
अगर आप फिजिक्स के बारे में और ज़्यादा जानना चाहते हैं तो आपको ये बुक ज़रूर पढ़नी चाहिए
इसमें स्टीफेन हॉकिंग ने सारे इम्पोर्टेन्ट टॉपिक्स जैसे स्पेस-टाइम, क्वांटम मैकेनिक्स और ब्लैक होल के बारे में चर्चा की है। अगर आपके अंदर ग्रेट साइंटिस्ट्स, अमेजिंग theories और यूनिवर्स के बारे में जानने की जिज्ञासा है तो ये बुक आपके लिए है। "अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम" बिना आपका सर खाए, आपको बहुत को सिखाएगी, आपको ज़्यादा स्मार्ट बनाएगी।
ये बुक किसे पढ़नी चाहिए?
जिसे भी साइंस बहुत पसंद है, स्टूडेंट्स और जो फिजिसिस्ट बनना चाहते हैं।
ऑथर के बारे में
स्टीफेन हॉकिंग थ्योरी के बेसिस पर काम करने वाले थ्योरेटिकल फिजिसिस्ट, ऑथर और कोस्मोलोगिस्ट हैं। जब वो 21 साल के थे तब उन्हें ALS बीमारी के बारे में पता चला था। समय के साथ, उनके ज़्यादातर मसल्स को लकवा मार चुका था। न वो चल पाते थे, ना बोल पाते थे। लेकिन ये बीमारी हॉकिंग को कभी पीछेरोक नहीं पाई, उन्हें कभी हरा नहीं पाई। उन्होंने ना जाने कितने अवार्ड्स जीते, कई बुक्स लिखे जिसने अपनी जगह बेस्ट सेलर लिस्ट में बनाई। आज उन्हें एक ग्रेट थिंकर और एक respected साइंटिस्ट के रूप में याद किया जाता है।
इंट्रोडक्शन (Introduction)
ये यूनिवर्स कितना बड़ा है? प्लैनेट्स कैसे बनते हैं? एक ऐटम के अंदर क्या होता है? क्या ब्लैक होल सच में मौजूद है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब आपको इस बुक में मिलेंगे।
आप स्पेस-टाइम और जेनरल रिलेटिविटी के बारे में सीखेंगे। आप क्वांटम मैकेनिक्स और अनसरटनिटी प्रिंसिपल के बारे में जानेंगे। इसके साध ही आप ये भी जानेंगे कि यूनिवर्स की शुरुआत कैसे हुई। आप नेचर के फोर्सेज और थ्योरी ऑफ़ everything के बारे में भी जानेंगे।
“अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम" दिलचस्प टॉपिक्स और कभी ना खत्म होने वाली possibilities से भरा हुआ है। कोई भी साइंटिस्ट बन सकता है। आप शुरुआत इस बुक से कर सकते हैं।
स्पेस एंड टाइम (Space and Time)
न्यूटन के लॉ के अनुसार ऐल्सल्यूट (absolute) स्पेस कुछ नहीं होता। इमेजिन कीजिये कि आप एक चलती हुई ट्रेन के अंदर हैं और आपका बेस्ट फ्रेंड प्लेटफार्म पर खड़ा है। आपके दोस्त के पोजीशन से उसे ट्रेन तेज़ी से आगे बढ़ती हुई नज़र आएगी। उसे लगता है कि वो रेस्ट की पोजीशन पर है क्योंकि वो प्लेटफार्म पर सिर्फ वहीं, आपकी पोजीशन से, आपको लगता है कि आप रेस्ट पोजीशन पर हैं क्योंकि आप ट्रेन के अंदर बैठे हुए हैं। आपके लिए, आपका दोस्त खड़ा है, तो तेज़ी से दूर जा रहा है।
न्यूटन का मानना था कि टाइम ऐसल्यूट होता है। टाइम सबके लिए सेम होता है, बशर्ते आपके पास एक अच्छी घड़ी होनी चाहिए! उनका ये भी मानना था कि टाइम और स्पेस एक दूसरे से अलग अलग exist करते हैं।
आइस्टाइन का योगदान
फिर आइस्टाइन आए जिन्होंने कहा कि ऐब्सल्यूट टाइम भी नहीं होता है। ये जेनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का ही एक हिस्सा है। इसे ऐसे समझा जा सकता है।
इमेजिन कीजिये कि आप घर के अंदर है। आपका बेस्ट फ्रेंड अर्थ के atmosphere के बाहर एक स्पेस शिप में ट्रैवल कर रहा है। ग्रेविटी के पुल या खिंचाव के कारण अपने दोस्त के मुकाबले आपका टाइम स्लो चलेगा। अर्थ पर आपके घड़ी के मुकाबले उसकी घड़ी ज़्यादा फ़ास्ट चलेगी, असल में GPS इसी कांसेप्ट पर काम करता है।
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS)
ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) जेनरल रिलेटिविटी की वजह से काम करता है। सैटलाइट फ़ीड को एडजस्ट किया जाता है ताकि अर्थ पर ये आपके टाइम और पोजीशन पर एक्यूरेट हो। अगर टाइम रिलेटिविटी को नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो GPS अलग अलग फ़ीड देने लगेगा और आप अपने रास्ते में खो जाएँगे।
