यह किसके लिए है?
- उन लोगों के लिए जो झूठ से भरी इस दुनिया में सब तक पहुंचने का रास्ता ढूंढना चाहते हैं
- बिजनस और राजनीति में स्ट्रेटेजिक कारयूनिकेटस के लिए
उन पत्रकारों और ब्लॉगरों के लिए जो सच्ची त्याबरों का पता लगाना चाहते हैं
लेखक के बारे में
तैवटर मैकडोनाल्ड एक स्ट्रटोजिक कमवूनिकटर सलाहकार हैं जिन्होंने वित्तीय सेवाओं दूरसंचार, टेक्नॉलजी और हल्धकर के क्षेत्रों में दुनिया की बड़ी कंपनियों को मवरा दिया है। साथ ही वे । उपन्यासों के लेखक भी जिनमें बेस्ट-सोलिंग ‘दि गाइड गाम प्रमुख है।
ये किताब आपको क्यूँ पढ़नी चाहिए
जानिए कैसे एक सच को सफेद झूठ के रूप में पेश किया जा सकता है
आप सच से बच नहीं सकते हैं यह लगभग हर जगह आपके साथ होता है। मसलन, टेलीविजन देख लीजिए, सोशल मीडिया ब्राउठा कर लीजिए या फिर अखबार उठाकर देख लीजिए, हर जगह सच के दावों से आपका सामना हो जाएगा। चाहे एक राजनीतिज्ञ आपका योट पाना चाहता हो या फिर कोई टेक कंपनी अपने लैटेस्ट गैजेट का प्रचार कर रही हो, सच को अक्सर हमारी सोच को बदलने के लिए तोड़-मरोड़कर मनमाने ढंग से पेश किया जाता है।
इस किताब में हम जानेंगे कि कैसे हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ पर सच्चाई की भी प्रतिस्पर्धा होती है। खबरें जो हम पड़ते हैं, राय जो हम बनाते हैं और इतिहास के बारे में अक्सर जो हमें बताया जाता है वह कहानी का केवल एक हिस्सा होता है।
संदेहात्मक कंपनियों और फूट डालने वाले राष्ट्रवादी राजनैतिज्ञों द्वारा सब को गलत उद्देश्यों को हासिल करने के लिए तोड़-मरोड़कर पेश किया जा सकता है। सच को प्रेरित
करने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ सच का उपयोग एम्प्लॉईस का आत्मविश्वास बढ़ाने और अच्छाई को जिताने में भी किया जा सकता है।
टुथ सिखाती है कि कैसे माप दावों से भरी इस दुनिया में खुद को तोड़-मरोड़कर पेश किये गार सच से अलग रख सकते हैं और फैक्ट को फिवशन से अलग कर सकते हैं। ऐसे समय में जब झूठी खबरें, गलत आकड़े और गलत विज्ञापन दमें घेरै हुए है, सच्चाई ही हमारा एकमात्र कवच साबित हो सकती है।
इसके अलावा आप जानेंगे कि
- कैसे जॉर्ज ने एक रासत से पीछा छुड़ाया
एक ऐड्ोकेट, मिसहनफोरमर और मिसलीडर में फर्क
कैसे मात्र एक विवरण का उल्लेख न करके कोका कोला ने अपना इतिहास दोबारा लिखा
अक्सर लोगों, घटनाओं और चीजों के बारे में कुछ प्रतिस्पर्धात्मक सच्चाईयां ऐसी होती हैं जो एक साथ सच हो सकती हैं।
हमें अक्सर बताया जाता है कि किसी भी चीज पर विश्वास करने से पहले हमें उसके बारे में विभित्र स्त्रोतों से अच्छी तरह जांच पड़ताल करनी चाहिए ताकि हम उसे एक बड़ी पिक्चर के रुप में देख सकें। द गार्जियन किसी चीज के बारे में कुछ दावा करता है; उसी वक्त न्यूयॉर्क टाइम्स कुछ और दावा करता है वहीं एल पौस का उसी वीज के बाबत दावा कुछ और ही होता है। अक्सर होता कि हर अखबार के पास कहने को कुछ न कुछ होता है।
