यह किसके लिए है
-वेजो साहकोलाजी या फिलासफी पहना पसंद करते हैं।
-वै जो खुद से नफरत करते हैं या खुद को काबिल नहीं समझते।
वे जो हमेशा खुट के बारे में सोचते रहते हैं।
लेखक के बारे में
हुचीरो किमिशी (lchiro Kishimi) जापान के एक फिलासफर, साइकोला जास्ट और ट्रॉस्लेटर हैं। वे मेजी स्कूल आफ मारिएंटल मेडिसीन में साइकोलाजी पढ़ाते हैं।
फूमिताके कोगा (FurmitakeKoga) एक लेखक है जिन्हें अपने काग के लिए शवाई मिल चुका है। उन्होंने बिज्ञनैस के कपर बहुत सी बेस्ट सैलिंग किताबें लिखी हैं। उन्होंने एडलर को साइकोलाजी के बारे में तब जाना जब वे 20 साल के थे और वे इससे बहुत प्रभावित हुए थे।
यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?
आज के वक्त में हम यह सोचकर परेशान रहते हैं कि दूसरे लोग हमारे बारे में क्या सोच रहे हैं। हम यह यह सोचते रहते हैं कि अगर हमारे साथ कुछ बुरा हुआ है तो उसका असर हमारे भविष्य पर पड़ेगा और हम उसे बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते। साथ ही हम बहुत सी ऐसी बेतुकी बातों को मानते हैं जो समाज ने या दूसरे साइकोलाजिस्ट्स ने हमें बताई है।
इस तरह के झूठ में हम में से बहुत से लोग पले बड़े हैं। कभी समाज ने हमसे यह झूठ कहा, तो कभी हमने खुद से ही झूठ कहा। यह किताब उन सारी गलतफहमियों पर से पर्दा उठा कर हमें यह बताती है कि किस तरह से हम खुद के साथ बेहतर संबंध बना सकते हैं, किस तरह से हम खुद को आजाद कर सकते हैं और किस तरह से किस रह
सकते हैं।
इसे पढ़कर आप सीखेंगे
किस तरह से हम अपने नजरिए को बदल कर खुद को पूरी तरह से बदल सकते हैं।
दूसरों की जिन्दगी में दखलअंदाजी करना क्यों गलत है।
-हकलाने वाले लोग किस तरह से अपनी समस्या को सुलझा सकते हैं।
यह जरूरी नहीं है कि हमारे मौजूदा हालात के लिए हमारा पास्ट जिम्मेदार हो।
अगर हम किसी व्यक्ति को सड़क पर गालियां देते हुए सुनते हैं, तो हमें लगता है कि उसकी परवरिश अच्छी नहीं रही होगी। जब हम किसी व्यक्ति को अकेले रहते हुए देखते है तो हमें लगता है कि उसके साथ जरूर कुछ बुरा हुआ होगा। हम सभी का यह सोचना होता है कि हमारे साथ जो आज हो रहा है, या जो हमारे साथ हो चुका है, उसका असर हमारे भविष्य पर पड़ेगा और हम उसे बदल नहीं सकते। लेकिन यह बात गलत है।
इसका एक बहुत फेमस एवज़ाम्पल है वो बच्चा जिसे घर पर बहुत मारा जाता हो या फिर जिसे स्कूल के बच्चे बहुत चिंढ़ाते हों और बो आगे चलकर दूसरों से बात करना या
फिर उनसे मिलना जुलना बंद कर देता है। बहुत से लोगों का मानना होता है कि वो इसी तरह से सारी उम्र रहेगा। लेकिन 20वीं सदी के साइकोलाजिस्ट एल्फ्रेड एडलर का
कुछ और ही मानना है।
एडलर का मानना था कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि पास्ट में हमारे साथ क्या हुआ है.हम खुद को हमेशा बदल सकते है और पास्ट में मिली हुई चोटों से खुद को राहत दिला सकते हैं। बहुत से बच्चों को स्कूल में चिढ़ाया गया था और घर में मारा गया था, लेकिन सारे लोग तो अकेले नहीं रहते।
इसका मतलब हमारे हालात फिक्स नहीं हैं। हम अगर चाहें तो उन्हें बदल सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारे साथ पास्ट में क्या हुआ था।
