About Book
कम्युनिकेशन हमारी लाइफ़ की हर उस अच्छी चीज़ की
शुरुआत है जिसे हम एन्जॉय करते हैं। अच्छे रिलेशनशिप अच्छे कम्युनिकेशन पर बेस्ड होते हैं। कोई भी इंसान असरदार या इफेक्टिव तरीके से कम्युनिकेट कर सकता है, हमारे अंदर यह काबिलियत पैदा होने से ही मौजूद है । यह समरी आपको सिखाएगी कि आप किस तरह अपने कम्युनिकेशन को बदल कर बाकी लोगों के साथ अपने रिश्तों को और बेहतर बना सकते हैं। इस समरी की मदद से आप एक मज़बूत और हेल्दी रिलेशनशिप बना कर इसे लंबे समय तक टिकाए रख सकते हैं।
इस समरी को किसे पढ़ना चाहिए?
मैनेजर्स
लीडर्स
एंटरप्रेन्योर्स
कॉलेज स्टूडेंट्स
एम्पलॉइज
प्रोफेशनल्स
ह्यूमन रिसोर्स पर काम करने वाले लोग
ऑथर के बारे में
इयन टूहोवस्की (lan Tuhovsky) मेडिटेशन, साइकोलॉजी, टाइम मैनेजमेंट, इमोशनल इंटेलिजेंस और कम्युनिकेशन स्किल्स पर लिखी बुक्स के ऑथर हैं। वे यूरोप के कई कंपनीज़ में बतौर एंटरप्रेनयोर और ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टेंट काम करते हैं। इयन का एक ब्लॉग भी है जिसका नाम “माइंडफुलनेस ऑफ सक्सेस” है जहाँ वे अपने आप को बेहतर बनाने और एक बढ़िया लाइफ़ जीने के बारे में कई आइडियास शेयर करते हैं।
इंट्रोडक्शन
कम्युनिकेशन यानी बात-चीत हमारी सोशल लाइफ और रिलेशनशिप्स के लिए बहुत इंपॉर्टेट है। आप किसी इंसान से तभी रिलेट कर पाते हैं या रिश्ता बना पाते हैं जब आप उनसे सही तरह से कम्युनिकेट कर पाते हैं। किसी भी रिश्ते को सफल बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि लोग आपस में कम्युनिकेट
करें। कम्युनिकेशन एक ऐसी स्किल है जो समय के साथ सीखी जाती है। यह प्रैक्टिस के साथ बेहतर होती जाती है।
आप अपने कम्युनिकेशन को कभी भी इंप्रूव कर सकते हैं, यह परवाह किए बिना कि आपकी उम्र, आपका सोशल स्टेटस या आपका फ़ैमिली बैकग्राउंड क्या है। किसी भी और स्किल की तरह ही, इसमें भी कमिटमेंट और हार्ड वर्क यानी कड़ी मेहनत की ज़रूरत पड़ती है। यह आसान नहीं है, लेकिन मुमकिन है। कम्युनिकेशन स्किल्स तभी काम करेंगे जब हम उन्हें प्रैक्टिस में लाएंगे और अपनी रोज़-मर्रा की लाइफ में उसका इस्तेमाल करेंगे। यह बुक आपको यह सिखाएगी की आप कैसे अपने कम्यूनिकेट करने के तरीके को बदल कर उसे और बेहतर बना सकते हैं।
डे 1- लिस्निंग (Day1- Listening)
कम्युनिकेशन का एक बहुत ही जरूरी पहलू है लिस्निंग यानी सुनना। आप सामने वाले इंसान से असरदार तरीके से बात कर पाएं इसके लिए ज़रूरी है। कि आप में अच्छी लिस्निंग स्किल्स भी हों। लिस्निंग का यह मतलब नहीं कि आप बस चुप हो कर अपनी बात कहने के मौके का इंतज़ार करें, बल्कि इसका मतलब यह है कि आप सामने वाले को अपने दिल कि बात रखने का मौका दें।
सुनते हैं तो आप सामने वाले इंसान को अपनी सोच, अपनी राय और अपने आइडिया रखने का मौका देते हैं। एक नामी साइकोलॉजिस्ट कार्ल रॉजर्स (Carl Rogers) का यह मानना है कि जब हम किसी को अपनी फ़ीलिंग्स के बारे में बात करने का मौका देते हैं तो उनके सोच और व्यवहार यानी बदलाव आ जाते हैं। हम अपने problem पर बेहतर तौर पर काम कर के उन्हें तब सॉल्व कर पाएंगे जब हम किसी ऐसे इसान से बात करें जो
जब आप
हमें अच्छी तरह सुन और समझ सकता हो।
अगर सामने वाले इंसान के आइडियास हमें बेकार लगें तो भी यही अच्छा होगा कि हम एक बार उनकी बातों को सुन ज़रूर लें। इफेक्टिव लिस्नर बनने के लिए यह ज़रूरी है कि हम शांत रह कर दूसरों को उनकी बात बोलने का मौका दें। दूसरों की ओर सबर और समझ दिखा कर
हम उन्हें यह मौका देते हैं कि वे अपनी प्रॉब्लम्स को हेंडल और उन्हें सॉल्व करने के नए तरीकों को ढूंढ़ सकें। आप बेहतर लिस्नर कैसे बन सकते हैं?
बेहतर लिस्नर बनने के लिए आप यह कर सकते हैं कि जब सामने वाला बात कर रहा हो तो आप उन्हें हिम्मत देने के लिए यह दिखा सकते हैं कि आप उनकी बातों को अच्छी सिर हिलाने या बात में दखल न देने वाले शब्द जैसे की “अच्छा” का यूज़ करने से आप सामने वाले को यह एहसास दिला सकते हैं कि आप उनकी बातों पर ध्यान दे रहे हैं। ऐसा करने से आप उन्हें और हिम्मत देते हैं जिससे वे अपने मन की बात कर पाते हैं। सामने वाले को एक साथ अपनी सारी बातें बोलने का मौका देने से भी आप अच्छे लिस्नर बन सकते हैं। यह तरीका तब ज़रूर काम आता है जब वाला बहुत गुस्से में हो सामने यह चाहता हो कि कोई उसकी बात सुने। ऐसा करने से उसका गुस्सा कम होगा और वह इंसान शांति हो जाएगा। जब कोई इंसान आपसे इंफॉर्मेशन शेयर करता है तो आप उन्हें जज करते हैं और यह अंदाज़ा लगाते हैं कि वो इस वक्त कैसी हालात से गुज़र रहा है। सामने वाला कैसी सिचुएशन एक्सपीरिएस कर रहा है यह समझने के लिए आप अपने मन में उसे लेकर कई बार थियोरीज़ बनाते हैं। यह आपकी और एक गलती है। जब सामने वाले इंसान को यह पता चलेगा की आप उन्हें जज कर रहे हैं यानी उन्हें लेकर अपने मन में कोई राय बना रहे हैं उन्हें
यह बात अच्छी नहीं लगेगी।
आपको सलाह देने से खुद को रोकना चाहिए, जब तक कि सामने वाला ख़ुद एडवाइस ना मांगे। आपको सामने वाले को यह भी नहीं कहना चाहिए कि आप समझ सकते हैं कि वे किस दौर से गुज़र रहे हैं, क्योंकि आप सच में यह बात नहीं समझ
सकते। ऐसा हो सकता है आप भी उन की सिचुएशन से मिलती-जुलती सिचुएशन से पहले कभी गुज़रे हों लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि आपके रिएक्शन भी उनके जैसे होंगे। हमारे स्भाव, इमोशस, पिछले एक्सपीरिएस, और फैमिली बैकग्राउंड एक दूसरे से अलग होते हैं। जब कोई आप से सलाह मांगे तो आपको यह सोचना चाहिए कि वह इस पर कैसे रिऐक्ट करेगा और यह समझना चाहिए कि आपको कब रुकना है। सामने वाले की बॉडी लैंग्वेज आपको यह बता सकती है कि उन्होंने आपकी दी हुई एडवाइस पर कैसे रिऐक्ट किया है। तब आप यह बता सकते हैं कि
आपकी एडवाइस अच्छी तरह से ली गई है या नहीं, और इससे यह समझ सकते हैं कि आपको कब रुकना चाहिए। जब भी आप किसी को सलाह दें तो
आपको यह
समझना चाहिए कि सामने वाला आपकी सलाह ले सकता है या लेने से मना कर सकता है। आपको यह बात साफ-साफ़ समझना चाहिए
कि उनके डिसीजन में आप को दखल नहीं देना चाहिए। लिस्निंग स्किल्स की प्रैक्टिस कैसे करें?
अगर आप यह जानना चाहते हैं कि आपकी लिस्निंग स्किल्स कितनी अच्छी हैं तो आप किसी ऐसे दोस्त या रिश्तेदार को कॉल कर सकते हैं जिनसे आपने लंबे समय से बात ना की हो। 20 मिनट की फ़ोन कॉल को यूज करके आप यह measure कर सकते हैं कि आप दूसरों की बातों को कितने अच्छे से सुन सकते हैं और यह मौका आप उस इंसान से अपना रिश्ता सुधारने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। आप इसे रेगुलर प्रैक्टिस से और बेहतर बना सकते हैं।
डे 2- इंटेरप्ट करना अवॉइड करें (Day 2 – Avoid Interrupting)
आपको ऐसे किसी इसान से बात करते हुए कैसा लगता है जो आपको बात के बीच में टोकता रहता है? ऐसें इंसान से चिढ़ होना नेचुरल है। सामने वाले जब आप किसी से बहस कर रहे होते हैं तब आप सामने वाले की बात को काट कर अपनी बात रखते हैं ताकि आपकी आवाज़ सुनी जाए। या जब आप किसी ऐसे टॉपिक पर डिस्कस कर रहे हों जिसे लेकर आप बहुत पैशनेट हैं, तब भी आपको सामने वाले की बात काट कर अपनी बात बताने का बहुत
को भी ठीक ऐसा ही फील होता है जब आप उनके साथ ऐसा करते हैं।
मन करता होगा।
सामने वाले बात काट कर आप उन्हें गैर जरूरी महसूस कराते हैं। उन्हें यह भी लग सकता है कि उन्हें वह ध्यान नहीं दे रहें जिसके वे हकदार उन्हें यह लगेगा कि उनके आइडिया आपके आइडिया से कम इंपॉर्टेट हैं, जिससे आपके रिश्ते पर एक नेगेटिव असर पड़ सकता है। अगर आप बार-बार किसी को टोकते रहेंगे तो वे ठीक से सोच भी नहीं पाएंगे। उन्हें यह लगेगा कि आप उन पर अपने आइडिया थोप रहे हैं जिनमें वे डूब जाएंगे। आप दूसरों को इंटेरप्ट करना कैसे अवॉइड कर सकते हैं?
आप अपने कम्युनिकेशन को सुधारने के लिए डेली टारगेट सेट कर सकते हैं जिसे पूरा करने पर आप अपने आप को ईनाम देंगे, जैसे कि पूरे दिन बिना
दूसरों को टोके बात करने पर।
आप स्टिकी नोट्स पर यह बात लिख कर इसका इस्तेमाल करके अपने आप को दिन भर याद दिला सकते हैं। इन नोट्स को आप अपने डेस्क, कंप्यूटर
या लॉकर पर लगा सकते हैं ताकि आप हमेशा खुद को यह याद दिला कर अपने कम्युनिकेशन को इंप्रूव करते रहें। किसी मीटिंग को अटेंड करने से पहले आप नोट्स सकते हैं जिसमें आप अपनी सारी बातों को लिख लें ताकि आप दूसरों को उनकी बात बोलते वक्त ना टोकें। जब कोई इंसान किसी बारे में बात कर रहा हो या कुछ सिखा रहा हो तब आपको यह ज़रूरत महसूस हो सकती है कि आप उसी वक्त
उन्हें रोक कर बातें clarify कर लें। इसे अवॉइड करने के लिए आप उन सारी बातों को कहीं नोट कर सकते हैं जिन्हें आप पूछना चाहते हैं और जब
सामने वाला अपनी बात आपको यह बात हैं बात पूरी कर ले तब आप एक साथ उन सभी सवालों को पूछ सकते हैं। चुप रह कर दूसरों को अपनी बात पूरी करने देने से लोग आपकी इज्ज़त
करेंगे।
दूसरों के बात करने पर बार बार उन्हें टोकने को इस चीज़ की निशानी समझी जा सकती है कि आप खुद को उनसे इन्फिरियर या कमतर समझते हैं। बार
बार टोकने से लोग यह समझेंगे की आप यह जताना चाह रहे हैं कि आपके पास भी अच्छे आइडिया हैं। इसे inferiority complex कहा जाता है, और अगर आपको यह प्रॉब्लम है तो आप किसी प्रोफेशनल काउंसलर (professional
counselor) से मदद ले सकते हैं।
अलग अलग लोग टोकने को अलग अलग तौर पर लेंगे, यह इस पर डिपेंड करता है कि ऐसा करना उनके कल्चर में कैसा माना जाता है। जैसे कि वेस्टर्न
कल्चर में इसे बदतमीज़ी समझा जाता है लेकिन इटालियन कल्चर में टोकने को यह समझा जाता है कि आप सामने वाले की बातों में इंटरेस्ट ले रहे हैं। जापानी कल्चर में आप बिना किसी दिक्कत के अपने डाउटस क्लियर (clear) करने के लिए सामने वाले को टोक सकते हैं। इसलिए यह बेहतर होगा कि आप यह पता करें की सामने वाला किस कल्चर से ताल्लुक रखता है ताकि आप यह जान सकें कि वे टोकने को कैसा
समझते हैं।
डे 3 -एक इन्क्लूसिव कम्युनिकेटर बनें (Day 3- Be an inclusve communicator)
इफेक्टिव तरीके से कम्युनिकेट करने के लिए आपको उन लोगों की तारीफ़ भी करनी चाहिए जो दूसरों से अलग हो या जिनके सोच विचार बाकियों से हट कर हो। हर इसान के ओपिनियन और आइडिया इज्जत के काबिल होते हैं। एक इफेक्टिव कम्युनिकेटर होने के नाते आपको अपने सर्कल में मौजूद हर इंसान को अपने बीच शामिल करना चाहिए, यह परवाह किए बिना कि वे किस कल्चरल बैकग्राउंड से नाता रखते हैं। इन्वलूसिव कम्युनिकेशन यानी ऐसी बातचीत जिसमें सबको शामिल किया जाए, हर तरह के रिश्तों के लिए अहम है, भले ही वे बिजनेस से रिलेटेड हो
या फैमिली से।
सक्सेसफुल इन्क्लूसिव कम्युनिकेशन के लिए टिप्स:
इन्क्लूसिव कम्युनिकेशन की कामयाबी के लिए आपको लोगों के कैरेक्टर के बेकार पहलुओं को चुनना अवॉइड करना चाहिए। सिर्फ उसी पहलू के बारे में बात करना चाहिए जो कि सिचुएशन को सूट करता हो। लोगों के सेक्शुअल ओरिएंटेशन उन्हें डिस्क्राइब करने के लिए इस्तेमाल करने से बचना चाहिए। जैसे कि मिसाल के तौर पर आपकी टीम में एक नया गे
(gay स्टाफ मेंबर शामिल हुए हो, तो आपको उनके बारे में बताने के लिए ‘गे’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि वह इस सिचुएशन में सूट
नहीं करता।
इसी तरह विकलांग यानी कि disabled लोगों को उनकी disability से डिस्क्राइब करना भी सरासर गलत है। किसी dusable इसान को उनकी कमियों से बुलाना गलत है, इसके अलावा किसी को कुछ और तकलीफ हो जैसे कि डिप्रेशन तो उन्हें डिप्रेसिव या देवदास ऐसे नामों से बुलाना भी ग़लत
है। अच्छे कम्युनिकेशन के लिए ज़रूरी है कि आप लोगों की जाती, धर्म वगैरा का भी खयाल रखें और उनकी पहचान को लेकर अपने मन में कोई ग़लत
राय ना बनाएं। आपको यह हरगिज़ नहीं मानना चाहिए कि कोई किसी एक तरह के देश या जाति से नाता रखता है तो वह अच्छा या बुरा ही होगा। ऐसा
करने से यह ज़ाहिर होगा कि आप लोगों की इंडिविजुअल पर्सनैलिटी को ऐप्रिशिएट या उनकी सराहना नहीं करते।
इन्क्लूसिव कम्युनिकेशन के लिए आपको ऐसे शब्द या स्लैंग भाषा का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए जो कि किसी इंसान या गुप की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकती हो। आप अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स यूट्यूब पर विडियोज देख कर सुधार सकते हैं जहां दो या दो से ज्यादा लोग डिस्कशन कर रहे हों। उनके डिस्कशन को देखकर ऐसे किसी इंसान को देखिए जो दूसरों के लिए पुरानी और घिसी पिटी सोच रखता हो और उनसे खुद की तुलना करके यह देखिए की क्या आप भी उन जैसे हैं।
डे 4- अपनी वोकैबुलरी को बढ़ाएं (Day 4- Expand your vocabulary) आप अपने शब्दों को कितने अच्छे से जानते हैं?
कम्युनिकेशन प्रोसेस में कई तरह के वईस का आना और उन्हें सही जगह पर इस्तेमाल करना आना बहुत ज़रूरी माना जाता है। कई तरह के बईस की नॉलेज होने को इंटेलिजेंट और वैल एजुकेटेड होने से जोड़ा जाता है। यह आपको एक बेहतर कम्युनिकेटर बनाता है। अलग अलग वर्ड्स की अच्छी नॉलेज आपको पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में बढ़ने में मदद करेगी।
जॉन ‘ओ’ कॉनर (John Conner) ने यह पता लगाया है कि जिन लोगों को शब्दों कि ज्यादा जानकारी होती हैं, उन्हें काम में टॉप पोजिशन में न इस बात पर भी डिपेंड करती है कि आपको कितने वर्डस की जानकारी है और उन्हें कब, कहां और कैसे इस्तेमाल किया जाए इस
रहने का मौका मिलता है और वे ज्यादा सक्सेसफुल होते हैं।
अच्छी कम्युनिकेशन चीज़ की भी जानकारी है।
कम्पनिकेशन किसी भी कामयाब रिलेशनशिप का आधार है। जब आपको ज्यादा चर्डस की जानकारी होगी तब आप अपने मन की बात बेहतर तौर पर
एक्सप्रेस कर पाएंगे
और नए आइडियास आसानी समझ पाएंगे।
शब्दों की अच्छी जानकारी होने से आप लिखने और पढ़ने के ज़रिए लोगों से बेहतर तरीके से कम्युनिकेट कर पाएंगे और बेहतर और मज़बूत रिश्ते बना पाएंगे। वोकैबुलरी एक मजबूत प्रोफेशनल बैकग्राउंड बनाने के लिए भी ज़रूरी है।
अपनी वोकेबुलरी को कैसे सुधारें?
आप वर्ड्स को लेकर अपनी नॉलेज को हर रोज़ कुछ नए वईस सीख कर और बेहतर कर सकते हैं। आप हर रोज़ कुछ नए वर्स सीख कर उसे दिन लोगों से बात करते वक्त यूज़ करने को अपना डेली रूटीन बना सकते हैं।
इन नए वर्ड्स के बारे में और इनके मीनिंग को आप अपने दोस्तों को भी बता सकते हैं।
भर
आप बुक्स पढ़कर भी वोकेबुलरी को बेहतर बना सकते हैं। हर रोज़ आप कोई नई या ज़्यादा चैलेंजिंग बुक पढ़ सकते हैं। अपने डेली शेड्यूल में से कुछ समय आप नए वर्ड्स को सीखने और उनके मतलब को समझने में बिता सकते हैं।
अगर कोई आपके सामने नया शब्द यूज़ करे जिसे आपने पहले कभी ना सुना हो तो आपको सामने वाले से हमेशा इस बारे में पूछ लेना चाहिए। पूछने
का यह मतलब नहीं होता कि आप बेवकूफ़ हैं, इसका मतलब यह होता है कि आप कुछ नया सीखने की इच्छा रखते हैं। आप उस नए शब्द
लिख कर रख सकते हैं जिससे की आप बाद में उसे डिक्शनरी में ढूंढ़ सकें।
डे5- अपने शब्दों का चुनाव सोच कर करें (Day 5-Choose your words vwisely)
को कहीं
कुछ शब्द जो आप कम्युनिकेट करते वक्त यूज़ करते हैं वे आपके लिए बाधा बन सकते हैं। कम्युनिकेशन को बेहतर बनाने के लिए आपको ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करना अवॉइड करना चाहिए जिनसे आप पर नेगेटिव असर हो सकता हो। आपको पॉजिटिव तरीके से कम्युनिकेट करना शुरू करना चाहिए। ऐसा करने से आप चीज़ों को एक नए नज़रिए से देखना शुरू कर देंगे, जो चीजें आपको पहले रुकावट जैसी दिखाई देती थीं वे अब आपको नए मौकों
की तरह दिखने लगेंगी।
जब आप “लेकिन” जैसे शब्दों का इस्तेमाल अपने सेंटेंस में करेंगे तो इससे आपके सेंटेंस का पूरा मतलब बदल सकता है। आप अपने पोटेंशियल को कम बताते हुए बहाने देने लगते हैं। मिसाल की तौर पे अगर आप यह कहें की आपको छुट्टियों पर जाना अच्छा लगता है लेकिन आपको उड़ने से डर लगता है। इससे यह पता चलता है कि आपका उड़ने को लेकर डर आपको छुट्टियां एन्जॉय करने से रोक रहा है। जब आप इस लेकिन” को “और से बदल
देगे तो आपके स्टेटमेंट का पूरा मतलब बदल जाएगा। जब आप यह बोलते हैं कि आपको छुट्टियों पर जाना अच्छा लगता है और आपको उड़ने से डर लगता है, तो इससे यह पता चलता है कि यह डर
आपको छुट्टियां एन्जॉय करने से नहीं रोक सकता आप फिर भी छुट्टियों में एन्जॉय करने के लिए बाकी की चीजें कर सकते हैं या सबसे बेस्ट यह कि आप अपने डर पर काबू पा सकते हैं।
इसी तरह से आप “अब तक का इस्तेमाल कर सकते हैं। अब तक लगाने से यह साबित होता है कि आप में अभी भी उम्मीद बाकी है और आप किसी चीज़ को अभी भी पा सकते हैं। जब आप कहते हैं कि आप अब तक सक्सेसफुल नही हुए हैं तो इसका यह मतलब बनता है कि आप सक्सेसफुल बनने के प्रोसेस में हैं लेकिन जब आप यह कहते हैं की आप सक्सेसफुल नहीं है तो इसका यह मतलब बनता है कि आपने अपने सक्सेसफुल होने की सारी
उम्मीद खो दी है। आप पॉज़िटिव सेल्फ-टॉक की प्रैक्टिस अपने सेंटेंस और लाइफ दोनों से सभी “लेकिन” को बदलकर कर सकते हैं। यह करने से आपको पता चलेगा की आप पहले से ज्यादा पॉजिटिव बन गए हैं और आप में अब ज़्यादा कॉन्फिडेंस भी आ गया है, और साथ साथ आप दूसरों को भी इंस्पायर करने लगे हैं। आपको अपनी लाइफ की सभी नामुमकिन लगने वाली चीजों को “अब तक” से बदल देना चाहिए।
डे ६ अपने प्रोनाउन की चॉइस पर ध्यान दें (Day 6-Watch your pronouns)
अपने बारे में बात करना अच्छा लगता है, है ना? हम अवसर किसी भी बातचीत में “मैं” का इस्तेमाल करते हैं और ऐसा करना नेचुरल है क्योंकि हम इंसान हैं। मगर हमें इफेक्टिव तरीके से कम्युनिकेट करने के लिए बैलेंस बनाना आना चाहिए ताकि सामने वाले को भी यह लगे की उसका सम्मान और
उसकी तारीफ़ की जा रही है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के द्वारा की गई एक रीसर्च से यह बात सामने आई है कि घमंड और अपने बारे में बातें करना आपस में जुड़े हुए हैं। इस रीसर्च में 24 आदमियों और औरतों को अपने पसंद के टॉपिक पर बात करने का मौका दिया गया और उनकी बातों को रिकॉर्ड किया गया। रिसर्चर्स ने उन recordings को सुना और यह पता किया कि जिन लोगों ने अपनी बातों में “मैं का इस्तेमाल ज्यादा किया, उनमें बाकियों से ज़्यादा अहांकार ह करना नॉर्मल लगता होगा मगर इससे बाकियों को आप सेलफिश और घमंडी नज़र आएंगे। देखा गया है। आपको “मैं का यूज़ करना जब आप किसी problem के बारे में बात कर रहे हों, तब आपको “मैं का इस्तेमाल करना चाहिए, या जब भी आप किसी को लेकर अपनी निराशा जाहिर करते हैं तब भी आपको का इस्तेमाल करना चाहिए।
मिसाल के तौर पर अगर आप अपने रूममेट से निराश हों, कि वे अपने काम काज को नहीं करते तो आपको ऐसी सिचुएशन में तुम” या “आप” की जगह क का यूज़ करना चाहिए क्योंकि अगर आप “तुम” या आप” का यूज़ करेंगे तो ऐसा लगेगा कि आप उन पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं। आप उन्हें यह बोल सकते हैं कि “मैं यह मानता हूं कि हमें अपनी जगह को साफ़ रखना चाहिए और अपने सारे काम काज पूरे करने चाहिए। ऐसा करने से आपके रूममेट को अपनी गलती का एहसास होगा और उन्हें यह भी महसूस नहीं होगा कि आप उन पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं।
जब आप किसी कॉन्ट्रोवर्शियल या विवाद पैदा करने वाले टॉपिक पर बात कर रहे हो तब आपको हम” की जगह “मैं” का इस्तेमाल करना चाहिए।
धर्म और पॉलिटिक्स जैसे टॉपिक काफ़ी सेंसिटिव होते हैं, इसलिए इनके बारे में बात करते वक्त आपको “में” का ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ऐसे
टॉपिक पर आप दूसरों की तरफ से बात नहीं कर सकते आपके ऐसा करने से यह लगेगा कि आप उन लोगों को भी ऐप्रिशिएट कर रहे हैं जिनके सोच
विचार आपसे नहीं मिलते।
अपने कम्युनिकेट करने के तरीकों को आप हम” जैसे शब्दों को अपना कर और असरदार बना सकते हैं। जब आप “हम का यूज़ करते हैं तो इससे unity और टीम वर्क झलकती है। इससे यह लगता है कि आप अपने ग्रुप में मौजूद सभी लोगों को ऐप्रिशिएट कर रहे हैं जब आप किसी ऐसी चीज़ के बारे में पूछ रहे हों जिनमें बाकी लोग भी शामिल हैं। भी आपको “हम” का इस्तेमाल करना चाहिए।
डे 7- मदद के लिए हाथ बढ़ाएं (Day7- Offer a helping hand)
कम्युनिकेशन का एक ज़रूरी पहलू दूसरों की मदद करना भी है। जब आपको किसी की मदद करनी हो तो आपको इस चीज़ का खयाल रखना होगा कि अच्छी तरह से मदद करने के लिए आपको सामने वाले को अपने मदद करने के इरादे के बारे में बताना चाहिए।
सामने वाला आपके सामने अपने आप को कम ना समझे।
ऐसा करना से आप यह जताएंगे कि आप सामने वाले मदद सच में करना चाहते हैं
मिसाल के तौर पर अगर आपका कोई दोस्त अभी अभी नए घर में शिफ्ट हुआ हो और उसे मदद की ज़रूरत हो तब आपको उससे यह पूछने के बजाए कि उसे आपकी हेल्प चाहिए या नहीं, आपको यह दिखाना चाहिए कि आप खुद उसकी मदद करना चाहते हैं। सामने वाले को पूछिए कि आप उनके किस काम आ सकते हैं। अपना पाँइंट साफ़ तौर पर उनके सामने रखें कि आप उनकी मदद किस तरह से करना चाहते हैं। इससे यह दिखाई देगा कि आप उनकी मदद करने में इंटरेस्टेड हैं। मिसाल के तौर पर अगर आपके किसी दोस्त के घर पर कोई बीमार बच्चा
तो आप उन्हें यह बोलिए कि आप उनके लिए घर का सामान खरीद कर ला सकते हैं या घर के बाकी कामों को कर सकते हैं, ना कि यह की उन्हें जब
कभी आपकी मदद चाहिए हो तो वे आपको कॉल कर सकते हैं। जब भी आप किसी की मदद करने के लिए उनसे पूछते हैं तो आपका मक़सद यह होना चाहिए कि आप को सिचुएशन को बदलना है, ना कि उस इंसान के कैरेक्टर को। अगर आपका कोई दोस्त लगातार लेट होने की वजह से अपनी जॉब खो देता है तो आपको उसकी नई जॉब तलाश करने में मदद करनी चाहिए, ना कि उन्हें उनकी गलतियां गिनाना चाहिए।
जब भी आप किसी को पैसे दे कर उनकी मदद करते हैं तो आपको यह बात अपने मन में अच्छी तरह सोच लेनी चाहिए कि अलग अलग लोग पैसे लेने को अलग अलग नज़रिए से देखते हैं। इसलिए अगर आपका कोई दोस्त आपसे पैसे लेने से इंकार कर दे तो आपको इसका बुरा नहीं लगना चाहिए, क्योंकि हो सकता है उनकी सोच में पैसे लेने को अच्छा नहीं समझा जाता हो। आप किसी दूसरी तरह से उनकी मदद कर सकते हैं जिससे उनका पैसों को लेकर तनाव यानी फाइनेंशियल बोझ कम हो जाए।
कंक्लूजन
हमने यह सीखा की कम्युनिकेशन हमारे डेली लाइफ़ में कितना ज़रूरी है। हम सभी लोग असरदार तरीके से कम्युनिकेट करने की एक नेचुरल काबिलियत के साथ पैदा हुए हैं लेकिन कभी कभार हमारी परवरिश हमारे कम्युनिकेशन में दखल दे सकती है। लेकिन अब आप अपने आप को इफेक्टिव या असरदार तरह से कम्युनिकेट करने के लिए ट्रेन कर सकते हैं, बिना यह चिंता किए कि आपका कैरेवटर टाइप कैसा है। इस बुक से हमने कम्युनिकेशन के कई पहलुओं को समझा और सीखा जैसे कि दूसरों की बात सुनना (लिस्निंग). लोगों को टोकने से बचना, अपने कम्युनिकेशन में सभी लोगों को शामिल करना, अपनी वोकेबुलरी को बढ़ाना, सही वर्ड्स का चुनाव करना, और दूसरों को मदद ऑफर करना। हमने यह भी सीखा की कम्युनिकेशन एक ऐसी स्किल है जिसे कोई भी सीख सकता है, और यह प्रेक्टिस करने से और बेहतर होती जाती है। यह बात याद रखें कि अपने कम्युनिकेशन को असरदार बनाकर अपने रिलेशनशिप को बेहतर बनाने के लिए अभी देर नहीं हुई है। आपके शब्द आपके विचार
और ऐटिट्यूड का आइना होते हैं।