जब हम करीब से इस तथ्य का निरीक्षण करते हैं तो हमें पता चलता है कि एक व्यक्ति, घटना या फिर किसी चीज को पेश करने के कई सारे सच्चे तरीके हो सकते हैं। मसलन, कोई व्यक्ति कह सकता है कि इंटरनेट बहुत ही मच्छी चीज है क्योंकि इसके जरिए हम बहुत जल्दी कोई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ कोई दूसरा व्यक्ति दावा कर सकता है कि इंटरनेट नफरत और झूठी खबरों से भरी हुई जगह है। ये दोनों कथन अपनी अपनी जगह सही है क्योंकि एक तरफ तो इटरनेट ने जानकारी के विशाल खजाने तक हमारी पहुँच बनाई है वहीं दूसरी ओर इसने हमें फेक न्यूज़ के दलदल में भी धकेल दिया है।
इसी तरह एक स्थानीय पुस्तक विक्रेता एमेजॉन को अपने कारोबार के लिए तबाही बता सकता है वहीं एक सेल्फ-पब्लिशिंग लेखक इसे अपनी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए शानदार प्लेटफॉर्म के रूप में बयां कर सकता असल में भी ब्रिटिश बुकस्टोर चेन वाटरस्टोन ने अमेज़न को एक “कूर पैसा कमाऊ दानव” करार दिया है वहीं यूके सोसाइटी ऑफ ऑथर्स द्वारा अपने सदस्यों के बीच कराये गए सर्वे में पाया गया कि ज्यादातर लेखक ऐमज़ान को काफी पसंद करते हैं।
और यह सिर्फ किताबों की दुनिया के नजरिए से है। ऐमज़ान अपने खुद के टीवी शोज और फिल्मों को प्रोड्यूस करने के साथ ही साथ ना उद्यमियों के लिए ऐमज़ान मार्केटप्लेस भी चलाता है। इसके अलावा अमेज़न ग्रोसरी स्टोर चेन होल फूड्स का मालिक भी है। कोई चीज शैतान है या भगवान है, इस सवाल का जवाब अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग होता है।
अगर हम इन प्रतिस्पर्धात्मक सत्यों को स्वीकृति नहीं देते हैं तो इस तरह से हम दुनिया को सरल बनाने में अपना योगदान देते हैं। अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को ही देख लीजिए जो रिपब्लिक पार्टी की तरफ से थे। रिचर्ड को राजनीति में प्रगतिशील लोगों ने कई इलज़ाम लगाए। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी का निर्माण करने के साथ ही साथ कई प्रगतिशील कानूनों को भी पास कराया जिनमें संकटग्रस्त प्रजाति अधिनियम और महासागर इम्पिंग अधिनियम प्रमुख है। इसी तरह जब हम जॉर्ज बुश की विरासत पर विचार करते हैं तो हमें इराक की चढ़ाई से ज्यादा कुछ नहीं सूझाता जबकि जॉर्ज बुश ने किसी अन्य अमरीकी राष्ट्रपति की तुलना में अफ्रीका को सबसे ज्यादा मदद भेजी थी।
सच्चाई अक्सर एकवचन के बजाय बहुवचन में होती है। जब आप किसी सच को सुनते हैं जिसपे बहुत ज्यादा जोर दिया जा रहा है तो थोड़ी देर के लिए ठहर जाइए और अपना जजमेंट पास करने से पहले उस चीज को एक बड़ी पिक्चर के रूप में देखिए अगले अध्याय में हम जानेंगे कि किसी चीज के प्रति आपका जजमेंट कैसे दूसरों के द्वारा चुनी हुई सच्चाई से प्रभावित हो सकता है।
दूसरों द्वारा चुनकर लाये गए सच हमारे माइंडसेट और एक्शनों का निर्माण करते हैं।
हम किसी लोकप्रिय व्यक्ति, किसी देश जहाँ हम कभी गए नहीं है और किसी सुपरफूड के बारे में धारणाएं कैसे बनाते हैं? हम अक्सर रेडियो, टीवी और इस्तिहारों में बताई गई चीजों के आधार पर इन चीजों के बारे में राय बनाते हैं, है ना?