हम खुद अपना नजरिया चुनते हैं और अगर हम चाहें तो हम उसे बदल भी सकते हैं।
हमारे आस पास अलग अलग तरह के लोग रहते हैं। हम अक्सर इन सभी लोगों को दो कैटेगरी में बाँटते हैं आशावादी लोग, जो दर चक्त अच्छा देखते और अच्छा सोचते हैं
और निराशावादी लोग जो हमेशा नेगेटिव सोचते हैं। अगर आप हर रोज की साइकोलाजी पढ़ेंगे तो आपको पता लगेगा कि अच्छा सोचना या बुरा सोचना हमारे दिमाग का एक हिस्सा है जिसे हम बदल नहीं सकते। जो लोग अच्छा सोचते हैं, वे हमेशा अच्छा ही सोचेंगे और जो बुरा सोवते है, वे बुरा ही सोवेंगे। लेकिन एइलर यह नहीं मानते। उसका मानना है कि सोचना हमारा एक गुण है जिसे हम सीख सकते हैं। एक व्यक्ति जैसा सोचता है वो बैसा ही बन जाता है। अगर आप अपने
नजरिए को बदलकर दुनिया को अलग नजर से देखने लगेंगे, तो आप अलग बन जाएंगे। आप खुद को बदल सकते हैं।
एडलर का कहना है कि हम 10 साल की उम्र में अपना नजरिया चुनते हैं कि हम दुनिया को अच्छी नज़र से देखेंगे या बुरी नज़र से। इसके बाद अगर हम खुद को बदलने की कोशिश नहीं करते है,तो हम वैसे ही सारी उम्र रहेंगे।
हग चाहें तो खुद को बदल सकते हैं, लेकिन बहुत से लोग खुद को बदलना नहीं चाहते। आप शायद ऐसे बहुत से लोगों को जानते होंगे जो अपनी जिंदगी से खुश नहीं हैं। वे हमेशा रोते रहेंगे कि किस तरह से उनकी जिन्दगी बहुत खराब है। इनकी बात सुनकर आपको एक बार के लिए लग सकता है कि ये अपनी जिन्दगी को बदलना चाहते हैं, लेकिन यह गलत है। मगर वे वाकई बदलना चाहते हैं, तो उन्होंने अब तक जरुर कुछ किया होता।
बदलने के लिए हिम्मत चाहिए होती है। इसके लिए आपको कुछ ऐसे काम करने होंगे जो आप ने आज तक नहीं किए। साथ में ही आपको कुछ गलतियां भी करनी होगी,
जिसके लिए आपको और हिम्मत चाहिए। बहुत से लोग इस तरह का काम नहीं करना चाहते जिसका नतीजा यह होता है कि वे कुछ कर भी नहीं पाते और सारी उम्र रोते ही
रहते हैं।
खुद से नफरत करना ही आपकी सारी समस्याओं की जड़ है।
किमिशी, जो कि इस किताब के लेखक है, से एक बार उनके एक स्टूडेंट ने कहा कि वो खुद से नफरत करता है। किमिशी को इससे बहुत हैरानी हुई और उन्होंने उससे पूछा कि वो खुद के बारे में ऐसा क्यों सोचता है। उसने कहा कि उसके पास आत्मविश्वास नहीं है, वो लोगों के साथ घुल मिल नहीं पाता, वो बहुत नेगेटिव सोचता है और खुद को काबिल नहीं समझता।
उसने कहा कि अगर वो किसी तरह से इन सबमें सुधार कर सके तो वो खुद से नफरत करना बंद कर सकता है। किमिशी ने उससे पूछा किं इस तरह से अपनी कमियों के बारे
में बात कर के उसे केसा लग रहा है। स्टूडेंट ने कहा कि उसे ऐसा बोलने पर और खराब लग रहा है। उसने कहा कि वो इसलिए लोगों से बात करने नहीं जाता क्योंकि उसे इर
लगता है कि लोगों को बहुत जल्दी पता लग जाएगा कि वो कितना बेकार है और फिर सारे लोग उससे नफरत करेंगे।
क्या आपको समझ में आया कि यहाँ उस स्टूडेंट की समस्या क्या थी? वो खुद से नफरत करता था इसलिए वो दूसरों से बात नही करता था क्योंकि उसे लगता था कि दूसरे लोग भी उससे नफरत करेंगे। अब क्योंकि वो किसी से बात नहीं करता था, उसका आत्मविशवास कम था। क्योंकि वो पहले से ही खुद से नफरत करता था. यो हमेशा नेगेटिव सोचता था। इस वजह से वो खुद को काबिल नहीं समझता था।