स्पेस-टाइम
आइंस्टाइन का भी यही मानना था कि स्पेस और टाइम एक दूसरे से अलग अलग नहीं बल्कि एक साथ exist करते हैं। ये यूनिवर्स फोर डायमेंशनल है। इसमें स्पेस के तीन डायमेंशन के साथ टाइम का एक डायमेंशन जुड़ा हुआ है।
Topic | Description |
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स्पेस-टाइम वार्प | किसी भी ऑब्जेक्ट जिसमें mass होता है उसकी ग्रेविटी की वजह से स्पेस-टाइम में जो घुमाव या मोड़ (curve) होता उसे स्पेस-टाइम वापं कहा जाता है। |
आइये ट्रैम्पोलीन की मदद से इसे समझते हैं। इमेजिन कीजिये कि आपके पास एक टैम्पोलीन, एक बोलिंग बॉल और गोल्फ के कुछ बॉल हैं। अगर आप टैम्पोलीन पर बोलिंग बॉल डालेंगे तो उसका फैब्रिक (कपड़ा) कर्व हो जाएगा यानी मुड़ जाएगा।
ये घुमाव या कर्व काफ़ी बड़ा होगा क्योंकि बोलिंग बॉल का mass ज़्यादा है और उसका ग्रेविटी पुल भी ज्यादा स्ट्रोंग है। अब जब आप गोल्फ़ के बॉल को डालेंगे तो भी फैब्रिक मुड़ेगा लेकिन इस बार ये बोलिंग बॉल जितना नहीं मुड़ेगा क्योंकि गोल्फ़ के बॉल का mass कम होता है। तो स्पेस-टाइम बिलकुल ट्रैम्पोलीन जैसा है और बॉल प्लैनेट्स जैसे हैं, ग्रेविटी के कारण प्लैनेट्स स्पेस-टाइम को मोड़ते हैं। इसके बदले स्पेस-टाइम प्लैनेट्स के मूवमेंट और पोजीशन को डिसाइड करता है।
द एक्सपैंडिंग यूनिवर्स (The Expanding Universe)
क्या आप जानते हैं कि सन के सबसे नज़दीक कौन सा स्टार है? वो है प्रोविसमा सेंटौरी, ये हमसे 4 लाइट इयर्स दूर है। जिसका मतलब है इसकी लाइट को अर्थ पर पहुँचने में चार साल लगता है। क्यों, चौंक गए ना? तो वहीं हमारा सन हमसे 8 मिनट की दूरी पर है।
रात के साफ़ आसमान में हमें अक्सर कई सारे स्टार्स नज़र आते हैं, वो शायद हमसे हंड्रेड लाइट इयर्स दर होंगे, ये हमारे मिल्की वे गैलेक्सी के अंदर होते हैं।
1924 में एडविन हब्ब्ल ने ये कहा कि इस यूनिवर्स में मिल्की वे गैलेक्सी एक अकेला गैलेक्सी नहीं है। अलग अलग गैलेक्सीज के बीच काफ़ी बड़ा खाली स्पेस है जिसके कारण उनकी exact पोजीशन को बता पाना बहुत मुश्किल है। मॉडर्न टेलिस्कोप से पता चला है कि वास्तव में लाखों गैलेक्सीज मौजूद हैं। हर एक के अन्दर लाखो स्टार्स होंगे। हमारा अपना मिल्की वे गैलेक्सी 1,00,000 लाइट इयर्स के आस पास है।
गैलेक्सी का आकार
इसका शेप घुमावदार है मतलब एक स्पाइरल के जैसा। ये सौ मिलियन सालों में एक बार धीरे धीरे घूमता है। हमारा सन गैलेक्सी के एक स्पाइरल में एक एवरेज स्टार है। उस बड़े से स्पाइरल गैलेक्सी के अंदर हमारे सोलर सिस्टम को इमेजिन कीजिये।
एडविन हब्बल ने ये भी पाया कि दूसरी गैलेक्सीज हमसे दूर जा रही हैं। उन्होंने doppler शिफ्ट का कासेप्ट यूज़ किया था। दूसरी गैलेक्सीज के स्टार्स से मिलने वाले लाइट वेव्स को हब्बल ने स्टडी किया। doppler शिफ्ट के अनुसार, अगर कोई स्टार पास होता है तो उसका वेवलेथ छोटा या कम होता है। वो लाइट स्पेक्ट्रम के ब्लू कलर के हिस्से में आता है।
लेकिन अगर कोई स्टार दूर होता है तो उसका वेवलेंथ लंबा होगा। वो लाइट स्पेक्ट्रम के रेड कलर के हिस्से में आता है। हब्बल को ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि ज्यादातर स्टार्स या गैलेक्सीज रेड कलर के हिस्से में थी। जिसका मतलब है कि वो सब हमसे दूर जा रही हैं। उन्होंने ये भी देखा कि जितनी दूर एक गैलेक्सी था वो उतनी ही तेज़ी से और दूर जा रहा था।
यूनिवर्स का विस्तार
तो कन्क्लूज़न ये है कि वास्तव में यूनिवर्स expand हो रहा है, बढ़ रहा है। समय बीतने के साथ गेलेक्सीज के बीच की दूरी बढ़ती जा रही है। अब आप सोच रहे होंगे, फिर ग्रेविटी का क्या? क्या ग्रेविटी यूनिवर्स के इस expension को रोक नहीं सकती?
