी तरह और भी बहुत सारी चीज़े. बैटर हैबिट्स क्रिएट करने के स्ट्रगल में ऐसे तरीके एक्सप्लोर करो जो गुड हैबिट्स से जुड़े हुए फ्रिक्शन कम करे और हमारी बेड हैबिट्स से कनेक्टेड फ्रिक्शन इनक्रीज करे.

13: हाउ टू स्टॉप प्रोकास्टीनेटिंग बाई यूजिंग द टू-मिनट रूल (How to Stop Procrastinating by Using the Two-Minute Rule) अगर आप कुछ बहुत बड़ा भी स्टार्ट करना चाहते है, और बिग स्टेप्स लेके आपको ये ईजी भी लगता है तो भी आपको बेबी स्टेप्स से शुरू करना चाहिए.

हम सब बहुत जल्दी बहुत ज्यादा करने की कोशिश करते है क्योंकि हम चेंज को लेकर इतने एक्साईटेड जो रहते है. लेकिन एक टेंडेसी आपको ऐसा करने से रोकती है और वो है टू मिनट रूल जो कहती है जब आप कोई न्यू हैबिट स्टार्ट करते है इसे करने में दो मिनट से कम टाइम लगना चाहिए” आप देखोगे कि ऑलमोस्ट हर हैबिट दो मिनट में ही लर्न की जा सकती है जैसे” रोज़ रात सोने से पहले कोई बुक पढना” बन जाता है” रोज़ रात एक पेज पढ़ के सोना” “30 मिनट योगा करो” बन जाता है’ टेक आउट माई योगा मेट”.

पॉइंट ये है कि किसी पर्टीक्यूलर हैबिट को अपनाने के लिए ईजी वे में स्टार्ट करों. आप चाहे एक मिनट मेडीटेट करो, एक पेज पढो, एक कपडा तह लगाओ, कुछ भी करो लेकिन स्टार्ट राईट लगे उसे करना एक पॉवरफुल स्ट्रेटेजी है. लोग लगता है कि डेली बुक का एक पेज पढना बहुत बड़ा काम है लेकिन पॉइंट ये नहीं है कि आप कितना पढ़ते हो या कितना करते हो बल्कि ये है कि आप एट लीस्ट कर तो रहे हो. और जब आप करना शुरू करोगे तो फर्स्ट दू मिनट्स आपके लार्जेर रूटीन का एक रिचुअल बन जायेँगे, एक्चूअली ये एक आइडियल तरीका है किसी भी डिफिकल्ट स्किल में एक्सपर्ट बनने के लिए,

अगर एक बार हैबिट बन जाये तो ऐसा भी पॉइंट आएगा कि आप वो एक्शन एकदम परफेक्ट वे मैं रूटीनली करने लगोगे. आप इस टू मिनट रूल को हैबिट शेपिंग टेक्नीक से मिक्स कर सकते है जिससे आपकी हैबिट आपको अपना अल्टीमेट गोल दिला सके. कोई भी हैबिट एक्स्टेबिलिश करने के बाद इसे इंटरमिडीएट स्टेप्स तक ले जाए और प्रोसेस को तब तक रीपीट करो जब तक कि आप इसमें एक्सपर्ट नहीं बन जाते, उसके बाद ही नेवस्ट लेवल तक जाओ. फिर आप देखोगे कि जो हैबिट आप बिल्ड कभी करना चाहते थे वो आज आपकी पर्सनेलिटी का पार्ट बन गयी है,

14: हाउ टू मेक गुड हैबिट्स इनएवीएटेबल एंड बेड हैबिट्स इम्पॉसिबल (How to Make Cood Habits Inevitable and Bad 1830 के समर की बात है. विक्टर ह्यूगो (Victor Hugo.) एक फ्रेंच साइटर एक इम्पॉसिबल डेडलाइन से परेशान था. उसने 12 महीने पहले अपने

Habits Impossible)

पब्लिशर को एक नयी बुक लिख के देने का प्रोमिस किया था लेकिन लिख नहीं पाया था. इसके बदले उसने दुसरे प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू कर दिया था और अपना प्रोमिस डिले करता रहा, ह्यूगो का पब्लिश फ्रस्ट्रेट हो गया इसलिए उसने सिक्स मंस के अंदर की एक डेडलाइन सेट कर दी. ह्यूगों को बोला गया कि उसे फरवरी 1831 तक बुक कम्प्लीट करनी है. अब वो कैसे डेडलाइन से पहले कॉसट्रेट करके एक बढ़िया बुक लिखे? लेकिन ह्यूगों ने एक अजीब काम किया. उसने अपने सारे कपडे एक असिस्टेंट को दिए और बोला इन्हें लॉक करके रख दो. इस तरह अब उसके पास बाहर जाने के लिए कोई कपड़े नहीं बचे थे तो उसके पास घर में बैठकर बुक लिखने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बचा था. 1830 के पूरे फॉल और विंटर सीजन में वो जी-जान से लिखता रहा. उसकी ये बुक “द हंचबैक ऑफ़ नोट्े डेम” (The Hunchback of Notre Dame जनवरी 14, 1831 से दो हफ्ते पहले ही पब्लिश हो गई थी. तो गुड हैबिट्स ईजी बनाना सक्सेस नहीं है बल्कि बेड हैबिट्स हार्ड बनाना हैं. द फोर्थ लॉ; मेक इट सेटिसफाइंग (The 4th Law: Make t Satisfying)