अगर वो खुद से नफरत करना छोड़ दे और खुद के बारे में अच्छा सोचने लगे, तो वो यह भी सोचना यंद कर देगा कि लोग उससे नफरत करेंगे और वो उनसे बात करने जाएगा। जब वो उनसे बात करेगा तो उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। जब वो नए दोस्त बनाएगा तो वो पाज़िटिव सोच पाएगा और खुद को काबिल समझा पाटा।
इस तरह से उसके सारी समस्या की जड़ थी उसका खुद से नफरत करना। बाकी सब उस समस्या के लक्षण थे। अक्सर लोग अपनी समस्या के गलत समाधान खोज कर उसे अपनाने लगते हैं और फिर परेशान रहते हैं। अगर आपका आत्मविश्वास कम है, तो किसी से बात ना कर के आप इस समस्या को सुलझा नहीं देंगे। इसलिए खुद से नफरत करना बंद कीजिए।
[4:40 PM, 4/1/2021] Ph: हर वक्त प्रतियोगिता करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
हमें बचपन से ही प्रतियोगिता कर के क्लास में फर्स्ट आने के लिए कहा जाता है। हमें यह सिखाया जाता है कि प्रतियोगिता कर के ही हम खुद को बेहतर बना सकते
हैं। लेकिन प्रतियोगिता में समस्या यह है कि इससे हम खुद को विनर या लूज़र समड़ने लगते हैं। हम यह सोचते लगते हैं कि या तो हम बहुत समझादार हैं या बिल्कुल बेवकूफ। हम हमेशा खुद की तुलना दूसरों से करते रहते है और उन्हें अपने प्रतिद्वद्वी की तरह देखने लगते हैं। इस तरह से सारी दुनिया हमारी प्रतिद्द्वी बन जाती है। ऐसे में जो हारते हैं वे खुद को बेकार समझते हैं और जो जीतते हैं, वे खुद को समझदार बनाए रखने के लिए हमेशा नंबर वन पर रहने की कोशिश करते हैं। हम अपनी काबिलियत को दूसरों के हिसाब से नापने लगे हैं और कभी खुश नहीं रहते।
अगर आपकी खुशी बाहरी लोगों पर निर्भर करती है, तो आप कभी खुश नहीं रहेंगे। दुनिया में कहीं न कहीं कोई न कोई हमेशा होगा जो आप से बेहतर काम कर रहा होगा। जो आप ज्यादा स्मार्ट होगा और आप से ज्यादा कामयाब होगा। लेकिन इस तरह से खुद की तुलना करते रहने से कभी खुश नही रहेंगे।
इसके अलावा बहुत से लोग अपनी शकल को लेकर बहुत परेशान रहते हैं। वे हमेशा यह सोचते रहते हैं कि दूसरे उनके बारे में खराब सोच रहे होंगे या उनमें कमियों निकाल
रहे होंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि किसी को फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसे दिखते हैं।
लोग सिर्फ आपका व्यवहार देखते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम भी स्मार्ट नहीं दिखते थे, लेकिन लोग फिर भी उन्हें पसंद करते हैं। नवाजुद्दीन सिंहीकी और नाना पाटेकर भी स्मार्ट नहीं दिखते, लेकिन उनकी एक्टिंग लोगों को हमेशा पसद आती है। लोग आपकी शकल से खुश नहीं होते, आपकी सीरत से होते हैं।
[4:40 PM, 4/1/2021] Ph: हर वक्त प्रतियोगिता करना बिल्कुल भी ठीक नहीं है।
हमें बचपन से ही प्रतियोगिता कर के क्लास में फर्स्ट आने के लिए कहा जाता है। हमें यह सिखाया जाता है कि प्रतियोगिता कर के ही हम खुद को बेहतर बना सकते
हैं। लेकिन प्रतियोगिता में समस्या यह है कि इससे हम खुद को विनर या लूज़र समड़ने लगते हैं। हम यह सोचते लगते हैं कि या तो हम बहुत समझादार हैं या बिल्कुल बेवकूफ। हम हमेशा खुद की तुलना दूसरों से करते रहते है और उन्हें अपने प्रतिद्वद्वी की तरह देखने लगते हैं। इस तरह से सारी दुनिया हमारी प्रतिद्द्वी बन जाती है। ऐसे में जो हारते हैं वे खुद को बेकार समझते हैं और जो जीतते हैं, वे खुद को समझदार बनाए रखने के लिए हमेशा नंबर वन पर रहने की कोशिश करते हैं। हम अपनी काबिलियत को दूसरों के हिसाब से नापने लगे हैं और कभी खुश नहीं रहते।
अगर आपकी खुशी बाहरी लोगों पर निर्भर करती है, तो आप कभी खुश नहीं रहेंगे। दुनिया में कहीं न कहीं कोई न कोई हमेशा होगा जो आप से बेहतर काम कर रहा होगा। जो आप ज्यादा स्मार्ट होगा और आप से ज्यादा कामयाब होगा। लेकिन इस तरह से खुद की तुलना करते रहने से कभी खुश नही रहेंगे।
इसके अलावा बहुत से लोग अपनी शकल को लेकर बहुत परेशान रहते हैं। वे हमेशा यह सोचते रहते हैं कि दूसरे उनके बारे में खराब सोच रहे होंगे या उनमें कमियों निकाल
रहे होंगे। लेकिन सच्चाई यह है कि किसी को फर्क नहीं पड़ता कि आप कैसे दिखते हैं।
लोग सिर्फ आपका व्यवहार देखते हैं। एपीजे अब्दुल कलाम भी स्मार्ट नहीं दिखते थे, लेकिन लोग फिर भी उन्हें पसंद करते हैं। नवाजुद्दीन सिंहीकी और नाना पाटेकर भी स्मार्ट नहीं दिखते, लेकिन उनकी एक्टिंग लोगों को हमेशा पसद आती है। लोग आपकी शकल से खुश नहीं होते, आपकी सीरत से होते हैं।
अपनी जिन्दगी में दूसरों की उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश मत कीजिए।
हम अक्सर दूसरों को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं। यहाँ तक की हम हमेशा दूसरों के बनाए गए नियमों के हिसाब से चलते रहते हैं। एवज्ञाम्पल के लिए जब हम बच्चे होते हैं, तो स्कूल में हमें यह सिखाया जाता है कि अगर हम कोई अच्छा काम करेंगे तो हमें ईनाम मिलेगा और अगर हम कुछ खराब काम करेंगे, तो हमें सजा दी जाएगी।
लेकिन यह मानसिकता बहुत खराब है। जब हम यह सोचने लगते हैं कि हमें हमारे हर अच्छे काम के लिए ईनाम मिलेगा, तो हम ईनाम को पाने के लिए अच्छे काम करने लगते हैं। जब हम बड़े होते हैं, तो हम अच्छे काम करना बंद कर देते हैं क्योंकि हमें उससे तुरंत ईनाम नहीं मिलता। हम हर काम को उसके फायदे के हिसाब से देखने लगते हैं। हम यह सोचने लगते हैं कि जिस काम में पैसा ज्यादा है या इज्जत ज्यादा है हमें वो काम करना चाहिए क्योंकि वो अच्छा काम है। अगर वो अच्छा ना होता, तो उसमें इतना
ईनाम क्यों मिलता
इस तरह से हम अपनी जिन्दगी दूसरों के बनाए गए नियमों के हिसाब से जीने लगते हैं और हमें इसका पता भी नहीं लगता। अगर हम रास्ते में गिरा हुआ एक कागज का टुकड़ा इस्टबिन में डाल देते हैं और कोई भी उसे नोट के हमारी तारीफ नहीं करता, तो हम उस काम को अगली बार नहीं करते हैं।
इसके अलावा बहुत से परिवार के लोग अपने बच्चों को एक खास तरह का कैरियर चुनने के लिए कहते हैं। बहुत से परिवार वालों का कहना होता है कि हमारे घर में हर कोई डाक्टर था और इसलिए तुम्हें भी डाक्टर बनना चाहिए। लेकिन अपने बच्चों से इस तरह से काम करवाने से वो एक ऐसे काम में फंस जाएगा जिससे उसे नफरत है और वो सारी उम्र नाखुश रहेगा।