तो थ्योरी ये कहती है कि एक्सपेंशन की स्पीड ग्रेविटी के पुल से ज्यादा स्ट्रोंग है। इसलिए ये यूनिवर्स सिकुड़ (contract) नहीं सकती, छोटी नहीं हो सकती। ये हमेशा बढ़ती ही जाएगी। न्यूटन और आइस्टाइन दोनों ही एक static यूनिवर्स के आईडिया को मानते थे। static मतलब एक ऐसा यूनिवर्स जहां स्पेस ना तो बढ़ता है और ना कम होता है।
1922 में एलेग्जेंडर फ्राइडमैन ने बढ़ते हुए यूनिवर्स के कासेप्ट के बारे में और जानने की कोशिश की। उन्होंने दो चीज़ों को assume किया। पहला, हम जहां भी देखते हैं ये यूनिवर्स बिलकुल सेम नज़र आता है। दूसरा, अगर हम किसी दूर की गैलेक्सी से देखेंगे तब भी वो बिलकुल सेम ही नज़र आएगा।
हब्बल की खोज
1924 में हब्बल की खोज के रिजल्ट ने पूरा कर दिया कि फ्राइडमैन का आईडिया एकदम सही था। यहाँ एक और अमेजिंग फैक्ट है। 1965 में बेल labs के दो फिजिसिस्ट को expanding यूनिवर्स के बारे में और सबूत मिले। वो दोनों थे, रॉबर्ट विल्सन और अर्नो पेनज़ियास, वो दिन बिलकुल एक आम दिन जैसा था। विल्सन और पैनज़ियास एक बहुत सेंसिटिव माइक्रोवेव डिटेक्टर को टेस्ट कर रहे थे।
Physicist | Discovery |
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रॉबर्ट विल्सन | Expanding Universe Evidence |
अर्नो पेनज़ियास | Expanding Universe Evidence |
उन्हें लगा कि डिटेक्टर ठीक से काम नहीं कर रहा था। वो डिटेक्टर बहुत ज़्यादा शोर को दिखा रहा था। ऐसा लग रहा था कि वो शोर किसी भी डायरेक्शन से नहीं आ रहा था क्योंकि वो जहां भी डिटेक्टर को पॉइंट कर रहे थे, वो शोर बिलकुल सेम था। जिसका मतलब था कि अर्थ पर कहीं से भी ये माइक्रोवेव नहीं आ रहा था। ये अर्थ के बाहर स्पेस से आ रहा था, हो सकता है कि वो मिल्की गैलेक्सी के बाहर से आ रहा था।
क्योंकि ये माइक्रोवेव सेम था, चेंज नहीं हो रहा था तो इसने फ्राइडमैन के आईडिया को पूव कर दिया था कि चाहे कहीं से भी देखो ये यूनिवर्स बिलकुल सेम नज़र आती है।
द अनसटॅनिटी प्रिंसिपल (The Uncertainty Principle)
1800 के समय में, मारदिवस डी लाप्लास (Marquis De Laplace) ने कहा कि यूनिवर्स के बारे में जाना जा सकता है। मतलब साइंस यूनिवर्स में होने वाली चीज़ों को पहले से बता सकता सकता है, उसे प्रेडिक्ट कर सकता है। हर चीज़ को measure किया जा सकता है, identify किया जा सकता है। लाप्लास ने न्यूटन के लॉ की सक्सेस से इस बात का अनुमान लगाया था।
अनिश्चितता सिद्धांत और क्वांटम यांत्रिकी
हालांकि, 1926 में वर्नर हाइजेनबर्ग ने अनिश्चितता सिद्धांत के बारे में बताया। इसने उस आईडिया को, कि यूनिवर्स के बारे में सब कुछ पहले से जाना जा सकता है, को बिलकुल तोड़कर रख दिया था। इसे ऐसे समझाया जा सकता है - मान लीजिये कि आप एक पार्टिकल का exact पोजीशन और वेलोसिटी पता करना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए आपको पार्टिकल पर लाइट डालना होगा। जिस जगह पर लाइट बिखर जाती है (scatter) मतलब पार्टिकल वहीं होता है। लाइट छोटी वेवलेंथ की ज़रुरत होती है ताकि आप ठीक से पार्टिकल का पता लगा सकें।
अब वहीं, मैक्स प्लैंक के अनुसार, आपको कम से कम लाइट की एक क्वांटम को यूज़ करने की ज़रुरत होती है। लाइट की वेवलेंथ जितनी कम होगी, उसकी एनर्जी उतनी ही ज्यादा होगी। इसलिए पार्टिकल को ढूँढने के लिए कम वेवलेंथ की ज़रूरत होती है। लेकिन ये ज्यादा एनर्जी उसकी वेलोसिटी पर असर करती है।
इस तरह, अनिश्चितता सिद्धांत ये बताती है कि आप जितना accurately एक पार्टिकल का पोजीशन ढूंढते हैं, आप उसकी वेलोसिटी के बारे में उतना ही कम जान पाएंगे और इसका उल्टा भी यही बात बताती है। आप एक ही वक्त में दोनों चीज़ों के बारे sure नहीं हो सकते।
क्वांटम यांत्रिकी का विकास