15: द कार्डिनल रूल ऑफ़ बिहेवियर चेंज (The Cardinal Rule of Behavior Change)

जब कोई एक्स्पिरियेश सेटिसफाई करता है तो हम उस बिहेवियर को ज्यादा रीपीट करते है और ये पूरी तरह लोजिकल है. प्लेजर चाहे छोटी-छोटी चीजों का ही क्यों ना हो, हमारे ब्रेन को एक सिंगल भेजता है कि” ये चीज़ अच्छी है, इसे दुबारा करो” अब च्यूइंग गम का ही एक्जाम्पल ले लो. शुरुवात के च्यूझग गम्स में कोई टेस्ट नहीं होता था, सिर्फ ब्लैंड रेजिन्स- बिलकुल भी टेस्टी नहीं, लेकिन 1897 में इसमें फ्लेवर्स एड किये जाने लगे. तो ये बात

भी लोजिकल है कि अगर किसी एक्स्पिरिवेश में मज़ा नहीं आता तो उसे रीपीट करने का कोई मतलब नहीं है. कार्डिनल रूल यही कहता है”: जिसमे रीवार्ड मिले वही चीज़ रीपीट की जाती है और जिसमे पनिशमेंट मिले उसे अवॉयड किया जाता है. लेकिन ये रुल थोडा ट्रिकी है; हम सिर्फ किसी तरह माता है सेहियफेयशन ही नहीं ढेढ़ते. बल्कि हम इमिडिएट सेटिसफेक्शन देखते है. सभी हैबिट्स का टाइम के साथ अलग-अलग आउटकम मिलता है और ये आउटकम्स अवसर अजीब होते है. अब जैसे कि बेड हैबिट्स का आउटकम अवसर मज़ा देता है लेकिन अल्टीमेट आउटकम बुरा होता है जबकि गुड हैबिट्स शुरू में मुश्किल लगती है लेकिन इसका लॉन्ग टर्म आउटकम हमे बेनिफिट देता है,

एक रीवार्ड जो अभी मिलने वाला है अक्सर हमे फ्यूचर के रीवार्ड से ज्यादा पंसद होता है. इंस्टेंट सेटिसफेवशंन की चाहत में लोग अपना सारा टाइम इमिडीएट प्लेज़र पाने में स्पेंड करते हैं. लेकिन हम जो चीज़ बोलना चाहते है वो ये है कि जब हम इमिडीएट रीवार्ड की बात करते है तो बो किसी बिहेवियर का एंड होता है. आप किसी बेड हैबिट का एंड करना चाहते हो और चाहते हो कि ये सेटिसफाइइंग हों. क्योंकि चेंज अगर एन्जॉयबल हेै तो

ईजी हो जाता 16: हाउ टू स्टिक्स विद गुड हैबिट्स एवरी डे (How to Stlck with Cood Habits Every Day)

बेंजामिन फ्रैंकलिन जब बेटी के थे, तो रोज़ एक स्माल बुकलेट अपने साथ हमेशा रखते थे. जिससे वो अपने 13 पर्सनल गुड बिहेचियर का ट्रेक रख सके. इस लिस्ट में इस तरह के गोल्स थे लूज़ नो टाइम” मतलब टाइम चेस्ट मत करो, हमेशा कुछ ना कुछ यूजफुल करते रहो. हर दिन के एंड में वो अपनी लिस्ट खोलकर देखते और अपनी प्रोग्रेस को रिकोर्ड करते थे. इसे हम हैबिट टेकर भी बोल सकते है अपनी हैबिट्स चेक करने का एक ईजी तरीका हैबिट ट्रेकिंग काफी पॉवरफुल है क्योंकि इसमें मल्टीपल लॉज़ ऑफ़ बिहेवियर चेंज यूज़ होता है. ये किसी बिहेवियर को ऑब्बियस बनाता है क्योंकि हर बार जब आप लिस्ट ओपन करते हो, ये आपके सामने लिखा होता है फिर एक एक्शन से दूसरा जुड़ जाता है. हैबिट ट्रेकिंग किसी भी हैबिट को मजेदार बना देती है क्योंकि मोटीवेशन का मोस्ट इफेक्टिव फॉर्म है प्रग्रेस, और ये हेबिट को सेटिसफाइंग बनाती है. अब ये बात तो सब जानते है की अपनी टू-डू लिस्ट में से कोई आइटम क्रोस करना कितना सेटिसफाइंग लगता है. हम सबको रिजल्ट्स मिलना कितना अच्छा लगता है इसमें कोई शक नहीं, और यही वजह है कि मोटीवेंटेड रहने के लिए हेबिट ट्रेकिंग बहुत ज़रूरी है ताकि आपकी नजर हमेशा अपने गोल्स पर रहे.