तो इसलिए अगर आपको सबके हिसाब से रहना छोड़कर अपने हिंसाब से रहना है तो आपको बहुत से लोगों को निराश करना होगा। आपको यह सोचना बद करना होगा कि दूसरे आपके काम के बारे में क्या सोचेंगे और उस काम को करने के बाद आपको क्या मिलेगा। आप अपने मन की सुनिए और अगर आपका मन किसी काम को करने का करता है, तो उसे कर दीजिए।
दूसरों की जिन्दगी में घुसना अच्छी बात नहीं होती है।
बहुत से लोग हमेशा दूसरों को सलाह देते रहते है कि उन्हें क्या करना चाहिए एकाम्प्ल के लिए अगर एक बच्चे का स्कूल में खराब माक्क्स आता है, तो उसके माता पिता उसके साथ जबरदस्ती करने लगते है और उसे ज्यादा पढ़ने के लिए मजबूर करने लगते हैं। लेकिन क्या ऐसा करने से आपका बच्चा पढ़ने लगेगा?
नहीं। ऐसा करने से वो जबरदस्ती एक रुटीन अपनाने लगेगा जिसे अपनाने के लिए उस पर दबाव डाला जा रहा है। इसके अलावा यो यह सोचने लगेगा कि वो यह सब आपके लिए कर रहा है, क्योंकि उसका मन तो पढ़ने का कर ही नहीं रहा। उसे लगेगा कि वो आपको अच्छा महसूस कराने के लिए पड़ रहा है ताकि आप समाज में जाकर सबसे यह कह सके कि आप ने भी सबकी तरह अपने बच्चे को पढ़ाया।
इसलिए दूसरों को यह बताना या फिर उन पर जबरदस्ती करना कि वे एक दिए गए काम को करें, यह बिल्कुल अच्छी बात नहीं है। अगर आप किसी तरह से उन्हें यह एहसास दिला सके कि पढ़ाई किस तरह से उनके लिए अच्छी चीज़ है, या फिर किसी तरह से उन्हें पढ़ने से प्यार करा सकें तो आप उससे चौ करवा सकते हैं।
आप अपने बच्चों को आजादी दीजिए कि आप उनका साथ देने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे और वे जो चाहे वो कर सकते हैं। आप उन्हें सीधा जाकर यह मत बताइए कि उन्हें क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा कर के आप उनकी जिन्दगी में दखलअंदाजी कर रहे हैं।
कभी कभी यह जानना भी तकलीफ दे सकता है कि आप उसकी जिन्दगी में दखलअंदाजी कर रहे हैं जिससे आप प्यार कर रहे हैं। हम अक्सर अपने परिवार के लोगों की फिक्र करते हैं और इसलिए हम हमेशा उनकी मदद करने की कोशिश करते रहते हैं। लेकिन हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि सामने वाले को क्या चाहिए जिसकी वजह से उसे अच्छा नहीं लगता। उसे यह लगता है कि आप अपने विचारों को उस पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं।
इसलिए दूसरों से सहानुभूति दिखाना सीखिए और उन्हें बताइए कि आप उनके लिए हमेशा हाजिर रहेंगे।
हम सभी इस दुनिया के एक छोटे से हिस्से हैं और हमें खुद को महान समझने की गलती नहीं करनी चाहिए।
एडलर के हिसाब से समाज का हमारी जिन्दगी पर बहुत असर पड़ता है। समाज का मतलब सिर्फ उस समाज से नहीं है जिसमें हम रहते है, बल्कि इसका मतलब पूरी दुनिया
से है जिसमें पेड़ पौधे, जानवर और सारे इंसान आते हैं। अगर आप अकेले रहते है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप इस समाज के हिस्सेदार नहीं हैं। एडलर का कहना था कि हमें खुद को इस बड़े से समाज का एक हिस्सा गानना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि अगर हम पहले से बेहतर बनेगे तो हम इस समाज को