अनिश्चितता सिद्धांत का साइंस के साथ एक बहुत गहरा संबंध है। अगर आप एक पार्टिकल के प्रेजेंट स्टेट के बारे में ठीक से पता नहीं लगा सकते तो आप उसके फ्यूचर स्टेट के बारे में भी पता नहीं कर पाएंगे। 1920 और उसके बाद से वर्नर हाइजेनबर्ग, पॉल डिराक और अर्विन स्क्रोडिन्जर ने अनिश्चितता सिद्धांत के बेसिस पर क्वांटम मैकेनिक्स की एक नई थ्योरी बनाई।
तब इस बात को स्वीकार किया गया कि अगर किसी पार्टिकल के पोजीशन और वेलोसिटी के बारे में ठीक से पता ना भी लगाया जा सके तब भी उस पार्टिकल को observe किया जा सकता है। क्वांटम मैकेनिक्स ये भी कहता है कि एक पार्टिकल को ओब्सर्व करने से कई अलग अलग तरह के रिजल्ट्स मिल सकते हैं।
क्वांटम मैकेनिक्स और संभाव्यता
ये इस बात को भी measure करता है कि किसी रिजल्ट के होने के कितने चांसेस हैं। क्वांटम मैकेनिक्स साइंस के unpredictable और रैंडम क्वालिटी को सामने लेकर आया। आइंस्टाइन ने क्वांटम थ्योरी का फाउंडेशन बनाया था लेकिन फिर भी उन्हें ये आईडिया पसंद नहीं आया। उन्होंने ही कहा था कि लाइट को एक वेव और पार्टिकल दोनों तरह से ट्रीट किया जा सकता है।
इसलिए आइंस्टाइन ने कहा था "भगवान् पासा (dice) नहीं खेलते". यूनिवर्स कभी रैंडम नहीं हो सकती। इसके बावजूद भी, क्वांटम मैकेनिक्स हमारे जनरेशन का सबसे सक्सेसफुल थ्योरी है। आज हमारे पास जो मॉडर्न टेक्नोलॉजी है वो इसी की वजह से पॉसिबल हो पाई है।
टेक्नोलॉजी और क्वांटम मैकेनिक्स
ट्रांजिस्टर और माइक्रोचिप्स के पीछे क्वांटम मैकेनिक्स का साइंस है। तो अगर क्वांटम मैकेनिक्स नहीं होता तो हमारे पास टीवी, कंप्यूटर और स्मार्टफोन भी नहीं होता। क्वांटम मैकेनिक्स का बस एक ही limitation है कि उसे ग्रेविटी, प्लैनेट्स और स्टार्स पर अप्लाई नहीं किया जा सकता।
एलीमेंट्री पार्टिकल्स और प्रकृति की शक्तियाँ
एटम शब्द का ग्रीक में मतलब होता है indivisible मतलब जिसे तोडा या छोटा नहीं किया जा सकता। डेमोक्रिटस और दूसरे ग्रीवस का मानना था कि एटम किसी भी matter का सबसे छोटा हिस्सा होता है। लेकिन अब हम जान चुके हैं कि ये बात सच नहीं है।
वर्ष | खोज | वैज्ञानिक |
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1803 | केमिकल कंपाउंड एटम से बनते हैं | जॉन डेल्टन |
1897 | इलेक्ट्रॉन्स | जे.जे. थॉमसन |
1911 | एटम का संरचना | अर्नेस्ट रदरफोर्ड |
1932 | न्यूट्रॉन्स | जेम्स चेडविक |
क्वार्क्स का अध्ययन
1960 तक साइंटिस्ट्स यही सोचते रहे कि एटम के अंदर ये पार्टिकल्स ही matter को बनाते हैं। लेकिन बाद के एक्सपेरिमेंट्स से कुछ और ही पता चला। जब बहुत हाई स्पीड में प्रोटोंस और इलेक्ट्रॉन्स टकराते हैं तो वो और भी ज़्यादा छोटे छोटे पार्टिकल्स में ब्रेक हो जाते हैं।
1969 में मरे गेल-मैन ने इन पार्टिकल्स के बारे में पता लगाया और इसे क्वार्क्स (quarks) का नाम दिया।
टाइप के क्वार्क्स होते हैं: अप, डाउन, टॉप, बॉटम, स्ट्रेंज और चार्म्ड. प्रोटोंस और न्यूट्रॉन्स में 3 क्वार्क्स होते हैं। एक प्रोटोन में 1 डाउन और 2 अप क्वार्क्स होते हैं। और एक न्यूट्रॉन में 1 अप और 2 डाउन क्वार्क्स होते हैं।
फ्यूचर रिसर्च और क्वांटम पार्टिकल्स
अगर फ्यूचर में साइंटिस्ट्स पार्टिकल को और भी हाई एनर्जी लेवल पर ले जा सके तो वो लाइट की और भी छोटी वेवलेंथ को यूज़ कर के और भी ज्यादा छोटे पार्टिकल्स का पता लगा पाएँगे। तब हमें शायद ये पता चले कि एक क्वार्क के अंदर क्या होता है।
आइये एक इम्पोर्टेन्ट फैक्ट के बारे में जानते हैं। क्वांटम मैकेनिक्स में एक प्रिंसिपल होता है जिसे "पॉली का एक्सक्लूशन प्रिंसिपल" (Pauli's Exclusion Principle) कहते हैं।
ये वोल्फगैंग पॉली ने बताया था जिसके लिए उन्हें 1945 में फिजिक्स के लिए नोबेल प्राइज़ दिया गया था। प्रिंसिपल ये कहती है कि एक दो पार्टिकल्स सेम स्टेट में exist नहीं कर सकते। एक ही समय में उनकी पोजीशन और वेलोसिटी सेम नहीं हो सकती।
पार्टिकल इंटरैक्शन और एंटी-पार्टिकल्स