17: हाउ अन अकाउंटेबिलिटी पार्टनर केन चेंज एवरीथिंग (How an Accountability Partner Can Change Everything)

जैसे हम एन्जॉय करने के बाद कोई एक्स्पिरियेश रीपीट करते है वैसे ही अगर एक्स्पिरियेंश पेनफुल रहा तो हम उसे अचॉयड भी करना चाहेंगे. पेन एक इफेक्टिव टीचर होता है,अगर फेलर पेनफुल है तो उसे फिव्स करते है. लेकिन अगर किसी फेलर का हम पे कोई इफेक्ट नहीं होता तो हम उसे इग्नोर करते है. मिस्टेक जितनी इमिडीएट और कॉस्टली होगी उतना ज्यादा हम सीखते है. जैसेकि बेड रीव्यू का डर एलोई को अच्छा काम करने पर मज़बूर कर देता है, कोनसिक्वेंसेस (consequences)अगर एक्सट्रीम हो तो लोग जल्दी लर्न करते है. इसलिए कभी-कभी एक अकाउंटेबल पार्टनर के होने से हेल्प मिलती है. क्योंकि तब आप आपको पता होता है कि कोई आपको वाच कर रहा है ताकि आप मोलिवेटिंग और तो आपके बॉस की नजरो से बने. अगर तुरंत रिजल्ट भुगतने पड़े तो आप काम को कभी डिले नहीं करेंगे. और अगर आप अपना वर्क डिले करते हो में आप एक और अनट्स्टवर्थी इंसान हो. और ये तो सभी जानते है कि हम अपने आस-पास के लोगो के ओपिनियन की कितनी परवाह करते है जो हमें टॉप तक पहुँचने में हेल्प करते है इसलिए इस तरह का कोई पार्टनर होना आपके लिए काफी हेल्पफुल रहेगा. 18: एडवांस्ड टैक्टिस: हाउ टू गो फ्रॉम बीइंग मेयरली गुड टू बीइंग टूली ग्रेट (Advanced Tactics: How to Go from Being

Merely Good to Being Truly Great) जब आपको किसी हैबिट की अच्छे से प्रेक्टिस हो जाती है तो ये थोड़ी बोरिंग और पार्ट ऑफ़ रूटीन लगती है. जो आपको चाहिए था, आपको मिल गया तो ज़ाहिर है कि अब आपका उतना इंटरेस्ट नहीं रहेगा, और यही बोरिंगनेस ग्रेटेस्ट चेलेंज है. हम अपनी हैबिट्स से इसीलिए बोर हो जाते है क्योंकि अब आपका उत्तर वो हमे पहले की तरह सेटिसफेव्शन नहीं दे रही और हम हमेशा आउटकम एक्पेक्ट करते है. लेकिन सच तो ये है कि ये चीज़ मैटर नहीं करती कि आप किस चीज़ में बैटर बनना चाहते है अगर आप उसे तभी करते है जब वो आपको एक्साईट करती है.

क्योंकि तब आप कोई भी ग्रेट रिजल्ट पाने के लिए बिलकुल भी कंसिस्टेंट नहीं रहोगे. हां ऐसे भी दिन होंगे जब आपको क्विट करने का मन करेगा लेकिन पेनफुल, बोरिंग और एक्रहोस्टिंग होने के बाद भी अगर आप जमे रहते है तो ये बड़ी बात है. एक एमेट्योर (amateurs) और एक प्रोफेशनल के बीच यहीं डिफरेंस होता है. तो एक ही तरीका है कि जो आप करो दिल से करो, उसे एन्जॉय करो. हैबिट्स का बस एक ही डाउन साइड है कि हम अक्सर स्माल मिस्टेक्स नोटिस नहीं करते है. क्योंकि आप कोई चीज़ आदत की वजह से बार-बार करते हो, आप उसे इम्प्रूव नहीं करते. वैसे इस बारे में

परेशान होने की ज्यादा ज़रूरत नहीं है क्योंकि कुछ हैबिट्स को कांस्टेंट इम्प्रूवमेंट की ज़रूरत नहीं पड़ती है. जैसे एक्जाम्पल के लिए आप अपने शूज़ कैसे बांधते है। लेकिन जब आप किसी काम में मास्टर बनना चाहते हो तो सिर्फ हैबिट्स से काम नहीं चलेगा आपको उसके लिए हार्ड प्रेक्टिस भी करनी पड़ेगी जब तक कि आपको सर्टेन स्किल्स ना आ जाये. बस आपको क्या करना है कि अपनी प्फोर्मस को लेकर अलार्ड रहे ताकि आप खुद को इम्प्रूव कर सके. खुद को ओल्ड थिंकिंग एंड एक्टिंग पैटर्न में लॉक मत करो- लाइफ हर पल चेंज हो रही है तो आप भी अपनी हैबिट्स और बिलीफ चेंज करो और खुद में कभी भी सेल्फ अवेयरनेस की कमी मत आने दो,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *