लेखक के बारे में
सैमलेय स्पैक्टेटर के लिटरेरी एडिटर है। यो द वॉल स्ट्रीट जर्नल इनिंगस्टैण्डई, और गार्डियन जैसे कई पब्लिकेशंस के साथ काम कर चुके हैं।
सभी भाषण कला का इस्तेमाल करते हैं, इससे बचना नामुमकिन है।
हम सभी ऐसे खतरनाक लोगों से परीचित है जिन्हे ताकत और इन्फ्लुएस रेशनल आग््य्मेट्स करके नहीं बल्कि चालाक और भावुक भाषण देकर मिली है। हिटलर और लेनिन समेत कई देशों के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ऐसे ही लोगों के उदाहरण है। हालाँकि यह सच है कि भाषण कला का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है, जो कि कई बार होता भी है, पर फिर भी यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से लेकर हमारे इसानी अतीत तक को समझने मे काफी अहम भूमिका निभाती है।
भाषण कला शब्द सुनते ही आपको नेताओं के झूठे और वास्तविकता से परे भाषण याद आते होंगे पर सच यह है कि भाषण कला का इस्तेमाल हम सब करते हैं। भाषण कला लिखे हुए या बोले हुए शब्दों से किसी को इन्फ्लुएस करने की कला को कहते हैं। इसलिए हम चाहे भाषण कला को कितनी भी पुरानी और धोका देने वाली कला कहे, सच तो यह है कि ये बोलते समय भी हम भाषण कला की ही इस्तेमाल कर रहे हैं। आप भाषण कला की वजह से ही अपने दोस्तों और जॉब इंटरव्यूर्स से अलग अलग
तरह से बात करते हैं।
आप खुद से ही पुछिये कि कितनी बार आप बिना किसी को इन्फ्लुएस करने के मकसद से भाषा का इस्तेमाल करते हैं।
भाषण कला के इस्तेमाल से बचना मुश्किल है क्योंकि शब्दों की मदद से ही कम्यूनकेशन यानी जानकारों का आदान प्रदान इमोशनल, साइटिफिक, या फैवचुअल हो हमारी भावनाओं और विचारधाराओं पर असर डालती है। पाता है और कोई भी जानकारी चाहे वो
मौजूदा दौर की राजनीति में भी भाषण कला के इस्तेमाल से बचना नामुमकिन है, फिर भी इसे नीची नज़रों से देखा जाता है। उदहारण के लिए, ओबामा के बारे में यह बोला
गया था कि वो हवा में बातें करते हैं और सिर्फ बड़ी बड़ी बाते बोलते है। उनके आलोवकों का मानना था कि ओबामा के पास बोलने के अलावा और कोई खास गुण नहीं है।
देखा जाए तो यह बोलते समय उनके आलोचक भी भाषण कला का ही इस्तेमाल कर रहे थे।
कोई भी नेता जब किसी दुसरे नेता पर सिर्फ भाषण देने का इलज़ाम लगाता है तो असल में यह नेता खुद भाषण कला का इस्तेमाल कर रहा होता है। सच यह है कि जो लोग भाषण कला की आलोचना करते हैं वो भी किसी ना किसी तरह से इसका इस्तेमाल करके ही ऐसा कर पाते हैं।
इसान का अतीत और इसानियत को समझने के लिए हमारा भाषण कला को समझना बहुत जरुरी है। भाषा की मदद से ही इंसानो का विकास मुमकिन हुआ है। जहाँ भाषा है वहाँ भाषण कला भी है। इसलिए यह मानना गलत नहीं होगा की जहाँ कही भी इसान है वहाँ भाषण कला भी होगी।
वास्तव में वेस्टर्न सिविलाइज़ेशन में भाषण कला का बहुत योगदान रहा है। ये योगदान अच्छे और बुरे दोनों तरह के हैं। क्योंकि लोकतांत्रिक सरकारें सही हंग से काम करने
के लिए भाषण और बहस पर आधारित रहती हैं और समाज जिन कानूनों का पालन करता है वह केवल कुछ कानूनी शब्द ही हैं।
कई बार शब्दों का इस्तेमाल शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने के लिए भी किया गया है। जीसस को दूसरों के साथ शाति से बात करने के लिए क्रॉस पर चढ़ाया गया था, किसी ने उनपर खतरनाक विचारों को फैलाने का आरोप लगाया, लेकिन उन्होंने सम्राट को कभी कोई धमकी भी नहीं दी थी। यही बात मार्टिन लूथर किंग, जूनियर के शांतिपूर्ण एक्टिविज्म पर भी लागू होती है।
दूसरी तरफ सभी तानाशाही सरकारें शब्दों को प्रोपगैंडा की तरह इस्तेमाल करते हैं। हिंटलर को सत्ता सिर्फ बल से नहीं बल्कि अपनी बातों से जर्मनी के असंतुष्ट लोगों के दिल को जीत कर मिली थी। हिटलर भाषण कला की मदद से ही जर्मनी का लीडर बना था।
भाषण कला को कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। यह आपको यह समझने में मदद करती है कि लोग असल में आप से क्या चाहते है और वो किस तरह आपसे
उसे पाने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि अकसर लोग भाषण कला का इस्तेमाल अपनी इच्छाएं पूरी करने के लिए करते हैं। उदाहरण के लिए मिलिट्री को
जोश दिलाने के लिए नेता अकसर उन्हें लोगों को सुरक्षित रखने की जरुरत और उन्हें दुश्मनों से बचाने की बात करते है।
इसका मतलब है कि जितने अच्छे से आप भाषण कला को समझेंगे उतने ही अच्छे से आप समझ पाएंगे कि लोग असल में आप से क्या चाहते हैं और कैसे वो अपनी इच्छा पूरी करने के लिए आपका इस्तेमाल कर सकते हैं इस तरह लोगों की असल इच्छा जानकर आप खुद को दूसरों द्वारा इस्तेमाल होने से बचा सकते हैं । हमें भाषण कला की ताकत का एहसास ऐतिहासिक रूप से हुआ। उदाहरण के लिए शेक्सपियर के समय में भाषण कला लिबरल आर्ट्स शिक्षा का बेहद जरूरी हिस्सा थीं। पर अरस्तू ने इससे बहुत पहले ही भाषण कला का विवरण अपनी किताब रेटोरिक”में दे दिया था।
आगे हग अरस्तु की किताब रेटोरिक में शामिल बातों को समझेंगे।
प्रभावशाली भाषण कला की शुरुआत अपने तर्कों को पहचानने और उसे साबित करने के तरीकों को सोचने से होती
है।
अरस्तू ने अपनी किताब रेटोरिक में भाषण कला को पाँच भागों में बाटा है। पहले भाग का नाम इन्चेंशन है, यानी यह सोचना कि आप किसी भी दिए गए विषय पर क्या बोल सकते हैं। इन्वेंशन भाषण कला का वो हिस्सा है जिस में आप जो भी साबित करना चाहते हैं उसे अच्छे से परिभाषित करते हैं और उन तकों के बारे में सोचते हैं जो आप की बातों को मनवाने या साबित करने में मदद कर सकते हैं।
अकसर अपनी बात को मनवाने या साबित करने के कई तरीके होते हैं, पर आपको वो तरीका चुनना चाहिए जो आपके ऑडियंस के साथ मेल खाए। ऐसा करने के लिए आपको अपनी ऑडियंस की लाइफ फिलॉसोफी, प्रेजुडिसेस और डेमोग्राफिक का पता होना चाहिए।
उदाहरण के लिए मान लीजिये कि आपको अलग अलग ऑडियंस को अपना कॉन्फ्लिक्ट रेसोलुशन मेथड अपनाने के लिए मनाना है। अब अगर आपकी ऑडियंस में बहुत सारे
मैनेजर्स हैं तो आपको इस बात पर जोर देना चाहिए कि आपका मेथड कितना प्रभावशाली है और किस तरह ये ज़्यादा समय बचाता है। पर अगर आप एव आर के लोगों से
बात कर रहे हैं तो आपको इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि कैसे आपका मेथड दो पार्टीस को एक दुसरे से अच्छे से बर्ताव करने में मदद कर सकता है।
