HOW TO RAISE A WILD CHILD by Scott D Sampson.

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यह किसके लिए है

वे जो सोचते हैं कि घर में रहने से उनके बच्चे सुरक्षित रहेंगे।

-वैजो अपने बच्चों को असली दुनिया से जोड़ना चाहते हैं।

वे जो एक टीचर हैं और अपने स्टूडेंट्स को प्रकृति के साथ जोड़ना कहते है।

लेखक के बारे में

स्काट डी सैंपसन ( Stott D. Sampson ) कैनेडा के एक पैलियोंटोलॉजिस्टा वै इस समय साईंस बल्ई के सीईओ और प्रेसिडेंट हैं। इससे पहले वे डवर म्यूुजियम आफमैचर एण्ड साइंस के चौफ थे।

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए?

समय के साथ हम प्रकृति से दूर हुए जा रहे हैं। अब जब हमें कुछ खाली वक्त मिलता है तो उसमें हम बाहर घूमने की बजाय टीवी देखने लगते हैं या फिर इंटरनेट पर समय बिताने लगते है। इस तरह की लाइफस्टाइल ने हमारी सेहत के लिए बहुत सी समस्याएं खड़ी कर दी हैं।

इन सब में सबसे ज्यादा चिंता वाली बात यह है कि हमारे बच्चे भी प्रकृति से दूर हुए जा रहे हैं जिसकी वजह से ये सेहतमंद नहीं रह पाते। अगर ये बच्चे प्रकृति से प्यार करना नहीं सीखेंगे तो आने वाले वक्त में ये प्रकृति के साथ सा खुद अपने विनाश की वजह बनेंगे।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को प्रकृति से प्यार करना सिखा। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह आप ऐसा कर सकते हैं।

इने पढ़कर आप सीखेंगे

प्रकृति की गोद में खेलना आपके बच्चों के लिए फायदेमंद क्यों है।

किन तरीकों से आप अपने बच्चों को इंटरनेट पर खोने से बचा सकते हैं।

टेक्नोलॉजी की मदद लेकर किस तरह से आप अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़ सकते हैं।

आज के वक्त के बच्चे अपना ज्यादातर समय घर के अंदर बिताते हैं।

शहरों में सुरक्षा घटती जा रही है। जनसंख्या बढ़ने की वजह से जगह की कमी होती जा रही है और साथ ही साथ बच्चों के किडनैप होने की और अपराध की खबरें बढ़ती जा रही है। इस तरह की बातों की वजह से पेरेंट्स अपने बच्चों को घर के बाहर खेलने नहीं देते हैं।

पेरेंट्स चाहते हैं कि उनके बच्चे सेहतमंत रहें, अपने खाली समय में कुछ ना कुछ सीखते रहें। इसलिए वे उन्हें अलग अलग जगह पर स्पोर्ट्स, म्यूजिक या फिर आर्ट सीखने के लिए भेजते हैं। इस तरह से बच्चों के पास भी समय बहुत कम बचता है। जब वे समय पाते हैं तो वे टीवी के सामने या फिर अपने फोन के सामने बैठ जाते हैं और घंटों बैठे रहते हैं।

क्या आपको पता है कि आज का बच्चा अगर सात घटे किसी स्क्रीन के सामने बैठता है तो सिर्फ 4 से 7 मिनट बाहर बिताता है। इस तरह घर में बंद रहने के बहुत से नुकसान हैं।

आज के वक्त के बच्चों को नौकरी के मामले में कुछ ज्यादा प्रतियोगिता का सामना करना होगा। जब उन्हें घर में रहने की आदत पड़ जाएगी तो उन्हें घर के अंदर नहीं बल्कि

घर के बाहर घुटन होने लगेगी। वे कहीं पर अकेले जाने से डरेंगे और आने वाले वक्त में उन्हें बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

इस तरह से घर से बाहर निकलने पर उनकी सुरक्षा को खतरा है और घर के अंदर रहते पर उनका विकास रुक जाएगा। तो इस समस्या से निकलने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

अपने बच्चे के विकास के लिए उसे कुछ समय घर के बाहर बिताने दीजिए।

सबसे पहले यह जानने की कोशिश करते हैं कि घर से बाहर, प्रकृति की गोद में समय बिताना आपके बच्चे के लिए जरुरी क्यों है।

बहुत सी रीसर्च में यह बात सामने आई है कि जो बच्चे अपना कुछ वक़्त या ज्यादातर समय घर से बाहर बिताते हैं वे उनके मुकाबले ज्यादा तेज होते हैं जो हर वक्त घर में रहते हैं। वे उनके मुकाबले ज्यादा तेज़ पड़ना सीखते हैं और उनकी मैथ्स भी अच्छी होती है। उन्हें बीमारियाँ बहुत कम या ना के बराबर होती है क्योंकिं प्रकृति के साथ रहने की वजह से उनका इम्यून सिस्टम मजबूत हो जाता है।

माज बच्चों की सेहत हर दिन खराब होती जा रही है। 2014 में लगभग 60 लाख बच्चों को एएचडीएच (ADHD) नाम का रोग हुआ था और बहुत से बच्चे मोटापे का शिकार थे। यह सब इसलिए क्योंकि वे बाहर जाकर खेलने की बजाय घर में बंद होकर एक स्क्रीन के सामने बैठना पसंद करते हैं।

अगर हम हर रोज शाम को अपने बच्चों के साथ टहलने की आदत डालें तो इससे आप के साथ आपके बच्चों की सेहत भी सुधर सकती है। इसके साथ ही जब आप अपने बच्चों को पेड़ पौधों के साथ समय बिताने को कहते हैं तो इससे उनका दिमाग खुलने लगता है। वे गोबाइल या टीवी से दूर जाकर इस असली दुनिया में जीता सीखते हैं जिससे उनकी सेहत कभी खराब नहीं होती है।

बच्चों को प्रकृति से जोड़ने के बहुत से तरीके हैं।

प्रकृति का मतलब सिर्फ जंगल या पहाड़ से नहीं है। ऐसे बहुत से तरीके हैं जिनकी मदद से आप अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़ सकते हैं। इसमें एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि आप यह काम करने की आदत डाल लें। अपने बच्चों को हर रोज प्रकृति से जोड़ कर रखने के तरीके खोज निकालिए। जब बच्चों को इन सभी चीजों का अनुभव होने लगता है तब उनके दिमाग का विकास होने लगता है। वे अपनी दुनिया में खोने की बजाय बाहर की दुनिया से जुड़ने लगते हैं।

अपने बच्चों को प्रकृति से आप दिए गए तीन तरीकों से जोड़ सकते हैं

  • महीने में एक बार या फिर साल में एक बार अपने बच्चे को दूर किसी जंगल या फिर पहाड पर घुमाने लेकर जाडर। या फिर आप उन्हें समुद्र का किनारा दिखाने लेकर जाइए।

अपने घर के पीछे एक छोटा सा घरेलू बगीचा तैयार कीजिए जहाँ पर आपके बच्चे कुछ समय बिता सकें। या फिर उन्हें हफ्ते में एक बार अपने पास के किसी बगीचे में या

स्कूल के बगीचे में घुमाने लेकर जाइए। अपने घर में एक्चेरियग रखिए जिसे देखकर आपके बच्चे अपना गन बहला सके।

  • अपने बच्चों को हर रोज माधे से एक घंटे टीवी पर या इंटरनेट पर प्रकृति से संबंधित कुछ शो दिखाएँ जिसे देखकर इसके बारे में उनकी समझ चढ़े। टीवी पर जंगल, पहाड़ या समुद्र से संबंधित बहुत सी द्वाक्युमेंट्री दिखाई जाती है। इसे हर रोज अपने बच्चों को दिखाहाट।

जिस दिन आपके बच्चों की छुट्टी रहे उस दिन उन्हें एक्वेरियम को साफ करने का काम या फिर अपने छोटे से बगीचे को साफ करने का काम दीजिए। या फिर उन्हें घर के बाहर जाकर पछियों की आवाज सुनने के लिए कहिए। इससे वे अपना खाली समय घर के अंदर टीवी के सामने बिताना छोड़ देंगे।