एक जैसे पार्टिकल्स कभी साथ नहीं जुड़ते, वो घूमते रहते हैं। इसी वजह से वो और भी ज्यादा कॉम्प्लेक्स स्ट्रक्चर बना पाते हैं। अगर प्रिंसिपल काम नहीं करेगी तो क्वार्क्स -इलेक्ट्रॉन्स, प्रोटॉन्स और न्यूट्रॉन्स नहीं बना पाएगा। और ये पार्टिकल्स एटम नहीं बना पाएँगे, अगर ऐसा नहीं होता तो matter में जैसे एक भीड़ जमा हो जाती, वो dense हो जाता।
पॉल डिराक भी ऐसा नाम है जिसे भुलाया नहीं जा सकता। 1928 में उन्होंने बताया था कि सारे पार्टिकल्स का "एंटी पार्टिकल" भी होता है। जैसे, एक इलेक्ट्रॉन का एक पार्टनर होता है "एंटी इलेक्ट्रॉन" अगर एक इलेक्ट्रॉन अपने एंटी इलेक्ट्रॉन से मिलता है तो वो एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं।
प्राकृतिक शक्तियाँ और उनका प्रभाव
चार इम्पोर्टेन्ट फोर्सेज़ होते हैं जो नेचर को कंट्रोल करते हैं, वो हैं ग्रेविटी, इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म, स्ट्रॉंग और वीक न्यूक्लियर फोर्स।
ग्रेविटी सबसे वीक फोर्स है लेकिन ये लम्बे डिस्टेंस पर काम करती है। बाकी तीनों फोर्स सिर्फ छोटे डिस्टेंस पर काम कर सकते हैं। इलेक्ट्रो मैग्नेटिक का असर इलेक्ट्रिकली चार्ज्ड पार्टिकल्स पर सबसे ज्यादा होता है, पॉजिटिव और नेगेटिव चार्ज वाले पार्टिकल्स एक दूसरे की तरफ attract होते हैं। लेकिन दो पॉजिटिव या दो नेगेटिव चार्ज वाले पार्टिकल्स एक दूसरे से दूर हो जाते हैं।
ये इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फोर्स ही है जो नेगेटिव चार्ज वाले इलेक्ट्रॉन्स को पॉजिटिव चार्ज वाले प्रोटॉन्स से भरे nucleus के चारों ओर घुमाता है। एक स्ट्रोंग न्यूक्लियर फोर्स ही क्वार्क्स को जोड़ कर एक न्यूट्रॉन या प्रोटोन बनाता है। और यही फोर्स प्रोटोंस और न्यूट्रॉन्स को जोड़ कर nucleus बनाता है। nucleus एटम के अंदर होता है।
वीक न्यूक्लियर फोर्स और रेडियो एक्टिविटी
वीक न्यूक्लियर फोर्स दूसरा वीक फोर्स है। इसका रेंज सबसे कम होता है। ये वीक फोर्स क्वार्क्स का टाइप बदल सकता है। जैसे, एक डाउन क्वार्क अप क्वार्क में बदल जाता है, यही वीक फोर्स बीटा decay और रेडियो एक्टिविटी के पीछे होता है।
ब्लैक होल्स
ब्लैक होल को समझने से पहले हमें एक स्टार के लाइफ साईकल को समझना होगा। एक स्टार कैसे बनता है, उसका जन्म कैसे होता है? इसकी शुरुआत होती है हाइड्रोजन गैस के इकठ्ठा होने से। ग्रेविटी के कारण ये अपने आप पर गिरने लगता है। जब ये गैस कॉन्ट्रैक्ट या सिकुड़ने लगती है तब एटम तेज़ी से एक दूसरे से टकराने लगते हैं।
इसकी वजह से ये गैस गर्म हो जाती है। जब ये बहुत ज्यादा गर्म हो जाता है तो एटम एक दूसरे से अलग नहीं होते, वो एक दूसरे से जुड़ कर हीलियम बनाना शुरू कर देते हैं। इस रिएक्शन की वजह से जो गर्माहट पैदा होती है उसी वजह से एक स्टार चमकता है।
एक बोम्ब के फटने से जो लाइट निकलती है ये बिलकुल वैसा होता है। इस रिएक्शन की वजह से गैस का प्रेशर भी बढ़ने लगता है, इसलिए गैस और सिकुड़ना बंद कर देती है। ये एयर का प्रेशर ग्रेविटी के पुल को बैलेंस कर देता है।
स्टार का जीवन चक्र
इस इवेंट को हम एक balloon के साथ compare कर सकते हैं। balloon के अंदर एयर प्रेशर बढ़ता जाता है क्योंकि उसे भरते हैं। लेकिन balloon का साइज़ मेन्टेन रहता है क्योंकि वो रबर से बना होता है। ये रबर का खिंचाव एयर प्रेशर को बैलेंस कर देता है। आप उसमें फूँक मार कर एक स्टार इसी तरह लम्बे समय तक स्टेबल बना रहता है।
हाइड्रोजन हीलियम बनाता जाता है तो हीट और प्रेशर पैदा करता है। ग्रेविटी सबको एक साथ पकड़ कर रखती है। लेकिन, एक समय आता है जब हाइड्रोजन और दूसरे गैस खत्म होने लगते हैं। उसके बाद स्टार ठंडा होने लगता है, सिकुड़ने लगता है और छोटा हो जाता है।
चंद्रशेखर सीमा और स्टार्स का भविष्य