अब जब भाप समझ चुके हैं कि आप कौन सी बातें मनवाना या साबित करना चाहते हैं और ऐसा करने के लिए सबसे भच्छा तरीका क्या हो सकता है? अब आप ऐसा करने हैं । के लिए पहुंएशन के 3 मोड्स का इस्तेमाल कर सकते हैं। पर्सएशत का पहला मोड है ऐथोस, यह बोलने वाले की अथॉरिटी और उसके खुद को पेश करने के तरीके से जुड़ा हैं। उदाहरण के लिए जब एफ केनेडी ने जर्मन भाषा में “इच बिन ऐन बर्लिनर ‘यानि “मैं एक बर्लिनर हूँ “कहा था, तब वो अपनी जर्मन ऑडियस का ध्यान खीचने के लिए ऐथोस का ही इस्तेमाल कर रहे थे।
पर्सएशन का दूसरा मोड लोगोस है, इसमें बोलने वाला व्यक्ति अपने लॉजिक और तक्कों पर ध्यान देता है। पर यह बात याद रखनी जरुरी है कि तरह तरह की सभ्यताओं लिए अलग अलग तरह के तर्कों को इस्तेमाल करने की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए कई मॉडर्न लोगों को यह बात सही लगेगी किं पुरुष और महिला दोनों बराबर हैं पर इस तरह के तर्कों से शायद ही किसी पुरानी सभ्यता पर कोई असर पड़े।
पसुएशन का आखिरी मोड पैथोस है, यानी भावनाओं पर विशेष जोर देना। उदाहरण के लिए अकसर एनिमल एब्यूज के आंकड़े दिखाने के मुकाबले एक उदास, बीमार और प्यारे जानवर की फोटो दिखाने पर एनिमल सेंटर के लिए ज्यादा डोनेशंस आते हैं। अब हम फिर से अरस्तु द्वारा पाँच भागों में बांटे गए भाषण कला के ढाँचे पर ध्यान देते हैं।
अच्छी भाषण कला के लिए एक प्रभावशाली डाँचा का होना सबसे जरूरी है। ऐसा इसलिए है अगर लोग आपके तर्कों को बिना किसी दिक्कत के समझ पाएँगे तो आपके
भाग््यमेंट्स बहुत ज्यादा परसुएसिद होंगे। ऐसा करने के लिए आप अपने आणुमेंट के सबसे अच्छे तक्कों पर ज़ोर दें और अपने कमजोर तक्कों को जितना कम हो सके उतना कम करने की कोशिश करें। आप अपने आर्गुमेंट को और बेहतर बनाने के लिए क्लासिक “इंट्रोडक्शन, मिडिल और कन्क्लूजन कहानी ढाँचे के अलग अलग रूपों का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह आपके
स्पीच को 6 हिस्सों में बाँट देगा।
इस कहानी डाँचे का पहला हिस्सा इंट्रोडक्शन है, इसमें आपको अपने ऐथोस पर ध्यान देना होता है। ऐसा आप अपने ऑडियंस का ध्यान और भरोसा जीतकर कर सकते हैं। इंट्रोडक्शन के बाद कहानी डाँचे का दूसरा हिस्सा नरेशन आता है। इस हिस्से मे आप अपने विषय का एक ओब्जेक्टिब ओवरव्यू देते हैं। इसके बात तीसरा हिस्सा डिवीजन आता है, इसके दौरान भाप अपने और अपने प्रतिद्वंद्वियों के आगयमेंट्रस में समानताएँ और अंतर बताते हैं।
आपके आगमिंट का प्रफ कहानी के डाँवे का चौथा हिस्सा है. इस हिस्से में आपको अपनी बातों को साबित करने के लिए लोगोस यानी अपने तकों का इस्तेमाल करना होता है। इसके दौरान आप अपने आणुमेंट पर प्रतिद्वतिओं द्वारा उठाये जा सकने वाले ओब्जेक्शन्स के बारे में सोचते हैं और इन सभी ओबजेक्शन्स का बारी बारी से जबाव देते हैं।
अंत में कहानी ढाँचे का आखिरी हिस्सा कन्यलूज़न आता है। इसमें आप पैथोस का इस्तेमाल करके अपनी बातें अच्छी तरह ऑडियंस तक पंहुचा सा सकते हैं। पैथोस यानी
भावनाओं पर जोड़ देकर आप अपने तर्क से ऑडियंस का दिल जीत सकते हैं।
पर हमें ये बात याद रखने कि जरूरत है कि ये सारे अब्सोल्युट नहीं बल्कि जेनरल रूल्स हैं। इसका मतलब है कि कभी कभी आपको अपनी स्थिती के मुताबिक ऊपर दिए हुए कहानी ढाँचे में बदलाव करने की जरूरत पर सकती है। ऐसा आप कहानी ढाँचे के कुछ हिस्से निकालकर या उनमे कुछ नए बदलाव करके कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप अपने दोस्त की शादी में बैस्ट गेन हैं तो आपको अपने स्पीच मे प्रतिद्वद्विओं के ओजेक्शन्स के जबाव शामिल करने की कोई जरूरत नहीं है। पर इसका मतलब ये नहीं है किं आप अपने आगरगेंट के ढाँचे को हलके में लें, क्योंकि एक अच्छे आगमेट के लिए एक ठोस डाँचा सबसे जरूरी चीज है। ये बात हमेशा सही रहेगी चाहे आप आर्गुमेंट लिख कर करें या बोल कर।
स्टाइल, मेमोराइज़ेशन और डिलिवरी अरस्तू के पांच भागो में बाटें गए ढाँचे के आखरी हिस्से हैं।
आप जो बाते कहते हैं यो महत्पूर्ण है, पर वही सब कुछ नहीं है। आपके आमिट का स्टाइल यानी आपके तर्क करने का तरीका भी बहुत जरूरी है। असल में लोग आपकी बात मानेगें या नहीं यह बहुत हद तक आपके आगुमेंट के स्टाइल पर निर्भर करता है।
अपने मामेंट में प्रभावशाली स्टाइल को इस्तेमाल करने के लिए आपको अपनी ऑडियस को अच्छे से समझने की जरूरत है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह जानना बहुत जरूरी है कि यो किस तरह की बातों पर केसी प्रतिक्रिया देंगे।
आप अपने आमिंट मे शेक्सपियर की तरह मीठी बातें बोल सकते हैं, पर ऐसा नहीं करने में ही भलाई है। ऐसा इसलिए है व्थोकि आजकल के लोगों को ज्यादा चिकनी चुपड़ी बातें पसंद नहीं आती है और वो इसे नीची नज़रों से देखते हैं। अब लोग उनकी बातों पर जल्दी भरोसा नहीं करते जो बहुत ज्यादा मीठी बातें करते हैं। ज्यादा परसुएसिव बनने के लिए आपको सीधी और आसान भाषा का ईमानदारी से इस्तेमाल करना चाहिए ऐसा करने से आपकी चातें दिखाचटी नहीं लगेगी। याद रचिय इस तरह से सीधी और आसान भाषा में बात करना भाषण कला का ही एक हिस्सा है। इसपर कोई भी प्रेविटेस करके मास्टरी हासिल कर सकता है, इसमें नेचुरल स्किल्स की कोई जरूरत नहीं है।
ज्यादातर उच्चदर्जे के वक्ता और लेखक जैसे कि अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा हाई और लो दोनों तरह के स्टाइल को हस्तेमाल करना जानते हैं, और इन्हें अच्छे से अपनी भाषण कला में इस्तेमाल करते हैं। अगर आप अपनी स्पीच मे छोटे छोटे सटीक वाक्यों के साथ कुछ डिटेल स्टेटमेंट्स का भी इस्तेमाल करेंगे, तो भापकी स्पीच बहुत ज्यादा परसुएसिव बन जाएगी।
आपकी स्ट्रेटेजी चाहे कितनी भी अच्छी हो, ये मेमोराइजेशन और डिलिवरी के बिना अधूरी है। अकसर दो एक्स जब एक ही रोल के एक ही डॉयलोग्स बोलते हैं, तो भी उनके परफॉर्मेस का
ऑडियंस पर अलग अलग प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए हो सकता है कि एक एक्टर अपने डॉयलोग्स को बोलते समय हकलाने लगे और दूसरा एक्टर उही लाइन्सको इतने अच्छे से
बोल दे जैसे कि वो उसके अपने खुद के विचार हों। मैमोराइजैेशन और डिलिवरी भी आपकी ऐसा करने में मदद कर सकते हैं।