किसी चीज़ के बारे में जो बात हम सबसे पहले सुनते हैं अक्सर वही बात उस चीज़ के बारे में हमारी धारणा बन जाती है। उदाहरण के लिए एक नए हेल्थ-फूड केज के बाबत यह कहानी सुनिए। 2000 के दशक के दौरान पश्चिम ने ‘क्चिनोआ (Quinoa) की खोज की और पेरु से इसका आयात करना शुरू कर दिया। इसे खानपान लेखकों जैसे-योटम ओटोलेंगही का खूब समर्थन मिला जबकि नासा ने इसे धरतो का सबसे संतुलित भोजन करार दिया। जल्द ही खबरे आने लगी कि इसकी तेजी से बढ़ती हुई मांग की वजह से ऐन्डीस, जहाँ क्विनोआ पैदा होता है, के पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
हमारा दिमाग किसी चीज के बारे में सबसे पहले प्राप्त जानकारी के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। तो अगर क्विनोआ के बारे में सबसे पहले आपको योटम से पता चला हो तो इस बात की काफी संभावना है कि आपने उसे थोड़ा-ही सही मगर खरीदा होगा। इस तरह उन्होंने सिलेक्टिव सत्य के माध्यम से आपके व्यवहार को प्रभावित किया है। साथ ही साथ उन्होंने अन्य सुपरफूड्स के प्रति भी आपकी धारणाओं को प्रभावित किया है। विचनोआ के हेल्थ बेनीफिट्स को जानकर आपका गन करेगा कि आप अन्य सुपरफूड्स जैसे- केल (Kale) और अकाई (Acal) के बारे में भी जाने। इसके विपरीत अगर आपने पहली बारे विचनोआ के बारे में किसी एनवाइरोमेन्टल डेमेज़ रिपोर्ट में पड़ा हो तो हो सकता है कि आप लंच में इसे लाने पर अपने किसी कलीग को गलत तरीके से जज़ कर लेते।
ये चुने हुए सत्य हम पर काफी गहराई से प्रभावित कर सकते हैं। अगर हम इनपे विश्वास करें तो ये हमारा पूरा माईडसेट बदल सकते हैं। मसलन कि्चैनोआ के बारे में आप
जो राय बनाते हैं वह दुनिया के प्रति आपके विस्तृत नजरिए को प्रभावित कर सकती है। राजनैतिक पत्रकार वाल्टर लिपमन लिखते हैं- “हमारी धारणाएं एक बड़ा स्पेस, लंबा समय और अधिक संख्या में चीजें कवर करती हैं जितनी कि हम निरीक्षण द्वारा नहीं जान सकते हैं। कुल मिलाकर कहें तो ये सेलेक्टिव सच हमारे महत्वपूर्ण निर्णयों को प्रभावित करती हैं, जैसे- मतदान करना, शॉपिंग करना और लोगों के साथ इन्टरेक्ट करना।
इसलिए जब भी आप किसी चीज के बारे में धारणा बनाएँ तो उससे संबंधित तथ्यों की जांच जरुर जाच करें। इसके अलावा यह भी निश्चित करें कि आपको किसी खास चीज के प्रति प्रभावित करने या धोखा देने के लिए इसका प्रयोग न किया जा रहा हो।
सेलेक्टिव सच को जिम्मेदाराना ढंग से इस्तेमाल करने के अलावा उन्होंने धोखाधड़ी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
सच को किस तरह इस्तेमाल किया जाता है यह बात बहुत ज्यादा मायने रखती है। सेलेक्टिव सच को सही उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने से उनके माध्यम से लोगों के दिलों को बदला जा सकता है; उन्हें गलत आदतों से बाहर निकाला जा सकता है और सफलतापूर्वक बदला जा सकता है। इसके साथ ही सेलेक्टिव सच का प्रयोग हमें धोखा देने में और लूटकर बर्बाद करने में भी किया जा सकता है।
सबसे पहले जानते हैं कि सेलेक्टिव सच का प्रयोग अच्छे उद्देश्यों के लिए किस प्रकार किया जा सकता है। इसका एक अच्छा उदाहरण हैं जब हम डॉक्टर के पास जाते हैं और उससे बीमारी के इलाज के बारे में बात करते हैं। इस स्थिति में डॉक्टर हमारे शरीर में चल रही ब्यायोलॉजिकल प्रक्रियाओं के बारे में बहुत ज्यादा विस्तार से नहीं बताते हैं जिनकी वजह से हम बीमार पड़े है। बल्कि वे केवल हमें कुछ स्पष्ट तथ्यों के बारे में बताते हैं ताकि हमें समझने में आसानी हो और हम फैसला कर पाएँ कि हमें आगे क्या करना है। अनावश्यक वैज्ञानिक विश्लेषणों जैसे-घुमर की सेल्युलर एनेटोमी और वाईरोलॉजी से हमें चिंता में डालने के बजाय डॉक्टर हमें इलाज से जुड़ी चीजों के बारे में बताता है और प्रिस्क्रीप्शन के साथ आराम करने की सलाह देता है।
ठीक इसी तरह कोई प्रशासनिक अधिकार सिलेयिव सच का इस्तेमाल महामारी के दौरान लोगों को यह बताने में कर सकता है कि उन्हें क्या करना चाहिए। वह किसी स्वास खबर को जनता से छुपाकर पैनिक फैलने से रोक सकता है जिससे कि बीमारी और अव्यवस्था न फैले।