1928 में, एक इंडियन ग्रेजुएट स्टूडेंट, सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने स्टार के कब तक खुद को ग्रेविटी के पुल के खिलाफ़ टिका पाएगा? इस स्टेज को स्टडी किया। वो सोचने लगे कि जब स्टार के पास कोई गैस नहीं बचेगा तो वो पॉलीका का एक्सक्लूशन प्रिंसिपल या स्टार के अंदर पार्टिकल्स का मूवमेंट ही स्टार को अपना साइज़ बनाए रखने में मदद करता है।
लेकिन पार्टिकल्स मैक्सिमम वेलोसिटी सिर्फ लाइट के स्पीड तक सीमित होता है, वो उससे ज़्यादा नहीं हो सकता। फिर एक टाइम आता है जब एक्सक्लूशन प्रिंसिपल ग्रेविटी के पुल के साथ बैलेंस नहीं बना सकता है। चंद्रशेखर ने एक वैल्यू बनाया था जिसे "द चंद्रशेखर लिमिट" का नाम दिया गया।
ये हमें बताता है कि एक ठंड स्टार (cold star) जो हमारे सन 11.5 गुना ज्यादा भारी होता है वो खुद को सपोर्ट नहीं कर सकता है। लेकिन कोई भी स्टार जो चंद्रशेखर लिमिट से नीचे होता है वो एक "white dwarf" में बदल जाता है।
Introduction to Dwarfs and Black Holes
Dwarf बन कर सेटल हो जाता है. वाइट डुवार्फ हज़ारों मील के रेडियस में फैले हुए हैं. इस फाइनल स्टेट में वो स्टेबल हो जाते हैं. सबसे पहला वाइट डुवार्फ जिसे खोजा गया था वो मिल्की वे के सबसे ब्राइट स्टार सिरियस के पास है.
Chandrasekhar Limit and Black Holes
तो उन स्टार्स क्या होता है जो चंद्रशेखर लिमिट के ऊपर होते हैं? क्या ग्रेविटी उन्हें सिकोड़ने का काम जारी रखेगी ताकि वो ड्रेस हो जाए? बहुत सारे साइंटिस्ट इस बारे में सोच कर भी घबरा जाते हैं. आइंस्टाइन का भी यही मानना था कि एक स्टार सिकुड़ कर इतना छोटा नहीं हो सकता कि वो साइज़ जीरो तक पहुँच जाए.
फिर 1960 में कोल्ड स्टार्स के बारे में ज्यादा जानने का इंटरेस्ट फिर से जाग गया. रॉबर्ट ओपेनहाइमर ने ये बताया कि स्ट्रॉग ग्रेविटी फ़ोर्स के कारण स्टार निकलने वाली लाइट अंदर की तरफ मुड़ी (bent) हुई होती है. जैसे जैसे स्टार ज़्यादा कॉन्ट्रैक्ट होता जाएगा वैसे वैसे ग्रेविटी स्ट्रॉग होता जाएगा. इसलिए. लाइट कम या मंद होती जाएगी.
Formation of Black Holes
अंत में, लाइट भी इस ग्रेविटेशनल फील्ड से बच नहीं सकता. थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का कहना है कि कोई भी चीज़ लाइट की स्पीड से तेज़ नहीं चल सकती. तो अगर लाइट इससे बच नहीं सकता तो और कुछ भी इससे नहीं बच सकता. इस खाली जगह को "ब्लैक होल" कहा जाता है. ब्लैक होल की बाउंड्री को इवेंट होराइजन कहते हैं, जो लाइट बाहर निकलने में फेल हो जाती है, ये इसके द्वारा बनती है.
थ्योरी के हिसाब से, अगर एक एस्ट्रोनॉट स्पेस में खो जाता है और ब्लैक होल के पास पहुँच जाता है तो उसके पैरों पर ग्रेदिटी के पुल का असर उसके सर के मुकाबले कई गुना ज़्यादा होता है. इस तरह, वो एस्ट्रोनॉट एक स्पगेटी की तरह खिंच कर लंबा हो जाता है. अगर कोई स्पेस शिप ब्लैक होल के अंदर चला गया तो वो कभी बाहर नहीं आ पाएगा, ये एक वन वे रास्ते की तरह है, ये ब्लैक होल के अंदर के एरिया है, इस एरिया को "singularity" कहते हैं. यहाँ डेसिटी और स्पेस-टाइम Infinite होता है, Infinite मतलब असीम, जिसका कोई अंत नहीं होता.
The Unsolved Mysteries of Black Holes
हमारे साइंस के सारे लॉज़ वहाँ टूट कर बिखर जाएँगे, और ये बताने की ज़रुरत नहीं है कि वो उस स्पेस शिप का अंत होगा. ब्लैक होल के बारे में काफ़ी स्टडी किया गया है लेकिन कभी कोई ये पक्का नहीं बता पाया कि वो सच में मौजूद हैं. हालांकि, एक बहुत दिलचस्प स्टार सिस्टम है, सिग्नस (Cygnus-1).
ऐसा लगता है कि ग्रेविटी के कारण एक दिखाई देने वाला स्टार (visible स्टार एक अनदेखे साथी (invisible companion) के चारों ओर घूम रहा है. स्टार उसकी तरफ स्पाइरल शेप में घूम रहा है और x-rays निकाल रहा है. इस स्टार के ऑर्बिट का माप ये बताता है कि इस invisible companion का mass सन के mass से 6 गुना ज़्यादा होगा. ये चंद्रशेखर लिमिट से कई गुना ऊपर है. इसलिए, ये "white dwarf" नहीं हो सकता. ये ब्लैक होल हो सकता है.