बदकिस्मती से कई लोगों के लिए भाषण कला के ये आखिरी हिस्से बहुत ज्यादा मुश्किल और इराको हिस्से हैं। कुछ लोगों को मेमोराइज़ेशन और डिलिवरी की चिंता से स्टेज फ़राईट, यानी स्टेन पर बोलने से डर, हो जाता है। कभी कभी इन लोगों का दिमाग पूरी तरह लेक भी हो जाता है।
पर आपके पास मेमोराइजेशन और डिलिवरी को सीखने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है। आप को तब तक प्रेविस करती है जब तक कि जो भी आप बोलना चाहते हैं वो आपके दिमाग में अच्छे से बैठना जाए। यह प्रभावशाली रुप से बोलने का सबसे भच्छ तरीका है।
भाषणकला का सबसे ज्यादा इस्तेमाल राजनीतिक और न्यायिक क्षेत्रों में होता है।
ह्यः एक सोने की दुकान।
सेंटर स्टैज़: एक बच्चा अपने माता पिता से कोई बहुत महेगा खिलौना खरीदने की जिंद कर रहा है।
यह दृश्य राजनीतिक भाषण कला का एक प्रमुख उदाहरण है।
अब हम सगहोंगे कि यह कैसे काम करता है।
राजनीतिक भाषण कला का मकसद सुनने वाले लोगों को किसी खास काम को करने के लिए मनाना होता है। आमतौर पर, राजनीतिक भाषण कला मै यह तर्क दिया जाता है कि इस काम को करने से लोगों का फायदा होगा या ये काम करना नैतिक रूप से जरूरी है। कभी कभी किसी काग को करने के पक्ष मे ये दोनों तर्क साथ गे लिए जाते हैं।
उदाहरण के लिए, बच्चा अपने माता-पिता से वादा कर सकता है कि यदि वह उसे 5 हजार की इलेक्ट्रिक कार खरीद कर देते हैं तो वह बहुत अच्छा व्यवहार करेगा। या ये कहकर कि उसके
सभी दोस्तों के पास ये स्विलोना पहले से ही है, वह दुनिया में बराबरी की जरुरत पर अपने तर्क दे सकता है। इसी तरह, राजनीतिक उमीद्वार भी लोगों के समर्थन और उनक वोट लेने के लिए
तकों का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन राजनीतिक भाषण कला के आलाचा भी भाषण कला के कई रूप हैं। हनमे से जुडीशियल या फॉरेंसिक भाषण कला बहुत प्रसिद्ध है। यह कोर्टरुमकी भाषण कला है, इसमें तकों का इस्तेमाल इन्साफ पाने के लिए किया जाता है। इसमें हम पता लगाते हैं कि अतीत मे क्या हुआ था और उसकी मदद से हम जानते हैं कि कौन सी घटनाएँ सच मे हुई थी और कौन सी घटनाएँ झूठी है जो कभी असलियत मै नहीं घटी। इसकी मदद से किसी भी व्यक्ति को दोषी या निर्दोष साबित किया जाता है।
अकसर दोनों तरह की भाषणकला एक साथ काम करती हैं। उदाहरण के लिए आप बिल क्लिंटन के उनके मोनिका लेविंस्की के साथ एक्सट्रामैरिटल अफेयर के बारे में दिए गए प्रसिद्ध सार्वजनिक बयानों को देखें। उन्होंने जुडीशियलभाषण कला का इस्तेमाल किया था जब उन्होंने अतीत की घटनाओं को याद करते हुए यह दावा किया कि उन्होंने कभी भी इस युवती के साथ योन सबंध नहीं बनाए थे लेकिन उनकी दलीलें राजनीतिक थी क्योंकि उन्होंने ये तर्क जनता को अपनी बात मनवाने के लिए इस्तमाल किये थे।
इसलिए, अगली बार जब आप एक जटिल भाषण या लेख को देखें तो ये समझने की कोशिश करें कि लेखक या वो नेता क्या मनवाने या साबित करने की कोशिश कर रहा है। यदि आप ऐसा कर पाते हैं तो आप विचारों के एक समझादार उपभोका और एक समझाटार वोटर बन सकते हैं।