इसके अलावा सेलेक्टिव सच को धोखाधड़ी के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए साल 2016 में टेक्सास डिपाट्र्मेन्ट ऑफ स्टेट हेल्थ सर्विसेज़ ने गर्भवती महिलाओं के लिए एक बुकलेट जारी की जिसमें गर्भपात और स्तन कैंसर के बीच के संबंध के विषय में बताया गया था। इस बुकलेट में बड़ी ही चतुराई से इस बात की ओर संकेत किया गया था कि गर्भपात की वजह से ब्रेस्ट केन्सर का खतरा बढ़ता है जबकि वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को सिरे से खारिज किया है। इस बुकलेट के अनुसार “अगर आप बच्चे को जन्म हैं। कैंसर की संभावना काफी जाती हालांकि यह सच है। जल्दी माँ बनने से स्तन कैंसर का खतरा कम हो जाता है मगर इसका मतलब यह कतई नहीं है कि अबॉर्शन होने से ब्रेस्ट कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
अब क्योंकि टेक्सास हेल्थ डिपाटमेंट ने सफेद झूठ नहीं बोला इसलिए यह इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे सिलेक्टिव सच के माध्यम से अवसर लोगों की विचारधारा बदलने की कोशिश की जाती है। सेलेक्टिव सच का इस्तेमाल करके डिपार्टमेंट टेक्सास के लोगों के वास्तविकता के प्रति दृष्टिकोण को जानबूड़ाकर बिगाड़ना चाहता था। वह तथ्यों को गलत ढंग से पेश करके लोगों को प्रभावित करना चाहता था।
अगले अध्याय में हम तीन खास तरह के कार्यनिकेटरों के बारे में बात करने वाले हैं जो सच के माध्यम से अपने आसपास के लोगों को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।
ऐडवोकेट, मिसड़न्फॉर्मर और मिसलीडर तीन तरह के कम्यूनिकेटर हैं जो सच को तोड़-मरोड़कर पेश करते हैं।
चीजों को आसान बनाने के लिए सच को तोड़-मरोड़कर पेश करने वाले लोगों को हम तीन टाइप्स में बांट लेते हैं।
पहली तरह के लोग होते हैं ऐडवोकेटस । एक वकील सत्यों का चुनाव इस प्रकार करता है कि वह जब उन्हें कहीं पेश करे तो उनमें वास्तविकता झलके जिससे बह अपने मकसद में कामयाब हो सके। इस तरह से किसी महामारी के बारे में जनता के बीच घोषणा करने वाले किसी प्रशासनिक अधिकारी को हम एक ऐसकेट कह सकते हैं। क्योंकि सही सूचना का चुनाव करके और स्थिति पर फिट न बैठने वाली चीजों को हटाकर उस अधिकारी का एकमात्र लक्ष्य अपने देश के नागरिकों को प्रोटेक्ट करना है।
दूसरे नंबर पे आते हैं मिसफोरमर यानि गलत सूचना फैलाने वाले लोग। एक मिसडन्फोर्मर वह व्यक्ति होता है जो अनजाने में गलत तरीके से पेश किये गए सच को फैलाने का काम करता है जिससे वास्तविकता के प्रति लोगों का नजरिया प्रभावित होता है। उदाहरण के लिए कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के दो मनोवैज्ञानिकों ने 1991 में दावा किया था कि राइट-हैन्डिड लोगों की तुलना में लेफ्ट- हैंडेड लोगों की जल्दी मरने की संभावना अधिक होती है। उन्होंने कैलिफोर्निया में हुई 1000 मौतों का अध्ययन किया और पाया कि राइटी लोगों की मौत औसतन 75 साल में हुई थी जबकि लेफ्टी लोगों के लिए यह आंकड़ा 66 साल था। उनके इस अध्ययन को बीबीसी और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे नामी अखबारों ने रिपोर्ट किया था।
दुर्भाग्य से उन्होंने अपनी खोज की व्याख्या गलत ढंग से की- पहले की पीढ़ियों में बाएँ हाथ से काम करने वाले लोगों के साथ भेदभाव किया जाता था इसलिए लोगों ने अपने लेफ्टी बच्चों की आदत सुधारकर उन्हें राइटी बनाना शुरू कर दिया। सच्चाई यह नहीं थी कि लेफ्टी लोग जल्दी मरते हैं बल्कि यह थी कि बाएँ हाथ से लिखने वाले लोग वर्तमान में कम ही मौजूद हैं क्योंकि लोगों ने अपने लेफ्टी बच्चों को राइटी बना दिया था। इस तरह से ये मनोवैज्ञानिक जाने अनजाने में मिसइन्फोर्मर बन गए थे।
तीसरी तरह के कम्यूनिकेटर होते हैं मिसलीडर्स। एक मीरा लीडर जानबूझकर सब को तोड़ गरोड़कर पेश करता है और उसे लोगों के बीच फैलाता है। उदाहरण के लिए टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनी कॉलगेट-पालमोलिब ने कई सालों तक ऐसे विज्ञापन चलाए जिनमें उसने दावा किया था कि 80% से ज्यादा डेन्टिस्ट उसके प्रोडक्ट को इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं। दरअसल उसने एक सर्वे के डाटा का गलत उपयोग किया था। उस सर्वे में डेन्टिस्टों से पूछा गया था कि वे लोगों को कौन-कौन से टूथ्पेस्ट ब्रांडस को इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं? इस पर बहुत सारे डेन्टिस्ट ने कई दूसरे ब्रांडस के साथ कोलगेट का नाम भी लिया था। कोलगेट ने जानबूझकर दूसरे ब्रांडस का नाम छपाकर लोगों को पूरी सच्चाई से नहीं बताई और उन्हें गुमराह किया। कोलगेट इस बात को अच्छी तरह जानती थी इसलिए उन्हें मिसलीडर्स कहा जा सकता है।
जाब तक सच इन तीनों कम्यूनिकेटर्स के हाथ में नहीं आता है वह न्यूट्रल होता है। बिल्कुल एक माचिस की डिब्बी के जैसा; जिसका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे इस्तेमाल किया जाता है। तो अगली बार से आप कभी भी किसी राजनेता या इतिहासकार को कोई तथ्य बताते हुए सुनें तो थोड़ी देर के लिए ठहरें और उसके स्त्रोत के बाबत सोचिये। यह निश्चित करें कि जो आपको यह बात बताया रहा है वह भरोसे के काबिल हो।
सेलेक्टिव सच का इस्तेमाल करके इतिहास को पुन: लिखा जा सकता है।
“इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा जाता है” आपने यह कहावत तो जरूर सुनी होगी। मगर इस अध्याय में हम जानने चाले हैं कि इतिहास कैसे कंपनियों, सरकारों और ऐतिहासिक संघर्षों में हारने वाले लोगों द्वारा भी लिखा जा सकता है।
सेलेक्टिव कहानियों के माध्यम से कई जरूरी चीजे बीते हुए समय बाबत हमारी समझ से हटा दी जाती हैं।
मिसाल के तौर पर, साल 2017 में अपनी स्थापना के 125 साल पूरे होने पर कोका-कोला ने “125 ईयर्स ऑफ शेयरिंग हैपीनेस” शीर्षक से एक 27 पेज का पैम्पलेट छपवाया। कोका-कोला के यलासिकल विज्ञापनों के साथ ही 1886 में इसकी स्थापना के बाद से करीबन हर साल से जुड़ा एक रोचक तथ्य पेश किया गया था। कोला-कोला ने अपने दूसरे सबसे बड़े अन्तराष्ट्रीय प्रोडक्ट फैन्टा की इटली में लांचिंग को 1955 में बताया है। लेकिन उन्होंने इस बात का जरा भी उल्लेख नहीं किया है कि फैन्टा को इससे लगभग डेढ़ दशक पहले नाजी जर्मनी में पहली बार बताया गया था। उस चक्त द्वितीय विश्व युद्ध के कारण सारे बदरगाह बद हो गए थे जिस कारण कोक के माल की आपूर्ती बाधित हो गई थी। कोका-कोला की जर्मन ब्रांव ने फैन्टा को कोक के एक विकल्प के रूप में पहली बार छाछ और एप्पल फ़ाइबर जैसे वेस्ट प्रोडकटों से तैयार किया था।
इतिहास को छुपाने के कई मामले तो इससे भी ज्यादा नाटकीय हैं। उदाहरण के तौर पर इस्राइल के स्कूलों में आज इतिहास की जो किताबें पढ़ाई जाती हैं उनमें 1948 के फलीस्तीनी पलायन के बारे में जरा भी जिक्र नहीं है जिसे भरबी भाषा में नकबा अर्थात त्रासदी कहा जाता है। नका के दौरान 7 लाख पलीसतीनी भरबों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था।
इतिहास से चुनकर लाई गई ये सच्चाईयां हमारे भविष्य पर काफी गहरा प्रभाव डालती हैं। इजराइली इतिहास से नकबा की घटना को हटाने के जैसी ही एक स्थिति अमेरिका में भी तेजी से पनप रही है। 2015 में अमेरिका के टेक्सास प्रात ने फैसला किया कि उनके स्कूलों की इतिहास की पुस्तकों में जातिवादी जेम्स को लॉ और बयू क्लक्स क्लेन का कोई भी जिक्र नहीं किया जाएगा। इसके अलावा यह निर्णय भी लिया गया कि टेक्सास के स्कूली बच्चों को अमरीकी गृह युद्ध का एक अलग ही इतिहास पढ़ाया जाएगा. जिसके मुताबिक गृहयुद्ध महज कुछ अधिकारों को पाने की खातिर लड़ा गया था। टेैक्सास के स्कूली बच्चे शायद अब यह नहीं जान पाएंगे कि गृहयुद्ध की असली वजह दासप्रथा थी जिसे कन्फेडरेट राज्य खत्म करने के पक्ष में नहीं थे।
दक्षिणी अमरीकी राज्यों के इतिहास में गुलामी और जातिवाद को तवजो न देने की बजह से सामाजिक दृष्टिकोणों पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा है। अज्ञानता की इस आधी में गोरे सुप्रीमसिस्ट लोग अपने बलबूते पर गलत कहानियों को आसानी से फैला सकते हैं।
कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि इतिहास का अध्ययन करते वक्त पूरी सावधानी बरतें। क्योंकि सावधानी ही हमें गुमराह करने वाली झूठी कहानियों से बचने का
सबसे बेहतर तरीका है।
इतिहास, संस्कृतियों और समाज के विभिन्न हिस्सों में बड़ी संख्या में नैतिक सत्य मौजूद हैं।
इस अध्याय में हम जानेंगे कि प्राचीन काल में कैसे बहुत सारे समाजों विमित्र धारणाओं का जन्म हुआ और उत्रीसवीं सदी के नशेड़ी लोगों को आज के स्टैन्डर्ई के हिसाब से कैसे जज किया जा सकता है।
चलिए सबसे पहले जानते हैं कि नैतिक सत्य कैसे विभिन्न समाजों गें अलग-अलग रूप में मौजूद हैं। क्लासिकल ग्रीस के एक अज्ञात ग्रंथ दिसोई लोगोई में लेखक ने नाटकीय ढंग से अपने जमाने के नैतिक स्टैंड्र्स की तुलना प्राचीन नैतिक स्टेन्डर्ड से की है। उसने नोट किया कि खानाबदोश सिथियंस मानते थे कि किसी इंसान का कत्ल करने वाले व्यक्ति को उसके सिर की खाल उतारकर उसे अपने घोड़े की लगाम पर चढ़ाना चाहिए। फिर उन्हें लगा कि उसकी खोपड़ी को चमकाकर भगवान की भक्ति के दौरान एक पेय पात्र के रूप में इस्तेमाल करने में कोई बुराई नहीं है।
ग्रीस के लोगों में इस प्रथा के खिलाफ काफी गुस्सा था और कोई भी ग्रीक ऐसे किसी व्यक्ति के घर में नहीं घुसता था जिसने ऐसा कोई काम किया था।
नैतिक सच्चाई का एक ऐसा ही रूप आज की आधुनिक दुनिया में भी देखा जा सकता है। मिसाल के तौर पर गे मैरिंज़ को पश्चिम के ज्यादातर देशों ने स्वीकृति प्रदान कर रखी है जबकि ईरान, सूडान और सऊदी अरब जैसे देशों में समलैंगिगता के लिए सजा-ए-मौत का प्रावधान है।
नैतिक सत्य जड़ नहीं हैं अर्थात समय के साथ उनका रुप बदल सकता है। उन्नीसवीं सदी के दौरान रानी विक्टोरिया और पॉप जैसी कई बड़ी हस्तियाँ विन मैरियानी का सेवन किया करती थी जिसमें प्रति ओस शराब में कोकेन की 6 मिलीग्राम मात्रा मिलाई जाती थीं। इसके अलावा कई अन्य नामी हस्तियाँ जैसे- महान उपन्यासकार चार्ल्स डिकेंस और गणितज्ञ ऐडा लवलेस अफीम का सेवन किया करते थे। हालांकि नशे को उस वक्त भी बेवकूफी की निशानी माना जाता है मगर इन तथ्यों से साबित होता है कि यह नेतिक रूप से गलत नहीं है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक नैतिक सत्य था।
इसके बाद बीसवी सदी का आगमन हुआ और पूरी दुनिया के नैतिक नजरिए में बदलाव की बहार आई। अब क्योंकि सरकार नशे से होने वाले जोखिमों से अच्छी तरह वाकिफ हो गई थी इसलिए उसने नशा करने वाले लोगों को कलंकित करने का व्यापक प्रोपेगेंडा बनाया और इस नैतिक सत्य के साथ छेड़छाड़ की। सरकार ने अपने इस प्रोपेगेंडा के सफल बनाने के लिए नशे को समाज में “गलत छवि वाले समुदायों जैसे- मश्वेतों और गे के साथ जोड़ना शुरु कर दिया।
रिचर्ड निक्सन और रोनाल्ड रेयगत जैसे अमरीकी राष्ट्रपतियों के द्वारा नशे को कुछ खास समुदायों से जोड़ने के लिए चलाए गए “वार ऑन इस” कैम्पेन के दौरान यह धारणा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गई। इस कैम्पेन की तरह जो व्यक्ति नशा करते हुए पकड़ा जाता था समाज में उसकी छवि को खराब कर दिया जाता था यह स्थिति रानी विक्टोरिया के जमाने के बिल्कुल विपरीत थी जब नामी हस्तियाँ साथ बैठकर अफीम का सेवन किया करती थी।
हालांकि आज हमारी दुनिया का नशे के प्रति नजरिया काफी हद तक सहिष्णु और समझपूर्ण हो गया है जो बीसवी सदी के जैसे नशे को सीधे तौर पर एक क्राइम मानने के बजाय सामाजिक कारणों से उसका बहिष्कार करती है।
अगले अध्याय में हम जानने वाले हैं कि सच्चाईयों की प्रतिस्पर्धा करने वाले लोगों के द्वारा आकड़ों को कैसे बदला जा सकता है।
अक्सर प्रतिस्पर्धात्मक सच को मजबूती देने के लिए आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।
हम ओकड़ों से घिरे हुए हैं। सरकार हमें बताती है कि वह कितना पैसा कहाँ खर्च करने वाली है वहीं अखबार भी अपने शीर्षकों में अर्को का प्रयोग करके हमें जागरूक करते है। इसके अलावा दुकान में रवी चीजों के पैकेट भी आकड़ों से भरे रहते हैं। लेकिन हम उनका मतलब केसे समझते हैं?