अपने बच्चे को प्रकृति से जोड़ने के बहुत से तरीके हैं।

शायद आपके साथ कभी ऐसा हुआ हो कि आप अपने बच्चे को बाहर जाकर खेलने के लिए कह रहे हों और वो टीवी के सामने से उठने का नाम ही ना ले रहा हो। ऐसा होना आम बात है और इस समस्या से बाहर निकलने का रास्ता भी आसान है।

सबसे पहले आपको इस बात को समझना होगा कि आपका बच्चा वही करेगा जो आप कर रहे हैं। हम सभी लोग नकल कर के बहुत से काम करना सीखते हैं और आपका बच्चा जाने अनजाने में आपकी नकल करता है। इसका मतलब यह है कि अगर आप उसके सामने बैठ कर या उसके साथ होने पर प्रकृति की बातें करेंगे, हर हफ्ते कहीं बाहर घूमने जाएंगे, घर के बाहर बाजार जाते वक्त अपने आस पास के माहौल को देखकर उसके बारे में बातें करेंगे तो समय के साथ आपका बच्चा भी इन सब बातों पर ध्यान देने लगेगा। वह यह जानने के लिए उत्सुक हो जाएगा कि इन सब बातों में क्या मजा मिलता है। इससे वह भी प्रकृति के साथ जुड़ने लगेगा।

इसके अलावा आप अपने बच्चों को प्रकृति से जुड़ी हुई कहानियाँ सुना सकते है। कहानियों का हमारे दिमाग पर बहुत ज्यादा असर होता है। जरूरी नहीं है कि आप हर वक्त उन्हें कुछ बताते रहें। आप उनसे कुछ पूछिए। एक्जाम्पल के लिए आप उनसे पूछिए कि उन्हें इस जगह की कौन सी बात अच्छी लगती है। इस तरह के सवाल पूछने पर आपका बच्चा अपने आस पास देखकर यह जानने की कोशिश करेगा कि उसे इन सब में से क्या सबसे अच्छा लग रहा है। इस तरह से वह इनसे जुड़ने लगेगा। वह यह खोजने लगेगा कि उसे क्या चीज पसंद है।

आप अपने बच्चों से कहिए कि वे अपने साथ एक डायरी रखें जिसमें वे यह सब कुछ लिखते रहें। साथ ही वे प्रकृति की ड्राइंग भी बनाते रहें। इस तरह के काम करने से वे अपने दिमाग की क्रीएटिविटि को बाहर निकाल कर बहुत कुछ बनाना सीख सकते हैं और अपने दिमाग को विकसित कर सकते हैं। इस तरह की आदतें इलवाने में कुछ समय लग सकता है लेकिन जब आप भी अपने बच्चों के साथ यह काम करेंगे तो वे समय के साथ आपकी नकल करने लगेंगे।

अपने बच्चों को उस स्कूल में भेजिए जहां प्रकृति से जुड़ने के साधन मौजूद हों।

शहर के कुछ स्कूलों में प्लेग्राउंड नहीं होता और कुछ में प्लेग्राउंड तो होता है लेकिन उसमें सिर्फ घास उगी रहती है। इस तरह के स्कूलों में प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया जाता।

इसलिए आप अपने बच्चों को इस तरह के स्कूलों में मत भेजिए।

बहुत से स्कूल ऐसे होते हैं जहां पर छोटे बच्चों को प्रकृति से जोड़ने की बहुत सारी कोशिश की जाती है। उन्हें प्लेग्राउंड में ही बैठा कर अलग अलग बातें बताई जाती हैं और साथ ही पेड़-पौधों की देखभाल करना भी सिखाया जाता है। इस तरह के स्कूल आप के बच्चों के विकास के लिए बिल्कुल सही हैं।

एक टीचर का यह काम है कि वो छोटे बच्चों के दिमाग में अच्छी से अच्छी बातें डाले और अच्छी आदते विकसित करे। अगर आप किसी ऐसे स्कूल के टीचर हैं जहां पर इस तरह से नहीं पढ़ाया जाता तो आप अपनी तरफ से कोशिश कर सकते हैं। आप बच्चों को किसी दिन पास के बगीचे में ले जाकर उनके साथ पेड़ लगाइए या फिर अपने फोन या लेपटॉप में उन्हें प्रकृति से जुड़ी अलग अलग तरह की फिल्में दिखाइए। इस तरह से आप अपना फर्ज अच्छे से निभा सकते हैं।

प्रकृति से हर उम्र के बच्चों का फायदा हो सकता है।

बहुत से कवियों का मानना है कि प्रकृति मन के दरवाजे खोल देती है। यही वजह है कि पुराने जमाने के कवि प्रकृति की गोद में ही बैठ कर बहुत सारे ग्रंथ लिखा करते थे। इससे उनकी कल्पना बढ़ जाती थी और वे नई नई बातें लिख पाते थे।

ठीक इसी तरह आप ने भी देखा होगा कि किस तरह से बच्चे एक लकड़ी को जादू की छड़ी या तलवार मान कर उससे खेले लगते हैं। बाहर खेलने से वे जब भी अपना सिर घुमाएंगे, एक नई चीज उनका ध्यान अपनी तरफ स्वींचेगी जो उनके कल्पना करने की क्षमता को बढ़ाएगी। इसके अलावा जब आपके बच्चे बाहर खेलेंगे तो वे बीमार कम पड़ेंगे।

जब बच्चे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो उन्हें आजादी अच्छी लगने लगती है और वे अपने माता पिता से अलग होकर दुनिया को अपने हिसाब से देखने लगते हैं। इस तरह के बच्चों के लिए सबसे अच्छा यही होगा कि आप उन्हें दूर से देखते रहें और उन्हें अपने हिसाब से दुनिया को समझने दें।

छोटे बच्चे ही नहीं, 1 साल से 18 साल के बच्चे भी अगर अपना कुछ समय प्रकृति के साथ बिताएँ तो उनका आत्मविश्वास बढ़ जाता है। जब वे कहीं बाहर जंगलों में अपने दोस्तों के साथ घूमने जाते हैं तो उन्हें बहुत सी यादें मिल जाती हैं जिसे सोचकर वे बाद में मुस्कुरा सकते हैं। वे खुद पर निर्भर रहना सीख जाते हैं।

वक्त को बदलने से रोकना हमारे बस में नहीं है, लेकिन हम उसके हिसाब से खुद को ढ़ाल सकते हैं।

आज दुनिया के ज्यादातर लोग शहर में रहते हैं या फिर रहना चाहते हैं। भीड़ बढ़ने की वजह से जगह कम हो रही है और लोग प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर अपने रहने के लिए जगह बना रहे हैं। यह हमें प्रकृति से दूर लेकर जा रहा है। आने वाले वक्त में जब टेक्नोलॉजी दुनिया पर छा जाएगी और हम प्रकृति से पूरी तरह से अलग होकर इंटरनेट की दुनिया में रहने लगेंगे तब शायद इस किताब में लिखी गई बातों का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। आप अपने बच्चों को इस टेक्नोलॉजी से दूर नहीं ले जा सकते क्योंकि यह समय के साथ हर जगह फैल जाएगा। लेकिन इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर के भी आप अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़ सकते हैं।

आप अपने बच्चों को एक कैमरा दे दीजिए और उनसे कहिए कि वे उन चीज़ों की फोटो खीचे जो उनहें पसद आए। आप उनसे कहिए कि वे समुद्र के किनारे जाकर अलग अलग तरह के कीड़ों की फोटो खीचें और उनकी एक एल्बम तैयार करें। उन्हें उन एप्स के बारे में या फिर उस टेक्नोलॉजी के बारे में बताइए जो प्रकृति से जुड़ने में उनकी मदद करें। टेकोलॉजी का अच्छा इस्तेमाल कर के आप अपने बच्चों को प्रकृति से जोड़कर रख सकते हैं।

आज के वक्त में हमारे पास प्रकृति है, लेकिन आने वाले वक्त के बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता। हो सकता है आने वाली पीढ़ियों के बच्चे पेड़ पौधों को ना देख पाएँ। हो सकता है उस समय के बच्चों को म्यूजियम में ले जा कर दिखाया जाए कि पेड़ ऐसे हुआ करते थे। प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर हम सुकून से नहीं जी सकेंगे। यह बात हम जितनी जल्दी समझा जाए उतना बेहतर होगा।

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