The Origin and Fate of the Universe
इस यूनिवर्स की शुरुआत बिग बैंग से हुई थी. शुरू में, यूनिवर्स का साइज़ जीरो था और वो भयंकर रूप से गर्म था. एक सेकंड के बाद, यूनिवर्स का टेम्परेचर 10,000 मिलियन डिग्री नीचे गिर गया होगा, ये सन के सेंटर से 1,000 गुना ज्यादा गर्म था. उस समय यूनिवर्स में सिर्फ़ इलेक्ट्रॉन्स, प्रोटोंस, नयूट्रॉस और उनके एंटी पार्टिकल्स ही थे.
समय बीतने के साथ, यूनिवर्स बढ़ने लगा और उसका टेम्परेचर गिरने लगा. 100 सेकंड के बाद, यूनिवर्स का टेम्परेचर गिर कर 1,000 मिलियन डिग्री हो गया होगा. ये सबसे गर्म स्टार्स का टेम्परेचर होता है. अब इस समय, नयूटोंस और प्रोटोंस मिल कर ड्यूटेरियम बनाने लगे थे. ये एक प्रोटोन और एक न्यूट्रॉन से बना होता है.
Element Formation
ड्यूटेरियम और भी ज़्यादा नयूटोंस और प्रोटोन के साथ जुड़ने लगता है. जिससे हीलियम बनने लगता है, जो दो न्यूट्रॉन और दो प्रोटोन से बनता है. इसके अलावा, और भारी एलिमेंट्स जैसे बेरिलियम और लिथियम भी बना होगा.
ऐसा कहा जाता है कि बिग बैंग की वजह से प्रोटोन का एक परसेंटेज अभी भी यूनिवर्स में मौजूद है. लेकिन उनका टेम्परेचर कम हो कर 273 डिग्री सेल्सियस या absolute जीरो से थोड़ा ऊपर हो गया होगा. शायद, बिग बैंग प्रोटोस से निकलने वाले माइक्रोवेव रेडिएशन को ही विल्सन और पेनजियास ने डिटेक्ट किया था. अब इस बात का सेंस समझ में आता है कि ये प्रोटोंस यूनिवर्स में हर जगह फैले हुए हैं.
Galaxy Formation
कुछ घंटों बाद, elements का बनना बंद हो गया होगा. अगले कुछ हज़ार सालों तक कुछ ख़ास और ठंडा होता रहा नहीं हुआ होगा. यूनिवर्स बस expand होता रहा.
1000 डिग्री पर, कुछ ऐसे फील्ड या एरिया बने होंगे जो ज़्यादा डेंस थे., और भी ज़्यादा हीलियम और हाइड्रोजन गैस जमा होने लगे थे. ये थी गैलेक्सी की शुरुआत. गैलेक्सी के अन्दर हीलियम और हाइड्रोजन का क्लाउड ब्रैक हो जाता है. छोटे छोटे क्लाउड्स अपने ही ग्रेविटी की वजह से गिर जाते हैं. लेकिन ज़्यादा nuclear रिएक्शन उन्हें और नीचे गिरने से रोक लेता है. फिर ये स्टार्स बन जाते हैं.
Star Formation
ज़्यादा बड़े स्टार्स में ज़्यादा nuclear रिएक्शन हुए थे. हीलियम एटम एक साथ जुड़ कर ज़्यादा भारी एलेमेंट्स जैसे ऑक्सीजन और कार्बन बनाने लगे. ये तो हम जानते ही हैं कि बड़े स्टार्स ज्यादा ड्रेस और गर्म होते हैं. और अंत में, जब गैस खत्म हो जाती है तब ग्रेविटी की वजह से स्टार गिर जाता वो या तो white dwarf या ब्लैक होल बन जाते हैं.
लेकिन बड़े स्टार्स का बाहरी रीजन फूट जाता है जिसे सुपरनोवा कहा जाता है. ये एक बहुत पावरफुल और ब्राइट explosion होता है. इस तरह, स्टार्स से ऑक्सीजन, कार्बन और दूसरे elements निकल जाते हैं और यूनिवर्स में उड़ जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि सन तीसरी generation का स्टार है. इसका ये मतलब हुआ कि सुपरनोवा से जो गैसेस निकली उसने नए स्टार्स भी बनाए.
The Formation of the Solar System
सन 5,000 मिलियन साल पहले बना था. ज़रुरत से ज्यादा गैस जो सन में शामिल नहीं थी वो उसके चारों तरफ घूमने लगी. अंत में ये गैसेस मिल कर एक क्लाउड जैसा बन गया जो बाद में प्लैनेट्स बन गए.
Early Earth
जब अर्थ नया नया बना था तब ये बहुत गर्म था और इसका कोई atmosphere भी नहीं था, तब तो यहाँ ऑक्सीजन भी नहीं था, हवा हाइड्रोजन सल्फाइड और दूसरे गैस से बना हुआ था जो हमारे लिए बहुत हानिकारक होता है. सड़े हुए अंडों से जो बदबू आती है वो हाइड्रोजन सल्फाइड की वजह लेकिन कुछ ऐसे पहले जीव (primitive organism) भी थे जो इस कठोर एनवायरनमेंट में develop हुए. शायद वो गहरे समद्र में रहते थे. वो होता है.