चीजों को मापने के तरीके में बदलाव करके आकड़ों को किसी खास सच्चाई के हिसाब से डाला जा सकता है। उदाहरण के तौर पर इस कथन पर ही विचार कर लीजिए “किडनेपिंग दर के मामले में कनाडा और ऑस्ट्रेलिया शीर्ष पर।” यह तथ्य पूरी तरह से सच है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि इन दोनों देशों में किडनेपिंग का खतरा सबसे ज्यादा है। ऐसा इसलिए क्योंकि इन देशों की सरकारें बच्चों की कस्टडी को लेकर पेरेंट्स के आपसी विवाद वाले मामलों को भी किडनैपिंग वाले आंकड़ों में शामिल करती हैं।
इसी तरह का एक दूसरा तथ्य है- “दुनिया में बलात्कार की सबसे ज्यादा घटनाए स्वीडन में होती है। स्वीडन में सालाना प्रति एक लाख लोगों पर रेैप की 60 घटनाए होती हैं। यह आंकड़ा इतना ज्यादा इसलिए है क्योंकि स्वीडन में छोटी-से-छोटी मोलेस्टेशन की घटना को भी रेप माना जाता है और साथ ही साथ ऐसी घटनाओं को रिपोर्ट करने का उनका सिस्टम भी काफी बेहतर है।
मय क्योंकि हममें से ज्यादातर लोग एक्सपर्ट नहीं होते हैं इसलिए हमें अक्सर आंकड़ों के माध्यम से गुमराह करने की कोशिश की जाती है। मिसाल के तौर पर शावर जेल ऑरीजिनल सोर्स मिट एण्ड टी ट्री को ही देख लीजिए। ओरिजिनल सोर्स दावा करता है कि इसकी हर बोतल 7927 पुदीने की पतियों से बनाई जाती है। 7927 के आँकड़े को इसकी पॅकिंग पर विशेष रूप से दर्शाया जाता है। लेकिन अगर आप एक बौटतिस्ट नहीं है तो आप कैसे पता करोगे कि कंपनी जो दावा कर रही है उसमें कितनी सच्चाई है? क्या आपको लगता है कि जेल की एक बोतल में 7927 पुदीने की पत्तियों का रस भरा जा सकता है? अब जब बेहद जरूरी तेलों का निर्माण करने के लिए गुलाब की हजारों पखुड़ियों की जरूरत पड़ सकती है तो जेल की बोतल में पुदीने की इतनी पत्तियां क्यों नहीं आ सकती!