बेहतर बना रहे हैं। एक बार जब हम यह सोचने लगते हैं कि हम इतने बड़े समाज के लिए क्या कर सकते हैं, तो हम कुछ अलग तरह से काम करना शुरू कर देते हैं।
लेकिन बहुत से लोग खुद को एक फिल्म की हीरो की तरह देखते हैं जो यह सोचते हैं कि जो कुछ भी हो रहा है वो उनके आस पास हो रहा है। हमें यह लगने लगता है कि दुनिया हमारे आस पास चल रही है और इस तरह से सबको छोटा या कम जरुरी समझने लगते हैं और खुद को ज्यादा जरुरी समझ्टाने लगते हैं।
लेकिन इस तरह का ईगो रखने वाले कभी संतुष्ट नहीं हो पाते। साथ ही इस तरह के लोग दुनिया से बहुत उम्मीदें करने लगते हैं जिससे उन्हें बहुत तकलीफ भी होती है।
इसलिए यह मत सोचिए कि आपको यह दुनिया क्या दे सकती है, बल्कि यह सोचिए कि आप इस दुनिया को क्या दे सकते हैं।
खुद के बारे में सोचते रहने से आप चीज़ों को अलग नजरिए से देखने की ताकत खो सकते हैं।
कभी कभी हम खुद को दुनिया भर के दुखों का भोगी समझने लगते हैं। हमें यह लगता है कि जो भी बुरा हो रहा है वो हमारे साथ ही हो रहा है। इस तरह से हम बस खुद के बारे में सोचने लगते हैं क्योंकि हमें लगने लगता है कि हमारे पास ही सबसे ज्यादा परेशानी है। खुद के बारे में लगातार सोचते रहने से हम चीज़ों को दूसरे नजरिए से देखने की ताकत को खो देते हैं।
बहुत से लोग कहते हैं कि उन्हें कोई प्यार नहीं करता। लेकिन यह सच नहीं है। वे सिर्फ अपनी समस्याओं को ज्यादा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वे और परेशान हुए जा रहे हैं। इसका अच्छा एक्जाम्पल हमें उन लोगों में देखने को मिल सकता है जो बोलते वक्त हकलाते हैं। एडलर के हिसाब से जो लोग हकलाते हैं, वे इसलिए हकलाते हैं क्योंकि जब वे छोटे थे तो किसी ने उनकी आवाज को लेकर उनके बारे में कुछ खराब कहा था। इसके बाद वे हमेशा इस डर में जीते रहते हैं कि दूसरे लोग हमेशा उनमें कमियां निकालने की कोशिश कर रहे है। इस चिंता की वजह से चे और ज्यादा हकलाने लगते हैं।
तो अगर एक व्यक्ति हकलाता है और वह यह सोचना शुरु कर दे कि बाकी के लोग उसके बारे में अच्छा सोव रहे हैं और उसके साथ अच्छा बर्ताव करते हैं, तो उसका हकलाना कम हो सकता है। इस तरह से अगर वे खुद पर बहुत ज्यादा ध्यान देना छोड़कर दूसरों में दिलचस्पी लें, तो वे इस समस्या पर जीत हासिल कर सकते हैं।
खुद के बारे में बहुत ज्यादा सोचने की वजह से एक व्यक्ति को काम करने की लत लग सकती है। उनका मानना होता है कि ज्यादा काम कर के ही वे समाज में इज्जत पा सकते हैं। इसलिए वे काम को अपने परिवार के ऊपर रख देते हैं और हर वक्त काम करते रहते हैं। इस तरह से वे खुद के लिए एक अच्छी इमेज बनाने की कोशिश करते हैं क्योंकि वे सिर्फ खुद के बारे में सोच रहे होते है।
अगर आपको खुश रहना है, तो आपको खुद में कुछ खास बदलाव करने होंगे। आपको खुद को सबसे बड़ा नहीं समझना चाहिए और यह सोचना चाहिए कि किस तरह से आप समाज के लिए कुछ कर सकते हैं। आपको खुद के बारे में ना सोचकर दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए और उनकी नजर से दुनिया को या खुद को देखने की कोशिश करनी चाहिए।