Origin of Life
तब बने थे जब एटम ने साथ जुड़ कर मैक्रो molecules को बनाया. प्रिमिटिव ओर्गानिस्म खुद को reproduce कर सकते थे. हालांकि उनमें से कुछ ही ऐसा कर पाए होंगे, सिर्फ वो मैक्रो molecules जो ज़्यादा फिट थे बस वो ही जिंदा बच पाए होंगे, तरह से evolution (विकास) की शुरुआत हुई. और भी ज़्यादा काम्प्लेक्स जीव develop होने लगे. वो बच्चे पैदा कर के संख्या में बढ़ने लगे थे वो सांस के द्वारा हाइड्रोजन सल्फाइड अंदर लेते और ऑक्सीजन बाहर छोड़ देते थे. ऐसे फिर अर्थ का atmosphere बना. ऑक्सीजन अब भरपूर मात्रा में मौजूद था.
इस बेहतर एनवायरनमेंट के कारण और हायर organism डेवलप होने लगे. पानी में बैक्टीरिया, फिर प्लांट्स, मछलियां जो पानी में रहती हैं), amphibians (जो पानी और ज़मीन दोनों पर रह सकते हैं), रेप्टाइल्स (जो अंडे देते हैं), मैगल्स(ये अंडे नहीं देते, बच्चेको जन्म देते हैं और आखिर में इंसान का जन्म हुआ जिसने धरती पर कदम रखा.
Unification of Physics
बहुत पुराने समय में, ग्रीक्स ये मानते थे कि अर्थ यूनिवर्स का सेंटर है. उनका मानना था कि मून, सन, स्टार्स और प्लैनेट्स हमारे अर्थ के चारों तरफ घूमते हैं. लेकिन आज हम वहाँ से कितना लम्बा सफर तय कर चुके हैं.
Revolution in Astronomy
कॉपरनिकस ने ये कहा था कि अर्थ नहीं बल्कि सन यूनिवर्स का सेंटर है. गैलिलियो ने टेलिस्कोप बनाया था. उन्होंने जुपिटर और कई सारे मून को इसके हे औेकिती की रोज की और मशीन के बारे में लॉज़ बनाए, जाते भ सस जाते देखा था.
नूटन स ही के हेल्पसे समझाती है. पहला है, जेनरल ध्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी और दूसरा है क्वांटम मैकेनिक्स, आज माँडर्न फिजिक्स यूनिवर्स को दो जेनरल रिलेटिविटी लार्ज स्केल की चीज़ों से डील करती है ये ग्रेविटी, प्लैनेट्स, स्टार्स और गैलेक्सी के behaviour को एक्सप्लेन करती है. जबकि, वांट मैकेनिक्स स्माल स्केल पर चीजों को समझाती है. जैसे ये एटम, quarks और दूसरे subatomic पार्टिकल्स के नेचर को एक्सप्लेन करती हैं.
लेकिन ये दोनों थ्योरी एक दूसरे से सहमत नहीं हैं. इसका बड़ा कारण है "द अनसर्टेनिटी प्रिंसिपल". जेनरल रिलेटिविटी में इसकी कोई जगह नहीं है तो हमें एक कम्पलीट थ्योरी की जरुरत है जो हर चीज़ के बारे में एक्सप्लेन कर सके फिर चाहे वो एक बड़ा सा स्टार हो या फिर छोटे से छोटा पार्टिकल हो, वहीं ये प्रिंसिपल क्वांटम मैकेनिक्स का फाउंडेशन है.
String Theory
ये वही तो है जिसे आइंस्टाइन मरते दम तक हल करने की कोशिश कर रहे थे. इस थ्योरी का एक कैंडिडेट है "स्ट्रिंग थ्योरी" इसमें matter को पार्टिकल के रूप में नहीं बल्कि स्ट्रिंग के रूप में माना जाता है. इस ध्योरी के अनुसार, स्पेस-टाइम के 4 डाइमेंशन्स के अलावा और भी हायर डाइमेंशन्स मौजूद हैं. इसका ये भी मानना है कि वर्म होल्स और कई सारे यूनिवर्स होने की possibility है.
Conclusion
इस बुक में आपने जेनरल रिलेटिविटी, स्पेस-टाइम और ब्लैकहोल के बारे में जाना. आपने क्वांटम मैकेनिक्स, अनसर्टेनिटी प्रिंसिपल और subatomic पार्टिकल्स के बारे में भी जाना, आपने इस बढ़ते हुए यूनिवर्स की शुरुआत कैसे हुई इस बारे में समझा.
हमें अपने जीवन, अपने existence के बारे में ज्यादा से ज़्यादा जानने की कोशिश करते रहना चाहिए. हमें हर चीज़ की युनिफाइड थ्योरी के बारे में ज्यादा जानने की ज़रुरत है. हमें और भी अच्छे टेक्नोलॉजी की खोज करके, और भी बेहतर equation को develop करने की ज़रुरत है.
अभी तो कई राज़ और रहस्य हैं जिनका खुलना बाकि है, जिन्हें सुलझाना बाकि है. लेकिन ज्यादा ज़रूरी ये है कि हम आगे बढ़ते रहे. अच्छी बात तो ये है कि हम प्रोग्रेस कर रहे हैं. और हाँ, हम इस धरती पर अपने छोटे से समय को अच्छी तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
Concept | Details |
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White Dwarf | Stable state of a star, discovered near Sirius. |
Black Hole | Region of space with strong gravity, where light cannot escape. |
Big Bang | The origin of the universe, leading to the formation of elements. |
String Theory | A theoretical framework that explains particles as strings and includes higher dimensions. |