इसी तरह ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने 2017 में घोषणा की, कि उनकी सरकार अफोर्डडेबल हाउज़िंग में 2 अरब पाउन्ड का निवेश कर रही है। सौधे तौर पर देखने पर दो अरब पाउनड बहुत बड़ी रकम लग सकती है लेकिन आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि ब्रिटेन में इस रकम से सिर्फ 25 हजार नए घरों का निर्माण किया जा सकता है जबकि वहाँ ऐसे 12 लाख घरों का निर्माण किये जाने की जरुरत है।
तो किसी आँकड़े की वजह से एकदम से हैरान या परेशान होने के बजाय हमें यह पता लगाने की कोशिश करनी चाहिए कि उसे किस तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है। उसका असली मतलब है क्या क्या इसे सिर्फ आपको प्रभावित या बेचैन करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। अगली बार जब भी आपका सामना किसी हैरान करने वाले आँकड़े से हो तो उसके बारे में गहनता से अध्ययन जरूर करें।
कारोबार की दुनिया में सही तरीके से इस्तेमाल किये जाने पर सेलेक्टिव सच काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
क्या आपने कभी खुद को दफ्तर में अनगिनत कामों के बीच फंसा हुआ पाया है? क्या आपके मन में कभी सवाल उठाया है कि जो काम आप कर रहे हैं वह आखिर कर क्यों रहे हैं? अगर हाँ तो शायद आप जानते होंगे कि बॉस का एक उत्साहवर्धक भाषण आपको कितनी ऊर्जा से भर सकता है।
सच्चाई का सगझदारी भरा चुनाव करने से हम अपने एम्प्लॉईस को मोटिवेट करने के साथ ही साथ उन्हें प्रेरित भी कर सकते हैं। उदाहरण के लिए गान लीजिए आपकी कंपनी में एक नया व्यक्तिं आया है और आप उसके बॉस हैं। इस स्थिति में आप उसे उसके रोल के बारे में कैसे समझाएंगे? आप उसे किस तरह बताएंगे कि आने वाले दो सालो में उसकी तनख्वाह नहीं बढ़ेगी और उसके साथियों के बीच टीमभावना की कमी हो सकती हे? अगर आपको उसे बताना है कि उसका काम थोड़ा-सा बोरिंग हो सकता है तो आप यह कैसे करेंगे ये स्थितियाँ असलियत में हो सकती हैं। बेहतर होगा कि आप उसे काम से होने वाले फायदों के बारे में बताएँ। मसलन आप उसे बता सकते हैं कि इस
काम से उसे एक नई स्किल सीखने को मिलेगी; उसे कपनी के विदेशी दफ्तरों में जाने का मौका मिल सकता है और तेजी से आगे बढ़ते हुए बिजनेस में एक शानदार रोल मिल सकता है।
अपने एप्लॉईस को कहानियाँ कहकर हम काम के प्रति उनके नज़रिए में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। ब्रिटेन की मल्टीनेशनल बैंकिंग कंपनी बारक्लेस में एम्प्लॉईस को अक्सर उनकी कंपनी के ऐतिहासिक संस्थापकों के बारे में बताया जाता है और ईमानदारी, एकता तथा स्पष्टता के आदर्शों से उन्हें रूबरू कराया जाता है। एक ऐसे पेशे में जहाँ पर लापरवाही और लालच आम बात है यह कहानी एम्प्लॉईस को याद दिलाती है कि कैसे बैंकिंग की दुनिया को घटिया नेतिक मूल्यों द्वारा परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए और क्यों उन्हें अपने काम पर गर्व करना चाहिए।
जो कारोबारी अपने ब्रांड की एक विशेष इमेज बनाना चाहते है उन्हें सेलेक्टिव सच का प्रयोग बेहद समझदारी से करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर एरिक्सन 1990 के दौर में दुनिया की सबसे बड़ी मोबाइल उत्पादक कंपनियों में से एक थी। आज यह कपनी औटोमटेड टेक्लॉलजीस को कनेक्ट करने का काम करती है। इसी कपनी ने डेनिश शिपिंग कंपनी गाएक (Maersk) के साथ दुनिया का सबसे बड़ा पलोटिंग नेटवर्क तैयार किया है। इसके अलावा यह वॉल्चो और स्कानिया जैसी कंपनियों के साथ गाड़िया बनाने का काम भी करती है।
ग्राहकों और एम्प्लॉईस को अपने नए मिशन के बारे में समझाने के लिए इस कंपनी ने अपने इतिहास पर प्रकाश डाला और लोगों को बताया कि कंपनी के संस्थापक एक टेनॉलजी पाइनीयर थे। कंपनी ने इस तथ्य को हाइलाइट किया कि इसके संस्थापक लार्स मैग्नस एरिक्सन ने 1878 में पहली बार टेलिफोन बनाने का काम शुरू किया था और कंपनी ने अपना पहला मोबाइल टेलीफोनी सिस्टम 1981 में लॉन्च किया। कपनी के पास कई अन्य रास्ते थे जिनकी मदद से वह अपने मिशन को लोगों तक पहुंचा सकती थी लेकिन उसने सिर्फ यही रास्ता चुना क्योंकि यह उसके बड़े और भावी लक्ष्यों के लिए उपयुक्त था। इससे कंपनी के एम्प्लॉईस अपने आपको नए काम के हिसाब से डाल सके और ग्राहकों के जेहन में एरिक्सन का नाम भी बना रहा।
तो इस उदाहरण से हम सीख सकते हैं कि समझदार कारोबारी कैसे सेलेक्टिव सच को सही तरीके से सही वक्त पर प्रयोग करके दुनिया को बदलने का काम करते हैं।